- Home
- धर्म-अध्यात्म
-
पंडित प्रकाश उपाध्याय
इस समय माघ मास चल रहा है। मासिक शिवरात्रि पर भगवान शंकर की पूजा- अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का बहुत अधिक महत्व होता है। मासिक शिवरात्रि का पर्व भगवान शंकर को समर्पित होता है। मासिक शिवरात्रि पर रात्रि में पूजा का विशेष महत्व होता है। मासिक शिवरात्रि पर विधि- विधान से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा- अर्चना की जाती है।
आइए जानते हैं माघ मास की मासिक शिवरात्रि डेट, पूजा- विधि, शुभ मुहूर्त, और सामग्री की पूरी लिस्ट...
मासिक शिवरात्रि डेट- 20 जनवरी, 2023
मुहूर्त-
माघ, कृष्ण चतुर्दशी प्रारम्भ - 10:14 ए एम, जनवरी 20
माघ, कृष्ण चतुर्दशी समाप्त - 06:32 ए एम, जनवरी 21
पूजा का शुभ मुहूर्त- 11:53 पी एम से 12:47 ए एम, जनवरी 21
मासिक शिवरात्रि पूजा विधि--
इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
शिवलिंग का गंगा जल, दूध, आदि से अभिषेक करें।
भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की पूजा अर्चना भी करें।
भगवान गणेश की पूजा अवश्य करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा- अर्चना की जाती है।
भोलेनाथ का अधिक से अधिक ध्यान करें।
ऊॅं नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
भगवान भोलेनाथ को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
भगवान की आरती करना न भूलें।
मासिक शिवरात्रि पूजा सामग्री लिस्ट---
पुष्प, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि। -
माघ मास को बहुत पावन माह माना जाता है। इस माह में किए गए धार्मिक कार्यों से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और समस्त मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। इस माह भगवान श्रीहरि के साथ भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस माह अधिक से अधिक समय धार्मिक कार्यों में व्यतीत करना चाहिए। ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। इस माह वास्तु में बताए गए कुछ उपाय अवश्य करने चाहिए। आइए जानते हैं इनके बारे में।
माघ माह में अगर कुछ विशेष वस्तुओं का दान और पवित्र नदियों में स्नान किया जाए तो दीर्घायु, आरोग्य, सौंदर्य, सौभाग्य, धन-धान्य आदि की प्राप्ति होती है। माघ माह में प्रत्येक शनिवार काले तिल, काली उड़द को काले कपड़े में बांधकर किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान करें। इस उपाय से आर्थिक समस्याएं दूर हो सकती हैं।
माघ मास में स्नान-दान का विशेष महत्व है। इस माह दान करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है। माघ मास में प्रयागराज में माघ मेला आरंभ होता है। माघ मास में संगम में पूरे माह स्नान करने वाले को भगवान श्री हरि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सुख-सौभाग्य, धन और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि माघ मास में किए गए धार्मिक कार्यों का फल कई जन्मों तक मिलता है। माघ माह में प्रतिदिन श्रीमद्भागवत गीता या रामायण का पाठ करना चाहिए। माघ मास में स्नान के पानी में तिल डालना चाहिए। माघ मास में रोजाना तुलसी के पौधे को जल अर्पित करें। शाम को तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाएं। माघ माह में रोजाना स्नान करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करें।
उन्हें पंचामृत अर्पित करें। माघ माह में देर तक शयन करने से बचें। इस माह में भोजन में तिल और गुड़ का प्रयोग अधिक करना चाहिए। माघ माह में काले वस्त्र धारण करने से बचें। माघ मास में जरूरतमंद को गुड़, तिल और कंबल का दान शुभ फलदायी माना जाता है। माघ मास में भगवान सूर्य की उपासना अत्यंत लाभकारी है। प्रतिदिन सुबह सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करें।
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 -
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
हाथ में शनि पर्वत बेहद महत्वपूर्ण है और इस पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में व्यापक असर पड़ता है। शनि पर्वत को ज्योतिष में भाग्य स्थान भी माना गया है। शनि पर्वत पर रेखाओं का पहुंचना जरुरी है। यदि शनि पर्वत पर कोई रेखा ना पहुंचे, लेकिन इस पर एक या दो खड़ी रेखाएं हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन में भूखा नहीं मरता। ऐसे व्यक्ति को धन मिलता रहता है। यदि शनि पर्वत पर वी का चिह्न बने और इसमें पांच या इससे कम शाखाएं निकलें तो व्यक्ति जीवन में करोड़ों रुपये का मालिक होता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत पर पहुंच जाए तो ऐसा व्यक्ति का भाग्योदय घर से दूर जाने पर ही होगा।
यदि शनि पर्वत पर केंद्र में मछली का निशान बने तो जीवन में धन की प्राप्ति होगी, लेकिन यह चिह्न शनि और गुरु पर्वत पर बने तो व्यक्ति धन और सम्मान दोनों पाता है। इसी तरह यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर सीधे शनि पर्वत पर पहुंचे तो व्यक्ति को परिवार से संपत्ति मिलती है। जीवन रेखा से कोई रेखा से उदय हो शनि पर्वत पर पहुंचे तो ऐसा व्यक्ति अपने दम पर संपत्ति खड़ी करता है। ऐसे लोगों को परिवार से कोई संपत्ति नहीं मिलती। यदि जीवन रेखा से उदय रेखा थोड़ा अंदर आकर मंगल पर्वत तक पहुंच जाए तो यह बहुत ही शुभ है।
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 -
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
हाथ में धन की कोठरी तो बहुत सुनी होगी। अनेक लोग पूछते भी रहते हैं कि धन की कोठरी कैसे होगी और यह कैसे खुलेगी। हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा प्रमुख होती हैं। जीवन रेखा से ही कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत तक पहुंचने वाली रेखा धन रेखा या भाग्य रेखा कहलाती है। जीवन रेखा से ही एक रेखा निकलकर बुध पर्वत तक पहुंचने वाली रेखा व्यवसाय रेखा होती है। इन रेखाओं से ही बंद कोठरी बनती है।
हाथ में धन की कोठरी जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा और व्यवसाय रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा के साथ मिलने से बनत है। इन तीनों रेखाओं से हाथ में एक कोठरी या त्रिभुजनुमा रचन बनती है। हस्तरेखा विज्ञान में इसे ही धन की कोठरी के नाम से जाना जाता है। शनि पर्वत भाग्य, धन और गूढ विद्याओं का प्रतीक होता है। व्यवसाय रेखा व्यवसाय का प्रतीक होती है। मस्तिष्क रेखा बुद्धि का प्रतीक है। ऐसे लोग अपनी बुद्धि और व्यापार के दम पर अकूत धन कमाते हैं। हालांकि यह त्रिभुज कहीं से भी खुला हुआ नहीं हेाना चाहिए। यदि इस त्रिभुज पर क्रॉस का निशान बने तो कमाया हुआ सारा धन नष्ट हो जाता है।
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सूर्य देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है। पृथ्वी पर रहने वाले सभी धर्म व जाति के लोग बारह महीनों का साल मनाते हैं, चाहे वे कोई भी मान्यता के कैलेंडर को प्रयोग में लाएं। ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां व 12 घर का मूल सिद्धांत है। सूर्य 1 महीना हर राशि या हर घर में बिताते हैं अर्थात 30 दिन में सूर्य दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इसका मतलब जब सूर्य देव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसे ‘संक्रांति’ कहते हैं। इसी प्रकार जब-जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो वेदों के अनुसार उस दिन को ‘मकर संक्रांति’ कहते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण में होते हैं।
मकर संक्रांति के दिन सुबह स्नान करके दान करने के बाद ही भोजन करना चाहिए। इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव के घर आते हैं। अत शनि देव अपने पिता का स्वागत करते हैं। इस वर्ष 14 जनवरी, 2023 को रात्रि 08.44 के बाद सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे, अत मकर संक्रांति 15 जनवरी, 2023 को मनायी जाएगी।
इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य देव, विष्णु जी व लक्ष्मी देवी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन उड़द की दाल की खिचड़ी व तिल के लड्डू का दान करना चाहिए। गरीबों को कंबल-वस्त्र बांटने चाहिए। रंग-बिरंगे वस्त्र, विशेषकर पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। पूरे भारत वर्ष में केवल महाराष्ट्र ऐसा प्रदेश है, जहां मकर संक्रांति के दिन काले वस्त्र धारण करने की परंपरा है। काली उड़द की दाल दान करने से शनि संबंधी दोष दूर होते हैं। दान करने से हमारे सभी पाप नष्ट होते हैं। इस अवसर पर सूर्य के प्राचीन मंत्र गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र बहुत शक्तिशाली व सबसे पुराने वेद ‘ऋग्वेद’ का सूर्य मंत्र है।
मकर संक्रांति के दिन मांस-मंदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करें। इस दिन चावल, चना, मूंगफली, गुड़, तिल, उड़द की दाल इत्यादि से बनी सामग्री का सेवन करना चाहिए। इस दिन किसी गरीब या भिखारी को अपने घर से खाली हाथ न लौटाएं। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य व शनि देव नीच के होकर बैठे हैं या मारक हैं अथवा शनि की साढ़े साती या ढैय्या चल रही है, तो वे शनि देव के सात रत्न अभिमंत्रित करके और ‘ओम् शं शनैश्चराय नम’ की सात माला पढ़कर बहते जल में प्रवाहित करें। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य देव नीच अथवा मारक हैं, उन्हें ‘ओम् घृणि सूर्याय नम’ की सात माला पढ़कर, सूर्य देव के सात अभिमंत्रित रत्न प्रवाहित करने चाहिए। इस दिन पानी में एक चुटकी हल्दी डालकर परिवार के सभी लोग स्नान अवश्य करें।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
वास्तु शास्त्र के अनुसार हर दिशा का एक खास महत्व और अपनी एक निश्चित ऊर्जा होती है। प्रत्येक दिशा और उसकी ऊर्जा को ध्यान में रखकर उसकी साज- सज्जा करने से घर में पॉजिटिव एनर्जी आती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में मंदिर का सही दिशा में न होना कई परेशानियों की वजह बन सकता है। उचित दिशा में मंदिर का होना घर में सुख-शांति लाता है।
● वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के उत्तर-पूर्व दिशा में मंदिर का निर्माण करना चाहिए। इसे ईशान कोण भी कहते हैं। ऐसा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। ईशान कोण को देवताओं का कोना भी कहा जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में ईश्वरीय शक्ति का प्रवेश उत्तर पूर्व दिशा से होता है। जो दक्षिण- पश्चिम से होकर बाहर निकलती है इसीलिए पूजा करते हुए व्यक्ति का मुंह हमेशा पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए।
● पूजा घर के आसपास शौचालय नहीं होना चाहिए। यदि बॉथरूम पहले से मौजूद है तो उसके दरवाजे हमेशा बंद करके रखें।
● पूजा घर में दीपक या अगरबत्ती जलाकर रखें ऐसा करने से वास्तु दोष दूर होता है।
● अपनी सुविधा को ध्यान में रखकर ज्यादातर घरों में मंदिर को जमीन से बहुत कम ऊंचाई पर स्थापित कर दिया जाता है। ताकि बैठकर आसानी से पूजा की जा सके। लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसा करने से वास्तु दोष उत्पन्न होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में बने मंदिर की ऊंचाई कम से कम 10 इंच होनी चाहिए।
● भूलकर भी घर की दक्षिण दिशा में पूजा घर न बनाएं।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायहिंदू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य देव धनु राशि को छोड़ते हुए अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश कर जाते हैं। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं। सूर्य देव के मकर राशि में आने के साथ ही खरमास समाप्त हो जाता है और मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश आदि शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति को भगवान सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति भगवान सूर्य का प्रिय पर्व है। इस दिन सूर्य देव की उपासना से ज्ञान-विज्ञान, विद्वता, यश, सम्मान और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है। सूर्य को सभी ग्रहों का सेनापति माना जाता है। ऐसे में सूर्य की उपासना करने से समस्त ग्रहों का दुष्प्रभाव कम हो जाता है। धर्म और ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ खाने और दान करने से कुंडली में शनि और सूर्य की अशुभ स्थिति से शांति मिलती है। शास्त्र में काले तिल का संबंध शनि और गुड़ का संबंध सूर्य से बताया गया है। मकर सक्रांति के दिन इन दोनों चीजों को खाने से शनि और सूर्य देव की कृपा बनी रहती है। इससे घर में सुख समृद्धि आती है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।स्नान-दान की विशेष महत्तामकर संक्रांति के दिन स्नान और दान करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन सूर्य देव को लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, मसूर दाल, तांबा, सोना, सुपारी, लाल फूल, नारियल, दक्षिणा करने से सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है , पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान करने से घर में सुख-शांति आती है। इस दिन गुड़ और तिल दान करने से कुंडली में सूर्य और शनि की स्थिति से शांति मिलती है।इस दिन तांबे के बर्तन में काले तिल को भरकर किसी गरीब को दान करने से शनि की साढ़े साती में लाभ होता है। मकर संक्रांति के दिन नमक का दान करने से भी शुभ लाभ होता है। मान्यता के अनुसार इस दिन गाय के दूध से बने घी का दान करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
-
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
घर का बेडरूम आराम करने का प्रमुख स्थान होता है. क्या आप जानते हैं कि यहां से घर की सुख-शांति को भी नियंत्रित किया जा सकता है. ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से घर के बेडरूम में शुक्र और चन्द्रमा का प्रभाव होता है. इस स्थान में गड़बड़ी होने से घर में अशांति होती है. पति-पत्नी के बीच अलगाव की नौबत आ जाती है. रिश्तों में दरार पड़ने लगती है. आइए जानते हैं कि वास्तु शास्त्र में बेडरूम से जुड़ी किन बड़ी गलतियों के बारे में बताया गया है।
क्या होनी चाहिए बेडरूम की दिशा?
घर के बेडरूम के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा सर्वोत्तम मानी जाती है. इसके अलावा पश्चिम दिशा का भी प्रयोग किया जा सकता है. लेकिन बेडरूम की दिशा उत्तर-पूर्व या दक्षिण-पूर्व में न हो तो अच्छा होगा. इससे दांपत्य जीवन में मुश्किलें आने की संभावना बढ़ जाती है. पति-पत्नी के बीच लड़ाई झगड़े बढ़ सकते हैं. उत्तर-पश्चिम का बेडरूम भी अक्सर जीवन में धन का नुकसान और तनाव लेकर आता है।
बेडरूम में पलंग रखने के नियम
बेडरूम में पलंग पूर्व-पश्चिम या उत्तर-दक्षिण की ओर होना चाहिए. इंसान का सिर सोते समय हमेशा पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर रहना चाहिए. हालांकि गेस्ट रूम के बेड का सिरहाना पश्चिम हो सकता है. बेडरूम का पलंग लकड़ी का हो तो सर्वोत्तम होगा. लोहे या धातु का पलंग बहुत अच्छा नहीं होता है. पलंग आयताकार या वर्गाकार होना चाहिए. गोल पलंग बिलकुल न रखें. पलंग के नीचे जूते चप्पल और सामान न रखें।
कैसा हो बेडरूम की दीवारों का रंग
बेडरूम की दीवारों पर डार्क कलर बिल्कुल न रखें. पिंक, क्रीम, हल्का हरा रंग सर्वोत्तम माना जाता है. बेड के सामने शीशा बिलकुल न हो. यहां तक कि बेडरूम में टीवी और इलेक्ट्रॉनिक के सामान भी न रखें. कूड़ा पात्र, मंदिर और पूर्वजों के चित्र भी बेडरूम में नहीं होने चाहिए. बेडरूम में हल्की सुगंध का प्रयोग भी लाभदायक होता है. बेडरूम में नमक का पोंछा जरूर लगाएं।
बेडरूम में वास्तु दोष के उपाय
अगर आपके बेडरूम की दिशा उत्तर-पूर्व या दक्षिण-पूर्व है तो यहां समुद्री नमक या कपूर के क्रिस्टल का एक कटोरा जरूर रखें. उत्तर-पूर्व की ओर मुख वाले बेडरूम की दीवारों को सफेद या पीले रंग से रंगवाएं. यहां लैवेंडर की खुशबू आर्थिक मोर्चे पर लाभ और दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाती है. आप बेडरूम के उत्तर-पश्चिम कोने में चंद्र यंत्र को रखकर भी वास्तु दोष दूर कर सकते हैं।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 - फेंगशुई प्राचीन चीनी पद्धति है। वास्तु शास्त्र की तरह ही फेंगशुई को भी भारत में काफी मान्यता प्राप्त है। फेंगशुई में फर्नीचर को ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करने वाला कारक माना जाता है। ऊर्जा के प्रवाह को सही दिशा में बनाएं रखने के लिए और रातों को अच्छी नींद पाने के लिए बेडरूम में कुछ खास चीजों का होना बेहद आवश्यक है। आइए जानते हैं बेडरूम में जुड़े कुछ आसान से फेंगशुई टिप्स।बड़ा किंग साइज बेडहर व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी और पूरी नींद लेना बहुत जरूरी है। बेडरूम जीवन को संतुलित बनाएं रखने का सबसे अच्छा तरीका है। अगर आपके पास बड़ा बेडरूम है तो उसमें एक बड़ा किंग साइज का बेड होना चाहिए। बड़े और आरामदायक बेड पर अच्छी नींद आती है और सोते वक्त किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं होती है।बेडरूम का कलर: अच्छी नींद के लिए कमरे में शांत और आंखों को सुकून देने वाले रंग का होना अनिवार्य है। फेंगशुई के अनुसार बेडरूम में हल्के रंगों का प्रयोग करना चाहिए। जो मन में शांति प्रदान करें। बेडरूम के लिए पिंक, ग्रीन और पेस्टल टोन रंगों का इस्तेमाल किया जा सकता है।दरवाजे बंद कर देंफेंगशुई के अनुसार अच्छी और आरामदायक नींद के लिए सोने से पहले कमरे, दराज या अलमारी सभी के दरवाजे अच्छी तरह से बंद करके सोना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है बहुत थके हुए होने पर लोग सीधा बेड पर जाकर सोना पसंद करते हैं। लेकिन मस्तिष्क के साथ ही साथ अपनी सभी इन्द्रियों को आराम देने के लिए सोते ने पूर्व अलमारी और कमरे का दरवाजा अच्छी तरह से बंद करके सोएं।कम रोशनी:फेंगशुई के अनुसार बेडरूम में सोते समय हल्की लाइट या मूड लाइट का प्रयोग करें। यह बेडरूम को एक आरामदायक माहौल प्रदान करेगा। जिसकी मदद से रातों को आप को अच्छी और सुकून भरी नींद ले सकते हैं।
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायहिंदू धर्म के अनुसार, सकट चौथ का व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस साल सकट चौथ या संकष्टी चतुर्थी व्रत 10 जनवरी, मंगलवार को मनाई जा रही है। देश में अलग अलग स्थानों पर इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस व्रत को संकष्टी चतुर्थी, लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट चौथ, तिलकुट चतुर्थी, संकट चौथ, माघी चौथ, तिल चौथ आदि नामों से जाना जाता है।सकट चौथ पर बन रहे कई शुभ संयोग-सकट चौथ पर कई शुभ संयोग बन रहे है। सकट चौथ पर सर्वार्थ सिद्धि योग, प्रीति योग व आयुष्मान योग भी बन रहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 01 मिनट तक रहेगा। प्रीति योग सूर्योदय से ही सुबह 11 बजकर 20 मिनट मिनट तक रहेगा। आयुष्मान योग सुबह 11 बजकर 20 मिनट से पूरे दिन रहेगा।सकट चौथ पर भद्रा का साया-इस साल सकट चौथ पर भद्रा का साया भी है। भद्रा सुबह 07 बजकर 15 मिनट से दोपहर 12 बजकर 09 मिनट तक रहेगा। भद्राकाल में शुभ कार्यों की मनाही होती है। सकट चौथ में भगवान गणेश जी को तिल के लड्डुओं का भोग लगाते हैं। इसे तिल संकटा चौथ भी कहते हैं।सकट चौथ 2023 पर चंद्रोदय का समय-सकट चौथ व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पूरा माना जाता है। इस दिन में चंद्रदेव की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन चंद्रमा का उदय रात 08 बजकर 41 मिनट पर होगा। इसके बाद ही व्रत पारण किया जाएगा।सकट चौथ व्रत कथा-सकट व्रत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें से एक भगवान शंकर व माता पार्वती से जुड़ी है-इसे पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना। गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें। इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी. तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 -
नए साल में जनवरी का दूसरा सप्ताह 09 जनवरी से 15 जनवरी तक रहेगा. नया सप्ताह पांच राशि के जातकों को आर्थिक मोर्चे पर बहुत लाभ देने वाला है. ज्योतिषियों का कहना है कि नए सप्ताह में मेष, वृषभ, मिथुन, सिंह और कन्या राशि वालों को धन लाभ होगा. हालांकि कुछ राशि वालों को इस सप्ताह चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है. आइए जानते हैं कि नया सप्ताह सभी राशियों के लिए कैसा रहने वाला है।
मेष- सप्ताह की शुरुआत में मानसिक तनाव हो सकता है. मानसिक स्थिति और स्वास्थ्य के कारण समस्या हो सकती है. सप्ताह में दौड़ भाग और काम का दबाव बढ़ेगा. हालांकि आप बुद्धिमानी से सारी समस्याओं को हल कर ले जाएंगे. सप्ताह के अंत में कोई शुभ सूचना और धन लाभ मिल सकता है. इस सप्ताह शनि मंत्र का जप करना आपके लिये लाभकारी होगा।
वृष- सप्ताह की शुरुआत में धन और उपहार की प्राप्ति होगी. काम का बोझ कम होगा, लाभदायक यात्रा हो सकती है. मध्य में व्यर्थ के तनाव और स्वास्थ्य का ध्यान रखें. सप्ताह में किसी धार्मिक कार्य या सेवा सहायता में व्यस्त रहेंगे. सप्ताह के अंत में बड़े धन लाभ और उपहार प्राप्ति के योग हैं. इस सप्ताह खाने की वस्तुओं का दान करते रहें।
मिथुन- सप्ताह की शुरुआत से समस्याओं में सुधार होता जाएगा. धन लाभ के उत्तम योग हैं. रुका हुआ धन प्राप्त होगा. संतान और पारिवारिक समस्याओं से भी मुक्ति मिलेगी. इस सप्ताह दूसरों के मामले में हस्तक्षेप न करें. सप्ताह के अंत में वाणी और स्वभाव पर नियंत्रण रक्खें. पूरे सप्ताह बृहस्पति देव के मंत्र का जप करें।
कर्क- सप्ताह की शुरुआत में ही रुके हुए काम बन जाएंगे. करियर और जीवन के मामले में बड़ा निर्णय लेंगे. किसी महत्वपूर्ण छोटी यात्रा के संकेत भी मिल रहे हैं. धन और स्वास्थ्य की स्थिति कुल मिलाकर ठीक रहेगी. इस सप्ताह समय का पूरा सदुपयोग करें. पूरे सप्ताह नित्य सायं शनि मंत्र का जप करें।
सिंह- सप्ताह की शुरुआत में स्वस्थ्य बिगड़ सकता है. व्यर्थ के वाद विवाद तथा चोट चपेट की नौबत आ सकती है. सप्ताह के मध्य से स्थितियों में धीरे धीरे सुधार होता जाएगा. संतान या किसी मित्र के सहयोग से लाभ होने के योग हैं. सप्ताह के अंत तक धन और संपत्ति लाभ के योग हैं. पूरे सप्ताह नित्य प्रातः सूर्य देव को जल अर्पित करें.
कन्या- सप्ताह की शुरुआत में पारिवारिक कार्यों में व्यस्तता रहेगी. करियर की बाधा दूर होगी, धन का लाभ होगा. अभी भी स्वास्थ्य पर ध्यान बनाये रखना जरूरी होगा. कार्यक्षेत्र में कोई छोटा परिवर्तन हो सकता है. सप्ताह के अंत में कोई उपहार सम्मान का लाभ मिल सकता है. मंगलवार का दिन आपके लिये इस सप्ताह उत्तम रहेगा।
तुला- सप्ताह की शुरुआत में नए कार्य का आरम्भ हो सकता है. नौकरी या व्यवसाय में नई शुरुआत और लाभ की स्थितियां हैं. संतान पक्ष की उन्नति होगी, आपसी तालमेल भी बेहतर होगा. दवाई खाने और चिकित्सक की बात मानने का प्रयास करें. सप्ताह के अंत में कोई पुरानी समस्या परेशान कर सकती है. पूरे सप्ताह निर्धनों को केले का दान करें।
वृश्चिक- सप्ताह में मानसिक चिन्ता और तनाव दूर होते जाएंगे. करियर के मामले में अच्छी सफलता का समय है. नई चीजों की शुरुआत होगी, बड़े परिवर्तन होंगे. नई संपत्ति या नए वाहन का क्रय कर सकते हैं. इस सप्ताह में अपने अवसरों और समय का पूर्ण प्रयोग करें. बृहस्पतिवार का दिन इस सप्ताह में आपके लिए अनुकूल होगा।
धनु- सप्ताह की शुरुआत में स्वास्थ्य की समस्याएं हो सकती हैं. वाहन चलाने और खान पान में सावधानी रखनी होगी. सप्ताह मध्य से स्वास्थ्य और करियर में सुधार होगा. आर्थिक स्थिति कुल मिलाकर ठीक बनी रहेगी. सप्ताह के अंत में करियर की कोई शुभ सूचना मिल सकती है।
मकर- सप्ताह की शुरुआत में कोई रुका हुआ काम बन जाएगा. करियर की स्थितियां मजबूत होंगी, पद लाभ होगा. सप्ताह के मध्य में स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा. खान पान और वाहन चलाने में विशेष सावधानी रखें. हालांकि पारिवारिक और धन की स्थितियां उत्तम बनी रहेंगी. पूरे सप्ताह शिवलिंग पर जल अर्पित करना लाभकारी होगा।
कुम्भ- सप्ताह की शुरुआत से ही धन की स्थिति में सुधार होता जाएगा. काम का दबाव और तनाव कम होगा. मन ठीक होता जाएगा. करियर में बड़ा दायित्व इस समय मिल सकता है. शिक्षा प्रतियोगिता के मामले में सफलता मिलेगी. सप्ताह के अंत में स्वास्थ्य और वाद विवाद का विशेष ध्यान रक्खें. पूरे सप्ताह निर्धनों को भोजन का दान करें.
मीन- सप्ताह की शुरुआत में करियर में कुछ परिवर्तन हो सकता है. इस समय स्थान परिवर्तन की स्थितियां भी बन रही हैं. किसी व्यवसाय या स्वतंत्र कार्य का विचार कर सकते हैं. प्रेम और विवाह के मामलों में सफलता मिल सकती है. सप्ताह के अंत में परिवार में कोई मंगल कार्य हो सकता है. पूरे सप्ताह हनुमान जी की उपासना लाभकारी होगी। - हिंदू धर्म में हर महीने कई व्रत-त्योहार आते हैं। हर महीने एकादशी व्रत व प्रदोष व्रत समेत कई व्रत रखे जाते हैं। हर व्रत किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित माना गया है। जानें जनवरी महीने में आएंगे कौन-से व्रत व त्योहार-एकादशी भगवान विष्णु व प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित-हिंदू धर्म में एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। जबकि प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित माना गया है। मान्यता है कि इन व्रतों को रखने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। वहीं इस साल जनवरी में बसंत पंचमी का त्योहार भी पड़ रहा है।जनवरी 2023 में पडऩे वाले व्रत-त्योहार-10 जनवरी : विश्व हिन्दी दिवस12 जनवरी : (स्वामी विवेकानन्द का जन्म दिवस) राष्ट्रीय युवा दिवस14 जनवरी, शनिवार- मकर संक्रांति14 जनवरी, शनिवार - लोहड़ी पर्व15 जनवरी : थल सेना दिवस15 जनवरी, रविवार- पोंगल18 जनवरी, बुधवार- षटतिला एकादशी19 जनवरी 2023, गुरुवार माघ प्रदोष व्रत (कृष्ण) - गुरु प्रदोष व्रत26 जनवरी गुरुवार -गणतंत्र दिवस26 जनवरी गुरुवार -वसंत पंचमी।26 जनवरी : गणतन्त्र दिवस
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायसूर्यदेव 14 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश करने वाले हैं। मकर शनि के स्वामित्व वाली राशि है और सूर्य शनि देव के पिता हैं, इसलिए मकर राशि में पिता-पुत्र का यह दुर्लभ संयोग कई राशि के जातकों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सूर्य के इस गोचर से देवताओं का दिन शुरू होगा और मलमास खत्म हो जाएगा। सूर्य देव की कृपा से ऐसी 3 राशियां है जिनकी किस्मत का ताला इस गोचर से खुलने वाला है। आइए जानते हैं कौन सी हैं ये तीन राशियां-वृषभ राशिइस राशि के जातकों के लिए सूर्य देव चौथे भाव मेंं होते है। इस भाव से जातक के मानसिक सुख, भौतिक सुख और मां का विचार किया जाता है। सूर्य देव अब वृष राशि के जातकों के लिए भाग्य स्थान में गोचर करेंगे। इस भाव में विराजमान सूर्य की दृष्टि आपके तीसरे भाव पर होगी। सूर्य के इस गोचर से आपको भाग्य का पूरा साथ मिलने वाला है और आपके करियर में आपको तरक्की मिलने के योग भी दिखाई दे रहे है। सूर्य की कृपा से धार्मिक स्थल की यात्रा के साथ ही गुरुओं का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा। इस समय आपका साहस और पराक्रम भी बढ़ा हुआ रहने वाला है।सिंह राशिइस राशि के जातकों के लिए सूर्य लग्नेश होते है। इस भाव से जातक के व्यक्तित्व का बोध होता है। सूर्य सिंह राशि के जातकों के लिए छठे भाव में गोचर करेंगे। इस भाव से जातक के रोग, ऋण और शत्रु का विचार किया जाता है। इस भाव में विराजमान सूर्य की दृष्टि अब आपके बारहवें भाव पर होगी। छठे भाव में सूर्य को शत्रुहंता कहा गया है। इस गोचर के कारण आपके सभी शत्रु खत्म हो जाएंगे। सिंह राशि के जातकों को नौकरी में अच्छे अवसर प्राप्त होने वाले है। इस समय आयात निर्यात से जुड़े जातकों को बढिय़ा मुनाफा प्राप्त होगा। सरकार के साथ काम कर रहे जातकों को बढिय़ा अवसर मिलेंगे।वृश्चिक राशिइस राशि के जातकों के लिए सूर्य दशम भाव के स्वामी होते है। इस भाव से जातक के कर्म स्थल और लीडरशिप का पता चलता है। वृश्चिक राशि के जातकों के लिए सूर्य अब तीसरे भाव में गोचर करने वाले है। इस भाव से साहस का विचार होता है। सूर्य की दृष्टि अब आपके नवम भाव पर होगी। इस गोचर के कारण आपको यात्राओं से लाभ होता हुआ दिखाई दे रहा है। इस समय आपको अपने पिता और भाग्य का सहयोग मिलने वाला है। अगर आप अपना कोई नया काम शुरू करना चाह रहे है तो इसमें आपको मदद मिल सकती है। सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे जातकों को इस समय कोई अच्छी खबर मिल सकती है।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 -
अक्सर बड़े-बुजुर्ग ऐसी चीजों का जिक्र करते हैं, जिन पर युवा पीढ़ी का ध्यान कम ही जाता है। बड़ों की नसीहत भले ही न मानें कि सुबह उठकर क्या करें और क्या नहीं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तु में कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं जो आपका भाग्य चमका सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं। वास्तु शास्त्र में सुबह उठकर कुछ चीजों को देखना अशुभ माना गया है।
आप भी जान लें किन सुबह उठते ही किन चीजों को देखने से परहेज करना चाहिए-
1. जंगली जानवर की तस्वीरें- कई लोग घरों में हिंसक पशु या जानवर की तस्वीरें रखते हैं, जिन पर सुबह उठते ही नजर पड़ती है। लेकिन सुबह उठते ही इन तस्वीरों को देखने से बचना चाहिए।
2. परछाई- सुबह उठकर या किसी अन्य की परछाई बिल्कुल नहीं देखनी चाहिए। पश्चिम दिशा की ओर परछाई देखना बहुत ही अशुभ माना जाता है।
3. झूठे बर्तन- वास्तु के अनुसार, सुबह उठते ही झूठे बर्तन नहीं देखने चाहिए। इसलिए कहा जाता है कि रात को ही सारे बर्तन साफ करके रखने चाहिए।
4. शीशा- सुबह उठते ही आइना सबसे पहले नहीं देखना चाहिए। कहते हैं कि सुबह शीशा देखने से रात भर की निगेटिविटी प्राप्त होती है।
सुबह उठते ही क्या करें-
वास्तु शास्त्र के अनुसार, सुबह उठते ही हथेलियों के दर्शन करें। मान्यता है कि हाथ की हथेलियों में सरस्वती व मां लक्ष्मी का वास होता है। भगवान का नाम लें और फिर चेहरे पर मल लें। इसके बाद सूर्यदेव के दर्शन करें। सूर्योदय से पूर्व उठने वाले लोग अगर चंद्रमा निकला हुआ है तो उसके भी दर्शन कर सकते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में धन का आगमन होता है और बिगड़े काम बन जाते हैं। -
आचार्य चाणक्य एक महान राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री थे. उनके द्वारा बताई गई नीतियों का लोग आज भी पालन करते हैं. ये नीतियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं. जितनी की पहले हुआ करती थीं. इन नीतियों के आधार पर आचार्य ने एक साधारण से बालक चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाया था।
आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में व्यापार, धन, नौकरी, शिक्षा और रिश्तों से संबंधित कई बातों के बारे में उल्लेख किया है. आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में कुछ ऐसी चीजों के बारे में भी बताया है जिनका साथ व्यक्ति को बुढ़ापे तक नहीं छोड़नी चाहिए. इससे व्यक्ति हमेशा खुश रहता है. आइए जानें कौन सी हैं वो चीजें.
अनुशासन -
अनुशासन से आत्मविश्वास का जन्म होता है. इससे हर काम समय से होता है. जो लोग अनुशासन में रहते हैं वे जीवनभर किसी पर निर्भर नहीं होते हैं. ऐसे लोगों को हर कदम पर सफलता मिलती है. व्यक्ति को अपने काम को सही समय पर करने की आदत होनी चाहिए. इससे जीवनभर परेशानी नहीं होती है. इससे सेहत भी अच्छी रहती है. व्यक्ति को कभी भी अनुशासन का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
धन –
आचार्य चाणक्य के अनुसार हमेशा धन का सदुपयोग करें. इससे आपको बुढ़ापे तक परेशानी नहीं होती है. आपको बुढ़ापे में किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती है. ऐसा न करने वाले व्यक्ति हमेशा परेशान ही रहते हैं. इसलिए धन का सदुपयोग करें।
मदद –
आचार्य चाणक्य के अनुसार दूसरों की निस्वार्थ भावना से मदद करें. इससे आप जीवन में परेशान नहीं होते हैं. दान और दया को सबसे बड़ा धर्म माना जाता है. इसलिए हमेशा जरूरतमंद लोगों की मदद करें. इससे आपका बुढ़ापा शांति से व्यतीत होता है. दूसरों की मदद के लिए हमेशा अपना हाथ खुला रखें. इससे आपको पुण्य की प्राप्ति होती है। - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायहिंदू पंचांग के अनुसार पौष, शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के बाद माघ महीने की शुरुआत होती है। माघ महीने को स्नान-दान, पूजा पाठ के लिए बेहद शुभ माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने की शुरुआत 7 जनवरी से हो रही है। जो 5 फरवरी तक चलेगा। माघ महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा मघा और अश्लेषा नक्षत्र में रहता है इसीलिए इसे माघ मास कहते हैं।माघ महीने का महत्व: पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार गौतम ऋषि ने इंद्र देव से क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया था। बाद में इंद्रदेव की क्षमा याचना करने पर ऋषि गौतम ने उन्हें श्राप से मुक्ति का उपाय बताया। ऋषि गौतम ने इंद्र देव से कहा कि अगर वह श्राप से मुक्ति पाना चाहते हैं तो माघ मास में गंगा स्नान कर अपने पापों का प्रायश्चित कर इस श्राप से मुक्ति पा सकते हैं। इसके बाद से माघ मास में गंगा स्नान को बेहद पवित्र माना जाता है।किन बातों का रखें ख्याल-1. माघ महीने में तिल का दान करने से आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है।2. माघ महीने में भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए।3. इस मास सुबह उठकर स्नान करने के बाद सूर्यदेव को अघ्र्य दें।4. शाम के समय तुलसी की पूजा करनी चाहिए।5. भगवान विष्णु को तिल अर्पित करें।6. माघी पूर्णिमा और अमावस्या को पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है।7. इस मास में हर गुरुवार के दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
-
6 जनवरी को पौष मास की पूर्णिमा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा- अर्चना करनी चाहिए। मां लक्ष्मी को धन की देवी भी कहा जाता है। जिस व्यक्ति पर मां लक्ष्मी की कृपा हो जाती है उसको जीवन में कभी भी आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मां लक्ष्मी के दिन कुछ खास उपाय किए जाते हैं। इन उपायों को करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
आइए जानते हैं मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए क्या करें-
मां को लाल वस्त्र अर्पित करें--
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूर्णिमा के दिन मां को लाल वस्त्र अर्पित करने चाहिए। आप मां को सुहाग का सामान भी अर्पित कर सकते हैं। ऐसा करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है और आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
मां लक्ष्मी को पुष्प अर्पित करें--
पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को पुष्प अर्पित करें। अगर संभव हो तो मां को लाल रंग के पुष्प अर्पित करने चाहिए।
विष्णु भगवान की पूजा करें--
पूर्णिमा के दिन धन- प्राप्ति के लिए विष्णु भगवान की पूजा भी करें। विष्णु भगवान की पूजा करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए हर शुक्रवार को माता लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा करें।
खीर का भोग लगाएं---
पूर्णिमा के दिन श्री लक्ष्मीनारायण भगवान और मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं। इस उपाय को करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है और धन- लाभ होता है। -
- बालोद से प्रकाश उपाध्याय
सूर्यदेव को सभी ग्रहों का राजा कहा जाता है। सूर्यदेव हर माह में राशि परिवर्तन करते हैं। ज्योतिषशास्त्र में सूर्यदेव को विशेष स्थान प्राप्त है। 14 जनवरी को सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्यदेव इस दिन धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही कुछ राशि वालों का भाग्योदय होगा तो कुछ राशि वालों को विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है। आइए जानते हैं, सूर्य के राशि परिवर्तन करने से किन राशि वालों के अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे और किन राशि वालों को सावधान रहने की आवश्यकता है-
मेष राशि - मन परेशान हो सकता है। नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते हैं। किसी दूसरे स्थान पर जाना पड़ सकता है। परिवार का सहयोग मिलेगा। वाहन सुख में वृद्धि होगी। कला एवं संगीत के प्रति रुझान बढ़ सकता है। भाइयों के सहयोग से आय के स्रोत बनेंगे।
वृष राशि -संयत रहें। धैर्यशीलता बनाये रखने के प्रयास करें। घर-परिवार में धार्मिक कार्य हो सकते हैं। सन्तान को स्वास्थ्य विकार हो सकते हैं। मित्रों का सहयोग मिलेगा। घरेलू मित्रों का सहयोग रहेगा। घरेलू समस्याएं परेशान कर सकती हैं। रहन-सहन कष्टमय रहेगा।
कर्क राशि - आत्मविश्वास में कमी रहेगी। शैक्षिक कार्यों के प्रति सचेत रहें। कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। जीवनसाथी का साथ मिलेगा। मानसिक शान्ति रहेगी। कुछ पुराने मित्रों से भेंट हो सकती है। सुस्वादु खान-पान में रुचि रहेगी। आय में वृद्धि होगी।
सिंह राशि - मानसिक शान्ति रहेगी। किसी पुराने मित्र से भेंट हो सकती है। सुस्वादु खान-पान में रुचि बढ़ सकती है। सेहत का भी ध्यान रखें। नौकरी में कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। परिश्रम अधिक रहेगी। खर्च अधिक रहेंगे। माता-पता का सानिध्य मिलेगा।
कन्या राशि - संयत रहें। अपनी भावनाओं को वश में रखें। मीठे खान-पान में रुचि बढ़ सकती हैं। जीवनसाथी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। मानसिक शान्ति रहेगी, परन्तु आत्मविश्वास में कमी भी रहेगी। खर्चों की अधिकता होगी। कार्यक्षेत्र में बदलाव हो सकता है।
तुला राशि - धार्मिक संगीत में रुचि बढ़ सकती है। नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा। कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। आत्मविश्वास से लवरेज रहेंगे। धैर्यशीलता में कमी रहेगी। शैक्षिक एवं शोधादि कार्यों में सफलता मिलेगी। आय में कमी रहेगी।
वृश्चिक राशि - आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे। बातचीत में संयत रहें। व्यर्थ के क्रोध से बचें। नौकरी में तरक्की के मार्ग प्रशस्त होंगे। वाणी में कठोरता का प्रभाव रहेगा। बातचीत में सन्तुलित रहें। माता के परिवार को किसी महिला से धन प्राप्ति के योग बन रहे हैं।
धनु राशि - मानसिक शान्ति रहेगी। धर्म के प्रति श्रद्धाभाव रहेगा। किसी मित्र के सहयोग से आय के साधन बन सकते हैं। आत्मसंयत रहें। क्रोध एवं आवेश के अतिरेक से बचें। मन में नकारात्मकता का प्रभाव हो सकता है। संचित धन में वृद्धि होगी। यात्रा पर जाने के योग बन रहे हैं।
मकर राशि - आत्मविश्वास में कमी रहेगी। नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते हैं। कार्यक्षेत्र में परिवर्तन भी हो सकता है। मन अशान्त रहेगा। परिवार की समस्याएं परेशान कर सकती हैं। रोजमर्रा के कार्यों में कठिनाइयां आ सकती हैं। आर्थिक लाभ के योग बन रहे हैं।
कुंभ राशि - संयत रहें। क्रोध से बचें। सन्तान के स्वास्थ्य में सुधार होगा। कारोबार में परिश्रम अधिक रहेगा। लाभ में वृद्धि होगी। आत्मविश्वास में कमी आएगी। अनियोजित खर्चों से परेशान रहेंगे। नौकरी में इच्छाविरुद्ध कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है।
मीन राशि - मन अशान्त रहेगा। संयत रहें। क्रोध से बचें। नौकरी में बदलाव के योग बन रहे हैं। स्थान परिवर्तन भी हो सकता है। आत्मविश्वास से लवरेज रहेंगे। क्षणे रुष्टा-क्षणे तुष्टा के भाव रहेंगे। शैक्षिक कार्यों के सुखद परिणाम मिलेंगे। घर में धार्मिक कार्यक्रम हो सकते हैं। -
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी जातक की कुंडली में कोई ग्रह कमजोर होता है या फिर अशुभ फल प्रदान करता है तो ग्रह के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है. आज हम आपको माणिक्य रत्न की विशेषताओं के बारे में बताने जा रहे हैं. माणिक्य रत्न को रूबी स्टोन के नाम से जाना जाता है. जब किसी जातक की कुंडली में सूर्य कमजोर होता है तो व्यक्ति को माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए. आइए जानते हैं माणिक रत्न पहनने के लाभ और विधि.
माणिक्य पहनने के फायदे
रत्न ज्योतिष शास्त्र में माणिक्य रत्न पहनने से सूर्य मजबूत होता है. रत्न ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जो लोग राजनीति, सेवा और प्रशासन के क्षेत्र से जुड़े हुए होते हैं उनके लिए माणिक्य रत्न पहनना शुभ होता है. माणिक्य रत्न पहनने से सूर्य का प्रभाव जातकों के जीवन में बढ़ जाता है. इससे व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है. वहीं माणिक्य रत्न ह्रदय, आंख और पित्त विकार से संबंधी बीमारियां दूर होती हैं.
इन राशि वालों के लिए माणिक्य रत्न पहनना शुभ
कुंडली में सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक्य रत्न पहनने की सलाह दी जाती है. रत्न ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मेष, सिंह और धनु लग्न के जातकों को माणिक्य रत्न पहनना शुभ होता है. इसके अलावा जब किसी जातक की कुंडली में सूर्य की स्थिति 11वें, 10वें, 9वें,5वें भाव में हो तो माणिक्य रत्न पहना जा सकता है. लेकिन कभी भी माणिक्य रत्न के साथ गोमेद और नीलम रत्न को नहीं पहनना चाहिए. वहीं जिन जातकों की लग्न राशि कन्या, मकर, मिथुन , तुला और कुंभ हो तो उन्हें माणिक्य रत्न धारण करने से बचना चाहिए..
माणिक्य रत्न धारण करने के नियम
ज्योतिष के अनुसार माणिक्य रत्न को तांबे या सोने की धातु से बनी अंगूठी में पहनना चाहिए. रविवार के दिन सुबह के समय उंगली में माणिक्य रत्न को धारण करना चाहिए. वहीं जब भी माणिक्य रत्न को धारण करें तो इसे पहले गाय के दूध और गंगाजल से शुद्ध करें. -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
हर साल मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सूर्य देव उत्तर दिशा की ओर गमन करते हैं जिसे उत्तरायण कहा जाता है। इस दिन स्नान और दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आते हैं। इस साल 14 जनवरी को उत्तरायण होने का रहा है।
उत्तरायण का महत्व-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य उत्तरायण के बाद से सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। उत्तरायण काल को देवताओं का समय कहा जाता है इस समय कोई भी मांगलिक कार्य करने के लिए बेहद शुभ माना जाता है। सूर्य साल में दो बार अपनी राशि में परिवर्तन करता है जब सूर्य कर्क से धनु राशि में विचरण करता है तो इसे दक्षिणायन कहते हैं। इस समय कोई भी शुभ काम करने की मनाही होती है। वहीं जब सूर्य मकर से मिथुन राशि में विचरण करता है तो इसे उत्तरायण कहते हैं।
कथा-
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायण के महत्व को बताते हुए कहा था कि यदि कोई व्यक्ति उत्तरायण के समय दिन के उजाले में अपने प्राणों का त्याग करता है तो उसे जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। वह मोक्ष को प्राप्त करता है भगवान श्रीकृष्ण के इन्हीं बातों को सुनकर महाभारत के भीषण युद्ध में बाणों की शय्या पर लेटे गंगा पुत्र भीष्म ने उत्तरायण की प्रतीक्षा की और ठीक उसी दिन अपने प्राणों का त्याग कर मोक्ष को प्राप्त किया। -
हिंदू धर्म में पूर्णिमा का बहुत अधिक महत्व होता है। पौष मास की पूर्णिमा साल की पहली पूर्णिमा होती है। हर साल जनवरी माह में ही पौष माह की पूर्णिमा पड़ती है। पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु की विधि- विधान से पूजा- अर्चना की जाती है। पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा- अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी बहुत अधिक महत्व होता है। इस दिन दान करने से भी कई गुना फल की प्राप्ति होती है।
आइए जानते हैं पौष माह पूर्णिमा डेट, पूजा- विधि...
मुहूर्त-
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - जनवरी 06, 2023 को 02:29 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - जनवरी 07, 2023 को 04:52 ए एम बजे
पूजा -विधि-
इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। आप नहाने के पानी में गंगा जल डालकर स्नान भी कर सकते हैं। नहाते समय सभी पावन नदियों का ध्यान कर लें।
नहाने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।
पूर्णिमा के पावन दिन भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना का विशेष महत्व होता है।
इस दिन विष्णु भगवान के साथ माता लक्ष्मी की पूजा- अर्चना भी करें।
भगवान विष्णु को भोग लगाएं। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को भी शामिल करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी के बिना भगवान विष्णु भोग स्वीकार नहीं करते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।
इस पावन दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का अधिक से अधिक ध्यान करें।
पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व होता है।
चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा की पूजा अवश्य करें।
चंद्रमा को अर्घ्य देने से दोषों से मुक्ति मिलती है।
इस दिन जरूरतमंद लोगों की मदद करें।
अगर आपके घर के आसपास गाय है तो गाय को भोजन जरूर कराएं। गाय को भोजन कराने से कई तरह के दोषों से मुक्ति मिल जाती है।
स्नान- दान का समय- 6 जनवरी, 2023 को 02:29 ए एम बजे से प्रारंभ। -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन पवित्र नदी में स्नान व उसके पश्चात दान किया जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन सुबह 08:21 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। आइए जानते हैं मकर संक्रांति के दिन किन चीजों का दान करना चाहिए।
काले तिल का दान
मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद गरीब और जरूरतमंद को काले तिल का दान करने से शनि दोष दूर होता है।
उड़द
शनि दोष दूर करने के लिए मकर संक्रांति के दिन उड़द की दाल या उससे बनी खिचड़ी दान गरीबों को दान करना बेहद शुभ माना जाता है।
ऊनी वस्त्र या कंबल
मकर संक्रांति के दिन गरीब व जरूरतमंद को ऊनी वस्त्र व कंबल दाल करने से राहु दोष से छुटकारा मिलता है।
गुड़ का दान
मकर संक्रांति के दिन गुड़ का दान करने से सूर्य और शनिदेव प्रसन्न होते हैं। -
वर्ष 2023 के राजा और मन्त्री शनिदेव रहेंगे। ग्रह गोचर में शनि देव कुंभ राशि पर विचरण करेंगे। भारत में स्वतंत्रता की जन्म कुंडली के अनुसार वृषभ लग्न में राहु विराजमान हैं। कर्क राशि में शनि देव पराक्रम भाव में बैठे हुए हैं और वर्ष 2023 में शनिदेव शुक्र के साथ पंचम भाव में विराजमान हैं। लग्नेश बुध राहु के नक्षत्र में विचरण कर रहे हैं। इस विवेचना के अनुसार यह वर्ष भारत के लिए चुनौतियों से भरा हुआ रहेगा। यद्यपि राजनीतिक सूझबूझ से अधिकतर समस्याओं का समाधान हो जाएगा। विश्व और भारत में हिंसा का दौर शुरू होने के योग बन रहे हैं। एक-देश दूसरे देश को नीचे दिखाने के लिए कुटिल चाल चलेंगे। इन विषम परिस्थितियों में भारत सबको अपना मार्गदर्शन करेगा। भारत की नीतियों के कारण विश्व में उसकी प्रशंसा होगी। किसी राजनेता अथवा किसी मंत्री का आकस्मिक अवसान होने के योग भी हैं।
खेती-बाड़ी फसल के लिए 2023 बहुत अच्छा है। समय अनुसार वर्षा होगी। हालांकि प्राकृतिक विषमताएं बनी रहेंगी। भू- स्खलन, अतिवृष्टि ,भूकंप, चक्रवात एवं वज्रपात की घटनाएं बढ़ेंगी। वर्ष कुंडली के अनुसार बृहस्पति अपनी राशि में सप्तम भाव में, शनिदेव अपनी स्वराशि में पंचम भाव में और मंगल भाग्य भाव में विराजमान हैं। इसके परिणाम स्वरूप वर्ष कुंडली बहुत ही शुभ है। भारत के विदेश नीति की सराहना पूरा विश्व करेगा। विश्व में भारत का बहुत ही बड़ा योगदान होगा। 2023 में भारत में कोरोना महामारी भयावह नहीं होगी, किंतु सावधानी अवश्य बरती जानी चाहिए। मौसमी बीमारियों से भी जनधन की हानि के संकेत हैं। आतंक, चोरी, डकैती, अपहरण एवं बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है। वैज्ञानिक क्षेत्र में भारत के नई उपलब्धियां हासिल करेगा। बुध के दुषप्रभाव से अंतरिक्ष में विस्मयकारी घटनाएं घट सकती हैं। वृश्चिक राशि के मंगल होने से विश्व में रेल दुर्घटना, हवाई दुर्घटना और सड़क दुर्घटना के योग बन रहे हैं। बृहस्पति अपनी राशि में होने से भारत सनातन संस्कृति की ओर अग्रसर होता रहेगा। संविधान में भी कुछ बड़े परिवर्तन होने के योग भी बन रहे हैं। आध्यात्मिक श्रेणी के लोगों का प्रभुत्व और वर्चस्व पूरे विश्व में बढ़ेगा। शिक्षा,खेल और योग के क्षेत्र में भारत का कीर्तिमान बना रहेगा। - आमतौर पर व्यक्ति के शरीर के विभिन्न अंगों पर तिल मिलता है। लेकिन हथेली में मिलने वाला तिल व्यापक प्रभाव डालता है। विभिन्न पर्वतों पर तिल के परिणाम भी अलग-अलग होते हैं। यदि किसी महिला या पुरुष के गुरु पर्वत पर तिल है तो यह आर्थिक समृद्धि का संकेत है। ऐसे लोग आर्थिक रूप से बहुत ही संपन्न प्रवृत्ति के होते हैं और इनके हाथों में निरंतर पैसा आता रहता है। हालांकि ऐसे लोगों के विवाह में कुछ अड़चन अवश्य आती हैं। यदि किसी पुरुष या महिला की हथेली में शुक्र पर्वत पर तिल हो तो पत्नी या पति से निरंतर विवाद रहता है। ऐसे लोगों का वैवाहिक जीवन का अधिकांश समय विवादों में ही गुजरता है। इसी तरह यदि मंगल पर्वत और जीवन रेखा की उत्पत्ति के स्थान पर तिल हो तो सिर मंग चोट लगने की आशंका बनी रहती है। इस तरह के लोगों का स्वभाव भी थोड़ा सख्त प्रकृति का होता है।बुध पर्वत के नीचे मंगल क्षेत्र पर तिल होने की स्थिति में व्यक्ति को संपत्ति में नुकसान की आशंका रहती है। गुरु पर्वत पर तिल का परिणाम अच्छा माना गया है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शनि पर्वत पर तिल होना भी व्यक्ति के धनी होने का संकेत है। लेकिन ऐसे लोगों को बिजली और आग से बचकर रहना चाहिए। सूर्य पर्वत पर तिल को अच्छा नहीं माना गया है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि सूर्य पर्वत पर तिल है तो व्यक्ति को जीवन में किसी मामले में अपमान का सामना करना पड़ सकता है।
- महाभारत के सन्दर्भ में एक प्रश्न बहुत प्रमुखता से पूछा जाता है कि क्या महाभारत के समय ऐसा कोई राजा था जो श्रीराम के वंश से सम्बंधित हो। तो इसका उत्तर है हाँ। महाभारत काल में श्रीराम के वंश के एक राजा थे जिन्होंने युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध किया था। उनका नाम था बृहद्बल।विष्णु पुराण और भागवत पुराण के अनुसार बृहद्बल श्रीराम के पुत्र कुश के वंशज थे। श्रीराम से 32वीं पीढ़ी में इनका जन्म हुआ और ये कोसल राज्य के अंतिम प्रतापी राजा माने जाते हैं। ब्रह्मा से 66वीं पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ। उसके बाद श्रीराम के पुत्र कुश का कुल चला जिसमें श्रीराम से 32वीं पीढ़ी में बृहद्बल जन्में। इस प्रकार ब्रह्मा से 97वीं पीढ़ी में इनका जन्म हुआ।संक्षेप में यदि जानें तो ये क्रम इस प्रकार है: श्रीराम -> कुश -> अतिथि -> निषध -> नल -> नभस -> पुण्डरीक -> क्षेमधन्वा -> देवानीक -> अहीनगर -> रूप -> रुरु -> पारियात्र -> दल -> शल -> उक्थ -> वज्रनाभ -> शंखनाभ -> व्यथिताश्व -> विश्वसह -> हिरण्यनाभ -> पुष्य -> ध्रुवसन्धि -> सुदर्शन -> अग्निवर्णा -> शीघ्र -> मुरु -> प्रसुश्रुत -> सुगन्धि -> अमर्ष -> महास्वन -> विश्रुतावन्त -> बृहद्बल।महाभारत काल में कोसल साम्राज्य पांच भागों में विभक्त हो गया। ये थे - उत्तर कोसल, दक्षिण कोसल, पूर्व कोसल, मध्य कोसल एवं मध्य कोसल का दक्षिणी भाग। पूर्व कोसल को जरासंध ने जीत लिया। बाद में भीम ने जरासंध का वध कर पूर्व कोसल को इंद्रप्रस्थ के आधीन कर लिया। मध्य कोसल वो भाग था जहां श्रीराम ने राज्य किया और महाभारत काल में भी अयोध्या उसकी राजधानी थी। उस समय धीर्गयाघ्न्य उसके राजा थे। राजसूय यज्ञ से पहले चारों पांडवों ने दिग्विजय किया और भीम ने अपने दिग्विजय के दौरान धीर्गयाघ्न्य को परास्त कर मध्य कोसल और उत्तर कोसल पर अधिकार कर लिया।दक्षिण कोसल वो स्थान था जहां से श्रीराम की माता कौशल्या आती थी। ये श्रीराम का ननिहाल था। राजसूय यज्ञ से पहले अपने दिग्विजय के दौरान सहदेव ने दक्षिण कोसल पर अधिकार प्राप्त किया था। कोसल साम्राज्य का जो पांचवा भाग था जो मध्य कोसल का दक्षिणी हिस्सा था, वहीं पर कुश के वंशज बृहद्बल का शासन था।हालाँकि कोसल प्रदेश महाभारत काल तक पांच हिस्सों में बंट गया था किन्तु फिर भी महाभारत में बृहद्बल को ही "कोसल नरेश" बताया गया है। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उनके सम्मलित होने का वर्णन है। हालाँकि जब बाद में पांडवों को वनवास हुआ तब अपनी दिग्विजय यात्रा में कर्ण ने पुन: बृहद्बल को परास्त कर कोसल साम्राज्य को हस्तिनापुर के आधीन कर लिया। यही कारण है कि बृहद्बल और कोसल साम्राज्य ने महाभारत युद्ध में कौरवों का साथ दिया। महाभारत के सभा पर्व के 31वें अध्याय में बृहद्बल का वर्णन मिलता है।सह सर्वैस तदा मलेच्छै: सागरानूपवासिभि:पार्वतीयाश च राजान? राजा चैव बृहद्बल:अर्थात: राजा भगदत्त सभी मलेच्छ राजाओं, सागर तट के अन्य राजाओं, पर्वतों के राजाओं एवं महाराज बृहद्बल के साथ राजसूय यज्ञ में आये।महाराज बृहद्बल की गिनती कौरव सेना के प्रमुख योद्धाओं में की जाती है। अपने पक्ष के योद्धाओं का वर्णन करते समय भीष्म पितामह ने बृहद्बल की गिनती एक रथी योद्धा के रूप में की थी। उन्होंने 13 दिनों तक पांडवों की सेना से घोर युद्ध किया और उनके कई योद्धाओं का वध किया। युद्ध के 13वें दिन जब गुरु द्रोण ने चक्रव्यूह की रचना की तो बृहद्बल को उन्होंने उस चक्रव्यूह के दूसरे द्वार की रक्षा का दायित्व दिया। जब अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश किया तो प्रथम द्वार तो उन्होंने सहज ही तोड़ दिया किन्तु चक्रव्यूह के मध्य में जाने के मार्ग में दूसरे द्वार के रक्षक के रूप में उनका सामना बृहद्बल से हुआ।बृहद्बल ने बहुत वीरता से युद्ध लड़ा और अभिमन्यु को बहुत देर तक उसी द्वार पर रोके रखा। दोनों में बहुत भीषण युद्ध हुआ किन्तु अंतत: अभिमन्यु ने अपने बाणों से बृहद्बल का वक्षस्थल चीर दिया जिससे वे वीरगति को प्राप्त हुए। बृहद्बल की मृत्यु के बाद उनके राज्य को उनके ज्येष्ठ पुत्र बृहत्क्षण ने संभाला।