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- वैदिक ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों की चाल का विशेष महत्व होता है। ग्रह-नक्षत्रों की चाल का सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ता है। इस समय सूर्य देव कन्या राशि में विराजमान हैं। सूर्य हर माह में राशि परिवर्तन करते हैं। 17 अक्टूबर को सूर्य देव राशि परिवर्तन करेंगे। सूर्य देव राशि परिवर्तन करने से पहले कुछ राशियों की किस्मत बदल देंगे। ज्योतिष में सूर्यदेव को सभी ग्रहों का राजा कहा जाता है। सूर्य के शुभ होने पर व्यक्ति को सभी तरह के सुखों का अनुभव होता है। आने वाले 3 दिन कुछ राशियों के लिए वरदान के समान हैं। इन राशियों को भाग्य का पूरा साथ मिलेगा।मेष राशि-इस दौरान आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेंगे।-कार्यस्थल पर आपको मान-सम्मान प्राप्त होगा।- आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर होगी।- स्वास्थ्य में सुधार होगा।- वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा।- पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।मिथुन राशि- इस दौरान पारिवारिक रिश्तों में मधुरता बढ़ेगी।- नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को शुभ परिणाम मिल सकता है।- आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी।- दांपत्य जीवन सुखद रहेगा।- धन लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।सिंह राशि- धन से जुड़े मामलों में सफलता हासिल होगी।- समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा।-पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।- निवेश करने का प्लान बना रहे हैं तो यह आपके लिए लाभकारी साबित होगा।- लेन- देन के लिए समय शुभ है।वृश्चिक राशि- इस दौरान आपका मान-सम्मान बढ़ेगा।- कार्यक्षेत्र में लाभ होगा।- सूर्य गोचर काल में आपको सफलता हासिल होगी।- धन आगमन के नए अवसर प्राप्त होंगे।- व्यापारियों को मुनाफा हो सकता है।-17 अक्टूबर तक का समय आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है।धनु राशि-इस दौरान आपको नौकरी व व्यापार में शुभ फलों की प्राप्ति होगी।- नौकरी में प्रमोशन के योग बनेंगे।-खर्च पर कंट्रोल रखें।-पारिवारिक जीवन खुशहाल रहेगा।- आर्थिक मोर्चे पर भी सूर्य का राशि परिवर्तन आपके लिए लाभकारी साबित होगा।
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- कल्चुरी शासक ने नागर शैली में कराया था मंदिर का निर्माण
आलेख-सुस्मिता मिश्राछत्त्तीसगढ़ के तीनों महामाया मंदिर रतनपुर, अंबिकापुर और रायपुर, प्राचीन काल से लोगों की आस्था का केंद्र रहे हैं। नवरात्रि पर्व के दौरान यहां पर खूब रौनक हुआ करती है।रियासतकालीन राजधानी व संभाग मुख्यालय अंबिकापुर में मां महामाया व विंध्यवासिनी देवी विराजमान हैं। मां महामाया को अंबिका देवी भी कहा गया है। मान्यता है कि इनके नाम पर ही रियासतकालीन राजधानी का नामकरण विश्रामपुर से अंबिकापुर हुआ।प्रचलित दंत कथा के अनुसार अंबिकापुर में मां महामाया का धड़ जबकि बिलासपुर के रतनपुर में उनका सिर स्थापित है। सरगुजा महाराजा बहादुर रघुनाथशरण सिंहदेव ने जहां विंध्यासिनी देवी की मूर्ति को विंध्याचल से लाकर मां महामाया के साथ स्थापित कराया, तो वहीं मां महामाया की मूर्ति की प्राचीनता के संबंध में अलग-अलग दंत कथा प्रचलित हंै। कहा जाता है कि आदिकाल से ही यह क्षेत्र सिद्ध तंत्र कुंज के नाम से विख्यात था। यहां पर भी असम की कामाख्या देवी के मंदिर जैसी तंत्र पूजा हुआ करती थी।कहा जाता है कि मंदिर के निकट ही श्रीगढ़ पहाड़ी पर मां महामाया व समलेश्वरी देवी की स्थापना की गई थी। समलेश्वरी देवी की प्रतिमा को उड़ीसा के संबलपुर से श्रीगढ़ के राजा साथ लेकर आए थे। उसी दौरान सरगुजा क्षेत्र में मराठा सैनिकों का आक्रमण हुआ। दहशत में आए दो बैगा में से एक ने महामाया देवी तथा दूसरे ने समलेश्वरी देवी की प्रतिमा को कंधे पर उठाया और भागने लगे। इसी दौरान घोड़े पर सवार सैनिकों ने उनका पीछा किया। एक बैगा महामाया मंदिर स्थल पर तथा दूसरा समलाया मंदिर स्थल पर पकड़ा गया। इस कारण महामाया मंदिर व समलाया मंदिर के बीच करीब 1 किलोमीटर की दूरी है। वहीं प्रदेश के जिन स्थानों पर महामाया मां की मूर्ति स्थापित की गई है उसके सामने ही समलेश्वरी देवी विराजमान हैं। इसके बाद मराठा सैनिकों ने दोनों की हत्या कर दी। दंत कथा के अनुसार मराठा सैनिकों ने माता रानी की मूर्तियों को अपने साथ ले जाना चाहा, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो पाए। अंत में उन्होंने मूर्ति का सिर काट लिया और रतनपुर की ओर चल पड़े, लेकिन दैवीय प्रकोप से उन सब सैनिकों का संहार हो गया। इसलिए अंबिकापुर में माता का धड़ और रतनपुर में माता का सिर विराजमान है।ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि 17वीं सदी तक मराठों का अभ्युदय हो चुका था। सन् 1758 में बिंबाजी भोसले के नेतृत्व में सरगुजा में मराठा आक्रमण का उल्लेख है। मराठों की सेना गंगा की तरफ जाते हुए इस राज्य में आई। मराठों का उद्देश्य केवल नागपुर से काशी और गया के तीर्थ मार्ग को निष्कंटक बनाना था। संभावना व्यक्त की जाती है कि आक्रमण अंबिकापुर के श्रीगढ़ में भी हुआ हो।शारदीय नवरात्र पर सिर होता है प्रतिस्थापितअंबिकापुर स्थित मां महामाया देवी व समलेश्वरी देवी का सिर हर वर्ष परंपरानुरूप शारदीय नवरात्र की अमावस्या की रात में प्रतिस्थापित किया जाता है। नवरात्र पूजा के पूर्व कुम्हार व चेरवा जनजाति के बैगा विशेष द्वारा मूर्ति का जलाभिषेक कराया जाता है। अभिषेक से मूर्ति पूर्णता को प्राप्त हो जाती है और खंडित होने का दोष समाप्त हो जाता है। आज भी यह परंपरा कायम है। माता का सिर बनाकर उस पर मोम की परत चढ़ाई जाती है और फिर माता के धड़ के ऊपर इसे स्थापित किया जाता है। बाद में पुराने सिर का विसर्जन कर दिया जाता है। वहीं पुरातन परंपरा के अनुसार शारदीय नवरात्र को सरगुजा महाराजा महामाया मंदिर में आकर पूजा अर्चना करते हैं। जागृत शक्तिपीठ के रूप में मां महामाया सरगुजा राजपरिवार की अंगरक्षिका के रूप में पूजनीय हैं।महामाया मंदिर का वर्तमान स्वरूपवर्ष 1879 से 1917 के मध्य में कल्चुरीकालीन शासक बहादुर रघुनाथ शरण सिंहदेव ने नागर शैली में ऊंचे चबूतरे पर इस मंदिर का निर्माण करवाया था। चारों तरफ सीढ़ी और स्तंभ युक्त मंडप बना है। बीचो बीच एक कक्ष है जिसे गर्भगृह कहते हैं। यहीं पर मां महामाया विराजमान हैं। गर्भगृह के चारों ओर स्तंभयुक्त मंडप बनाया गया है। मंदिर के सामने एक यज्ञशाला व पुरातन कुआं भी है। समय के साथ यहां पर भक्तों के लिए काफी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।मां महामाया, विंध्यवासिनी व समलेश्वरी देवी की कृपा इस अंचल के लोगों को पुरातन समय से ही प्राप्त हो रही है। मां महामाया के दर्शन के बाद समलेश्वरी देवी की के दर्शन से ही पूजा की पूर्णता होती है। इसलिए श्रद्धालु महामाया मंदिर के बाद समलाया मंदिर में भी मां के दर्शन करते हैं। वहीं अंबिकापुर में यहां मां महामाया के दर्शन करने के पश्चात रतनपुर-बिलासपुर मार्ग पर स्थापित भैरव बाबा के दर्शन करने पर ही पूजा पूर्ण मानी जाती है। - • जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 421
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों से निःसृत साधना-स्मरण सम्बन्धी 5-सार बातें :::::
(1) भगवान कहते हैं विश्वास करो, मेरा स्मरण करो और कुछ न करो. बस. मैं सब कुछ करुँगा तुम्हारा. तुम खाली स्मरण करो, बाकी सब काम मैं करुँगा और सदा के लिए अपना बना लूँगा. बस तुम उनको न भूलो.
(2) अपने को अच्छा कहलवाना, उसको बंद करना होगा. अच्छा बनने का प्रयत्न करना होगा, अच्छा कहलवाने का नहीं. अच्छा बनने का प्रयत्न करो और किसी के किसी वाक्य को फील न करने का अभ्यास करो.
(3) दान करना बहुत आवश्यक है. अगर दान नहीं करोगे तो अगले जन्म में दरिद्री बनोगे. दरिद्र बनकर पेट के लिये पाप करोगे. तो जब पाप करोगे तो मरने के बाद फिर दरिद्री बनोगे, फिर पाप करोगे, ये लिंक बन जाती है उसकी दुःख भोगने की.
(4) कोई सेवा कार्य हो, तो सेवा कार्य को करो लेकिन उसमें भावना सब वही भरी रहे, जो तुम्हारे लक्ष्य की है कि हम श्यामसुन्दर की प्रसन्नता के लिये कर रहे हैं.
(5) चाहे अनंतकोटि काल तक तुम साधक बने रहो, एक क्षण को भी अगर तुमने ये भुला दिया हमारे श्रीकृष्ण नहीं है, गुरु नहीं है, बस अपराध कर जाओगे. बच नहीं सकते.
• सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिका
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - नवरात्रि के आठ दिनों के पूजन के बाद आज नवरात्रि की नवमी तिथि का पूजन करने के साथ ही नवरात्रि का समापन हो जाएगा। इस दिन मां दुर्गा की नौवीं शक्ति देवी सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। इनके पूजन से जातक को समस्त सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। नवमी तिथि को जातक का मन निर्वाण चक्र में अवस्थित रहता है। इसी के साथ नवरात्रि की नवमी तिथि को कन्या पूजन का भी विधान है। इस दिन मां दुर्गा के नौ स्वरुपों का प्रतीक मानकर नौं कन्याओं का पूजन किया जाता है। नौ कन्याओं के साथ एक बालक के पूजन का भी विधान है। बालक को बटुक भैरव का स्वरुप माना जाता है। इस दिन नवरात्रि का समापन होता है इसलिए यह तिथि भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती है। तो चलिए जानते हैं मां सिद्धिदात्री का प्रिय भोग,आराधना मंत्र व कन्या पूजन विधि।मां सिद्धिदात्री का स्वरूप-मां सिद्धिदात्री महालक्ष्मी कमल पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजाएं है। मां के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में गदा है और ये नीचे वाले हाथ में चक्र धारण करती हैं। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में मां शंख धारण करती हैं तो नीचे वाले हाथ में कमल सुशोभित है।मां सिद्धिदात्री आराधना मंत्र-या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।मां सिद्धिदात्री व कन्या पूजन विधि--प्रात: स्नानादि करने के पश्चात सर्वप्रथम कलश पूजन करें व उसमें स्थापित सभी देवी-देवताओं का ध्यान करें।-इसके बाद मां सिद्धिदात्री के आराधना मंत्र का जाप करते हुए मां सिद्धिदात्री का पूजन करें।-मां को फल-फूल व मिष्ठान अर्पित करें।-इस दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन करते समय हलवा-चना का भोग लगाना चाहिए और प्रसाद स्वरुप कन्याओं को भी खिलाना चाहिए।-कन्या पूजन के लिए सर्वप्रथम आमंत्रित की गई कन्याओं और बटुक भैरव (लड़का) के पैर धोएं और उन्हें आसन पर बिठाएं।-इसके बाद सभी कन्याओं का तिलक करें।-अब बनाए गए भोजन में से थोड़ा सा भोजन भगवान को अर्पित करें और कन्याओं के लिए भोजन परोसें।-भोजन करने लेने के पश्चात कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद लें।-इसके बाद फल, भेंट व दक्षिणा देकर कन्याओं को विदा करें।
- दशहरा को बहुत शुभ और सर्वसिद्ध मुहूर्त माना जाता है. इस दिन को लेकर देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग परंपराएं हैं. जैसे- महाराष्ट्र में दशहरा के दिन सोना या चांदी की पत्ती खरीदी जाती है ताकि पूरे साल संपन्नता बनी रही. वहीं इस दिन को यात्रा के लिए भी बेहद शुभ माना जाता है क्योंकि इस दिन मां दुर्गा धरती से वापस अपने लोक में प्रस्थान करती हैं. ज्योतिष और तंत्र-मंत्र के लिहाज से भी दशहरा को उपाय और टोटके करने के लिए उत्तम दिन माना गया है. इस दिन किए गए उपाय और टोटकों का कई गुना ज्यादा फल मिलता है.दशहरे पर जरूर करें यह कामयदि आप भी पूरे साल संपन्नता और सुख से जीवन बिताना चाहते हैं तो 15 अक्टूबर 2021 को दशहरे के दिन कुछ काम जरूर कर लें.- दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन करें. ऐसा करना बहुत शुभ होता है. नीलकंठ देखने से पूरे साल जिंदगी खुशहाल रहती है.- दशहरे के दिन शमी के पेड़ की पूजा करें. इससे घर में बरकत बनी रहेगी. वहीं शमी का पेड़ लगाने के लिए दशहरे के दिन को सबसे ज्यादा शुभ माना गया है क्योंकि इसी दिन कुबेर ने राजा रघु को सोने की मुद्राएं देने के लिए शमी के पेड़ के पत्तों को सोने का बना दिया था. इसीलिए दशहरे के दिन सोने की पत्ती खरीदी जाती है.- दशहरे के दिन थोड़ी दूरी की ही सही लेकिन यात्रा जरूर करें. इससे पूरे साल यात्रा करने में बाधा नहीं आती है.- दशहरे के दिन नए रुमाल से मां दुर्गा के चरण पोंछें और उसे तिजोरी या पैसे रखने की जगह पर रख दें. पूरे साल मां के आशीर्वाद से घर में संपन्नता रहेगी. याद रखें कि कपड़ा या रुमाल लाल रंग का ही हो.-
- दशहरा हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है क्योंकि ये लंका नरेश रावण पर भगवान राम की जीत का प्रतीक है. आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा मनाया जाता है. दशहरे के दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुर महिषासुर ने देवताओं के बीच आतंक पैदा किया था, इसलिए उन्होंने भगवान महादेव की मदद मांगी, जिन्होंने तब माता पार्वती को प्रबुद्ध किया और उनके पास असुर को समाप्त करने की शक्ति थी. ये नवरात्रि के आखिरी दिन था, माता दुर्गा (Durga Mata) ने महिषासुर का वध किया और देवताओं को उसके प्रकोप से बचाया. वहीं ये दिन रावण पर भगवान राम की जीत का प्रतीक भी है, जैसा कि पवित्र पुस्तक रामायण (Ramayan) में भी लिखा है कि प्रभु श्रीराम के हाथों रावण का वध होने के बाद से ही दशहरे को मनाने की परंपरा शुरू हुई थी.कब है दशहरा?इस साल दशहरा 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा. इस बार नवरात्रि 7 अक्टूबर को शुरू हुए थे. इस बार दो तिथियां एक साथ पड़ी थीं जिस वजह से नवरात्रि आठ दिन के ही हैं. इस हिसाब से 14 अक्टूबर को महानवमी है और इसके अगले दिन यानी 15 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा. खास बात ये है कि इस बार दशहरा के दिन 3 शुभ योग बन रहे हैं. शुभ मुहूर्त में पूजा करने से लोगों को लाभ मिलेगा.दशहरा 2021: तिथि और शुभ मुहूर्तदिनांक: 15 अक्टूबर, शुक्रवारविजय मुहूर्त – दोपहर 02:02 से दोपहर 02:48 तकअपर्णा पूजा का समय – दोपहर 01:16 बजे से दोपहर 03:34 बजे तकदशमी तिथि प्रारंभ – 14 अक्टूबर 2021 को शाम 06:52 बजेदशमी तिथि समाप्त – 15 अक्टूबर 2021 को शाम 06:02श्रवण नक्षत्र प्रारंभ – 14 अक्टूबर 2021 को सुबह 09:36 बजेश्रवण नक्षत्र समाप्त – 15 अक्टूबर 2021 को सुबह 09:16 बजेदशहरे पर बन रहे हैं 3 शुभ योगदशहरा के दिन इस बार 3 शुभ योग बन रहे हैं. पहला योग रवि योग है जो कि 14 अक्टूबर को शाम 9 बजकर 34 मिनट पर शुरू होगा और 16 अक्टूबर की सुबह 9 बजकर 31 मिनट तक रहेगा. वहीं दूसरा योग सर्वार्थ सिद्ध योग है जो 15 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 2 मिनट से शुरू होकर 9 बजकर 15 मिनट तक रहेगा. इसके अलावा तीसरा योग कुमार योग है जो कि सुबह सूर्योदय से शुरू होकर 9 बजकर 16 मिनट तक रहेगा. माना जा रहा है कि इस तीनों शुभ योगों के एक साथ बनने से दशहरा पर पूजन काफी शुभ रहेगा.दशहरे पर कैसे करें पूजनदशहरे के दिन (Dussehra) चौकी पर लाल रंग के कपड़े को बिछाकर उस पर भगवान श्रीराम और मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करें. इसके बाद हल्दी से चावल पीले करने के बाद स्वास्तिक के रूप में गणेश जी को स्थापित करें साथ ही नवग्रहों की स्थापना करें और अपने ईष्ट की आराधना करें. अपने ईष्टों को स्थान दें और लाल फूलों से पूजा करें, गुड़ के बने पकवानों से भोग लगाएं. इसके बाद अपनी इच्छा अनुसार दान-दक्षिणा दें और गरीबों को भोजन कराएं. धर्म ध्वजा के रूप में विजय पताका अपने पूजा स्थान पर लगाएं. दशहरे का त्योहार हमें प्रेरणा देता है कि हमें अनीति के खिलाफ लड़ना चाहिए.
- हर व्यक्ति चाहता है कि वह दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की करे और अपने जीवन में सफलता की सीढिय़ां चढ़े। इसके लिए मेहनत करना तो आवश्यक होती ही है साथ ही यदि कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए तो आप सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं। वास्तु में खुशहाली, तरक्की और उन्नति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। यदि इन बातों को ध्यान में रखा जाए तो स्वयं के साथ परिवार के अन्य सदस्यों को भी सफलता व तरक्की प्राप्त होती है। हमारे घर की सीढिय़ां एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। सीढिय़ां हमें ऊपर की ओर लेकर जाती हैं इसलिए माना जाता है कि सीढिय़ों में दोष का प्रभाव हमारी उन्नति पर भी पड़ता है। वास्तु में सीढिय़ों को लेकर भी महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं यदि आपके घर में सीढिय़ां सही प्रकार से बनी हुई हैं तो ये आपको उन्नति के शिखर तक ले जा सकती हैं। यदि घर में सीढिय़ां सही प्रकार से न बनी हो तो कार्यों में बाधाओं का सामना करना पड़ता है आर्थिक समस्याएं आने लगती हैं। तो चलिए जानते हैं कि वास्तु के अनुसार कैसी होनी चाहिए साढिय़ां।-वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में सीढिय़ां बनवाने के लिए नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा उत्तम रहती है या फिर उत्तर-पश्चिम दिशा में साढिय़ां बनवानी चाहिए। इससे घर में के सदस्यों की प्रगति होती है।-सीढिय़ां प्रगति का प्रतिनिधित्व करती हैं इसलिए सीढिय़ों को हमेशा क्लॉकवाइज घुमाव में बनवाना चाहिए। माना जाता है कि ऐसी सीढिय़ां उन्नति की ओर ले जाती हैं।-इस बात का ध्यान रखना चाहिए की सीढिय़ों की संख्या कभी सम में नहीं होनी चाहिए, सीढिय़ा हमेशा विषम संख्या जैसे 7, 11, 21 आदि। इससे परिवार के सदस्यों की तरक्की होती है।इन बातों का भी रखें ध्यान- यदि आपके मकान में ऊपरी मंजिल पर कोई किराएदार है और आप नीचे रहते हैं तो अपने मुख्य द्वार के सामने सीढिय़ां न बनवाएं। कहा जाता है कि इससे ऊपरी मंजिल पर रहने वालों की तरक्की होती है किंतु आपकी तरक्की में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं।-घर में बनी हुई सीढिय़ों के नीचे यदि खाली स्थान है तो उसके नीचे कभी भी उसके नीचे बाथरुम, टॉयलेट या रसोई नहीं बनवानी चाहिए। इसके अलावा एक्वेरियम भी सीढिय़ों के नीचे नहीं रखना चाहिए।- सीढिय़ों में यदि कोई वास्तु दोष है और उसे तोड़ा नहीं जा सकता है तो सीढिय़ों के नीचे पिरामिड रखना चाहिए इससे वास्तु दोष की समस्या दूर होती है।
- देश भर में नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। इस शुभ अवसर पर मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है। इस बीच बड़े पैमाने पर भक्त माता को प्रसन्न करने के लिए उनकी श्रद्धा पूर्वक ढंग से पूजा अर्चना करते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में अगर विशेष ढंग से पूजा की जाए, तो भक्तों पर माता की कृपा दृष्टि सदा बनी रहती है। उनके बिगड़े हुए काम बन जाते हैं। आर्थिक मोर्चों पर भी उनको काफी लाभ हासिल होता है। मान्यता है कि नवरात्रि के समय माता स्वयं पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों के दुखों को दूर करती हैं। इस वजह से भक्त माता के 9 रूपों की विशेष रूप से पूजा करते हैं। ज्योतिषियों के मुताबिक अगर आप अपनी राशि के अनुसार मां दुर्गा को फूल अर्पित करते हैं, तो वो काफी प्रसन्न हो जाती हैं और आपकी मनचाही मुराद पूरी होने लगती है।मेष राशि: इस राशि के लोगों को मां के समक्ष लाल रंग के फूल को चढ़ाना चाहिए। इसे काफी शुभ माना गया है।वृषभ राशि: वृषभ राशि के जातकों को मां दुर्गा को सफेद रंग का फूल चढ़ाना चाहिए। इससे वे काफी खुश हो जाती हैं। इसके अलावा वृषभ राशि के लोग बेला, हरसिंगार और सफेद गुड़हल का भी फूल चढ़ा सकते हैं।मिथुन राशि: इस राशि से संबंधित जातक अगर पीले कनेर या गेंदा का फूल चढ़ाते हैं, तो मां दुर्गा उनसे काफी प्रसन्न हो जाती हैं और उनके ऊपर एक विशेष कृपा दृष्टि बनाकर रखती हैं।कर्क राशि: इस राशि से जुड़े लोगों को नवरात्रि में सफेद या गुलाबी रंग के फूलों को चढ़ाना चाहिए।सिंह राशि: सिंह राशि से संबंधित लोग माता को गुलाब या कनेर का फूल चढ़ा सकते हैं। इससे मां की विशेष कृपा दृष्टि उनके ऊपर रहती है।कन्या राशि: इस राशि के जातकों को गेंदा, गुड़हल और गुलाब के फूलों को चढ़ाना चाहिए। इससे मां प्रसन्न होकर भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूरी करती हैं।तुला राशि: तुला राशि के जातकों को सफेद रंग का फूल चढ़ाना चाहिए। इसके अलावा वो मां दुर्गा के समक्ष सफेद कमल, कनेरस बेला या केवड़ा का फूल भी चढ़ा सकते हैं।वृश्चिक राशि: वृश्चिक राशि के लोगों को माता के समक्ष लाल रंग का फूल चढ़ाना चाहिए।धनु राशि: इस राशि से संबंधित लोग पीले रंग का फूल चढ़ा सकते हैं।मकर राशि: मकर राशि के लोग नीले रंग का फूल माता को अर्पित कर सकते हैं। इसे करने से उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं।कुंभ राशि: इस राशि के लोगों मां दुर्गा के समक्ष नीले रंग का फूल चढ़ाना चाहिए।मीन राशि: मीन राशि के लोगों को पीले रंग का फूल चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति के रोग और दोष सब कुछ मिट जाते हैं।
- • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 420
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! साधना में शीघ्र आगे बढ़ने और अपराध से बचने के लिए क्या अभ्यास करना पड़ेगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: मनुष्य को तत्त्वज्ञान पर ध्यान रखना चाहिये। सदा उसको मस्तिष्क में रखना चाहिये। जैसे 'मैं' को हम सदा रियलाइज़ करते हैं - मैं, मैं, मैं, मैं। चाहे जहाँ बैठें, लेटें, सोवें, सपना देंखें, गहरी नींद में सोवें, कहीं जाय - मैं हूँ , मैं हूँ। ऐसे ही भगवान् को सदा अपने साथ रियलाइज़ करें। तो फिर गड़बड़ करते समय ये याद आ जायेगा न कि वो देख रहे हैं। और उनकी कृपा माँग रहे हैं हम। कैसे मिलेगी कृपा फिर? संसार में ये जो जितने लोग आज मनुष्य बने हुये हैं बनावटी। ये क्यों? डर से। अगर ये पाप करेंगे तो पकड़े जायेंगे तो सजा मिलेगी, संसार में लोग बुरा कहेंगे, बदनाम होंगे। अन्दर-अन्दर तो पाप कर रहा है लेकिन बाहर नहीं करता डर के मारे। अगर हम भगवान् का डर मान लें हर समय तो फिर हमारी प्राइवेसी कहाँ रहेगी? जो हम प्राइवेट पाप करते हैं, मन में सोचा तो वो वर्क हो जायेगा क्योंकि वो अन्दर की चीज नोट करने वाला बैठा है। और हम गफ़लत में हैं। कोई आदमी चोरी करने जाय किसी के घर में और कोई छुप कर देख रहा है मालिक रिवॉल्वर ले के और चोरी करने वाला सोच रहा है कि हमें कोई नहीं देख रहा है, आराम से सामान उठाया और जब सामान लेकर चलने लगा तो उसने कहा हैण्डसअप। अरे! ये तो देख रहा है।
तो अगर भगवान् को हम सर्वत्र सर्वदा रियलाइज़ करें, अनुभव करें, मानें तो हमारे फिफ्टी पर्सेन्ट तो अपराध समाप्त हो जायें ऐसे ही, बिना साधना के। क्योंकि हम मनुष्य के डर से अपराध कम कर रहे हैं। तो भगवान् का डर मानेंगे तब तो और कम होंगे अपराध। और फिर मनुष्य तो ऐसा है कि अगर जान भी लेगा तो हम कह देंगे - ये झूठ बोलता है। लेकिन भगवान् तो सर्वान्तर्यामी है। वही तो दण्ड देगा हमको मरने के बाद। इसलिये वहाँ तो हम कुछ बोल नहीं सकते कि आप गप्प झोंक रहे हैं। मैंने कब पाप किया था?
तो भगवान् को, गुरु को, उनके वाक्यों को, उपदेशों को हम सदा साथ रखने का अभ्यास करें। ये अभ्यास से होगा। एकदम नहीं हो जायेगा। धीरे-धीरे अभ्यास करते-करते होता है। बच्चा पैदा होता है तो उसका एकदम माँ से प्यार नहीं हो जाता, बाप से प्यार नहीं हो जाता। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे आसक्ति होती है। उसी प्रकार संसार में जहाँ-जहाँ आसक्ति हुई है आप लोगों की सब धीरे-धीरे हुई है। स्वार्थ को जानकर के। और जहाँ स्वार्थ हानि समझते हैं हम, वहाँ से डिटैचमेन्ट हो जाता है तुरन्त। हाँ, ये हमारे काम की चीज नहीं। हम बाजार में जा रहे हैं मिठाई के शौकीन हैं गरम-गरम रसगुल्ला बन रहा है। हाँ हाँ! और आगे गये वहाँ माँस बिक रहा है। हूँ! हटा लिया आँख वहाँ से। हमको पसन्द नहीं है माँस खाना। जहाँ-जहाँ हम आगे बढ़ते गये, जो हमारे पसन्द की चीज है वहाँ हमारे मन को अच्छा लगा और जो हमारे पसन्द की चीज नहीं है उसमें हम विरक्त हो गये। ऐसे ही जैसे हम बाजार में घूमते रहते हैं, ऐसे ही इस संसार के बाजार में भी हम करते हैं। चले जा रहे हैं हमारा कोई प्रिय मिला, हलो! अरे कब आये तुम!! अन्दर खुशी हुई। एक दुश्मन जा रहा है, हूँ! जा रहा है बदमाश। अब सामने नहीं बोले वो बात अलग है लेकिन अपराध तो कर बैठे; क्योंकि क्रोध आया, फीलिंग हुई, ईर्ष्या हुई, तो आत्मा की शक्ति नष्ट हुई।
तो अभ्यास करने से ही दीनता हो, नम्रता हो, भगवान् को साथ रखने का, गुरु को साथ रखने का, गुरु के उपदेश को साथ रखने का ये सब अभ्यास करना होगा। जितना अधिक अभ्यास होगा उतने ही अपराध से हम बचते जायेंगे। और ज्यों-ज्यों बचेंगे त्यों-त्यों अपराध अपने आप कम होते जायेंगे। जैसे - एक बच्चा चलना सीखता है तो पहले माँ की उँगली पकड़ता है। उससे जरा खड़ा होता है काँपते हुये, एक-दो कदम रखता है। फिर खाट-वाट पकड़ करके धीरे-धीरे चलता है। फिर बिना पकड़े धीरे-धीरे चलता है। लेकिन पचास बार गिरता है फिर खड़ा होता है। फिर चलने लगता है दौड़ने लगता है। ऐसे ही अभ्यास से जो चीज बड़ी लग रही है इस समय वो अभ्यास करने से कॉमन हो जाती है। साधारण हो जाती है। जिस तरह का अभ्यास बना लो। वही लड़का, वही लड़की नंगी पैदा हुई, नंगा पैदा हुआ, नंगा घूमता रहा, कुछ दिमाग में बीमारी नहीं। उसके दिमाग में बीमारी माँ-बाप ने डालना शुरू किया। ऐ! नंगा है, ऐ! नंगी है, कपड़ा पहन बेशरम। वो बेचारा बच्चा कहता है ये क्या बेशरम-बेशरम करते हैं। क्या है बेशरम-बेशरम। कपड़ा पहन लो। बिचारा पहनता है। फिर अभ्यास करता है धीरे-धीरे कि ऐसा पहनना चाहिये वरना बेशरम होता है वो। अभ्यास करते-करते इतना बेशरम हो गया फिर वो कि आदत पड़ गई वही। दिन भर स्त्रियाँ क्या करती है? बार-बार पल्लू को अपना इधर से उधर करती रहती हैं। आदत पड़ गई है। उनको पता नहीं कि मैं ऐसा कर रही हूँ। किसी से कहो, तुम हर मिनिट में ये क्या करती रहती हो? कहेगी, कुछ तो नहीं। और वो अपना डाले है पल्ला, वो नीचे आया फिर ऊपर, थोड़ी देर में फिर। अरे! क्या खास चीज है तुम्हारे अन्दर? अरे! वही शरीर तो है। उसको मालूम है कि इतना-इतना टाइम, इतना लेबर अनावश्यक है हमारा।
तो हमारी जितनी आदतें खराब हुई हैं ये सब अभ्यास से हुई हैं। इसलिये इनको ठीक करने में भी अभ्यास करना होगा। वो जो भी काम होगा अभ्यास से होगा। इसीलिये भगवान् ने अर्जुन से कहा;अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।(गीता 6-35)
अर्जुन! ये कोई हमारे वश की बात नहीं है। हम कुछ नहीं कर सकते। हम तुमको उपाय बता सकते हैं। उपाय तुम करो। अभ्यास करो। और अभ्यास करना सबको मालूम है। ऐसा भी नहीं कि हाँ , कैसे अभ्यास किया जाय? सबको मालूम है। दिन में सौ बार बेटे ने बात मान ली हाँ खुशी हो गई, नहीं माना मूड ऑफ। बाप ने हमारी सुन ली, बड़ा अच्छा बाप है। नहीं मानी हमारी बात, क्या बाप मिला है! अरे मुँह पर न बोला भीतर से फीलिंग हो गई। बच नहीं सकता कोई। तो जहाँ स्वार्थ होता है वहाँ ममता अपने आप हो जाती है तो अगर स्वार्थ को रियलाइज़ करे कि गुरु और भगवान् ही हमारे हैं। उन्हीं से हमारा स्वार्थ सिद्ध होगा।
अनन्त बाप बना चुके। हर जन्म में बनाते हैं माँ, बाप, बेटा, बीबी, पति, सब बदलते जाते हैं हर जन्म में। कौन है , कुछ याद ही नहीं रहा कि पिछले जन्म में हमारा बाप कौन था, बीबी कौन थी? सब खतम। शरीर छोड़ा सब खतम। और जो बचे भी हैं वो भी कुछ दिन तक थोड़ा बहुत याद किया उसके बाद उनका भी खतम। किसी का बाप मरे, बेटा मरे, पति मरे, बीबी मरे कितना हल्ला मचाता है वो। दूसरे दिन हल्ला कम, तीसरे दिन और कम, चौथे दिन और कम, एक महीने बाद बिल्कुल खतम। फिर खाना खा रहा है, हँस रहा है, खेल रहा है। वो गया, मर गया, खतम हो गई बात। हाँ, कौन किसको याद करेगा? क्यों करेगा? स्वार्थ तक सब याद है। स्वार्थ ही नहीं हल होगा तो किस बात की ममता। तो अभ्यास करना होगा। अभ्यास से ही काम बनेगा।
• सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 23
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। कहा जाता है कि कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।
इस देवी के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। यह गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए यह शुभंकरी कहलाईं। अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। यह ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।मंत्र- एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुंड और रक्तबीज नाम राक्षसों ने भूलोक पर हाहाकार मचा दिया था तब देवी दुर्गा ने चण्ड - मुंड का संहार किया परन्तु जैसे ही उन्होंने रक्तबीज का संहार किया तब उसका रक्त जमीन पर गिरते ही हज़ारों रक्तबीज उतपन्न हो गए। तब रक्तबीज के आतंक को समाप्त करने हेतु मां दुर्गा ने लिया था मां कालरात्रि का स्वरुप। मां कालरात्रि काल की देवी हैं। मां दुर्गा यह स्वरुप बहुत ही डरावना है।मां कालरात्रि की पूजा विधिनवरात्रि के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से साधक के समस्त शत्रुओं का नाश होता है। हमे माता की पूजा पूर्णतया नियमानुसार शुद्ध होकर एकाग्र मन से की जानी चाहिए। माता काली को गुड़हल का पुष्प अर्पित करना चाहिए। कलश पूजन करने के उपरांत माता के समक्ष दीपक जलाकर रोली, अक्षत से तिलक कर पूजन करना चाहिए और मां काली का ध्यान कर वंदना श्लोक का उच्चारण करना चाहिए। तत्पश्चात मां का स्त्रोत पाठ करना चाहिए। पाठ समापन के पश्चात माता जो गुड़ का भोग लगा लगाना चाहिए। तथा ब्राह्मण को गुड़ दान करना चाहिए।माता को गुड़हल का फूल करें अर्पितमाता काली एवं कालरात्रि को गुड़हल का फूल बहुत पसंद है। इन्हें 108 लाल गुड़हल का फूल अर्पित करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जिन्हें मृत्यु या कोई अन्य भय सताता हो, उन्हें अपनी या अपने सम्बन्धी की लंबी आयु के लिए मां कालरात्रि की पूजा लाल सिन्दूर व ग्यारह कौडिय़ों से सुबह प्रथम पहर में करनी चाहिए। मां कालरात्रि की इस विशेष पूजा से जीवन से जुड़े समस्त भय दूर हो जाएंगे। - आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी का बहुत ही खास महत्व रहता है। इस दिन दशहरा और विजयादशी का पर्व मनाया जाता है। कई लोग इस दिन साधना करते हैं और कई लोग इस दिन ज्योतिष के उपाय करके अपने जीवन को संकटों से उभारते हैं। आज हम आपको कुछ उपाय बता रहे हैं, माना जाता है कि इसका पालन करने से जातक को हर क्षेत्र में विजय और समृद्धि प्राप्त होती है।1. धन-समृद्धि के लिए : दशहरे के दिन शाम को माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए मंदिर में झाडू दान करें इससे धन और समृद्धि बढ़ती है।2. नौकरी-व्यापार के लिए : नौकरी और व्यापार में परेशानी हो तो दशहरे के दिन माता का पूजन कर उन पर 10 फल चढ़ाकर गरीबों में बाटें। देवी पर सामाग्री चढ़ाते समय ओम विजयायै नम:' का जाप करें। ये उपाय मध्याह्न शुभ मुहूर्त में करें। निश्चित ही हर क्षेत्र में विजय मिलेगी। ऐसा माना जाता है कि श्रीराम ने भी रावण को परास्त करने के बाद मध्यकाल में पूजन किया था।3. कोर्ट-कचहरी से मुक्ति के लिए : दशहरे के दिन शमी के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से सभी तरह के केस से मुक्ति मिलती है। शमी के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।4. शुभता और विजय के लिए : श्रीराम ने रावण का वध करने के पूर्व नीलकंठ को देखा था। नीलकंठ को शिवजी का रूप माना जाता है। अत: दशहरे के दिन इसे देखना बहुत ही शुभ होता है।5. कारोबार के लिए : कारोबार में लगातार घाटा हो रहा हो तो दशहरे के दिन एक नारियल सवा मीटर पीले वस्त्र में लपेटकर एक जोड़ा जनेऊ, सवा पाव मिष्ठान्न के साथ आस-पास के किसी भी राम मंदिर में चढ़ा दें। तत्काल ही व्यापार चल निकलेगा।6. सेहत के लिए : बीमारी या संकट से मुक्ति के लिए एक पानीदार नारियल लें और उसे अपने ऊपर से 21 बार वारकर किसी रावण दहन की आग में डाल दें।7. आर्थिक उन्नति के लिए : दशहरे के दिन से लेकर लगातार 43 दिनों तक कुत्ते को प्रतिदिन बेसन के लड्डू खिलाएं। इससे आपकी धन संबंधित समस्याएं दूर होंगी।8. संकट से मुक्ति के लिए : दशहरे पर सुंदरकांड की कथा कराने से सभी रोग और मानसिक परेशानियां दूर हो जाती है।9. सकारात्मक ऊर्जा के लिए : दशहरे के दिन एक फिटकरी के टुकड़े को सभी घर के सदस्यों पर से वार कर उसे छत या सुनसान जगह पर खुद से पीछे की ओर अपने ईष्टदेव का ध्यान करते हुए फेंक दें। माना जाता है कि ऐसा करने से घर की हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।10. शुभता के लिए : दशहरे पर रावण दहन के बाद गुप्त दान करना बेहद शुभ माना गया है।
- • जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 419
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वर्णित अहंकार और प्रेम में अंतर के कुछ बिन्दु ::::::
(1) जगत की ओर देखने वाला अहंकार से भरता है, प्रभु की ओर देखने वाला प्रेम से पूर्ण होता है।
(2) अहंकार सदा लेकर प्रसन्न होता है, प्रेम सदा देकर संतुष्ट होता है।
(3) अहंकार को अकड़ने का अभ्यास है, प्रेम सदा झुक कर रहता है।
(4) अहंकार जिस पर बरसता है उसे तोड़ देता है, प्रेम जिस पर बरसता है उसे जोड़ देता है।
(5) अहंकार दूसरों को ताप (दुःख) देता है, प्रेम मीठे जल सा तृप्ति देता है।
(6) अहंकार संग्रह में लगा रहता है, प्रेम बाँट बाँटकर बढ़ता है।
(7) अहंकार सबसे आगे रहना चाहता है, प्रेम सबके पीछे रहने में प्रसन्न है।
(8) अहंकार बहुत कुछ पाकर भी भिखारी है, प्रेम अकिंचन रहकर भी पूर्ण धनी है।
• सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश, जुलाई 1997 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कुछ ऐसी राशियों वाले लोग हैं जिन्हें हमेशा किसी से धोखा मिलने का डर लगा रहता है. उन्हें अगर धोखा दिया जाता है तो वो बर्दाश्त नहीं कर सकते. इन चीजों से वो बहुत डरते हैं. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बेवफाई को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकते. उनके लिए रिश्ते प्रतिबद्धता और वफादारी के बारे में हैं. पार्टनर को किसी और के साथ शेयर करने या उनके पार्टनर के साथ विश्वासघात करने के विचार से ये कभी भी शांति नहीं बना पाते हैं. वो सच्चे प्यार में विश्वास करते हैं जो शुद्ध, बिना शर्त और केवल उनके लिए आरक्षित है. वो प्यार में पड़ने के लिए बहुत उत्सुक नहीं होते हैं क्योंकि उन्हें पार्टनर के धोखा देने का ये डर होता है. इस तरह वो किसी के लिए गिरने और उनके साथ संबंध बनाने में बहुत अधिक समय लेते हैं. लेकिन जब वो ऐसा करते हैं, तो कोई पीछे नहीं हटता. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, 4 राशियों वाले लोग ऐसे होते हैं जो अपने साथी को किसी और के साथ नहीं देख सकते हैं. नीचे इन संकेतों पर एक नजर डालें.मेष राशिमेष राशि के जातक अपने प्रियजनों के मामले में बेहद स्वामित्व वाले होते हैं. उनके लिए किसी के साथ रिश्ते में होने का मतलब है सब में रहना. अगर उन्हें पता चलता है कि उनका साथी उन्हें धोखा दे रहा है, तो वो उनके साथ सभी संबंधों को तोड़ने से पहले दो बार नहीं सोचेंगे.सिंह राशिसिंह राशि वाले लोगों को लगता है कि वो दुनिया और सबसे अच्छे साथी के लायक हैं. वो किसी के प्यार में तभी पड़ते हैं जब उन्हें उन पर पूरा यकीन हो जाता है और अगर वो व्यक्ति धोखेबाज निकला तो उन्हें अपनी जगह पर रखने से कभी पीछे नहीं हटते.कन्या राशिकन्या राशि वालों को लोगों पर भरोसा करने और उनके साथ संबंध बनाने में समय लगता है. लेकिन जब वो ऐसा करते हैं, तो वो पीछे नहीं हटते. जब वो किसी व्यक्ति के प्रति अत्यधिक प्रतिबद्ध होते हैं और उन्हें पता चलता है कि वो व्यक्ति उन्हें धोखा दे रहा है, तो वो उन्हें अपने जीवन से काट सकते हैं.धनु राशिधनु राशि के लोग अपने पार्टनर को धोखा देने के विचार से कभी नहीं निपट सकते. वो ऐसे मामलों में अपने साथी को हमेशा के लिए छोड़ने जैसे अत्यधिक उपाय करने की संभावना रखते हैं.
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नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कुष्मांडा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अदाहत चक्र में अवस्थित होता है।
नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा। इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है। विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। यह देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंतत: इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।मंत्र- सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥मां कुष्मांडा की कथापौराणिक कथा के अनुसार मां कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा। मां दुर्गा असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा का अवतार लिया था। मान्यता है कि देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी। पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि देने की भी परंपरा है। इसके पीछे मान्यता है ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और पूजा सफल होती है।मां कुष्मांडा की पूजा विधिनवरात्रि के चौथे दिन सुबह स्नान करने के बाद मां कुष्मांडा स्वरूप की विधिवत करने से विशेष फल मिलता है। पूजा में मां को लाल रंग के फूल, गुड़हल या गुलाब का फूल भी प्रयोग में ला सकते हैं, इसके बाद सिंदूर, धूप, गंध, अक्षत् आदि अर्पित करें। सफेद कुम्हड़े की बलि माता को अर्पित करें। कुम्हड़ा भेंट करने के बाद मां को दही और हलवा का भोग लगाएं और प्रसाद में वितरित करें। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 418
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 15-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि भगवान का वास्तविक दास कभी भी उनसे पाँच प्रकार की मुक्ति न चाहकर एकमात्र भगवान श्रीराधाकृष्ण की सेवा तथा उनके सुख में ही सुखी होने की कामना करता है....साँचो दास न कबहुँ चह, पाँचहुँ मुक्ति बलाय।चहइ युगल सेवा सदा, तिन सुख सुखी सदाय।।15।।भावार्थ - श्री कृष्ण का वास्तविक दास 5 प्रकार की मुक्ति नहीं चाहता। वह तो केवल श्यामा श्याम के सुख के लिये ही उनकी सेवा चाहता है। एवं उन्हीं के सुख में सुखी रहता है।व्याख्या - शास्त्रों में भुक्ति एवं मुक्ति को पिशाचिनी के समान बताया गया है। यथा;भुक्ति मुक्ति स्पृहा यावत् पिशाची हृदि वर्तते ......।इन दोनों में भुक्ति का अभिप्राय है ब्रह्मलोक तक के सुख। यह सुख इंद्रिय जन्य मायिक विषयों का है। पूर्व में बताया जा चुका है कि माया का जहाँ तक आधिपत्य है, वह सब सुख अनित्य, सीमित एवं परिणाम में घोर दुःखप्रद हैं। इन सुखों की 3 कक्षायें हैं। सात्विक, राजस, तामस । यथा वेद;
पुण्येन पुण्य लोकं नयति पापेन पापं ......।अर्थात् सात्विक कर्म का फल सात्विक, राजस का राजस एवं तामस का फल तामस मिलता है। तीनों ही मायिक हैं अनादिकाल से भुक्ति सुख ने जीव को मूर्ख बना रखा है अतः इसे चुड़ैल कहा है। यह पीछा ही नहीं छोड़ती। किंतु मुक्ति के विषय में बुद्धिमानों को भी आश्चर्य होता है कि उसे चुडैल क्यों कहा? मुक्ति तो भुक्ति रूपी चुडैल से छुटकारा दिलाकर ब्रह्मानंद प्रदान करती है। कृपा द्वारा ही करोड़ों जीवन्मुक्त परमहंसों में किसी बड़भागी को ही प्रेमानंद प्राप्त होता है। यथा मुक्तानामपि ......।यथा - वेदव्यास, सनकादिक, शुकादिक। उपर्युक्त सायुज्य मुक्ति को चैतन्य देव ने कैतव माना है। यथा;अज्ञानतमेर नाम कहिये कैतव .........।अर्थात् धर्म अर्थ काम की कामना रखने वाले अज्ञानियों से भी बड़ा अज्ञानी सायुज्य मुक्ति चाहता है। भागवत के प्रारंभ में ही यथा - 'धर्मः प्रोज्झित कैतवः' अर्थात् भागवत में कैतव रहित (5 मुक्ति) धर्म ही है। शंकरानुयायी श्रीधर ने भी यह माना है। यह तो ठीक है कि सायुज्य मुक्ति में प्रेमानंद नहीं मिलता। अतः निंदनीय है । किंतु शेष 4 मुक्ति में तो प्रेमानंद मिलता है। इसकी निंदा या त्याग क्यों कहा जा रहा है ? दोहा लेखक का आशय यह है कि वास्तविक दास वही है जो कोई भी कामना अपने सुख के लिये न करे। और मुक्ति की कामना तो अपने लिये है। निष्काम भक्त तो श्री कृष्ण सुखैक तात्पर्यमयी भक्ति ही करता है। श्री कृष्ण के सुख के लिये ही सेवा चाहता है । एवं उनके सुख में ही सुख मानता है। अतः भागवत;साष्टि सामीप्य सालोक्य ......।अर्थात् उपर्युक्त पाँचों मुक्तियों को श्री कृष्ण के देने पर भी नहीं लेता। ब्रजांगनायें ही ऐसे निष्काम प्रेम की आचार्या हैं। उन्हीं की कृपा से ही ऐसा उच्चतम रस प्राप्त हो सकता है। आप सोच नहीं सकते कि ब्रजगोपियों की विरहावस्था क्या रही होगी। राधा विरह के वर्णन में संकेत किया गया है। यथा;
और्वस्तोमात्कटुरपि कथं .......।अर्थात् यदि राधा विरह की आग के धुयें का आभास भी हृदय से बाहर निकल जाय तो समस्त विश्व भस्म हो जाय। इतनी विरहावस्था में भी वे कहती हैं। यथा;सौख्यं नः स्याद्यदपिबलवद् .......।अर्थात् यदि मेरे प्राणवल्लभ को मथुरा में रहकर ही सुख मिलता हो, तो वे कभी मेरे पास न आवें। भागवत में कितना अद्भुत प्रेम निरूपण है। यथा;यत्ते सुजात चरणांबुरुहं स्तनेषु ....।अर्थात् विरह ज्वाला को शांत करने के लिये जब गोपियाँ श्यामसुंदर के चरण के तलुओं को अपने हृदय से लगाती हैं तो अत्यंत संभाल कर धीरे से रखती हैं कि कहीं मेरे कठोर स्तन उनके कोमल चरणों में चुभ न जायँ। यह प्रेम की निष्कामता की पराकाष्ठा है। कूड़ा कबाड़ा संसारी मां-बाप स्त्री-पति आदि के प्रेमालिंगन में भी हम यह नहीं सोच सकते एक मां 10 दिन के विमुक्त शिशु को जोर से चिपटा लेती है । शिशु छटपटा जाता है। तब मां को ध्यान आता है कि मैंने स्वार्थ के लिये शिशु को कष्ट दिया। अस्तु वास्तविक एवं अंतिम रस निष्काम प्रेम में ही मिलता है।• सन्दर्भ - 'भक्ति शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या 15★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
वास्तु शास्त्र एक बहुत ही प्राचीन शास्त्र है। जीवन को सुगम और खुशहाल बनाने के लिए इसका सदियों से प्रयोग किया जा रहा है। वास्तु शास्त्र घर से लेकर कार्यस्थल के निर्माण को लेकर महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। यहां तक की वास्तु शास्त्र में ये भी बताया गया है कि कौन सी वस्तु किस स्थान पर रखना सही रहता है। यदि घर के निर्माण से लेकर वस्तुओं के रख-रखाव तक वास्तु के नियमों का सही प्रकार से पालन किया जाए तो व्यक्ति जीवन में सुख-समृद्धि और कामयाबी प्राप्त करता है। वहीं अगर वास्तु के नियमों को ध्यान में न रखा जाए तो जीवन में एक के बाद एक समस्याएं आने लगती हैं क्या आपको पता है कि आपके घर के फर्नीचर से भी घर की खुशहाली का संबंध होता है। घर में यदि यह ध्यान न रखा जाए कि कौन सा फर्नीचर किस स्थान पर और किस तरह का रखना है तो यह आपके घर की शांति और आर्थिक स्थिति पर प्रभाव डाल सकता है।
वास्तु के अनुसार फर्नीचर खरीदते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फर्नीचर के कोने या किनारे नुकीले नहीं होने चाहिए। गोल किनारों वाला फर्नीचर रखना शुभ माना जाता है। फर्नीचर की तेज धारों के कारण चोट तो लगने का डर रहता ही है इससे घर में मतभेद भी होने लगते हैं।
आजकल बाजार में कई तरह के फर्नीचर आने लगे जैसे प्लास्टिक और लोहे का फर्नीचर लेकिन वास्तुशास्त्र कहता है कि घर में हमेशा लकड़ी का बना फर्नीचर रखना ही शुभ रहता है।लोहे या प्लास्टिक के बने फर्नीचर से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढऩे लगता है। जिसके कारण आपके घर में कलह बढ़ सकती हैं और मानसिक तनाव का सामना भी करना पड़ता है।
घर में पीपल, चंदन और बरगद की लकड़ी का बना हुआ फर्नीचर नही रखना चाहिए क्योंकि इन तीनों पेड़ों में को पूजनीय माना गया है। माना जाताहै कि पीपल व बरगद में देवी-देवाताओं का वास होता है इसलिए इन्हें देव वृक्ष भी कहा जाता है। मान्यता है कि यदि इन पेड़ों की लकड़ी काटकर फर्नीचर बनवाया जाए तो देवता नाराज होते हैं, जिसके कारण आपके ऊपर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। चंदन की लकड़ी का मंदिर बनवाकर लगाया जा सकता है।घर में शीशम, नीम, साल, अशोक, अर्जुन, सागवान और साल के पेड़ की लकडिय़ों से बने फर्नीचर सही रहता है। - हर कोई चाहता है कि उसका घर देखने में सुंदर लगे, ताकि सभी उनके घर की तारीफ करें इसलिए हम सभी अपने घरों को सजाने संवारने के लिए कई तरह के शोपीस और मूर्तियां आदि लाते हैं। इनमें से कई प्रतिमाएं घर के लिए बहुत शुभ होती हैं तो वहीं कुछ नकारात्मकता को बढ़ाती हैं। वास्तु के अनुसार घर के निर्माण से लेकर साज-सजावट का संबंध भी आपकी तरक्की, आर्थिक स्थिति और खुशहाली से होता है। वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसी मूर्तियों के बारे में बताया गया है जिन्हें घर में रखना बेहद शुभ होता है। इन मूर्तियों को घर में रखने से तरक्की और आर्थिक उन्नति प्राप्त होती है। आपके घर में सकारात्मकता आती है और आपके सौभाग्य में वृद्धि होती है। तो चलिए जानते हैं कि कौन सी मूर्तियां घर में रखने से पा सकते हैं लाभ।हाथीवास्तु के अनुसार, हाथी ऐश्वर्य का प्रतीक होता है। तो वहीं ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी हाथी की प्रतिमा रखना बहुत शुभ माना जाता है। आप अपने घर में हाथी की पीतल या चांदी की मूर्ति रख सकते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार शयनकक्ष में चांदी के हाथी की मूर्ति रखने से राहु से संबंधित सभी दोष से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। चांदी का ठोस हाथी घर में रखने से घर में धन, समृद्धि आती है।हंसवास्तु के अनुसार, घर के अतिथिगृह में हंस के जोड़ों की मूर्ति रखनी चाहिए। इससे आप आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। विवाहित दंपति जीवन में यदि परेशानियां आ रही हो तो अपने शयनकक्ष में बत्तख के जोड़े की मूर्ति रख सकते हैं। इससे वैवाहिक जीवन में प्रेम बढ़ता है।कछुआफेंगशुई वास्तु के अनुसार घर में कछुआ रखने से धन वृद्धि होती है। इसके अलावा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कछुआ, भगवान विष्णु का रूप माना जाता है इसलिए मान्यता है कि जिस स्थान पर कछुआ होता है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। धन वृद्धि के लिए घर के ड्राइंग रूम में पूर्व और उत्तर दिशा में कछुए की स्थापना करनी चाहिए। लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि कछुआ अंदर की ओर जाता हुआ रखना चाहिए।गायहिंदू धर्म में गाय को पूजनीय माना जाता है। वास्तु के अनुसार, घर पर पीतल की बनी हुई गाय की मूर्ति रखना बहुत शुभ माना जाता है। जिन दंपति को संतान प्राप्ति की कामना है उन्हें पीतल से बनी गाय की प्रतिमा रखनी चाहिए। मान्यता है कि इससे संतान सुख प्राप्ति की कामना पूरी होती है। पढ़ाई करने वालों के लिए भी गाय की प्रतिमा रखना अच्छा रहता है। इससे पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ती है।ऊंटवास्तु और फेंगशुई के अनुसार, घर पर ऊंट की मूर्ति रखने से सुख सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसे घर के ड्राइंग रूम या लिविंग रूम में उत्तर-पश्चिम दिशा में रखना चाहिए। इससे आपकी नौकरी और व्यवसाय से संबंधित समस्याओं का समाधान हो जाता है। आपके कॅरिअर को फायदा पहुंचता है।
- आरती हिन्दू उपासना की एक विधि है। इसमें जलती हुई लौ या इसके समान कुछ खास वस्तुओं से आराध्य के सामाने एक विशेष विधि से घुमाई जाती है। ये लौ घी या तेल के दीये की हो सकती है या कपूर की। इसमें वैकल्पिक रूप से, घी, धूप तथा सुगंधित पदार्थों को भी मिलाया जाता है। एक पात्र में शुद्ध घी लेकर उसमें विषम संख्या (जैसे &, 5 या 7) में बत्तियां जलाकर आरती की जाती है। इसके अलावा कपूर से भी आरती कर सकते हैं। सामान्य तौर पर पांच बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे पंच प्रदीप भी कहते हैं। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरी धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग (मस्तिष्क, हृदय, दोनों कंधे, हाथ व घुटने) से। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती मानव शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक मानी जाती है।आरती के समय कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। पूजा में न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे धार्मिक एवं वैज्ञानिक आधार भी हैं।कलश- कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। मान्यतानुसा इस खाली स्थान में शिव बसते हैं। यदि आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि भक्त शिव से एकाकार हो रहे हैं। समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।जल- जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। जल को शुद्ध तत्व माना जाता है, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।नारियल-आरती के समय कलश पर नारियल रखते हैं। नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। जब आरती गाते हैं, तो नारियल की शिखाओं में उपस्थित ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। यह तरंगें काफी सूक्ष्म होती हैं।स्वर्ण- ऐसी मान्यता है कि स्वर्ण धातु अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है। इसीलिये सोने को शुद्ध कहा जाता है। यही कारण है कि इसे भक्तों को भगवान से जोडऩे का माध्यम भी माना जाता है। तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अन्य धातुओं की अपेक्षा अधिक होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इसका अर्थ है कि भक्त में सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।सप्तनदियों का जल- सप्तनदियों का जल-गंगा, गोदावरी, यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरी और नर्मदा नदी का जल पूजा के कलश में डाला जाता है। सप्त नदियों के जल में सकारात्मक ऊर्जा को आकृष्ट करने और उसे वातावरण में प्रवाहित करने की क्षमता होती है। क्योंकि अधिकतर योगी-मुनि ने ईश्वर से एकाकार करने के लिए इन्हीं नदियों के किनारे तपस्या की थी।पान-सुपारी- यदि जल में सुपारी डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें रजोगुण को समाप्त कर देती हैं और भीतर देवता के अ'छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। पान की बेल को नागबेल भी कहते हैं। नागबेल को भूलोक और ब्रह्मलोक को जोडऩे वाली कड़ी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही, इसे सात्विक भी कहा गया है। देवता की मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पान के डंठल द्वारा ग्रहण की जाती है।तुलसी- आयुर्वेद में तुलसी का प्रयोग सदियों से होता आ रहा है। अन्य वनस्पतियों की तुलना में तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती है।
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मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट होता है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाई देने लगती हैं।
देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया है। इसीलिए कहा जाता है कि हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखकर साधना करना चाहिए। उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है। इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इसीलिए इस देवी को चंद्रघंटा कहा गया है। इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है। इस देवी के दस हाथ हैं। वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं। सिंह पर सवार इस देवी की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने की है। इसके घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाईं देने लगती हैं। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। यह देवी कल्याणकारी है।पूजन विधि- माता की चौकी (बाजोट) पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां चंद्रघंटा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।मंत्र- पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥माता चंद्रघंटा की कथादेवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला. असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवताओं के इंद्र। महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्वर्गलोक पर राज करने लगा। इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें बंधक बनाकर स्वयं स्वर्गलोक का राजा बन गया है। देवताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्याचार के कारण अब देवता पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं और स्वर्ग में उनके लिए स्थान नहीं है। यह सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर को अत्यधिक क्रोध आया। क्रोध के कारण तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई। देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई। यह दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी। तभी वहां एक देवी का अवतरण हुआ। भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र शस्त्र सजा दिए। इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया। देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं। उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ गया कि अब उसका काल आ गया है। महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा। देवी ने एक ही झटके में ही दानवों का संहार कर दिया। इस युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्य बड़े दानवों और राक्षसों का संहार मां ने कर दिया। इस तरह मां ने सभी देवताओं को असुरों से अभयदान दिलाया। -
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
कहते हैं मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।मंत्र- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥कथा- पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।पूजा विधि- देवी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, अर्पित करें। देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं। इसके अलावा कमल या गुड़हल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं। मिश्री या सफ़ेद मिठाई से मां का भोग लगाएं आरती करें एवं हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें।1. या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।2. दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें-
इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलुदेवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मा
मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठतपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥"मां ब्रह्मचारिणी का कवच"त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।स्वरूपमाता अपने इस स्वरूप में बिना किसी वाहन के नजर आती हैं। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है।महत्त्वमाता ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग-शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है। - शारदीय नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो चुका है। हर साल शारदीय और चैत्र नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। पूरे 9 दिनों तक मां शक्ति स्वरूपा दुर्गा की आराधना की जाती है। जानें 9 दिनों का क्या है महत्व-1. दरअसल इन नौ दिनों में प्रकृति में विशेष प्रकार का परिवर्तन होता है और ऐसे समय हमारी आंतरिक चेतना और शरीर में भी परिवर्तन होता है। प्रकृति और शरीर में स्थित शक्ति को समझने से ही शक्ति की आराधना का भी महत्व समझ में आता है।2. असल में चैत्र और आश्विन के नवरात्रि का समय ऋतु परिवर्तन का समय है। ऋतु-प्रकृति का हमारे जीवन, चिंतन एवं धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत सोच-विचार कर सर्दी और गर्मी की इन दोनों महत्वपूर्ण ऋतुओं के मिलन या संधिकाल को नवरात्रि का नाम दिया।3. यदि आप उक्त नौ दिनों अर्थात साल के 18 दिनों में अन्य का त्याग कर भक्ति करते हैं तो आपका शरीर और मन पूरे वर्ष स्वस्थ रहता है।4. माता के 9 रूप है- 1.शैलपुत्री 2.ब्रह्मचारिणी 3.चंद्रघंटा 4.कुष्मांडा 5.स्कंदमाता 6.कात्यायनी 7.कालरात्रि 8.महागौरी 9.सिद्धिदात्री। इसीलिए नवरात्रि के 9 दिन होते हैं।5. माता वैष्णोदेवी ने नौ दिनों तक एक गुफा में साथना की थी और दसवें दिन भैरव बाहर निकलकर भैरवनाथ का सिर काट दिया था।6. माता दुर्गा ने 9 दिन तक महिषासुर से युद्ध करके उसका वध कर दिया था और दसवें दिन इसी की याद में विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है।7. अंकों में नौ अंक पूर्ण होता है। नौ के बाद कोई अंक नहीं होता है। ग्रहों में नौ ग्रहों को महत्वपूर्ण माना जाता है। फिर साधना भी नौ दिन की ही उपयुक्त मानी गई है।8. किसी भी मनुष्य के शरीर में सात चक्र होते हैं जो जागृत होने पर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में से 7 दिन तो चक्रों को जागृत करने की साधना की जाती है। 8वें दिन शक्ति को पूजा जाता है। नौंवा दिन शक्ति की सिद्धि का होता है। शक्ति की सिद्धि यानि हमारे भीतर शक्ति जागृत होती है। अगर सप्तचक्रों के अनुसार देखा जाए तो यह दिन कुंडलिनी जागरण का माना जाता है। इसीलिए इन नौ दिनों को माता के नौ रूपों से जोड़ा है।9. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार देवी पार्वती, भगवान भोलेनाथ से प्रश्न करती हैं कि "नवरात्र किसे कहते हैं!" भगवान शंकर ने उन्हें प्रेमपूर्वक समझाया- नव शक्तिभि: संयुक्त नवरात्रं तदुच्यते, एकैक देव-देवेशि! नवधा परितिष्ठता। अर्थात् नवरात्र नवशक्तियों से संयुक्त है। इसकी प्रत्येक तिथि को एक-एक शक्ति के पूजन का विधान है।
- रसोई घर में कई बार हम कुछ ऐसी चीजें रख देते हैं जिससे घर में नकारात्मकता बढ़ जाती है और कई प्रकार के कष्ट, मानसिक अशांति, कलह आदि होने लगते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं कि वास्तु शास्त्र के अनुसार आपको रसोई घर में किन चीजों को नहीं रखना चाहिए...दवाई का डिब्बारसोई में काम करते समय अक्सर थोड़ा बहुत कटना या जलना जैसी मामूली चोंटे लगती रहती हैं इसलिए कई बार लोग रसोई में ही दवाओं का डिब्बा रख लेते हैं ताकि समय पडऩे पर जल्दी से खोजा जा सके, लेकिन वास्तु शास्त्र कहता है कि रसोई में कभी भी दवाइयां नहीं रखनी चाहिए। इसका नकारात्मक प्रभाव आपके घर के सदस्यों की सेहत पर पड़ सकता है, जिसमें आपका आकस्मिक खर्च बढऩे की संभावना बढ़ जाती है।फ्रिज में गुथा आटाअक्सर लोग रात को बचा हुआ गुथा आटा फ्रिज में रख देते हैं और सुबह उठकर उसे इस्तेमाल कर लेते हैं लेकिन वास्तु में इसे सही नहीं बताया गया है। यह सेहत के लिए तो हानिकारक होता ही है साथ ही में माना जाता है कि इससे शनि व राहु का नकारात्मक प्रभाव पडऩे लगता है। जिससे आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी फ्रिज में रखे आटे का इस्तेमाल करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है।रसोई में न बनाएं मंदिरवैसे तो रसोई अन्नपूर्णा का स्थान होता है लेकिन वास्तु कहता है कि रसोई में भूलकर भी किसी देवी-देवता की प्रतिमा या तस्वीर नहीं रखनी चाहिए और न ही मंदिर बनाना चाहिए। इसके पीछे कारण है कि रसोई में तामसिक और सात्विक दोनों तरह का भोजन बनाया जाता है। इसके अलावा खाने के झूठे बर्तन भी ज्यादातर रसोई में ही साफ किए जाते हैं। इससे देवी-देवता नाराज हो सकते हैं जिससे आपके घर की सुख-शांति और समृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।जूते-चप्पलवैसे तो रसोई में जूते-चप्पल का स्थान कोई नहीं बनाता है लेकिन कई बार हम रसोई में जूते-चप्पल पहनकर प्रवेश कर लेते हैं लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि यह मां अन्नपूर्णा का स्थान होता है। इससे आपके घर मेें तंंगी का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा आपके जूते-चप्पलों के साथ आए बैक्टीरिया रोगों का कारण भी बनते हैं।टूटे-चटके बर्तनअक्सर यदि कोई बर्तन थोड़ा बहुत चटक या टूट जाए तो हम उसे रसोई में इस्तेमाल करते रहते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि इससे आपकी आर्थिक स्थिति में नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। माना जाता है कि इससे घर के मुखिया के ऊपर कर्ज की स्थिति और परिवार में मतभेद का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए वास्तु कहता है कि टूटे और चटके बर्तनों को रसोई में बिलकुल नहीं रखना चाहिए।
- भारत में कई चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर हैं। इनमें कई ऐसे मंदिर हैं जिनके रहस्यों को आज तक वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं। ऐसा ही एक भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर है जो दक्षिण भारतीय राज्य केरल के थिरुवरप्पु में स्थित है। माना जाता है कि यह प्रसिद्ध मंदिर करीब 1500 साल पुराना है। आईए जानते हैं इस मंदिर के रहस्यों के बारे में...भगवान श्रीकृष्ण के इस मंदिर से कई किवदंतियां जुड़ी हुई हैं। बताया जाता है कि वनवास के दौरान पांडव, भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूजा करते और उन्हें भोग लगाते थे। पांडवों ने वनवास समाप्त होने के बाद तिरुवरप्पु में ही इस भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को छोड़कर चले गए थे, क्योंकि यहां के मछुआरों ने मूर्ति को यही छोडऩे का अनुरोध किया था। मछुआरों ने भगवान श्रीकृष्ण की ग्राम देवता के रूप में पूजा करनी शुरु कर दी। हालांकि मछुआरे एक बार संकट से घिर गए, तो एक ज्योतिष ने उनसे कहा कि आप सभी पूजा ठीक तरह से नहीं कर पा रहे हैं। इसके बाद उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को एक समुद्री झील में विसर्जित कर दिया।मान्यता है कि केरल के एक ऋषि विल्वमंगलम स्वामीयार नाव से एक बार यात्रा कर रहे थे, लेकिन उनकी नाव एक जगह अटक गई। लाख कोशिशों के बाद भी नाव आगे नहीं बढ़ पाई, तो उन्होंने पानी में नीच डुबकी लगाकर देखा तो वहां पर एक मूर्ति पड़ी हुई थी। ऋषि विल्वमंगलम स्वामीयार ने मूर्ति को पानी में से निकाली और अपनी नाव में रख ली। इसके बाद वह एक वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए रुके और मूर्ति को वहीं रख दी। जब वह जाने लगे तो मूर्ति को उठाने की कोशिश की, लेकिन वह वहीं पर चिपक गई। इसके बाद वहीं पर मूर्ति स्थापित कर दी गई। इस मूर्ति में भगवान कृष्ण का भाव उस समय का है जब उन्होंने कंस को मारा था तब उन्हें बहुत भूख लगी थी। इस मान्यता की वजह से उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है।दिन में 10 बार लगाता है भोगमान्यता है कि यहां पर स्थित भगवान के विग्रह को भूख बर्दाश्त नहीं होती है जिसकी वजह से उनके भोग की विशेष व्यवस्था की गई है। भगवान को दिन में 10 बार भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि अगर भोग नहीं लगाया जाता है तो उनका शरीर सूख जाता है। यह भी मान्यता है कि प्लेट में से थोड़ा-थोड़ा करके चढ़ाया गया प्रसाद गायब हो जाता है। यह प्रसाद भगवान श्रीकृष्ण खुद ही खाते हैं।ग्रहण काल में भी नहीं बंद होता है मंदिरपहले इस मंदिर को आम मंदिरों की तरह ही ग्रहण काल में बंद कर दिया जाता था, लेकिन एक बार जो हुआ उसे देखकर सभी लोग हैरान रह गए। ग्रहण खत्म होते-होते उनकी मूर्ति सूख जाती है, कमर की पट्टी भी खिसककर नीचे चली जाती थी। इस बात की जानकारी आदिशंकराचार्य को हुई तो वह खुद इस स्थिति को देखने और समझने के लिए वहां पहुंचे। सच्चाई जानकर वह भी आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद उन्होंने कहा कि ग्रहण काल में भी मंदिर खुला रहना चाहिए और भगवान को समय पर भोग लगाए जाए।सिर्फ 2 मिनट के लिए बंद होता है मंदिरआदिशंकराचार्य के आदेश के मुताबिक, यह मंदिर 24 घंटे में सिर्फ 2 मिनट के लिए ही बंद किया जाता है। मंदिर को 11.58 मिनट पर बंद किया जाता है और उसे 2 मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है। मंदिर के पुजारी को ताले की चाबी के साथ ही कुल्हाड़ी भी दी गई है। पुजारी से कहा गया है कि अगर ताला खुलने में समय लगे तो वह कुल्हाड़ी से ताला तोड़ दे, लेकिन भगवान को भोग लगने में देरी ना हो। कहा जाता है कि भगवान का जब अभिषेक किया जाता है, तो विग्रह का पहले सिर और फिर पूरा शरीर सूख जाता है। क्योंकि अभिषेक में समय लगता है और उस समय भोग नहीं लगाया जा सकता है। इस घटना को देखकर लोगों को अचरज होता है।
- • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 417
(भूमिका - हमारे घर, परिवार, समाज, देश और उसके आगे विश्व में अनेक झगड़े, तनाव और अशान्ति का माहौल दिखलाई पड़ता है, जिनसे अक्सर हम परेशान हो जाया करते हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज इस संसार के संबंध में समझा रहे हैं कि ऐसा क्यों होता है? क्यों लोग क्षण क्षण में अनुकूल-प्रतिकूल हो जाते हैं और हम क्या करें कि इनकी अनुकूलता-प्रतिकूलता का प्रभाव हमारी मानसिक शान्ति पर न पड़ सके......)
....यह तो संसार है, इसमें सब कुछ कहने वाले लोग हैं - सही भी और गलत भी। फिर गलत कहने वाले तो, निन्यानवे प्रतिशत हैं और यह ईश्वर के खिलाफ वाली पार्टी है। मायाबद्ध लोग जो न कहें वह थोड़ा ही है। सत्यगुणी बुद्धि हो गई, तो सत्यगुणी बात कहने लगे। रजोगुणी बुद्धि हो गई तो हमारा निर्णय रजोगुणी हो गया। तमोगुणी बुद्धि हुई कि तमोगुणी बात बोलने लगे। इसलिये जब हमारी स्वयं की बुद्धि ही एक सी नहीं रहती तो दूसरों से हम क्यों आशा करते हैं कि वह हमारी बात का समर्थन ही करे। यह कभी सतयुग में नहीं हुआ, त्रेतायुग में नहीं हुआ, द्वापर में नहीं हुआ फिर आज क्या होगा?
सारे संतों ने इसीलिये लिखा 'तुम मत देखो किसी की ओर, न किसी की सुनो, बस अपना काम करो'।
यह संसार तो सत्व, रजो व तमोगुण में पागल हो रहा है इसलिये 'तिन कर रहा करिय नहि काना'। लोगों को, समाज को खुश करना, याने लोकरंजन - यह एक बहुत बड़ा रोग लगा लिया है हमने कि लोग हमें अच्छा कहें। यदि अच्छा कहलवाने की बीमारी हम समाप्त कर दें तो घर के परिवार में, और विश्व के पचास प्रतिशत झगड़े, मानसिक अशान्ति ऐसे ही समाप्त हो जाये।
• सन्दर्भ - अध्यात्म संदेश पत्रिका, जुलाई 1997 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - मां दुर्गा हिन्दुओं की प्रमुख देवी हैं जिन्हें देवी, शक्ति और जग्दम्बा कहा जाता हैं। मां दुर्गा की तुलना परम ब्रह्म से की जाती है। मां दुर्गा को आदि शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती योगमाया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित बताया गया है। मां दुर्गा शक्ति का अवतार है। नवरात्रि में आप उनके मंत्र का श्रद्धा पूर्वक जाप करेंगे और आपके जीवन में आने वाली सब परेशानियां दूर होंगी।1. मां दुर्गा के इस मंत्र का जाप प्रार्थना करते हुए प्रसन्नता वापस लाने के लिए करेंप्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ।त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव।।2.मां दुर्गा के इस मंत्र द्वारा मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिएसर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तय: ।।3.अपने समस्त पापों का नाश करने के लिए मां दुर्गा की प्रार्थना इस मंत्र के द्वारा करनी चाहिए।हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योन: सुतानिव ।।4.जीवन को निरोगी और अपने जीवन में सौभाग्य लाने के लिए मां की प्रार्थना इस मंत्र द्वारा करेंदेहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।5.जीवन में आने वाली समस्त विपत्तियों से बचने के लिए मां की प्रार्थना इस मंत्र द्वारा करनी चाहिए।रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ।।---