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- आरती हिन्दू उपासना की एक विधि है। इसमें जलती हुई लौ या इसके समान कुछ खास वस्तुओं से आराध्य के सामाने एक विशेष विधि से घुमाई जाती है। ये लौ घी या तेल के दीये की हो सकती है या कपूर की। इसमें वैकल्पिक रूप से, घी, धूप तथा सुगंधित पदार्थों को भी मिलाया जाता है। एक पात्र में शुद्ध घी लेकर उसमें विषम संख्या (जैसे &, 5 या 7) में बत्तियां जलाकर आरती की जाती है। इसके अलावा कपूर से भी आरती कर सकते हैं। सामान्य तौर पर पांच बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे पंच प्रदीप भी कहते हैं। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरी धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग (मस्तिष्क, हृदय, दोनों कंधे, हाथ व घुटने) से। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती मानव शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक मानी जाती है।आरती के समय कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। पूजा में न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे धार्मिक एवं वैज्ञानिक आधार भी हैं।कलश- कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। मान्यतानुसा इस खाली स्थान में शिव बसते हैं। यदि आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि भक्त शिव से एकाकार हो रहे हैं। समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।जल- जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। जल को शुद्ध तत्व माना जाता है, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।नारियल-आरती के समय कलश पर नारियल रखते हैं। नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। जब आरती गाते हैं, तो नारियल की शिखाओं में उपस्थित ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। यह तरंगें काफी सूक्ष्म होती हैं।स्वर्ण- ऐसी मान्यता है कि स्वर्ण धातु अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है। इसीलिये सोने को शुद्ध कहा जाता है। यही कारण है कि इसे भक्तों को भगवान से जोडऩे का माध्यम भी माना जाता है। तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अन्य धातुओं की अपेक्षा अधिक होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इसका अर्थ है कि भक्त में सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।सप्तनदियों का जल- सप्तनदियों का जल-गंगा, गोदावरी, यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरी और नर्मदा नदी का जल पूजा के कलश में डाला जाता है। सप्त नदियों के जल में सकारात्मक ऊर्जा को आकृष्ट करने और उसे वातावरण में प्रवाहित करने की क्षमता होती है। क्योंकि अधिकतर योगी-मुनि ने ईश्वर से एकाकार करने के लिए इन्हीं नदियों के किनारे तपस्या की थी।पान-सुपारी- यदि जल में सुपारी डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें रजोगुण को समाप्त कर देती हैं और भीतर देवता के अ'छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। पान की बेल को नागबेल भी कहते हैं। नागबेल को भूलोक और ब्रह्मलोक को जोडऩे वाली कड़ी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही, इसे सात्विक भी कहा गया है। देवता की मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पान के डंठल द्वारा ग्रहण की जाती है।तुलसी- आयुर्वेद में तुलसी का प्रयोग सदियों से होता आ रहा है। अन्य वनस्पतियों की तुलना में तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती है।
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मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट होता है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाई देने लगती हैं।
देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया है। इसीलिए कहा जाता है कि हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखकर साधना करना चाहिए। उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है। इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इसीलिए इस देवी को चंद्रघंटा कहा गया है। इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है। इस देवी के दस हाथ हैं। वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं। सिंह पर सवार इस देवी की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने की है। इसके घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाईं देने लगती हैं। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। यह देवी कल्याणकारी है।पूजन विधि- माता की चौकी (बाजोट) पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां चंद्रघंटा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।मंत्र- पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥माता चंद्रघंटा की कथादेवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला. असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवताओं के इंद्र। महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्वर्गलोक पर राज करने लगा। इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें बंधक बनाकर स्वयं स्वर्गलोक का राजा बन गया है। देवताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्याचार के कारण अब देवता पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं और स्वर्ग में उनके लिए स्थान नहीं है। यह सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर को अत्यधिक क्रोध आया। क्रोध के कारण तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई। देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई। यह दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी। तभी वहां एक देवी का अवतरण हुआ। भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र शस्त्र सजा दिए। इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया। देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं। उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ गया कि अब उसका काल आ गया है। महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा। देवी ने एक ही झटके में ही दानवों का संहार कर दिया। इस युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्य बड़े दानवों और राक्षसों का संहार मां ने कर दिया। इस तरह मां ने सभी देवताओं को असुरों से अभयदान दिलाया। -
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
कहते हैं मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।मंत्र- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥कथा- पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।पूजा विधि- देवी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, अर्पित करें। देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं। इसके अलावा कमल या गुड़हल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं। मिश्री या सफ़ेद मिठाई से मां का भोग लगाएं आरती करें एवं हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें।1. या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।2. दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें-
इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलुदेवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मा
मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठतपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥"मां ब्रह्मचारिणी का कवच"त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।स्वरूपमाता अपने इस स्वरूप में बिना किसी वाहन के नजर आती हैं। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है।महत्त्वमाता ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग-शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है। - शारदीय नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो चुका है। हर साल शारदीय और चैत्र नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। पूरे 9 दिनों तक मां शक्ति स्वरूपा दुर्गा की आराधना की जाती है। जानें 9 दिनों का क्या है महत्व-1. दरअसल इन नौ दिनों में प्रकृति में विशेष प्रकार का परिवर्तन होता है और ऐसे समय हमारी आंतरिक चेतना और शरीर में भी परिवर्तन होता है। प्रकृति और शरीर में स्थित शक्ति को समझने से ही शक्ति की आराधना का भी महत्व समझ में आता है।2. असल में चैत्र और आश्विन के नवरात्रि का समय ऋतु परिवर्तन का समय है। ऋतु-प्रकृति का हमारे जीवन, चिंतन एवं धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत सोच-विचार कर सर्दी और गर्मी की इन दोनों महत्वपूर्ण ऋतुओं के मिलन या संधिकाल को नवरात्रि का नाम दिया।3. यदि आप उक्त नौ दिनों अर्थात साल के 18 दिनों में अन्य का त्याग कर भक्ति करते हैं तो आपका शरीर और मन पूरे वर्ष स्वस्थ रहता है।4. माता के 9 रूप है- 1.शैलपुत्री 2.ब्रह्मचारिणी 3.चंद्रघंटा 4.कुष्मांडा 5.स्कंदमाता 6.कात्यायनी 7.कालरात्रि 8.महागौरी 9.सिद्धिदात्री। इसीलिए नवरात्रि के 9 दिन होते हैं।5. माता वैष्णोदेवी ने नौ दिनों तक एक गुफा में साथना की थी और दसवें दिन भैरव बाहर निकलकर भैरवनाथ का सिर काट दिया था।6. माता दुर्गा ने 9 दिन तक महिषासुर से युद्ध करके उसका वध कर दिया था और दसवें दिन इसी की याद में विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है।7. अंकों में नौ अंक पूर्ण होता है। नौ के बाद कोई अंक नहीं होता है। ग्रहों में नौ ग्रहों को महत्वपूर्ण माना जाता है। फिर साधना भी नौ दिन की ही उपयुक्त मानी गई है।8. किसी भी मनुष्य के शरीर में सात चक्र होते हैं जो जागृत होने पर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में से 7 दिन तो चक्रों को जागृत करने की साधना की जाती है। 8वें दिन शक्ति को पूजा जाता है। नौंवा दिन शक्ति की सिद्धि का होता है। शक्ति की सिद्धि यानि हमारे भीतर शक्ति जागृत होती है। अगर सप्तचक्रों के अनुसार देखा जाए तो यह दिन कुंडलिनी जागरण का माना जाता है। इसीलिए इन नौ दिनों को माता के नौ रूपों से जोड़ा है।9. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार देवी पार्वती, भगवान भोलेनाथ से प्रश्न करती हैं कि "नवरात्र किसे कहते हैं!" भगवान शंकर ने उन्हें प्रेमपूर्वक समझाया- नव शक्तिभि: संयुक्त नवरात्रं तदुच्यते, एकैक देव-देवेशि! नवधा परितिष्ठता। अर्थात् नवरात्र नवशक्तियों से संयुक्त है। इसकी प्रत्येक तिथि को एक-एक शक्ति के पूजन का विधान है।
- रसोई घर में कई बार हम कुछ ऐसी चीजें रख देते हैं जिससे घर में नकारात्मकता बढ़ जाती है और कई प्रकार के कष्ट, मानसिक अशांति, कलह आदि होने लगते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं कि वास्तु शास्त्र के अनुसार आपको रसोई घर में किन चीजों को नहीं रखना चाहिए...दवाई का डिब्बारसोई में काम करते समय अक्सर थोड़ा बहुत कटना या जलना जैसी मामूली चोंटे लगती रहती हैं इसलिए कई बार लोग रसोई में ही दवाओं का डिब्बा रख लेते हैं ताकि समय पडऩे पर जल्दी से खोजा जा सके, लेकिन वास्तु शास्त्र कहता है कि रसोई में कभी भी दवाइयां नहीं रखनी चाहिए। इसका नकारात्मक प्रभाव आपके घर के सदस्यों की सेहत पर पड़ सकता है, जिसमें आपका आकस्मिक खर्च बढऩे की संभावना बढ़ जाती है।फ्रिज में गुथा आटाअक्सर लोग रात को बचा हुआ गुथा आटा फ्रिज में रख देते हैं और सुबह उठकर उसे इस्तेमाल कर लेते हैं लेकिन वास्तु में इसे सही नहीं बताया गया है। यह सेहत के लिए तो हानिकारक होता ही है साथ ही में माना जाता है कि इससे शनि व राहु का नकारात्मक प्रभाव पडऩे लगता है। जिससे आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी फ्रिज में रखे आटे का इस्तेमाल करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है।रसोई में न बनाएं मंदिरवैसे तो रसोई अन्नपूर्णा का स्थान होता है लेकिन वास्तु कहता है कि रसोई में भूलकर भी किसी देवी-देवता की प्रतिमा या तस्वीर नहीं रखनी चाहिए और न ही मंदिर बनाना चाहिए। इसके पीछे कारण है कि रसोई में तामसिक और सात्विक दोनों तरह का भोजन बनाया जाता है। इसके अलावा खाने के झूठे बर्तन भी ज्यादातर रसोई में ही साफ किए जाते हैं। इससे देवी-देवता नाराज हो सकते हैं जिससे आपके घर की सुख-शांति और समृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।जूते-चप्पलवैसे तो रसोई में जूते-चप्पल का स्थान कोई नहीं बनाता है लेकिन कई बार हम रसोई में जूते-चप्पल पहनकर प्रवेश कर लेते हैं लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि यह मां अन्नपूर्णा का स्थान होता है। इससे आपके घर मेें तंंगी का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा आपके जूते-चप्पलों के साथ आए बैक्टीरिया रोगों का कारण भी बनते हैं।टूटे-चटके बर्तनअक्सर यदि कोई बर्तन थोड़ा बहुत चटक या टूट जाए तो हम उसे रसोई में इस्तेमाल करते रहते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि इससे आपकी आर्थिक स्थिति में नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। माना जाता है कि इससे घर के मुखिया के ऊपर कर्ज की स्थिति और परिवार में मतभेद का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए वास्तु कहता है कि टूटे और चटके बर्तनों को रसोई में बिलकुल नहीं रखना चाहिए।
- भारत में कई चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर हैं। इनमें कई ऐसे मंदिर हैं जिनके रहस्यों को आज तक वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं। ऐसा ही एक भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर है जो दक्षिण भारतीय राज्य केरल के थिरुवरप्पु में स्थित है। माना जाता है कि यह प्रसिद्ध मंदिर करीब 1500 साल पुराना है। आईए जानते हैं इस मंदिर के रहस्यों के बारे में...भगवान श्रीकृष्ण के इस मंदिर से कई किवदंतियां जुड़ी हुई हैं। बताया जाता है कि वनवास के दौरान पांडव, भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूजा करते और उन्हें भोग लगाते थे। पांडवों ने वनवास समाप्त होने के बाद तिरुवरप्पु में ही इस भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को छोड़कर चले गए थे, क्योंकि यहां के मछुआरों ने मूर्ति को यही छोडऩे का अनुरोध किया था। मछुआरों ने भगवान श्रीकृष्ण की ग्राम देवता के रूप में पूजा करनी शुरु कर दी। हालांकि मछुआरे एक बार संकट से घिर गए, तो एक ज्योतिष ने उनसे कहा कि आप सभी पूजा ठीक तरह से नहीं कर पा रहे हैं। इसके बाद उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को एक समुद्री झील में विसर्जित कर दिया।मान्यता है कि केरल के एक ऋषि विल्वमंगलम स्वामीयार नाव से एक बार यात्रा कर रहे थे, लेकिन उनकी नाव एक जगह अटक गई। लाख कोशिशों के बाद भी नाव आगे नहीं बढ़ पाई, तो उन्होंने पानी में नीच डुबकी लगाकर देखा तो वहां पर एक मूर्ति पड़ी हुई थी। ऋषि विल्वमंगलम स्वामीयार ने मूर्ति को पानी में से निकाली और अपनी नाव में रख ली। इसके बाद वह एक वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए रुके और मूर्ति को वहीं रख दी। जब वह जाने लगे तो मूर्ति को उठाने की कोशिश की, लेकिन वह वहीं पर चिपक गई। इसके बाद वहीं पर मूर्ति स्थापित कर दी गई। इस मूर्ति में भगवान कृष्ण का भाव उस समय का है जब उन्होंने कंस को मारा था तब उन्हें बहुत भूख लगी थी। इस मान्यता की वजह से उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है।दिन में 10 बार लगाता है भोगमान्यता है कि यहां पर स्थित भगवान के विग्रह को भूख बर्दाश्त नहीं होती है जिसकी वजह से उनके भोग की विशेष व्यवस्था की गई है। भगवान को दिन में 10 बार भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि अगर भोग नहीं लगाया जाता है तो उनका शरीर सूख जाता है। यह भी मान्यता है कि प्लेट में से थोड़ा-थोड़ा करके चढ़ाया गया प्रसाद गायब हो जाता है। यह प्रसाद भगवान श्रीकृष्ण खुद ही खाते हैं।ग्रहण काल में भी नहीं बंद होता है मंदिरपहले इस मंदिर को आम मंदिरों की तरह ही ग्रहण काल में बंद कर दिया जाता था, लेकिन एक बार जो हुआ उसे देखकर सभी लोग हैरान रह गए। ग्रहण खत्म होते-होते उनकी मूर्ति सूख जाती है, कमर की पट्टी भी खिसककर नीचे चली जाती थी। इस बात की जानकारी आदिशंकराचार्य को हुई तो वह खुद इस स्थिति को देखने और समझने के लिए वहां पहुंचे। सच्चाई जानकर वह भी आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद उन्होंने कहा कि ग्रहण काल में भी मंदिर खुला रहना चाहिए और भगवान को समय पर भोग लगाए जाए।सिर्फ 2 मिनट के लिए बंद होता है मंदिरआदिशंकराचार्य के आदेश के मुताबिक, यह मंदिर 24 घंटे में सिर्फ 2 मिनट के लिए ही बंद किया जाता है। मंदिर को 11.58 मिनट पर बंद किया जाता है और उसे 2 मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है। मंदिर के पुजारी को ताले की चाबी के साथ ही कुल्हाड़ी भी दी गई है। पुजारी से कहा गया है कि अगर ताला खुलने में समय लगे तो वह कुल्हाड़ी से ताला तोड़ दे, लेकिन भगवान को भोग लगने में देरी ना हो। कहा जाता है कि भगवान का जब अभिषेक किया जाता है, तो विग्रह का पहले सिर और फिर पूरा शरीर सूख जाता है। क्योंकि अभिषेक में समय लगता है और उस समय भोग नहीं लगाया जा सकता है। इस घटना को देखकर लोगों को अचरज होता है।
- • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 417
(भूमिका - हमारे घर, परिवार, समाज, देश और उसके आगे विश्व में अनेक झगड़े, तनाव और अशान्ति का माहौल दिखलाई पड़ता है, जिनसे अक्सर हम परेशान हो जाया करते हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज इस संसार के संबंध में समझा रहे हैं कि ऐसा क्यों होता है? क्यों लोग क्षण क्षण में अनुकूल-प्रतिकूल हो जाते हैं और हम क्या करें कि इनकी अनुकूलता-प्रतिकूलता का प्रभाव हमारी मानसिक शान्ति पर न पड़ सके......)
....यह तो संसार है, इसमें सब कुछ कहने वाले लोग हैं - सही भी और गलत भी। फिर गलत कहने वाले तो, निन्यानवे प्रतिशत हैं और यह ईश्वर के खिलाफ वाली पार्टी है। मायाबद्ध लोग जो न कहें वह थोड़ा ही है। सत्यगुणी बुद्धि हो गई, तो सत्यगुणी बात कहने लगे। रजोगुणी बुद्धि हो गई तो हमारा निर्णय रजोगुणी हो गया। तमोगुणी बुद्धि हुई कि तमोगुणी बात बोलने लगे। इसलिये जब हमारी स्वयं की बुद्धि ही एक सी नहीं रहती तो दूसरों से हम क्यों आशा करते हैं कि वह हमारी बात का समर्थन ही करे। यह कभी सतयुग में नहीं हुआ, त्रेतायुग में नहीं हुआ, द्वापर में नहीं हुआ फिर आज क्या होगा?
सारे संतों ने इसीलिये लिखा 'तुम मत देखो किसी की ओर, न किसी की सुनो, बस अपना काम करो'।
यह संसार तो सत्व, रजो व तमोगुण में पागल हो रहा है इसलिये 'तिन कर रहा करिय नहि काना'। लोगों को, समाज को खुश करना, याने लोकरंजन - यह एक बहुत बड़ा रोग लगा लिया है हमने कि लोग हमें अच्छा कहें। यदि अच्छा कहलवाने की बीमारी हम समाप्त कर दें तो घर के परिवार में, और विश्व के पचास प्रतिशत झगड़े, मानसिक अशान्ति ऐसे ही समाप्त हो जाये।
• सन्दर्भ - अध्यात्म संदेश पत्रिका, जुलाई 1997 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - मां दुर्गा हिन्दुओं की प्रमुख देवी हैं जिन्हें देवी, शक्ति और जग्दम्बा कहा जाता हैं। मां दुर्गा की तुलना परम ब्रह्म से की जाती है। मां दुर्गा को आदि शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती योगमाया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित बताया गया है। मां दुर्गा शक्ति का अवतार है। नवरात्रि में आप उनके मंत्र का श्रद्धा पूर्वक जाप करेंगे और आपके जीवन में आने वाली सब परेशानियां दूर होंगी।1. मां दुर्गा के इस मंत्र का जाप प्रार्थना करते हुए प्रसन्नता वापस लाने के लिए करेंप्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ।त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव।।2.मां दुर्गा के इस मंत्र द्वारा मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिएसर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तय: ।।3.अपने समस्त पापों का नाश करने के लिए मां दुर्गा की प्रार्थना इस मंत्र के द्वारा करनी चाहिए।हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योन: सुतानिव ।।4.जीवन को निरोगी और अपने जीवन में सौभाग्य लाने के लिए मां की प्रार्थना इस मंत्र द्वारा करेंदेहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।5.जीवन में आने वाली समस्त विपत्तियों से बचने के लिए मां की प्रार्थना इस मंत्र द्वारा करनी चाहिए।रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ।।---
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Happy NAVRATRI(शारदीय नवरात्रि की शुभकामनायें...)
भक्तियोगरस के परमाचार्य जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत श्री दुर्गा-तत्व तथा गोपियों के माँ कात्यायनी देवी पूजन सम्बन्धी प्रवचन, सभी भगवत्प्रेमपिपासु भावुक पाठक समुदाय को 'शारदीय नवरात्रि' की हार्दिक शुभकामनायें :::::::
जय जय जय जय दुर्गा मैया गोविन्द राधे।कृपा करि मोहे कृष्ण प्रेम दिला दे।।(स्वरचित दोहा)
प्रेम की अन्तिम आचार्या ब्रजांगनाएँ हैं, ब्रजगोपियाँ हैं जिनकी चरणधूलि ब्रम्हा, शंकर, सनकादिक, जनकादिक, उद्धवादिक समस्त परमहंस चाहते हैं। वृक्ष बन-बनकर ब्रज में उनकी चरणधूलि के लिये गये थे। वो ब्रजगोपियाँ प्रेम की आचार्या हैं। उनके प्रेम के आगे और किसी का प्रेम न हुआ था, न होगा। महाभाव कक्षा पर पहुँची हुई हैं ब्रजगोपियाँ। उसमें दो प्रकार की गोपियाँ थीं - एक ऊढ़ा एक अनूढ़ा। एक विवाहिता और एक कन्यायें। जो विवाहिता गोपियाँ थीं, उनका प्रेम अधिक उच्च कक्षा का था और नम्बर दो की कन्यायें थीं। विवाहिता का प्रेम परकीया भाव का प्रेम कहलाता है और कन्याओं का प्रेम स्वकीया भाव का प्रेम है।
स्वकीया माने जिसका और किसी से संबंध न हो और परकीया माने जिसका विवाह हो चुका है, पति है लेकिन चोरी चोरी प्यार करती है श्यामसुन्दर से। तो ब्रजांगनाओं का परकीया भाव का प्रेम सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ये दो प्रकार की गोपियाँ थीं और दो प्रकार की वेद ऋचायें भी थीं इनकी दासियाँ यानी विवाहिताओं की दासियाँ। ऐसी वेद की ऋचायें थीं जो इन्द्र, वरुण, कुबेरादि देवताओं की वाचिका थीं।
इन्द्रो जातो वसितस्य राजा, अग्निर्देवता, वायोर्देवता सूर्यो देवताचन्द्रमा देवता वसवो रुद्रादेवता वृहस्पते देवतेन्द्र इन्द्रोदेवता।
इत्यादि तमाम वेद मंत्र हैं जो डायरेक्ट भगवान के लिये नहीं हैं, उनका नाम लिखा है इन्द्र वरुण कुबेरादि। और कुछ ऐसी वेद की ऋचायें हैं जो डायरेक्ट भगवान की वाचिका हैं;
सत्यंज्ञानमनंतम् ब्रम्ह।
इत्यादि। तो जो अनंत वाचिका हैं यानी अनूढ़ा हैं यानी कन्यायें हैं वे स्वकीया भाव की हैं और जो अन्य पूर्विका हैं, ऊढ़ा हैं, विवाहिता हैं, वे परकीया भाव की हैं। तो ये दोनों प्रकार की गोपियों के प्रेम सर्वोच्च प्रेम कहलाता है। उन दोनों ब्रजगोपियों ने दुर्गा की उपासना की थी;
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।नन्दगोपसुतम् देव पतिं मे कुरुते नमः।।(भागवत 10-22-4)
कात्यायनी नाम है। दुर्गा के बहुत नाम हैं, बहुत रुप हैं, चार भुजा की दुर्गा, आठ भुजा की, हजार भुजा की। तो उन्हीं दुर्गा का एक रुप कात्यायनी देवी था, उसी को योगमाया कहते हैं। श्रीकृष्ण की बड़ी बहन है ये योगमाया जो यशोदा की पुत्री हैं। यशोदा की पुत्री हुई थी और देवकी के पुत्र हुये थे श्रीकृष्ण। तो श्रीकृष्ण को वसुदेव ले जाकर यशोदा के बगल में लिटा दिये थे और योगमाया को यानि यशोदा की पुत्री को उठा लाये थे और देवकी को दे दिया था। उसी को कंस ने चट्टान पर पटका था। लेकिन चट्टान पर गिरने के पहले ही वो आकाश को चली गईं और आठ भुजा से प्रकट होकर कंस को डाँटा, 'तुझे मारने वाला आ गया है तू मुझे क्या मारेगा?'
तो वो कात्यायनी देवी योगमाया दुर्गा हैं, उनकी उपासना किया था ब्रजगोपियों ने और उनसे वर माँगा था कि हमारे वर श्रीकृष्ण बनें।
पतिं मे कुरुते नमः।(भागवत 10-22-4)
हे कात्यायनी! हम तुमको नमस्कार करते हैं। ऐसा वरदान दो कि श्रीकृष्ण हमारे पति बनें, प्रियतम बनें। और यही दुर्गा रामावतार में पार्वती के रुप में थीं जिनकी सीता ने, राम ने सबने इनकी उपासना की थी।
मनजाहि राच्यो मिलहिं सो वर सहज सुन्दर साँवरो।
और वहाँ वर दिया था पार्वती ने सीता को कि जाओ तुमको तुम्हारे पति राम मिलेंगे, वो पति बनेंगे। तो दुर्गा की उपासना करके हम उनसे वर माँगें, हमको श्रीकृष्ण प्रेम दे दो।
• सन्दर्भ : साधन साध्य पत्रिका, अक्टूबर 2009 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष में नव ग्रहों के बारे में बताया गया है। इन सभी ग्रहों का अपना प्रभाव होता है और ये अलग-अलग फल प्रदान करते हैं। जब ये ग्रह अपनी स्थिति बदलते हैं, तो इसका प्रभाव मनुष्य के जीवन पर भी पड़ता है। प्रत्येक ग्रह के लिए ज्योतिष में रत्न बताए गए हैं, यदि राशि और ग्रह के अनुसार रत्न धारण किया जाए तो ग्रहों को अनुकूल बनाया जा सकता है और इनकी प्रतिकूलता के कारण होने वाली समस्याओं को दूर किया जा सकता है। माना जाता है कि रत्न धारण करने जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता के मार्ग भी प्रशस्त होते हैं। इन्हीं रत्नों में से एक बताया गया है 'पुखराज रत्न'। पीले रंग का चमकीला ये रत्न बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। जिन लोगों की कुंडली में बृहस्पति अनुकूल हो उनके लिए पुखराज बहुत ही शुभ फल प्रदान करनता है। यदि किसी की कुंडली में बृहस्पति शुभता प्रदान नहीं कर रहे हैं तो उन्हें भी इस रत्न को धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से विवाह की रुकावट दूर होती हैं साथ ही धन-संपत्ति और मान-सम्मान में वृद्धि भी प्राप्त होती है। रत्न बहुत ही प्रभावशाली माने जाते हैं इसलिए इन्हें धारण करने से पहले आपको भलिप्रकार से जानकारी होना बहुत आवश्यक होता है, तो चलिए जानते हैं पुखराज पहनने के फायदे और विधि।पुखराज पहनने के फायदेपुखराज बृहस्पति ग्रह का रत्न होता है इसलिए यह रत्न धारण करने से धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। बृहस्पति की प्रतिकूल स्थिति के कारण जिनके विवाह में रुकावटे आ रही हैं, उनके लिए पुखराज धारण करना फायदेमंद रहता है। इस रत्न को धारण करने से कमजोर पाचन में भी फायदा मिलता है। इसके अलावा आध्यात्मिक वा धार्मिक विषयों में रुचि रखने वालों के लिए भी पुखराज फायदेमंद रहता है।पुखराज पहनने के नियम व विधि-पुखराज को हमेशा सोना धातु में पहनना चाहिए। इसी के साथ आपको वजन का ध्यान रखना भी बेहद आवश्यक होता है। पांच से सात कैरेट के पुखराज को सोने की अंगूठी में जड़वाकर धारण करना चाहिए। पुखराज धारण करने के लिए बृहस्पितवार का दिन और पुष्य नक्षत्र शुभ रहता है। पुखराज को धारण करने के लिए सबसे पहले अंगूठी को दूध और फिर गंगाजल में डाल दें। इसके बाद शक्कर और शहद के घोल में अंगूठी डालें। अब बृहस्पतिदेव की पूजा अर्चना करने के बाद ' ऊं ब्रह्म ब्र्हस्पतिये नमः' मंत्र का एक माला जाप करें। इसके बाद अंगूठी को बृहस्पतिदेव के चरणों से स्पर्श करवाकर धारण कर लेें। पुखराज को तर्जनी (index finger) में धारण किया जाता है, क्योंकि इस उंगली को नीचे ही बृहस्पति पर्वत होता है।कौन सी राशि के लोग धारण कर सकते हैं पुखराज-रत्न को राशि के अनुसार पहनना भी बहुत आवश्यक होता है। मिथुन, कन्या और वृषभ राशि के जातकों के लिए पुखराज रत्न पहनना शुभ साबित होता है। धनु व मीन राशि वालों को लिए भी ये रत्न पहनना भाग्यवृद्धि करता है तो वहीं वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर व कुम्भ लग्न वाले लोगों को पुखराज नहीं पहनने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा पुखराज को हमेशा किसी योग्य ज्योतिष की सलाह से कुंडली में बृहस्पति की स्थिति के अनुसार धारण करना चाहिए।
- नवरात्रि का पावन पर्व इस बार 7 अक्टूबर से है। नौ दिनों के इस पर्व में मां दुर्गा भक्तों के घर पर आती हैं और नौ दिनों तक आपके घर पर वास करती हैं। इस दौरान भक्त माता के सभी स्वरूपों की पूजा करते हैं। मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा-अर्चना से लेकर भोग, भजन व बंगाली नृत्य तक करते हैं। पूरे देश में नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। सभी जगह माता की पूजा के अलग अलग तरीके और मान्यताएं हैं। कहीं दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, तो कहीं गुजराती गरबा खेला जाता है। अगर आप भी नवरात्रि मनाते हैं और मां दुर्गा को प्रसन्न करना चाहते हैं तो एक आसान तरीका भी है। इस तरीके से नवरात्रि में आप मां के नौ स्वरूपों को खुश कर सकते हैं। इसके लिए आपको नौ दिन तक नव देवियों के पसंदीदा रंग में रंग जाना होगा। यानि कि आप हर दिन माता रानी के पसंदीदा रंग के कपड़े पहन कर उनके सामने जाएं और माथा टेंके। आपको अपने मनपसंद रंग के कपड़ों में देख माता दुर्गा का मन भी खुश हो जाएगा। महिलाएं हों या पुरुष सभी नवरात्रि में इन 9 रंगों के परिधानों को पहन सकते हैं।नवरात्रि का पहला दिन- पीला रंगनवरात्रि में मां के प्रिय कपड़े पहन ही रहें हैं तो पारंपरिक परिधान पहनें। महिलाएं साड़ी, सूट और लहंगा पहन सकती हैं तो वहीं पुरुष कुर्ता कैरी करें। नवरात्रि के पहले दिन मां के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। उन्हें पीला रंग पसंद हैं और इस दिन पीला रंग पहनना शुभ माना जाता है। इस दिन लोग कलश स्थापना या मां का अपने घर में स्वागत करते हैं। ऐसे में पीले रंग के परिधान का चयन करें।महिलाएं पीले रंग की साड़ी पहन सकती हैं। पहले दिन साड़ी लुक ट्रेडिशनल और पूजा के लिए एकदम परफेक्ट होगा। अगर साड़ी नहीं पहनना चाहती तो सूट या स्कर्ट भी पहन सकती हैं। पीले रंग का सूट न हो तो मिक्स एंड मैच कैरी कर सकती हैं। पुरुष पीले रंग का लॉन्ग या शॉर्ट कुर्ता पहन सकते हैं। पीली शर्ट भी अच्छी लगेगी।नवरात्रि का दूसरा दिन- हरा रंगनवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। इस दिन हरे रंग के एथेनिक वियर को कैरी करें। महिलाएं ग्रीन साड़ी, लहरिया प्रिंट की हरी साड़ी या सूट पहन सकती हैं। दो रंगों के कॉम्बिनेशन वाला पारंपरिक परिधान भी जंचेगा और माता का पसंद आएगा। लड़के ग्रीन शर्ट, कुर्ता या फिर ग्रीन रंग का दुपट्टा अपने किसी भी कुर्ते के साथ आप टीमअप कर सकते हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन हरा रंग शुभ माना जाता है।नवरात्रि का तीसरा दिन - ग्रे रंगनवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती हैं। कहा जाता हैं कि इस दिन ग्रे रंग के कपड़े पहनकर मां की उपासना करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ग्रे रंग का एथेनिक वियर इस दिन आपको फेस्टिव लुक देगा। आप ग्रे रंग के साथ मिक्स एंड मैच भी करेंगे तो सुंदर लगेगा।नवरात्रि का चौथा दिन- ऑरेंज कलरनवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा की पूजा -अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इस दिन ऑरेंज रंग पहनना शुभ होता है। महिलाएं और पुरुष ऑरेंज रंग के परिधान को पहन सकते हैं। आप कंट्रास्ट कॉम्बिनेशन के कपड़े भी पहन सकते हैं। मां आपको सजा-संवरा देख बहुत खुश होंगी।नवरात्रि का पांचवा दिन -सफेद रंगपांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। मां स्कंदमाता को सफेद रंग प्रिय है। इस दिन आप सफेद रंग के पारंपरिक परिधान पहन कर माता रानी को प्रसन्न कर सकते हैं। आप सफेद रंग के सूट पर अलग रंग का दुपट्टा या सफेद फ्लोरल प्रिंट की साड़ी और सूट पहन सकती हैं। लड़के भी सफेद कुर्ता पजामा पहन कर अच्छे दिखेंगे।नवरात्रि का छठा दिन -लाल रंगलाल रंग तो माता का सबसे प्रिय रंग है। छठे दिन मा कात्यायनी की पूजा लाल रंग के कपड़ों में करें। लाल रंग को लकी माना जाता है। आप लाल सिफाॅन की साड़ी या बनारसी साड़ी पहन सकती हैं। इसके अलावा आप लाल चुंदरी या दुपट्टा सिर पर डालकर ही पूजा करें। मां की कृपा आप पर हमेशा बनी रहेगी। लाल चूड़िया माता का बहुत भाती हैं, महिलाएं इसे भी नवरात्रि में पहने। लड़के लाल कुर्ता, शर्ट, टी शर्ट पहन सकते हैं।नवरात्रि का सातवां दिन- नीला रंगइस दिन मां कालरात्रि की उपासना की जाती है। नीले रंग के कपड़े पहनना इस दिन लकी होता है। आप ब्लू रंग के परिधान पहन कर माता की पूजा करें। नीले रंग का कोई भी एथिनिक वियर नवरात्रि का ये दिन शुभ बना देगा।नवरात्रि का आठवां दिन -गुलाबी रंगगुलाबी रंग को हमेशा लड़कियों से जोड़ा जाता है। मां के आठवें स्वरूप महागौरी को भी गुलाबी रंग पसंद है। इस दिन महागौरी की पूजा होती है। महिलाएं या पुरुष दोनों ही नवरात्रि के आठवें दिन गुलाबी रंग के पारंपरिक परिधान पहन कर माता की पूजा करें। गुलाबी रंग की साड़ी, सूट पहन सकते हैं। लड़के गुलाबी रंग में मिक्स एंड मैच करके कोई भी ट्रेडिशनल आउटफिट कैरी कर सकते हैं।नवरात्रि का आखिरी दिन- जामुनी रंगनवरात्रि के आखिरी दिन यानी नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। आपके मन की मुरादें पूरी करने के लिए मां को प्रसन्न करने का ये दिन सबसे शुभ होता है। इस दिन जामुनी रंग के कपड़े पहनना लकी हो सकता है। आज जामुनी रंग की साड़ी-सूट, स्कर्ट या लहंगा पहन सकती हैं। लड़कों पर भी जामुनी रंग के परिधान काफी जंचेगा।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 415
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ के 'सिद्धान्त माधुरी' का यह पद (77) है, जिसमें मनुष्य शरीर की महत्ता और इसके उद्देश्य का वर्णन है.....
मिलत नहिं नर तनु बारम्बार।कबहुँक करि करुणा करुणाकर, दे नृदेह संसार।उलटो टाँगि बाँधि मुख गर्भहिं, समझायेहु जग सार।दीन ज्ञान जब कीन प्रतिज्ञा, भजिहौं नंदकुमार।भूलि गयो सो दशा भई पुनि, ज्यों रहि गर्भ मझार।यह 'कृपालु' नर तनु सुरदुर्लभ, सुमिरु श्याम सरकार।।
भावार्थ - यह मनुष्य का शरीर बार-बार नहीं मिलता। दयामय भगवान् चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात् दया करके कभी मानव देह प्रदान करते हैैं। मानव देह देने के पूर्व ही संसार के वास्तविक स्वरूप का परिचय कराने के लिए गर्भ में उल्टा टाँग कर मुख तक बाँध देते है। जब गर्भ में बालक के लिए कष्ट असह्य हो जाता है तब उसे ज्ञान देते हैं और वह प्रतिज्ञा करता है कि मुझे गर्भ से बाहर निकाल दीजिये, मैं केवल आपका ही भजन करूँगा। जन्म के पश्चात् जो श्यामसुन्दर को भूल जाता है, उसकी वर्तमान जीवन में भी गर्भस्थ अवस्था के समान ही दयनीय दशा हो जाती है। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि यह मानव देह देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, इसीलिए सावधान हो कर श्यामसुन्दर का स्मरण करो।
• सन्दर्भ : 'प्रेम रस मदिरा', सिद्धान्त माधुरी, पद संख्या - 77
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।(- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -*(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की चाल समय-समय पर बदलती रहती है जिसका असर सभी राशियों पर पड़ता है। ये प्रभाव शुभ और अशुभ दोनों तरह के होते हैं। ग्रहों के राशि परिवर्तन के अलावा ग्रह उल्टी और सीधी चाल से भी चलते हैं। क्रूर ग्रह माने जाने वाले शनि अभी मकर राशि में वक्री गति यानी उल्टी चाल से चल रहे हैं। शनि 23 मई 2021 से मकर राशि में वक्री हैं। अब थोड़े ही दिनों के बाद शनि की चाल वक्री से मार्गी हो जाएगी। 11 अक्तूबर 2021 को शनि मकर राशि में 141 दिनों के बाद मार्गी हो जाएंगे। शनि के मार्गी होने के तुरंत बाद इसका शुभ प्रभाव कुछ राशियों पर पडऩे लगेगा। कष्ट कम होंगे और कार्यों में चली आ रही बाधाएं खत्म होने लगेगी। आइए जानते हैं शनि की सीधी चाल से किन राशियों की खुलेगी किस्मत।मिथुन राशिशनि की वक्री चाल खत्म होने पर मिथुन राशि के जातकों को सबसे पहले राहत मिलनी शुरू हो जाएगी। इस राशि पर शनि का ढैय्या चल रही है। शनि के 141 दिनों तक वक्री रहने के कारण इन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन जैसे ही शनि मार्गी चाल से चलना आरंभ करेंगे मिथुन राशि के जातकों को शुभ समाचार मिलने लगेंगे। बीमारियां जो काफी दिनों से पीछा कर रही हैं अब आपको इनसे छुटकारा मिल जाएगा। आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा। मान सम्मान में वृद्धि होगी।तुला राशिमिथुन राशि के अलावा तुला राशि के जातकों पर जनवरी 2020 से शनि की ढैय्या चल रही है। शनि के प्रकोप से तुला राशि के जातकों को कई तरह के परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था जो अब कुछ उसमें कमी आना आरंभ हो जाएगी। नौकरी में पदोउन्नति होगी। रूके हुए काम पूरे होने लगेंगे। परिवार वालों का साथ मिलने से मानसिक सुख की प्राप्ति होगी। व्यापार में मुनाफा पहले की तुलना में ज्यादा होने लगेगा।धनु राशिइस समय धनु राशि पर शनि का प्रकोप चल रहा है। धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती का अंतिम चरण चल रहा है। शनि के वक्री होने के कारण इस राशि के जातकों पर शनि का अशुभ छाया बनी हुई है। 11 अक्तूबर 2021 के बाद शनि के मार्गी होने के बाद इनकी परेशानियां कम होने लगेंगी। अच्छे मौके मिलना शुरू हो जाएंगे। आर्थिक परिशानियों का दौर अब बहुत जल्द खत्म होगा जिस कारण से धनु राशि के जातकों के चेहरे पर मुस्कान दोबारा से लौट आएगी।
- 'जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज - अवतरण दिवस'(अंग्रेजी तिथि - 5 अक्टूबर 1922, भक्तिधाम मनगढ़ में)
अंग्रेजी तिथि के अनुसार आज 5 अक्टूबर को विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज जी की जयंती है, इस अवसर पर आप सभी सुधी पाठक जनों को हार्दिक शुभकामनायें। 5 अक्टूबर 1922 की मध्यरात्रि को भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहाबाद के निकट मनगढ़ नामक ग्राम में आपका अवतरण माता भगवती की गोद में हुआ था। यह पावन रात्रि शरद-पूर्णिमा की थी। समस्त विश्व में अपने प्रेम, ज्ञान तथा कर्मयोग की सर्वश्रेष्ठता सिद्ध करते हुये जनमानस को समस्त दुःखों से मुक्ति तथा अनंतानंत आनन्द जो कि भक्ति के द्वारा भगवान को प्राप्त कर ही मिल सकता है; का महत्वपूर्ण दिग्दर्शन दिया है।
इस श्रृंखला के अंतर्गत आज से कुछ हफ्तों तक हम उनके विषय में अनेक महत्वपूर्ण पठन-सामग्री प्रकाशित करेंगे। साथ ही उनके साहित्य व प्रवचन के महत्वपूर्ण अंश भी प्रकाशित होंगे। आज विशेष रूप में उनके निखिलदर्शनसमन्वयात्मक स्वरूप व विश्व के प्रति उनकी 'वसुधैव कुटुंबकं' की भावना के परिचय के रूप में उनके कुछ उद्धरण प्रकाशित किये जा रहे हैं। आशा है कि इससे किंचित रूप में ही सही, उनकी अगाध महिमा का कुछ झाँकी प्राप्त कर सकेंगे साथ ही आत्मा और जीवन की उन्नति के लिये मार्गदर्शन भी....
★ (1) 'सभी धर्मियों का भगवान एक ही है'
'...कोई भी मजहब हो, कोई भी धर्म हो, सबका धर्मी बस एक ही है, जिसे हिन्दू धर्म में 'ब्रह्म' 'परमात्मा' 'भगवान' आदि कहते हैं, इस्लाम में उसी को 'अल्लाह' कहते हैं, फारसी में उसी को 'ख़ुदा' कहते हैं। पारसी लोग उसी को 'अहुरमज्द' कहते हैं। उसी एक भगवान के ये सब नाम हैं। लाओत्सी धर्म वाले 'ताओ' कहते हैं, बौद्ध लोग 'शून्य' कहते हैं। जैन लोग 'निरंजन' कहते हैं, सिक्ख लोग 'सत श्री अकाल' कहते हैं और अंग्रेज लोग 'गॉड' कहते हैं। ये सब उसी एक के अपनी अपनी भाषाओं में नाम हैं...'
★ (2) 'समस्त विश्व के प्रति अपनत्व की भावना'
'...मैं पंजाबी नहीं, गुजराती नहीं, बंगाली नहीं, ब्राह्मण भी नहीं, क्षत्रिय भी नहीं, वैश्य भी नहीं, शूद्र भी नहीं, हिन्दू भी नहीं, सिक्ख भी नहीं, मुसलमान भी नहीं। मैं सबका हूँ, सब मेरे अपने ही हैं, कोई मुझे अपना माने या न माने मैं सबको अपना ही मानता हूँ। भगवान एक ही है। ईश्वर, परमात्मा, ख़ुदा, अल्लाह, गॉड, वाहेगुरु सब उसी के नाम हैं। अनन्त नाम रुपाय...'
★ (3) 'विश्व-शान्ति के लिये दिया गया उनका संदेश'
'...यदि विश्व के सभी मनुष्य श्रीकृष्णभक्ति रूपी शस्त्र को स्वीकार कर लें तो समस्त देशों का, समस्त प्रांतों का, समस्त नगरों का, समस्त परिवारों का झगड़ा ही समाप्त हो जाय। केवल यही मान लें कि सभी जीव, श्रीकृष्ण के पुत्र हैं। अतः परस्पर भाई भाई हैं। पुनः सभी जीवों के अंतःकरण में श्रीकृष्ण बैठे हैं। यथा;
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेर्जुन तिष्ठति। (गीता)
अतएव किसी के प्रति भी हेय बुद्धि, निन्दनीय है। वर्तमान विश्व में इस सिद्धान्त पर राजनीतिज्ञों का ध्यान ही नहीं जाता अतएव अन्य भौतिक उपायों से शान्ति के स्थान पर क्रान्ति उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। केवल उपर्युक्त भावों के भरने से ही विश्वशान्ति संभव है...'
• सन्दर्भ ::: 'भगवत्तत्व' पत्रिका (यह पत्रिका 'जगदगुरु दिवस स्वर्ण जयंती समारोह' के रूप में वर्ष 2007 का विशेष संस्करण है.)
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 413
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 30-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि श्रीकृष्ण स्मरण की महिमा क्या है? किस प्रकार माया के प्रभाव से ग्रस्त और तप्त हृदय श्रीकृष्ण की शरण में जाने से सुखमय हो जाता है...
जिमि हो शीत निवृत्त तिन, जिन ढिग अगिनि सिधार।तिमि हो कृपा तिनहिं जिन, मन जाये हरि द्वार।।30।।
भावार्थ - जिस प्रकार आग के पास जाने से ठंड चली जाती है, उसी प्रकार जिसका मन श्री कृष्ण की शरण में चला जाता है, उस पर श्री कृष्ण की कृपा हो जाती है।
व्याख्या - कुछ भोले लोग यह आक्षेप करते हैं कि श्री कृष्ण को अकारण कृपालु क्यों कहते हैं, जबकि संसार बना हुआ है कुछ पर कृपा हो चुकी , कुछ पर नहीं हुई। यह समदर्शिता कैसी? इस का उत्तर यह है कि किसी ठंड से ठिठुरते हुये व्यक्ति से अग्नि, बिना कुछ मूल्य लिये केवल पास जाने से गर्मी प्रदान कर देती है। वैसे ही बिना साधना रूपी मूल्य लिये ही मन की शरणागति से श्री कृष्ण कृपा कर देते हैं। जो इस कृपा से दूर रहते हैं। उन पर माया की कृपा होती रहती है। मन जब माया के पास रहेगा तो माया का फल मिलेगा। जब श्री कृष्ण के पास जायगा तो श्री कृष्ण का फल मिलेगा। सीधी सी बात तो है । उपासना शब्द;
उप् + आस् + ल्युच् प्रत्यय
का अर्थ ही है पास जाना। कोई निर्धन केवल धनवान् के पास जाकर धन माँगे तो यह दान कृपा ही तो कहा जायगा। फिर श्री कृष्ण के यहाँ माँगना भी नहीं पड़ता यथा वेदव्यास;
तदप्यप्रार्थितोध्यातो ........।
अर्थात् मन जैसे ही मनमोहन के पास गया, बस - वैसे ही श्री कृष्ण ने उसे प्रेमधन से मालामाल कर दिया।
• सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक', दोहा संख्या - 30
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - पितृपक्ष अब अपने अंतिम पड़ाव पर है। 06 अक्तूबर को सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों को तर्पण देकर उन्हें विदाई दी जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर सर्वपितृ अमावस्या का त्योहार मनाया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या जैसे कि इसके नाम से स्पष्ट होता है कि इस दिन सभी पितरों की जिनके निधन की तिथि मालूम न होने पर उनकी मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। इस वर्ष पितृपक्ष के अंतिम दिन यानी सर्वपितृ अमावस्या पर बहुत ही शुभ योग बनने जा रहा है। पितृ पक्ष के दौरान सर्वपितृ अमावस्या तिथि पर 21 वर्षों के बाद कुतुप काल में गजछाया नाम का शुभ योग रहेगा। मान्यता है इस तरह के शुभ योग में पितरों का तर्पण करना और दान करना बहुत ही फलदायी होता है।गजछाया योग और पितृपक्ष06 अक्तूबर को सर्वपितृ अमावस्या तिथि है। इस दौरान इस दिन सभी पितरगण को अंतिम तर्पण देते हुए उन्हें विदाई दी जाएगी। 11 साल के बाद दोबारा से सर्वपितृ अमावस्या तिथि पर गजछाया योग बन रहा है। इससे पहले 07 अक्तूबर 2010 को इस तरह का संयोग बना था। गजछाया योग निर्माण उस समय होता है जब सूर्य और चंद्रमा दोनों एक साथ सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक हस्त नक्षत्र में रहते हैं। इस बार भी सूर्य और चंद्रमा सूर्योदय के बाद से लेकर शाम के चार बजकर 34 मिनट पर हस्त नक्षत्र में रहेंगे। ज्योतिष में ऐसी स्थिति के निर्माण होने पर इसे गजछाया योग कहते हैं।पितृ पक्ष में गजछाया योग का महत्वशास्त्रों के अनुसार गजछाया योग बहुत ही कम बार बनता है। पितृपक्ष के दौरान गजछाया योग बनने से इसका शुभ प्रभाव काफी बढ़ जाता है। गजछाया योग के लिए सूर्य का हस्त नक्षत्र में और चंद्रमा का भी इसी नक्षत्र में होना जरूरी होता है। 06 अक्तूबर को सर्वपितृ अमावस्या पर सूर्य और चंद्रमा दोनों ही सूर्योदय से लेकर शाम के 4 बजकर 34 मिनट तक हस्त नक्षत्र में रहेंगे। मान्यता है इस शुभ योग में श्राद्ध और दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष के दौरान इसमें पितरों को दिया गया श्राद्ध देने से वें कई सालों तक तृप्त हो जाते हैं।गजछाया योग में करें ये कार्यपितृपक्ष के दौरान पितरों को श्रद्धा करने से उन्हें शांति मिलती है और पितृ प्रसन्न होकर अपने परिजनों का सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। गजछाया योग में पितरों को तर्पण करने से व्यक्ति को कर्जों से मुक्ति भी मिलती है। ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या के दिन बने शुभ योग में पितरों को घी में बने भोजन अर्पित करने उन्हें 12 वर्षों तक तृप्ति मिल जाती है। गजछाया योग में ब्राह्राणों को भोजन, गंगा स्नान, वस्त्र दान करने का विशेष महत्व होता है।
- • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 412
साधक का प्रश्न ::: 'तमेव शरणं गच्छ' का थोड़ा मतलब समझा दीजिये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: अरे मतलब तो वही है सबका चाहे 'मामेव' कहो चाहे 'तमेव'। अर्जुन से पहले उन्होंने कहा -
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।तत्प्रसादात् परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्॥(गीता 18-62)
उस परम ब्रह्म की शरण में जाओ। अर्जुन ने कहा परम ब्रह्म की? परम ब्रह्म से कॉन्टैक्ट कैसे हो सकता है? भगवान ने कहा फिर;
मामेकं शरणं व्रज।(गीता 18-66)
मेरी शरण में आजा। अब तो समझ में आया। हाँ हाँ।
नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।(गीता 18-73)
हाँ अब समझ में आ गया सीधी-सीधी बात करो। मेरी शरण में आ जा और उसकी शरण में जा। ऊपर क्या इशारा कर रहे हो ? उसको हम क्या जानें? कृपा चाहता है जो साधक उसके लिये ये सब श्लोक हैं।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।(गीता 7-14)
शरणागति के बाद कृपा होगी। हम लोग कहते हैं पहले कृपा करो तो शरण में जायें। झगड़ा इतना सा है बस। और इस झगड़े में अनंत जन्म बीत गये। न भगवान् झुकने को तैयार हैं न जीव झुकने को तैयार है। जीव कहता है पहले कृपा करो। देखो बैंक में, स्टेशन पर टिकट लेता है कोई रुपया जमा करता है कोई, तो एक लाख रुपया उसने डाल दिया हाथ से अब वो वहाँ गिनता है अपना आराम से कुर्सी पर बैठकर। हम उसका विश्वास करते हैं कि ये ठीक गिनेगा और रसीद देगा। अगर हम विश्वास न करें कहें पहले रसीद दो और वो कहे पहले रुपया दो। तो कोई काम ही नहीं होगा। टिकट देने वाला कहे पहले पैसा दो और हम कहेंगे पहले टिकट दो, तुम रख लो रुपया और कह दो कब रुपया दिया है ? तो संसार में तो सब जगह हम पहले अर्पित करते हैं बाद में उसका लाभ मिलता है। और भगवान् के एरिया में पहले लाभ चाहते हैं।
• सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 3
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
आश्विनी मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है। इस साल नवरात्रि का पावन पर्व 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। नवरात्रि के 9 दिनों में मां के 9 रूपों की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में नवरात्रि का बहुत अधिक महत्व होता है। नवरात्रि के दौरान भक्त मां को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखते हैं। नवरात्रि के पावन पर्व से पहले कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है। मां की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए 7 अक्टूबर से पहले ये 3 काम जरूर कर लें।
घर की साफ- सफाई करें
नवरात्रि से पहले घर की अच्छी तरह साफ- सफाई कर लेनी चाहिए। नवरात्रि के दौरान साफ- सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माँ का वास उन्हीं घरों में होता है जहां साफ- सफाई का ध्यान रखा जाता है।
घटस्थापना वाले स्थान की साफ- सफाई करें
नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना भी की जाती है। जहां पर आप घटस्थापना करने वाले है, उससे पहले उस जगह को अच्छे से साफ कर लें। अगर घर में गंगाजल है तो उस स्थान को गंगाजल से साफ करें।
मुख्य द्वार पर बनाएं स्वास्तिक का निशान
हिंदू धर्म में स्वास्तिक के निशान का बहुत अधिक महत्व होता है। यह निशान मंगलकारी और शुभ होता है। नवरात्रि से पूर्व ही घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक का निशान बना लें। यह निशान पूरे नौ दिनों तक रहना चाहिए। -
शारदीय नवरात्र की शुरुआत 7 अक्टूबर से होगी। पंचमी और षष्ठी तिथि एक ही दिन (11 अक्टूबर) पडऩे के कारण इस वर्ष नवरात्र आठ दिनों का ही हो रहा है। सात अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 10 मिनट के बाद कलश स्थापना का मुहूर्त बन रहा है जो दोपहर 3 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। 11 अक्टूबर षष्ठी तिथि को बिल्वा निमंत्रण दिया जाएगा। 12 अक्टूबर (सप्तमी) को सुबह बिल्वा तोड़ी की पूजन के बाद मां दुर्गा का पट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा। 13 अक्टूबर को महाष्टमी है, जबकि 14 अक्टूबर को महानवमी, कुमारी पूजन, हवन आदि कार्यक्रम होंगे। 15 अक्टूबर को विजयादशमी, नवरात्र व्रत पारण, देवी प्रतिमा विसर्जन, अपराजिता पूजा, शमी पूजा, निलकंठ दर्शन का मुहूर्त बन रहा है।
महिषासुर मर्दिनी का आगमन डोली पर हो रहा है। शास्त्रत्त् मर्मज्ञ इस माध्यम से मां का आना अच्छा नहीं मान रहे। आचार्य माधवानंद माता की सवारी को लेकर कहते हैं कि 'डोलायां मरणं ध्रुवमÓ मतलब डोली से आने वाली माता प्राकृतिक आपदा, महामारी आदि की तरफ इशारा करती हैं। हालांकि मां की विदाई हाथी पर हो रही है। आचार्य इसे शुभ सौभाग्य सूचक मानते हैं। वे कहते हैं कि हाथी पर जिस वर्ष विदाई होती है उस साल अच्छी वर्षा होती है। पूरे वर्ष तरह-तरह के शुभफल प्राप्त होते हैं। - • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 411
(भूमिका - साधक कैसे सब ओर से अपनी दृष्टि हटाकर स्वयं को पतन अथवा भटकाव से बचाये रखे और अपने परमार्थ के लक्ष्य पर अडिग, अविचल बना रहे - जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज इसी की ओर ध्यानाकृष्ट कर रहे हैं...)
'हरि, गुरु और भक्ति' - इन तीनों में अनन्य भाव रखो। यानी इनके बाहर मत जाओ। बस राधाकृष्ण, हमारे इष्टदेव और अमुक गुरु हमारा गाइड, गार्जियन एक बस, और साधना - ये उपाय। स्मरण, कीर्तन, श्रवण। ये तीन, बस इसके बाहर नहीं जाना है। कुछ न सुनना है, न समझना है, न पढ़ना है। अगर कोई सुनावे, बस बस हमको मालूम है सब। निरर्थक बात नहीं सुनना है।
बहुत से लोगों का यही धंधा है कि इसको इस मार्ग (भक्ति/साधना) से हटाओ। तो अण्ड बण्ड, तर्क-कुतर्क, वितर्क-अतितर्क, ऐसी गन्दी गन्दी कल्पनाएँ करके आपके दिमाग में वो डाउट पैदा कर देंगे। तो सुनना नहीं है। बस अपने मतलब से मतलब। ये शरीर नश्वर है। पता नहीं कब छिन जाय। फालतू बातों में इसको न समाप्त करो, जल्दी जल्दी कमा लो (आध्यात्मिक कमाई/साधना)। जितना अधिक भगवान् का, गुरु का स्मरण हो सके, उतना स्मरण करके अंतःकरण शुद्धि का एक चौथाई कर लो। फिर अगले जन्म एक चौथाई कर लेना। तो चार जन्म में हो जायेगा शुद्ध। लेकिन जितना कर सको करो। उसमें लापरवाही नहीं करना है। और हरि गुरु को सदा अपने साथ मानो। अपने को अकेला कभी न मानो। इस बात पर बहुत ध्यान दो, इसका अभ्यास करना होगा थोड़ा। जैसे दस मिनट में आपने एक बार रियलाइज किया - हाँ श्यामसुन्दर बैठे हैं फिर अपना काम किया - तीन, चार, सात, पाँच , बारह, अठारह, चौबीस, फिर ऐसे आँख करके कि हाँ बैठे हैं। ये फीलिंग हो कि हम अकेले नहीं हैं, हमारे साथ हमारा बाप (भगवान) भी है और हमारे गुरु भी हैं। ये फीलिंग हो तो अपराध नहीं होगा। गलती नहीं करेंगे, भगवान् का विस्मरण नहीं होगा। वह बार-बार पिंच करेंगे आकर के। तो इस प्रकार सदा उनको अपने साथ मानो और उनके मिलन की परम व्याकुलता बढ़ाओ।
• सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
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साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! आपने बहुत बार प्रवचन में कहा है कि प्रेम निष्काम करना चाहिए, सेवा निष्काम होनी चाहिए। तो हम सोचते हैं ऐसा, पर सेवा करते समय कोई ना कोई मतलब, स्वार्थ मन में आ जाता है महाराज जी। तो निष्काम कैसे होना है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: पहले नहीं आयेगा। कोई लड़का पैदा होते ही दौड़ने नहीं लगता अभ्यास करते करते आता है। निष्काम अवस्था तो बहुत ऊँची अवस्था है एम वही रखना चाहिये लेकिन सकाम पहले होगा फिर धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, उन्नति करते हुये निष्काम हो जायेगा वो। पहले ही निष्काम कैसे हो सकता है क्योंकि अनंत जन्मों की कामना तो हमारी भरी हुई है भीतर, इसलिये घबराना नहीं चाहिये। सकाम ही हो रहा है चलने दो और लक्ष्य रखो निष्काम का तो एक दिन वो सब कामनाएँ समाप्त हो जायेंगी जैसे-जैसे भक्ति बढ़ेगी।
• संदर्भ ::: प्रश्नोत्तरी भाग – 3, पृष्ठ संख्या 129
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - किसी भी घर में उसका प्रवेश द्वार सबसे अहम माना जाता है. मान्यता है इसी प्रवेश द्वार के जरिए घर में सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश करती है. कहा जाता है कि अगर आप अपने घर को नकारात्मक शक्तियों से मुक्त रखना चाहते हैं तो उसके मुख्य द्वार को वास्तु दोष से मुक्त रखें. मुख्य द्वार का वास्तु सही कर देने से उसमें अवांछित शक्तियां प्रवेश नहीं कर पाती और परिवार पर मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि बनी रहती है. आज हम आपको कुछ ऐसे काम बताने जा रहे हैं, जिन्हें करने से घर पर भगवान की हमेशा कृपा बनी रहती हैं.घर के मुख्य द्वार पर बनाएं रंगोलीवास्तु शास्त्र के अनुसार अगर आपके पास सुबह समय होता है तो मुख्य द्वार के दोनों ओर आटे से रंगोली बनाएं. रोजाना समय न हों तो हफ्ते में एकाध बार भी रंगोली बना सकते हैं. ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और परिवार पर उनकी कृपा बरसती है.वास्तु के मुताबिक सुबह उठकर सबसे पहले भगवान को नमन करना चाहिए. उसके बाद मुख्य द्वार की देहरी को पानी से धोना चाहिए. आप चाहे तो इसमें थोड़ी सी हल्दी डाल सकते हैं. ऐसा करने से परिवार की आर्थिक तंगी दूर होती है और परिवार में कभी भी पैसों की कमी नहीं रहती.देवी-देवताओं के लगाएं प्रतीक चिह्नघर में खुशहाली लाने के लिए उसके मुख्य द्वार पर ओम, श्री गणेश या मां लक्ष्मी के चरण चिन्ह और शुभ लाभ का प्रतीक चिन्ह लगाने चाहिए. ऐसा करने से घर में हर समय सकारात्मक शक्तियों का वास रहता है और नकारात्मक शक्तियां घर में नहीं घुस पातीं. सुबह उठने के बाद इन प्रतीक चिन्हों के पास जाकर उन्हें प्रमाण जरूर करें.वास्तु के अनुसार घर के मुख्य द्वार पर तोरण लगाना शुभ माना जाता है. यह तोरण आम, पीपल या फिर अशोक के पत्तों से बनता है. यह तोरण द्वार घर में खुशहाली लाता है और परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है.नहाने के बाद मुख्य द्वार पर लगाएं स्वास्तिकरोजाना नहाने के बाद घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक का निशान लगाएं. ऐसा करने से परिवार के लोगों से बीमारी दूर रहती है. साथ ही आर्थिक तंगी से भी निजात मिलती है. इससे परिवार में खुशहाली आती है.
- प्राचीन ग्रंथों में सोमरस का जिक्र मिलता है। अधिकतर लोग ये समझते हैं कि सोमरस का अर्थ मदिरा या शराब होता है जो कि बिलकुल गलत है। कई लोगों का ये भी मानना है कि अमृत का ही दूसरा नाम सोमरस है। आम तौर पर देवता अमृत पान करते हैं और इसी कारण लोग सोमरस को अमृत समझ लेते हैं जो कि गलत है।अब प्रश्न ये है कि सोमरस आखिरकार है क्या? सोमरस के विषय में ऋग्वेद में विस्तार से लिखा गया है। ऋग्वेद में वर्णित है कि "ये निचोड़ा हुआ दुग्ध मिश्रित सोमरस देवराज इंद्र को प्राप्त हो।" एक अन्य ऋचा में कहा गया है - "हे पवनदेव! ये सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिलकर तैयार किया गया है।" इस प्रकार सोमरस के निर्माण में दुग्ध का उपयोग हुआ है इसी कारण ये मदिरा नहीं हो सकता क्योंकि उसके निर्माण में दुग्ध का उपयोग नहीं होता।साथ ही साथ मदिरा का अर्थ है जो "मद" अर्थात नशा उत्पन्न करे। वही सोमरस में शब्द "सोम" शीतलता का प्रतीक है। ऋग्वेद में ये कहा गया है कि सोमरस का प्रयोग मुख्यत: यज्ञों में किया जाता था और मुख्यत: देवता ही इसके अधिकारी होते थे। सोमरस का पान मनुष्यों के लिए वर्जित बताया गया है। अश्विनीकुमार के विषय में भी एक कथा है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर परमपिता ब्रह्मा ने उन्हें सोमरस का अधिकारी होने का वरदान दिया। अर्थात जो भी देवत्व को प्राप्त करता था वो ही सोमरस का पान कर सकता था।सोमरस का एक रूप औषधि के रूप में भी जाना जाता था। कहा जाता है कि सोम दरअसल एक विशेष पौधा होता था जो गांधार (आज के अफगानिस्तान) में ही मिलता था। इसे पीने के बाद हल्का नशा छा जाता था। महाभारत में ऐसा वर्णित है कि जब भीष्म धृतराष्ट्र के लिए गांधारी का हाथ मांगने गांधार गए तब गांधारी के पिता ने उनका स्वागत सोमरस से किया। वहां इस बात का भी वर्णन है कि गान्धार राज भीष्म को ये बताते हैं कि ये दुर्लभ पेय गांधार के अतिरिक्त और कहीं नहीं मिलता।ऋग्वेद में सोमरस बनाने की विधि भी बताई गयी है:उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज। नि धेहि गोरधि त्वचि।।औषधि: सोम: सुनोते: पदेनमभिशुण्वन्ति।अर्थात: मूसल से कुचली हुई सोम को बर्तन से निकालकर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और छानने के लिए पवित्र चरम पर रखें। सोम एक औषधि है जिसको कूट-पीसकर इसका रस निकालते हैं।सोमरस निर्माण की तीन अवस्थाएं बताई गयी हैं:पेरना: सोम के पत्तों का रस मूसल द्वारा निकाल लेना।छानना: वस्त्र द्वारा रस से अपशिष्ट को अलग करना।मिलाना: छाने हुए रस को दुग्ध, घी अथवा शहद के साथ मिलकर सेवन करना।सोम को गाय के दूध में मिलाने पर गवशिरम् तथा दही में मिलाने पर दध्यशिरम् बनता है। इसके अतिरिक्त शहद या घी के साथ भी इसका मिश्रण किया जाता था। यज्ञ की समाप्ति पर ऋषि मुनि पहले इसे देवताओं को समर्पित करते थे और फिर स्वयं भी इसका पान करते थे। किन्तु बाद में लोगों ने इस ज्ञान को गुप्त रखना आरम्भ कर दिया जिससे सोम की पहचान असंभव हो गयी और इस पेय का ज्ञान लुप्त हो गया।ऋग्वेद में सोमरस की तुलना संजीवनी से की गयी है और कहा गया है कि नित्य सोमरस पान करने से शरीर में अतुलित बल आता है। शायद यही कारण था कि सोमरस के पान के कारण देवता इतने शक्तिशाली होते थे। अगर आधुनिक काल की बात करें तो समय के साथ साथ सोमरस का स्थान पंचामृत ने ले लिया है। पंचामृत को भी दुग्ध, दही, घी, शक्कर एवं शहद से बनाया जाता है। इसे भी प्रथम देवताओं को अर्पित किया जाता है और इसका पान करने से भी शक्ति प्राप्त होती है। अत: पंचामृत को आधुनिक काल का सोमरस कहा जा सकता है।
- एक अनमोल रत्न जिसे कहते हैं गणेश रूद्राक्ष। रूद्राक्ष यानि भगवान रूद्र का अक्ष यानि भगवान शिवशंकर के नेत्रों का जल बिंदु। रूद्राक्ष कई तरह के होते हैं। लेकिन मुख्य रूप से यह गौरी शंकर रूद्राक्ष, गणेश रूद्राक्ष और गौरीपाठ रूद्राक्ष माने जाते हैं। इनमें से भगवान गणेश का रूद्राक्ष निर्णय लेने की क्षमता को मजबूत करता है। विद्यार्थियों के लिये तो यह बहुत ही सौभाग्यशाली माना जाता है।गणेश रूद्राक्ष का महत्वगणेश रूद्राक्ष विघ्नकर्ता भगवान श्री गणेश जो कि बुद्धि के देवता रिद्धि सिद्धियों के स्वामी माने जाते हैं उन्हीं श्री गणेश का स्वरूप इसे माना जाता है। मान्यता है कि गणेश रूद्राक्ष धारण करने से जातक की बुद्धि पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे जातक अहम निर्णयों को लेने में किसी तरह की दुविधा में नहीं पड़ता। इतना ही नहीं बल्कि यह रूद्राक्ष धारण करने पर जातक के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं व ऐश्वर्य का जीवन भोगते हुए अंत समय मोक्ष को प्राप्त होता है।कैसे करें गणेश रूद्राक्ष की पहचानगणेश रूद्राक्ष की विशेष पहचान होती है रूद्राक्ष में भगवान गणेश की आकृति का होना। गणेश रूद्राक्ष में सुंड की तरह का एक उभार देखा जाता है। यह एक बहुत ही दिव्य मनका माना जाता है।गणेश रूद्राक्ष धारण करने की विधि-गणेश रूद्राक्ष को लाल धागे या सोने अथवा चांदी के तार में धारण किया जाता है।-रूद्राक्ष धारण करने के लिये सोमवार का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है।-गणेश चतुर्थी के दिन भी इस रूद्राक्ष को धारण करना बहुत ही सौभाग्यशाली व शुभ फलदायी माना जाता है। रूद्राक्ष को धारण करने से पहले किसी विद्वान ज्योतिषाचार्य से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिये। रूद्राक्ष या रत्न प्रभावी तभी रहते हैं जब आप उन्हें अपनी कुंडली में ग्रहों की दशा व दिशा के अनुसार धारण करते हैं।----
- -जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 409
• साधक का प्रश्न : आप कहते हैं कि अंतःकरण शुद्धि के लिए आँसू आना आवश्यक है। वह तो कभी आते नहीं ?• जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: आँसू बहाने के लिए दीनता का भाव लाओ। अपने को पतित, निराश्रित महसूस करो, आँसू अवश्य आयेंगे। आँसू का न आना ही सिद्ध करता है कि हमारे अन्दर अभिमान छिपा है जो हमें पतित अनुभव नहीं करने देता।
बार-बार प्रयास करो, भगवान् के दिव्य दर्शन की परम व्याकुलता पैदा करो। जब भगवान् की याद में अंतःकरण पिघलेगा, आँसू बहाये जायेंगे, मन की कलुषता निकलेगी तो भगवान् उसमें सदा के लिए विराजमान हो जायेंगे।
आँसू आने पर भी अभिमान न आने पाये, नहीं तो वे भी छिन जायेंगे। जब तक श्यामा-श्याम न मिल जायँ तब तक सब आँसू बेकार ही हैं। जब असली आँसू आवेंगे तो भगवान् को उन्हें पोंछने के लिए स्वयं आना पड़ेगा।
• सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
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