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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 354
(भूमिका - विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने समस्त साधक समुदाय तथा जनसाधारण को आत्मकल्याण के लिये 'निष्काम-भक्ति' का सर्वसुगम मार्ग बतलाया है। इस निष्काम-भक्ति की अनेक बारीक तथा गूढ़ बातें उन्होंने बारम्बार अपने प्रवचनों व साहित्यों आदि में समझाई हैं। उन्होंने इस बात पर भी विशेष जोर दिया कि 'साधना मार्ग में साधना/भक्ति की कमाई भले ही कम हो, पर जो कमाई हो, उसकी गँवाई न हो'। अक्सर प्रमादवश, भूलवश साधक अनेक ऐसे कृत्य कर बैठता है जिससे उसकी कमाई साधना नष्ट हो जाती है। ये कृत्य 'कुसंग' हैं। श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत 'कुसंग' तत्त्व पर प्रवचन नीचे प्रकाशित किया जा रहा है। अगले 8-दिनों में विभिन्न प्रकार के कुसंग और उससे बचने के उपायों संबंधित प्रवचन क्रमशः प्रकाशित किए जायेंगे...)
★★ 'कुसंग क्या है?'
....संसार में सत्य एवं असत्य केवल दो ही तत्त्व हैं जिनके संग को ही सत्संग एवं कुसंग कहते हैं। सत्य पदार्थ हरि एवं हरिजन ही हैं अतएव केवल हरि, हरिजन का मन बुद्धि युक्त सर्वभाव से संग करना ही सत्संग है तथा उसके विपरीत अवशिष्ट विषय हैं, सत्त्वगुण, रजोगुण एवं तमोगुण से युक्त होने के कारण मायिक हैं, अतएव असत्य हैं। तात्पर्य यह हुआ कि जिस किसी भी संग के द्वारा हमारा भगवद-विषय में मन बुद्धि युक्त लगाव हो वही 'सत्संग' है। इसके अतिरिक्त समस्त विषय 'कुसंग' हैं। (नोट - नीचे के सभी 4 दोहे जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित 'राधा गोविन्द गीत' ग्रन्थ के दोहे हैं.)
सत अर्थ हरि गुरु गोविन्द राधे।संग अर्थ मन का लगाव बता दे।।
हरि हरि भक्त सत गोविन्द राधे।शेष सब जगत असत है बता दे।।
'कु' का अर्थ मायिक गोविन्द राधे।संग अर्थ मन का लगाव बता दे।।
हरि ते विमुख 'कु' है गोविन्द राधे।मन का ही संग कुसंग बता दे।।
जितने टाईम तक तुम्हारे मन का संग भगवान, उनके नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, उनके संत में नहीं था, उतने टाईम मन कुसंग कर रहा था। जितने क्षण मन सुसंग में नहीं होगा उतने क्षण तक मन कुसंग में अवश्य होगा। आप कहेंगे, क्यों जी न सुसंग में हो, न कुसंग में हो, ऐसा नहीं हो सकता? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि;
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत।(गीता 3-5)
अर्थात एक क्षण को भी हम कुछ न करें, ऐसा नहीं हो सकता। और दो ही करना है - एक ईश्वरीय क्षेत्र में संग और एक सांसारिक क्षेत्र में संग, कुसंग की परिभाषा यही समझनी चाहिये कि भगवान, उनके नाम, रूप, लीला, धाम, उनके संत - इनमें से किसी में अगर आपका मन नहीं है तो वह मन कुसंग कर रहा है।
यह कुसंग कई प्रकार का होता है। इसको समझना परमावश्यक है। ताकि साधक सावधान रहे और कुसंग से बच सके। कई बार तो वह समझ ही नहीं पाता कि वह कुसंग कर रहा है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
हिंदू धर्म में सावन के महीना का खास महत्व होता है. इस महीने में भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा-आराधना करने पर मनचाहे फल की प्राप्ति होती है. इस बार ये पावन महीना 25 जुलाई से शुरू हो गया है जो 22 अगस्त तक जारी रहेगा. हालांकि सावन की शुरुआत के साथ ही पंचक काल भी शुरू हो गया है.
25 जुलाई को हुई शुरुआत
हिंदू पंचांग के मुताबिक, पंचक की शुरुआत 25 जुलाई की रात 10 बजकर 48 मिनट से हो चुकी है जिसका समापन 30 जुलाई 2021 की दोपहर 2 बजकर 3 मिनट पर होगा. ज्योतिषों के अनुसार, इन 5 दिनों में कोई शुभ काम जैसे- विवाहित बेटी की विदाई, नए काम की शुरुआत आदि भी नहीं की जाती है. वहीं पंचक काल में किसी व्यक्ति की मृत्यू (Death) होने को लेकर भी कई बातें कही गईं हैं.
कब होता है पंचक काल?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चन्द्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण करने का काल पंचक काल कहलाता है. इस तरह चन्द्र ग्रह का कुम्भ और मीन राशी में भ्रमण पंचकों को जन्म देता. एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान राम द्वारा रावण का वध करने की तिथि के समय के बाद से 5 दिन तक पंचक मनाने की परंपरा है.
मृत्यु को लेकर है ऐसी मान्यता
मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक काल के दौरान हो जाती है तो उसी परिवार या खानदान में 5 अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है. यदि 5 लोगों की मृत्यु न भी हो तो 5 परिजनों को किसी न किसी प्रकार का रोग, शोक या कष्ट हो सकता है. ऐसी स्थिति में गरुड़ पुराण (Garuda Puran) में मृतक का अंतिम संस्कार करने के खास तरीके बताए गए हैं, उनका पालन करने से परिवार के बाकी सदस्यों के सिर से संकट टल जाता है.
गलती से भी न करें यह काम
सनातन धर्म में पंचक काल को बहुत अशुभ समय माना गया है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार इन 5 दिनों में कुछ विशेष कार्य करने की भी मनाही की गई है.
- पंचक काल में कभी लकड़ी नहीं खरीदना चाहिए.
- यदि घर का निर्माण करा रहे हों तो पंचक काल में उसकी छत न डलवाएं, वरना परिवार पर बड़ा संकट आ सकता है.
- घर के लिए बेड, चौपाई आदि इस दौरान न खरीदें.
- पंचक काल में दक्षिण दिशा की यात्रा करना भी अशुभ माना गया है.
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कुंडली के ग्रह हमारे जीवन पर असर डालते हैं लेकिन हमारी आदतें भी जिंदगी पर उतना ही असर डालती हैं. यहां तक की हमारी आदतें ग्रहों के शुभ-अशुभ असर को कम या ज्यादा कर सकती हैं. इसलिए ज्योतिष शास्त्र समुद्र शास्त्र आदि में अच्छी आदतें अपनाने के लिए कहा गया है. आज हम जानते हैं कि कैसे चलने का गलत तरीका राहू-शनि जैसे ग्रहों से नकारात्मक फल दिलाता है. इसके अलावा भी कई ऐसी आदतें हैं जिनके कारण व्यक्ति को ग्रहों का अशुभ असर झेलना पड़ता है. लिहाजा जल्द से जल्द इन आदतों को सुधारना ही बेहतर है.
ये आदतें बनती हैं दुर्भाग्य का कारण
- खाने के बाद थाली या बाकी बर्तन वहीं छोड़ देना शनि और चंद्र को प्रभावित करते हैं. ऐसी आदत वाले लोगों को ज्यादा मेहनत करने के बाद भी कम फल मिलता है. वहीं किचन के अस्त-व्यस्त या गंदे रहने से मंगल ग्रह का प्रकोप झेलना पड़ता है.
- गंदा बाथरूम वास्तु दोष बढ़ाता है. वहीं जो लोग नहाने के बाद बाथरूम को गंदा छोड़ देते हैं उन्हें चंद्र अशुभ असर देता है. लिहाजा हमेशा बाथरूम से निकलने से पहले उसे साफ कर दें.
- पैर घसीटकर चलना व्यक्ति की पर्सनालिटी पर तो नकारात्मक असर डालता ही है, यह ज्योतिष के लिहाज से भी गलत है. ऐसा करने से राहु और शनि से अशुभ फल देते हैं.
- यदि घर के मंदिर की रोज सफाई न की जाए तो यह भी वास्तु दोष का कारण बनता है. रोजाना मंदिर की सफाई करने से सभी ग्रह शुभ फल देते हैं.
- बिना कारण के देर रात तक जागने से चंद्र ग्रह अशुभ फल देता है. इसके कारण तनाव या मानसिक समस्याएं होती हैं.
-- - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 353
भूमिका ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने अवतारकाल में आध्यात्म जगत के हर छोटे-बड़े तथा गूढ़ रहस्यों पर प्रकाश डाला है तथा शंकाओं के वैदिक समाधान भी प्रदान किये हैं, जो कि एक आध्यात्मिक जिज्ञासु जीव के लिये अति अनमोल हैं। ऐसे ही एक प्रश्न पर आज उनके द्वारा प्रदान किया गया उत्तर हम जानेंगे, आशा है कि आपको इससे किंचित लाभ तो अवश्य ही होगा...
एक साधक द्वारा पूछा गया प्रश्न :::: अगर मनुष्य सारे जीवन ठीक-ठीक साधना करे और आखिरी कुछ क्षणों में नास्तिक हो जाये, ऐसा कुछ हो उसके साथ तो क्या उसको 84 लाख में भटकना पड़ेगा??
जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: हाँ ! अंतिम समय में जो उसकी स्थिति होगी वही फल मिलेगा। लेकिन पहले जो कर चुका भक्ति-साधना, वह भी उसके पास जमा रहेगी। तो ये जो आगे वाला है उसका फल, पहले भोग लेगा फिर पीछे वाले का फल देगा भगवान्। यानी पहले तो वह संसार में पैदा होगा, दुःखी होगा, नास्तिक होगा और फिर बाद में जब उसका ख़राब प्रारब्ध समाप्त हो जायेगा, भोग करके, तब वह भक्ति का जो उसका पार्ट है, जो जमा है, उसका फल दे दिया जायेगा। बेकार नहीं जायेगा कुछ. बेकार एक क्षण की भी भक्ति नहीं जाती। कर्म बेकार जाते हैं, योग बेकार जाते हैं, ज्ञान बेकार जाते हैं, लेकिन भक्ति बेकार नहीं जाती, वह सब अमिट है। इसने इतना भगवन्नाम लिया, इतनी गुरुसेवा की, ये सब चीजें भगवान् के पास एक-एक क्षण की दर्ज हैं, लिखी हुई हैं. उसका फल उसको मिलेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक (भाग - 1)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
&+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -*(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 352
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 70-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि भगवान श्रीकृष्ण का विशुद्ध माधुर्य स्वरूप ब्रजधाम में प्रगट होता है, ब्रजधाम का यही स्वरूप प्रेम/भक्ति का सर्वश्रेष्ठ रस जीवों को प्रदान करता है....
सबै सरस रस द्वारिका, मथुरा अरु ब्रज माहिँ।मधुर, मधुरतर, मधुरतम, रस ब्रज रस सम नाहिँ॥70॥
भावार्थ - द्वारिका, मथुरा एवं ब्रज इन तीनों का ही रस माधुर्य रस व्याख्या युक्त है। क्योंकि श्रीकृष्ण रस सागर के ही धाम हैं। फिर भी द्वारिका से मथुरा, एवं मथुरा से ब्रजरस अधिक सरस है।
व्याख्या - अनन्त सौंदर्य माधुर्य सुधारस सार सर्वस्व श्रीकृष्ण के 3 धाम प्रमुख हैं। यथा - द्वारिका, मथुरा एवं ब्रज। एक ही गन्ने के गुड़, चीनी एवं मिश्री तीन स्वरूप हैं। तीनों धामों में दास्य, सख्य, वात्सल्य एवं माधुर्य भाव के रसिक हुये हैं। किंतु एक रहस्यात्मक अन्तर अवश्य है। वह यह कि द्वारिका में अधिक ऐश्वर्य एवं कम माधुर्य रहता है। और मथुरा में द्वारिका से अधिक माधुर्य एवं द्वारिका से कम ऐश्वर्य रहता है। इन दोनों धामों में भक्तों को ऐश्वर्य ज्ञान का भान बना रहता है। क्योंकि वहाँ ऐश्वर्य स्वतंत्र है। ऐश्वर्य ज्ञान से प्रेम संकुचित हो जाता है।
यथा - जब अर्जुन को विराट् ऐश्वर्य रूप दिखाया गया, तो अर्जुन सरीखा गांडीवधारी भी डर गया। काँपने लगा। प्रेम संकुचित हो गया। तब अर्जुन ने कहा कि मुझे ऐसा स्वरूप नहीं चाहिये, जिसमें सख्य रस संकुचित हो जाय। इसी प्रकार दास्य एवं वात्सल्य तथा माधुर्य भाव भी ऐश्वर्य मिश्रण से संकुचित हो जाते हैं। यह ऐश्वर्य द्वारिका में सर्वाधिक है। मथुरा में उससे कम है। भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है - गौरांगमहाप्रभु के शब्द;
ऐश्वर्य शिथिल प्रेमे नहे मोर प्रीत।
अर्थात् जो प्रेम, ऐश्वर्य मिश्रण से शिथिल हो जाता है, उसमें मुझे कम सुख मिलता है। वह मुझे कम प्रिय है। अत: द्वारिका एवं मथुरा का प्रेम प्रगाढ़ कम होता है। सारांश यह कि द्वारिका एवं मथुरा के प्रेमियों के प्रेम में इतनी प्रगाढ़ता नहीं होती कि ऐश्वर्य ज्ञान पूर्णरूप से लुप्त हो जाय। प्रेम के प्रवाह में ऐश्वर्यज्ञान के बह जाने पर जो रस मिलता है, वही ब्रजरसिकों का ब्रजरस है। इस ब्रजरस में पूर्ण ऐश्वर्य एवं पूर्ण माधुर्य रहता है किंतु ऐश्वर्य का प्रभाव तिल भर भी नहीं रहता। ऐश्वर्य चोरी चोरी ही सेवा करता है। इस माधुर्य में स्वयं भगवान् कृष्ण स्वयं को ब्रजवासियों का स्वामी, सखा, पुत्र एवं प्रियतम ही मानते हैं। अपनी भगवत्ता का भान ही नहीं रहने देते। इसी प्रकार उनके परिकरों को भी यह भान नहीं रहता कि हम गोलोक के नित्य परिकर हैं। दोनों स्वस्वरूप को भूल जाते हैं। एक बार गोवर्धन धारण के समय कुछ ब्रजवासियों को श्रीकृष्ण के प्रति ऐश्वर्य युक्त होने का संदेह हो गया। बस - श्रीकृष्ण रोने लगे। सखाओं के पूछने पर बताया कि लोग मुझे पता नहीं कैसे घूर-घूर कर देख रहे हैं। सदा वाली ममता नहीं है। फिर सब भूल गये। यह रस मधुरतम इसी से तो है।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या - 70०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - सावन को शिव भक्ति का महीना कहा जाता है. सावन में शिवलिंग पर दूध, दही,पंचामृत, धतूरा और बेलपत्र अर्पित किया जाता है. पंचामृत का मतबल 5 प्रकार के अमृत से है. इसे दूध, दही, घी, शहद और मिश्री मिलाकर बनाया जाता है. आयुर्वेद की मानें तो पंचामृत सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता हैं. पंचामृत के सेवन से सकारात्मकता का भाव पैदा होता है. पूजा विधि में जहां पंचामृत का धार्मिक महत्व है, वहीं आयुर्वेद इसे स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान मानता है. आयुर्वेद के अनुसार पंचामृत के सेवन से कमजोरी दूर होती है, साथ ही शरीर भी तंदुरुस्त बनता है. अगर पंचामृत का नियमित सेवन किया जाए तो शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमताएं बढ़ती हैं और शरीर रोगों से लड़ने के लिए मजबूत बनता है.आइए जानते हैं पंचामृत बनाने का तरीका...पंचामृत बनाने के लिए समग्री:गाय का दूध- 1 ग्लासगाय का दही- 1 ग्लासगाय का घी- 1 चम्मचशहद- 3 चम्मचमिश्री अथवा शक्कर- स्वादानुसारकटे हुए तुलसी के पत्ते- 10कटे हुए मखाने- ड्राई फ्रूट्स - 20ऐसे बनाएं पंचामृत:-पंचामृत बनाने के लिए दही, दूध, एक चम्मच शहद, घी और चीनी की जरूरत होती है.-दही, दूध, घी और चीनी को एक बर्तन में डालकर मथ लें या आप इन्हें मिक्सी में डालकर भी चला सकती हैं.- अब इसमें तुलसी के 8 से 10 पत्ते भी डाल सकते हैं, इसमें कटे हुए मखाने और ड्राई फ्रूट्स भी मिलाया जा सकता है.
- डांस एक ऐसी चीज है जो हर किसी को आसानी से नहीं आती. या तो लोग इसमें अच्छे हैं या नहीं. लेकिन इसमें अच्छी तरह से होने के अलावा, हर कोई अपने दिल से डांस कर सकता है जब वो खुशी व्यक्त करने में प्रसन्न होते हैं.सालसा हो, जैज, समकालीन या बॉलीवुड, विशिष्ट डांस स्टाइल हैं जो हर व्यक्तित्व के अनुकूल हैं. तो नीचे दी गई सूची पर एक नजर डालें कि आपकी राशि के लिए कौन सा डांस फॉर्म सही है.मेष राशिआत्मविश्वासी और दृढ़ निश्चयी, मेष राशि के लोगों के लिए आदर्श नृत्य शैली सालसा है. अपने शरीर को कामुक रूप से करने और स्थानांतरित करने के लिए इसे सहजता और आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है.वृषभ राशिरूंबा एक नृत्य शैली है जो वृषभ राशि को सूट करती है. वृषभ राशि के लोगों में लय की अच्छी समझ होती है और वो संगीत में स्टाइलिश ढंग से ढल सकते हैं.मिथुन राशिमिथुन राशि वाले लोग निडर और साहसी होते हैं और मूर्ख दिखने या हंसी का पात्र बनने की परवाह नहीं करते हैं. बेहिचक मिथुन राशि वालों के लिए बॉलीवुड सबसे बेहतरीन डांस स्टाइल है.कर्क राशिकर्क राशि के जातक कोमल और संवेदनशील होते हैं. समकालीन जैसी अभिव्यंजक और सुंदर नृत्य शैली उनके लिए सबसे उपयुक्त है.सिंह राशिसिंह राशि वाले लोग उग्र और मजबूत होते हैं, इसलिए टैंगो जैसी नृत्य शैली उनके लिए आदर्श होती है क्योंकि इसके लिए मजबूत और बेहतरीन मूवमेंट्स की आवश्यकता होती है.कन्या राशिकन्या राशि अनुग्रह और पूर्णता का एक संयोजन है. वाल्ट्ज नृत्य शैली है जो उनके अनुरूप होगी क्योंकि ये लालित्य और रोमांस का नृत्य है.तुला राशितुला राशि के लोग इसे पुराने जमाने के बावजूद स्टाइलिश रखना पसंद करते हैं. उनके लिए सबसे उपयुक्त नृत्य रूप जैज है क्योंकि इसमें सौंदर्यशास्त्र और शिष्टता शामिल है.वृश्चिक राशिबचाटा एक कामुक नृत्य रूप है जिसमें शरीर पर अच्छे नियंत्रण की आवश्यकता होती है और इसमें जटिल गतिविधियां शामिल होती हैं. वृश्चिक राशि वाले लोग दृढ़ निश्चयी और मेहनती होते हैं और इस तरह के नृत्य की तकनीक को आसानी से समझ सकते हैं.धनु राशिधनु राशि वालों के लिए आदर्श नृत्य शैली बैले है. बैले में तंग लेकिन प्रवाहमयी चालें हैं जो एक धनु राशि वाले जातकों के व्यक्तित्व के अनुकूल हैं.मकर राशिपासा डोबले मकर राशि वालों के लिए सबसे उपयुक्त डांस फॉर्म है क्योंकि इस नृत्य शैली में व्यक्ति को अपने शरीर पर अच्छा नियंत्रण रखने की आवश्यकता होती है और इसके लिए तेज और चुलबुली हरकतों की आवश्यकता होती है.कुंभ राशिकुंभ राशि वाले जातक बहिर्मुखी और बोल्ड होते हैं, उनके लिए एकदम सही नृत्य शैली हिप-हॉप है क्योंकि इसमें बाहर रहने और सभी अवरोधों को दूर करने की आवश्यकता होती है.मीन राशिभावुक और कलात्मक, मीन राशि के लोगों का सबसे उपयुक्त नृत्य रूप टैंगो है जिसमें एक निश्चित भावना की आवश्यकता होती है और ये एक अत्यंत भावुक नृत्य रूप है.
- रायपुर। इस वर्ष 25 जुलाई रविवार से श्रावण मास प्रारंभ हो गया है श्रावण भगवान शिव का प्रिय महीना है। इस महीने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कई विशेष व्रत किए जाते हैं । शीतला सप्तमी, कामिका एकादशी, हरियाली तीज और नाग पंचमी जैसे कई प्रमुख व्रत श्रावण मास में पडऩे वाले हैं।वैसे तो आषाढ़ मास से वर्षा ऋतु की शुरुआत होती है मगर श्रावण महीने में यह अपना दृढ़ रूप दिखाती है। सनातन धर्म में यह उल्लेखित है कि आषाढ़ महीने के बाद श्रावण मास से चातुर्मास प्रारंभ होता है। चातुर्मास में श्रावण महीना अत्यंत लाभदायक माना जाता है और इस माह को भगवान शिव की पूजा-आराधना के लिए बहुत अनुकूल कहा गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार भगवान शिव के प्रिय महीने श्रावण मास में कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं ... देखें कौन से त्योहार कब पड़ रहे हैं।- 27 जुलाई 2021, मंगलवार: - संकष्टी चतुर्थी-30 जुलाई 2021, शुक्रवार: - शीतला सप्तमी-31 जुलाई 2021, शनिवार: - कालाष्टमी, भैरव बाबा-4 अगस्त 2021, बुधवार: - कामिका एकादशी-5 अगस्त 2021, गुरुवार: - कृष्ण प्रदोष व्रत-6 अगस्त 2021, शुक्रवार: - मासिक शिवरात्री-11 अगस्त 2021, बुधवार: - हरियाली तीज-13 अगस्त 2021, शुक्रवार: - नागपंचमी-18 अगस्त 2021, बुधवार: - श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत-20 अगस्त 2021, शुक्रवार: - शुक्ल प्रदोष व्रत-21 अगस्त 2021, शनिवार: - ओणम पर्व-22 अगस्त 2021, रविवार: - रक्षा बंधनआपको बता दें, पश्चिम और दक्षिण भारत में श्रावण मास उत्तर भारत के मुकाबले बाद में पड़ती है। इस वर्ष पश्चिम और दक्षिण भारत में श्रावण मास 9 अगस्त 2021 से प्रारंभ हो रहा है जो 7 सितंबर 2021 को समाप्त होगा।
- शनि के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। शनि की बुरी नजर पड़ने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगने पर शनि का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। इस समय मकर, धनु, कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ की पूजा- अर्चना करने से शनि का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है। आज से भोलेनाथ के पावन माह यानी सावन की शुरुआत भी हो गई है। सावन के पावन माह में भोले शंकर की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में भोलेनाथ पृथ्वी पर ही रहते हैं। शनि के अशुभ प्रभावों में इस समय मकर, कुंभ, धनु, मिथुन, तुला राशि वाले हैं। इन राशि वालों को सावन के महीने में रोजाना नियम से भोलेनाथ को जल अर्पित करना चाहिए। सिर्फ ये राशि वाले ही नहीं सभी लोग भोलेनाथ को जल अर्पित कर सकते हैं। जल अर्पित करने के साथ ही रोजाना मां पार्वती और गणपति महाराज का भी ध्यान करें और भगवान शिव की आरती, चालीसा का पाठ करें।शिव चालीसा॥दोहा॥जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥॥चौपाई॥जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
- हिंदू धर्म में सावन मास का विशेष महत्व है। भगवान शिव को समर्पित सावन का महीना 25 जुलाई, दिन रविवार से शुरू होने जा रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सावन के महीने में भगवान शिव की सच्चे मन से अराधना करने वालों को कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही भगवान शंकर की कृपा से भक्तों के मन की मुरादें भी पूरी होती हैं। सावन मास के सोमवार का भी विशेष महत्व है। इस साल कुल 4 सोमवार सावन महीने में पड़ेंगे। इस साल सावन 22 अगस्त तक रहेगा। जानिए सावन मास में किन विशेष उपायों से जीवन की कई समस्याओं से मुक्ति मिलने की मान्यता है-वैवाहिक जीवन से जुड़ा उपायसावन मास में वैवाहिक जीवन से जुड़ी दिकक्तों को दूर करने के लिए उपाय किए जाते हैं। दांपत्य जीवन में मधुरता व रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए सावन के सोमवार को साफ मिट्टी से शिवलिंग बनाएं। अब इस पर केसर या हल्दी मिश्रित दूध चढ़ाएं। मान्यता है कि ऐसा करने वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है।आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिएमान्यता है कि सावन मास में शिवलिंग पर पूजा के दौरान केसर चढ़ाने से सुख एवं समृद्धि बढ़ती है। जीवन से दरिद्रता चली जाती है।गलत कामों से बचावसावन मास में भोलेनाथ को इत्र चढ़ाने से मन पवित्र एवं शुद्ध होता है। इसके साथ ही गलत काम करने से बचाव होता है।कष्टों से मुक्ति मिलती हैकहा जाता है कि भगवान शंकर को दही अंत्यत प्रिय है। सावन मास में भोलेनाथ को दही चढ़ाने से जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होने की मान्यता है।मनोकामना पूरी होने की मान्यतासावन मास में प्रतिदिन जल्दी उठें। स्नान आदि करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े धारण करें। भगवान शिव को पूजा के दौरान जल में काला तिल डालकर अर्पित करें। कहते हैं कि ऐसा करने से भोलेनाथ की कृपा से मनोकामना पूरी होती है।
- सावन के पावन महीने की शुरुआत 25 जुलाई से हो गई है। 22 अगस्त तक सावन का महीना रहेगा। सावन का महीना भगवान शंकर को समर्पित होता है। इस माह में विधि- विधान से भगवान शंकर की पूजा- अर्चना की जाती है। सावन माह के सोमवार का बहुत अधिक महत्व होता है। भगवान शंकर का दिन सोमवार होता है। कल यानी 26 जुलाई को सावन का पहला सोमवार है। इस दिन भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है।-----आइए जानते हें सावन के पहले सोमवार की पूजा- विधि, महत्व और सामग्री की पूरी लिस्ट...पूजा- विधि-----00 सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ वस्त्र धारण करें।00 घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।00 सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।00 शिवलिंग में गंगा जल और दूध चढ़ाएं।00 भगवान शिव को पुष्प अर्पित करें।00 भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करें।00 भगवान शिव की आरती करें और भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।00 भगवान शिव का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 351
साधक की जिज्ञासा ::: संत जब पृथ्वी और आते हैं तब तो कृपा करते हैं? उनके पास जाने से उनके दर्शन से तो कृपा प्राप्त होगी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: नहीं-नहीं, आने से क्या होता है? आने से कृपा नहीं होती। संत के पास लाखों आते हैं। कृपा तो होगी बर्तन बन जाने पर, अन्तःकरण शुद्धि पर। आने से कृपा नहीं हुआ करती। एक आता है वो जाकर गाली देता है संत को। दूसरा आता है वो बुराई करके चला जाता है। तीसरा आता है वो कहता है हाँ समझदार है। संत मानने वाला कौन है? संत!! जिसके पीछे पीछे भगवान घूमते हैं उनका नाम संत। इतनी बड़ी भावना है किसकी?
इतनी बड़ी भावना हो जाय तो बात नहीं बन जाय! एक संत, बाहर से आये हुये थे, एक वाक्य बोल दे, कोई गन्दा वाक्य, डाँट का वाक्य, फीलिंग। संत के वाक्य को फील कर रहे हो। तुम अपने को क्या समझते हो? जिनकी डाँट को भगवान सहर्ष सुनते हैं, उनकी डाँट को तुम फील करते हो नारकीय जीव? अजी क्या करें व अहंकार है। तो फिर तुम कृपा पात्र कहाँ हुये?
जाने से, सेवा करने से, दिन रात पैर दबाने से - इससे कुछ नहीं मिलेगा। अन्तःकरण को समर्पित करना होगा, बुद्धि को समर्पित करना होगा, मन बुद्धि दोनों को शरणागत करना होगा। अर्जुन से भगवान ने कहा;
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिम् निवेशय।(गीता 12-8)
मन बुद्धि हमको दो, हमारे हाथ में लाओ। तुम्हारे काम बन्द। सारी गीता क्या है? पहले अध्याय में अर्जुन ने बुद्धि लगाया। इनको मारेंगे तो पाप होगा, ये होगा, वो होगा। इसलिये हम युद्ध नहीं करेंगे। बुद्धि लगाया। अठारह अध्याय का लेक्चर दिया भगवान ने। और आखिर में कहा;
मय्यर्पित मनोबुद्धि:।(गीता 12-14)
तू बुद्धि को मेरे शरणागत कर दे। मुझको दे दे। जब दे दिया तो उसने कहा कि महाराज बस हो गया, हो गया। काम बन गया हमारा। पहले ही अर्जुन ने कहा कि हम आपके शिष्य हैं लेकिन बुद्धि लगा रहा है। शिष्य कहाँ? शिष्य का मतलब गुरु की बुद्धि में बुद्धि जोड़ दे। डॉक्टर ने जितना कहा है उतनी दवा खाओ। जो परहेज कहा है वो परहेज करो। शरणागत रहो। अगर तुमने कहा कि डॉक्टर ने तो कहा है तीन बूँद दवा छोड़ देना एक चम्मच पानी में। इतने बड़े शरीर में तीन बूँद का क्या असर होगा अपन तो पूरी शीशी पी लेते हैं। मर गये।
सद्गुरु वैद्य वचन विश्वासा।संजम यह न विषय कै आसा।।
रघुपति भगति सजीवनी मूरी।अनुपान श्रद्धा मति पूरी।।
एहि विधि भलेहि सो रोग नसाहीं।नाहीं त कोटि जतन नहिं जाहीं।।
सारे महापुरुषों का चैलेन्ज है। जब योगी वैरागी ज्ञानी भी नहीं पा सकते तो फिर महापुरुष के पास चले गये हम, बड़ी कृपा किया चले आये हम। आपके ऊपर कृपा हो जाय। अरे हम आये हैं आपके पास, हमने अपनी खोपड़ी आपके पैर पर रखा है तो कृपा करना पड़ेगा आपको? सुना! खोपड़ी रखा है! तो खोपड़ी पर लाओ कृपा कर दें हम। तुम्हारे ऊपर कृपा क्यों?
कृपा करने वाला तो व्याकुल है। देने वाला तो व्याकुल है क्योंकि उसको तो पुरस्कार मिलेगा भगवान के यहाँ। तुमने कितने जीवों को हमारी ओर लगाया? कितने जीवों को आगे बढ़ाया? कितने जीवों को हमसे मिलाया? ये महापुरुष से रिकॉर्ड माँगा जायेगा। जब महापुरुष अधिक प्रसन्न होगा तो वो विशेष कृपापात्र हो जायेगा, भगवान की सेवा का अधिकारी हो जायेगा। तो देने वाले को क्या, उसका कुछ घटना थोड़े ही है। अरे संसारी संपत्ति रुपया हो, वो हमारे पास एक लाख है तो दे देंगे फिर हम क्या करेंगे भई! वो तो घट गया, खतम हो गया। ये भगवत् विषय तो ऐसा है नहीं कि हमने दे दिया तो हमारा चला गया। जैसे ज्ञान दे रहे हैं तो उससे तो हमारा ज्ञान और नया हो रहा है। हमारा भी तो चिन्तन हो रहा है देने से। घट कहाँ रहा है? तो देने वाला क्यों कंजूसी करेगा? कहाँ दे? बर्तन के बिना कहाँ दे?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2017 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - प्यारा घर-सुंदर घर-सपनों का घर,यह है एक परिवार की और घर की परिभाषा, परंतु वास्तु दोष घर में न हो इस बात का ध्यान भी रखना जरूरी है तभी यह परिभाषा आपके लिए सही और सटीक बैठती है।हर वस्तु की दिशा होती है अगर वस्तु सही दिशा में है तो वह शुभ फल प्रदान करती है और गलत दिशा वाली वस्तु आप पर और वास्तु दोष घर के सदस्यों पर प्रभाव डालती हैं। आइए जानते हैं इस वास्तु दोष के बारे में-1- वास्तुशास्त्र में दिशाओं का विशेष महत्व होता है वास्तु शास्त्र के अनुसार पश्चिम -दक्षिण दिशा में दोष होता है तो इसका परिणाम बेहद ही घातक होता है, इस दिशा में दोष होने पर वहां पर रहने वाले व्यक्ति की अकाल मृत्यु होने का की संभावना बढ़ जाती है।2-अगर आपके पश्चिम -दक्षिण दिशा में दरवाजा या बरामदा है या फिर घर के उत्तर- पश्चिम हिस्से में कुआं है तो घर के स्वामी की आत्महत्या करने की संभावना बढ़ जाती है।3-अगर किसी घर का मुख्य दरवाजा पूर्व -दिशा में या फिर पश्चिम- दक्षिण दिशा में एक और दरवाजा है और घर का ईशान कोण खराब अवस्था में है तो वहां के सदस्यों को हार्टअटैक, सड़क दुर्घटना या आत्महत्या से मौत की संभावना बढ़ जाती है।4-जिस घर की चारदीवारी का फाटक पश्चिम में या दक्षिण -पश्चिम दिशा में है ऐसे घर में आत्महत्या करने की आशंका बढ़ जाती है। अगर घर में इस तरह का कोई भी दोष है तो उसे तुरंत ठीक करा लेना चाहिए।(नोट- ये जानकारी केवल वास्तु शास्त्र पर आधारित है। इसकी सच्चाई का हम कोई दावा नहीं करते हैं। )
- हिन्दू धर्म में अप्सराएं सौंदर्य का प्रतीक मानी जाती है और बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अप्सराओं से अधिक सुन्दर रचना और किसी की भी नहीं मानी जाती। पृथ्वी पर जो कोई भी स्त्री अत्यंत सुन्दर होती है उसे भी अप्सरा कह कर उनके सौंदर्य को सम्मान दिया जाता है। कहा जाता है कि देवराज इंद्र ने अप्सराओं का निर्माण किया था। कई अप्सराओं की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा ने भी की थी जिनमे से तिलोत्तमा प्रमुख है। इसके अतिरिक्त कई अप्सराएं महान ऋषिओं की पुत्रियां भी थी। भागवत पुराण के अनुसार अप्सराओं का जन्म महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री मुनि से हुआ था। कामदेव और रति से भी कई अप्सराओं की उत्पत्ति बताई जाती है।अप्सराओं का मुख्य कार्य इंद्र एवं अन्य देवताओं को प्रसन्न रखना था। विशेषकर गंधर्वों और अप्सराओं का सहचर्य बहुत घनिष्ठ माना गया है। गंधर्वों का संगीत और अप्सराओं का नृत्य स्वर्ग की शान मानी जाती है। अप्सराएँ पवित्र और अत्यंत सम्माननीय मानी जाती है। अप्सराओं को देवराज इंद्र यदा-कड़ा महान तपस्वियों की तपस्या भंग करने को भेजते रहते थे। पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जब किसी तपस्वी की तपस्या से घबराकर, कि कहीं वो त्रिदेवों से स्वर्गलोक ही ना मांग लें, देवराज इंद्र ने कई अप्सराओं को पृथ्वी पर उनकी तपस्या भंग करने को भेजा।अप्सराओं को उपदेवियों की श्रेणी का माना जाता है। वे मनचाहा रूप बदल सकती हैं और वरदान एवं श्राप देने में भी सक्षम मानी जाती है। कई अप्सराओं ने अनेक असुरों और दैत्यों के नाश में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। पुराणों में कुल 1008 अप्सराओं का वर्णन है जिनमे से 108 प्रमुख अप्सराओं की उत्पत्ति देवराज इंद्र ने की थी। उन 108 अप्सराओं में भी 11 अप्सराओं को प्रमुख माना जाता है। उन 11 अप्सराओं में भी 4 अप्सराओं का सौंदर्य अद्वितीय माना गया है। ये हैं - रम्भा, उर्वशी, मेनका और तिलोत्तमा। रम्भा सभी अप्सराओं की प्रधान और रानी है। कई अप्सराएं ऐसी भी हैं जिन्हे पृथ्वीलोक पर रहने का श्राप मिला था जैसे बालि की पत्नी तारा, दैत्यराज शम्बर की पत्नी माया और हनुमान की माता अंजना।अप्सराएं दो प्रकार की मानी गयी हैं:दैविक: ऐसी अप्सराएं जो स्वर्ग में निवास करती हैं। रम्भा सहित मुख्य 11 अप्सराओं को दैविक अप्सरा कहा जाता है।लौकिक: ऐसी अप्सराएं जो पृथ्वी पर निवास करती हैं। जैसे तारा, माया, अंजना इत्यादि। इनकी कुल संख्या 34 बताई गयी है।अप्सराओँ को सौभाग्य का प्रतीक भी माना गया है। कहते हैं अप्सराओं का कौमार्य कभी भंग नहीं होता और वो सदैव कुमारी ही बनी रहती है। समागम के बाद अप्सराओं को उनका कौमार्य वापस प्राप्त हो जाता है। उनका सौंदर्य कभी क्षीण नहीं होता और ना ही वे कभी बूढी होती हैं। उनकी आयु भी बहुत अधिक होती है। मार्कण्डेय ऋषि के साथ वार्तालाप करते हुए उर्वशी कहती है - हे महर्षि! मेरे सामने कितने इंद्र आये और कितने इंद्र गए किन्तु मैं वही की वही हूँ। जब तक 14 इंद्र मेरे समक्ष इन्द्रपद को नहीं भोग लेते मेरी मृत्यु नहीं होगी।भारतवर्ष का सर्वाधिक प्रतापी पुरुवंश स्वयं अप्सरा उर्वशी की देन है। उनके पूर्वज पुरुरवा ने उर्वशी से विवाह किया जिससे आगे पुरुवंश चला जिसमें ययाति, पुरु, यदु, दुष्यंत, भरत, कुरु, हस्ती, शांतनु, भीष्म और श्रीकृष्ण पांडव जैसे महान राजाओं और योद्धाओं ने जन्म लिया। उन्हीं के दूसरे वंशबेल में इक्षवाकु कुल में भगवान श्रीराम ने जन्म लिया। अन्य संस्कृतियों में जैसे ग्रीक धर्म में भी अप्सराओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त कई देशों जिनमे से इंडोनेशिया, कम्बोडिया, चीन और जावा में अप्सराओं का बहुत प्रभाव है।
- Happy Guru Purnima 2021आप सभी को 'श्री गुरु पूर्णिमा' महापर्व की अनंत अनंत शुभकामनायें!!
श्री गुरु चरणों में गोविन्द राधे,पूर्ण प्रपत्ति गुरु पूर्णिमा बता दे..(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
आज 'गुरु-पूर्णिमा' का महानतम पर्व है। सभी पर्वों में यह महापर्व है। 'गुरु' का स्थान सर्वोच्च है। अतएव शरणागत जीव/साधक के लिये यह निश्चय ही सबसे बड़ा पर्व है। अपने गुरुदेव की कृपाओं का, प्रेम का, अपनत्व का स्मरण करके बारम्बार बलिहार जाने और उनके सिद्धान्तों का भी मनन करते हुये अपनी स्थिति का आकलन करते हुये अपने उत्थान के लिये और अधिक दृढ़ संकल्पित होकर उन सिद्धान्तों के अनुकूल चलने हेतु प्रतिबद्ध होने का महान अवसर है।
भारतवर्ष में यद्यपि अनंतानंत महापुरुष अवतरित हुये हैं। वर्ष 1922 की शरद-पूर्णिमा की शुभरात्रि में इलाहाबाद के निकट मनगढ़ नामक ग्राम में माता भगवती की गोद में एक अलौकिक महापुरुष का प्राकट्य हुआ, जिन्हें आज समस्त विश्व 'जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज' के रूप में पहचानता है। आज कौन उनकी विद्वत्ता, उनकी राधाकृष्ण के परम माधुर्य महाभाव भक्तिरस में छकी रूप माधुरी, उनकी कृपाओं और न जाने कितने ही गुणों से परिचित नहीं है। उन्होंने अपने अगाध ज्ञानसमुद्र से इस विश्व में अद्वितीय आध्यात्मिक क्रान्ति लाई और हमारे अज्ञान अंधकार को दूर कर भगवान के परमोज्जवल प्रेम और सेवा का मार्ग दिखलाया है।
'जो अज्ञान का नाश करके ज्ञान का प्रकाश कर दे'वही गुरु है, महापुरुष है!! स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा यह घोषणा की गई है कि गुरु स्वयं भगवान का ही स्वरूप है।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी ने समस्त शास्त्र-वेदों के वास्तविक रहस्यों को हम अबोध जनों के समक्ष सरलतम रूप में रखा और भगवत्तत्व से लेकर गुरुतत्त्व का भी विशद वर्णन किया, स्वयं भक्ति का आचरण करके आदर्श रखा, अनंत उपायों द्वारा जीवों से भक्ति कराई!! आओ श्रद्धापूर्ण हृदय से उनके महान व्यक्तित्व का दर्शन करें और अपने श्रद्धासुमन मानसिक रूप से उनके श्रीचरणों में अर्पित करें...
हे भगवती-नंदन जगदगुरुत्तम, हे कृपालु महाप्रभु !! आपका किन-किन वाणियों में हम वंदन करें, हमारे भावहीन वंदनाओं को भी अपनी कृपालुता से अपनाकर हम पर अनुग्रह कीजिये..
★ >> ब्रजभक्ति के मुक्तहस्त दाता !!
कलिमल ग्रसित जीवों को अपनी करुणा से श्री राधाकृष्ण की सर्वोच्च माधुर्यमयी ब्रजभक्ति का सिद्धांत प्रदान करने वाले, और उन्हीं रास-रासेश्वर श्रीकृष्ण एवं रास-रासेश्वरी श्रीराधारानी के ही मिलित मूर्तिमान प्रेमस्वरुप हे रसिकशिरोमणि श्री कृपालु महाप्रभु !! आपको कोटि-कोटि प्रणाम...
★ >> धाम एवं परिजनों की धन्यता
भारतवर्ष के उत्तर-प्रदेश प्रान्त के इलाहाबाद (प्रयागराज) निकट 'मनगढ़' ग्राम में शरद-पूर्णिमा (1922) की मध्यरात्रि में जिनका प्राकट्य हुआ, माँ भगवती की गोद में प्रकटे उन श्री कृपालु महाप्रभु को, जिन्होंने अपनी जन्म एवं लीलास्थली को विश्व भर में 'भक्तिधाम' के नाम से विख्यात किया, जिनकी तीनों सुपुत्रियाँ आज विश्वभर में 'गुरुभक्ति' एवं 'गुरुसेवा' की अद्वितीय आदर्श हैं, उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम...
★ >> ऐतिहासिक उपाधियों से विभूषित
समस्त विश्व जिनकी दिव्यता के समक्ष नतमस्तक है, और इसी अनुपमेयता के फलस्वरुप जिन्हें भारतवर्ष की सर्वोच्च 500 विद्वानों की सभा 'काशी विद्वत परिषत' द्वारा 'पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम' की उपाधि के साथ ही,- श्रीमत्पदवाक्यप्रमाणपारावारीण- वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य- निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य- सनातनवैदिकधर्मप्रतिष्ठापनसत्सम्प्रदायपरमाचार्य- भक्तियोगरसावतारआदि ऐतिहासिक उपाधियाँ प्राप्त हुई, ऐसे अद्वितीय अलौकिक विभूति श्री कृपालु महाप्रभु !! कोटि कोटि वन्दन...
★ >> भक्ति-स्मारकों के प्राकट्य-कर्ता
भारतवर्ष में जिन्होंने 'प्रेम मंदिर' (वृन्दावन) एवं 'भक्ति मंदिर' (भक्तिधाम मनगढ़) जैसे 2 विलक्षण, अद्भुत और सुंदरतम मंदिरों को प्रकट किया, जिनकी दिव्य मार्गदर्शिता से ही विश्व का सर्वप्रथम 'कीर्ति मैया मंदिर' (श्री राधारानी की माता कीर्ति का मंदिर, बरसाना) बरसाना धाम में प्रगट हुआ, साथ ही 'प्रेम भवन' (वृन्दावन) एवं 'भक्ति भवन' (मनगढ़) जैसे विशालतम साधना भवनों को प्रकट करने वाले भक्ति के मूर्तिमान स्वरुप, श्री कृपालु महाप्रभु !! आपको कोटि कोटि प्रणाम..
★ >> ब्रजभक्ति सिद्धांत एवं साहित्यों के प्रकटकर्ता
भक्ति के गूढ़तम रहस्यों को जिन्होंने वेद, शास्त्र, पुराण एवं नाना धर्मग्रंथों के प्रमाणों से कलिमल ग्रसित अबोध जीवों के समक्ष सरस एवं सरल रुप में प्रकट करने वाले, ब्रजभक्ति की उपासना एवं साधना के लिए जिन्होंने 'प्रेम रस मदिरा', 'राधा गोविन्द गीत', 'श्यामा श्याम गीत', 'भक्ति शतक', 'ब्रज रस माधुरी', 'युगल शतक', 'युगल रस', 'श्री कृष्ण द्वादशी' एवं 'श्री राधा त्रयोदशी' आदि संकीर्तन ग्रंथों में मधुर्यभावयुक्त अनंत कीर्तनों, दोहों एवं पदों की सुरचना की, ऐसे रसिकवर श्री कृपालु महाप्रभु !! आपकी कोटि कोटि समर्चना..
★ >> शरणागत की संभाल करने वाले
अपने शरणागत जीव के कल्याण के प्रति जो सदैव चिंतनशील रहा करते हैं, जिन्होंने अपना रोम रोम जीव के उद्धार के प्रति ही समर्पित किया और जिन्होंने स्वयं साधना एवं भक्ति करके जीवों को सोदाहरण साधना की दिशा एवं शिक्षा दी, शरणागत की रक्षा, उनकी नित्य सहायता एवं नित्य संग रहने वाले हे करुणाकर श्री कृपालु महाप्रभु !! आपकी धन्यता को कोटि कोटि प्रणाम..
★ >> सदैव ही जीव-कल्याण हेतु समर्पित
समाज के व्याप्त अनंत अंधविश्वासों, कुरीतियों एवं आध्यात्म के अनेक विकृत स्वरुप को सुधारकर वास्तविक कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करने वाले, जिन्होंने ना केवल आध्यात्म ही, बल्कि लोगों की शारीरिक सेवार्थ अनेक उपक्रम प्रारम्भ किये, ब्रजसाधुओं की सेवार्थ निःशुल्क चिकित्सालयों, बालिकाओं के लिए निःशुल्क विद्यालयों एवं कॉलेज की स्थापना तथा विधवाओं एवं अन्य जरूरतमंदों की सेवार्थ निरंतर प्रत्यनशील रहने वाले हे दीनवत्सल श्री कृपालु महाप्रभु !! आपको कोटि कोटि प्रणाम..
★ >> जो सदैव विद्यमान हैं, रहेंगे..
जो सदैव विद्यमान हैं, भले ही प्राकृत चक्षुओं से अलक्षित हों, जिनकी उपस्थिति का उनके शरणागतों को सदैव ही भान रहा करता है, जिनके विलक्षण सिद्धांत युगों-युगों तक अकाट्य रहेंगे और कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगे, ऐसी विलक्षण विभूति श्री कृपालु महाप्रभु !! आपको कोटि कोटि प्रणाम..
★ >> जिनके लिए समस्त विश्व अपना है..
जो 'जगदगुरुत्तम' होकर भी समस्त विश्व के लिए इतने सरल हैं कि विश्व सहज ही उन पर मुग्ध हो जाया करता है और यह अनुभव करता है कि 'ये तो अपने ही हैं', जिन्होंने बगैर जात-पात, ऊँच-नीच, देश-सम्प्रदाय आदि भेदभाव किये बिना समस्त विश्व को एक मानकर सबको अपनापन दिया, ऐसे दिव्य विभूति श्री कृपालु महाप्रभु !! आपके श्रीचरणों में कोटि कोटि प्रणाम..
★ >> जिनके उपकार अनंत ही अनंत हैं..
'गुरु महिमा अपरंपार' है, अतः किन-किन शब्दों और भावों से कौन उनकी महिमा को पूरा बखान सकता है, अनंत भी अनंत की बूंद की भाँति रहेगा. उनके उपकार अनंत, लीला अनंत, कृपालुता अनंत, सब कुछ अनंत !!!! अनंत हृदयों से आपके इन्हीं अनंत कृपालुताओं के प्रति अनंत श्रद्धा एवं कृतज्ञता !!
हमारे अपराध क्षमा करना.. कलिकाल मायाग्रस्त इस हृदय की मलिनता को दूर करना, सांसारिक पदार्थों की चाह नहीं है, हृदयों में राधाकृष्ण के प्रेम की प्यास और उनकी सेवा की अभिलाषा लेकर आपके सन्मुख, आपके चरणों में आये हैं, यही 'ब्रज-प्रेम', यही 'गोपी-प्रेम' दान के लिए ही आपका अवतरण हुआ, अतः हे परम 'कृपालु' महाप्रभु !!! कृपा की एक दृष्टि हमारी ओर भी कीजिये, 'प्रेम एवं सेवा की व्याकुलता' दान कीजिये..
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia (Youtube)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 349
(भूमिका - 24 जुलाई को 'गुरु-पूर्णिमा' का महान पर्व है। गुरु और उनके शरणागत के अटूट, अनन्य और प्रगाढ़तम संबंध का यह अत्यंत विशेष पर्व है। गुरुमहिमा सबसे ऊँची कही गई है, अतः 'गुरु-पूर्णिमा' का पर्व भी सभी पर्वों में सर्वोत्कृष्ट स्थान रखता है। भगवत्प्राप्ति के लिये पहली कड़ी 'गुरुतत्त्व' को समझना है। इसी कड़ी में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत 'गुरु-भक्ति की अनिवार्यता' पर प्रकाश डालता हुआ यह महत्वपूर्ण प्रवचन प्रकाशित किया जा रहा है। इस आशा के साथ कि आप सभी अपने आध्यात्मिक पथ के लिये एक रौशनी प्राप्त कर सकेंगे...).....विश्व का प्रत्येक जीव एकमात्र नित्यानंद ही चाहता है और उसी नित्यानंद के हेतु अनादिकाल से प्रतिक्षण प्रयत्नशील भी है। किन्तु, अनंतानंत जन्मों के प्रयत्नों के पश्चात भी अद्यावधि आनंद का लवलेश भी नहीं प्राप्त हो सका, ऐसा क्यों? इसका सीधा सा उत्तर यह है कि हम लोगों ने अनधिकार चेष्टा की। अनधिकार चेष्टा यह, कि हमने डायरेक्ट भगवान की उपासना की। अहंकार के कारण हमने किसी महापुरुष की शरणागति स्वीकार नहीं की। देहाभिमान के कारण हमने कभी भी किसी महापुरुष को गुरु मानकर शरणागति स्वीकार नहीं की। और सिद्धान्त यह है कि;आचार्यवान् पुरुषो हि वेद।(छान्दोग्योपनिषद 6-14-2)
तदविज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्।(मुण्डकोपनिषद 1-2-12)अर्थात उस परात्पर ब्रह्म श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिये आपको किसी वास्तविक महापुरुष की शरणागति स्वीकार करनी होगी, ये प्रथम सोपान है, पहली सीढ़ी है।वेदव्यास ने सैकड़ों स्थानों पर, अपितु सैकड़ों नहीं हजारों मन्त्रों में, श्लोकों में इस बात को कोट किया है कि देखो, भगवान को पाने के लिये कुछ भी करो, योग करो, यज्ञ करो, दान करो, व्रत करो, तपश्चर्या करो, अनुष्ठान करो, कीर्तन करो, भजन करो, कुछ भी करो। लेकिन;
महत्पाद रजोभिषेकम्।(भागवत 5-12-12)बिना महापुरुष की शरणागति के और बिना महापुरुष की कृपा के भगवत्प्राप्ति असंभव है।भयं द्वितीयाभिनिवेशितः स्यादीशादपेतस्य विपर्ययोस्मृतिः।तन्माययातो बुध आभजेत्तं, भक्तयैकयेशं गुरुदेवतात्मा।।(भागवत 11-2-37)गुरु को अपना इष्टदेव, अपनी आत्मा, जैसे शरीर की आत्मा 'मैं', ऐसे 'मैं' की आत्मा गुरु अर्थात आत्मा से भी आराध्य ऐसा मानकर जो उपासना करेगा, उसी को भगवत्प्राप्ति हो सकती है। अन्यथा;बहु जन्म करे यदि श्रवण कीर्तन,तभू न पाये कृष्ण पदे प्रेम धन।(गौरांग महाप्रभु)अनंत जन्म भी कोई नवधा-भक्ति करे अथवा सहस्त्रधा भक्ति करे, भगवत्प्राप्ति नहीं हो सकती।सो बिनु संत ना काहूहिं पायी।
किसी को नहीं मिली,
मिलई जो संत होई अनुकूला।यह भगवान का एक अकाट्य लॉ है, कानून है, कि मैं डायरेक्ट संबंध नहीं रख सकता। गुरु को ही मैनें सब पॉवर दी है। वही आपको साधना करायेगा, वही योगक्षेम वहन करेगा, वही अन्तःकरण शुध्दि होने पर दिव्य प्रेमदान देगा। सब कुछ वही करेगा। वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में भगवान और महापुरुष को समान माना गया है;यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ।तस्यैते कथिता ह्यर्था: प्रकाशन्ते महात्मनः।।(श्वेताश्वतरोपनिषद 6-23)वेद कहता है, जैसी भक्ति आपकी श्रीकृष्ण के प्रति हो, वैसी ही भक्ति सेंट परसेन्ट गुरु के प्रति हो, तब भगवत्प्राप्ति होगी। भक्ति के सबसे बड़े आचार्य हैं भगवान के अवतार नारद जी, इन्होंने कहा कि 'तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्', भगवान और गुरु में कुछ भी भेद नहीं है। दोनों एक हैं। यहाँ तक कि भागवत में तो श्रीकृष्ण ने यहाँ तक कहा है कि;आचार्यं मां विजानीयान्नावमन्येत कर्हीचित।न मर्त्यबुद्ध्यासूयेत सर्वदेवमयो गुरुः।।(भागवत 11-17-27)तुम आचार्य को, गुरु को, गुरु ही मत मानो, उसको मुझे मानो अर्थात मैं ही हूँ तुम्हारे गुरु के रूप में। कोई अंतर नहीं। अर्थात समस्त शास्त्रों वेदों ने भगवान और महापुरुष को समान माना है। किन्तु हमारे स्वार्थ की दृष्टि से गुरु का स्थान ऊँचा है।आराधनानां सर्वेषां विष्णोराराधनं परम।तस्मातपरतरं देवि! तदीयानां समर्चनम्।।(पद्म पुराण)वेदव्यास कहते हैं कि जितनी आराधनाएँ हैं, उपासनाएँ हैं, तामसी, उससे ऊँची राजसी, उससे ऊँची सात्विकी देवताओं की भक्ति, उससे ऊँची ब्रह्म की भक्ति, उससे ऊँची परमात्मा की भक्ति, परमात्मा की भक्ति से ऊँची भगवान की और उनके अवतारों की भक्ति और सबसे ऊँची भक्ति श्रीराधाकृष्ण की, लेकिन श्रीराधाकृष्ण की भक्ति से भी ऊँची है - उनके भक्तों की भक्ति।त्वद् भृत्य भृत्य परिचारक भृत्य भृत्य,भृत्यस्य भृत्य इतिमांस्मर लोकनाथ।(पद्म पुराण)भगवान के भक्तों की भक्ति से भगवान जितनी शीघ्रता से संतुष्ट होते हैं, अपनी भक्ति से नहीं।मद्भक्तस्य ये भक्तास्ते मे भक्ततमा मताः।(वेदव्यास)हजारों स्थान पर वेदव्यास ने दुंदुभि घोष से कहा है, कि मेरे भक्त की उपासना से ही मैं शीघ्र प्रसन्न होता हूँ। तो या तो श्रीकृष्ण प्लस गुरु दोनों की साथ साथ एक समान भक्ति की जाय, या केवल गुरु की ही भक्ति कर ली जाय तो भी वही फल मिलेगा। लेकिन डायरेक्ट केवल भगवान की भक्ति से कुछ नहीं मिलेगा। और वह भक्ति कर भी नहीं सकता कोई। भक्ति की परिभाषा भी नहीं जान सकता अपनी बुद्धि से, भक्ति क्या करेगा? तो हमारे स्वार्थ के दृष्टिकोण से गुरु का स्थान ऊँचा है क्योंकि गुरु ने ही हमको तत्वज्ञान भी कराया, साधना भी कराई, और जो बाधाएँ बीच बीच में आईं उनका समाधान भी किया, हमारे संस्कारों से भी लड़ा, और फिर अन्तःकरण की शुद्धि होने पर वह दिव्य प्रेमदान भी गुरु ने ही किया। तो सारा परिश्रम तो गुरु ने ही किया, फिर हम भगवान का एहसान क्यों मानें। भगवान तो बने बने के साथी हैं।तेषां नित्यभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहं।(गीता 9-22)भगवान कहते हैं जब तुम ठीक ठीक बन जाओगे, ठीक ठीक सैंट परसैन्ट, नित्य अभियुक्त, कम्प्लीट सरेंडर। तो फिर मैं तुम्हारा बन जाऊँगा। यह कौन सा कमाल है?निर्मल मन जन सो मोहिं पावा।अब निर्मल कैसे बने जी? अनंत कोटि जन्मों का मल हमारे अन्तःकरण में प्लस है और आप कहते हैं कि मुझे निर्मल चाहिये। ये निर्मल बनाने का काम आपका गुरु करेगा। यानी छोटे बच्चे का पाखाना, पेशाब माँ साफ करे। गंदगी सब साफ करे महापुरुष और जब बिल्कुल ठीक ठाक हो जाय, तो भगवान कहते हैं, मैं आ रहा हूँ। जैसे संसार में कोई बाप अपनी लड़की को पालता है, पोसता है, बड़ा करता है, पढ़ाता है, लिखाता है, गुणवती कलावती बनाता है। तो जब अठारह साल, बीस साल की हो गई तो एक लड़का आया, उसने इंटरव्यू लिया और पास कर दिया, ब्याह किया और ले भागा। ऐसे ही भगवान हैं। इसलिये भक्त लोग कहते हैं, हमारा सारा काम तो गुरु ने किया, इसलिए गुरु भक्ति से ही हमारा काम बनेगा।०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - 20 जुलाई को मंगल कर्क राशि से निकलकर सिंह में आ गया है जो और 4 सितंबर तक रहेगा। इसका शुभ-अशुभ असर सभी राशियों पर रहेगा। मंगल का प्रभाव युद्ध, भूमि, साहस, पराक्रम और बिजनेस पर भी होता है। साथ ही ये ग्रह वैवाहिक जीवन, भौतिक सुख-सुविधाओं और सफलता को भी प्रभावित करता है। मंगल का राशि परिवर्तन मिथुन, तुला और मीन राशि वालों के लिए शुभ रहेगा। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र के मुताबिक 12 राशियों पर मंगल का असर----------मिथुन, तुला और मीन के लिए अच्छा समयमंगल के राशि परिवर्तन से मिथुन, तुला और मीन राशि वालों के लिए अच्छा समय रहेगा। इन राशियों के लोगों को जॉब और बिजनेस में तरक्की के मौके मिल सकते हैं। कई मामलों में किस्मत का साथ मिलेगा। आर्थिक स्थिति में सुधार के योग हैं। सेहत के मामलों में भी समय अच्छा रहेगा। मंगल के प्रभाव से पुरानी परेशानियां और विवाद खत्म हो सकते हैं।कुंभ सहित 7 राशियों के लिए अशुभ समयमंगल के सिंह राशि में आ जाने से मेष, वृष, मिथुन, सिंह, कन्या, धनु और कुंभ राशि वाले लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इन 7 राशि वाले लोगों को जॉब और बिजनेस में संभलकर रहना होगा। तनाव और विवाद की स्थितियां बन सकती हैं। कामकाज में रुकावटें आ सकती हैं। धन हानि और सेहत संबंधी परेशानियां भी हो सकती हैं। कर्जा न लें। कामकाज में लापरवाही और जल्दबाजी करने से भी बचना चाहिए।5 राशियों के लिए मिला-जुला समयमंगल के प्रभाव से मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु और कुंभ राशि वाले लोगों के लिए मिला-जुला समय रहेगा। इन 5 राशि वालों को कुछ मामलों में किस्मत का साथ मिल सकता है। फायदा भी होगा। लेकिन कामकाज में रुकावटें और अनचाहे बदलाव का भी सामना करना पड़ सकता है। सेहत के मामले में उतार-चढ़ाव वाला समय रहेगा।
- आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहते हैं। इस साल आषाढ़ पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई, दिन शनिवार को है। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। उन्होंने मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था और सभी पुराणों की रचना की थी। महर्षि वेदव्यास के योगदान को देखते हुए आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। आषाढ़ पूर्णिमा का व्रत रखने के साथ ही भक्त भगवान विष्णु की अराधना करते हैं और सत्यनारायण कथा का पाठ या श्रवण करते हैं।आषाढ़ पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा शुभ मुहूर्त-हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा 23 जुलाई (शुक्रवार) को सुबह 10 बजकर 43 मिनट से शुरू होगी, जो कि 24 जुलाई की सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि में पूर्णिमा मनाए जाने के कारण यह 24 जुलाई, शनिवार को मनाई जाएगी।आषाढ़ पूर्णिमा पर सर्वार्थ सिद्धि योग-गुरु पूर्णिमा या आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सर्वार्थ सिद्धि और प्रीति योग का शुभ संयोग बन रहा है। 24 जुलाई को सुबह 6 बजकर 12 मिनट से प्रीति योग लगेगा, जो कि 25 जुलाई की सुबह 03 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। इस दिन दोपहर 12 बजकर 40 मिनट से अगले दिन 25 जुलाई को सुबह 05 बजकर 39 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। ये दोनों योग शुभ कार्यों की सिद्धि के लिए उत्तम माने जाते हैं।आषाढ़ पूर्णिमा पर चंद्रोदय-आषाढ़ पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय शाम 07 बजकर 51 मिनट पर होगा।राहुकाल का समय-आषाढ़ या गुरु पूर्णिमा के दिन राहुकाल सुबह 09 बजकर 03 मिनट से सुबह 10 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। इस दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है।
- कुछ दिनों के बाद सावन का महीना आरंभ होने जा रहा है। हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इस वर्ष सावन का महीना 25 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। दरअसल देवशयनी एकादशी तिथि पर संसार के पालनकर्ता भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और भगवान शंकर सृष्टि के संचालन का भार अपने कंधों पर ले लेते हैं। शिव भक्तों के लिए सावन का महीना बहुत ही पवित्र और शिव की आराधना के लिए शुभ माना गया है। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में सोमवार को व्रत रखने और भगवान शंकर की पूजा करने वाले जातक को मनवांछित जीवनसाथी प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। विवाहित औरतें यदि श्रावण महीने का सोमवार व्रत रखती हैं तो उन्हें भगवान शंकर सौभाग्य का वरदान देते हैं। सावन के महीने में शिवलिंग पर जल अभिषेक करने से कई गुणा फायदा मिलता है। सावन के महीने में व्रत, उपासना और नियमों का पालन विशेष रूप से किया जाता है। सावन के महीने में भूलकर भी कुछ काम नहीं करना चाहिए।00 सावन के पवित्र महीने में खाने-पीने की चीजों में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। पवित्र महीने में मांस-मछली खाने से परहेज करना चाहिए। इसके अलावा खाने में लहसुन-प्याज का भी प्रयोग करना भी वर्जित होता है। सावन में सादा भोजन करना चाहिए।00 सावन में हरी पत्तेदार सब्जियों का त्याग करना अच्छा माना जाता है क्योंकि सावन में हरी सब्जियों में पित्त बढ़ाने वाले तत्व की मात्रा बढ़ जाती है। इसके अलावा सावन के महीने में कीट-पतंगों की संख्या बढ़ जाती है जो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं।00 कभी भी शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ानी चाहिए। शिवलिंग पुरुष तत्व से संबंधित है।सावन के महीनों में दूध का सेवन कम करना चाहिए। यही बात बताने के लिए सावन में शिव जी का दूध से अभिषेक करने की परंपरा शुरू हुई। वैज्ञानिक मत के अनुसार इन दिनों दूध पित्त बढ़ाने का काम करता है।00 सावन में बैंगन खाना अच्छा नहीं माना गया है। बैंगन को शास्त्रों में अशुद्ध कहा गया है। वैज्ञानिक कारण के नजरिए से देखें तो सावन में बैंगन में कीड़े अधिक लगते हैं। ऐसे में बैंगन का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
- सावन माह प्रारंभ होने जा रहा है और यह महीना भगवान शिव को प्रिय होता है। इस महीने भगवान शिव की आराधना विधि-विधान से की जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास 25 जुलाई से शुरू होगा। मान्यता के अनुसार, इस महीने भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक और विधि-विधान से पूजा करने से जातकों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पूजा में शिवजी की प्रिय चीजें अर्पित की जाती हैं और इन्हीं में से बेलपत्र शामिल है। बेल पत्र भोलेनाथ को प्रिय है। बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में 'स्कंदपुराण' में एक कथा है कि एक बार देवी पार्वती ने अपने ललाट से पसीना पोंछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष की उत्पत्ति हुई। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी का वास माना गया है। कहते हैं इसी कारण शिवजी को बेलपत्र प्रिय है। लेकिन जटाधारी को बेलपत्र अर्पित करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है।00 भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करते समय सबसे पहले बेलपत्र की दिशा का ध्यान रखना जरूरी होता है। भगवान शिव को हमेशा उल्टा बेलपत्र यानी चिकनी सतह की तरफ वाला भाग स्पर्श कराते हुए ही बेलपत्र चढ़ाएं।00 जब आप भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाते हैं तो बेलपत्र को हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं। शिव जी को बिल्वपत्र अर्पण करने के साथ-साथ जल की धारा जरूर चढ़ाएं।00 बेलपत्र की तीन पत्तियों वाला गुच्छा भगवान शिव को चढ़ाया जाता है और माना जाता है कि इसके मूलभाग में सभी तीर्थों का वास होता है। बेलपत्र की तीन पत्तियां ही भगवान शिव को चढ़ती है। कटी-फटी पत्तियां कभी न चढ़ाएं।00 कुछ तिथियों को बेलपत्र तोड़ना वर्जित होता है। जैसे कि चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या को, संक्रांति के समय और सोमवार को बेल पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। ऐसे में पूजा से एक दिन पूर्व ही बेल पत्र तोड़कर रख लिया जाता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 348
भूमिका - हमारे देश में बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है, जो शास्त्र वेद का नाम तक नहीं जानते वे लोगों के कान फूँक फूँक कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं और धर्म के नाम पर व्यापार चला रहे हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इन सबके विरुद्ध आवाज उठाई एवं निर्भीकतापूर्वक शास्त्रों के अनुसार वास्तविक गुरु कैसा होना चाहिये, यह समझाकर सही मार्गदर्शन किया। जीवनपर्यन्त उन्होंने किसी का भी कान नहीं फूँका, तब ही उनके बारे में सब बाबा यही कहते थे कि 'न चेला बनाता है, न बनाने देता है'। वे स्वयं भी कहते थे 'न गुरु न चेला, कृपालु फिरे अकेला'। दम्भी बाबाओं के विषय में उनके प्रवचन का अंश प्रस्तुत किया जा रहा है....
★ नोट - कल, 21 जुलाई को इस प्रवचन का पहला भाग प्रकाशित किया गया था। कल की अंतिम पंक्ति से आगे का प्रवचन, अर्थात भाग - 2 आज प्रकाशित किया जा रहा है। सभी सुधी पाठकगणों से निवेदन है कि कृपया सम्पूर्ण लाभ हेतु प्रवचन के दोनों भाग अवश्य पढ़ें, धन्यवाद!!
.....जो लोग कान फूँकते हैं, इनसे पूछो पहले कि आप कान में क्या देना चाहते हैं? तो वो कहेंगे - 'मंत्र'। किसका मंत्र? भगवान का। उस मंत्र का क्या मतलब है? हे भगवान! हम आपकी शरण में हैं। हे भगवान! आपको नमस्कार है। ये दो अर्थ वाले सारे मंत्र हैं, जितने सम्प्रदाय हैं। तो क्यों जी, अगर हम हिन्दी में कह दें, अंग्रेजी में कह दें, फारसी में कह दें, हे भगवान! आपको नमस्कार है तो उसको भगवान स्वीकार नहीं करेंगे?
आपमे जो संस्कृत में हमारे कान में मंत्र दिया या देना चाहते हैं, 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय', 'क्लीं कृष्णाय नमः', 'राम रामाय नमः', 'नारायण चरणौ शरणं प्रपद्ये' इत्यादि मंत्र हैं तो ये कान में जो आप देना चाहते हैं उसको हम हिन्दी में बोलें तो भगवान स्वीकार नहीं करेंगे? क्या जो राम-राम, श्याम-श्याम लोग कहते हैं, इस राम नाम से आपका मंत्र अधिक महत्त्व रखता है? वो कहेंगे क्योंकि ये हमारे गुरु-परम्परा से आया है, सिद्ध-मन्त्र है। तो तुम्हारे सिद्ध-मन्त्र में विशेष बात होगी, चमत्कार होगा कुछ? हाँ, बिल्कुल। तो जब तुम कान में हमें मन्त्र दोगे तो हमको कोई चमत्कार की फीलिंग होगी, अगर नहीं हुई तो या तो गुरुजी गलत हैं या मन्त्र गलत है। अब गुरुजी कहेंगे, तुम्हारा पात्र खराब होगा तो फीलिंग नहीं होगी, चमत्कार की। तो तुमने ये नहीं सोचा कि अगर पात्र खराब है तो गुरुजी को मन्त्र नहीं देना चाहिये।
आजकल 12 दिन के बच्चे के भी कान फूंक देते हैं ताकि उसे और कोई शिष्य न बना ले। माइक से मन्त्र दे रहे हैं। हजारों लोग चेले हो गये सुन करके। जो शास्त्र-वेद का नाम तक नहीं जानता, वो भी गुरु बन जाता है। शिष्यों की लाइन लगाता है और वेद कहता है,
'श्रोत्रियं ब्रम्हनिष्ठम्'
जो थियोरिटिकल मैन भी हो, प्रैक्टिकल मैन भी हो उसी को गुरु बनाना है। वो चेला नहीं बनायेगा, तुमको गुरु बनाना होगा उसको। वो चेला तब बनायेगा जब तुम्हारा अन्तःकरण सेंट परसेन्ट शुद्ध हो जायेगा। अन्तःकरण से सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण चला जाये। काम, क्रोध, लोभ, मोह चला जाये। भक्ति करते-करते जब अन्तःकरण पूर्णतया शुद्ध हो जायेगा, एक साल, दो साल, एक जन्म, दो जन्म, दस जन्म में तब गुरु देगा, मन्त्र कान में। पहले नहीं देगा। मन्त्र देते ही भगवत्प्राप्ति, मायानिवृत्ति, सब काम खत्म।
जैसे आप अपने घर में पहले सब तारों की फिटिंग कर लेते हैं। पंखें लगा लें, बल्ब लगा लें। अब कहिये, पॉवर हाऊस से कि हमको बिजली दे दो, इलेक्ट्रिसिटी दे दो। सब फिटिंग होने के पश्चात पॉवर हाऊस आपको बिजली देता है। अब आपने घर में कुछ लगाया ही नहीं और आप पॉवर हाऊस से कहते हैं, बिजली दे दो तो पॉवर हाऊस बिजली कहाँ देगा?
दीक्षा से तात्पर्य है - दिव्य प्रेम दान। जब तक अन्तःकरण का बर्तन ही तैयार नहीं होगा तो गुरु कहाँ प्रेम देगा क्योंकि आपका पात्र मायिक है और प्रेम प्राकृत अन्तःकरण में धारण नहीं हो सकता। गौरांग महाप्रभु ने कहा;
दीक्षा पुरश्चर्या विधि अपेक्षा न करे।
भगवान का नाम दीक्षा की अपेक्षा नहीं करता।
नो दीक्षां न च सत्क्रियां न च पुरश्चर्याम् मनागीक्षते।(पद्यावली)
भगवान के नाम में भगवान की शक्ति भरी है। राम राम राम, बस इतना ही काफी है। श्याम श्याम श्याम, राधे राधे राधे - बस। वो संस्कृत, गुजराती, मराठी, बंगाली किसी भाषा में हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अरे, यशोदा मैया ने तो कभी राम राम, श्याम श्याम भी नहीं कहा। 'ऐ कनुआ! इधर आ'। 'कनुआ' - ये कौन से शास्त्र में नाम है, कनुआ। कृष्ण का नाम कनुआ, बलराम का नाम बलुआ। 'ऐ बलुआ, इधर आ'। क, ख, ग, घ हर एक नाम है, भगवान का। वेद कहता है कं ब्रह्म, खं ब्रह्म, अकारो वासुदेवः। 'अ' माने श्रीकृष्ण, 'उ' माने शंकरजी, भगवान के सभी नाम हैं, हर नाम में भगवान की भावना होनी चाहिये, उसका लाभ मिलेगा। मंत्र देते ही यानी दीक्षा देते ही माया का अत्यन्ताभाव हो जायेगा और अनन्त आनन्द मिलेगा। त्रिगुण, त्रिकर्म, त्रिदोष, पंचक्लेश, पंचकोश सबसे सदा को छुट्टी मिल जायेगी।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2016 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मेष, कर्क, सिंह इन 3 राशि की लड़कियां विवाह उपरांत अपने पति के लिए बेहद भाग्यशाली होती हैं। इन राशियों की कन्याओं के गुण और स्वभाव के बारे में आइये जानते हैं-मेष राशि-ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन राशि की लड़कियां शादी के लिए सबसे ठीक होती हैं। इनमें प्यार और गुण कूट- कूट कर भरा होता है तथा दिल से बिल्कुल साफ होती है । यह अपने पति के लिए वफादार और पूरे परिवार को एक साथ संजो कर रखने वाली होती हैं । मेष राशि की लड़कियां जिम्मेदार होती हैं वह जो भी काम अपने ऊपर लेती हैं उसे पूरी जिम्मेदारी के साथ करती है और उस काम को पूर्ण करके ही राहत लेती हैं । इस राशि की लड़कियों को बहुत जल्द गुस्सा आता है हालांकि गुस्सा जल्दी उतर भी जाता है । मेष राशि की लड़कियां किसी भी हालात में अपने परिवार का साथ नहीं छोड़ती हैं।कर्क राशि-ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कर्क राशि इस राशि की लड़कियां बहुत सुंदर और गुणवान होती हैं । कर्क राशि की लड़कियां बेहद जल्दी भावुक हो जाती हैं इनका ह्रदय बेहद नरम होता है और अपने रिश्ते को पूरी वफादारी के साथ निभाती हैं । इनका ह्रदय बहुत निर्मल होता है और अपने अंदर भावनाओं का समुंदर समेटे हुए रहती हैं। यह अपने पति को बेहद प्यार करती हैं और उनके प्यार में अपने आप तक को भुला देती हैं। ये अपने पति के लिए बेहद भाग्यशाली होती हैं।सिंह राशि-ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सिंह राशि की लड़कियां थोड़े गुस्से वाली होती है लेकिन जब आप उनके बारे में जान लेंगे तो अपनी सोच को बदल देंगे। इन लड़कियों के इरादे बेहद मजबूत होते हैं और अपने परिवार पर आने वाली हर मुसीबत का सामना डट कर करती हैं। इस राशि की लड़की के साथ शादी होना लड़के के लिए सौभाग्य की बात होती है।
- जरा सा नमक खाने में स्वाद बढ़ा देता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार नमक घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और घर में सुख समृद्धि को बढ़ाता है। नमक आपकी किस्मत किस प्रकार बना सकता है इसके कुछ उपाय इस प्रकार से हैं-नमक आपकी किस्मत किस प्रकार बना सकता है इस नमक का इस्तेमाल कहां और कैसे किया जाना चाहिए आइए इसके बारे में हम जानते हैं-1- बच्चों को नहलाते वक्त हफ्ते में एक दिन एक चुटकी नमक पानी में मिलाए जिससे बच्चे को नजर नहीं लगेगी और उसका स्वास्थ्य ठीक रहेगा ।2- अगर किसी को नजर लग गई है तो एक चुटकी नमक लेकर 3 बार उसके ऊपर से घुमाकर घर के बाहर फेंक दें इससे उसकी नजर उतर जाएगी ।3-वास्तु शास्त्र के अनुसार रॉक साल्ट लैंप का इस्तेमाल करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का निर्वाह होता है इससे पारिवारिक संबंध सुदृण होते हैं ,धन-धान्य में बढ़ोतरी होती है और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।4-एक शीशी में नमक भरकर शौचालय में रखने से वास्तु शास्त्र दोष दूर होते हैं क्योंकि नमक और शीशा दोनों ही राहु की वस्तु है और राहु के बुरे प्रभाव को दूर करती हैं ।5-अगर आप पर राहु- केतु की दशा चल रही है, मन में बुरे विचार आ रहे हैं तो शीशे के बर्तन में नमक भरकर घर के किसी भी कोने में रख दें जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आपकी समस्याओं का समाधान होगा।6-साबुत नमक लेकर उसे लाल कपड़े में बांध लें और अपने घर के मुख्य द्वार पर बांध दें यह उपाय करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं हो सकता। यह उपाय आप अपने ऑफिस के मुख्य द्वार पर बांधकर भी कर सकते हैं।--
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 347
भूमिका - हमारे देश में बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है, जो शास्त्र वेद का नाम तक नहीं जानते वे लोगों के कान फूँक फूँक कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं और धर्म के नाम पर व्यापार चला रहे हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इन सबके विरुद्ध आवाज उठाई एवं निर्भीकतापूर्वक शास्त्रों के अनुसार वास्तविक गुरु कैसा होना चाहिये, यह समझाकर सही मार्गदर्शन किया। जीवनपर्यन्त उन्होंने किसी का भी कान नहीं फूँका, तब ही उनके बारे में सब बाबा यही कहते थे कि 'न चेला बनाता है, न बनाने देता है'। वे स्वयं भी कहते थे 'न गुरु न चेला, कृपालु फिरे अकेला'। दम्भी बाबाओं के विषय में उनके प्रवचन का अंश प्रस्तुत किया जा रहा है....
★ नोट - यह प्रवचन कुल 2-भागों में प्रकाशित होगा। आज इसका पहला भाग नीचे दिया जा रहा है, शेष प्रवचन अंश कल दूसरे भाग में प्रकाशित होगा। सभी सुधी पाठकगणों से निवेदन है कि सम्पूर्ण लाभ हेतु दोनों भाग गंभीरतापूर्वक अवश्य पठन-मनन करें!!!
"....प्रायः लोग बाहरी व्यवहार एवं वेशभूषा को देखकर किसी के महापुरुष होने का अनुमान लगाते हैं। कुछ लोग इसी बात से ही प्रभावित हो जाते हैं कि अमुक बाबा बड़ा त्यागी है, फलाहारी ही, कोई घोर जंगल में रहता है, कोई जटा रखे है, कोई मौन रहता है, कोई शास्त्रों का ज्ञाता है अतएव महापुरुष है। ऐसा निर्णय कर लेते हैं। जहाँ तक भगवल्लीला-श्रवणादि का संबंध है, उससे सुनने में कोई हानि नहीं है। किन्तु सिद्धान्त सुनना अथवा उसे महापुरुष मानकर शरणागत होना, महान घातक है।
कुछ लोग अखबारी प्रोपेगेंडा अर्थात अमुक महात्मा का बड़ा नाम है, उसे बहुत से लोग जानते हैं, अतएव वह महापुरुष है, ऐसा समझते हैं। वे भी बड़ी भूल करते हैं क्योंकि वास्तविक महापुरुष तो प्रतिष्ठादि प्रपंचों से दूर रहता है।
कुछ लोग भौतिक सिद्धियों आदि के चमत्कार को देखकर आइडिया लगाते हैं जैसे अमुक बाबा कमंडल से राख, बादाम निकाल देता है, रुपया बना देता है अतएव वह सिद्ध महापुरुष है, ऐसा मान लेते हैं। वे भी महान भूल करते हैं क्योंकि उपरोक्त कार्य तामसी व्यक्ति ही लोक-प्रतिष्ठादि के निमित्त करता है, जो कि महापुरुष के सिद्धान्त से त्याज्य है। कुछ लोग गुरु-परम्परा से अर्थात अमुक महापुरुष, हमारे पिता का गुरु था, अतएव उसकी गद्दी पर बैठने वाला व्यक्ति हमारा गुरु होगा, ऐसा करते हुये उसे महापुरुष मान लेते हैं। यह भी बड़ी भूल है क्योंकि परम्परा से यह आवश्यक नहीं है कि सभी उत्तराधिकारी महापुरुष ही हों।
कुछ लोग सांसारिक पदार्थ-धन, प्रतिष्ठादि देने वालों को महापुरुष समझ लेते हैं। यह भी महानतम भूल है क्योंकि महापुरुष सांसारिक पदार्थ नहीं दिया करता। वह जानता है कि सांसारिक पदार्थ, जीव को और भी अधिक उन्मत्त बना देता है। ऐसे ही जीव नशे में है। महापुरुष तो अलौकिक दिव्य अनिर्वचनीय भगवद्विषय ही प्रदान करता है।
कुछ लोग किसी के स्वयं ही बताने पर कि मैंने अमुक पहाड़ पर इतने वर्ष तप किया था एवं वहाँ मुझे भगवत्प्राप्ति हुई थी, मेरी आयु दो सौ वर्ष की है, मैंने कई बार कायाकल्प कर ली है, महापुरुष मान लेते हैं। किन्तु यह भी अत्यन्त ही नासमझी की बात है, क्योंकि महापुरुष अपने आपको, जहाँ तक होता है, छिपाता ही है। वह स्वयं तो परम अन्तरंग अधिकारी को ही अपने महापुरुषत्व का अनुभव कराता है।
फिर, क्या ये कान फूँकने वाला गुरु आवश्यक है? एक प्रश्न पैदा होता है।....." (शेष प्रवचन कल दूसरे भाग में प्रकाशित होगा..)
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2016 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - अदम्य साहसी और पराक्रमी ग्रह पृथ्वी पुत्र मंगल अपनी नीच राशि कर्क की यात्रा समाप्त करके 20 जुलाई की शाम 5 बजकर 52 मिनट पर सूर्य की राशि सिंह में प्रवेश कर रहे हैं। इस राशि पर ये 6 सितंबर की सुबह 3 बजकर 56 मिनट तक भ्रमण करेंगे उसके बाद कन्या राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सिंह राशि पर गोचर करते समय ये अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं क्योंकि, ये इस राशि के लिए सर्वाधिक योग कारक होते हैं इसलिए सिंह राशि के जातकों के लिए तो यह गोचर किसी वरदान से कम नहीं है। जिन जातकों की जन्मकुंडली में मंगल शुभ भाव में गोचर कर रहे होंगे उनके लिए तो ये शुभ संकेत है किंतु जिनके अशुभ भाव में गोचर कर रहे होंगे उन्हें सावधान रहने की आवश्यकता है। मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल कर्क राशि में नीच राशि के तथा मकर राशि में उच्च राशि के माने गए हैं। इनके राशि परिवर्तन का अन्य सभी राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका विश्लेषण करते हैं।मेष राशिराशि से पंचम विद्या भाव में गोचर कर रहे मंगल के शुभ प्रभाव के परिणाम स्वरूप शिक्षा-प्रतियोगिता में अच्छी सफलता प्राप्त होगी। उच्चाधिकारियों से भी सहयोग मिलेगा। विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाएंगे। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। नव दंपत्ति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के योग। अपनी ऊर्जाशक्ति के बल पर कठिन हालात पर भी आसानी से नियंत्रण पा लेंगे। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी।वृषभ राशिराशि से चतुर्थ भाव में गोचर करते हुए मंगल का प्रभाव काफी उतार-चढ़ाव वाला रहेगा। किसी कारण से मानसिक अशांति एवं पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ेगा। मित्रों तथा संबंधियों से अप्रिय समाचार प्राप्ति के योग। जमीन जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। झगड़े विवाद तथा कोर्ट कचहरी से संबंधित मामले बाहर ही समझाएं। माता-पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। विद्यार्थी वर्ग परीक्षा में अच्छे अंक के लिए और मेहनत करें।मिथुन राशिराशि से तृतीय पराक्रम भाव में गोचर करते हुए मंगल का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। कोई भी बड़ा कार्य आरंभ करना चाहे अथवा किसी ने अनुबंध पर हस्ताक्षर करना चाहे तो उस दृष्टि से भी अनुकूल रहेगा। अपनी ऊर्जाशक्ति एवं जुझारू स्वभाव के चलते कठिन परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होंगे। धर्म एवं आध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ेगी। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए किया गया प्रयास सफल रहेगा। कर्क राशिराशि से द्वितीय धन भाव में गोचर करते हुए मंगल का प्रभाव बेहतरीन उपलब्धियों वाला रहेगा। अपने साहस, कुशाग्रबुद्धि तथा वाणी कुशलता के बलपर सामाजिक जिम्मेदारियों को भी निर्वहन करने में पूर्ण सफल रहेंगे। आर्थिकपक्ष मजबूत होगा। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में प्रतीक्षित कार्यो का निपटारा होगा। किसीभी तरहके सरकारी टेंडर के लिए आवेदन करना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल रहेगा।