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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 308
(भूमिका - अलग-अलग धर्मों में ईश्वर के अलग-अलग नाम तथा रूपों का वर्णन हुआ है तथापि उन सबमें किस प्रकार से एकता है और कैसे वे एक के ही अनेक नाम-रूप हैं, इसकी झलक हम इस प्रवचन में देखेंगे। साथ ही ईश्वर; चाहे वह ख़ुदा, गॉड आदि जो भी पुकारें, उन्हें जीव/मनुष्य के हृदय के 'प्रेम' और 'अपनत्व' का भाव ही प्रिय है, यह रहस्य निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज हमारे समक्ष प्रगट कर रहे हैं। आइये इस प्रवचन में छिपे इस भाव को हृदयंगम करें...)
★ 'Love is God (लव इज़ गॉड)'
सभी धर्मों का एक ही लक्ष्य है आनन्द प्राप्ति और उस आनन्द प्राप्ति के लिये भी एक ही उपाय है भगवान् को जानो और भगवान् को जानने का, प्राप्त करने का एक ही मार्ग है प्रेम मार्ग।
आलोड्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुनः पुनः।इदमेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणो हरिः।।(गरुड पुराण 230-1, लिंग पु., स्कन्द पु., नरसिंह पु., महाभारत)
वेदव्यास जिन्होंने वेदों का व्यास किया, वेदान्त बनाया, 18 पुराण बनाये, भगवान् के अवतार भी हैं ने कहा सारे शास्त्र वेदों का ज्ञान प्राप्त करना तुम्हारी बुद्धि से अगम्य है। सभी शास्त्रों वेदों का सार यही है भगवान् से प्रेम करो। एक सूफी फकीर कहता है:
वेद अवस्ता अल कुरान इंजील नीज़काब ओ वुतख़ान वो आतशक़दा
मैंने वेद, कुरान, इंजील सब पढ़ लिया, सबको स्वीकार कर लिया। मन्दिर को भी अपना लिया, मस्जिद को भी और गिरिजाघर को भी अपना लिया क्योंकि मैंने खुदा से मोहब्बत कर ली। सभी ग्रन्थों में यही तो लिखा है। भगवान् से प्रेम करो। शास्त्र वेद जितने भी बने हैं सबका एक ही कहना है भक्ति करो, भगवान् से प्रेम करो।
एक बार हज़रत मूसा यह भी पैगम्बर हैं । हज़रत मूसा कहीं जा रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक गड़रिया भेड़ चरा रहा है और सिर नीचे करके आँसू बहा रहा है और कह रहा है - हे ख़ुदा तू जल्दी आजा, मैं तुझे बकरी का दूध पिलाऊँगा। तू चलते चलते थक गया होगा। तमाम दुनियाँ को देखता रहता है। तेरे पैर दबा दूंगा। तेरे कम्बल में चीलर पड़ गई होंगी, तू इतना व्यस्त रहता है दुनियाँ के देखने में, दुनियाँ के शासन में, मैं चीलर निकाल दूँ। तेरी चप्पलें फट गई होंगी चलते चलते। ला मैं सी दूं। इस प्रकार वो गड़रिया कह रहा था। हज़रत मूसा वहीं खड़े हो गये। उन्होंने कहा, क्यों रे तू कौन है? उसने आँख खोली, उसने कहा मैं गड़रिया हूँ। तो तू खुदा से यह सब बातें कर रहा है। हाँ। तू अपराधी है, गुनहगार है, अरे भला खुदा की चप्पल फटेगी। भला खुदा के कम्बल में चीलर पड़ेगा। भला ख़ुदा थक जायगा? ऐसी गन्दी बातें तू खुदा के लिए करता है? तूने खुदा का अपमान किया है। वो बिचारा डर गया, काँप गया और उसने कहा कि मौलवी साहब इसका प्रायश्चित बताइये। उन्होंने कहा कोई प्रायश्चित नहीं है, तुमने इतना बड़ा अपराध किया है।
जैसे हमारे (हिन्दू फिलॉसफी) यहाँ नामापराध होता है। वो बिचारा वहाँ से उठा और दूर जाकर के बेहोश हो गया, कि क्षमा ही नहीं होगी ऐसा अपराध हो गया हमसे। इतने में आकाशवाणी हुई खुदा की, हज़रत मूसा के लिये कि तुम गुनहगार हो। तुमको हमने दुनियाँ में भेजा पैगम्बर बनाकर के इसलिये कि तुम इंसानों को मेरे पास लाओ किन्तु तुमने तो उल्टा काम कर दिया। उसने जो कुछ अपनी भावना से सोचा, सब ठीक है मैं सुन रहा हूँ उसकी सारी बात और इतना प्यार उमड़ रहा है मेरा उसके प्रति और तुमने उसको ऐसा कहा कि ऐसा अपराध किया है जिसका प्रायश्चित न होगा? जाओ गड़रिये से माफी माँगो। हज़रत मूसा आश्चर्य चकित। जाना पड़ा गड़रिये के चरणों में पड़े और कहा, हमसे गलती हुई।
गड़रिये ने कहा भई वो जो कह रहा था खुदा से न, वो मैं अब नहीं हूँ । मेरी खुदी मिट गई अब मुझे ख़ुदा के सिवा कुछ दीखता ही नहीं है आप कौन हैं, ये मैं कैसे जानूँ पहचानूँ? और उनसे प्रश्नोत्तर करूँ? यह उपासना है जहाँ एकत्व हो जाय, वह किसी भाव से हो जाय।
एक कैथोलिक कथा है। एक नट मरियम के मन्दिर में गया तो वहाँ सब लोग कुछ न कुछ माँग रहे थे मरियम मैया से। जरूर ये देती होगी तो उसने कहा ऐसे तो देंगी नहीं क्योंकि दुनियाँ वाले भी ऐसे नहीं देते पैसा, बिना तमाशा दिखाये। नट तमाशा दिखाता है तब लोग दस पैसा, बीस पैसा फेंक देते हैं उसके लिये तो उसने बन्द किया गेट सबके जाने के बाद और नट का पूरा तमाशा दिखाने लगा। और दिखाते-दिखाते पसीना-पसीना हो गया और इधर बाहर पादरी लोग बड़े क्रोध में गेट तोड़ने पर तुल गये। कौन है अन्दर? क्यों रह गया अन्दर? आखिर गेट तोड़ा गया और लोगों ने पिटाई शुरू कर दी उस नट की। इतने में मरियम की आकाशवाणी हुई। तुम सब पाखण्डी हो, यही तो मेरा भक्त है। किसी प्रकार भगवान् को प्राप्त करे कोई ।
सिक्ख धर्म में गुरु ग्रन्थ साहब में भरा पड़ा है प्रेम या भक्ति से ही भगवान् मिलेंगे;
साँच कहुँ सुनु लेहु सबै,जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायोभई प्राप्त मानुख देहरिया, गोविन्द मिलन की ऐह तेरी बरिया।
धन्ना जाट इत्यादि का कथानक सभी जानते हैं प्रेम के वशीभूत होकर भगवान् को पत्थर से प्रगट होकर मोटी रोटी खानी पड़ी। अतः नाम कुछ भी लो, राम, कृष्ण कहो, खुदा कहो, गॉड कहो। वो सब एक हैं। जैसे चीनी की अनेक प्रकार की शक्लें बना देते हैं लोग दीवाली पर हाथी, घोड़ा, ऊँट, साहब, मेम आप किसी को भी खाइए सबमें वही चीनी है, वही रस है, उसमें कोई अन्तर नहीं है। ये जो शब्दों का अन्तर है यह हाथी है, हम तो घोड़ा लेंगे, हम तो मेम लेंगे। यह जो बच्चे कहते हैं यह ऐसे ही कहने की बातें हैं क्योंकि जब हम खायेंगे तो मिठास एक ही है। चीनी के अनेक सामान है। एक ही भगवान् के अनन्त रूप हैं। अनन्त नाम हैं। इसलिये कोई प्रतिबन्ध नहीं है किसी के लिये कि आपको यही नाम लेना है, यही रूप बनाना है। जैसी आपकी इच्छा हो, साकार मानिये, निराकार मानिये, साकार में अनन्त आकार मानिये, जैसी आपकी इच्छा हो। मुख्य बात है प्रेम।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, मार्च 2018 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - विभिन्न राशियों के लोगों का स्वभाव अलग-अलग होता है। आज हम ऐसी चार राशियों के बारे में बता रहे हैं, जो लोगों पर बहुत कम भरोसा कर पाते हैं और वे हर किसी को शक की नजर से देखते हैं। एक प्रकार से उन्हें अति सावधानी बरतने वाले लोगों की श्रेणी में गिना जा सकता है। कई बार उनका यह स्वभाव उनके लिए ही कष्टकारक हो जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये राशियां हैं-मेष राशिमेष राशि के जातक सोचते हैं कि हर कोई उनसे झूठ बोल रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें ये डर होता है कि लोग उन्हें झूठ बोलेंगे या धोखा देंगे और वो अंतत: धोखा खा जाएंगे। इसलिए वो किसी पर भी भरोसा नहीं करते हैं और उनसे मिलने वाले हर व्यक्ति पर शक करते हैं।कन्या राशिकन्या राशि के जातक हमेशा अपने परिवेश के प्रति सावधान और जागरूक रहते हैं। वे उन चीजों को खत्म कर देते हैं जिससे उन्हें डर लगता है और वे असहाय महसूस करें। वे सावधानी बरतना पसंद करते हैं।वृश्चिक राशिवृश्चिक राशि वाले लोग अत्यधिक संवेदनशील और भावुक लोग होते हैं, इसलिए उनके लिए ये बहुत मुश्किल नहीं होता है कि वो जिस किसी से भी मिलते हैं उस पर शक करें । वो अक्सर बिना किसी कारण के डरने लगते हैं और खुद को तनावग्रस्त और चिंतित महसूस करते हैं।मकर राशिमकर राशि वाले लोग अविश्वसनीय रूप से प्रतिभाशाली होते हैं और उन्हें अक्सर ऐसा लगता है कि उन्हें इसके लिए पर्याप्त श्रेय नहीं दिया जा रहा है। वो इस बात को लेकर परेशान रहते हैं और सोचते हैं कि लोग उन्हें दरकिनार कर रहे हैं और उनकी प्रतिभा को अनदेखा कर रहे हैं।(नोट- ये केवल ज्योतिषियों के विचार हैं। हम इस पर सच्चाई का दावा नहीं करते हैं)
- वास्तु गृह निर्माण की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। वैदिक काल से ही किसी भी घर के निर्माण के लिए वास्तु का सर्वप्रथम विचार किया जाता रहा है। भृगु, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, विशालाक्ष, पुरन्दर, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति ये अटठारह वास्तुशास्त्र के उपदेशक अथवा प्रणेता माने गये हैं। निवास स्थान और उसके आस-पास वृक्षारोपण काफी शुभ माने जाते हैं। दिशा के अनुसार लगाए गए विभिन्न प्रजातियों के पौधे परिवार में समृद्धि लाते हैं, क्योंकि वृक्ष वास्तुदोष दूर करने में सहायक भी होते हैं।शास्त्रों में वृक्षों को संतान रूप माना गया है इसलिए वृक्षारोपण भी हमारे जीवन को सुचारू रूप से चलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आइये जानते हैं किस दिशा में कौन सा पेड़ लगाना मंगलकारी होता है।-घर के पूर्व दिशा में वटवृक्ष 'बरगद' का पेड़ लगाने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। परिवार से बेरोजगारी दूर भाग जाती है और व्यापार में भी अनुरूप वृद्धि होती है। पश्चिम दिशा में 'पीपल' का वृक्ष लगाने से प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है और घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।-उत्तर दिशा में पाकड़ का वृक्ष लगाने से गृह में सुंदर बहुओं का आगमन होता है। नारियों के मध्य आपसी प्रेम बढ़ता है और परिवार में सुख शान्ति रहती है।-दक्षिण दिशा में गुलर का वृक्ष लगाने से परिवार में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता, धन में बरकत होती है किन्तु ध्यान रहे दक्षिण दिशा में तुलसी का पौधा भूलकर भी न लगाएं।-घर के समीप कांटे वाले तथा फलहीन वृक्ष अशुभ होते हैं। घर के पास नागकेशर, अशोक, मौलसीरी, चंपा, अनार, पीपली, अर्जुन, सुपारी, केतकी, मालती, कमल, चमेली नारियल, केला, अति शुभ कारी माना गया है।-द्वार के अंतिम सिरे पर अनार (उत्तर दिशा )और श्वेत मदार पूर्व दिशा की ओर लगाने से घर की दरिद्रता दूर होती है और परिवार में समृद्धि आती है।
- सरकारी नौकरी में मिलने वाली सुविधाएं और जॉब सिक्योरिटी के कारण लाखों लाखों युवा इसकी ओर आकर्षित होते हैं। वे सरकारी जॉब पाने की के लिए जमकर तैयारी भी करते हैं। लेकिन सीमित पदों के चलते हर किसी का यह सपना साकार नहीं हो पाता है। सरकारी नौकरी पाने के लिए मेहनत के साथ-साथ भाग्य की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हस्तरेखा विज्ञान में बताया गया है कि हथेली की लकीरों से यह ज्ञात किया जा सकता है कि व्यक्ति के भाग्य में सरकारी नौकरी के योग हैं या नहीं। हथेली में बनने वाले उभार, लकीर और निशान व्यक्ति के भाग्य बारे में बहुत कुछ बातें बताते हैं। इन्हीं में कुछ ऐसे निशान होते हैं जिनके माध्यम से सरकारी नौकरी का विचार किया जाता है। जैसे हथेली में सूर्य की दोहरी रेखा हो और बृहस्पति पर्वत पर क्रास हो तो व्यक्ति को सरकारी नौकरी की संभावना रहती है। इसके अलावा निम्न परिस्थितियों से भी सरकारी नौकरी का विचार किया जा सकता है-हथेली में सरकारी जॉब के संकेतहथेली पर सूर्य पर्वत का बहुत महत्व होता है। सूर्य के प्रबल होने पर व्यक्ति का मान-सम्मान जीवनभर में बढ़ता रहता है। हथेली पर सूर्य पर्वत सबसे छोटी उंगुली के पहले वाली उंगली के नीचे होती है। (रिंग फिंगर के नीचे) अगर सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है और सूर्य पर्वत से सीधी रेखा निकलती हो तो ऐसे लोगों को सरकारी नौकरी मिलने की संभावना सबसे ज्यादा होती है।हथेली में गुरु पर्वत का करते हैं विचारहथेली पर गुरु पर्वत इंडेक्स फिंगर के नीचे होता है। गुरु पर्वत का उभार शुभ माना जाता है। साथ ही इस पर सीधी रेखा होने से ऐसे लोगों को भी सरकारी नौकरी मिलने की संभावना काफी ज्यादा रहती हैं।गुरु पर्वत और भाग्यरेखा का संबंधअगर जिनकी हथेली में भाग्य रेखा से कोई लकीर निकलकर गुरु पर्वत की और जाती है तो वह व्यक्ति बहुत भाग्यशाली होता है। ऐसा व्यक्ति प्रशासनिक अधिकारी बनता है। सरकारी क्षेत्र में व्यक्ति को उच्च पद प्राप्त होता है।सूर्य पर्वत और भाग्यरेखा के शुभ संकेतभाग्य रेखा से निकलकर कोई लकीर सीधे सूर्य पर्वत पर जाकर मिलने पर ऐसा व्यक्ति भाग्यशाली होता है। ऐसे लोग सरकारी सेवा से जुड़े रहते हैं। सरकारी क्षेत्र में ऐसे जातक बड़े पदाधिकारी बनते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 307
('नाम-महिमा' के सम्बन्ध में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन का एक अंश...)
...कुछ काम ऐसे हैं जो श्यामसुन्दर नहीं कर सकते और नाम (भगवन्नाम) कर देगा, इसलिये कई स्थानों पर नाम का अधिक महत्व है। यानी नाम को भगवान से बड़ा बताया गया है;
ब्रह्म राम ते नाम बड़ वरदायक वरदानि।
ब्रह्म राम से नाम बड़ा है।
राम भालु कपि कटक बटोरा।सेतु हेतु श्रम कीन्ह न थोरा।।नाम लेत भव सिन्धु सुखाहीं।करहु विचार सुजन मन माहीं।।
अर्थात एक छोटे से पुल के बनाने में कितना बड़ा परिश्रम किया राम ने और कितनी बड़ी गुलामी की वानरी सेना की, खुशामद की। खुशामद से काम नहीं चला तो डराया लक्ष्मण जी से जाकर सुग्रीव को - ऐ! कहाँ है? अपने राज्य में हूँ और कहाँ हूँ? अरे, कुछ होश है, ये राज्य किसने दिलाया है? उठाऊँ बाण? लगाऊँ धनुष में? होश में ला दूँ? उसने कहा - हाँ महाराज! वो ठीक है, ठीक है, याद आ गया। वो आप भगवान राम की बात कर रहे हैं, मैं तो भूल ही गया था।
संसार के वैभव में बड़े बड़े भूल जाते हैं, सुग्रीव सरीखे एकमात्र सखा;
न सर्वे भ्रातरस्तात भवन्ति भरतोपमा:।मद्विधा वा पितुः पुत्रा: सुहृदो वा भवद्विधा:।।
भगवान राम जिन सुग्रीव के लिये कहते हैं, सुग्रीव! तुम्हारे समान विश्व में न कोई मित्र हुआ, न होगा, चैलेन्ज है। वो सुग्रीव भूल गया जो एक्जाम्पिल माना गया। राम ने अपने श्रीमुख से कहा है, किसी और की बात नहीं है कि भई, जरा बढ़ा के बोल दिया ह्यो, अपने दोस्त के लिये। मेरे समान कोई बेटा नहीं हो सकता, राम ने कहा, और भरत के समान कोई भाई नहीं हो सकता, सुग्रीव के समान कोई मित्र नहीं हो सकता। ये सब एक्जाम्पिल हैं, उदाहरण हैं अद्वितीय। इसका कोई दूसरा ऐसा उदाहरण नहीं हो सकता कि हाँ साहब, सुग्रीव के समान एक दोस्त और हुआ है। श्रीकृष्ण का अर्जुन सखा हुआ है। अरे, क्या अर्जुन होगा? वो सुग्रीव, इतने बड़े मित्र को भूल गया।
नहिं कोउ अस जनमा जग माँहिं।प्रभुता पाहि जाहि मद नाँहिं।।श्री मद वक्र न कीन्ह केहि, प्रभुता बधिर न काहि।।
तो देखो! राम ने एक छोटे से पुल बनाने में सुग्रीव की खुशामद की, तमाम वानरी सेना लिया। अगर नल-नील को ये वरदान न होता कि पत्थर तैरने लगें पानी में तो एक और प्रॉब्लम खड़ी होती कि सारी फौज खड़ी है, राम भी खड़े हैं, पुल कैसे बने? समुद्र में पुल बाँधना कोई खिलवाड़ थोड़े ही है। कोई नदी थोड़े ही है कि पुल बाँध दो। आज के वैज्ञानिक युग में भी समुद्र में पुल नहीं बन पाया तो त्रेतायुग में समुद्र में पुल कैसे बनता? इतनी सारी सहायता ले करके छोटा-सा एक पुल बनाया और देखो भगवन्नाम का कमाल;
जासु नाम सुमिरत इक बारा।उतरहिं नर भव सिन्धु अपारा।।नाम लेत भव सिन्धु सुखाहीं।करहु विचार सुजन मन माहीं।।
नाम भवसागर से पार करा देता है। विचार करो! राम और उनके नाम में क्या अन्तर है?
तो भगवन्नाम भगवान से बड़ा है, ये बात सभी एक स्वर से बोलते हैं। चाहे भागवत पढ़ लो, चाहे जो ग्रन्थ पढ़ लो, सबमें एक-सी बात है। नाम बड़ा है, श्यामसुन्दर छोटे हैं। लेकिन सभी नाम के प्रेमी अंत में श्यामसुन्दर को प्राप्त करते हैं, श्यामसुन्दर से उनका पहले कोई मतलब नहीं है, जो भी मतलब है उनके नाम से है, सीधी-सी बात।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नाम-महिमा' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - महर्षि नारद, भगवान ब्रह्मा के 17 मानस पुत्रों में से एक हैं। मान्यता है कि देवर्षि नारद पृथ्वी, आकाश और पाताल सभी लोक में भ्रमण करते हैं ताकि संदेशों और सूचनाओं को देवताओं तक पहुंचाया जा सके। महर्षि नारद, भगवान विष्णु के अनन्य भक्त हैं। महर्षि नारद ने नारद पुराण नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में मनुष्य के जीवन से लेकर मत्यु तक हर बिंदु पर चर्चा की गई है। इसमें बताई गई बातों को हमें अपने जीवन में उतार सकते हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।नारद पुराण के अनुसार मनुष्य को कभी भी दिन में शयन नहीं करना चाहिए। जो मनुष्य दिन में शयन करते हैं उन्हें धन प्राप्ति में परेशानी का सामना करना पड़ता है। दिन में सोने वाला व्यक्ति अक्सर अस्वस्थ रहता है और अल्प आयु प्राप्त करता है।नारद पुराण के अनुसार सिर में तेल लगाते समय अगर हथेलियों पर तेल बच जाए तो उसे शरीर पर मलना नहीं चाहिए। ऐसा करने से धन की हानि होती है। स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह भी कहा गया है कि कभी भी निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए। न ही सारे कपड़े उतारकर शयन करना चाहिए।कभी भी बाएं हाथ से पानी नहीं पीना चाहिए। यह भी कहा गया है कि किसी भी मनुष्य को अपने दोनों हाथों से कभी भी अपना सिर नहीं खुजलाना चाहिए, इससे जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। नारद पुराण में कहा गया है कि किसी को भी अपने पैर से दूसरे का पैर दबाकर नहीं बैठना चाहिए और न ही इस तरह सोना चाहिए। ऐसा करने से धन हानि के साथ आयु भी कम हो जाती है।
- केतु को ज्योतिषशास्त्र में छाया ग्रह कहा जाता है। 2 जून को केतु अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश कर चुके हैं। ज्योतिष गणनाओं के अनुसार केतु का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश कुछ राशियों के लिए बेहद शुभ रहने वाला है। इन राशियों के जातकों को धन- लाभ हो सकता है। आइए जानते हैं केतु का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश किन राशियों के लिए शुभ रहने वाला है...वृष राशिवृष राशि के जातकों के लिए केतु का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश शुभ कहा जा सकता है।दांपत्य जीवन खुशियों से भरा रहेगा।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा।मान- सम्मान और पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।इस समय स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता है।सिंह राशिसिंह राशि के जातकों के लिए केतु का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश शुभ कहा जा सकता है।पारिवारिक जीवन में आनंद का अनुभव करेंगे।नया मकान खरीद सकते हैं।धन- लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।कन्या राशिकन्या राशि के जातकों को केतु के अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश से शुभ फलों की प्राप्ति होगी।समस्त सुखों की प्राप्ति होगी।शत्रुओं से मुक्ति मिलेगी।कार्यों में सफलता मिलने के योग भी बन रहे हैं।मकर राशिमकर राशि के जातकों के लिए केतु का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश किसी वरदान से कम नहीं है।कार्यों में सफलता के योग बन रहे हैं।नौकरी और व्यापार के लिए ये समय शुभ है।मनोकामनाओं की पूर्ति हो सकती है।.
- वैदिक ज्योतिषशास्त्र में शनि ग्रह की विशेष भूमिका मानी जाती है। शनिदेव सभी ग्रहों में सबसे धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं। जिस वजह से ये एक राशि से दूसरी राशि में अपना स्थान परिवर्तन करने के लिए करीब ढाई वर्षों का समय लेते हैं। शनि के किसी एक राशि में ढाई वर्षों तक गोचर करने के कारण तीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और दो पर ढैय्या लग जाती है। शनिदेव इस समय 30 वर्षों के बाद स्वयं की राशि मकर में आ गए हैं। शनि बहुत ही धीमी गति से चलते हैं। शनि एक राशि में लगभग ढाई साल तक रहते हैं। शनि के राशि परिवर्तन से साढ़ेसाती आरंभ हो जाती है। शनि के एक राशि में ढाई साल तक समय बिताने के लिहाज से सभी 12 राशियों का एक चक्कर लगाने में लगभग 30 साल का समय लगता है। जैसे कि इस समय शनि मकर राशि में गोचर है अब दोबारा मकर राशि में आने के लिए शनि को 30 वर्षों का समय लगेगा।ज्योतिष गणना के अनुसार चंद्र राशि से जब शनि 12वें भाव, पहले भाव व द्वितीय भाव से निकलते हैं। उस अवधि को शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है। जबकि शनि जब गोचर में जन्म राशि से चतुर्थ और अष्टम भाव में रहता है तब इसे शनि की ढैय्या कहते है। आइए जानते हैं आने वाले 10 वर्षों में कब-कब किस राशि पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगेगी।2021 में शनिशनिदेव इस समय मकर राशि में भ्रमण पर हैं ऐसे में धनु,मकर और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती लगी हुई है। वहीं अगर ढैय्या की बात करें तो मिथुन और तुला राशि के जातकों पर शनि की ढैय्या लगी हुई है।2022 में शनिशनि देव अपनी मकर राशि की यात्रा को समाप्त करते हुए 29 अप्रैल 2022 को कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। शनि के राशि बदलने के कारण मिथुन और तुला राशि पर से शनि की ढैय्या खत्म हो जाएगी। शनि के कुंभ राशि में गोचर करने के कारण कर्क और वृश्चिक पर शनि की ढैय्या शुरू हो जाएगी। इसके अलावा धनु राशि से शनि की साढ़ेसाती खत्म होकर मीन राशि पर पहला चरण शुरू हो जाएगा। इस तरह से 2022 में मकर, कुंभ और मीन राशि पर साढेसाती और कर्क और वृश्चिक राशि पर ढैय्या लगेगी।2023 और 2024 में शनिवर्ष 2023 और 2024 में शनि का गोचर किसी भी राशि में नहीं होगा। इस कारण से मकर, कुंभ और मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती बनी रहेगी जबकि कर्क और वृश्चिक राशि के जातकों पर शनि की ढैय्या।2025 और 2026 में शनिसाल 2025 में शनि का राशि परिवर्तन मेष राशि में होगा। जिस कारण से कर्क और वृश्चिक राशि वालों को शनि की ढैय्या से मुक्ति मिल जाएगी जबकि सिंह और धनु राशि के जातकों पर ढैय्या लग जाएगी। कुंभ, मीन और मेष राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती रहेगी। 2026 में शनि का राशि परिवर्तन नहीं होगा जिस कारण से साढ़ेसाती और ढैय्या में किसी भी प्रकार का कोई भी परिवर्तन देखने को नहीं मिलेगा।2027 और 2028 में शनि2027 में शनिदेव वृषभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे जिस कारण से मीन, मेष और वृषभ राशि के जातकों पर शनि की साढ़ेसाती का प्रकोप रहेगा जबकि सिंह और धनु राशि के जातकों को इस वर्ष ढैय्या छुटकारा मिल जाएगा। कन्या और मकर राशि वालों पर ढैय्या शुरू हो जाएगा। साल 2028 में शनि का राशि परिवर्तन नहीं होगा।वर्ष 2029,2030 और 2031 में शनि8 अगस्त 2029 में शनि देव मिथुन राशि में रहेंगे जिस कारण से तुला और कुंभ राशि पर ढैय्या और मेष, वृषभ और मिथुन वालों पर शनि की साढ़ेसाती सवार रहेगी। वर्ष 2030 और 2031 में शनि का कोई भी राशि परिवर्तन नहीं होगा।-
- नौकरी-व्यवसाय में तरक्की , धन-संपत्ति, सेहत, सुख-शांति जैसे तमाम पहलुओं का संबंध घर के वास्तु से भी जुड़ा होता है. घर में रखी चीजें जहां विभिन्न मामलों में शुभ साबित होती हैं, वहीं कुछ चीजें बाधा भी बनती हैं. आज उन चीजों के बारे में जानते हैं जो वास्तु दोष का कारण बनती हैं और हर काम में रोढ़े अटकाती हैं.तुरंत घर से बाहर करें ये चीजेंदेवी-देवताओं की खंडित मूर्तिशास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं की मूर्ति या चित्र से सकारात्मक ऊर्जा निकालती हैं लेकिन यदि वे खंडित हो जाएं तो उनमें नकारात्मक ऊर्जा का वास हो जाता है. लिहाजा पुरानी और खंडित मूर्तियों को या तो जमीन में दबा देना चाहिए या जल में प्रवाहित कर देना चाहिए.बंद घड़ियांबंद घड़ियां आपके अच्छे वक्त को भी बुरे वक्त में बदल सकती हैं. लिहाजा घर में बंद घड़ियां कभी नहीं रखनी चाहिए. बंद घड़ियां सौभाग्य में कमी लाती हैं. साथ ही बुरी घटनाओं को खत्म ही नहीं होने देती हैं.बंद तालेबंद घड़ी की तरह बंद ताला भी बहुत अशुभ होता है. यह आपकी खुशकिस्मती को बंद कर सकता और बदकिस्मत का जगा सकता है. लिहाजा घर में कभी खराब या बंद ताले नहीं रखने चाहिए. घर में बंद ताला रखने से करियर में बाधाएं आती हैं और शादी-विवाह में भी देरी होती है.खराब चप्पल व जूतेजूते-चप्पल का संबंध संघर्ष से जुड़ा होता है. यदि आप चाहते हैं कि आपकी जिंदगी में संघर्ष कम रहे तो हमेशा साफ और अच्छे जूते-चप्पल पहनने चाहिए. खराब जूते चप्पल को शनिवार के दिन घर से बाहर निकाल देना चाहिए. इससे शनि का दुष्प्रभाव कम होता है.पुराने-फटे कपड़ेकपड़ों का संबंध भाग्य से होता है. इसलिए हर व्यक्ति को हमेशा साफ और बिना कटे-फटे कपड़े ही पहनने चाहिए. फटे-पुराने कपड़ों को घर से बाहर कर देना चाहिए क्योंकि यह भी तरक्की में बाधा बनते हैं.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 306
★★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 11-वें दोहे पर विचार करें, जो कि संसार में सुख अथवा दुःख की मान्यता पर प्रकाश डाल रही है...)
जग महँ सुख दुख दोउ नहिँ, अस उर धरि ले ज्ञान।सुख माने दुख मिलत है, सुख न जगत महँ मान।।11।।
भावार्थ - संसार में न सुख है, न दुख ही है - यह ज्ञान दृढ़ कर लेना चाहिये। संसार में सुख मानने से ही उसके अभाव में दुख मिलता है।
व्याख्या - संसार, माया से बना है। फिर भी इसमें 3 तत्व हैं;
1 - ब्रह्म।2 - जीव।3 - माया।
इनमें माया निर्मित जड़ जगत् तो प्रत्यक्ष ही है। जीव गण भी सब जानते ही हैं। केवल ब्रह्म परोक्ष रूप से व्यापक है। यह जगत् जीव का भोग्य है। अतः वेद कहता है। यथा;
भोक्ता भोग्यं प्रेरितारं च मत्वा सर्वं प्रोक्तं त्रिविधं ब्रह्म ......।
आप कहेंगे कि जब जीव इस संसार का भोक्ता है, तो फिर वैराग्य आदि क्यों बताया जाता है? तथा इस संसार से सुख क्यों नहीं मिलता। यह संसार, जीवों के शरीर के उपयोग के लिये बनाया गया है। उपभोग के लिये नहीं। जीवों का शरीर मायिक है। एवं जगत् भी मायिक है। अत: शरीर का विषय सजातीय होने से जगत् है। किंतु आत्मा तो दिव्य है। यथा;
चिन्मात्रं श्री हरेरंशं......(वेद)
भागवत कहती है। यथा;
आत्मानित्योऽव्ययः......।
जब आत्मा दिव्य नित्य तत्व है, तो उसका विषय भी दिव्य ही होगा। संसार, आत्मा का विषय हो ही नहीं सकता। वस्तुत: प्रत्येक अंश अपने अंशी को ही चाहता है। अतः आत्मा भी जगत् में व्याप्त परमात्मा का ही नित्य दिव्य अनंत सुख चाहता है। वही आत्मा का विषय है। हमको संसार में जो सुख का मिथ्या भान होता है, वह हमारी ही मनःकल्पना का परिणाम है। यदि हम संसार में सुख न माने तो दुख स्वयं समाप्त हो जाय। संसार में सबको एक ही वस्तु में सुख नहीं मिलता, जो व्यक्ति जिस व्यक्ति या वस्तु में बार-बार सुख की भावना बनाता है, उसी में आसक्ति हो जाती है। फिर उसी की ही कामना उत्पन्न होती है, फिर उसी कामनापूर्ति में क्षणिक सुख मिल जाता है। यही कारण है कि एक भिखारिन माँ को अपने काले कुरूप पुत्र से ही सुख मिलता है। शराबी को ही शराब से सुख मिलता है। पंडित जी को तो शराब देख कर भी दुख मिलता है। यदि शराब में सुख होता तो पंडित जी को भी शराबी की भांति ही सुख मिलता। संसार का कल्पित सुख भी एक सा नहीं होता। प्यासे को ही पानी में, कामी को ही कामिनी में सुख मिलता है। वह सुख भी प्रतिक्षण घटमान होता है। मां कई दिन के खोये अपने शिशु को प्रथम आलिंगन में अधिक सुखी, पुनः दूसरी-तीसरी बार क्रमशः कम सुखी एवं अंत में विरक्त सी हो जाती है ।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या - 11०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 305
एक साधक का प्रश्न ::: सत्कर्म के लिये क्या करना चाहिये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा समाधान ::: केवल भगवान की भक्ति। राधाकृष्ण की भक्ति ही सत्कर्म है। इससे अन्तःकरण शुद्ध होगा। तो अन्तःकरण शुद्ध होने पर जितने भी गुण हैं सत्य, अहिंसा, दया, परोपकार, नम्रता सब अपने आप आ जायेंगे। जितना-जितना अन्तःकरण शुद्ध होगा, उतने-उतने गुण अपने आप आयेंगे। और ऐसे सोचने से, उसको विल पॉवर कहते हैं, थोड़ा-थोड़ा लाभ होता है। टेम्पररी।
हरावभक्तस्य कुतो महद्-गुणा मनोरथेनासति धावतो बहिः।(भागवत 5-18-12)
भागवत में कहा गया कि बिना श्रीकृष्ण भक्ति के दैवी संपत्ति अर्थात सत्य, अहिंसा आदि गुण जिसको संसार में कैरेक्टर कहते हैं, वो नहीं आ सकता।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, अक्टूबर 2015 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - घर में चीटियों का निकलना जिंदगी पर भी असर डाल सकता है. चीटियों का लाल या काली होना या उनका किसी खास तरीके से व्यवहार करना कई तरह के संकेत देता है. लिहाजा घर पर चीटियां दिखाईं दें तो उन पर गौर जरूर करें. साथ ही चीटियां घर में ऊपर की ओर जा रही हैं या नीचे के ओर जा रही हैं. इसके अलावा आपके घर में चीटियों को कुछ खाने को मिल रहा है या नहीं इससे भी कई घटनाओं को लेकर संकेत मिलते हैं. यह भी होने वाली कई घटनाओं पर केंद्रीत होना माना जाता है.लाल और काली चीटियां देती हैं अलग-अलग इशारेयदि आपके घर में काली चीटियां आ रही हैं तो यह सुख और ऐश्वर्य वाला समय आने के संकेत हैं. वहीं घर में लाल चीटियां दिखने पर सावधान हो जाएं. लाल चीटियां अशुभ का संकेत मानी जाती हैं. इनका नजर आना भविष्य की परेशानियों, विवाद, धन खर्च होने के संकेत देता है.चीटियां दिखने के ज्योतिषीय असर- काली चीटियां को कई बार लोग शक्कर, आटा आदि डालते हैं क्योंकि काली चीटियों को खाना खिलाना शुभ होता है. यदि चावल के भरे बर्तन से ये चीटियां निकल रही हैं तो यह शुभ संकेत है कि कुछ ही दिनों में आपके पास धन वृद्धि होने वाली है. व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अच्छी होने जा रही है. काली चीटियों का आना भौतिक सुख वाली चीजों के लिए भी शुभ माना जाता है.- वहीं लाल चीटियां मुंह में अंडा (Egg) लेकर घर से जाएं तो यह अच्छे संकेत के रुप में देखा जाता है. चीटियों को खाने के लिए खाद्य पदार्थ डालना चाहिए. यदि चीटियां आपके घर में भूखी रहेंगी तो यह अशुभ होता है.- चीटियों के आने की दिशा भी काफी मायने रखती है. यदि काली चीटियां आपके घर में उत्तर दिशा से आती हैं तो यह आपके लिए शुभ संकेत होते हैं. साथ ही दक्षिण दिशा से आ रही हों तो भी यह फायदेमंद होगा. पूर्व दिशा से चीटियों का आने का मतलब है कि कोई सकारात्मक सूचना आपके घर आ सकती है. वहीं पश्चिम दिशा से चीटियों के आने पर बाहरी यात्रा के योग बनते हैं.
- कई बार हमारी जिंदगी में अजीब तरह की गड़बड़ियां चल रहीं होती हैं और हमें उनकी वजह भी समझ में नहीं आती है. ऐसी चीजों के पीछे कई बार हमारी ही कुछ गलतियां जिम्मेदार हो सकती हैं, जैसे कि किसी खास दिन ऐसे काम करना जिनको वर्जित माना गया हो. उदाहरण के लिए शनिवार के दिन कुछ काम करने से मनाही की गई है. फिर भी हम वो काम शनिवार के दिन करें तो इससे शनि देव कुपित हो सकते हैं. इससे हमारी जिंदगी में कई दु:ख-तकलीफें आ सकती हैं. आज जानते हैं शनिवार के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं.शनिवार के दिन गलती से भी न करें ये काम- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिदेव की पूजा में और दान सामग्री में काले तिल का उपयोग किया जाता है लेकिन कभी भी शनिवार को काले तिल खरीदने नहीं चाहिए. इससे शनि देव नाराज हो जाते हैं और बनते हुए काम भी बिगड़ने लगते हैं.- इसी तरह शनिवार के दिन सरसों का तेल खरीदना बहुत अशुभ होता है. ऐसा करने से घर में नकारात्मकता बढ़ती है और अशुभ घटनाएं होने लगती हैं. घर के सदस्यों को बीमारियां होती हैं.- शनिवार के दिन कभी भी लोहे का बना सामान भी नहीं खरीदना चाहिए. इससे शनि देव नाराज हो जाते हैं और परेशानियों का सामना करना पड़ता है.- शनिवार के दिन नमक खरीदने से जातक पर कर्ज का बोझ बढ़ता और इस दिन खरीदे गए नमक को खाने से कई तरह की बीमारियां भी होती हैं.शनिवार के दिन करें यह कामशनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों का तेल लगाएं. काले तिल का दान करें. इन कामों से शनि की दृष्टि निर्मल होती है और साढ़ेसाती, ढैय्या में भी शनि ग्रह से राहत मिलती है. वहीं शनिवार को काले कुत्तों को सरसों के तेल से बना हलुआ खिलाने से शनि की दशा टलती है. इस दिन लोहे से बनी चीजों के दान का विशेष महत्व है. इससे शनिदेव का कोप कम होता है और उनकी दृष्टि निर्मल होती है.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 304
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित दोहे के माध्यम से एक विनोदमयी चर्चा)
मोसे पतितों ने दिये गोविन्द राधे।विरद पतित पावन का निभा दे।।(स्वरचित दोहा)
गोलोक में भगवान को 'पतितपावन' नाम नहीं मिला, क्योंकि वहाँ कोई पतित है ही नहीं। वहाँ तो सब शुद्ध निर्मल महापुरुष रहते हैं, भक्तवत्सल नाम उनको मिला। हमारे मृत्युलोक में आये तो हम सरीखे तमाम ढेर लाखों, करोड़ों, अरबों पतितों ने मिलकर ये प्लान बनाया कि हमारे यहाँ भगवान आये हैं, इनको कोई उपाधि देनी चाहिये। अभिनन्दन कहते हैं हमारे संसार में, उपाधि दी जाती है हमारे प्राइम मिनिस्टरों को, ऐसे बड़े बड़े लोगों को। विदेश में 'डॉक्टरेट' की उपाधि मिलती है, किसी को 'भारतरत्न' मिलता है, किसी को 'पद्म-विभूषण' मिलता है।
तो पतितों ने सोचा कुछ हम लोगों को भी देना चाहिये। तो पतितों ने मिलकर भगवान को एक नाम दिया - 'पतितपावन', पतितों को पवित्र करने वाले। अब भगवान भूल गये। क्यों जी, हम ही से तुमको उपाधि मिली और हमको ही भुला दिये, ये तो बहुत खराब बात है। अरे! एहसान मानना चाहिये कि ये पतितों ने हमको पतितपावन की उपाधि दी तो पतितों का उद्धार तो करके जायँ। ऐसे ही चले गये अपने लोक को, ये ठीक नहीं किया। खैर, चले गये, कोई बात नहीं, वहाँ से कर दो अपना काम। ये विरद निभा दो, नहीं तो जानते हो, टाइटल छीन लेंगे हम लोग!!
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'कृपालु भक्ति धारा' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - रोज़मर्रा की जिंदगी में कई ऐसे काम हैं, जिन्हें हम बार-बार दोहराते हैं, लेकिन हमें उनके दोहराए जाने का कोई विशेष आभास नहीं होता। ऐसे कामों को ही आदत कहते हैं। आदतें अच्छी और बुरी दोनों तरह की होती हैं। अच्छी आदतों का प्रभाव हमारे जीवन पर सकारात्मक रूप से पड़ता है, जबकि बुरी आदतें हमें कई बार बड़ी मुसीबतों में डाल देती हैं। वास्तुशास्त्र में भी ऐसी कई आदतों का उल्लेख है, जो हमारे जीवन में तरह-तरह की समस्याओं को जन्म देती हैं। आज हम वास्तुशास्त्र के अनुसार कुछ ऐसी बुरी आदतों और उनके प्रभाव के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके कारण विशेष रूप से धन की हानि होती है।साफ-सफाई पर ध्यान न देनाबहुत से लोग अपने दैनिक जीवन में साफ-सफाई पर विशेष ध्यान नहीं देते हैं। वो कई बार शारीरिक और अपने आस-पड़ोस में फैली गंदगी में भी आराम से रहते हैं। लेकिन ये आदत न केवल उनको रोगी बनाती है, बल्कि उनकी धन हानि का भी कारण बनती है। वास्तुशास्त्र में साफ-सफाई का धन-वैभव में सीधा संबध माना गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार लक्ष्मी जी का वास उसी स्थान पर होता है, जो स्वच्छ रहता है।बड़े-बुजुर्गों का सम्मान न करनाअधिकतर युवा जीवन के जोश में घर के बड़े- ?बुजुर्गों को वृद्ध और अनुपयोगी समझने लगते हैं। जिस कारण प्रायः उनका सम्मान नहीं करते या उन पर ध्यान ही नहीं देते। वास्तुशास्त्र के अनुसार, ऐसे व्यक्ति से लक्ष्मी जी सदा रूठी रहती हैं, उसके धन में वृद्धि नहीं होती। हमारे धर्मशास्त्रों में भी उल्लेख है कि वृद्धों, बुजुर्गों की सेवा करने से व्यक्ति की आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती है।चिल्लाकर बात करनावास्तुशास्त्र के अनुसार, जोर-जोर से चिल्लाकर बात करने से शनि का दोष बढ़ता है। जिस कारण आपके जीवन में तनाव और मानसिक परेशानियां बढ़ने लगती हैं। जो कई बार बिना वजह की टेंशन और क्लेश का कारण बनता है, जिससे धन की हानि होना स्वभाविक है। ये कई बार आपके बने बनाये काम भी बिगाड़ देता है।सुबह देर से उठनाआजकल की भागदौड़ की जिंदगी में अक्सर हम देर रात तक जागते हैं, जिस कारण सुबह देर से उठना भी हमारी आदत में शुमार हो चुका है। ये स्वास्थय की दृष्टि से तो बुरा है ही, वास्तुशास्त्र के अनुसार भी घर में दरिद्रता लाता है। सुबह का सूरज आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जीवन में समृद्धि लाता है।कहीं भी थूक देनाभारतीय उपमहाद्वीप में लोग पान या तम्बाकू का सेवन करते हैं, जिस कारण अक्सर कहीं भी पान की पीक थूक देना उनकी आदत बन जाती है। इसके अलावा भी कई लोगों की आदत बात-बात पर कहीं भी थूकने की होती है। वास्तुशास्त्र के अनुरूप ये आदत तुरंत बदलने योग्य है क्योकि इस कारण से कभी भी लक्ष्मी जी की कृपा आप पर नहीं होगी।
- शनि देव के नाम से हर कोई भयभीत हो जाता है। शनि को ज्योतिष में क्रूर और पापी ग्रह कहा जाता है। शनि के अशुभ प्रभावों से व्यक्ति का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो जाता है। शनि के अशुभ प्रभावों की वजह से जहां व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है वहीं शनि के शुभ प्रभावों से व्यक्ति का जीवन राजा के समान हो जाता है। शनि रंक को भी राजा बना देते हैं। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार दो राशियों पर शनि देव की विशेष कृपा रहती है। इन राशियों के स्वामी शनि देव हैं। ऐसा माना जाता है कि ये राशियां शनि देव को प्रिय होती हैं। आइए जानते हैं किन राशियों पर रहते हैं शनि देव मेहरबान...कुंभ राशिज्योतिष मान्यताओं के अनुसार कुंभ राशि के स्वामी शनिदेव हैं।कुंभ राशि पर शनि देव मेहरबान रहते हैं।इस राशि के जातकों का सरल स्वभाव शनि देव को पसंद आता है।कुंभ राशि के जातक जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं। शनि देव को ऐसे लोग प्रिय होते हैं जो जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं।मकर राशिज्योतिष मान्यताओं के अनुसार मकर राशि के स्वामी भी शनिदेव हैं।मकर राशि के जातकों पर शनिदेव की विशेष कृपा रहती है।इनका स्वभाव शनि देव को काफी पसंद आता है।मकर राशि के जातकों का भाग्य हमेशा उनका साथ देता है।ये लोग परेशानियों से हमेशा दूर रहते हैं।
- 2 जून को मंगल राशि परिवर्तन कर कर्क राशि में प्रवेश कर चुके हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों के राशि परिवर्तन का सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। मंगल के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है तो वहीं अशुभ प्रभावों से जीवन प्रभावित हो जाता है। मंगल 20 जुलाई तक कर्क राशि में ही रहेंगे। मंगल का कर्क राशि में प्रवेश कुछ राशियों के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता है। इन राशियों को 20 जुलाई तक सावधान रहने की आवश्यकता है। आइए जानते हैं किन राशियों को 20 जुलाई तक रहना होगा सावधान....कर्क राशिकर्क राशि के जातकों के लिए मंगल का राशि परविर्तन शुभ नहीं रहने वाला है।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करें।स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।वृश्चिक राशिमंगल का कर्क राशि में प्रवेश वृश्चिक राशि के जातकों के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता है।स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।मानसिक तनाव हो सकता है।इस समय सफलता प्राप्त करने के लिए अधिक मेहनत करनी होगी।धनु राशिधनु राशि के जातकों को इस समय अपना विशेष ध्यान रखना होगा।परिवार के सदस्यों के साथ मनमुटाव हो सकता है।धन- खर्च सोच- समझकर ही करें।आर्थिक पक्ष कमजोर हो सकता है।वृष राशिवृष राशि के जातकों के लिए मंगल का राशि परिवर्तन मिला- जुला रहेगा।इस समय वाद- विवाद से दूर रहें, नहीं तो नुकसान हो सकता है।परिवार के सदस्यों का सहयोग मिलेगा।कार्यक्षेत्र में तरक्की के योग बन रहे हैं।धन- खर्च सोच- समझकर ही करें।मिथुन राशिमिथुन राशि के जातकों को मंगल के कर्क राशि में प्रवेश करने से मिले- जुले फल की प्राप्ति होगी।इस समय स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा।आर्थिक पक्ष कमजोर हो सकता है।दांपत्य जीवन में आनंद का अनुभव करेंगे।वाद- विवाद से दूर रहें।कन्या राशिकन्या राशि के जातकों के लिए ये समय सामान्य रहेगा।स्वास्थ्य का ध्यान रखें।आर्थिक पक्ष भी सामान्य रहेगा।सफलता मिलने के योग हैं, लेकिन मेहनत अधिक करनी होगी।मकर राशिमकर राशि के जातकों को मिले- जुले परिणाम मिलेंगे।वाद- विवाद से दूर रहें।पारिवारिक जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।आर्थिक पक्ष सामान्य रहेगा।
- हम अक्सर अपने आस पड़ोस के लोगों से सुनते हैं कि वह सोने से पहले बिस्तर में नींबू रख लेते हैं. जब भी हम ये बात सुनते हैं तो दिमाग में एक ही सवाल आता है कि लोग ऐसा करते क्यों हैं? दरअसल, तकिए के पास नींबूर रखकर सोने को ज्यादातर लोग टोटका या पुरानी सोच से जोड़कर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार ना तो ये कोई टोटका है और ना ही कोई पुरानी सोच, बल्कि ऐसा करने से स्वास्थ संबंधित कई फायदे होते हैं.नींबू की खासियतनींबू में विटामिन सी, विटामिन, बी, कैल्शियम, फ़ास्फ़ोरस, मैग्नीशियम, प्रोटीन और कार्बोहाईड्रेट भरपूर होता है, जो शरीर को गठिया रोग, हाई ब्लडप्रेशर, हाइपर टेंशन और हार्ट फेलियर के खतरे से बचाता है.क्या कहते हैं हेल्थ एक्सपर्ट्सहेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो नींबू एंटीबैक्टीरियल होने के साथ-साथ एंटीऑक्सीडेंट भी है, यह आपको और अधिक आसानी से सांस लेने में मदद कर सकता है. अगर आप अस्थमा या सर्दी से पीड़ित हैं तो आपको अपने वायुमार्ग को खोलने में मदद करने के लिए अपने बिस्तर के पास नींबू रखना चाहिए.तकिए के पास नींबू रखकर सोने के फायदेदिमाग को शांत रखता है नींबूकई लोग अधिक थक जाते हैं तो तनाव बढ़ जाता है. ऐसे में रात के वक्त उन्हें नींद नहीं आती. अगर आपके साथ भी यह समस्या है तो आप नींबू के इस घरेलू नुस्खे को आजमा सकते हैं. अगर आपको भी कभी-कभी ऐसी ही समस्या होती है तो रात को सोने से पहले नींबू को दो फांके करके बिस्तर के पास रख लें. नींबू में मौजूद एंटीबैक्टीरियल तत्व दिमाग शांत रखेंगे, जिससे आप एक स्वस्थ नींद ले सकेंगे.ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए फायदेमंदलो ब्लड प्रेशर के मरीज अगर रात को सोते समय अपने बिस्तर के बगल में नींबू का टुकड़ा रख लें, तो सुबह उनको फ्रेश महसूस होगा. ऐसा नींबू की खुशबू के कारण होता है, क्योंकि नींबू के गुणों के ऊपर हुए रिसर्च के मुताबिक उसकी खुशबू शरीर में सेरोटिन का लेवल बढ़ाने में मदद करती है, जो लो ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए लाभकारी है.सांस लेने में नहीं होगी परेशानीकई लोगों को सोते समय नाक बंद होने के कारण कई बार नींद नहीं आती. अगर आपके साथ भी ऐसा होता है तो ऐसी स्थिति में नींबू के टुकड़े को तकिये के पास रखिए, क्योंकि नींबू की सुगंध से सांस लेने की समस्या में राहत तो मिलती ही है. साथ ही, नींद भी अच्छी आती है.मच्छर-मक्खियों के आतंक से राहतकुछ लोग मच्छर-मक्खियों के आतंक के चलते पूरी नींद नहीं ले पाते. लिहाजा शरीर पर इसका बुरा असर पड़ता है. अगर आप भी घर में मौजूद मच्छर, मक्खी या किसी अन्य कीड़े-मकोड़ों से परेशान हैं, तो हमेशा सोने से पहले घर के चारों कोनो समेत बिस्तर के पास नींबू का टुकड़ा काट कर रख दें. इसकी सुगंध से मच्छर-मक्खियां ही नहीं, बल्की कीड़े-मकोड़े भी आपके करीब नही आ सकेंगे.इस बीमारी से मिलेगी राहतदिनभर की भागदौड़ और अगले दिन के कामों की चिंता के चलते कई लोगों को इनसोमेनिया यानी अनिद्रा या कम नींद की समस्या होती है. ऐसे में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. अगर आपको भी इनसोमेनिया की समस्या है तो रोज रात को नींबू का टुकड़ा अपने बिस्तर के नजदीक रख दें. लिहाजा आप देखेंगे कि नींबू की खुशबू से आपका दिमाग कुछ ही देर में एकदम शांत हो जाएगा और आप चैन से नींद ले सकेंगे.
- हिंदू धर्म में लाल रंग का बहुत महत्व है. बात चाहे पूजन के दौरान भगवान की मूर्ति के नीचे वस्त्र बिछाने की हो या सुहाग के रंग की हो या फिर अन्य शुभ कार्यों में प्रमुख रंगों के उपयोग की हो, सभी में लाल रंग का उपयोग ही ज्यादा होता है. लाल के अलावा हिंदू धर्म में पीले और नीले रंग को भी खासी प्रमुखता दी गई है. इन्हीं तीन रंगों में हरा, केसरिया, नारंगी आदि रंग समाए हुए हैं. इनकी अहमियत को ऐसे भी समझ सकते हैं कि पंच तत्वों में से एक अग्नि की लौ में भी यही तीन रंग नजर आते हैं. आज जानते हैं कि लाल रंग की क्या खात बातें हैं.- लाल रंग अग्नि, रक्त और मंगल ग्रह का भी रंग है.- लाल रंग उत्साह, सौभाग्य, उमंग, साहस और नए जीवन का प्रतीक है. हालांकि, लाल रंग उग्रता का भी प्रतीक है. लिहाजा जिन लोगों को क्रोध ज्यादा आता है, उन्हें लाल रंग के कपड़े कम पहनने की सलाह दी जाती है.- हिन्दू धर्म में लाल रंग को सुहाग का रंग माना गया है, इसलिए विवाहित महिलाएं लाल रंग की साड़ी और लाल सिंदूर लगाती हैं.- यहां तक कि लाल रंग का संबंध प्रकृति से भी है. आप देखेंगे तो पाएंगे लाल रंग या उससे मेल खाते रंगों के ही फूल सबसे ज्यादा पाए जाते हैं.- लाल और केसरिया रंग सूर्योदय और सूर्यास्त के भी रंग है.- लाल रंग माता लक्ष्मी का पसंदीदा रंग है. मां लक्ष्मी लाल वस्त्र पहनती हैं और लाल रंग के कमल पर शोभायमान रहती हैं. उनकी पूजन करने के दौरान भी लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर उनकी प्रतिमा रखकर की जाती है.- रामभक्त हनुमान को भी लाल और सिन्दूरी रंग प्रिय हैं इसलिए उन्हें सिन्दूर अर्पित किया जाता है.- मां दुर्गा के मंदिरों में भी लाल रंग का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है.- कहा जाता है कि यह रंग चिरंतन, सनातनी, पुनर्जन्म की धारणाओं को बताने वाला रंग है.- हिंदू धर्म में विवाह के समय दूल्हा-दुल्हन के शादी के जोड़े में लाल रंग को ही प्रमुखता दी जाती है. इस रंग को उनके भावी जीवन में आने वाली खुशियों से जोड़ा जाता है.-सुहाग, खुशी के अलावा केसरिया रंग त्याग, बलिदान, शौर्य, वीरता, ज्ञान, शुद्धता और सेवा का भी प्रतीक है. चाहे राम, कृष्ण और अर्जुन के रथों का ध्वज हो या शिवाजी की सेना का ध्वज हो, सभी का रंग केसरिया ही था.- सनातन धर्म साधु-संन्यासी भी केसरिया रंग के वस्त्र ही पहनते हैं. यह उनके मोक्ष के मार्ग पर चलने के संकल्प को दर्शाता है. भगवा वस्त्रों को संयम, संकल्प और आत्मनियंत्रण का भी प्रतीक माना गया है.
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प्राचीन काल से ही भारत में गोधन को मुख्य धन मानते आए हैं और हर प्रकार से गौरक्षा,गौसेवा एवं गौपालन पर ज़ोर दिया जाता रहा है। हमारे हिन्दू शास्त्रों, वेदों में गौरक्षा,गौ महिमा, गौ पालन आदि के प्रसंग भी अधिकाधिक मिलते हैं। गाय, भगवान श्री कृष्ण को अतिप्रिय है। गौ पृथ्वी का प्रतीक है। गौ माता में सभी देवी-देवता विद्धमान रहते है सभी वेद भी गौओं में प्रतिष्ठित है। गाय से प्राप्त सभी घटकों में जैसे दूध, घी, गोबर अथवा गौमूत्र में सभी देवताओं के तत्व संग्रहित रहते हैं। माना जाता है कि धरती पर गाय ही ऐसा एक मात्र प्राणी है जो ऑक्सीजन ग्रहण करती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है। वास्तुशास्त्र और चीनी मान्यता फेंगशुई के अनुसार घर में कामधेनु गाय की मूर्ति रखने से अनेक लाभ मिलते हैं।
संतान प्राप्ति के लिएमान्यता है कि अपने बछड़े को स्तनपान करा रही गाय का गैजेट शयनकक्ष में लगाने से नि:संतानता की समस्या दूर होती है और स्वस्थ व गुणवान संतान की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि अपने बछड़े को दूध पिला रही गाय के प्रतीक रूप को घर में स्थापित करने से न सिर्फ योग्य संतान की प्राप्ति होती है, बल्कि ऐसी संतान को कभी भी धन का अभाव नहीं होता। गाय के इस प्रतीक को दंपत्ति अपने बेडरूम में इस तरह रहें जिससे उनकी नजऱ बार-बार इस पर पड़े।सौभाग्य के लिएसिक्कों के ढेर पर बैठी हुई गाय का प्रतीक रूप वास्तु और फेंग्शुई में बहुत लोकप्रिय है। ऐसा प्रतीक घर या दफ्तर कहीं भी स्थापित किया जा सकता है, जो कि परिवार व संस्थान के लिए सौभाग्य व समृद्धि आमंत्रित करता है। व्यापार में वृद्धि के लिए इसे कार्यालय में रखना एक बहुत ही कारगर उपाय है जिसके परिणामस्वरूप सकारात्मकता और सफलता मिलती है। ध्यान रहे गाय के प्रतीक को हमेशा दक्षिण-पूर्व दिशा में रखने से परिणाम बहुत अच्छे मिलते हैं।मिलती है मानसिक शांतिकई बार जीवन में ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि क्या सही है और क्या गलत,उस स्थिति से निपटने के लिए घर या कार्यालय में गाय की प्रतिमा को रखना काफी लाभप्रद हो सकता है क्योंकि ये व्यक्ति की सहनशीलता को बढ़ाती है, जिससे व्यक्ति सही निर्णंय लेने में सक्षम बनता है। गाय का यह गैजेट न सिर्फ मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि हमारी उचित इच्छाओं को पूरी करने में मददगार भी होता है। कामधेनु गाय का यह प्रतीक कठिन दौर व मुश्किलों से जूझने की शक्ति भी प्रदान करता है। मानसिक शांति के लिए भी इसे घर में दक्षिण-पूर्व में स्थापित करना चाहिए। इसे तस्वीर के रूप में भी दीवार पर लगाया जा सकता है।करियर में सफलता के लिएयदि किसी मनुष्य को अपने करियर में बार-बार असफलता या बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है और लगातार प्रयास करने के वाबजूद सफलता प्राप्त नहीं हो रही है,तो अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए वह अपने स्टडी रूम या ऑफिस में गाय की मूर्ति को लगाकर शुभ परिणाम प्राप्त कर सकता है। आप जो भी काम करते हैं,ये आपके फोकस को बढ़ाने में आपकी मदद करेगी एवं करियर संबंधी दिक्क्तों को दूर करने में सहायता करती है। इसे अपने ऑफिस टेबल पर स्थापित करें यह आपको मेहनत का उचित फल दिलाने में सहायक होगी। पढ़ाई में एकाग्रता व परीक्षा में सफलता पाने के लिए इसे विद्यार्थियों की स्टडी टेबल पर रखना चाहिए।--- - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 303
(साधना-मार्ग सावधानी का मार्ग है, जैसे मार्ग में चलते हुये असावधानी हो तो दुर्घटना घट जाती है, ऐसे ही साधना की महत्वपूर्ण सावधानियों से अवगत होना आवश्यक है. जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज इसी विषय पर राय प्रदान कर रहे हैं...)
कोई अपना नुकसान करे तो उसकी होड़ नहीं करना है। जो अच्छा कर रहा है, अरे! देखो ये आँसू बहा रहा है, और मैं पत्थर सरीखा बैठा हूँ, केवल भगवन्नाम ले रहा हूँ। इतना अहंकार है मुझको। क्या है मेरे पास? क्या मैं रूप में कामदेव हूँ, क्या मैं धन में कुबेर हूँ, क्या मैं ऐश्वर्य में इंद्र हूँ, क्या मैं बुद्धि में बृहस्पति हूँ, क्या हूँ मैं, किस बात का अहंकार है मुझको जो भगवान के सामने भी हमारे हृदय में दैन्य भाव नहीं आता, आँसू नहीं आते, ये फील करना है। बार-बार, बार-बार फील करने से फिर आँसू आने लगेंगे। लेकिन ऐसा करने पर भी अगर आँसू नहीं आते तो परेशान न हों। रूपध्यान करते रहो, लगे रहो पीछे, एक दिन आयेगा। आज नहीं कल। रूपध्यान सबसे प्रमुख है, उसका अभ्यास, लगातार करना चाहिये। वो पक्का हो जाय। वो जड़ है, जड़। जैसे मकान की नींव पक्की हो जाय फिर चाहे जितनी ऊँची बिल्डिंग बना लो कोई डर नहीं, कोई खतरा नहीं। तो इस प्रकार आप लोग सावधान होकर साधना करें तो वास्तविक फल प्राप्त करेंगे और हमको भी बड़ी खुशी होगी।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधना-नियम' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)×(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)* - रत्न ग्रहों पर सीधा असर डालते हैं. ज्योतिष में विस्तार से इनके लाभ-हानि और इनसे जुड़े उपायों के बारे में बताया गया है. ऐसा ही एक रत्न है माणिक्य. चूंकि सूर्य अग्नि प्रधान ग्रह है और माणिक्य उसका प्रमुख रत्न है. लिहाजा माणिक्य बहुत शक्तिशाली रत्न है. यह आंखों, हड्डियों, ह्रदय और नाम-प्रतिष्ठा पर सीधा असर डालता है. माणिक्य कई रंगों का होता है, लेकिन गुलाबी रंग का माणिक्य काफी प्रभावशाली होता है और जल्दी असर दिखाता है. हालांकि यह असर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं.कैसे पहनें माणिक्यहमेशा गुलाबी या लाल रंग के पारदर्शी माणिक्य को ही पहनने के लिए चुनें. इसे सोने या ताम्बे में पहनना चाहिए. इसे रविवार के दिन दोपहर में अनामिका अंगुली में धारण करना अच्छा होता है.माणिक्य पहनने के फायदे-नुकसानमाणिक्य पहनने से होने वाली लाभ-हानि पहचानना काफी आसान है. लाभ होने की स्थिति में चेहरा चमकने लगता है और आत्मविश्वास बढ़ जाता है. वहीं राजकीय और प्रशासन से जुड़े कामों में विशेष लाभ होने लगता है. पिता और परिवार से रिश्ते अच्छे होने लगते हैं. इसके नकारात्मक असर को जानना है तो इसे शारीरिक समस्याओं से जान सकते हैं, जैसे- इसे पहनने के बाद लगातार सर में दर्द होने लगता है. हड्डियों में और आंखों में समस्या होने लगती हैं. इसके अलावा मानहानि और पारिवारिक जीवन में समस्याएं आना भी इसके नकारात्मक प्रभाव की निशानी हैं.माणिक्य पहनते समय रखें इन बातों का ध्यानयदि माणिक्य पहन रहें हैं तो इसके साथ हीरा, नीलम, गोमेद और लहसुनियां कभी नहीं पहनना चाहिए. वहीं माणिक्य के साथ पीला पुखराज धारण करना सर्वोत्तम होता है. इसके अलावा कुछ और बातों का भी ध्यान रखना चाहिए.- कोशिश करें कि कुंडली दिखाकर ही माणिक्य या अन्य कोई भी रत्न धारण करें. यदि कुंडली नहीं है तो जरूरत के अनुसार माणिक्य धारण कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए विशेषज्ञ से परामर्श लें कि इससे आपको इससे कोई नुकसान तो नहीं होगा.- मेष, सिंह और धनु लग्न में माणिक्य पहनना सर्वोत्तम होता है. वहीं कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न में यह साधारण परिणाम देता है.- वृषभ लग्न में विशेष दशाओं में ही माणिक्य धारण कर सकते हैं.- कन्या, मकर, मिथुन, तुला और कुम्भ लग्न में माणिक्य धारण करना खतरनाक हो सकता है.- जिन लोगों को उच्च रक्तचाप या ह्रदय रोग है उन्हें बहुत सोच-समझकर और विशेषज्ञ से परामर्श के बाद ही माणिक्य पहनना चाहिए.- जिन लोगों के सम्बन्ध पिता के साथ ठीक नहीं हैं, उनके लिए भी माणिक्य पहनना हानिकारक हो सकता है.- जो लोग शनि से सम्बंधित क्षेत्रों में हैं, उन्हें भी माणिक्य धारण नहीं करना चाहिए.
- नींद में आए सपनों के पीछे अवचेतन मन में चल रहे विचार तो जिम्मेदार होते ही हैं। इसके अलावा सपने भविष्य के कई इशारे भी देते हैं. भविष्य के ये संकेत समझने के लिए हिंदू धर्म में स्वप्न शास्त्र लिखा गया है. इसमें कमोबेश हर सपने के शुभ-अशुभ परिणामों के बारे में बताया गया है. आज जानते हैं कि सपने में पानी दिखने के क्या मतलब होते हैं.सपने में नदी देखनास्वप्न शास्त्र के मुताबिक सपने में नदी देखना बहुत शुभ होता है. इसके अलावा नदी में स्वयं को पानी में तैरते हुए देखना भी अच्छा होता है. इसका मतलब है कि जल्दी ही आपके सपने और इच्छाएं पूरी होने वाली हैं. साथ ही आपको सफलता पाने के नए अवसर भी मिलेंगे.सपने में समुद्र देखनासपने में समुद्र का पानी देखना अच्छा नहीं होता है. यदि ऐसा सपना आए तो वाणी पर नियंत्रण रखें क्योंकि समुद्र का पानी खारा होता है. ऐसे सपने का मतलब है कि आप कड़वा बोलकर किसी वाद-विवाद में फंस सकते हैं.सपने में बाढ़ का पानी देखनाबाढ़ का पानी देखना भी अशुभ संकेत माना गया है. इससे मतलब है कि कोई अशुभ समाचार प्राप्त हो सकता है. ऐसा सपना देखने पर तुरंत इसके उपाय करने चाहिए.सपने में गंदा या साफ पानी देखनासपने में गंदा पानी देखना भी शुभ नहीं माना जाता है. वहीं साफ पानी देखने का मतलब है कि कामों में सफलता मिलेगी. खासकरके यह नौकरी और व्यापार में तरक्की का इशारा देता है.सपने में बारिश देखनायह सपना आपकी जिंदगी के लिए शुभ संकेत है. यह बताता है कि जल्द ही आपको सफलता मिलने वाली है या कहीं से शुभ समाचार भी मिल सकता है.सपने में कुएं का पानी देखनाकुएं का पानी देखना भी शुभ होता है. यह सपना संकेत देता है कि आपको अचानक धन लाभ हो सकता है.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 302
(साधक को सदा गुरु के सिद्धान्त के अनुकूल ही सोचना, चलना चाहिये. इसके अतिरिक्त और कुछ महत्वपूर्ण मार्गदर्शन, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की श्रीवाणी में...)
मनुष्य में एक ही विशेषता है, वह यह कि वह किसी तत्व का सत्य ज्ञान प्राप्त कर सकता है। लेकिन जब तक उस तत्व के अनुकूल बार-बार विचार न किया जाय, वह ज्ञान मिट जाता है एवं मनुष्य को और भी पतन के गर्त में गिरा देता है।
बार-बार विचार हो और सदा हो, और अनुकूल ही हो, बस, यदि यह समझ में कभी आ जायेगा तो भविष्य बन जायेगा। इसके साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि इष्टदेव एवं गुरु के प्रति निष्ठा करता रहे। यदु वहीं गड़बड़ हुई तो सब महल ढह जायेगा। और ऐसे व्यवहार से इष्टदेव अथवा गुरु को और भी दुःख देने के हम कारण बन जायेंगे। भावार्थ यह कि चार पैसे की खोपड़ी को उधर न लगाया जाए, सदा अनुकूल चिन्तन एवं कृपा को ही सोचा जाय। संसारी जीवों से कम से कम व्यवहार किया जाय, कम से कम सोचा जाय, कम से कम सुना जाय, कम से कम बोला जाय।
केवल गुरु के मिलन का महत्व सोच-सोचकर ही जीव का परम कल्याण हो सकता है क्योंकि वह प्रत्यक्ष है। यदि बुद्धि का व्यापार बंद न होगा तो अनन्त जन्म में भी कुछ न मिलेगा। यही एकमात्र विचारणीय है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, नवम्बर 1999 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 301
(किस प्रकार की साधना से लाभ होगा, किससे नहीं, आइये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के इस प्रवचन-अंश से जानें, यह अंश उनके द्वारा प्रगटित प्रवचन-श्रृंखला 'दिव्य-स्वार्थ' से लिया गया है, जो उन्होंने 8-प्रवचनों में सन 1992 में दी थी, यह अंश 5-वें प्रवचन का है, जो उन्होंने 28 जनवरी 1992 में दी थी।)
...गौरांग महाप्रभु ने दो प्रकार की साधना बताया है। एक अनासंग साधना, एक सासंग साधना। तो अनासंग साधना माने आसंग रहित और सासंग साधना माने आसंग सहित और आसंग माने मन का चिन्तन भगवान का हो। मन का संग भगवान के रूपध्यान में हो, वो साधना सासंग साधना है।
अनासंग साधना के लिये उन्होंने कहा, करोड़ों कल्प किये जाओ इससे कुछ नहीं मिलेगा। अब ये अलग बात है कि कोई कहे साहब नथिंग से समथिंग अच्छा है, ठीक है, गधा-गधा कहने से राम-राम कहना अच्छा ही है, लेकिन यह साधना नहीं है। फिर आप जब बहुत दिन हो जाते हैं, तो कहते हैं, महाराज जी! हमको तो बहुत दिन हो गये कुछ लड्डू-पेड़ा मिला नहीं। जब साधना ही गलत हो रही है, तो माइलस्टोन तुम्हें कहाँ मिल जायेगा कि हम दस मील चले आये, बीस मील चले आये, अरे मार्ग से आगे बढ़ो। तुम तो एक ही जगह पर खड़े-खड़े मार्चिंग कर रहे हो।
तो सासंग साधना यानी स्मरण भक्ति सबसे प्रमुख है, और स्मरण भक्ति कहीं भी किसी भी पोजिशन में सदा की जा सकती है, ये भी रियायत दे दिया भगवान ने। लैट्रिन में बैठे हैं दस मिनिट बैठना है उसमें, रूपध्यान करो। फालतू टाइम न खराब करो। कहीं भी जाओ, ट्रेन में बैठे हैं, सफर कर रहे हैं, बारह घंटे ट्रेन में चलना है। हाँ यहाँ से वहाँ पहुँचने तक बीच में कोई काम खास है। अरे एक जगह चाय पीना है। कब? दो घंटे बाद पीयेंगे, अच्छा! अब दो घंटे तो कोई काम नहीं? नहीं। स्मरण करो। आँख खोलकर स्मरण करो, नहीं तुम्हारा सामान उठा ले जाय, कोई और कहो कृपालु ने कहा है, आँख बंद करके रूपध्यान करो। हाँ, यानी तुम्हारे मस्तिष्क में पहले यह खूब भरना चाहिये कि स्मरण भक्ति ही वास्तविक भक्ति है।
स्मरण भक्ति के बिना कोई भी साधना, साधना कैसे कहलायेगी, साधना का मतलब, हम दास वो स्वामी। जब स्वामी ही नहीं आया हमारे अंतःकरण में, तो हम भक्ति कहाँ कर रहे हैं? किसकी कर रहे हैं?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'दिव्य-स्वार्थ' प्रवचन-श्रृंखला०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)