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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 292
साधक का प्रश्न ::: क्या मीमांसा दर्शन पढ़ने से साधना में कुछ लाभ होगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: दो प्रकार का धर्म होता है; एक का नाम अपर धर्म, एक का नाम पर धर्म। एक का नाम शारीरिक धर्म, एक का नाम आध्यात्मिक धर्म। हमारे पास दो चीजें है; एक 'मैं' आत्मा और एक शरीर। शरीर के लिए धारण करने वाली चीज का नाम शारीरिक धर्म, आत्मा के लिए धारण करने वाली चीज का नाम आध्यात्मिक धर्म; बस दो ही धर्म होता है। तीसरा हो ही नहीं सकता।
तो शारीरिक धर्म जो है उसका दूसरा नाम है वर्णाश्रम धर्म। वेदों में, स्मृतियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र - ये चार वर्ण हैं और ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास - ये चार आश्रम हैं। तो इन वर्ण और आश्रम के लिए, जो कायदे कानून वेद में बताये हैं, उसको धर्म कहते हैं, शारीरिक। और आत्मा के कल्याण के लिए जो धर्म बताया गया है, भगवान् को धारण करना, वो है आध्यात्मिक धर्म, पर धर्म, दिव्य धर्म, स्वाभाविक धर्म। जो बदल न सके। ये (शारीरिक) धर्म तो बदलता रहता है न। ब्राह्मण का दूसरा, क्षत्रिय का दूसरा, वैश्य का दूसरा, शूद्र का दूसरा धर्म, और एक में भी पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचारी के लिए एक धर्म बताया गया फिर बदल गया वो। पच्चीस साल तक तो बताया गया कि लड़की की फोटो नहीं देखना। और पच्चीस साल बाद कहा गया कि लड़की से ब्याह कर लो, बदल गया धर्म। फिर बाल बच्चे-कच्चे नाती-पोते हुए तो वानप्रस्थ आया, तो ये हुआ कि देखो तुम स्त्री-पति खाली दो, अलग हो जाओ जंगल चले जाओ, बच्चों को छोड़ दो। अब वो चला पच्चीस साल तो संन्यास आया, तो उन्हें कहा ये स्त्री-विस्त्री कुछ नहीं होती, स्त्री को छोड़ो, तुम पति को छोड़ो अलग हो जाओ दोनों। जाओ अलग-अलग साधना करो। यानी बदल रहा है धर्म। लेकिन आत्मा का धर्म नहीं बदलता। ब्रह्मचारी के लिए भी आज्ञा है - भगवान् की भक्ति करो, गृहस्थी के लिए भी - भगवान् की भक्ति करो, वानप्रस्थी के लिए भी। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र, चाण्डाल कोई हो;
पुरुष नपुंसक नारि नर, जीव चराचर कोय।
सबको भक्ति करना है। तो मीमांसा दर्शन जो है वो शारीरिक धर्म बताता है। यज्ञादिक करना और देवी देवताओं को खुश करना - स्वर्ग के लिए। वो नश्वर है, मूर्ख लोग उनके चक्कर में पड़ते हैं। मीमांसा दर्शन का शंकराचार्य ने खंडन किया और वेदान्त दर्शन का सबको सिद्धांत बताया कि आत्मा का धर्म मानो, भगवान् की भक्ति करो तो मोक्ष होगा। स्वर्ग मिल भी जाय अगर, तो वो चार दिन के लिये मिलेगा उसके बाद फिर कुत्ते, बिल्ली, गधे बनो। और फिर ये मीमांसा दर्शन में, कर्मकांड में यानी शारीरिक धर्म में बड़े कड़े-कड़े कानून है। जैसे यज्ञ करना है, हवन करते हैं आप लोग। ये पंडित लोग कराते हैं, इसमें छः नियम हैं।
पहला नियम 'देश' - कहाँ पर यज्ञ किया जाय? हर जगह नहीं हो सकता, वो भी शास्त्र के द्वारा इन्क्वायरी करो कहाँ कौन-सा स्थान यज्ञ के लायक है। ये देश। फिर 'काल' - किस समय यज्ञ हो? हर समय नहीं हो सकता। उसका मुहूर्त होता है और फिर 'कर्ता' - जो यज्ञ करने वाला है वो इतना बड़ा श्रद्धालु हो, और अंतःकरण इतना उसका पवित्र हो कि देवताओं को बुला सके, ये नंबर तीन। नंबर चार जिससे यज्ञ हो रहा है वो जौ, तिल वगैरह वो सही कमाई का हो। ऐसा नहीं कि हम कहीं से किसी तरह से कमा के ले आवें। वर्णाश्रम धर्म के अनुसार कमाया हुआ जो पैसा है, उससे वो द्रव्य आवे इत्यादि इतने कड़े-कड़े नियम हैं, जो कलियुग में असंभव हैं। तो मीमांसा दर्शन को जानना कठिन, करना असंभव और फल स्वर्ग। इसलिए इसकी बात बिलकुल मत सोचना।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 3०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 291
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त कुछ दिशा-निर्देश जो कि साधक-समुदाय सहित जनसाधारण के लिये भी पालनीय थे, कल के अंक में प्रकाशित किये गये थे। आज उसी के आगे का शेष भाग प्रकाशित किया जा रहा है। इन निर्देशों पर भली-भाँति विचार कर उन्हें व्यवहार में उतारने से अवश्य ही भौतिक जगत में भी लाभ प्राप्त होगा, आध्यात्मिक क्षेत्र में तो निश्चय लाभप्रद है ही। आइये इन बिन्दुओं को समझने का प्रयास करें....)
(1) दीनता लाना और अभिमान का त्याग :::
अहंकार से बचना और अपमान फील न करना भक्ति की आधारशिला है। तृण से अधिक दीन भाव रहे, वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु भाव रहे, सबको सम्मान दो, स्वयं सम्मान न चाहो। मूड ऑफ होने पर बोलो मत। अन्दर जितनी देर तक गुस्सा आये उसको विवेक से काटते रहो। सोचो इससे हमारे शरण्य को कष्ट होगा। अपनी गलती मान लो। अगर कोई भला बुरा कहता है तो सोचो इसने कौन सी नई बात कह दी। भगवत्प्राप्ति से पहले हममें सब अवगुण ही तो भरे पड़े हैं।
(2) सहनशीलता का गुण धारण करना :::
द्वेष करने वाले के प्रति भी द्वेष न करो। दूसरों की गलती के प्रति सहनशील बनो। गलती प्रत्येक व्यक्ति करता है, अतः सबसे नम्रता व दीनता का व्यवहार करो।
(3) युवा लड़के-लड़कियों के लिये सावधानी :::
युवा लड़के-लड़कियाँ ध्यान रखें, किसी की वाणी और व्यवहार के चक्कर में न आयें। कोई भी लड़की किसी भी लड़के को किसी प्रकार के शारीरिक कॉन्टैक्ट की फ्रीडम न दे। जैसे आप दाँत काढ़ रहे हैं, मज़ाक कर रहे हैं, कंधे पर हाथ रख दिया। यह तो हमारा भैया, चाचा का लड़का, ताऊ का लड़का है। तुरंत संभल जाओ। शरीर से दूर और आँखों से संभल कर व्यवहार करो।
(4) कुसंग से अपनी साधना का बचाव :::
कुसंग से बचो। भक्ति विरोधी हर ज्ञान, वस्तु, व्यक्ति कुसंग है। अपने गुरु, मार्ग, इष्ट को छोड़कर अन्य का संग कुसंग है।
(5) दूसरों के दोष न देखना, अपने दोषों का सुधार करना :::
जब गुरु कोई बात पूछे तो भोले बच्चे की भाँति सीधा सा उत्तर दिया करो। उनसे कुछ भी छिपाना सर्वनाश का कारण है। जो दोष बताया जाय तो निरन्तर उसका चिन्तन करो और कोशिश करो कि भविष्य में वह न होने पाये। दूसरे के दोष न देखो, परनिंदा न करो। दूसरों को सुधारने के लिये भी उनके दोष न देखो। लोगों को दूसरों की तो बड़ी भारी फिक्र है लेकिन हमारा क्या होगा, इसकी फिक्र क्यों नहीं करते हो?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, 2012 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - यह तो सभी जानते हैं कि नींद का संबंध सीधे हमारी सेहत से होता है। जहां पूरी और सुकून भरी नींद लेने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है तो वहीं यदि सही प्रकार से न सो पाने के कारण कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। वास्तु और हमारे शास्त्रों में भी शयन (सोना) से संबंधित कुछ नियम बताए गए हैं। कई बार हम पूरे दिन के थके हुए होते हैं और ऐसे ही जाकर सो जाते हैं। जो कि स्वाथ्य के लिए तो नुकसानदायक होता ही है साथ ही में आपको कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। वास्तु कहता है कि व्यक्ति किस दिशा में सोता है, इस बात का प्रभाव उसकी सेहत और आर्थिक स्थिति दोनों पर पड़ता है इसलिए सही दिशा में सोना आवश्यक है। तो चलिए जानते हैं सोने के सही नियम और दिशा।-वास्तु के अनुसार पूर्व की दिशा की और सिर करके सोना शुभ रहता है। इस दिशा में सिर करके सोने से सकारात्मकता में बढ़ोत्तरी होती है। पूर्व दिशा की ओर सोने से पठन-पाठन में भी एकाग्रता बढ़ती है।-वास्तु के अनुसार पश्चिम दिशा की तरफ सिर करके सोना भी लाभप्रद रहता है। इस दिशा की ओर सिर करके सोने से यश कीर्ति में बढ़ोत्तरी होती है।-वास्तु में वैसे तो उत्तर दिशा को बहुत ही शुभ दिशा माना गया है लेकिन इस दिशा की ओर सिर करके सोना स्वास्थ्य की दृष्टि से सही नहीं रहता है। इस दिशा की ओर सिर करके सोने से शरीर में रोग पनपते हैं।-दक्षिण दिशा की तरफ सिर करके सोना भी फायदेमंद रहता है। इस दिशा में सिर करके सोने से नकारात्मक विचार नहीं आते हैं साथ ही तनाव भी नहीं रहता है। इसके अलावा दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से सुख-समृद्धि में बढ़ोत्तरी होती है। किसी प्रकार से धन की कमी नहीं होती है।शास्त्रों के अनुसार सोने के नियम-कभी भी टूटी खाट, टूटे पलंग, मैले बिस्तर और जूठे मुंह नहीं सोना चाहिए।-कभी भी निर्वस्त्र होकर नहीं सोना चाहिए।-ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार दिन में तथा सूर्योदय के बाद तक एवं सूर्यास्त के समय नहीं सोना चाहिए। इससे शरीर में सोने से शरीर में रोग पनपते हैं और दरिद्रता आती है।-कभी भी सूने-निर्जन घर, श्मशान, मंदिर के गर्भगृह और अंधेरे कमरे में शयन नहीं करना चाहिए।-कभी भी बिस्तर पर बैठकर खाना नहीं चाहिए।---
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 290
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त निम्न तीन मार्गदर्शन न केवल साधक-समुदाय के लिये, अपितु जनसाधारण के लिये भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। शरीर और आत्मा - दो अलग-अलग चीजें हैं, परन्तु वे एक-दूसरे पर आश्रीत हैं। भक्ति-साधना के लिये भी शारीरिक स्वास्थ्य परमावश्यक है और भौतिक जगत के लिये तो है ही है। अतः आइये शरीर सहित व्यवहार आदि सम्बन्धी इन मार्गदर्शन पर विचार करें....)
(1) आहार-विहार के सम्बन्ध में :::
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है;
युक्ताहार विहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥(गीता 6-17)
आहार विहार सब नियमित होना चाहिये। शरीर को जिन जिन तत्त्वों की आवश्यकता है वे सब आपके खाने में होने चाहिये, विटामिन ए , बी, सी, डी सब होने चाहिये। जबान के लिये मत खाओ। खाने के लिये ज़िन्दा न रहो, जिन्दा रहने के लिए खाओ। यह पहला आदेश है, जिस व्यक्ति की खाने पीने की कामना कम हो जाती है उसकी अन्य वासनायें या विषय भी निर्बल हो जाते हैं।
(2) संसार में व्यवहार के सम्बन्ध में :::
दूसरा आदेश है व्यवहार का। अपने व्यवहार को संसार के अनुकूल बनाओ। इसमें बहुत लोग भूल किया करते हैं। कहते हैं अजी हमसे किसी की खुशामद नहीं होती, किसी की गुलामी नहीं होती। यह गुलामी और खुशामद दो प्रकार की होती है - एक एक्टिंग में और एक फैक्ट में। हम फैक्ट में नहीं कह रहे हैं किसी के आगे झुक जाओ। फैक्ट में तो केवल हरि हरिजन के आगे झुकना है। संसार में तो केवल व्यवहार करना है। कम बोलो, मीठा बोलो। अपने व्यवहार को मधुर बनाओ।
(3) नींद के सम्बन्ध में :::
नींद जो है वो तमोगुण है। जाग्रत अवस्था में भी हम सत्वगुण में जा सकते हैं, रजोगुण में भी जा सकते हैं, तमोगुण में भी जा सकते हैं। लेकिन नींद जो है वो प्योर तमोगुण है। बहुत ही हानिकारक है। अगर लिमिट से अधिक सोओ तो भी शारीरिक हानि होती है। आपके शरीर के जो पार्टस हैं उनको खराब करेगा वो अधिक सोना भी। रेस्ट की भी लिमिट है। रेस्ट के बाद व्यायाम आवश्यक है। देखिये शरीर ऐसा बनाया गया है कि इसमें दोनों आवश्यक हैं। तुम्हें संसार में कोई जरूरी काम आ जाये या कोई बात हो जाये, या कोई तुम्हारा प्रिय मिले तब नींद नहीं आती। इसलिये कोई फिज़िकल रीज़न नहीं, कारण केवल मानसिक वीकनेस है। लापरवाही, काम न होना नींद आने का कारण है। हर क्षण यही सोचो कि अगला क्षण मिले न मिले अतएव भगवद् विषय में उधार न करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, 2012 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - शनि अब कुछ ही दिनों के बाद वक्री चाल से चलने वाले हैं। वक्री चाल से मतलब उल्टी चाल से हैं। सभी ग्रहों में सबसे धीमी चाल से चलने वाले शनि ग्रह 24 जनवरी 2020 से मकर राशि में हैं। मकर राशि शनिदेव की स्वयं की राशि हैं। शनि जब भी किसी एक राशि को छोड़कर अगली राशि में प्रवेश करते हैं तब किसी राशि पर शनि की साढ़े साती सवार हो जाती है। शनि की साढ़े साती आरंभ होने पर कई तरह की परेशानियां, बीमारियां और कष्ट मिलने आरंभ हो जाते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं साल 2021 में किन-किन राशि पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है।धनु राशिधनु राशि के जातकों पर शनि की साढ़े साती का आखिरी चरण चल रहा है। शनि की साढ़े साती किसी राशि पर तीन चरणों में आती है। साढ़े साती का अंतिम चरण ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला नहीं होता, लेकिन जातक के जीवन में परेशानी बन रहती है। पूरी तरह से साल 2023 से धनु राशि पर से शनि साढ़े साती खत्म हो जाएगी।मकर राशिमकर राशि पर शनि की साढ़े साती का दूसरा चरण चल रहा है। दूसरा चरण चलने की वजह से सही समय पर आपके काम नहीं बन रहे होंगे। बीमारियां घेरे हुई हैं और लगातार आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। 2025 में मकर राशि से शनि की साढ़े साती खत्म होगी। शनि जब मीन राशि में गोचर करेंगे तब मकर राशि के जातकों को शनि की साढ़े साती के प्रभाव से मुक्ति मिलेगी।कुंभ राशिशनि के मकर राशि में गोचर करने के कारण कुंभ राशि पर शनि की साढ़े साती का पहला चरण चल रहा है। कुंभ राशि पर साढ़े साती होने की वजह से कई तरह की परेशानियां पीछा करती हैं। कुंभ राशि से पूरी तरह शनि की साढ़े साती 23 जनवरी 2028 को हटेगी।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 289
(भूमिका - महापुरुष का मिलन या किसी भी प्रकार से सान्निध्य प्राप्त होना; चाहे वह प्रत्यक्ष हो, टीवी, टेप, मोबाईल आदि किसी भी रूप में हो, तब कुछ विशेष सावधानियाँ रखकर हम उस सानिध्य से बहुत विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं, जो लापरवाहीपूर्ण सत्संग/सान्निध्य से नहीं प्राप्त हो सकेंगे. जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत इस प्रवचन अंश में इसी तत्व की ओर इंगित किया गया है...)
..अगर आपको कभी जीवन में कोई महापुरुष मिल जाये, कोई रसिक मिल जाये एक क्षण को एक घण्टे, दो घण्टे को, यद्यपि ऐसा अवसर मिलना अनन्त जन्मों के पुण्य से भी असम्भव है। अनंत साधनाओं से भी ऐसा सौभाग्य नहीं मिलता। वो तो केवल भगवत्कृपा, गुरु-कृपा से ही मिलता है। तो भगवत्कृपा से ऐसा अवसर कभी मिले तो आप लोग इस लूट से कभी न चूकिये। वो कौन सी लूट है?
जैसे वो संकीर्तन में कुछ भी बोलते हैं, पद बोलते हैं, भगवन्नाम बोलते हैं, तो उनकी आवाज को बहुत ध्यानपूर्वक सुनिये। यदि आप न भी बोलिये तो भी आप भगवत्प्राप्ति कर सकते हैं, उनके आवाज सुनकर के समाधिस्थ हो सकते हैं। लेकिन इतना ध्यान रखिये की जब वो महापुरुष बोल रहा हो तो बहुत ध्यान से प्रत्येक क्षण समाहितचित्त (मन को एकाग्र कर) होकर के उसकी आवाज को सुनिये। उसकी आवाज में अलौकिकता होती है। जितना ध्यान से आप सुनेंगे उतना ही आप शीघ्र अन्तःकरण में प्रेम का अंकुर उत्पन्न कर सकेंगे।
इसलिये जरा भी लापरवाही न कर के उनके प्रत्येक क्षण की प्रत्येक आवाज को ध्यान से सुनकर फिर उसके बाद बोलिये। तो आप के हृदय में वो आवाज जाकर, छू जायेगी। जब आपके अन्तः करण में महापुरुष की आवाज छू जायेगी तो फिर आपके हृदय में एक विलक्षण सी गुद्गुदी और विलक्षण सा दर्द, और अजीब आनन्द जिसे आप ने कभी नहीं पाया, उसका अनुभव होगा। इसलिये इस लाभ को भी सदा मस्तिष्क में रखें।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'रूपध्यान' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन देवी के अपराजिता रूप की पूजा करने से सभी परेशानियां दूर होती हैं. इसी दिन मां बगलामुखी की जयंती भी होती है. इस बार वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि का व्रत कुछ जगह बुधवार को और कुछ जगह गुरुवार को किया जाएगा. दरअसल, यह तिथि 19 मई से शुरू होकर 20 मई को भी जारी रहेगी. यह तिथि देवी दुर्गा की खास पूजा करने के लिहाज से खास है. देवी पुराण में बताया गया है कि इस तिथि पर अपराजिता रूप में देवी की पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं. साथ ही इस दिन देवी की पूजा करने से बीमारियों से भी छुटकारा मिलने लगता है.यह रहेगा अष्टमी तिथि का समयवैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 19 मई, बुधवार को दोपहर 1 बजे शुरू होगी और 20 मई, गुरुवार को दोपहर में खत्म होगी. 20 मई को सूर्योदय से करीब आधे दिन तक अष्टमी तिथि होने के कारण इसी दिन यह व्रत रखना चाहिए और पूजा करनी चाहिए.इस दिन मां दुर्गा के अपराजिता रूप की प्रतिमा को कपूर और जटामासी से युक्त जल से स्नान कराते हैं. साथ ही स्वयं को आम के रस मिले पानी से नहाना चाहिए. नहाने के इस पानी में थोड़ा सा गंगाजल भी मिला लेना चाहिए.बगलामुखी जयंती भी है अष्टमी कोवैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को देवी बगलामुखी के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है. लिहाजा इस दिन बगलामुखी जयंती भी होती है. देवी बगलामुखी 10 महाविद्याओं में से एक हैं. माना जाता है कि इनकी उत्पत्ति सौराष्ट्र के हरिद्रा नाम के सरोवर से हुई थी. मां बगलामुखी को शत्रुओं का नाश करने वाली देवी भी कहा जाता है. मां बगलामुखी की पूजा करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है, इसके अलावा कोर्ट-कचहरी से संबंधित कार्यों में अपनी जीत सुनिश्चित करने में भी यह पूजा फलदायी है.
- हस्तरेखा विज्ञान में रेखाओं के अलावा, उनसे बनने वाले निशान, हथेली की बनावट, उसका रंग, कोमलता जैसी चीजें भी बहुत अहम होती हैं. इतना ही नहीं ये चीजें भविष्य में होने वाले धन लाभ का भी इशारा देती हैं. साथ ही इनसे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में होने वाले अच्छे-बुरे बदलाव की भी जानकारी मिलती है. आज जानते हैं, उन 3 लक्षणों के बारे में जो जिंदगी (Life) में बार-बार अचानक पैसा दिलाते हैं.सही जीवन रेखा-मस्तिष्क रेखा और त्रिकोणयदि किसी व्यक्ति की हथेली में जीवन रेखा सही गोलाई में हो, साथ ही मस्तिष्क रेखा 2 भागों में बंटी हो और हथेली में त्रिकोण बना हो तो ऐसे व्यक्ति को धन लाभ होता है. इतना ही नहीं ऐसे लोगों को अपनी जिंदगी में बार-बार अचानक पैसा मिलता है.ये लक्षण भी कराते हैं फायदायदि भाग्यरेखा हथेली के अंतिम स्थान से यानी मणिबंध से शुरू हो रही हो और यह शनि पर्वत तक पंहुच रही हो. साथ ही भाग्य रेखा पर किसी प्रकार का अशुभ निशान न हो तो व्यक्ति को व्यवसाय में सफलता मिलती है.इसी तरह यदि किसी व्यक्ति की हथेली भारी और फैली हुई हो, उंगलियां कोमल और नरम हों तो यह भी व्यक्ति के धनवान होने का इशारा देता है. हथेली में शनि पर्वत यानी मध्यमा उंगली के पास से 2 या इससे अधिक खड़ी रेखाएं हों तो व्यक्ति को धन के साथ सुख भी मिलता है. वहीं शनि पर्वत में उठाव हो और जीवन रेखा सही तरीके से घुमावदार हो तो यह योग भी काफी शुभ होता है. इससे व्यक्ति जीवन में सभी तरह के सुख मिलते हैं.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 288
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने वर्ष 1990 में अपनी जन्मस्थली भक्तिधाम मनगढ़ (उ.प्र.) में श्री नारद मुनि द्वारा प्रगटित 'नारद भक्ति सूत्र' पर 11-दिवसीय प्रवचन दिया था। नारद भक्ति सूत्र अथवा दर्शन, भक्ति-तत्व की सरलतम रुप में व्याख्या करने वाला 84 सूत्रों का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है तथा भक्ति-साहित्यों में अग्रगण्य स्थान रखती है। श्री कृपालु महाप्रभु जी ने इसी ग्रन्थ के 84 सूत्रों की विशद व्याख्या कर सरलतम को भी और अधिक सरल रुप प्रदान कर प्रेमपिपासु जीवों को आत्मिक-कल्याण का मजबूत आधार दिया था। इसी प्रवचन श्रृंखला में कामना-तत्व पर कही गई उनकी कुछ वाणियाँ यहाँ दी जा रही हैं। सुधि पाठकजनों के लाभ की अपेक्षा है....)
(1) हर ग्रन्थ कामनाओं के त्याग करने का आदेश देता है। ये कामनायें हमने क्यों बनाई है? इसका रीजन है अज्ञान। अज्ञान यह कि हमने अपने आपको देह मान लिया है। इसलिये देह के सुख के लिये कामनायें बनने लगीं।
(2) जिस वस्तु में हम आनंद की कल्पना करते हैं, उसमें हमारा अटैचमेन्ट हो जाता है।
(3) अंधकार और प्रकाश में जितना अन्तर है, उतना ही विरोध कामनाओं और भक्ति में है।
(4) संसारी कामनाओं का कारण है अज्ञान, अज्ञान का कारण है माया और माया का कारण है भगवत-बहिर्मुखता।
(5) शरीर को ठीक रखने के लिये प्रकृति की और आत्मा को ठीक रखने के लिये आवश्यकता है भगवान की। हम संसार का उपयोग करने के स्थान पर उसका उपभोग करते हैं, किन्तु भगवान को पाने का प्रयत्न नहीं करते।
(6) स्वामी की सेवा चाहना कामना नहीं है। जीव भगवान का नित्य दास है अतः यह उसकी नेचुरैलिटी है, फिर हम स्वामी के सुख के लिये स्वामी की सेवा चाहते हैं, अपने सुख के लिये नहीं।
(7) भगवान सम्बन्धी कामना से हमारा संसार निवृत्त होगा, जबकि संसार सम्बन्धी कामना हमारा सर्वनाश करेगी।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नारद भक्ति दर्शन' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 287
(भूमिका - 'काल' अर्थात 'मृत्यु' अनिश्चित है, कब आयेगी पता नहीं। इसलिये मनुष्य के लिये शास्त्रों की आज्ञा है कि अपने परमार्थ के लिये अति शीघ्रता करनी होगी। आइये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत इन शब्दों के द्वारा 'काल/मृत्यु' की अनिश्चितता के सम्बन्ध में विचार करें....)
कालि कालि जनि कहु गोविंद राधे।जाने काल कालि को ही आवन न दे।।(स्वरचित दोहा)
कल से भजन करेंगे , कल से यही करेंगे। हाँ वेद कहता है;
न श्वः श्वः उपासीत को हि पुरुषस्य श्वो वेद।(वेद)
कल करेंगे, कल करेंगे, कल भजेंगे, कल से यही करेंगे - ये बकवास बन्द करो। यही करते-करते तो अनन्त जन्म बीत गये; उधार, उधार।
को हि जानाति कस्याद्य मृत्युकालोभविष्यति।(महाभारत)
अरे एक सेकण्ड लगता है प्राण निकलने में। बड़े-बड़े वैज्ञानिक, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, योगी, तपस्वी जो नया स्वर्ग बना सकते हैं, ऐसे विश्वामित्र वगैरह कहाँ हैं? सबको जाना पड़ा। भगवान् को छोड़कर, किसी की हिम्मत नहीं है जो काल को चैलेन्ज कर सके और भगवान् को भी तो जाना पड़ता है। लेकिन वो काल के आधीन होकर नहीं जाते, काल की प्रार्थना से जाते हैं। जब ग्यारह हजार वर्ष पूरे हो गये राम के, तो यमराज आया और आकर के चरणों में प्रणाम करके कहता है - महाराज! याद दिलाने आया हूँ। आपने कहा था कि ग्यारह हजार वर्ष रहूँगा, तो मैं याद दिलाने आया हूँ और प्रणाम करके चला गया। अरे! महापुरुष के पास भी यमराज आता है, आकर के बैठ जाता है तो महापुरुष उसके सिर पर पैर रखता है, तब आगे विमान में बैठता है। तो ये काल किसी को नहीं छोड़ता। सीधे नहीं टेढ़े, सबको जाना होगा। जाना नहीं चाहता कोई संसार से, अटैचमेन्ट है न, इसलिये मम्मी, पापा, बेटा, बेटी, नाती, पोता जो भी होते हैं उनको छोड़ के नहीं जाना चाहता। जानता है, सब छूटेंगे, फिर भी पहले नहीं छोड़ता अटैचमेन्ट।
अन्तहुँ तोहि तजेंगे पामर तू न तजै अबही ते।
अरे ! ये सब छोड़ेंगे तेरा साथ। किसी का आज तक इतिहास में ऐसा नाम नहीं है जो सब साथ गये हों और अगर एक साथ चलें भी तो रास्ता सबका अलग-अलग होगा। आप कह सकते हैं सारी दुनियाँ में छः अरब आदमी हैं और एक सेकेण्ड में दस मरे हैं, हाँ, एक साथ मरे दस, ठीक है, लेकिन उसके बाद क्या हुआ? सब अलग-अलग गये ।
पुण्येन पुण्यं लोकं नयति पापेन पापमुभाभ्यामेव मनुष्यलोकम्।।(प्रश्नोपनिषद 3-7)
सब अपने-अपने कर्म के अनुसार गये। इसलिये उधार नहीं करना॥
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ ::: 'हरि-गुरु स्मरण - दैनिक चिन्तन' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - वैदिक काल से ही सूर्यदेव की उपासना की जाती है। सूर्यदेव की पूजा साक्षात रूप में की जाती है। पहले सूर्यदेव की उपासना मंत्रों से की जाती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ। सूर्यदेव की ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन है। उनकी कृपा से हर रोग से मुक्ति पाई जा सकती है। रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित है। आइए जानते हैं सूर्यदेव से जुड़े कुछ आसान से वास्तु उपायों के बारे में।सूर्योदय के समय की किरणें स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम मानी जाती हैं। ब्रह्ममुहूर्त का समय असीम ऊर्जा का भंडार है। इस समय का सदुपयोग करने से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित है, इस दिन पूरे परिवार के साथ सूर्यदेव की उपासना करें। भगवान सूर्य को तांबे के लोटे में जल, चावल, फूल डालकर अर्घ्य दें। रविवार के दिन लाल-पीले रंग के कपड़े, गुड़ और लाल चंदन का प्रयोग करें। रविवार के दिन फलाहार व्रत रखें। रविवार को सूर्य अस्त से पहले नमक का उपयोग न करें। तांबे की चीजों का क्रय-विक्रय न करें। रविवार के दिन घर के सभी सदस्यों के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं। रविवार के दिन पैसों से संबंधित कोई कार्य नहीं करना चाहिए। इस दिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। घर में कृत्रिम रोशनी के बजाए सूर्यदेव का प्रकाश आने दें। उत्तर-पूर्व दिशा को ईशान कोण नाम से जाना जाता है। इस दिशा का आधिपत्य सूर्यदेव के पास है। इस दिशा में बुद्धि और विवेक से जुड़े कार्य करें।
- हस्तरेखा विज्ञान में सूर्य रेखा और गुरु पर्वत को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। हथेली में सूर्य रेखा और गुरु पर्वत नौकरी और बिजनेस में सफलता या विफलता के बारे में बताता है। सूर्य रेखा रिंग फिंगर के नीचे एक खड़ी लाइन होती है। हस्तरेखा विज्ञान के मुताबिक तर्जनी उंगली यानी इंडेक्स फिंगर के नीचे वाला हथेली का हिस्सा गुरु पर्वत होता है। गुरु पर्वत पर शुभ निशान होने से तरक्की के योग बनते हैं और सूर्य रेखा की अच्छी स्थिति से नौकरी और बिजनेस में किस्मत का साथ मिलता है।यदि हाथ में गुरु यानी तर्जनी पर एक या एक से ज्यादा रेखाएं हो तो व्यकक्ति को उच्च पद की प्राप्ति होती है। कोई रेखा जीवन रेखा से चन्द्र पर्वत की ओर जाए तो ऐसा व्यक्ति उच्च पद पाता है। गुरु पर्वत पर नक्षत्र, तारे का या त्रिभुज का निशान हो तो भी व्यक्ति उच्च पद पाने में सफल हो जाता है। हाथ में बड़ी सूर्य रेखा समाज में व्यक्ति को बड़ा पद दिलवाने का संकेत देती है। गुरु पर्वत पर त्रिभुज हो, सूर्य रेखा स्पष्ट हो और भाग्यरेखा की लंबाई ज्यादा हो तो ऐसे लोग कम उम्र में ही तरक्की करने लगते हैं।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव की शरण में जो भी आता है भगवान शिव उसके सभी कष्टों को दूर कर देते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार 12 राशियां होती हैं। इन राशियों के आधार पर भी व्यक्ति के बारे में बताया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार कुछ राशियां ऐसी हैं, जिनपर भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है। इन राशियों के लोगों को भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है।मेष राशिमेष राशि के जातकों पर भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है।ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार मेष राशि के लोगों को शिव की अराधना करनी चाहिए।मेष राशि के जातकों को नियमित शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए। शिवलिंग पर जल अर्पित करने से शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।मकर राशिमकर राशि के स्वामी शनि देव हैं। मकर राशि के जातकों पर भगवान शिव और शनिदेव की विशेष कृपा रहती है।मकर राशि के जातकों को रोजाना भगवान शिव की पूजा- अर्चना करनी चाहिए।मकर राशि के जातक ऊॅं नम: शिवाय का जप करें।कुंभ राशिकुंभ राशि के स्वामी भी शनि देव हैं। कुंभ राशि के जातकों पर भी शनिदेव और भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है।कुंभ राशि के जातकों को शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए।कुंभ राशि के जातकों को क्षमता के अनुसार दान भी करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है।
- किसी - किसी मकान में वास्तुदोष की वजह से उसमें रहने वाले परिवारों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार कुछ उपाय करते काफी हद तक वास्तुदोष का निवारण हो जाता है। आज हम जानेंगे कि यदि मकान की पश्चिम दिशा में वास्तु दोष हो तो क्या उपाय करना चाहिए।इसके लिए पहले पश्चिम दिशा के दोष से सुरक्षा हेतु भवन में वरुण यंत्र स्थापित करे। भवन के पश्चिमी भाग की ओर शनि यन्त्र भी स्थापित कर सकते हैं। शनि स्त्रोत का पाठ कर भवन के स्वामी को हर शनिवार काले उडद और सरसों के तेल का दान करना चाहिए। शनिवार का व्रत करने से इस दोष का निवारण हो सकता है। हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें।----
- ग्रहों के राजा सूर्य देव आज रात करीब 11 बजकर 21 मिनट पर वृषभ राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। इस राशि में सूर्य देव 15 जून 2021 की सुबह 05 बजकर 58 मिनट तक स्थित रहेंगे। सूर्य के वृषभ राशि में गोचर से जहां कुछ राशियों को फायदा होगा तो वहीं ऐसी पांच राशियां हैं जिनपर गोचर का प्रभाव नकारात्मक रूप से पड़ सकता है। ऐसे में इन राशियों के जातकों को सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। ये राशियां इस प्रकार हैं-वृषभ राशिइस गोचर के प्रभाव से वृष राशि के जातकों को शारीरिक कष्ट और स्वास्थ्य संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में आपको अपनी सेहत पर विशेष ध्यान देना होगा। हालांकि अन्य मामलों में आपको लाभ की भी प्राप्ति होगी। समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा। संतान संबंधी चिंता दूर होगी। सामाजिक पद प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। रणनीतियों को गोपनीय रखें। शासनसत्ता का भी पूर्ण सहयोग मिलेगा। नए अनुबंध प्राप्ति के योग।मिथुन राशिगोचर के प्रभाव से आर्थिक हानि की संभावना है। इस अवधि में अधिक व्यय से आर्थिक तंगी भी आ सकती है। झगड़े विवाद से दूर रहें और कोर्ट कचहरी के मामले बाहर ही सुलझाएं संबंधी अथवा मित्र के द्वारा अप्रिय समाचार से मन अशांत रहेगा। पारिवारिक कलह बढ़ने न दें। आँख, कान, गले के रोग से बचें।तुला राशिगोचर का अशुभ प्रभाव आपकी सेहत पर पड़ सकता है। इसलिए इस अवधि में अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। झगड़े विवाद से दूर रहें और कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझा लेना समझदारी होगी। कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। अग्नि, विष और दवाओं के रिएक्शन से बचें।धनु राशिग्रह गोचर की अनुकूलता आपकी आने वाली समस्याओं का निदान करेगी। इस अवधि के मध्य किसी को भी अधिक धन उधार के रूप में न दें अन्यथा आर्थिक हानि की संभावना रहेगी। स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। किसी संबंधी अथवा मित्र के द्वारा अप्रिय समाचार प्राप्ति हो सकती है।कुंभ राशिगोचर के प्रभाव से किसी न किसी कारण से पारिवारिक कलह एवं मानसिक अशांति का सामना करना पड़ेगा। यात्रा सावधानीपूर्वक करें और अपने सामान को चोरी होने से बचाएं। जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। मित्रों अथवा संबंधियों से भी अप्रिय समाचार मिल सकता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 286
(भूमिका - साधना का संबंध किससे है? शरीर से अथवा मन से? आइये इस प्रश्नोत्तरी में हम समझने का प्रयास करें। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत इन शब्दों पर गहराई से कुछ देर विचार करें...)
साधक का प्रश्न ::: शरीर न चले, बीमारी हो तो निरंतर साधना कैसे होगी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: साधना माने क्या? आराम। साधना करते हो तो शरीर को आराम मिलता है। साधना मन को ही करनी होती है। बीमार आदमी शरीर को महत्त्व देता है तो वह सोचता है - मैं मर जाऊँगा तो क्या होगा? इसलिए घबराता है लेकिन जब वह अपने को जीवात्मा मानेगा तो सोचेगा - श्यामसुंदर अभी नहीं मिले, यह सोच कर वह श्यामसुन्दर के लिए रोयेगा। किन्तु अगर नींद आ गयी तो इसका मतलब है कि हमने मानव शरीर की इम्पोर्टेंस नहीं समझी इसलिये आलस्य आ गया। साधना माने मन को साधना। साधना मन को ही करनी है। कैंसर का मरीज़ सोचता है - मैं मर जाऊँगा तो मेरी गृहस्थी का क्या होगा आदि। इसमें शरीर नहीं थक रहा है, मन का वर्क हो रहा है। जब कोई शरीर के महत्त्व को सोचने के स्थान पर सोचेगा - मेरा (जीवात्मा का) क्या होगा? श्यामसुंदर मुझे नहीं मिले!!! यह सोचकर आंसू बहाता रहेगा। अगर नींद आ गयी तो समझो इम्पोर्टेंस ही नहीं समझा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 1०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 285
(भूमिका - गुरु द्वारा प्रदत्त तत्वज्ञान को समझकर हृदयंगम करना परमावश्यक है, इसके बिना ईश्वरीय-राज्य की अथवा पारमार्थिक चीजें सही-सही नहीं हो सकेंगी। गुरु-शरणागति, गुरु से तत्वज्ञान प्राप्ति और गुरु-सेवा के रहस्य पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीवचन आप सभी पठन करें....)
...कुछ लोग कहते हैं कि प्रथम संसार से ही वैराग्य करो। कुछ लोग कहते हैं कि प्रथम श्रीकृष्ण से ही अनुराग करो। यह विरोधाभास है। मेरी राय में इन दोनों से पूर्व गुरु का कार्य है। प्रथम गुरु द्वारा तत्वज्ञान प्राप्त करना होगा। उस तत्वज्ञान द्वारा गुरु, श्रीकृष्ण, वैराग्य, अनुरागादि का विज्ञान हृदयंगम करना होगा। हम जितना समझते हैं, उसे सही मान लेना सही नहीं है। हमने 'क' का ज्ञान भी स्वयं नहीं प्राप्त किया। फिर परोक्ष तत्त्व जीव, ब्रह्म, माया आदि का ज्ञान कैसे प्राप्त कर लेंगे।
जब तत्वज्ञान हो जायगा, तब हम जानेंगे कि एक जीव है एवं उसका एक मन है। वह मन ही बंधन एवं मोक्ष का कारण है। उस मन को मायिक जगत् से हटाकर दिव्य श्रीकृष्ण में लगाना है। क्योंकि श्रीकृष्ण ही हमारे माता, पिता, भ्राता, भर्ता, अंशी आदि सब कुछ हैं। उन श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के हेतु साधनों का भी ज्ञान प्राप्त करना होगा। और वह ज्ञान यही होगा कि केवल भक्ति के द्वारा ही श्रीकृष्ण की प्राप्ति होगी। अन्य कोई उपाय नहीं है। अपने गुरु द्वारा भक्ति का भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना होगा। गुरु से यही ज्ञान मिलेगा कि श्रीकृष्ण भक्ति में कोई भी नियम नहीं है। सभी जीव अधिकारी हैं। यद्यपि श्रद्धा की शर्त बताई गई है। यथा;
आदौ श्रद्धा ततः ........।
किंतु भागवत में इसकी भी आवश्यकता नहीं बताई गई। यथा;
सतां प्रसंगान्मम वीर्य संविदो .......।
अर्थात् गुरु की शरणागति में रहकर उन्हीं की सेवा करते हुये निरंतर सत्संग किया जाय, तो श्रद्धा भी स्वयं उत्पन्न हो जायगी। फिर श्रीकृष्ण में अनुराग भी स्वयं होने लगेगा। फिर उसी अनुराग की मात्रा से ही स्वयं वैराग्य भी होगा। सारांश यह कि प्रथम गुरु की शरणागति, फिर श्रीकृष्ण की नवधा भक्ति रूपी साधना, फिर संसार से वैराग्य। यही क्रम बढ़ते बढ़ते जब भक्ति परिपूर्ण हो जायगी तो संसार से पूर्ण सहज वैराग्य स्वयं हो जायगा। इतना ही नहीं अन्य ज्ञानादि सब कुछ अनचाहे ही मिल जायगा। यहाँ तक कि सभी प्राप्तव्य पुरुषार्थों का स्वामी श्रीकृष्ण भी उस भक्त के आधीन हो जायगा। फिर जीव कृतकृत्य हो जायगा। अतः उपर्युक्त क्रम से ही लक्ष्य की प्राप्ति के हेतु प्रयत्न करना चाहिये। शेष सब गुरु दे देगा।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ के 12-वें दोहे की व्याख्या०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 284
'शुभ अक्षय-नवमी'- आइये आज अपना समय हम अपने आराध्य व परम हितैषी भगवान के स्मरण में व्यतीत करें!!
★ 'अक्षय तृतीया' महात्म्य - भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित इस त्यौहार पर किये गये दान तथा साधना आदि का अनंत गुना फल प्राप्त होता है।
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' में वर्णित इस पद में वे जीवों को संबोधित करते हुये कह रहे हैं कि इस संसार की नश्वरता, असारता और अपने मानव-देह की क्षणभंगुरता पर गंभीर विचार करो, तथा तत्काल ही इसके स्वरूप को पहचान कर इससे विरक्त होकर अपने परमाराध्य परम हितैषी भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करो, गुणगान करो। यह पद नीचे इस प्रकार है...)
मन ! क्यों नहि हरि गुन गा रहा।यह जग है इक भूल भुलैया, क्यों तू धोखा खा रहा।भुक्ति मुक्ति है प्रबल पिशाचिनी, क्यों इनमे भरमा रहा।सुत वित नारिन त्रिविध तिजारिन, क्यों इनको अपना रहा।इन इंद्रिन विषयन-विष पी मन, क्यों इतनो हरषा रहा।नर तनु पाय 'कृपालु' भजन करू, यह जीवन अब जा रहा।।
भावार्थ - अरे मन ! तू श्यामसुंदर का गुणगान क्यों नही करता? इस भूल भुलैया के खेल वाले संसार में तू क्यों धोखा खा रहा है? मुक्ति एवं भुक्ति ये दोनों अत्यंत प्रबल चुडैलें हैं, तू इनके चक्कर में क्यों आ रहा है? स्त्री, पुत्र, धन, यह तीनों तिजारी के समान हैं। तू इनको क्यों अपना रहा है? 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि यह मनुष्य का शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है, यह चार दिन का जीवन जा रहा है, अतएव शीघ्र ही श्यामसुंदर का भजन कर...
०० ग्रन्थ संदर्भ ::: प्रेम रस मदिरा (सिद्धांत माधुरी, पद संख्या 73)०० रचयिता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - अक्षय तृतीया पावन पर्व है। हिंदू धर्म में इस तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि पर दान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है। इस पावन दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी मनोकामानाएं पूरी हो जाती हैं। आइए जानते हैं इस दिन किन चीजों का दान करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है...जल पात्र का दान करना शुभ होता हैअक्षय तृतीया के पावन दिन जल पात्र का दान करना शुभ माना जाता है। इस पावन दिन गिलास, घड़ा, इत्यादि चीजों का दान करना चाहिए। इन चीजों का दान करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।मीठी चीजों का दान करेंअक्षय तृतीया के पावन दिन मीठी चीजों का दान भी किया जाता है। मीठी चीजों का दान करने से समस्याओं का निवारण होता है।जौ का दान करेंइस पावन दिन जौ दान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जौ को सोने के समान माना गया है।अन्न दान करेंधार्मिक मान्यताओं के अनुसार अन्न दान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। इस पावन दिन अन्न दान जरूर करें। जरूरतमंद लोगों की क्षमता के अनुसार मदद करें।
- अक्षय तृतीया को सोना खरीदने और मांगलिक कामों के लिए सबसे शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का बहुत अधिक महत्व है। इस बार अक्षय तृतीया 14 मई को पड़ रही हैं। इस दिन मां लक्ष्मी की कृपा पाने का सबसे अच्छा समय होता है।अक्षय तृतीया के दिन मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती हैं। इसके साथ ही शास्त्रों में कुछ काम बताए गए है जिन्हें इस दिन करने की मनाही होती है। इन्हें करने से माता लक्ष्मी खुश होने के बजाय नाराज हो जाती हैं और कभी भी उनके घर नहीं ठहरती हैं। जानिए ऐसे कौन से काम है जो अक्षय तृतीया के दिन नहीं करना चाहिए।शुद्ध होकर तोड़े तुलसीहिंदू धर्म में तुलसी का बहुत अधिक महत्व है। इसके साथ ही भगवान विष्णु को तुलसी बहुत ही प्रिय होती हैं। इसलिए बिना स्नान किए तुलसी के पत्ती को नहीं तोड़ना चाहिए। इससे मां लक्ष्मी कभी भी स्वीकार नहीं करेगी।शुद्धता का रखें पूरा ध्यानइस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनें। क्योंकि इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसलिए शुद्धता का पूरा ध्यान रखना चाहिए।क्रोध करने से बचेंमां लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते है तो इस दिन गुस्सा न करें। साथ ही पूजा के समय अशांति न फैलाएं। नहीं तो मां लक्ष्मी रूठ जाएगी। मां की पूजा शांत मन और पूरे श्रद्धाभाव से करे।दूसरें का ना सोचे बुराकिसी का बुरा करने वाले, हमेशा दूसरों का अहित चाहने वालों के पास कभी माता लक्ष्मी नहीं टिकती है। अक्षय तृतीया पर माता लक्ष्मी की पूजा करने के बाद गरीबों को दान और भोजन करवाना चाहिए।मां लक्ष्मी-विष्णु जी की एक साथ करें पूजासौभाग्य और समृद्धि के लिए आज मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की अलग-अलग पूजा नहीं करना चाहिए, क्योंकि दोनों पति-पत्नी है। इस दिन दोनों की एक साथ पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
- अक्षय तृतीया पर खरीदारी करना शुभ माना गया है. इस दिन जिन चीजों की खरीदारी की जाती है वे अपना शुभ प्रभाव लेकर घर आती हैं. इसलिए लोग सोना-चांदी खरीदते हैं.ऐसा नहीं है कि केवल सोना खरीदने से शुभता प्राप्त होती है, अगर आप इस दिन राशि अनुसार अन्य चीजें खरीदें तो भी शुभ फल मिलते हैं.जानें क्यों अक्षय हो जाते हैं इस दिन किए गए काम, इस तृतीया का इतना महत्व क्यों है?मेष राशिमसूर की दाल खरीदेंवृषभ राशिचावल और बाजरा खरीदें.मिथुन राशिमूंग, धनिया, कपड़े खरीदें.कर्क राशिदूध और चावल खरीदें.सिंह राशितांबा खरीदना शुभ है.कन्या राशिमूंग की दाल खरीदें.तुला राशिचीनी और चावल खरीदें.वृश्चिक राशिगुड़ खरीदकर घर लाएं.धनु राशिकेला और चावल खरीदें.मकर राशिकाली दाल और दही खरीदें.कुंभ राशिकाले तिल और कपड़े खरीदें.मीन राशिहल्दी और चने की दाल खरीदें.--
- अक्षय तृतीया के पावन दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस साल 14 मई, 2021 को भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। भगवान परशुराम का जन्म ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म अन्याय, अधर्म और पापकर्मों का विनाश करने के लिए हुआ था। आइए जानते हैं भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...अजर- अमर हैं भगवान परशुरामधार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम अजर- अमर हैं। कलयुग में भगवान परशुराम जीवित हैं।भगवान शिव और विष्णु के गुण प्राप्त थेधार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम को संहारक का गुण भगवान शिव ने और पालनकर्ता का गुण विष्णु भगवान ने दिया था।भगवान शिव ने दिए अस्त्र- शस्त्रभगवान परशुराम ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव से कई तरह के अस्त्र- शस्त्र प्राप्त किए थे। भगवान शिव ने ही उन्हें फरसा यानी कि परशु भी दिया था।परशुराम नाम कैसे पड़ा?धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म का नाम सिर्फ राम था। परशु धारण करने की वजह से नाम पड़ा परशुराम।इन नामों से भी जाना जाता हैभगवान परशुराम को रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, जमदग्न्य, भृगुवंशी आदि नामों से भी जाना जाता है।
- परशुराम जयंती हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है। इस साल परशुराम जयंती 14 मई 2021 को मनाई जाएगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम जगत के पालनहार विष्णुजी के अवतार हैं। वे भले ही ब्राह्मण कुल में जन्मे, लेकिन उनके कर्म क्षत्रियों के समान थे। भगवान परशुराम के जीवन से हमें कई अच्छी चीजों की प्रेरणा मिलती है।माता-पिता का सम्मानभगवान परशुराम ने हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान किया और उन्हें भगवान के समान ही माना। माता-पिता के हर आदेश का पालन भगवान परशुराम ने किया। हमें भी जीवन में हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान और उनकी हर आज्ञा का पालन करना चाहिए। जो व्यक्ति माता-पिता का सम्मान करते हैं, भगवान भी उनसे प्रसन्न रहते हैं।दान की भावनाधार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने अश्वमेघ यज्ञ कर पूरी दुनिया को जीत लिया था, लेकिन उन्होंने सबकुछ दान कर दिया। हमें भगवान परशुराम से दान करना सीखना चाहिए। अपनी क्षमता के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार भी दान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि दान करने से उसका कई गुना फल मिलता है।न्याय सर्वोपरिभगवान परशुराम ने न्याय करने के लिए सहस्त्रार्जुन और उसके वंश का नाश कर दिया था। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का मानना था कि न्याय करना बहुत जरूरी है। इसलिए उन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में इस बात का वर्णन भी है कि भगवान परशुराम सहस्त्रार्जुन और उसके वंश का नाश नहीं करना चाहते थे, परंतु उन्होंने न्याय के लिए ऐसा किया। भगवान परशुराम के लिए न्याय सबसे ऊपर था। हमें भी जीवन में न्याय करना चाहिए।विवेकपूर्ण कार्यभगवान परशुराम ने गुस्से में आकर कभी भी अपना विवेक नहीं खोया। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का स्वभाव गुस्से वाला था, परंतु उन्होंने हर कार्य को संयम से ही किया। हमें भी जीवन में सदैव विवेक और संयम बना के रखना चाहिए।
- भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं येवैशाख महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि पर परशुराम का जन्म हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन ही इनकी जयंती मनाई जाती है। इस बार ये पर्व 14 मई, शुक्रवार को रहेगा। ये भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। अमर होकर कलियुग में मौजूद हनुमानजी समेत 8 देवता और महापुरुषों में परशुराम भी एक हैं। इनका जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था और इन्हें भगवान शिव ने आशीर्वाद में परशु (फरसा) दिया था। इसी कारण इन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है। इनकी पूजा से साहस बढ़ता है और हर तरह का डर खत्म हो जाता है।ब्राह्मण कुल में पैदा फिर भी क्षत्रियों जैसा व्यवहारभगवान राम और परशुराम दोनों ही विष्णु के अवतार हैं। भगवान राम क्षत्रिय कुल में पैदा हुए लेकिन उनका व्यवहार ब्राह्मण जैसा था। वहीं भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ, लेकिन व्यवहार क्षत्रियों जैसा था। भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं। इन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। यही नहीं इनके गुस्से से भगवान गणेश भी नहीं बच पाए थे।ब्रह्मवैवर्त पुराण: परशुराम ने तोड़ा था गणेशजी का दांतब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार परशुराम भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे, लेकिन प्रथम पूज्य शिव-पार्वती पुत्र भगवान गणेश ने उन्हें शिवजी से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने परशु से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ा डाला। इस कारण से भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगे।पूजा विधिइस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाने के बाद साफ कपड़े पहनें। इसके बाद एक चौकी पर परशुरामजी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।हाथ में फूल और अक्षत लेकर परशुराम जी के चरणों में छोड़ दें। इसके बाद अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं और नैवेद्य अर्पित करें फिर कथा पढ़ें या सुनें।कथा के बाद भगवान को मिठाई का भोग लगाएं और धूप-दीप से आरती उतारें।आखिरी में भगवान परशुराम से प्रार्थना करें कि वे साहस दें और हर तरह के भय व अन्य दोष से मुक्ति प्रदान करें।
- 'शुभ अक्षय-तृतीया' (14-मई)(आप सभी सुधी पाठक-जनों को अग्रिम रूप में हार्दिक शुभकामनायें!)
शुक्रवार, 14 मई 2021 को 'अक्षय-तृतीया' का पर्व है, छत्तीसगढ़ में इसे 'अक्ती' के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व पर दान-पुण्य तथा साधना आदि का अनंत गुना फल मिलता है। साथ ही श्रीगुरुचरणों तथा भगवान श्रीराधाकृष्ण के चरणों के पूजन-अर्चन का भी विशेष महत्व है। 'जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के आज के 283-वें अंक में इसी पर्व की महत्त्वता पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है।
★★ जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'अक्षय-तृतीया' महात्म्य पर सन्देश ::::
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने प्रत्येक त्यौहार तथा पर्व का एक ही उद्देश्य बतलाया है - 'संसार से मन को हटाकर भगवान और गुरु में लगाना'. ऋषि-मुनियों द्वारा निर्धारित परंपराओं, पर्वादिकों का यही महत्त्व है कि गृहस्थ में रहते हुये मनुष्य इन पर्वों के द्वारा अपने मन को संसार से निकालकर भगवान की ओर ले जाने का प्रयास करे। 'अक्षय-तृतीया' के स्वरूप तथा महत्व पर अपने उदबोधन में उन्होंने वर्णन किया है :::
"....ये श्रीकृष्ण सम्बन्धी त्यौहार है, और जितने भी त्यौहार श्रीकृष्ण सम्बन्धी होते हैं सबका अभिप्राय केवल यही है कि हम तन, मन, धन से श्रीकृष्ण को अर्पित हों और अपना कल्याण करें. 'अक्षय' शब्द का अर्थ तो आप लोग जानते ही हैं, अनंत होता है, अर्थात जो कुछ दान किया जाता है, उसका अनंत गुना फल होता है. विशेष फल होता है, भावार्थ ये. और प्रमुख रूप से स्वर्णदान का महत्व है. लेकिन लोग उसका उल्टा कर लिये हैं. स्वर्ण खरीदने का, स्वर्ण दान के बजाय लोगों ने उसका बिगाड़ करके उसको बना लिया अपने लिये, कि सोना खरीदना चाहिये.
तो सोने का दान समर्थ लोगों के लिये है और असमर्थ लोग भी दान अवश्य करें, अपनी हैसियत के अनुसार. ऐसा प्रमुख रूप से है और तन से सेवा, मन से सेवा तो करना ही है, वो तो सदा करना ही है गरीब को भी, अमीर को भी. और तन मन धन ये तीन ही तो हैं जिनसे हम उपासना करते हैं, भगवान की भक्ति करते हैं, सेवा करते हैं. तो केवल सेवा का लक्ष्य है हर त्यौहार का, उसी में एक अक्षय तृतीया भी है...."
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने 'दान' का महत्व इस दोहे में इंगित करते हुये कहा है;
हरि को जो दान करु गोविन्द राधे।हरि दे अनन्त गुना फल बता दे।।(राधा गोविन्द गीत, दोहा संख्या 2259)
शास्त्रों ने भी कलियुग में दान की प्रधान्यता प्रतिपादित की गई है। यथा - 'दानमेकं कलौयुगे'।
★★ हरि-गुरु चरणों का भी होता है पूजन, वृन्दावन में होते हैं श्री बाँकेबिहारी जी के चरण-दर्शन
'अक्षय-तृतीया' के पावन अवसर पर वृन्दावनधाम स्थित श्रीबाँकेबिहारी जी के चरण-दर्शन भक्तजनों को कराये जाते हैं, हालाँकि लगातार दूसरे वर्ष कोविड-19 के कारण यह परंपरा नहीं होगी। इसके अलावा हरि-गुरु चरणों के श्रीचरणों का भी पूजन इस पर्व पर किया जाता है, जिसका विशेष फल प्राप्त होता है। श्री गुरुदेव तथा भगवान एक ही तत्व हैं। श्रीगुरुचरणों की सेवा से, उन चरणों की स्मृति से अन्तःकरण के अज्ञान-अंधकार का नाश होता है, तथा भगवान के प्रति हृदय में प्रेम की उत्पत्ति होती है। श्रीराधाकृष्ण के चरणारविन्दों की शरण माया के भयंकर प्रभाव में भी जीव को निर्भय बनाने वाली, पतितजनों को पावन बना देने वाली तथा जीवों के दुःख-संतप्त हृदय में प्रेम, कृपा, करुणा तथा अनंतानंत आनन्द प्रदान करने वाली है।
पुनः आप सभी पाठक-समुदाय को 'अक्षय-तृतीया' के महान पर्व की बहुत बहुत शुभकामनायें!!
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