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- हिंदू धर्म में मौजूद 18 पुराणों में से एक है गरुड़ पुराण जिसके अधिष्ठाता देव भगवान विष्णु माने जाते हैं। इस पुराण में श्रीहरि नारायण और उनके वाहन गरुड़ पक्षी के बीच हुई बातचीत का वर्णन है। साथ ही इसमें मानव जाति के कल्याण के लिए नीति से जुड़ी बातों का भी विस्तार से वर्णन किया गया है जिसे अगर अपने दैनिक जीवन में अपना लिया जाए तो कई तरह की मुसीबतों से बचा जा सकता है। गरुड़ पुराण के आचार कांड में बताया गया है कि किसी इंसान को किन 10 लोगों के घर भूल से भी भोजन नहीं करना चाहिए ,अगर कोई व्यक्ति इन दस लोगों के द्वारा दी गई कोई चीज खाता है तो वह पाप का भागीदार बनता है। इसका कारण ये भी है कि हमारे बड़े-बुजुर्ग भी यही कहते हैं कि जैसा खाओगे अन्न वैसे होगा मन। इसलिए किन लोगों के यहां भोजन नहीं करना चाहिए इस बारे में क्या कहता है गरुड़ पुराण, यहां पढ़ें.....इन लोगों के घर कभी न करें भोजन1. कोई चोर या अपराधी- कहा जाता है कि इस तरह के लोगों के घर भोजन करने से आप भी पाप के भागीदार बनते हैं और साथ ही आपके विचार भी उनकी ही तरह दूषित हो जाते हैं।2. सूदखोर व्यक्ति- गरुड़ पुराण के अनुसार गलत तरीके से कमाया गया धन हमेशा अशुभ फल ही देता है इसलिए दूसरी की मजबूरी का फायदा उठाकर कमाए गए पैसे वाले व्यक्ति के घर भी भोजन नहीं करना चाहिए।3. चरित्रहीन स्त्री- गरुड़ पुराण के अनुसार ऐसी स्त्री के घर भोजन करने से आप भी पाप के भागीदार बनते हैं।4. रोगी व्यक्ति- वैसे लोग जिन्हें कोई गंभीर बीमारी है या अगर कोई व्यक्ति लंबे समय से बीमार है तो उसके यहां भी भोजन न करें वरना आप भी उस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।5. दूसरों की चुगली करने वाला- जिन लोगों का स्वभाव चुगली करना होता है उन लोगों के घर भी भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि बातों बातों में वे आपको परेशानी में डाल सकते हैं और बाद में खुश होते हैं। लिहाजा इन पर कभी विश्वास न करें।6. जिसे ज्यादा गुस्सा आता हो- अगर आप भी ऐसे लोगों के घर जाकर भोजन करेंगे जो हमेशा गुस्से में रहते हैं तो उनके क्रोध का गुण आपके अंदर भी आ सकता है।7. किन्नर- गरुड़ पुराण के अनुसार किन्नरों को दान देना चाहिए उनके यहां भोजन नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि किन्नरों को अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के लोग दान देते हैं।8. जो निर्दयी हो- गरुड़ पुराण के अनुसार ऐसा व्यक्ति जो दूसरों को कष्ट देता हो, ऐसे निर्दयी व्यक्ति के घर भोजन नहीं करना चाहिए। इसका कारण ये है कि ऐसे घर में बने भोजन की प्रकृति भी उसी के समान होती है।9. नशीली चीजें खाने या बेचने वाला- ऐसे लोगों के घर से भी हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए और नशीली चीजें बेचने या खुद उनका सेवन करने वालों के घर भी कभी भोजन नहीं करना चाहिए।10. प्रजा पर अत्याचार करने वाला राजा- प्रजा की रक्षा करना और उन्हें हर समस्या से निकालना ही राजा का कर्तव्य है, लेकिन अगर कोई राजा प्रजा पर ही अत्याचार करे तो ऐसे राजा के घर भी किसी को भोजन के लिए नहीं जाना चाहिए।
- वास्तु शास्त्र में घर के निर्माण से लेकर डिजाइन रंग हर चीज के बारे में विस्तार से बताया गया है। घर का निर्माण करते समय लोग वास्तु के अनुसार दिशाओं का ध्यान तो रखते हैं लेकिन कई और चीजों में वास्तु को लेकर इतने गंभीर नहीं रहते हैं, लेकिन वास्तु के अनुसार यदि आप घर में सुख-शांति और समृद्धि चाहते हैं तो कई बातों को ध्यान में रखना चाहिए। इसी तरह से वास्तु शास्त्र में फर्श में लगने वाले मार्बल के बारे में भी बताया गया है। यदि आप घर में सही जगह पर सही मार्बल लगवाते हैं तो आपके घर में सुख-शांति के साथ धन की आवक भी सही प्रकार से बनी रहती है। तो चलिए जानते हैं वास्तु के अनुसार फर्श पर कैसा मार्बल लगाना चाहिए।वास्तु शास्त्र के अनुसार घर या दुकान के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में हल्के रंगों जैसे पीले रंग का मार्बल लगाना बहुत अच्छा रहता है। यदि आप इस दिशा में पूरे हिस्से में पीले रंग का मार्बल नहीं लगवाना चाहते हैं तो थोड़े से हिस्से में लगवा सकते हैं। इस दिशा में पीले रंग का मार्बल लगाने से घर में पैसों की बरकत बनी रहती है। जिससे आपके घर में किसी तरह से धन की कोई कमी नहीं रहती है।वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आपके घर की दीवारे गहरे रंग की हैं तो फर्श पर सफेद मार्बल लगवाना चाहिए। सफेद मार्बल खरीदते समय बहुत ध्यान रखना चाहिए। यदि आप सफेद रंग का उपयोग नहीं भी करना चाहते हैं तो फर्श में हल्के रंग के मार्बल का प्रयोग ही करना अच्छा रहता है। घर में रंगो का सही संतुलन घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है। आपके घर में सुख-शांति आती है।वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण दिशा में लाल रंग का मार्बल या फिर लाल रंग से फर्श में डिजाइन बनवाना चाहिए। इससे आपका और परिवार का मान-सम्मान बढ़ता है, लेकिन पत्थर खरीदते समय यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि मार्बल सिंथेटिक नहीं होना चाहिए, प्राकृतिक रूप से मिलने वाले मार्बल का ही उपयोग करना उचित रहता है।---
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 281(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के द्वारा लिखित सिद्धान्त पुस्तक 'प्रेम रस सिद्धान्त' के 'महापुरुष' अध्याय से लिया गया है। 'प्रेम रस सिद्धान्त' पुस्तक आचार्यश्री के द्वारा लिखित प्रथम पुस्तक है, जिसमें उन्होंने समस्त प्रमुख आध्यात्मिक विषयों यथा; जीव तथा उसका लक्ष्य, भगवान, माया तथा संसार का स्वरूप, अनुराग-वैराग्य, महापुरुष, भगवत्प्राप्ति के प्रमुख तीन मार्ग कर्म, ज्ञान व भक्ति, साधना के क्रियात्मक स्वरूप तथा कुसंग आदि विषयों को शास्त्र-वेदों के प्रमाण सहित बड़ी सरल व बोधगम्य शैली में समझाया है। इस पुस्तक का प्रथम प्रकाशन वर्ष 1955 में हुआ था। भगवदीय जिज्ञासुओं के लिये यह पुस्तक-ग्रन्थ एक अमूल्य निधि के समान ही है...)...एक बात स्मरण रहे कि महापुरुष या गुरु-तत्त्व से यह अभिप्राय नहीं है कि जो केवल शास्त्र-वेद का विद्वान-मात्र हो अथवा केवल अनुभवीमात्र हो। आप्त ग्रंथों ने दोनों ही बातों को प्राधान्य दिया है। यद्यपि मेरी राय में यदि शास्त्र वेद का विद्वान नहीं भी है तो भी अनुभवी महापुरुष से काम बन सकता है क्योंकि उसके (भगवान/भगवत्तत्व) जान लेने पर सब कुछ स्वयंमेव ज्ञात हो जाता है।आप्त ग्रंथों एवं लोक में भी तीन शब्द पढ़ने सुनने में आते हैं; एक पुरुष, दूसरा महापुरुष एवं तीसरा परमपुरुष। दूसरे शब्दों में इन्हीं तीनों को जीवात्मा, महात्मा एवं परमात्मा शब्दों से पुकारा जाता है। हमें महापुरुष या महात्मा तत्त्व पर विचार-विनिमय करना है। वास्तव में जीवात्मा एवं परमात्मा अथवा पुरुष एवं परमपुरुष के मध्य की स्थिति का नाम ही महात्मा या महापुरुष है। अर्थात् जिस जीवात्मा या पुरुष ने परमात्मा या परम पुरुष को जान लिया हो, देख लिया हो, उसमें प्रविष्ट हो चुका हो, वही महात्मा या महापुरुष है। भावार्थ यह कि ईश्वर-प्राप्त जीव को ही महापुरुष कहते हैं।यदि आप विरक्त हों तभी श्रद्धायुक्त हो सकते हैं, तभी महापुरुष का मिलन काम का हो सकता है, अन्यथा तुलसी के कथनानुसार;मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं विरंचि सम।अर्थात् यदि ब्रह्मा सरीखा गुरु भी मिले और आप उससे न मिलें, तात्पर्य यह कि आप श्रद्धाहीन होने के कारण कुतर्क करें और कुतर्कों द्वारा उसे न पहिचानें तो महापुरुष का मिलन लाभदायक न हो सकेगा क्योंकि मरीज को, डॉक्टर को डॉक्टर मानने की तभी सूझेगी जब अपने आपको मरीज महसूस करेगा। आप कहेंगे, यह तो सभी जानते हैं कि हम काम, क्रोध, लोभादिक रोगों से ग्रस्त हैं। यह ठीक है सभी जानते हैं किन्तु सभी मानते नहीं हैं, जैसा कि तुलसीदास जी ने बताया है;हैं सबके लखि बिरलन्हि पाये।अर्थात् यह कामादि दोष यद्यपि सभी के अन्त:करण में नित्य विद्यमान रहते हैं किन्तु इनको इने-गिने बिरले ही महसूस करते हैं। अतएव वे ही इलाज कराने की सोचते हैं। वे ही डॉक्टर पर विश्वास करते हैं एवं औषधि सेवन करते हैं, अन्यथा यहाँ तक होता है कि महापुरुष को किसी सीमा तक लोग महापुरुष अर्थात् डॉक्टर (अंतःकरण/ईश्वरीय क्षेत्र के संदर्भ में) मान भी लेते हैं किन्तु दवा खाने अर्थात् साधना करने में लापरवाही करते हैं। अतएव वास्तविक परिणाम से वंचित रह जाते हैं। अतएव आप वास्तविक श्रद्धालु भी हों, एवं वास्तविक सन्त के शरणागत भी हों तभी समस्या हल हो सकती है। अतएव तुलसीदास जी के कथनानुसार;शठ सुधरहिं सत संगति पाई।अर्थात् शठ का भी सुधार हो सकता है यदि वह श्रद्धायुक्त होकर महापुरुष के आदेश का पालन करे। जैसे, लोहा भी पारस के संग से सुवर्ण बन जाता है। यहाँ तो सन्त-संग से सोना ही नहीं, पारस ही बना जा सकता है किन्तु यदि लोहे एवं पारस के मिलन में गड़बड़ी है अथवा लोहा ही गलत है या पारस गलत है या दोनों ही गलत हैं तो परम लक्ष्य की प्राप्ति सर्वथा असंभव है।अब आप एक बार पुन: क्रम समझ लीजिये। आपको परमानन्द प्राप्त करना है। परमानन्द एकमात्र ईश्वर में ही है, अतएव ईश्वर को प्राप्त करना है। ईश्वर इन्द्रिय, मन, बुद्धि से अप्राप्य है किन्तु वह जिस पर कृपा कर देता है, वह उसे प्राप्त कर लेता है। उसकी कृपा शरणागत पर ही होती है। शरणागति मन की करनी है। मन अनादिकाल से संसार में ही सुख मानता आया है अतएव संसार का स्वरूप गंभीरतापूर्वक समझना है। संसार का स्वरूप समझकर उस पर बार-बार विचार करना है यानी मनन करना है। तब संसार से वैराग्य होगा। अर्थात् मन राग-द्वेष-रहित होगा।यह ध्यान रहे कि जब तक मन ईश्वर के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी राग या द्वेषयुक्त (आसक्त) रहेगा, तब तक ईश्वर-शरणागति असम्भव है और जब तक संसार में, 'न तो यहाँ हमारा आध्यात्मिक सुख है और न यहाँ हमें बरबस अशान्त करने वाला दुःख ही है', ऐसा ज्ञान परिपक्व न होगा, तब तक वैराग्य भी असम्भव है।इस परिपक्वता के लिये संसार स्वरूप पर गम्भीर विचार एवं बार-बार विचार करना होगा, बार-बार विचार से ही दृढ़ता आयेगी। एक बार विचार करने मात्र से काम नहीं बनेगा क्योंकि अनन्तानन्त जन्मों का विपरीत विचार संगृहीत है। उसे काटने के लिए;जन्म मृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्। (गीता)अर्थात् बार-बार विचार करना होगा तब मन खाली होगा। बस, वही दिन आपका सौभाग्य का होगा जिस दिन मन खाली हो जायगा। उस विरक्त मन को ईश्वर के शरणागत करना है, जिस शरणागति के परिणामस्वरूप, ईश्वर-कृपा के परिणामस्वरूप ईश्वरीय ज्ञान एवं ईश्वरीय दिव्यानन्द की प्राप्ति होनी है।०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस सिद्धान्त' (अध्याय - महापुरुष)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)
- वास्तु शास्त्र में जानिए रोगों से मुक्ति दिलाने में नमक के फायदे के बारे में।जब घर में कोई भी सदस्य बीमार पड़ता है तो घर का पूरा माहौल अशांत हो जाता है। यदि आपके घर में भी कोई सदस्य बीमार है तो रोगी के सोने के कमरे में सिरहाने पर एक कटोरी में सेंधा नमक के कुछ टुकडे रख दें, परंतु ध्यान दें कि रोगी का सिरहाना पूर्व दिशा की ओर हो।रोगी के खाने में भी सेंधा नमक का ही इस्तेमाल करना चाहिए, जबकि साधारण नमक का उपयोग कम से कम करना चाहिए।ऐसा करने से रोगी की सेहत में जल्द ही सुधार होने लगता है। इस तरह से घर का अशांत माहौल भी शांत होने लगेगा।
- भगवान परशुराम भार्गव वंश में जन्मे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था। परशुरामजी की जयंती वैशाख मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इस पावन दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। भगवान परशुराम भगवान शिव और भगवान विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। शास्त्रों में उन्हें अमर माना गया है। शिवजी से उन्होंने संहार लिया और विष्णुजी से उन्होंने पालक के गुण प्राप्त किए। सहस्त्रार्जुन जैसे मदांध का वध करने के लिये ही परशुराम अवतरित हुए।राम से ऐसे बने परशुराममहर्षि जमदग्रि के चार पुत्र हुए, उनमें से परशुराम चौथे थे। परशुराम के जन्म का नाम राम माना जाता है, वहीं रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, जमदग्न्य, भृगुवंशी आदि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है कि पापियों के संहार के लिए इन्होंने भगवान शिव की कड़ी तपस्या कर उनसे युद्ध कला में निपुणता के गुर वरदान स्वरूप पाये। भगवान शिव ने उन्हें असुरों का नाश करने के लिए कहा। राम ने बिना किसी अस्त्र से असुरों का नाश कर दिया। भगवान शिव से उन्हें कई अद्वितीय शस्त्र भी प्राप्त हुए इन्हीं में से एक था भगवान शिव का परशु जिसे फरसा या कुल्हाड़ी भी कहते हैं। यह इन्हें बहुत प्रिय था वे इसे हमेशा साथ रखते थे। परशु धारण करने के कारण ही इन्हें परशुराम कहा गया। कहा जाता है कि भारतवर्ष के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाए गए। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चलाकर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण किया। उन्हें भार्गव नाम से भी जाना जाता है।21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का किया विनाशपरशुरामजी को भगवान विष्णु का आवेशावतार भी कहा जाता है क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम क्रोध के पर्याय रहे हैं। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में इन्होंने हैहय वंशी क्षत्रियों के साथ 21 बार युद्ध किया और उनका समूल नाश किया। इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और संपूर्ण पृथ्वी को महर्षि कश्यप को दान कर दिया। महाभारत युद्ध से पहले जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर धृतराष्ट्र के पास गए थे, उस समय भगवान परशुराम भी उस सभा में उपस्थित थे। उन्होंने भी धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण की बात मान लेने के लिए कहा था। परशुराम का उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक मिलता है। इतना ही नहीं इनकी गिनती तो महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित उन आठ अमर किरदारों में होती है जिन्हें कालांतर तक अमर माना जाता है।अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्वइस पर्व से अनेकों पौराणिक बातें जुड़ी हुई हैं। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन समाप्त हुआ था। भविष्यपुराण के अनुसार वैशाख पक्ष की तृतीया के दिन ही सतयुग तथा त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी। भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। उत्तराखंड के प्रसिद्द तीर्थस्थल बद्रीनाथ धाम के कपाट भी आज ही के दिन पुनः खुलते हैं और इसी दिन से चारों धामों की पावन यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मंदिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। बाकी पूरे वर्ष चरण वस्त्रों से ही ढके रहते हैं।
- देवी लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है. लिहाजा हर व्यक्ति यही प्रयास करता है कि वह माता लक्ष्मी को हमेशा प्रसन्न रख पाए ताकि उस पर माता की कृपा और आशीर्वाद हमेशा बना रहे. लेकिन देवी लक्ष्मी चंचल होती हैं और एक जगह पर अधिक देर तक रुकती नहीं हैं. लेकिन शास्त्रों में कुछ ऐसी बातें भी बतायी गई हैं जो मां लक्ष्मी को बिल्कुल पसंद नहीं है। अगर आप भी जाने-अनजाने वो गलतियां करते हैं तो सावधान हो जाइए वरना अगर मां लक्ष्मी आपके रूठ गईं तो आपको राजा से रंक बना सकती हैं जिसकी वजह से आपको पैसों की तंगी का सामना करना पड़ सकता है.भूल से भी न करें ये गलतियांसुबह देर तक सोते रहनाइन दिनों लोगों की लाइफस्टाइल ऐसी हो गई है कि वे रात में देर तक जागते रहते हैं और सुबह देर तक सोते रहते हैं. वेद और पुराणों में सूर्योदय से पहले जगना सर्वश्रेष्ठ माना गया है और सुबह देर तक सोने वालों (Sleeping till late in morning) से मां लक्ष्मी कभी खुश नहीं होती. साथ ही सूर्यास्त के समय गोधूलि बेला का समय पूजा पाठ का और मां लक्ष्मी के घर में आगमन का माना जाता है. ऐसे समय में सोना भी ठीक नहीं है और इससे भी मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं.रात के समय नाखून काटनाकई लोग अपने व्यस्त दिनचर्या की वजह से दिन या रात किसी भी समय कोई भी काम कर लेते हैं बिना ये सोचे कि इसका उनके जीवन पर क्या प्रभाव हो सकता है. इन्हीं में से एक काम है रात के समय नाखून काटना जो बिल्कुल नहीं करना चाहिए. रात के समय नाखून काटना अशुभ माना जाता है और साथ ही में ऐसा करने से देवी लक्ष्मी भी नाराज हो जाती हैं जिस कारण जीवन में धन संबंधी परेशानियाों होने लगती हैं.भोजन के बीच में उठनाशास्त्रों में कहा गया है कि भोजन करते समय बीच में नहीं उठना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करना देवी अन्नपूर्णा का अपमान माना जाता है. देवी अन्नपूर्णा देवी लक्ष्मी का ही एक रूप हैं. भोजन को बीच में ही छोड़कर उठने की आदत जिन लोगों को होती है उनके घर में कभी बरकत नहीं आती और मां लक्ष्मी भी उनसे नाराज हो जाती हैं.शाम के वक्त न दें नमकभले ही कोई अपना कितना भी अच्छा मित्र क्यों न हो, अगर वह शाम के समय आपके नमक मांगने आए तो उसे भूलकर भी उस समय नमक न दें क्योंकि नमक उधार देने से घर की बरकत चली जाती है और जीवन में पैसों की तंगी का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही हाथ में नमक देने या लेने से भी मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं.रसोई में झूठे बर्तन रखनारात में सोने से पहले झूठे बर्तनों को जरूर साफ करें वरना इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो सकता है और मां लक्ष्मी भी नाराज हो जाती हैं जिससे धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. झूठे बर्तनों को रसोई में लंबे समय तक न छोड़ें और रात में उन्हें धो लेना ही बेहतर होता है.
- हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है गरुड़ पुराण जिसे मृत्यु के बाद सुनने का प्रावधान है. गरुड़ पुराण में कुल 19 हजार श्लोक हैं जिसमें मनुष्य के कर्म के अनुसार उसे कैसे फल मिलते हैं इस बारे में विस्तार से चर्चा की गई है. यहां तक की व्यक्ति का जीवन कैसे खुशहाल हो इन नीतियों के बारे में भी गरुड़ पुराण में बताया गया है. इसी क्रम में गरुड़ पुराण में एक श्लोक मिलता है जिसमें बताया गया है कि उन सात बेहद पवित्र चीजों के बारे में जिन्हें देख लेने भर से मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती हैक्या कहता है गरुड़ पुराण का श्लोक?गोमूत्रं गोमयं दुग्धं गोधूलिं गोष्ठगोष्पदम्।पक्कसस्यान्वितं क्षेत्रं द्ष्टा पुण्यं लभेद् ध्रुवम्।।अर्थात: गोमूत्र, गोबर, गाय का दूध, गोधूलि, गौशाला, गोखुर और पकी हुई फसल से भरपूर खेत देख लेने मात्र से ही पुण्य फल की प्राप्ति होती है.1. गोमूत्र- हिंदू धर्म में गाय को माता और दैवीय पशु माना जाता है इसलिए गोमूत्र को भी शास्त्रों में बेहद पवित्र माना गया है. ऐसी मान्यता है कि गोमूत्र में मां गंगा का वास होता है. आयुर्वेद में गोमूत्र का प्रयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है. इसलिए गरुड़ पुराण के अनुसार गोमूत्र को देख लेने मात्र से पुण्य की प्राप्ति होती है.2. गोबर- गोमूत्र की ही तरह गोबर को भी सनातन धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है. पूजा घर को गोबर से लीपकर पवित्र बनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. पूजा में भी गौरी और गणेश की प्रतिमा गाय के गोबर से ही बनायी जाती है. ऐसे में गरुड़ पुराण का कहना है कि अगर आप गोबर को देख लें तो इससे भी आपको शुभ फल और पुण्य मिलता है.3. गाय का दूध- गाय के दूध को सदियों से अमृत समान माना जाता है. पूजा में बनने वाले पंचामृत में भी गाय के दूध का ही इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेदिक इलाज में भी गाय के दूध का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में गरुड़ पुराण की मानें तो गाय का दूध देखने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है.4. गोधूलि- गोधूलि का अर्थ है गाय के पैरों की धूल. साथ ही शाम और रात के बीच के समय को भी गोधूलि बेला कहा जाता है. सनातन धर्म में गाय के पैरों की धूल को भी पुण्य देने वाला माना गया है. इसलिए गरुड़ पुराण में गोधूलि को देखने से भी पुण्य प्राप्त होने की बात कही जा रही है.5. गौशाला- गौशाला यानी वह जगह जहां गायें रहती हैं इसलिए गौशाला को भी पवित्र माना जाता है. गरुड़ पुराण के अनुसार गौशाला के दर्शन भर से ही आप पुण्य के भागीदार बन सकते हैं.6. गोखुर- गोखुर यानी गाय के पांव. जिस तरह बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेने से पुण्य की प्राप्ति होती है, और गाय के पैरों की धूल को पुण्य देने वाला माना गया है, ठीक उसी तरह गाय के पैर यानी खुर को देखना भी पुण्य देने के बराबर है.7. पकी हुई फसल का खेत- गरुड़ पुराण के अनुसार पकी हुई फसल का खेत (Field with crop) देखने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है. इसका कारण ये है कि पकी हुई फसल से भरा खेत किसान की मेहनत और समृद्धि का सूचक है.--
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घर में जरूर लगाएं ये तीन पौधे, मिलते हैं कई लाभ
हरा-भरा आंगन या बगिया हमारे घर को प्राकृतिक सुंदरता प्रदान करती है, शुद्ध वायु देती है जिससे हमारी सेहत अच्छी रहती है। वास्तुशास्त्र में ऐसे अनेक पेड़-पौधे हैं जिनको घर में लगाना बहुत ही शुभ और लाभकारी माना गया है। इन्हें लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। तीन तरह के पौधों को आप ऑफिस में भी लगा सकते हैं। इससे एक तरफ जहां आपको व्यापार में फायदा होगा वहीं घर में सुख-समृद्धि और खुशियां आएंगी।आइए जानते हैं कौन से हैं वह पेड़-पौधे-अशोक का पेड़यह पेड़ सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। इसे घर के बाहर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का घर में प्रवेश नहीं होता। वास्तु के अनुसार अशोक का पेड़ घर की उत्तर दिशा में लगाना चाहिए ऐसा करने से आपके घर में हर वक्त सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अशोक का पेड़ लगाने से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। इस पेड़ को शोकनाशक माना गया है इसलिए घर में इसे लगाने से किसी को अकाल मृत्यु का शिकार नहीं होना पड़ता। अशोक का पेड़ लगाने से घर के प्रत्येक सदस्यों की शारीरिक और मानसिक ऊर्जा में भी वृद्धि होती है। इससे परिवार के लोगों को मानसिक तनाव के कारण पैदा होने वाली मुसीबतें परेशान नहीं करती हैं और लाभ पहुँचता है।घर की महिलाओं द्वारा नियमित रूप से अशोक के पेड़ को पानी दिया जाना चाहिए इससे उनका वैवाहिक जीवन अच्छा बना रहता है। इस पेड़ को लगाने से परिवार के सदस्यों के सामाजिक मान-सम्मान में भी वृद्धि होती है। इसके पत्तों को धागे में पिरोकर घर के मुख्य गेट पर लगाने से नेगेटिव एनर्जी घर में प्रवेश नहीं करती है। पढ़ाई करने वाले बच्चों के लिए अशोक का पेड़ लाभकारी माना जाता है। थोड़ी देर इसके नीचे बैठकर पढऩे से बच्चों का दिमाग तेज होता है। अशोक का पेड़ घर के बाहर लगाने से उत्पन्न होने वाली सकारात्मक ऊर्जा के कारण धन प्राप्ति का मार्ग भी प्रबल होता है अर्थात आपको धन आगमन के नए अवसर प्राप्त होते हैं।मनी ट्री या क्रासुलाक्रासुला को मनीट्री या जेड प्लांट भी कहा जाता है। वास्तु के अनुसार छोटे-छोटे गोल पत्ते वाले पौधे को घर या ऑफिस में रखना बहुत शुभ होता है। धन लाभ और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इसे दरवाज़े के पास प्रवेश द्वार पर अंदर की ओर लगाना चाहिए। कहते हैं यह पौधा चुंबक की तरह पैसों को अपनी ओर खींचता है। इसे लगाने में ज्यादा मेहनत नहीं लगती, इसका पौधा खरीद के किसी गमले या जमीन में लगा दें, फिर यह अपने आप फैलता रहेगा। इसे धूप या छांव कहीं भी लगाया जा सकता है। इस पौधे के बारे में मान्यता है कि यह सकारात्मक ऊर्जा और धन को अपनी ओर खींचता है।बांस के पौधेघर में बांस के पौधे लगा सकते हैं। वास्तु के अनुसार बांस के पौधे सुख व समृद्धि के प्रतीक होते हैं। बांस के पौधे को शुभ, सौभाग्य और लम्बी आयु का प्रतीक माना गया है। वास्तुविज्ञान के अनुसार यदि बांस के पौधे को दिशाओं के अनुरूप सही स्थान दिया जाए तो ये चमत्कारिक लाभ प्रदान करता है। बांस का अद्भुत पौधा नकारात्मक ऊर्जा को ख़त्म करता है,वही यह अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध करता है अत: इसे घर में अवश्य लगाना चाहिए। इसे लाल रिबन से बांधकर और कांच के बाउल में पानी डालकर रखना चाहिए। कांच के जार में छोटे आकार के बांस के पौधों को लाल धागे में बांधकर दुकान, प्रतिष्ठान में ईशान या उत्तरी दिशा में रखने से आर्थिक प्रगति होने लगती है। जीवन में धन की कभी कमी महसूस न हो इसके लिए 6 बांस के डंठल का प्रयोग आपको लाभ देगा। वास्तु के अनुसार बांस के छह डंठल धन को आकर्षित करते हैं। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 280
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से गुरु उपदेशों के प्रति साधक के कर्तव्य तथा उसकी लापरवाही के सम्बन्ध के संबंध में कुछ मार्गदर्शन..)
....हमको जो सुख मिलता है, वो आत्मा का सुख नहीं है मन का है और लिमिटेड है और वो नश्वर है। तमाम गड़बड़ियाँ हैं उसमें। जो भी सुख हमको मिलता है संसार में वो सदा नहीं रहता। ये तो अनुभव करता है आदमी। भूख लगी है रसगुल्ला खाया सुख मिला। उसमें भी पहले रसगुल्ले में ज्यादा सुख मिला, दूसरे में उससे कम, तीसरे में उससे कम, चौथे में खतम। जिस वस्तु से सुख मिलता है उससे भी हमेशा एक सा नहीं मिलता। धीरे-धीरे घटता जाता है और फिर उसी से दुःख मिलने लगता है। ये भी होता है। स्वार्थ हानि हुई कि दुःख। उसी बीबी से प्यार और उसी बीबी की शकल देखने से नफरत हैं। उसी बेटे से प्यार है और उसी से झगड़ा हो गया या कोई अपमान कर दिया बाप का तो उससे बातचीत करना बन्द। तो संसार का सुख तो अगर थोड़ा है और सदा रहे तो भी कोई बात है। वो तो आया गया, धूप-छाँव की तरह।
तो ये सब बातें हमेशा बुद्धि में बैठी रहें। कभी बैठती हैं कभी गायब हो जाती हैं, फिर संसार में बह जाता है वो लापरवाही से।
तत्त्वविस्मरणात् भेकीवत्।
भूल गया। तो फिर क्या होगा? बहुत बचपन की बात है। एक व्यक्ति डायरी रखता था हमेशा। उसको भूलने की आदत थी, तो उसमें लिख ले। तो हमने कहा - एक बात बताओ, वो डायरी में लिख लेता है और अगर डायरी पढ़ना भूल जाय तो वो लिखा हुआ क्या करेगा? डायरी में कोई लिख ले क्यों लिख ले? भूल जायेगा। बढ़िया तरकीब है। अच्छा जी! ये तरकीब अगर बढ़िया है लेकिन वो पढ़ना भूल जाय तो? अरे! जब भूल जाय, तो सभी कुछ भूल सकता है। तो फिर तुम्हारा लिखना ये क्या काम करेगा?
तो हम तत्त्व को भूल जाते हैं। जिस समय गुरु का उपदेश होता रहता है तो समझ में सब बात आती है पढ़े लिखे आदमी को। वो मानता है, एडमिट करता है, सब सही है और फिर संसार के एटमाॅसफियर में गया और भूल गया। तो उसमें सावधान रहना चाहिये और बार-बार मन को पकड़ करके बुद्धि के द्वारा हरि गुरु के चरणों में लगाते रहना चाहिये। तो अभ्यास करने से पक्का हो जायेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ : प्रश्नोत्तरी, भाग - 3०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - यदि किसी व्यक्ति के हाथ में अंगूठा जमीन की तरफ झुका हो और उंगली एवं अंगूठे के बीच ज्यादा दूरी हो तो ऐसे व्यक्ति जीवन में ज्यादा बचत नहीं कर पाते। पैसे बचाने के लिए इन लोगों के सामने कुछ ना कुछ दिक्कतें बनी रहती हैं। यदि सभी उंगलियों को परस्पर जोडऩे से उनमें किसी तरह का खुला हुआ हिस्सा नहीं दिखे तो समझिए ऐसा व्यक्ति खर्च करने से पहले कई बार सोचता है। इस तरह के लोग बचत करने में बहुत ही कुशल होते हैं। व्यक्ति के हाथ में यदि शुक्र, गुरु और सूर्य पर्वत सही स्थिति और आकार में हैं तो ऐसे व्यक्ति को कोई भी धनवान होने से नहीं रोक सकता। लेकिन यदि बृहस्पति पर्वत नहीं है तो हमेशा पैसे की कमी बनी रहेगी।यदि सूर्य भी सही स्थिति में नहीं है तो पैसे और स्वास्थ्य की दिक्कत हमेशा बनी रहेगी। हस्तरेखा विज्ञान में लकीरों का एक साथ होना और जाल की तरह से दिखाई देना भी अच्छा नहीं माना जाता। लेकिन यदि जाल में रेखाएं एक-दूसरे को काट नहीं रही तो यह शुभ संकेत है। ऐसे लोगों को निरंतर कोशिश करते रहनी चाहिए। सफलता अवश्य मिलेगी। शुक्र पर्वत पर क्षितिज रेखा होने के बावजूद यदि वे साफ नहीं है तो हमेशा पैसे की दिक्कत बनी रहेगी। यदि शुक्र पर्वत साफ है और रेखाओं का जाल नहीं है तो घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। यदि शुक्र पर्वत से एक रेखा निकलकर बृहस्पति पर्वत तक जाए तो ऐसे लोगों के जीवन में हमेशा लक्ष्मी जी का आशीर्वाद बना रहता है। अगर चंद्र पर्वत से क्षितित रेखा बृहस्पति पर्वत तक जाए तो यह भी शुभ संकेत है। इसका मतलब है कि आपके घर लक्ष्मी आने वाली हैं।
- ज्योतिषशास्त्र में नक्षत्र का बहुत अधिक महत्व होता है। जातक के जन्म नक्षत्र के आधार पर भाग्य का विचार किया जा सकता है। ज्योतिषशास्त्र में कुल 27 नक्षत्र होते हैं। आज हम आपको एक विशेष नक्षत्र के बारे में बताएंगे, जिसमें जन्म लेने वाले जातक भाग्यशाली होते हैं।अनुराधा नक्षत्रज्योतिष मान्यताओं के अनुसार 17वां नक्षत्र अनुराधा नक्षत्र होता है। ऐसा माना जाता है कि इस नक्षत्र में जन्में जातक भाग्शाली होते हैं। इस नक्षत्र के स्वामी शनि देव हैं, जिस वजह से इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों पर शनि देव की विशेष कृपा रहती है।इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों का स्वभावज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों पर मंगल का भी विशेष प्रभाव रहता है। जिस वजह से जातक साहसी, पराक्रमी, उत्साही और ऊर्जावान होते हैं।-इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग बेझिझक अपनी बातों को कहना पसंद करते हैं।-अपनी राय खुलकर दूसरों के सामने रखते हैं।-इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग दोस्ती काफी सोच- समझकर करते हैं और दोस्ती निभाने में सबसे आगे रहते हैं।-इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग धार्मिक और आध्यात्मिक होते हैं।-इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग काफी मेहनती भी होते हैं।-इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।--
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 279
'मदर्स-डे' (9 मई) की हार्दिक शुभकामनायें!!(जगज्जननी श्रीराधारानी के पावन चरण-कमलों में बारम्बार प्रणाम)
आज मदर्स-डे पर आइये अपनी सनातन शाश्वत माँ श्रीराधारानी के गुणों का स्मरण करें, जो हमारे हृदय को भयमुक्त करने वाले हैं। वेद-शास्त्र में यह सत्य उद्घोषित है कि हम सभी उन्हीं की संतान हैं। वे हमारी पालनहार, रखवार आदि सब हैं। मदर्स-डे पर उनका स्मरण करते हुये करुण-क्रन्दन पूर्वक रोकर उनसे प्रेम, कृपा और उनकी सेवा प्राप्त करने की याचना करें।
निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'प्रकीर्ण-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, आरती, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, निकुंज, मिलन, मुरली, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का यह पद है, जिसमें श्रीराधारानी के गुणों का वर्णन है। आइये हम इसके प्रत्येक शब्द पर गंभीर विचार करते हुये लाभ प्राप्त करें ::::
श्री राधे हमारी सरकार, फिकिर मोहिं काहे की ।
हित अधम उधारन देह धरें,बिनु कारन दीनन नेह करें,जब ऐसी दया दरबार, फिकिर मोहिं काहे की ।
टुक निज-जन क्रन्दन सुनि पावें,तजि श्यामहुँ निज जन पहँ धावें,जब ऐसी सरल सुकुमार, फिकिर मोहिं काहे की ।
भृकुटि नित तकत ब्रम्ह जाकी,ताकी शरणाई डर काकी,जब ऐसी हमारी रखवार, फिकिर मोहिं काहे की ।
जो आरत 'मम स्वामिनि !' भाखै,तेहि पुतरिन सम आँखिन राखै,जब ऐसी 'कृपालु' रिझवार, फिकिर मोहिं काहे की ।।
सरलार्थ : जब किशोरी जी हमारी स्वामिनी (एवं माँ भी) हैं तब मुझे किस बात की चिंता है? जो पतितों के उद्धार के लिए ही अवतार लेती हैं एवं अकारण ही दीनों से प्रेम करती हैं. जब हमारी स्वामिनी के दरबार में इतनी अपार दया है, तब मुझे किस बात की चिंता है? हमारी स्वामिनी जी अपने शरणागतों की थोड़ी भी करुण पुकार सुनते ही अपने प्राणेश्वर श्यामसुन्दर को भी छोड़कर अपने जन के पास तत्क्षण अपनी सुधि बुधि भूलकर दौड़ आती हैं. जब हमारी किशोरी जी इतनी सुकुमार और सरल स्वभाव की हैं, तब मुझे किस बात की चिंता है? ब्रम्ह श्रीकृष्ण भी जिनकी भौंहे देखते रहते हैं अर्थात् प्यारे श्यामसुन्दर भी जिनके संकेत से चलते हैं, उनकी शरण में जाकर फिर किसका भय है? जब ऐसी स्वामिनी जी हमारी रक्षा करने वाली हैं, तब मुझे किस बात की चिंता है? जो शरणागत होकर आर्त होकर दृढ़ निश्चयपूर्वक 'मेरी स्वामिनी जी !' ऐसा कह देता है, उसे स्वामिनी जी अपनी आँखों की पुतली के समान रखती हैं. 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि जब हमारी स्वामिनी जी शरणागत से इतना प्यार करती हैं तब मुझे किस बात की चिंता है?
०० सन्दर्भ ग्रन्थ ::: प्रेम रस मदिरा, प्रकीर्ण माधुरी, पद संख्या 21०० रचयिता ::: जगद्गुरुत्तम् स्वामी श्री कृपालु जी महाराज०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - सोना खरीदना तो शुभ माना ही गया है लेकिन इस दिन दान- पुण्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। किसी भी व्यक्ति जिसे मदद की जरूरत है उसे देवता व पितरों के नाम से जल, कुंभ, शक्कर, सत्तू, पंखा,छाता फलादि का दान करना बहुत ही शुभ फलदायी होता है। जल से भरा हुआ घड़ा, शक्कर, गुड़, बर्फी, सफेद वस्त्र, नमक, शरबत, चावल, चांदी का दान भी किया जाता है।इससे अक्षय पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है और महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इसी दिन दस महाविद्या में नवमी महाविद्या मातंगी देवी का प्रार्दुभाव हुआ था। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए। पितृदोष निवारण के लिए पितरों को तर्पण देना बहुत लाभदायक होता है।पूजा का शुभ मुहूर्तसुबह 05 बजकर 35 मिनट से लेकर 12 बजकर 18 मिनट तककोरोना वायरस महामारी के कारण इस बार घर में पूजा करें और मां लक्ष्मी का ध्यान करें। महामारी के इस समय में इस दिन किसी मदद चाहने वाले व्यक्ति को दान करना बहुत पुण्य फलदायी रहेगा।
- हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का बहुत अधिक महत्व होता है। इस दिन को बेहद ही शुभ माना जाता है। इस दिन सूर्य देव का राशि परिवर्तन भी होने जा रहा है। इस दिन सूर्य वृष राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार राशि परिवर्तन से सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। इस दिन सूर्य के वृष राशि में प्रवेश करते ही त्रिग्रही योग बन जाएगा। इस समय बुध और शुक्र भी वृष राशि में हैं, जिस वजह से त्रिगही योग बन रहा है। त्रिगही योग बनने से सभी राशियों पर इसका प्रभाव पड़ेगा। आइए जानते हैं त्रिग्रही योग बनने से कैसा रहेगा सभी राशियों का हाल...मेष राशिमेष राशि के जातकों के लिए ये योग शुभ नहीं कहा जा सकता है।पारिवारिक जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।धन- हानि होने की संभावना है।स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।वृष राशिवृष राशि के जातकों के लिए भी ये योग मिले- जुले परिणाम लेकर आएगा।राजनीतिक जीवन में सफलता मिल सकती है।मानसिक तनाव बढ़ सकता है।इस समय भागदौड़ अधिक रहेगी।मिथुन राशिमिथुन राशि के जातकों के लिए भी ये योग मिला- जुला रहने वाला है।धन अधिक खर्च हो सकता है।इस समय सोच-समझकर धन खर्च करें।परिवार के सदस्यों की चिंता रहेगी।कर्क राशिकर्क राशि के जातकों को कार्यों में सफलता मिलेगी।व्यापार से जुड़े लोगों को थोड़ा सावधान रहने की आवश्यकता है।मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है।सिंह राशिपरिवार के सदस्यों से प्रेम से बात करें, नहीं तो आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।व्यापार से जुड़े लोगों के लिए ये समय अच्छा नहीं कहा जा सकता है।राजनीति से जुड़े लोगों के लिए ये योग काफी शुभ है।कन्या राशिशिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।जमीन संबंधित विवाद हो सकता है।कोर्ट- कचहरी के मामलों को बाहर ही सुलझा लें।तुला राशिस्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।धन- लाभ हो सकता है।आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।तुला राशि के जातकों के लिए ये समय मिला-जुला परिणाम लेकर आ रहा है।वृश्चिक राशिपारिवारिक जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।परिवार में तनाव की स्थिति रह सकती है।नौकरी में स्थान परिवर्तन के योग बन रहे हैं।स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।धनु राशिधनु राशि के जातकों के लिए ये योग शुभ कहा जा सकता है।कोर्ट- कचहरी के लंबित मामलों से छुटकारा मिलेगा।परिवार के सदस्यों का सहयोग मिलेगा।धन- लाभ हो सकता है।स्वास्थ्य लाभ होने के योग भी बन रहे हैं।मकर राशिमित्रों से मतभेद न होने दें।प्रेम जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।यह योग आपके लिए शुभ नहीं कहा जा सकता है। इस योग की वजह से आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।कुंभ राशिकुंभ राशि के जातकों को परिवार के सदस्यों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।कार्यों में विघ्न पड़ सकता है।वाहन संभल कर चलाएं।मीन राशिमीन राशि के जातकों को पारिवारिक जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।कार्यक्षेत्र में आपको मेहनत का पूरा श्रेय नहीं मिलेगा।तनाव का सामना करना पड़ सकता है।वाहन संभल कर चलाएं।
- '6-घण्टों का विशेष ऑनलाइन संकीर्तन'(मदर्स-डे के अवसर पर श्रीराधारानी के नाम-गुणों का अखण्ड संकीर्तन)
'भगवन्नाम से बड़ी कोई औषधि नहीं!'
9 मई 2021, रविवार का दिन समस्त विश्व में 'मदर्स-डे' के रूप में मनाया जायेगा। स्वरूपतः यह दिन माँ को समर्पित है, उनके प्रति आभार प्रकट करने का दिन है और संसार में सामान्यतः शरीर की माँ के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हुये यह दिन मनाया जाता है। आप सभी को मदर्स-डे की हार्दिक शुभकामनायें!
वस्तुतः हमारा वास्तविक स्वरूप शरीर नहीं, आत्मा का है, जीव का है। और जीवात्मा की वास्तविक माता श्रीराधारानी हैं। वही हमारी सनातन और शाश्वत माता हैं। शरीर की माता प्रत्येक जन्म में बदल जाती है, किन्तु श्रीराधारानी सदा से हमारी माँ हैं और सदा ही रहेंगी। और वे प्रतिक्षण अपनी संतानों की देखभाल तथा उन पर अपनी करुणा, दया और कृपा की वर्षा करती रहतीं हैं। फिर जो उनके शरणागत हो जाते हैं, उन जीवों पर तो अति विशेष कृपा करती हैं; उनकी अपनी आँखों की पुतलियों के समान सँभार करती हैं। अतः अपनी वास्तविक माता, रखवार श्रीराधारानी की कृपाओं का स्मरण करते हुये उनके श्रीचरणों के प्रति समर्पण-भाव ही वास्तविक 'मदर्स-डे' है।
विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने इसी सिद्धान्त को स्थापित करते हुये 'मदर्स-डे' को श्रीराधारानी के स्मरण तथा उनके गुण-गान व कृपा-याचना से जोड़ा है। वे ऐसे प्रथम जगदगुरु हुये हैं, जिन्होंने परम मधुर 'श्रीराधा' नाम को विश्वव्यापी बनाया। उन्होंने अपने 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ में वर्णन किया है;
आपु को इकलो न मानो कह बामा।सदा सर्वत्र तेरे साथ रहें श्यामा।।42।।
प्रति जन्म नयी नयी मातु बनी बामा।बदली न कभु साँची मातु श्यामा।।43।।
आज जब विश्व में चारों ओर 'कोरोना' ने त्राहि-त्राहि मचाई है, सभी व्यक्ति भयाक्रान्त हैं। उनका सम्बल, उनका धैर्य डाँवाडोल हो रहा है। ऐसे समय में भगवान के प्रति अगाध, अटूट विश्वास की परमावश्यकता है। क्योंकि उनका स्मरण और उनके प्रति विश्वास ही हमारी आत्मा का वास्तविक बल है। भगवत्स्मरण ही धैर्य है, जीवन है, साहस है, विजय है। यही सच्ची और सबसे बड़ी औषधि है। पुनः, कलियुग में 'भगवन्नाम-संकीर्तन' अथवा 'हरिनाम-संकीर्तन' ही कल्याण का सर्वप्रमुख और सुगम साधन है, यथा;
कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा।।
तथा,
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम केवलम्।कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।
इसी विचार से इस 'मदर्स-डे' पर जगदगुरु कृपालु परिषत द्वारा '6-घण्टे का श्रीराधारानी के नाम-गुणों का अखण्ड संकीर्तन' आयोजित किया जा रहा है। इस महासंकीर्तन में सभी मिलकर अपनी माँ तथा रखवार श्रीराधारानी का करुण-क्रंदन युक्त संकीर्तन करते हुये उनसे याचना करेंगे कि इस विकट परिस्थिति का सामना करने की शक्ति प्रदान करें; हमारे हृदय में भक्ति तथा भगवत्प्रेम का अंकुर जाग्रत करें। यही भगवत्स्मरण ही इस भयाक्रान्त परिस्थिति में सम्बल प्राप्त करने का अमोघास्त्र है।
इस कार्यक्रम की रूपरेखा/जानकारी इस प्रकार है :::
9 मई 2021, दिन रविवार कोसुबह 4 बजे से 10 बजे तक (6 घण्टे) अखण्ड संकीर्तन काजगदगुरु कृपालु परिषत के आधिकारिक यूट्यूब चैनलwww.JagadguruKripaluParishat.com तथाजगदगुरु कृपालु परिषत के आधिकारिक एप्लिकेशनSanatan Vedic Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat
पर सीधा प्रसारण किया जायेगा, जिसका आप सभी घर बैठे लाभ ले सकेंगे। साथ ही एक अन्य महत्वपूर्ण सूचना 'जगदगुरु कृपालु साहित्य' से जुड़ी है।
★★ स्पेशल ऑफर - 'जगदगुरु कृपालु साहित्य'
'मदर्स-डे' के अवसर पर जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित साहित्यों में से 'ब्रज रस माधुरी' जिनके कुल 3-भाग हैं, और जिनमें 500 से भी अधिक मधुर, सरस तथा निष्काम-भावयुक्त भगवन्नाम संकीर्तन उपलब्ध हैं, इनके ई-बुक (ई-पुस्तक) आप जगदगुरु कृपालु परिषत के साहित्य-एप्लिकेशन'JKBT - Jagadguru Kripalu Bhaktiyog Tattvadarshan'अथवा www.jkpliterature.org.in पर जाकर स्पेशल ऑफर में प्राप्त कर सकते हैं ::(1) केवल एक भाग ₹ 200 के स्पेशल मूल्य पर,(2) तीनों भाग ₹ 500 के स्पेशल मूल्य पर।-- नोट ::: यह ऑफर केवल 9 मई 2021 के लिये वैध रहेगा।
आइये इस 'मदर्स-डे' को हम श्रीराधारानी के स्मरण में बितावें। साथ मिलकर 'श्रीराधा' नाम गावें, उन्हें पुकारें। करुण-क्रन्दन युक्त पुकार वे तत्काल आकर जीवों को हृदय से लगा लेती हैं। संत-रसिक जनों ने जिस 'श्रीराधा' नाम को अपना जीवन बनाया, आओ उसी 'श्रीराधा' नाम का हम भी गुणगान करें।
आप सभी को मदर्स-डे की हार्दिक शुभकामनायें!! - वास्तु शास्त्र में प्रत्येक दिशा का अपना एक अलग महत्व बताया गया है। जिसके अंतर्गत किसी भी चीज रसोई, मंदिर, शयनकक्ष, बाथरूम, शौचालय आदि का निर्माण करने के लिए दिशा और स्थान से संबंधित महत्वपूर्ण निर्देश दिए जाते हैं। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में परेशानियां आ रही हो तो इसका संबंध घर के वास्तु से भी होता है। वास्तु में निर्माण को लेकर ऐसी बातें बताई गई हैं, यदि जिनका ध्यान रखा जाए तो आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सुख-शांति से जीवन व्यतीत किया जा सकता है। इसी तरह से बाथरूम और शौचालय बनाने को लेकर भी बहुत महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए हैं। यदि इनका निर्माण करते हुए वास्तु को ध्यान में न रखा जाए तो नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। आइए जानते हैं इस बारे में।शौचालय और स्नानगृहआज के समय में घरों का आकार बदल गया है, पहले के मुकाबले घर छोटे बनने लगे हैं, यही कारण है कि आजकर ज्यादातर लोगों के घरों में शौचालय और स्नानगृह एक साथ ही बनवा दिया जाता है। कुछ घरों में स्नानगृह और शौचालय शयनकक्ष में ही सटाकर बना होता है, इसलिए भी ये दोनों चीजें एकसाथ बनवा दी जाती हैं लेकिन वास्तु के अनुसार यह एक वास्तुदोष बन जाता है। जिसके कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता है। परिवार में कलह की स्थिति उत्पन्न होती है। पति-पत्नी में भी मनमुटाव बना रहता है।शौचालय और स्नानगृह एकसाथ क्यों नहीं बनातेस्नानगृह को चंद्रमा का स्थान माना गया है तो वहीं शौचालय को राहु का स्थान माना गया है। यदि स्नानगृह और शौचालय एक साथ बना दिया जाए तो उसका सीधा सा अर्थ होता है राहु और चंद्र का एकसाथ होना। ये दोनों ही एक दूसरे के परम शत्रु हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार राहु के कारण ही चंद्रमा पर ग्रहण लगता है, इसलिए यदि घर में स्नानगृह और शौचालय एकसाथ बना हो तो चंद्रमा में दोष लगता है और पूरा घर दूषित हो जाता है। जिससे आपको बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।विष और अमृत के समानशास्त्रों में भी चंद्रमा को अमृत और राहु को विष माना गया है। स्नानगृह और शौचालय का एकसाथ होना विष और अमृत की युक्ति का होने के समान होता है। जो एक दूसरे से बिलकुल विपरीत हैं, इसलिए इसके दुष्परिणाम हो सकते हैं। स्नानगृह और शौचालय को एक साथ बनाने से वास्तु का नियम भंग होता है। इसके कारण आपके घर में नकारात्मकता का प्रवाह होने लगता है, जो आपके परिवार में अलगाव का कारण बनता है। परिवार के सदस्यों में प्रेम भावना की कमी होने लगती है और ईष्र्या एवं द्वेष की भावना पनपने लगती है।शौचालय और स्नानगृह की सही दिशावास्तु के अनुसार शौचालय बनवाने के लिए नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा के मध्य का स्थान) में सही रहता है। तो वहीं स्नानगृह बनवाने के लिए पूर्व दिशा सही रहती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 278
(भूमिका/विशेष जानकारी - आज के अंक के साथ सबसे नीचे जो फोटो आप सभी की जानकारी के रूप में लगाई गई है, वह कल अर्थात 9 मई 2021, दिन - रविवार को 'मदर्स डे' पर जगदगुरु कृपालु परिषत के ऑफिशियल यूट्यूब चैनल Jagadguru Kripalu Parishat (JKPIndia) पर प्रस्तुत होने वाले 6-घण्टे (सुबह 4 से 10 बजे) के अखण्ड संकीर्तन के लाइव प्रसारण के संबंध में है। हम सभी की सनातन माँ श्रीराधारानी हैं। वर्तमान समय में भारत सहित सारा विश्व कोरोना के प्रकोप से ग्रसित है, ऐसे विकट समय में आइये अपनी शाश्वत माता तथा रखवार श्रीराधारानी के पावन, भयहारी तथा मधुर नाम व गुणों का संकीर्तन करते हुये उनसे प्रेम तथा कृपा की याचना करें। इस कार्यक्रम से संबंधित अन्य जानकारी के लिए एक बार फोटो का अवलोकन करने की कृपा जरूर करें....)
साधक का प्रश्न ::: चिन्तन और रूपध्यान में क्या अन्तर है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: मन का काम है चिन्तन करना। वो रूपध्यान करे, लीला ध्यान करे, गुण ध्यान करे, संसार का ध्यान करे, चाहे जो कुछ करे। मन का एक ही काम है चिन्तन करना, स्मरण करना;
युगपत् ज्ञानानुत्पत्तिर्मनसो लिंगम्। (दर्शन शास्त्र)
अरे दो ही चिन्तन है या तो माया के तीन गुण का चिन्तन करे या हरि गुरु का चिन्तन करे। बस। दो में एक का चिन्तन करना पड़ेगा। और दोनों नहीं कर सकता एक समय में। एक समय में एक ही चिन्तन होगा। चाहे भगवान् का कर लो चाहे संसार का कर लो। अलग-अलग टाइम में हो सकता है दोनों चिन्तन। एक समय में नहीं हो सकता। क्योंकि मन एक है। सूरदास ने कहा;
ऊधो जी! मन न भये दस बीस।एक हुतो सो गयो श्याम संग, को अवराधे ईश।
एक ही तो मन था, वह श्यामसुन्दर के पास चला गया। अब तुम्हारा योग, वैराग्य कौन-सा मन करे? बुद्धि कहती है, यहाँ स्वार्थ सिद्ध होगा, चिन्तन करो, मन वही चिन्तन करता है। बुद्धि के खिलाफ नहीं कर सकता। और वैसे नियम ये है कि जहाँ अटैचमेन्ट होता है उसी का चिन्तन होता है, होता है माने नैचुरल। लेकिन अटैचमेन्ट हुआ कैसे? पहले चिन्तन किया। तो जिस वस्तु में सुख का बार-बार चिन्तन करता है, उस वस्तु में मन का अटैचमेन्ट हो जाता है। और किस वस्तु का चिन्तन बार-बार करता है? बुद्धि जिसमें सुख एडमिट (स्वीकार) करती है। बुद्धि का काम है डिसाइड करना। उसने डिसाइड किया यहाँ सुख है तो मन उसका चिन्तन करने लगता है। बुद्धि ने कहा यहाँ सुख नहीं है तो इसका चिन्तन करने लगता है। सब कुछ बुद्धि पर निर्भर है। मन न भी चाहे, बुद्धि की आज्ञा उसको माननी पड़ती है। इसलिए बुद्धि में अगर आ गया कि भगवान् हमारा है और शरीर नश्वर है, कल रहे न रहे चिन्तन करो। मन को चिन्तन करना पड़ेगा। अटैचमेन्ट नहीं है, नहीं सही।
किसी बच्चे का अटैचमेन्ट पढ़ने में नहीं होता तो वो बोझा समझता है। मुसीबत समझता है। लेकिन बुद्धि कहती है नहीं पढ़ोगे तो फेल हो जाओगे, फेल हो जाओगे तो फिर पापा क्या कहेंगे और क्या करेंगे। फिर तुम्हारा भविष्य क्या होगा? ये तमाम बातें। बुद्धि डाँटती है जब मन को, तब बिचारा रात भर जगकर पढ़ता है। चाय पी पी के। सबेरे कौन उठना चाहता है, नींद आ रही है। अरे! अब उठ लो, महाराज जी उठ गये होंगे। महाराज जी भी मुसीबत हैं। हाँ, साढे़ तीन बजे उठ जाते हैं।
जो कार्य अनन्त जन्म किया , उसका तो चिन्तन होता है । क्यों होता है? पहले बहुत किया है इसलिए होता है। जिसने दिन-रात सिगरेट पिया दस साल सिगरेट में उसका अटैचमेन्ट हुआ इसलिए मन परेशान है पीने के लिए। लेकिन शुरू-शुरू में जब सिगरेट पिया तब तो अटैचमेन्ट नहीं था, शौक से पिया। अटैचमेन्ट बाद में हुआ। ऐसे ही पहले बुद्धि को समझाकर के भगवान् का चिन्तन करना है फिर जब रस मिलेगा तो अपने आप होगा। पहले करना, फिर होना। पहले प्रैक्टिस फिर नैचुरैलिटी।
भगवान् कहते हैं मेरा नाम, गुण, लीला इनका चिन्तन करे तो और अधिक लाभ मिलेगा। मन की शुद्धि ही तो करना है। वियोग में और अधिक जल्दी शुद्ध होता है मन।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 3, प्रश्न संख्या 37०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
०० विशेष जानकारी यहाँ से प्राप्त करें :::
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 277
साधक का प्रश्न ::: अगर सबेरे उठकर भगवान से प्रार्थना करें हाथ जोड़ के, आज मेरे हाथ से जो भी कर्म हो व आपके निमित्त हो। इस प्रकार दिन भर काम करते रहें और फिर रात को सोते समय भी ऐसा कहें कि आज जो भी कर्म मेरे हाथ से हो गये हैं, वह आपके निमित्त हैं। तो वो माने जायेंगे क्या?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: न, न, न, जीरो बटे सौ। ऐसे तो हर कोई एक्टिंग में कह दे कि हमने जो कुछ पाप किया है, वो आपको अर्पित है और फिर पाप किये जाओ और फिर हमने जो पाप किया है वो आपको अर्पित हो। ये नहीं होता। कर्म करते समय भगवान का स्मरण हो और उनको अर्पण हो। सबेरे उठकर कर लिया, रात को सोते समय कर लिया - ऐसे काम नहीं होगा। हर समय भगवान का स्मरण होना चाहिये, उसकी साइंस ये है। हर कर्म भगवान को अर्पित करो मतलब हर समय उनका स्मरण होता रहे। स्मरण से फायदा होगा। बोलने-वोलने से नहीं। वो तो ऐसे ही है जैसे संसार में बोलते हैं न सॉरी, थैंक्यू। दिन भर बोलते रहते हैं, भीतर से उसका कोई संबंध नहीं। एक वाक्य बोल देने से काम बन जायेगा?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 3, प्रश्न संख्या 31०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 276
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत यह प्रवचन न केवल आध्यात्म पथ के पथिकों के लिये महत्वपूर्ण है, बल्कि यह तो समस्त विश्व के प्रत्येक देश के प्रत्येक नागरिक के लिये महत्व रखती है। सीधे शब्दों में मनुष्य जाति के लिये यह लाभप्रद है। इसका संबंध भगवत्प्राप्ति जैसे सर्वोच्च लक्ष्य के साथ ही जीवन के विविध पक्षों, नैतिक सदाचारों, देश, राज्य तथा घर-गृहस्थी में शान्ति तथा सुख से भी है। अतः इन लाभों को दृष्टिगत रखते हुये आइये इस अंश से हम कुछ समझने की चेष्टा करें...)
(आचार्य श्री की वाणी यहाँ से है...)
...भगवान को मानने से अथवा यूँ कहो, भक्ति करने से अंतःकरण शुद्ध होगा। वास्तविकता तो यह है कि श्रीकृष्ण भक्ति के बिना अंतःकरण शुद्धि होना असम्भव है और सत्य, अहिंसा आदि सदाचार का आचरण अंतःकरण की शुद्धि के बिना असम्भव है। ये सब दैवी गुण तभी आयेंगे जब हमारे अंतःकरण की शुद्धि होगी।
हमारे अंतःकरण की शुद्धि जितनी मात्रा में होगी उतना ही हमारा संसार से वैराग्य होगा। अंतःकरण शुद्ध केवल ईश्वरीय भक्ति से ही होगा। जब तक यह निश्चय न हो जाय कि संसार में सुख नहीं है भगवान में ही सुख है, संसार की संपत्ति बटोरने की कामना रहेगी। जब यह निश्चय हो जायेगा शान्ति भौतिक पदार्थों से नहीं, भगवान से ही मिलेगी, जितनी मात्रा में यह निश्चय होगा उतनी मात्रा में संसार का सामान संग्रह करने की कामना कम होगी, तो उतनी मात्रा की चार सौ बीसी कम हो जायेगी। संसार से संपत्ति बटोरने की कामना खतम होगी। आज एक आदमी अरबपति है, खरबपति बनना चाहता है।
तो अगर ईश्वरीय भावना होगी, अंतःकरण शुद्ध होगा तो समझेगा कि संसार में सुख नहीं है। आवश्यकता की पूर्ति के अलावा जो हमारे पास है वो गरीबों को दान दे दो, तब ये भावना पैदा होगी। अतः भक्ति के द्वारा ही वास्तविक परोपकार की भावना जाग्रत की जा सकती है।
अगर कोई, कोई भी भक्ति करेगा तो अंतःकरण शुद्धि होगी, अंतःकरण शुद्ध होगा तो स्वाभाविक रुप से दैवी गुण (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, गरीबों की सहायता आदि) आयेंगे। यही दैवी गुण आधार हैं विश्व-शान्ति के। हमारी अंतःकरण की शुद्धि पर ही हमारा हिन्दू धर्म जोर देता है ताकि हमारे विचार शुद्ध हों, जब विचार शुद्ध होंगे तो ये राग-द्वेष अशान्ति जो संसार में फैल रही है, अपने आप समाप्त हो जायेंगे। जातिवाद आदि की बीमारी ये सब बीमारियाँ समाप्त हो जायें अगर कोई सही-सही हिन्दू धर्म को मान ले।
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ पुस्तक : विश्व-शांति; पृष्ठ 9 एवं 10०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हर कोई अपने परिवार को स्वस्थ रखना चाहता है। ऐसे में हेल्दी चीजों का सेवन करने और अपनी डेली रूटीन को हेल्दी बनाने के साथ ही अगर वास्तु से जुड़े कुछ उपाय अपना लें तो उससे भी आपकी सेहत को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।खिड़की दरवाजे खोल देंसुबह जल्दी उठने की आदत डालें और सूर्योदय के समय घर की सभी खिड़कियां और दरवाजे कुछ देर के लिए खोल दें। उगते सूर्य की किरणें सेहत के लिए फायदेमंद होती हैं और घर में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस भी इससे नष्ट हो जाते हैं, लेकिन दोपहर में 11-12 बजे सूर्य की किरणें नुकसानदेह हो जाती हैं इसलिए दोपहर के समय दक्षिण दिशा की खिड़कियां और दरवाजे बंद कर दें और दक्षिण दिशा में गहरे रंग का भारी पर्दा लगाएं।मुख्य द्वार पर इस बात का रखें ध्यानवास्तु शास्त्र की मानें तो घर का मुख्य द्वार यानी मेन गेट कभी भी टूटा-फूटा या दरार वाला नहीं होना चाहिए वरना इसका घर के मुखिया की सेहत पर काफी बुरा असर पड़ सकता है। इसलिए घर के मुख्य द्वार को हमेशा साफ-सुथरा रखें और अच्छी हालत में रखें।सोते समय इस बात का रखें ध्यानरात को सोते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपका सिर कभी भी उत्तर दिशा की ओर और पैर दक्षिण दिशा की तरफ न हो वरना सिर में दर्द और नींद न आने की समस्या हो सकती है। इसके अलावा रात में सोते समय आपका सिर उस तरफ भी नहीं होना चाहिए जिस तरह टॉयलेट है या वॉशिंग मशीन रखी हो। आप किस दिशा में सिर करके सोते हैं इसका भी आपकी मानसिक सेहत पर गहरा असर पड़ता है।घर में रखें साफ-सफाईवास्तु शास्त्र की मानें तो घर को हमेशा साफ सुथरा रखना चाहिए। अगर घर गंदा हो, घर की दीवारों पर जाले लगे होंगे तो इस बात का घर में रहने वाले लोगों पर नकारात्मक असर पड़ेगा और उसकी शारीरिक और मानसिक सेहत खराब हो जाएगी। इसलिए सफाई करते वक्त घर की दीवारें और कोनों में भी सफाई का विशेष ध्यान रखें।सीलन की समस्या ठीक करवाएंघर में अगर कहीं सीलन है तो समझ लीजिए कि घर वालों की सेहत खराब होने वाली है। वास्तु शास्त्र में दीवारों पर सीलन होना नकारात्मक स्थिति मानी जाती है। ऐसी जगह पर लंबे समय तक रहने से सांस और त्वचा संबंधी बीमारियां हो सकती हैं इसलिए घर में अगर कहीं सीलन हो तो उसकी तुरंत मरम्मत करवाएं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 275
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! संत के साथ रहने पर क्या परिवर्तन आता है और क्यों आता है? वाल्मीकि लुटेरा था और संत के साथ रहने से ब्रम्हर्षि हो गये। ऐसी कौन सी खास बात होती है जो संत के साथ रहने से जीवन में इतना परिवर्तन आ जाता है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: खास बात क्या होती है? वो तो किसी आदमी को ठण्ड लग रही है, वो आग के पास जायेगा तो ठण्ड दूर होगी, लेकिन उसमें कुछ शर्तें हैं - संत एक चुम्बक है। चुम्बक पत्थर होता है न, और संसार के लोग यानी संसारियों का मन लोहा है। जैसे एक चुम्बक रख दो और चारों ओर लोहे की सुइयाँ खड़ी कर दो, तो जो सुई क्लीन लोहे की होगी, वो फौरन आ कर चिपक जायेगी, जिसमें थोड़ी मिलावट होगी वो धीरे-धीरे मिल जायेगी, जिसमें और मिलावट होगी, वो और धीरे-धीरे आयेगी, और जिसमें बहुत अधिक मिलावट होगी वो अपनी जगह हिलेगी, चलेगी नहीं और जो नकली होगी, लोहे की होगी ही नहीं, उस पर कोई असर नहीं होगा।
ऐसे ही भगवान जब अवतार लेते हैं या संत महात्मा जब किसी को मिलते हैं तो उसके अन्तःकरण की शुद्धि जितनी लिमिट की होती है, उसी हिसाब से वो अपने आप खिंच जाता है। एक सैकेण्ड में कम्प्लीट सरेण्डर हो सकता है, अगर अन्तःकरण शुद्ध मिल जाय, और अगर गड़बड़ है कुछ, तो जितनी गड़बड़ है उतनी ही देर में वो संत से खिंचेगा।
इसलिये कहते हैं एक घर में माँ है, बाप है, बेटा है, स्त्री है, पति है, दस आदमी हैं। एक संत का सत्संग सबको मिला। लेकिन सबका खिंचना अलग-अलग ढंग से है। किसी का फिफ्टी परसेन्ट, किसी का ट्वेन्टी परसेन्ट, किसी का नाइंटी परसेन्ट। तो जिसका हृदय जितना साफ है, शुद्ध है, उसी हिसाब से वो खिंच जाता है और जिसका हृदय बहुत गन्दा है वो गाली देता है संत को, भगवान को; खिंचने की कौन कहे।
पापवंत कर सहज सुभाऊ..
भगवान कहते हैं - भई! जो जितनी मात्रा का पापी होगा, पाप का अन्तःकरण होगा, उतनी ही देर में खिंचेगा;
यावत्पापैस्तु मलिनं हृदयं तावदेव हि।न शास्त्रे सत्यता बुद्धि: सद्बुद्धि: सद्गुरौ तथा।।
जितना अधिक मन मलिन होगा, अन्तःकरण गन्दा होगा, पापयुक्त होगा, उतना ही वह भगवान और संत पर विश्वास ही न करेगा। देखकर हँस देगा, वो जायेगा ही नहीं।
हमारे इण्डिया में पण्डित नेहरु थे प्राइम मिनिस्टर। वो कहते थे कि भगवान की बात सुनना गलत है, अगर सुन लिया और कहीं उधर चले गये तो हमारी पॉलिटिक्स बिगड़ जायेगी। इतना पाप का अन्तःकरण कि उसको भगवान की बात सुनने में एतराज है। वो पापात्मा जितना अधिक होगा, उतना वो दूर जायेगा भगवान से, संत से। और जितना अन्तःकरण शुद्ध होगा, उतनी ही जल्दी वो खिंच जायेगा।
वो तो ऐसा है जैसे गुड़ है, गुड़ से प्यार करने वाली जो मक्खियाँ हैं वो गुड़ कहीं पर रख दो, अपने आप आ जायेंगी। कोई मुरदा सड़क पर पड़ा है तो कौवे, गीध ये सब अपने आप आ जायेंगे। अपने आप खिंच जाते हैं वो।
जिस चित्तवृत्ति का व्यक्ति होगा, उस चित्तवृत्ति में खिंच जायेगा। शराबी से शराबी मिलेगा, बड़ी दोस्ती हो जायेगी, पण्डित से पण्डित मिलेगा, दोस्ती हो जायेगी। इसलिये संत से खिंच जाना, ये शुद्ध अन्तःकरण वाले होते हैं, वही खिंचते हैं, सब नहीं खिंचते।
बाप हिरण्यकशिपु गाली दे रहा है भगवान को, और उसका बेटा प्रह्लाद भगवान का भक्त है पूर्ण। ये सबके अपने-अपने संस्कार होते हैं। सबका अपना-अपना हृदय पाप-पुण्य से युक्त होता है, उसी हिसाब से उसका आकर्षण होता है।
एहि सर आवत अति कठिनाई,रामकृपा बिनु आई न जाई..
बड़ी भगवत्कृपा हो तो सत्संग में कोई जाय।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 3, प्रश्न संख्या 43०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - मई का महीना ग्रहों की चाल के नजरिए से काफी अहम रहने वाला है। मई के महीने में चार ग्रह अपनी राशि बदलकर दूसरी राशि में आ जाएंगे। खास बात है कि इन चार ग्रहों में सभी वृषभ राशि में एक साथ भ्रमण करेंगे। इस महीने में बुध, शुक्र, सूर्य और शनि की चाल में बदलाव होगा। बुध 1 मई को वृषभ राशि में चले गए हैं। 4 मई को शुक्र भी अपनी स्वयं की राशि वृषभ राशि में गोचर कर रहे हैं। वहीं सूर्य भी जो सभी ग्रहों के राजा हैं वे भी मेष राशि को छोड़कर 14 मई 2021 को वृषभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। राहु भी इस समय वृषभ राशि में गोचर हैं।इन चार ग्रहों के अलावा शनि भी इसी माह अपनी चाल में बदलाव करेंगे। शनिदेव 23 मई से वक्री चाल से चलने लगेंगे। वक्री चाल का मतलब शनि अब उल्टी चाल से चलते हुए मकर राशि में भ्रमण करेंगे। मई के महीने में चार ग्रहों का एक ही राशि में रहना और शनि की चाल में बदलाव से इसका सभी 12 राशियों पर व्यापक प्रभाव देखने को मिलेगा।सभी 9 ग्रह किन-किन राशियों में भ्रमण कर रहे हैं आइए जानते हैं।सूर्य- 14 मई से सूर्य वृष राशि में रहेंगे।चंद्रमा- चंद्रमा हर ढाई दिन में राशि बदलते हैं।मंगल- मंगल इस माह मिथुन राशि में गोचर है।बुध- वाणी और बुद्धि का प्रतिनिधित्व करने वाले बुध ग्रह वृषभ राशि में हैं।गुरु- गुरु शनिदेव की राशि कुंभ में हैं।शुक्र- वैभव प्रदान करने वाले शुक्र ग्रह वृषभ राशि में हैं।शनि- शनि ग्रह मकर राशि में रहते हुए 23 मई को वक्री हो जाएंगे।राहु- इस वर्ष राहु वृषभ राशि में हैं।केतु- पूरे साल वृश्चिक राशि में रहेंगे। राहु-केतु हमेशा वक्री चाल से चलते हैं।वृषभ राशि में चार ग्रहों का एक साथ रहना और सभी 12 राशियों पर प्रभाव---मेष राशि- आपका आर्थिक पक्ष मजबूत रहेगा। आकस्मिक धन प्राप्ति के योग भी बनेंगे और दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। पारिवारिक माहौल खुशनुमा रहेगा जमीन जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा अपनी वाणी कुशलता के बल पर कठिन से कठिन हालात को भी आसानी से नियंत्रित कर लेंगे। विलासिता पूर्ण वस्तुओं के सुख की प्राप्ति होगी।वृषभ राशि- राशि में गोचर कर रहे ग्रहों के शुभ प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह योग आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसलिए जो कार्य आरंभ करेंगे उसी में सफल रहेंगे। अपनी योजनाओं को गोपनीय रखते हुए कार्य करेंगे तो और भी सफल रहेंगे।मिथुन राशि- राशि से हानि भाव में गोचर कर रहे बुध और राहु के साथ शुक्र के भी आ जाने से इनके अशुभ प्रभाव में कमी आएगी। शुक्र बारहवें भाव में अकेले योगकारक होते हैं जिसके फलस्वरूप विलासिता पूर्ण वस्तुओं तथा घूमने-फिरने पर अधिक खर्च होगा। किसी संबंधी अथवा मित्र के द्वारा अप्रिय समाचार प्राप्ति के योग।कर्क राशि- राशि से लाभ भाव में गोचर कर रहे इन ग्रहों का शुभ प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आय के साधन तो बढ़ेंगे ही परिवार के वरिष्ठ सदस्यों तथा भाइयों से सहयोग मिलेगा।सिंह राशि- राशि से दशम भाव में गोचर कर रहे ग्रहों का शुभ प्रभाव आपके लिए मान-सम्मान तथा पद और गरिमा की वृद्धि कराएगा। अपनी ऊर्जाशक्ति के बल पर कठिन हालात पर भी आसानी से नियंत्रण पा लेंगे। नौकरी में पदोन्नति तथा नए अनुबंध की प्राप्ति के योग।कन्या राशि- राशि से भाग्य भाव में गोचर कर रहे ग्रहों का शुभ प्रभाव आपके लिए भाग्य उन्नति का कारक रहेगा।तुला राशि- राशि से अष्टम भाव में गोचर कर रहे ग्रहों का प्रभाव मान सम्मान और यश प्राप्ति तो कराएगा किंतु स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। कार्यक्षेत्र में भी शत्रु सक्रिय रहेंगे।वृश्चिक राशि- राशि से सप्तम भाव में गोचर कर रहे शुक्र हर तरह से लाभदायक सिद्ध होंगे। विवाह से संबंधित वार्ता सफल रहेगी। ससुराल पक्ष से भी सहयोग मिलेगा।धनु राशि- राशि से छठे शत्रु भाव में गोचर कर रहे ग्रहों का प्रभाव आपके लिए काफी उतार-चढ़ाव वाला रहेगा। इस अवधि के मध्य किसी को भी अधिक धन उधार के रूप में न दें अन्यथा आर्थिक हानि की संभावना रहेगी।मकर राशि- राशि से पंचम विद्या भाव में बन रहा योग आपको हर तरह से कामयाब ही करेगा।कुंभ राशि- राशि से चतुर्थ सुखभाव में गोचर कर रहे ग्रहों के शुभ प्रभाव के परिणाम स्वरूप की सोची-समझी सभी रणनीतियां कारगर सिद्ध होगी। मकान वाहन का सुख मिलेगा। जमीन जायदाद से जुड़े कार्यो का निपटारा होगा।मीन राशि- राशि से पराक्रम भाव में बन रहा योग आप में साहस और पराक्रम की वृद्धि तो करेगा ही लिए गए निर्णय और किएगए कार्यों की सराहना भी होगी।
- किस दिशा में कौन सी चीज रखनी चाहिए इस बारे में बताने के साथ ही घर में मौजूद कई तरह के वास्तु दोष दूर करने में भी मदद करता है वास्तु शास्त्र ऐसी मान्यता है कि वास्तु के नियमों का पालन न करने पर व्यक्ति विशेष का स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि उसकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है . कई बार आपने महसूस किया होगा कि बिस्तर पर लेटने के बाद भी नींद नहीं आती, बुरे सपने आते हैं या अचानक नींद खुल जाती है- इसका कारण बेडरूम में मौजूद वास्तु दोष भी हो सकता है.बेड में बॉक्स बनाकर उसमें न रखें कोई सामानवास्तु शास्त्र के एक्सपर्ट्स की मानें तो बिस्तर या पलंग के नीचे रखी जाने वाली वस्तुएं बेडरूम के वास्तु दोष और ऊपर बताई गई समस्याओं के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं. इन दिनों घरों में जगह की कमी की वजह से अधिकतर लोग बेड में बॉक्स बनवाकर उसमें घर का पुराना सामान या रोजमर्रा में इस्तेमाल न होने वाली चीजें भर देते हैं लेकिन वास्तु एक्सपर्ट्स की मानें तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए.नकारात्मक ऊर्जा बढ़ने से सुख-शांति नष्ट हो जाएगीइसका कारण ये है कि आपके बिस्तर के नीचे का हिस्सा हवादार और पूरी तरह से साफ होना चाहिए. तभी बेडरूम में सकारात्मकता यानी पॉजिटिविटी बनी रहेगी और वहां सोने वाले व्यक्ति को अच्छी नींद आएगी. लेकिन अगर बिस्तर के नीचे घर का पुराना सामान या कबाड़ रखा हो तो इससे भी बेडरूम में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ने लगती है और शादीशुदा जीवन में दिक्कतें आने लगती हैं. इतना ही नहीं ऐसा करने से घर की सुख-शांति भी भंग हो जाती है.बेड को लेकर इन बातों का भी रखें ध्यान-बेडरूम में अपने बेड या बिस्तर को दीवार से एकदम सटाकर न लगाएं.-बिस्तर पूरी तरह से समतल होना चाहिए. कोई भी हिस्सा उभरा हुआ या गड्ढानुमा नहीं होना चाहिए.-बिस्तर के ही नहीं बल्कि गद्दे के नीचे भी कोई चीज न रखें.-बेड हमेशा लकड़ी का होना चाहिए और उसे बेडरूम के दक्षिण या पश्चिम हिस्से में रखना चाहिए.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 274
(भूमिका - जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से यह समझने का प्रयास करें कि हमारे साध्य कौन हैं और हमारा वास्तविक कर्तव्य क्या है....)
(साधन-साध्य तत्वज्ञान)
...सभी विवेकी जीवों को यही निश्चय करना है कि हमारा लक्ष्य, हमारे सेव्य श्रीकृष्ण की सेवा ही है। वह सेवा भी उनकी इच्छानुसार हो। अपनी इच्छानुसार सेवा, सेवा नहीं है। वह तो अपने सुख वाली कही जायेगी। वह सेवाधिकार स्वाभाविक है। यथा,
दासभूतो हरेरेव नान्यस्यैव कदाचन। (चै.)
अर्थात समस्त जीवमात्र, अपने अंशी ब्रम्ह श्रीकृष्ण के नित्यदास हैं। यह दासत्व ही उनका स्व स्वरुप है। जिस प्रकार वृक्ष के अंश स्वरुप मूल, शाखा, उप शाखा, पत्रादि अपने अंशी वृक्ष की सेवा करते हैं अर्थात वृक्ष की जड़ें पृथिवी से तत्त्व निकाल कर वृक्ष को देती हैं। शाखा, पत्ते आदि भी सूर्यताप, वायु आदि के द्वारा सेवा करते हैं। इसी प्रकार जीवों को भी अपने अंशी श्रीकृष्ण की सेवा करनी है। यही ज्ञातव्य (जो जानना है) है, यही कर्तव्य है।
-- जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, अक्टूबर 2007 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedic Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार मां लक्ष्मी को धन और ऐश्वर्य की देवी बताया गया है। मां लक्ष्मी की कृपा से ही समस्त लोकों में धन वैभव है। लोग मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु बहुत से उपाय करते हैं। आप भी घर में सही दिशा और सही स्थान पर दीपक प्रज्ज्वलित करके मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।- वास्तु में दिशाओं का बहुत महत्व माना गया है। वास्तु शास्त्र में हर कार्य के लिए एक सही दिशा बताई गई है। ज्यादातर लोग मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने हेतु उत्तर दिशा में दीपक प्रज्ज्वलित करते हैं लेकिन यह दिशा कुबेर की दिशा होती है। कम ही लोगों को पता होता है कि दक्षिण दिशा यम की दिशा होने के साथ लक्ष्मी जी की भी दिशा होती है। यदि आप धन संबंधी समस्याओं से मुक्ति पाना चाहते हैं तो प्रतिदिन तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इससे दरिद्रता दूर होती है और आपके ऊपर मां लक्ष्मी अपनी कृपा दृष्टि करती हैं।- हिंदू धर्म में तुलसी में दीपक जलाने की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है। पहले लोग घर के आंगन में तुलसी अवश्य लगाते थे और प्रतिदिन पूजन करते थे। आज के समय में घरों का आकार भले ही बदल गया हो लेकिन अब भी घरों में तुलसी रखने का बहुत महत्व माना जाता है। जिस घर में प्रतिदिन तुलसी को सींचा जाता है और दीपक जलाया जाता है वहां भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। जिससे घर में हमेशा सुख और समृद्धि का वास होता है। वास्तु के अनुसार घर में तुलसी रखने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।-आर्थिक तंगी से मुक्ति पाने और धन प्राप्ति के लिए प्रतिदिन अपने घर की देहरी की साफ-सफाई करने के बाद दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए। रोज सुबह और शाम मुख्य द्वार पर तेल का दीपक जलाना चाहिए। इससे नकारात्मक चीजें घर के बाहर से ही वापस हो जाती हैं और घर में सकारात्मकता एवं समृद्धि का आगमन होता है।--