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हिंदू पंचांग का आखिरी महीना फाल्गुन जारी है और इस महीने की कृष्ण पक्ष की आखिरी तिथि यानी अमावस्या तिथि को फाल्गुन अमावस्या कहा जाता है। इस बार यह तिथि 13 मार्च, शनिवार को है। पंचांग के साथ ही धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी फाल्गुन अमावस्या के दिन का विशेष महत्व है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान कर, जरूरतमंदों को दान करते हैं। साथ ही इस दिन पितरों की शांति और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तर्पण और श्राद्ध भी किया जाता है।
फाल्गुन अमावस्या का महत्वफाल्गुन अमावस्या के मौके पर देशभर में कई जगहों पर फाल्गुन मेला भी लगता है। फाल्गुन अमावस्या के महत्व की बात करें तो ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में सभी देवी-देवता साक्षात प्रकट होते हैं, इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करके दान-पुण्य अवश्य करना चाहिए। इस दिन व्रत और पूजन करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। इस दिन पितरों की शांति और अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दान, तर्पण और श्राद्ध आदि किया जाता है। ऐसा करने से परिवार के सदस्यों को किसी भी तरह की बाधाओं से बचाया जा सकता है।- वैसे तो फाल्गुन अमावस्या के दिन चंद्र दर्शन नहीं होते, बावजूद इसके चंद्र देव और यम के साथ ही सूर्यदेव का भी आशीर्वाद पाने के लिए यह दिन विशेष माना जाता है।- फाल्गुन अमावस्या के अनुष्ठान का अत्यधिक महत्व है क्योंकि इसे समृद्धि, कल्याण और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।- फाल्गुन अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाने सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।फाल्गुन अमावस्या का शुभ मुहूर्तफाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि- 13 मार्च 2021 शनिवारअमावस्या तिथि प्रारंभ- 12 मार्च 2021, शुक्रवार दोपहर 03.04 बजे सेअमावस्या तिथि समाप्त- 13 मार्च 2021, शनिवार दोपहर 03.52 मिनट तकचूंकि उदया तिथि से दिन को माना जाता है इसलिए फाल्गुन अमावस्या 13 मार्च शनिवार को है। - सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु- ये नौ ग्रह हैं और हमारा जीवन इन ग्रहों की चाल और शुभ-अशुभ स्थिति पर बहुत हद तक निर्भर करता है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में मौजूद ग्रह मजबूत हों तो उस ग्रह से संबंधित अच्छे फल की प्राप्ति होती है, लेकिन अगर ग्रह कमजोर हों तो व्यक्ति को बुरे या नकारात्मक परिणाम भी मिल सकते हैं। इन्हीं में से एक समस्या बीमारियों की भी है। ज्योतिष शास्त्रों की मानें तो छोटी हो या बड़ी, हर बीमारी इन नौ ग्रहों से संबंध रखती है।1. सूर्य से संबंधित बीमारियांज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है और इसलिए ग्रह च्रक में इसे सबसे अहम स्थान हासिल है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में कमजोर या खराब हो तो उस व्यक्ति को आंख, सिर और हड्डी से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा हृदय रोग और पाचन तंत्र की बीमारियों के लिए भी सूर्य ही जिम्मेदार होता है.2. चंद्रमा से संबंधित रोगचंद्रमा एक शीतल ग्रह है और उसका संबंध व्यक्ति के मन और सोच से है। इसलिए अगर कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो तो व्यक्ति को खांसी-जुकाम के साथ ही घबराहट, बेचैनी और मानसिक बीमारियां हो सकती हैं।3. मंगल से संबंधित बीमारियांदेवताओं का सेनापति ग्रह मंगल, रक्त का स्वामी है। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल कमजोर या खराब हो तो इस वजह से उस व्यक्ति को हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी हो सकती है। इसके अलावा बुखार, दुर्घटना और बार-बार चोट लगने जैसी दिक्कतें भी हो सकती है।4. बुध ग्रह से जुड़े रोगबुध ग्रह का संबंध शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी से है और अगर कुंडली में बुध ग्रह कमजोर या खराब स्थिति में हो तो इसकी वजह से व्यक्ति को इंफेक्शन वाली बीमारियां ज्यादा होती है। साथ ही त्वचा से जुड़ी बीमारियां भी हो सकती हैं।5. बृहस्पति ग्रह के कारण होने वाली बीमारियांअगर किसी व्यक्ति की कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर हो या खराब स्थिति में हो तो इसकी वजह से व्यक्ति को कई गंभीर बीमारियां होने का खतरा रहता है। इसमें पेट से जुड़ी गंभीर बीमारियों के अलावा हेपेटाइटिस और कैंसर जैसी बीमारियां भी शामिल हैं।6. शुक्र ग्रह से जुड़े रोगशुक्र ग्रह को संपन्नता, सुख-समृद्धि और वैभव का कारक ग्रह माना गया है और अगर किसी की कुंडली में शुक्र ग्रह कमजोर या खराब स्थिति में हो तो व्यक्ति को हार्मोन्स से संबंधी बीमारियां, यौन रोग और डायबिटीज होने की आशंका रहती है।7. शनि ग्रह से जुड़े रोगशनि ग्रह अगर कुंडली में अच्छी स्थिति में हो तो वह शुभ फल भी देता है, लेकिन शनि की खराब स्थिति के कारण व्यक्ति को लंबे समय तक रहने वाली क्रॉनिक बीमारिया हो सकती हैं, किसी तरह के दर्द या हड्डी से जुड़ी दिक्कत भी शनि के कारण ही होती है।8. राहु-केतु से संबंधित बीमारियांराहु-केतु की वजह से व्यक्ति को कई बार ऐसी रहस्यमयी बीमारियां होती हैं जिसकी कई बार पहचान नहीं हो पातीं। राहु की वजह से जातक को कई बार याददाश्त से संबंधी बीमारियां हो जाती है। केतु की वजह से त्वचा और रक्त संबंधी बीमारियां हो सकती हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 217
साधक का प्रश्न ::: हम महापुरुष को देखकर या उनके फोटोग्राफ वीडियो देखकर क्यों आकर्षित हो जाते हैं?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: ये ऐसा है कि जैसे चुम्बक होता है, चुम्बक पत्थर होता है न, तो वो लोहे को खींचता है। तो जितनी लिमिट में लोहा शुद्ध होगा तो उतनी जल्दी खिंचेगा।
तो भगवान् व महापुरुष ये दोनों चुम्बक हैं, जो कोई भी इनके सम्पर्क में आता है तो जिसका हृदय जितना शुद्ध है उतनी जल्दी वो खिंच जायेगा और जिसका हृदय जितना पाप का, गंदा है, मायिक है, उतनी देर में खिंचेगा। और इसका कारण जो है, वो दो है- एक तो तमाम जन्मों की हमारी साधना अगर है पूर्वजन्म की, तो अन्त:करण उससे शुद्ध हुआ है काफी, तो वो जल्दी खिंच जायेगा; या इस जन्म में उसने बहुत साधना की है तो अन्तःकरण शुद्ध हुआ है, उसका फिफ्टी (50) परसेन्ट, सिकस्टी (60) परसेन्ट, सैविन्टी (70) परसेन्ट तो वो उतना खिंच जायेगा। बहरहाल वो मन की शुद्धि की लिमिट के अनुसार ही खिंचता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 216
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी जादूगर लोग जो जादू दिखाते हैं, इनके पास सिद्धियाँ होती हैं जो दिखाते हैं या और कुछ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: नहीं-नहीं सिद्धियाँ नहीं होती। कलायें हैं। वो तो सिखाते हैं, उनके यहाँ बाकायदा क्लास होती है। और सिद्धियाँ जो होती हैं; तामसी भी होती हैं, राजसी भी होती हैं, सात्त्विक भी होती हैं, निर्गुणा भी होती हैं - ये चार प्रकार की सिद्धियाँ होती हैं। लेकिन ये जो दिखाते हैं, आमतौर से जादूगर लोग ये सिद्धि से नहीं होता। ये तो ऐसे-इनकी अपनी कला है और जो तामसी सिद्धि करते हैं वह अधिकांश कुछ लोग हैं, वह सिद्धि से काम करते हैं लेकिन उनको मरने के बाद नरक मिलता है। तामसी सिद्धि है - किसी को तंग करना, किसी के द्वारा स्वार्थ सिद्ध करना। वह भी इने गिने कहीं होंगे और रजोगुणी सिद्धि वाले और कम। सात्विक सिद्धि वाले तो कहीं ढूँढने से नहीं मिलेगा। उसमें अणिमा, लघिमा, गरिमा वगैरह सिद्धियाँ हैं। वो तो आमतौर से भगवान् के पास महापुरुषों के पास रहती हैं। निर्गुण और सात्विक।
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।तासु दून कपि रूप दिखावा।।अति लघु रूप कीन्ह हनुमाना।
ये सब सिद्धियों के काम हैं। महापुरुष सिद्धि से काम नहीं लेता कभी इमरजेंसी में जरूरत पड़ जाती है तो। अब राम का काम था इसलिए ले लिया हनुमान जी ने, वरना वो न लेते। वह तो हाथ जोड़ते रहते हैं, उसकी तो पिटाई करते रहो तो भी हाथ जोड़ते रहते हैं। न भगवान् को बुलावे न सिद्धि को।
रामकृष्ण परमहंस से लोगों ने कहा कि आप तो सिद्ध हैं ये कैंसर आपको है ये सिद्धि से ठीक कर लीजिए। तो उन्होंने कहा गन्दे शरीर के लिए हम भगवान् को बुलावें। माँ को बुलावें? दुर्गा को? अरे ये तो जाना ही है, वर्तमान में भी गन्दा है, जायेगा तो भी। हम ऐसा नहीं करते। किसी राजा से दोस्ती करो तो उससे पाखाना उठवाओ। अरे जिससे दोस्ती करो उसी क्लास के उससे काम लेना चाहिए। अब भगवान् की इच्छा हो कि हाँ इसको कैंसर से ठीक कर दिया जाय, अभी दस साल इनसे और सेवा ली जाय संसार की। वह कर दें उनकी इच्छा हो। हम नही कह सकते।
तुलसीदास ने नहीं कहा हमारी रामायण की रक्षा करो, पहरेदारी करो। लेकिन राम ने किया। उनको काम लेना है तुलसीदास से। तो उन्होंने कहा ठीक है हम करेंगे। इच्छा में इच्छा रखना ही तो प्रेम है, शरणागति है। अगर उनको ऐसे अच्छा लगता है कि हम बीमार बने रहें हमेशा। तो ठीक है उनको सुख मिलना चाहिए। जैसे भी मिले। कोई महापुरुष सोलह वर्ष की उमर में मर गया। कोई तीस साल में मरा, कोई पचास साल में मरा। अब क्यों मरा। महापुरुष जब चाहे तब मरे। स्वेच्छा से शरीर छोड़ता है। जैसी भगवान् की इच्छा। उन्होंने कहा- अब तुम्हारा काम हो गया आ जाओ। हाँ ठीक है, हमको क्या करना है। हम तो सर्वेन्ट हैं। ठीक है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - इलायची का प्रयोग विभिन्न तरह के मीठे और मसालेदार व्यंजनों में स्वाद और खुशबू बढ़ाने के लिए किया जाता है। पूजा-पाठ के कामों में प्रसाद आदि बनाने के लिए और देवताओं को अर्पित करने के लिए भी इलायची का उपयोग किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि इस छोटी सी इलायची का प्रयोग करके आप अपने जीवन की समस्याओं से भी मुक्ति पा सकते हैं। इलायची के कई उपाय बताए गए हैं जिन्हें करने से आपके जीवन की समस्याएं समाप्त होती हैं और आपको सुख-समृद्धि एवं सफलता की प्राप्ति होती है। इन उपायों को बहुत कारगर माना गया है। तो चलिए जानते हैं इलायची के कुछ खास उपाय।आर्थिक तंगी के लिएयदि घर में आर्थिक तंगी है तो घर की दरिद्रता को दूर करने के लिए किसी गरीब, असहाय व्यक्ति को सिक्के के साथ हरी इलायची दान करें। इसके अलावा यदि आपको कोई किन्नर मिल जाए तो इलायची और सिक्के उसे दान कर दें। अपने बटुए में हमेशा पांच इलायची रखें। पैसों सी जुड़ी समस्याओं के लिए यह उपाय कारगर माना जाता है।परीक्षा में सफलता के लिएपरीक्षा में सफलता पाने के लिए सबसे आवश्यक है कि मन लगाकर अध्ययन किया जाए। परिश्रम के बिना किसी भी कार्य में सफलता पाना संभव नहीं होता है। इसलिए परीक्षा में सफलता प्राप्ति के लिए मन लगाकर अध्ययन करें इसके साथ आप ये उपाय कर सकते हैं। शाम को सूर्यास्त से ठीक आधा घंटा पहले बड़ के पांच पत्ते लेकर उनके ऊपर पांच अलग-अलग प्रकार की मिठाइयां और दो छोटी इलायची रखें। अब पीपल के वृक्ष के नीचे श्रद्धा भाव से ये पत्ते रख दें और ईश्वर से सफलता की प्रार्थना करके अपने घर वापस लौट आएं। अपने घर वापस आते समय पीछे पलटकर न देखें। इस उपाय को लगातार तीन गुरूवार तक करें।विवाह के लिएयदि विवाह में देरी हो रही है या शादी करने के लिए कोई योग्य लड़की/लड़का नहीं मिल रहा हो तो गुरूवार की शाम को दो हरी इलाइची और पांच प्रकार की मिठाई, जल लेकर मंदिर में अर्पित करें। इसके साथ ही शुद्ध घी का दीपक भी प्रज्ज्वलित करें। लड़कियों को यह उपाय गुरूवार के दिन और लड़कों को यह उपाय शुक्रवार के दिन करना चाहिए। मान्यता है कि इससे जल्दी ही योग्य जीवनसाथी की तलाश पूरी होती है।सभी रोगों और शोका का निवारणजब आप किसी खास काम से घर से बाहर निकल रहे हों तो तीन हरी इलायची अपने दाएं हाथ में रखें और श्री श्री के उच्चारण के बाद इसे खा लें। इलायची खाने के बाद घर से बाहर कदम रखें, लेकिन ध्यान रहे कि घर से निकलने के दौरान घर की ओर पलट कर न देंके। इस उपाय से आपके सभी रोगों और शोको का निवारण होगा।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 215
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 13) ::::::
(1) राधा तत्त्व वो है जिसकी उपासना स्वयं श्री कृष्ण करते हैं, जिन श्रीकृष्ण की उपासना महाविष्णु आदि करते हैं, जिनके अंडर में अनंत कोटि ब्रह्माण्ड हैं। तो उस राधा तत्त्व के विषय में कोई शब्दों की गति नहीं, जिसके बारे में वेद (राधोपनिषद ने कहा) भी ठीक से नहीं जानते, वहाँ है वह राधा तत्त्व।
(2) मुक्ति भक्ति करने पर अपने आप आ जाती है, मिल जाती है, उसको माँगना नहीं पड़ता। कोई साधना नहीं करना है, उसके लिये। अरे! मोटी अकल की बात आप लोग याद कर लें । भक्ति के अंडर में भगवान्, भगवान् के अंडर में मुक्ति, मुक्ति के अंडर में ज्ञान, ज्ञान के अंडर में कर्म। कर्म का एण्ड होता है ज्ञान पर, ज्ञान का एण्ड होता है मोक्ष पर, मोक्ष के स्वामी भगवान् और भगवान् को दास बना लेती है, भक्ति। इतना बड़ा अन्तर है।
(3) ये हमारे मन का बनाया हुआ संसार ही मिथ्या है और यही गड़बड़ किये है। इसी मन को जो दस-बीस में हम आसक्त हैं, उनमें हम जो ममता किये हैं। क्यों? इसलिये कि हम समझते हैं कि उनमें हमारा सुख मिल जायेगा? बस इतनी सी बात है।
(4) हमें निरन्तर हरि गुरु का स्मरण करने का अभ्यास करना है। निरन्तर मन को मनमोहन में ही रखना है। यदि कभी मन संसार में चला भी जाय तो यह नहीं सोचना है कि हमसे साधना नहीं होगी। हमारे वश का यह साधना नहीं है आदि। अरे सोचो तो जब और कोई चारा ही नहीं है। और दुःख निवृत्ति एवं आनन्दप्राप्ति का स्वभाव बदल ही नहीं सकता तो निराशा महान् भूल है।
(5) शरीर की शरणागति मात्र से काम नहीं बनेगा कि उठाया खोपड़ी को और पैर पर रख दिया। ये सिर को पैर पर रखने का अभिप्राय तो ये है कि मैं अपना सब कुछ आपको अर्पित करता हूँ। अब अर्पित न करे, केवल सिर धर दे पैर के ऊपर, सुन ले सत्संग, गुरु के वाक्यों को और समझ में भी आ जाये, सिर भी हिला दे और प्रैक्टिकल अमल न करे, तो फिर वो सत्संग नहीं है। सत्संग का मतलब असली सत्, असली संग।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - ब्रह्मांड में विचरण करती ऊर्जा अर्थात कॉस्मिक एनर्जी वास्तुशास्त्र में विशेष महत्व रखती है। इसलिए भवन निर्माण आदि के लिए भूमि का सही चुनाव, निर्माण कार्य, इंटीरियर डेकोरेशन आदि कामों में दिशाओं, पांच महाभूत तत्वों, पृथ्वी, जल, वायु अग्नि तथा आकाश विद्युत चुम्बकीय तरंगों, गुरुत्वाकर्षण, कॉस्मिक एनर्जी तथा दिशाओं के अंशों का सुनियोजित ढंग से उपयोग वास्तुकला द्वारा किया जाता है।वास्तु शास्त्र के अनुसार भगवान शिव आकाश के स्वामी हैं। इसके अतंर्गत भवन के आसपास स्थित वस्तु जैसे वृक्ष, भवन, खंभा, मंदिर आदि की छाया का प्रभाव भवन में रहने वाले लोगों पर पड़ता है। मनुष्य स्वास्थ्य, खुशहाली, सुख-चैन के साथ सफल जीवन जीने की प्राथमिकता के अलावा पर्यावरण संतुलन बनाए रखने की संस्कृति का सदियों से पालन करता चला आ रहा है। इंसान ने जमीन पर मकान, मंदिर, मूर्तियां, किले, महल आदि का निर्माण किया, जिसने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के दायित्व का पूरा ध्यान रखा गया। किन्तु इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सूत्र है अंतरिक्ष में हमेशा बने रहने वाले ग्रह नक्षत्र और इस ज्ञान की गंगा को ज्योतिष के नाम से जाना है।ब्रह्माण्ड में हमेशा उपस्थित रहने वाली कॉस्मिक ऊर्जा तथा पाँच महाभूत तत्वों का समायोजन वास्तुकला में जिस विद्या द्वारा होता है, वह वास्तुशास्त्र कहलाती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन के नीचे दबी हुई वस्तुओं का सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव भवन और उसमें रहने वाले लोगों पर होता है। यह प्रभाव सामान्यत: दो से तीन मंजिल तक रहता है। भवन निर्माण से पहले भूमि की जांच करवाना इसी के चलते जरूरी होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दोष की स्थिति में भवन में रहने वाले के मान- सम्मान, प्रतिष्ठा में कमी आती है साथ ही सुख का नाश और दुर्भाग्य का निर्माण होता है। हमेशा मन अशांत और भवन में भय का माहौल बना रहता है। परिवार में अकारण ही अशांति रहती है और आपसी संबंध बिगडऩे लगते हैं। पाताल दोष यदि बेडरूम में है तो सोने वाले को बुरे सपने आते हैं तथा वैवाहिक जीवन में असफलता भी देखने को मिलती है। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दोष के ऑफिस में होने पर आर्थिक तौर पर कठनाईयों का सामना करना पड़ता है। व्यापार में हानि होती है। अधिकतर वास्तुकला के जानकार दिशाओं का अंदाजा सूर्योदय और सूर्यास्त के आधार पर, मैगनेटिक कम्पास के बिना करते हैं, जबकि इस यंत्र के बिना वास्तु कार्य नहीं करना चाहिए। दिशाओं के सूक्ष्म अंशों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अत: जरूरी रेनोवेशन या निर्माण कार्य, अच्छे जानकार वास्तु शास्त्री की देखरेख में ही करवाना ठीक होता है।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 214
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 12 के दोहा संख्या 60 से आगे)
याते मायाबद्ध ते न प्यार करो बामा।हरि गुरु ते ही प्यार करो आठु यामा।।61।।
अर्थ ::: मायाधीन जीव से प्रेम करने का परिणाम यही निकलेगा कि मृत्यु के बाद उसी की प्राप्ति होगी। इसलिये जीव को एकमात्र हरि एवं गुरु से ही निरन्तर प्रेम-सम्बन्ध जोड़ना है।
भोरे बनि जाओ क्योंकि भोरीभारी श्यामा।भोरीभारी को प्रिय भोरा उरधामा।।62।।
अर्थ ::: भोली भाली श्रीराधा को यदि रिझाना चाहते हो तो तुम्हें भी अत्यन्त भोला भाला बनना पड़ेगा। भोली भाली राधा भोले भाले हृदय में ही निवास करती हैं।
जल बिनु मीन ज्यों विकल कह बामा।वैसे मन व्याकुल हो जाय बिनु श्यामा।।63।।
अर्थ ::: जिस प्रकार जल के बिना मछली जीवित नहीं रह सकती, उसी प्रकार यदि श्रीराधा के वियोग में मन छटपटाने लगे तब ही उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है।
रहा नाहिं जाये जब मिले बिनु श्यामा।तब जानो प्रेमबीज, जामा उरधामा।।64।।
अर्थ ::: जब श्रीराधा के मिलन के बिना प्राण व्याकुल हो उठें तब समझो कि प्रेम बीज का वपन हृदय में हो चुका।
ऐसी चाह पैदा करो निज उरधामा।जैसे करे दीप ते पतंग कह बामा।।65।।
अर्थ ::: अपने हृदय-भवन में श्री किशोरी जी के प्रति इतना प्रेम उत्पन्न करो जितना कि दीपक से पतंग करता है। पतंग दीप के रूप का पुजारी है। रूप दर्शन की ऐसी चाह पतंग में है कि वह दीपक की लौ पर अपने प्राण ही भेंट कर देता है।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हिंदी पंचांग के आखिरी महीने फाल्गुन की शुरुआत हो चुकी है और फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दौरान हर एक श्रद्धालु की यही कोशिश रहती है कि वे भोलेनाथ भगवान शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। वैसे तो देशभर में शिव जी के कई प्रसिद्ध मंदिर और शिवालय हैं, लेकिन भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग ही महत्व है। पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इन 12 स्थानों पर जो शिवलिंग मौजूद हैं उनमें ज्योति के रूप में स्वयं भगवान शिव विराजमान हैं। यही कारण है कि इन्हें ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं के सभी पाप दूर हो जाते हैं। आइये जानते हैं इन 12 ज्योतिर्लिंग की महिमा.....1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गुजरातगुजरात के सौराष्ट्र में अरब सागर के तट पर स्थित है देश का पहला ज्योतिर्लिंग जिसे सोमनाथ के नाम से जाना जाता है। शिव पुराण के अनुसार जब चंद्रमा को प्रजापति दक्ष ने क्षय रोग का श्राप दिया था तब इसी स्थान पर शिव जी की पूजा और तप करके चंद्रमा ने श्राप से मुक्ति पाई थी। ऐसी मान्यता है कि स्वयं चंद्र देव ने इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी।2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेशआंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल पर्वत पर स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं और माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेशमध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग। ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है जहां रोजाना प्रात: होने वाली भस्म आरती विश्व भर में प्रसिद्ध है।4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेशओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है और नर्मदा नदी के किनारे पर्वत पर स्थित है। मान्यता है कि तीर्थ यात्री सभी तीर्थों का जल लाकर ओंकारेश्वर में अर्पित करते हैं तभी उनके सारे तीर्थ पूरे माने जाते हैं।5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंडकेदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में अलखनंदा और मंदाकिनी नदियों के तट पर केदार नाम की चोटी पर स्थित है। यहां से पूर्वी दिशा में श्री बद्री विशाल का बद्रीनाथधाम मंदिर है। मान्यता है कि भगवान केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा अधूरी और निष्फ्ल है।6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्रभीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र में पुणे से करीब 100 किलोमीटर दूर डाकिनी में स्थित है। यहां स्थित शिवलिंग काफी मोटाई लिए हुए है, इसलिए इसे मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है।7. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेशउत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर जिसे धर्म नगरी काशी के नाम से जाना जाता है। यहीं पर गंगा नदी के तट पर स्थित है बाबा विश्व नाथ का मंदिर जिसे विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कैलाश छोड़कर भगवान शिव ने यहीं अपना स्थाई निवास बनाया था।8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्रत्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्रा के नासिक से 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है। गोदावरी नदी के किनारे स्थित यह मंदिर काले पत्थरों से बना है। शिवपुराण में वर्णन है कि गौतम ऋषि और गोदावरी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने इस स्थान पर निवास करने निश्चय किया और त्र्यंबकेश्वर नाम से विख्यात हुए।9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंडवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। यहां के मंदिर को वैद्यनाथधाम के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि एक बार रावण ने तप के बल से शिव को लंका ले जाने की कोशिश की, लेकिन रास्ते में व्यवधान आ जाने से शर्त के अनुसार शिव जी यहीं स्थापित हो गए। इसलिए इस क्षेत्र की अलग ही महिमा है।10. नागेश्वल ज्योतिर्लिंग, गुजरातनागेश्वथर मंदिर गुजरात में बड़ौदा क्षेत्र में गोमती नदी. द्वारका के करीब स्थित है। धार्मिक पुराणों में भगवान शिव को नागों का देवता बताया गया है और नागेश्वर का अर्थ होता है नागों का ईश्वर। कहते हैं कि भगवान शिव की इच्छा अनुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नामकरण किया गया है। यहां पर भक्त भगवान शिव में चांदी के नाग समर्पित करते हैं। .11. रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडुभगवान शिव का 11वां ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथम नामक स्थान में हैं। ऐसी मान्यता है कि रावण की लंका पर चढ़ाई करने से पहले भगवान राम ने जिस शिवलिंग की स्थापना की थी, वही रामेश्वर के नाम से विश्व विख्यात हुआ।12. घृष्णेवश्वृर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्रघृष्णेवश्वृर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के संभाजीनगर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
- हिंदू पंचांग के आखिरी महीने फाल्गुन की शुरुआत हो चुकी है और इंग्लिश कैलेंडर के तीसरे महीने मार्च की शुरुआत फाल्गुन माह की द्वितीया तिथि के साथ हो रही है। सनातन धर्म में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। त्योहारों के लिहाज से मार्च का यह महीना काफी खास है क्योंकि मार्च के महीने में जानकी जयंती, विजया एकादशी से लेकर महाशिवरात्रि और होली जैसे प्रमुख व्रत और त्योहार आते हैं।आइए आपको मार्च महीने में पडऩे वाले व्रत और त्योहारों की तिथि और उनके महत्व के बारे में बताते हैं---6 मार्च, शनिवार- जानकी जयंती -फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जानकी जयंती मनायी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां सीता प्रकट हुई थीं।9 मार्च, मंगलवार- विजया एकादशी- फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी कहा जाता है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से सारे कार्य सफल हो जाते हैं इसलिए इसे विजया एकादशी कहा जाता है।10 मार्च, बुधवार- प्रदोष व्रत -हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत होता है. यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है और इस दिन उपवास रखकर प्रदोष काल में शिव जी की पूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।11 मार्च, गुरुवार- महाशिवरात्रि - हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने के साथ ही व्रत रखने का भी बहुत महत्व है।13 मार्च, शनिवार- फाल्गुन अमावस्या - पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि फाल्गुन अमावस्या कहलाती है जिसका सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन पितरों की शांति के लिए नदियों में स्नान और फिर दान किया जाता है। शनिवार को पडऩे की वजह से इसे शनि अमावस्या भी कहा जाता है।14 मार्च, रविवार- मीन संक्रांति- इस दिन सूर्य कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में प्रवेश करेंगे और अगले एक महीने तक यहीं रहेंगे। इस समय को खरमास कहा जाता है और इस दौरान मांगलिक कार्यों पर रोक रहती है।15 मार्च, सोमवार- फुलेरा दूज -फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज के नाम से जाना जाता है। यह दिन इतना शुभ होता है कि इसे अबूझ मुहूर्त के रूप में देखा जाता है और इस दिन बिना मुहूर्त देखे कोई भी शुभ काम किया जा सकता है।17 मार्च, बुधवार- विनायक चतुर्थी -फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी मनायी जाती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।21 मार्च, रविवार- होलाष्टक आरंभ- फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है और इसकी शुरुआत 21 मार्च से हो रही है जो 28 मार्च तक जारी रहेगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है।25 मार्च, गुरुवार- आमलकी एकादशी-फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत रखने का विधान है।26 मार्च, शुक्रवार- प्रदोष व्रत- फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत होता है जो भगवान शिव को समर्पित है।28 मार्च, रविवार- होलिका दहन- फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 28 मार्च रविवार को है और इस दिन होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा।29 मार्च, सोमवार- होली - रंगों का त्योहार होली, होलिका दहन के अगले दिन 29 मार्च सोमवार को मनाया जाएग।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - 213
साधक का प्रश्न - पाँच कामनायें भगवान् व संत भी करते हैं और संसारी भी। तो दोनों के परिणामों में क्या अन्तर है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: देखो, भगवान् कहते हैं;
सब कर ममता ताग बटोरी,मम पद कमल बाँधु बट डोरी॥
तुम सब ममता को हटा कर मुझ में ममता कर लो। अरे! ममता तो हुई। वही बीमारी तो है। माँ से, बाप से, बेटे से, बीबी से, पति से ममता करते थे, अब आप कहते हैं मुझसे ममता करो। तो ममता की बीमारी तो अब भी बनी हुई है।
कामना - पाँच प्रकार की कामनाएँ हम लोग करते हैं। माँ-बाप, बेटा, स्त्री-पति, धन-प्रतिष्ठा, संसार को देखना, देखकर सुख मिलता है। सुनना, सूंघना, रस लेना, स्पर्श करना ये पाँच विषय कहलाते हैं। इन पाँच विषयों से बचने की हिदायत की गई है- शास्त्रों में और ये पाँचों की कामना करते हैं संत लोग, भगवान् भी।
जो जो कामना हम संसार में करते हैं, माँ से, बाप से, बेटे से, पति से, वही कामना गोपियाँ और भक्त लोग कर रहे हैं भगवान् से। चार भाव हैं न- दास्य भाव, सख्य भाव, वाल्सल्य भाव और माधुर्य भाव। तो माधुर्य भाव में पाँचों भाव हैं, सब भाव हैं। जब चाहो प्रियतम मान लो, जब चाहो बेटा मान लो, जब चाहो सखा मान लो, जब चाहो स्वामी मान लो। तो सब भाव आ गये इसी में। तो जैसे संसार में कोई विवाहिता स्त्री चोरी-चोरी दूसरे पुरुष से प्यार करती है या कोई कन्या अविवाहित किसी दूसरे लड़के से प्यार करती है, ऐसे ही तो गोपियों ने किया।
कुछ कन्याएँ गोपियाँ थीं, जिन्होंने कात्यायिनी व्रत किया था और जिनका चीर हरण किया था श्रीकृष्ण ने और कुछ विवाहिता स्त्रियाँ थीं जो चोरी-चोरी श्रीकृष्ण से प्यार करती थीं। तो बड़ा आश्चर्य हुआ परीक्षित को। ये तो व्यभिचार है। संसार में इसको बुरा कहते हैं लोग। और इससे गोपियाँ इतनी ऊँची कक्षा में चली गईं कि ब्रह्मा शंकर उनकी चरण-धूलि चाहते हैं।
क्वेमाः स्त्रियो वनचरीर्व्यभिचारदुष्टा: कृष्णे क्व चैष परमात्मनि रूढभावः।नन्वीश्वरोऽनुभजतोऽविदुषोऽपि साक्षाच्छ्यस्तनोत्यगदराज इवोपयुक्तः।।(भागवत 10-47-59)
यानी दुराचारिणी गोपियाँ जो पति से छुप करके अथवा बिना विवाह के ही श्यामसुन्दर से चोरी-चोरी प्रियतम के भाव से प्यार करती थीं, उनको इतना ऊँचा स्थान मिल गया, जो महालक्ष्मी को नहीं मिला, भगवान् की अर्धांगिनी को? तो उत्तर दिया कि देखो, अमृत को कोई जानकर पिये चाहे अनजाने में पिये अमर होगा। पारस लोहे से छू जाय। चाहे अनजाने में छू जाय, चाहे कोई छुआ दे, सोना बनेगा। तो ऐसे ही चाहे काम भाव से, चाहे क्रोध से, चाहे ईर्ष्या से, चाहे लोभ से, सही पर्सनैलिटी में मन का अटैचमेन्ट कर दें, बस, उस पर्सनैलिटी का फायदा मिल जायेगा उसको।
लौहशलाकानिवहै: स्पर्शाश्मनि भिद्यमानेऽपि।स्वर्णत्वमेति लौहं द्वेषादपि विद्विषां तथा प्राप्तिः॥(प्रबोध सुधाकर, शंकराचार्य)
लोहे की कुल्हाड़ी से पारस पत्थर पर मारो, वो कुल्हाड़ी सोने की हो जायेगी। तो राक्षस जो दुश्मनी करके भगवान् से प्यार कर लिये (कंस, शिशुपाल) वे भी गोलोक गये; क्योंकि मन का अटैचमेन्टहो गया, चाहे दुश्मनी से हो चाहे प्यार से हो। चाहे माँ मान कर हो, चाहे बाप मानकर हो, चाहे प्रियतम मानकर हो, चाहे सखा मानकर हो। मन का अटैचमेन्ट हो जाना, बस, इतना सा काम है उपासना का और कोई मनुष्य कमाल नहीं कर सकता। क्या करेगा? उसकी इन्द्रियाँ भी मायिक, मन भी मायिक, बुद्धि भी मायिक और भगवान् दिव्य हैं और दिव्य इन्द्रिय, दिव्य मन, दिव्य बुद्धि कहाँ से लायेगा मनुष्य? लेकिन जिससे प्यार करोगे, बस उसी की प्राप्ति हो जायेगी। भाव चाहे जो हो। चाहे प्यार से आग में बैठ जाओ सती होने के लिए, तो भी जला देगी आग और चाहे कोई हाथ-पैर बाँध कर फेंक दे, तो भी आग जला देगी। आग अपना काम करेगी।
तो शुद्ध पर्सनैलिटी में अशुद्ध पर्सनैलिटी मिल जायेगी तो शुद्ध हो जायेगी और शुद्ध तो शुद्ध रहेगी। गंगा जी में कितने नाले मिलते हैं, कितनी नदियाँ मिलती हैं, गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी तक, लेकिन जो भी पानी मिलेगा वो गंगाजी बन जायेगा।
रवि पावक सुरसरि की नाईं।
ऐसे ही परीक्षित! गोपियाँ किसी भाव से भी गईं शरण में मन का प्यार किया, लेकिन भगवान् तो शुद्ध थे ना तो शुद्ध का फल मिल गया, गोपियाँ शुद्ध हो गयीं। तो चाहे जिस भाव से भगवान् से प्यार करो,
येन केन प्रकारेण मनः कृष्णः निवेशयेत्।(भक्तिरसामृतसिंधु)
जिस किसी प्रकार से भी करो;
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च।नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते॥(भाग. 10-29-15)
बार-बार शुकदेव परमहंस उत्तर दे रहे हैं कि जब शिशुपाल वगैरह गोलोक चले गये, दुश्मनी करके प्यार करने वाले, तो गोपियाँ गोलोक गयीं इसमें क्या आश्चर्य है? और फिर भगवान् नहीं हैं हमारे पास, तब तो हमें भगवान् के माहात्म्य का ज्ञान आवश्यक है। भगवान् कौन हैं? हमारे क्या सम्बन्ध हैं उनसे? हमारे कौन लगते हैं? हम उनसे प्यार क्यों करें? ये तमाम नॉलेज चाहिये। लेकिन जब भगवान् अवतारकाल में होते हैं तो वहाँ माहात्म्य ज्ञान नहीं रहता। वहाँ प्यार करना होगा बस और सबसे ऊँचा प्यार माधुर्य भाव का, प्रियतम मान करके। अब तुम ये कहो कि हम पहले ही निष्काम हो जायेंगे, ये नहीं हो सकता। शुद्धि तो बार-बार धोने से होगी, साबुन से बार- बार धोने से। कोई कहे कि हम शुद्ध हो के तब भक्ति करेंगे, तो शुद्ध कैसे होओगे तुम। भक्ति ही तो शुद्ध करेगी तुमको। शुद्ध पर्सनेलिटी से जब प्यार करोगे तो उसका विरह पैदा होगा, तो उसी के ताप से तो अन्त:करण शुद्ध होगा, पिघलेगा।
तो शुद्ध से प्यार करना है, भाव कोई हो। देखो! एक बाप के चार लड़कियाँ हैं। वो चार लड़कों से ब्याह कर देता है। एक लड़की का पति अच्छी सर्विस नहीं पाया, तो चपरासी बन गया। एक क्लर्क बन गया, एक इंस्पेक्टर बन गया, एक कलेक्टर बन गया, आई. ए. एस. में आ गया। अब चार लड़कियाँ जिन-जिन से उनका ब्याह किया उन्हीं का स्वरूप उनको मिल गया। एक कलेक्टर की बीबी कहलाने लगी मेमसाहब, एक बबुआइन कहलाने लगी, एक चौकीदारिन कहलाने लगी।
तो उसी प्रकार ये मन है। तमोगुणी से प्यार किया, तमोगुणी का फल मिला। रजोगुणी से प्यार किया, रजोगुण का फल मिला। सत्त्वगुणी से प्यार किया सत्त्वगुण का फल मिला और तीन गुणों से परे शुद्ध भगवान् और महापुरुष से प्यार किया तो शुद्ध मायातीत दिव्यानन्द मिल गया। प्यार करने के तरीके में कोई अन्तर नहीं है। वही इन्द्रियाँ हैं, वही मन है, वही बुद्धि है जिससे आप लोग संसार में प्यार करते हैं। वैसा ही प्यार करना है उधर भी। लेकिन वो चूँकि शुद्ध है, इसलिये तुम शुद्ध हो जाओगे और अशुद्ध से प्यार करोगे, अशुद्ध हो जाओगे। गन्दे पानी से गन्दा कपड़ा धोओगे और गन्दा हो जायेगा। शुद्ध जल से गन्दा कपड़ा धोओगे, कपड़े का मैल छूटेगा, वह शुद्ध बनेगा। बड़ी सीधी-सी बात है। इसी बात को भगवान् अर्जुन से कहते हैं;
यान्ति देवव्रता देवान् पितॄन्यान्ति पितृव्रताः।भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।(गीता 9-25)
जो सत्त्वगुणी से प्यार करेगा (देवताओं से) वो स्वर्ग जायेगा। चार दिन बाद फिर आयेगा मृत्युलोक में; कुत्ते, बिल्ली, गधे की योनियों में। जो रजोगुणी से प्यार करेगा, वो संसार में मनुष्य वगैरह बनेगा, यहाँ दुःख भोगेगा। वो तमोगुणी, रजोगुणी, सत्त्वगुणी चाहे बाप हो, चाहे माँ हो, चाहे पति हो, चाहे बेटा हो, कोई हो; हमारे मन का अटैचमेन्ट जिससे होगा बस उसी का फल हमको मिल जायेगा, सीधा-सा गणित है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 212
साधक का प्रश्न : आप कहते हैं कि अंतःकरण शुद्धि के लिए आँसू आना आवश्यक है। वह तो कभी आते नहीं?जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: आँसू बहाने के लिए दीनता का भाव लाओ। अपने को पतित, निराश्रित महसूस करो, आँसू अवश्य आयेंगे। आँसू का न आना ही सिद्ध करता है कि हमारे अन्दर अभिमान छिपा है जो हमें पतित अनुभव नहीं करने देता।
बार-बार प्रयास करो, भगवान् के दिव्य दर्शन की परम व्याकुलता पैदा करो। जब भगवान् की याद में अंतःकरण पिघलेगा, आँसू बहाये जायेंगे, मन की कलुषता निकलेगी तो भगवान् उसमें सदा के लिए विराजमान हो जायेंगे।
आँसू आने पर भी अभिमान न आने पाये, नहीं तो वे भी छिन जायेंगे। जब तक श्यामा-श्याम न मिल जायँ तब तक सब आँसू बेकार ही हैं। जब असली आँसू आवेंगे तो भगवान् को उन्हें पोंछने के लिए स्वयं आना पड़ेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - चाणक्य नीति या चाणक्य नीति शास्त्र, आचार्य चाणक्य द्वारा रचित एक नीति ग्रंथ है। नीतिपरक ग्रंथों की सूची में चाणक्य नीति का महत्वपूर्ण स्थान है। चाणक्य नीति में अपने जीवन को सुखमय और सफल बनाने के लिए कई उपयोगी सुझाव दिए गए हैं। चाणक्य द्वारा बताए गए ये सिद्धांत और नीतियां आज के जीवन में भी प्रासंगिक हैं और अगर इन्हें अपने जीवन में सही तरीके से उतारा जाए तो न सिर्फ जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं बल्कि आर्थिक समस्याओं का भी सामना नहीं करना पड़ता।पैसे खर्च करने को लेकर क्या कहते हैं चाणक्यचाणक्य नीति में एक श्लोक है-उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणाम।तडागोदरसंस्थानां परीस्त्राव इवाम्भसाम।।अर्थात कमाए हुए धन को खर्च करना, दान देना या भोग करना ही उसकी रक्षा है, क्योंकि तालाब के भीतर भरे हुए जल को निकालते रहने से ही उसकी पवित्रता और शुद्धता बनी रहती है। अगर पानी का उपयोग ना हो तो वो सड़ जाता है। पैसों के साथ भी ठीक वही बात है। इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कमाए गए धन को बुरे वक्त के लिए थोड़ा बचाकर रखना अच्छी बात है, लेकिन उसका उपयोग करते रहना, जरूरतमंदों को दान करने से ही धन की रक्षा होती है।धन के उचित इस्तेमाल से ही होगी उसकी रक्षाजरुरत से ज्यादा बचत करना या कंजूस बने रहना उचित नहीं है। सही काम में और सही तरीके से धन को खर्च करके ही उसकी रक्षा की जा सकती है। तालाब या बर्तन में रखे पानी से धन की तुलना करते हुए चाणक्य कहते हैं कि अगर पानी को खराब होने से बचाना है तो उसका उपयोग करना होगा वरना एक ही जगह पर जमा पानी सड़ जाएगा खराब हो जाएगा। यही बात पैसों के साथ भी लागू होती है।
- आपने इस बात पर जरूर गौर किया होगा कि जब भी हम मंदिर जाते हैं तो ईश्वर का दर्शन करने के बाद मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं। प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा करना। सिर्फ मंदिर के ही नहीं बल्कि कई लोग पवित्र वृक्ष के चारों ओर भी परिक्रमा करते हैं, कई लोग यज्ञशाला की परिक्रमा करते हैं और मंदिरों के साथ ही गुरुद्वारे में भी कई लोग पवित्र ग्रंथ के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और परिक्रमा करते हैं। इसके अलावा सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भी कई लोग परिक्रमा करते हैं। जानिए परिक्रमा करने के फायदे...परिक्रमा से प्राप्त होती है सकारात्मक ऊर्जाधर्म शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी मंदिर, भगवान की मूर्ति या शक्ति स्थान के चारों ओर चक्कर लगाकर परिक्रमा करता है तो इससे सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती है। इससे न सिर्फ उस व्यक्ति के जीवन में शुभता आती है बल्कि वह सकारात्मक ऊर्जा उसके साथ ही उस व्यक्ति के घर में भी प्रवेश करती है जिससे घर में सुख-शांति भी आती है। इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब गणेश जी और कार्तिकेय के बीच संसार का चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा हुई तब गणेश जी ने शिवजी और माता पार्वती की 3 बार परिक्रमा की थी। इसी वजह से आम श्रद्धालु भी मंदिर में पूजा के बाद सृष्टि के निर्माता की परिक्रमा करते हैं। साथ ही मंदिर या किसी शक्ति स्थान की परिक्रमा करने से मन शांत होता है और जीवन में खुशियां आती हैं।इस दिशा में परिक्रमा लगानी चाहिएअगर आप मंदिर या किसी शक्ति स्थान की सकारात्मक ऊर्जा को बेहतर तरीके से ग्रहण करना चाहते हैं तो आपको घड़ी की सुई की दिशा में नंगे पांव परिक्रमा लगानी चाहिए। अगर परिक्रमा करते वक्त आपके कपड़े गीले हों तो इससे आपको और अधिक लाभ हो सकता है। कई मंदिरों में आपने लोगों को जलकुंड में स्नान करने के बाद गीले कपड़ों में ही मंदिर की परिक्रमा करते देखा होगा। इसका कारण ये है कि ऐसा करने से उस पवित्र स्थान की ऊर्जा को अच्छे तरीके से ग्रहण किया जा सकता है।कितनी बार करनी चाहिए परिक्रमा- देवी मां के मंदिर की एक परिक्रमा करनी चाहिए।- भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की 4 परिक्रमा करनी चाहिए।- गणेश जी और हनुमान जी की 3 परिक्रमा करनी चाहिए।- शिवजी की आधी परिक्रमा करनी चाहिए क्योंकि शिवजी पर किए गए अभिषेक की धारा को लांघना शुभ नहीं होता- पीपल के पेड़ की 11 या 21 परिक्रमा करनी चाहिए।
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ब्रज की होली विश्व प्रसिद्ध है। होली के पर्व पर यहां सदियों पुरानी लीलाएं जीवंत हो जाती हैं। इनमें भक्त प्रहलाद की लीला भी शामिल हैं, जो हर वर्ष मथुरा के गांव फालैन में होती है। गांव फालैन में होली पर एक पंडा धधकते हुए अंगारों पर चलता है। इस बार भी मोनू पंडा इस हैरतअंगेज कारनामे को करेगा। प्रहलाद नगरी फालैन में मोनू पंडा शनिवार को विधिवत पूजा-अर्चना के बाद तप पर बैठ गए। बेहद कठोर नियमों का पालन करते हुए एक माह तक पंडा घर नहीं जाएंगे। वह मंदिर पर रहकर अन्न का त्याग कर तप करेंगे। होलिका वाले दिन लग्न के अनुसार पंडा धधकती होलिका से होकर गुजरेंगे।
भक्त प्रहलाद के होलिका से बच निकलने के कारनामे को साकार करने के लिए प्रहलाद नगरी फालैन में तैयारियां शुरू हो गईं हैं। मोनू पंडा ने ग्रामीणों के साथ परिक्रमा कर प्रहलाद कुंड पर मंदिर के समीप होलिका स्थल की पूजा परिक्रमा की। इस दौरान ग्रामीणों ने प्रहलादजी महाराज के जयघोष के साथ गुलाल उड़ाया। परिक्रमा कर पंडा प्रहलाद कुंड के किनारे मंदिर पर पहुंचे।
जहां उन्होंने पूजा कर होलिका की पूजा की। मेला आचार्य पंडित भगवान सहाय ने मंत्रोच्चारणों के मध्य होलिका स्थल पर होलिका का पूजन कराया और होलिका रखवाई। इसी के साथ पंडा को प्रहलादजी की माला सौंपकर तप के नियम समझाए। इसी के साथ मोनू पंडा दूसरी बार धधकते अंगारों से निकलने के लिए तप पर बैठ गए। मेला आचार्य भगवान सहाय पंडित ने बताया कि एक माह तक पंडा ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे और घर नहीं जाएंगे। 29 मार्च को अलसुबह होलिका के धधकते अंगारों से होकर पंडा निकलेगा।
ये है मान्यता
जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर फालैन गांव है, जिसे प्रहलाद का गांव भी कहा जाता है। मान्यता है कि गांव के निकट ही साधु तप कर रहे थे। उन्हें स्वप्न में डूगर के पेड़ के नीचे एक मूर्ति दबी होने की बात बताई। इस पर गांव के कौशिक परिवारों ने खोदाई कराई। जिसमें भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद की प्रतिमाएं निकलीं। प्रसन्न होकर तपस्वी साधु ने आशीर्वाद दिया कि इस परिवार का जो व्यक्ति शुद्ध मन से पूजा करके धधकती होली की आग से गुजरेगा, उसके शरीर में स्वयं प्रहलादजी विराजमान हो जाएंगे। आग की ऊष्मा का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके बाद यहां प्रहलाद मंदिर बनवाया गया। मंदिर के पास ही प्रह्लाद कुंड का निर्माण हुआ। तब से आज तक प्रहलाद लीला को साकार करने के लिए फालैन गांव में आसपास के पांच गांवों की होली रखी जाती है। फालैन को प्रहलाद का गांव भी कहा जाता है। गांव का पंडा परिवार प्रहलाद लीला की जीवंत किए हुए हैं। - वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बहुत महत्व माना जाता है। हर दिशा के दिग्पाल और ग्रह अलग-अलग होते हैं, इसलिए हर दिशा का अपना एक अलग महत्व होता है। इसी तरह से घर की उत्तर दिशा को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। वास्तु के अनुसार घर की उत्तर दिशा में धन के कोषाध्यक्ष कुबेर का स्थान होता है। यह दिशा सकारात्मक ऊर्जा का भंडार मानी जाती है। उत्तर दिशा का घर भी बहुत शुभ माना जाता है।उत्तर दिशा के घर में सुख-समृद्धि आती है, इसलिए घर की उत्तर दिशा में कुछ भी निर्माण करते या सामान रखते समय बहुत ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिन्हें यदि इस दिशा में रखा जाए तो आपके घर में धन की आवक रूक जाती है। आपके घर में आर्थिक तंगी आने लगती हैं। जानते हैं कि वे कौन सी चीजें हैं जिन्हें उत्तर दिशा में नहीं रखना चाहिए।जूते-चप्पलघर की उत्तर दिशा में कभी भी जूते-चप्पल रखने का स्थान नहीं बनाना चाहिए। बाहर से घर में आते समय कभी भी उत्तर दिशा में जूते-चप्पल नहीं उतारने चाहिए। इससे आपके घर में नकारात्मकता बढऩे लगती है। इसके साथ ही आपके घर में आर्थिक तंगी होने लगती है।भारी-भरकम फर्नीचरवास्तु के अनुसार उत्तर दिशा को खाली और खुला हुआ रखना चाहिए। इससे आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है। इस दिशा में भूलकर भी भारी सामान या फिर भारी-भरकम फर्नीचर नहीं रखना चाहिए। इससे आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बाधित होने लगता है। आपको धन संबंधित समस्याओं और अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ता है।कूड़ेदानउत्तर दिशा को जितना हो सके एक दम साफ-सुथरा रखना चाहिए। इस दिशा में भूलकर भी गंदगी या कूड़ेदान नहीं रखना चाहिए। यदि आप उत्तर दिशा में कूड़ेदान रखते हैं तो आपको आए दिन पैसों की समस्या का सामना करना पड़ता है।टॉयलेट या बाथरूमउत्तर दिशा के सबसे बड़ा दोष होता है टॉयलेट या बाथरूम का निर्माण करवाना। यदि किसी के घर की उत्तर दिशा में टॉयलेट और बाथरूम बना हुआ है तो उसके घर में हमेशा पैसों की किल्लत बनी रहती हैं और दरिद्रता बढ़ती जाती है। यदि इस दिशा में आपने गलती से बाथरूम या फिर टॉयलेट का निर्माण करवा लिया हो तो एक कांच की कटोरी में नमक भरकर बाथरूम के एक कोने में रख दें। पंद्रह दिन या सप्ताह में इसे बदलते रहें। इससे नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह में कमी आती है।---
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 211
(संसार के स्वरुप पर विचार करते हुये इससे मन को हटाकर भगवान की ओर लगाने के अभ्यास के संबंध में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा संक्षिप्त प्रवचन...)
हमको जो सुख मिलता है, वो आत्मा का सुख नहीं है, मन का है और लिमिटेड है और वो नश्वर है। तमाम गड़बड़ियाँ हैं उसमें। जो भी सुख हमको मिलता है संसार में वो सदा नहीं रहती। ये तो अनुभव करता है आदमी। भूख लगी है रसगुल्ला खाया सुख मिला। उसमें भी पहले रसगुल्ले में ज्यादा सुख मिला, दूसरे में उससे कम, तीसरे में उससे कम, चौथे में ख़तम। जिस वस्तु से सुख मिलता है उससे भी हमेशा एक सा नहीं मिलता। धीरे-धीरे घटता जाता है और फिर उसी से दुःख मिलने लगता है। ये भी होता है। स्वार्थ हानि हुई कि दुःख। उसी बीबी से प्यार है और उसी बीबी की शकल देखने से नफरत है। उसी बेटे से प्यार है और उसी से झगड़ा हो गया या कोई अपमान कर दिया बाप का तो उससे बातचीत करना बन्द। तो संसार का सुख तो अगर थोड़ा है और सदा रहे तो भी कोई बात है। वो तो आया गया, धूप-छाँव की तरह।
तो ये सब बातें हमेशा बुद्धि में बैठी रहें। कभी बैठती हैं कभी गायब हो जाती हैं, फिर संसार में बह जाता है वो। लापरवाही से। 'तत्त्वविस्मरणात् भेकीवत्।' भूल गया। तो फिर क्या होगा?
तो हम तत्त्व को भूल जाते हैं। जिस समय गुरु का उपदेश होता रहता है तो समझ में सब बात आती है पढ़े लिखे आदमी को। वो मानता है, एडमिट करता है, सब सही है और फिर संसार के एटमोस्फियर में गया और भूल गया। तो उसमें सावधान रहना चाहिए और बार-बार मन को पकड़ करके बुद्धि के द्वारा हरि गुरु के चरणों में लगाते रहना चाहिए। तो अभ्यास करने से पक्का हो जाएगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - पीले रंग का सन स्टोन एक उप रत्न है, जो सूर्य की आभा लिए होता है। माणिक का उप-रत्न सन स्टोन सूर्य का रत्न है। सूर्य देव जीवन में सफलता प्रदान करते हैं इसलिए उनकी कृपा होना बहुत जरूरी होता है। मान्यता है कि अगर सूर्य देव आपसे नाराज़ हो गए तो हर काम में नाकामी ही मिलती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में सूर्य को मजबूत करने के लिए सन स्टोन धारण किया जाता है, जिससे सूर्य मजबूत व प्रभावी होते हैं। पिता से साथ भी संबंध यदि सही रखना है तो सूर्य का प्रभावी होना जरूरी है।किस राशि के लोग धारण कर सकते हैं?ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह मीन, सिंह और तुला राशि के लिए अच्छा रत्न माना जाता है। इन राशि के जातक ज्योतिषीय परामर्श लेकर सन स्टोन धारण कर सकते हैं। बिना परामर्श के धारण करना आपके लिए हानिकारक हो सकता है।सन स्टोन धारण करने के लाभयह सूर्य ग्रह का उप-रत्न है। सन स्टोन में एक मजबूत सौर ऊर्जा होती है, इसलिए वह सूर्य की गर्मी, शक्ति और खुलेपन को अपने भीतर सोख लेता है। जिससे तनाव और मानसिक अस्थिरता को कम करने में सन स्टोन सहायता करता है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सन स्टोन आपके जीवन में खुशी और अन्य सकारात्मक भावनाओं को लाने के लिए काफी प्रभावी पत्थर है। यह चयापचय और पाचन में सहायता करने और आपके शरीर में महत्वपूर्ण बल को बढ़ाने में आपकी सहायता करता है। इसके साथ ही सन स्टोन नेतृत्व गुणों को आपके अंदर विकसित करता है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि आप तनाव को दूर करने के लिए उपयोगी तरीके की तलाश कर रहे हैं तो सन स्टोन इसमें आपकी मदद कर सकता है। साथ ही अपने औषधीय गुणों से मौसमी स्नेह विकार से पीडि़त व्यक्ति को ठीक करने की क्षमता रहता है जैसे कि गले में खराश, सर्दी।सनस्टोन्स को एक परखने वाला रत्न कहा जा सकता है, खासकर यदि आप व्यवसाय में हैं। इस पत्थर का उपयोग करने से आपको सहायता मिल सकती है, जब आप यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापारिक सौदे कर रहे हों कि दूसरी पार्टी सच बोल रही है या नहीं। इसे धारण करने से आपके अंदर सत्य व असत्य को परखने की क्षमता आ जाती है।सन स्टोन धारण करने की विधिज्योतिषियों के अनुसार धारक को कम से कम 2 से 5 रत्ती का तो सन स्टोन तो जरूर पहनना चाहिए। लेकिन ज्योतिषियों का कहना है कि यदि संभव हो तो 5 रत्ती ही धारण करें। इसे सोने की अंगूठी में जड़वाकर रविवार, सोमवार और गुरुवार के दिन धारण कर सकते हैं। परंतु इस बात का ध्यान रखें कि सन स्टोन आपकी त्?वचा से सटा़ हो। अन्यथा इसका लाभ आपको नहीं मिलेगा। सन स्टोन को सोना, चाँदी और प्लेटिनम धातु में पहना जा सकता है। आपको इसे शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार को सूर्योदय के समय धारण करना चाहिए। यदि आप सन स्टोन धारण करने की का मन बना रहे हैं तो एक बार ज्योतिषाचार्य से इस संबंध में परामर्श जरूर लें। इसके बाद ही इसे धारण करें।
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होलाष्टक होली से लगभग आठ दिन पहले लग जाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे। इस साल होलाष्टक 22 मार्च से 28 मार्च तक रहेंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के दौरान शादी, विवाह, वाहन खरीदना या घर खरीदना एवं अन्य मंगल कार्य नहीं किए जाते हैं। हालांकि इस दौरान पूजा पाठ करने और भगवान का स्मरण. भजन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि होलाष्टक में कुछ विशेष उपाय करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।
संतान प्राप्ति के लिए करें यह उपाय
मान्यता है कि नि:संतान दंपतियों के लिए होलाष्टक में लड्डु गोपाल की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान गाय के शुद्ध घी और मिश्री से हवन करना चाहिए। यह उपाय करने से उन्हें संतान प्राप्ति होगी।
कॅरिअर में उन्नति के लिए करें यह काम
मान्यता के अनुसार, होलाष्टक में जौ, तिल और शक्कर से हवन कराना चाहिए। यह उपाय करने से आपको करियर में तरक्की मिलेगी। इसके साथ कार्य क्षेत्र में आ रहीं बाधाएं भी दूर होंगी।
धन-संपत्ति में वृद्धि के लिए करें यह उपाय
मान्यता है कि आर्थिक जीवन में तरक्की पाने के लिए होलाष्टक में कनेर के फूल, गांठ वाली हल्ती, पीली सरसों और गुड़ से हवन कराना चाहिए। इस उपाय से आपके धन-संपत्ति में वृद्धि होगी।
अच्छी सेहत के लिए करें यह काम
मान्यता के अनुसार, होलाष्टक में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इसके बाद गुग्गल से हवन कराएं। यह उपाय करने से जातकों को असाध्य रोग से मुक्ति मिलती है।
सुखी जीवन के लिए करें यह काम
मान्यता के अनुसार, होलाष्टक में हनुमान चालीसा और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। यह उपाय करने से आपके जीवन में खुशियां आती हैं। जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं।
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हिंदू धर्म में हमारी रोजाना की दिनचर्या में पूजा पाठ का महत्वपूर्ण स्थान है और ज्यादातर लोगों के घर में अलग पूजा स्थान अवश्य होता है जहां वे शांति से पूजा करके ईश्वर को याद करते हैं, लेकिन अगर रोजाना पूजा-पाठ करने के बाद भी आपका मन अशांत है, आपको अपनी पूजा का उचित फल नहीं मिल रहा तो इसका मतलब है कि आप से पूजा के दौरान कुछ गलतियां हो रही हैं। रोजाना पूजा करना जितना जरूरी है, पूजा-पाठ के सामान्य नियमों का पालन करना भी उतना ही जरूरी है, वरना आपको नुकसान हो सकता है।
पूजा-पाठ के दौरान 5 बातों का रखें ध्यान
वैसे तो हर देवी-देवता की पूजा के दौरान मंत्रोच्चार, आरती और पूजा का तरीका अलग-अलग हो सकता है, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो हमेशा एक समान ही रहती हैं और पूजा-पाठ कै दौरान इन नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए-
1. घर का मंदिर या पूजा का स्थान हमेशा ईशान कोण यानी उत्तर पूर्व दिशा में होना चाहिए। यह दिशा भगवान के मंदिर के लिए सबसे शुभ मानी जाती है, लेकिन अगर आपके घर में पूजा स्थल पश्चिम या दक्षिण पश्चिम दिशा में हो तो आपको पूजा का लाभ प्राप्त नहीं होगा।
2. घर में पूजा करते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि आपका मुंह पश्चिम दिशा की ओर हो और मंदिर या भगवान का मुख पूर्व दिशा की ओर। साथ ही देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ करके नहीं बैठना चाहिए।
3. बहुत से लोगों को आपने देखा होगा कि वे जमीन पर ही बैठकर पूजा करने लगते हैं, लेकिन पूजा के समय आसन का उपयोग करना जरूरी है। ऐसी मान्यता है कि बिना आसन पर बैठे पूजा-पाठ करने से दरिद्रता आती है। इसलिए पूजा के दौरान साफ-सुथरे आसन का इस्तेमाल जरूर करें। अगर आसन न हो तो उसकी जगह कंबल का भी उपयोग किया जा सकता है।
4. घर में अगर मंदिर हो तो वहां पर सुबह शाम एक दीपक अवश्य जलाएं। एक घी का दीपक और एक तेल का दीया।
5. भगवान विष्णु, गणेश, शिव जी, सूर्य देव और देवी दुर्गा को पंचदेव कहा जाता है। रोजाना पूजा करते समय इन पंचदेवों का ध्यान अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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बहुत से लोगजीवन में थोड़े से प्रयासों से अच्छी आर्थिक स्थिति प्राप्त कर लेते हैं जबकि अनेक जीवनभर संघर्ष के बाद भी पर्याप्त धन अर्जित नहीं कर पाते। जीवन में आने वाले ये सब हालात ग्रह योग पर निर्भर करते हैं। ग्रहों से तय होता है कि हमारे जीवन में धन की स्थिति कैसी होगी। कुंडली का दूसरा भाव धन यानी स्थिर धन का प्रतिनिधित्व करता है। इसे धनभाव भी कहते हैं। 11 वां भाव हमारी आय या धन लाभ का कारक होता है। यह हमें नियमित होने वाले धन लाभ को भी दर्शता है। इसलिए इसे धन स्थान भी कहते हैं। हमारी आर्थिक स्थिति को निश्चित करने में जिस एक ग्रह की खास भूमिका होती है वह है शुक्र ग्रह। शुक्र को धन का नैसर्गिक कारक माना गया है। ऐसे में धन भाव, धनेश, लाभ स्थान, लाभेश और शुक्र हमारी कुंडली में कैसे हैं, इन सब पर हमारी जीवन में आर्थिक स्थिति निर्भर करती है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार कब होते हैं अच्छी आर्थिक स्थिति के योग
-यदि धनेश धन भाव में ही बैठा हो तो आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है।
-धनेश स्व या उच्च राशि में शुभ भावों में बैठा हो तो धन की स्थिति अच्छी होती है।
-धनेश का केंद्र या त्रिकोण में मित्र राशि में होना भी जीवन में पर्याप्त धन योग बनाता है।
-यदि लाभेश लाभ स्थान में ही बैठा हो या लाभेश की लाभ स्थान पर दृष्टि पड़ती हो तो ऐसे व्यक्ति की नियमित आय अच्छी होती है।
-यदि कुंडली में शुक्र स्व राशि या उच्च राशि में शुभ भावों में बैठा हो तो अच्छी आर्थिक स्थिति प्राप्त होती है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ऐसे बनते हैं संघर्ष के योग
-यदि धनेश पाप भाव में हो तो आर्थिक पक्ष संघर्षमय बना रहता है।
-धनेश यदि अपनी नीच राशि में हो तो संघर्ष के बाद भी अच्छी आर्थिक स्थिति नहीं हो पाती।
-यदि धन भाव में कोई पाप योग बना हो तो आर्थिक स्थिति की तरफ से व्यक्ति परेशान रहता है।
-यदि लाभेश भी पाप भाव में हो तो आर्थिक पक्ष को बाधित करता है।
-शुक्र यदि अपनी नीच राशि में हो तो आर्थिक स्थिति कभी अच्छी नहीं बन पाती।
-शुक्र का कुंडली के आठवें भाव में होना भी आर्थिक संघर्ष करता है
-जब शुक्र केतु के साथ हो तो आर्थिक स्थिति हमेशा अस्थिर बनी रहती है।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सीता जी प्रकट हुई थी। इसी खुशी में हर साल सीता जयंती या जानकी जयंती मनाई जाती है। इस साल सीता जयंती 06 मार्च दिन रविवार को मनाई जा रही है। सीता अष्टमी का व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए खास होता है। इस खास दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियां खत्म होती हैं। इतना ही नहीं जिन लड़कियों को शादी में बाधा आ रही हो वो भी इस व्रत को रखकर मनचाहे वर की प्राप्ति कर सकती हैं।
सीता जयंती का महत्व-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सीता जयंती का व्रत करने से वैवाहिक जीवन से जुड़े सभी कष्टों का नाश होकर उनसे मुक्ति मिलती है। जीवनसाथी दीर्घायु होता है। साथ ही इस व्रत को करने से समस्त तीर्थों के दर्शन करने जितना फल भी प्राप्त होता है।
जानकी जयंती का शुभ मुहूर्त-
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 05 मार्च को शाम 07 बजकर 54 मिनट पर।
अष्टमी तिथि का समापन- 06 मार्च शनिवार को शाम 06 बजकर 10 मिनट पर।
उदया तिथि- 06 मार्च 2021
कैसे मनाएं सीता अष्टमी पर्व-
1. सीता अष्टमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता और भगवान श्रीराम को प्रणाम कर व्रत करने का संकल्प लें।
2. पूजा शुरू करने से पहले पहले गणपति भगवान और माता अंबिका की पूजा करें और उसके बाद माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा करें।
3. माता सीता के समक्ष पीले फूल, पीले वस्त्र और और सोलह श्रृंगार का सामान समर्पित करें।
4. माता सीता की पूजा में पीले फूल, पीले वस्त्र ओर सोलह श्रृंगार का समान जरूर चढ़ाना चाहिए।
5. भोग में पीली चीजों को चढ़ाएं और उसके बाद मां सीता की आरती करें।
6. आरती के बाद श्री जानकी रामाभ्यां नम: मंत्र का 108 बार जाप करें।
7. दूध-गुड़ से बने व्यंजन बनाएं और दान करें।
8. शाम को पूजा करने के बाद इसी व्यंजन से व्रत खोलें। - सृष्टि के जन्मदाता ब्रह्मा जी हैं, सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु जी और सृष्ट के संहारकर्ता शिवजी हैं। वैदिक ज्योतिष में भगवान शिव की पूजा के साथ साथ उन्हें प्रसन्न करने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए महामृत्युंजय यंत्र का उपयोग किया जाता है। इस यंत्र की स्थापना करने से भगवान भोलेनाथ के साथ आपके प्रगाढ़ संबंध स्थापित हो जाते हैं। यदि जातक की कुंडली में विभिन्न प्रकार के रोग या दोष हैं तो इस यंत्र की स्थापना से उनका निवारण संभव है। इस यंत्र को प्रतिष्ठित करने से दीर्घायु, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि, आध्यात्मिक विकास और शिवजी की कृपा प्राप्त हो सकती है।-महामृत्युंजय यंत्र के लाभ-यदि किसी जातक को यदि दुर्घटना, अकालमृत्यु और प्राणघातक बीमारियों का डर सताता रहता है तो उसे अपने घर में महामृत्युजंय यंत्र की स्थापना करनी चाहिए।-पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह उच्चकोटि का दार्शनिक यंत्र है और जिसमें जीवन और मृत्यु का राज छिपा हुआ है।-इस यंत्र की प्रतिष्ठा करने से बुद्धि, विद्या, यश और लक्ष्मी की वृद्धि होती है।-यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में ग्रह दोष या पीड़ादायक महादशा चल रही है तो उसे शिव यंत्र पेडेंट धारण करने से लाभ प्राप्त होता है।-यदि आपको मानसिक या शारीरिक पीड़ा है और आप कानूनी विवाद में फंसे हुए हैं तो इन सब से उबरने के लिए महामृत्युंजय यंत्र काफी कारगर है।-महामृत्युजंय यंत्र को स्थापित करने से कुंडली में स्थित नाड़़ी दोष, षड़ाष्टक (भकूट) दोष या मंगली दोष दूर हो सकता है।ध्यान रखने योग्य बातेंमहामृत्युंजय यंत्र की निर्माण विधि एक तांत्रिक प्रणाली पर आधारित है इसे बनाने के लिए रेखा गणित के प्रमेय, निर्मेय, त्रिकोण, चतुर्भुज आदि आकृतियां बनाकर उनमें बीज मंत्र लिखा जाता है। इसका निर्माण भोजपत्र, कागज या किसी धातु की वस्तु पर किया जा सकता है। इस पर लिखने के लिए रक्त चंदन की स्याही या बेल या अनार की कलम का इस्तेमाल किया जाता है। इस यंत्र की स्थापना या धारण करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक शक्ति का संचार होता है।महामृत्युंजय यंत्र को सम्मुख रखकर रूद्र सूक्त का पाठ करने एवं महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से लाभ प्राप्त होता है। इस यंत्र को खरीदते वक्त ध्यान रखें कि महामृत्युंजय यंत्र विधिवत शुद्धिकरण, प्राणप्रतिष्ठा और ऊर्जा संग्रही की प्रक्रियाओं के माध्यम से विधिवत बनाया गया हो। साथ ही महामृत्युंजय यंत्र को खऱीदने के पश्चात किसी अनुभवी ज्योतिषी द्वारा अभिमंत्रित करके उसे घर की सही दिशा में स्थापित करना चाहिए। अभ्यस्त और सक्रिय शिव यंत्र या महामृत्युजंय यंत्र को सोमवार के दिन स्थापित करना चाहिए।महामृत्युंजय यंत्र स्थापना विधिआमतौर पर श्रावण मास में इस यंत्र को स्थापित करना शुभ फलदायी होता है लेकिन आप इसे सोमवार को स्थापित कर सकते हैं।
- आम मान्यता के अनुसार दक्षिण दिशा के मकान को अशुभ और नकारात्मक प्रभाव वाला माना जाता है। परन्तु निर्माण के समय अगर कुछ वास्तु के अनुसार सावधानियां बरती जाएं, तो सभी प्रॉपर्टीज और दिशाएं शुभ होती हैं। आइए जानते हैं किन वास्तु टिप्स को अपनाकर दक्षिणमुखी मकान में नहीं होता दक्षिण दोष?- सर्वप्रथम दक्षिणमुखी मकान का दोष खत्म करने के लिए मुख्य द्वार के ऊपर पंचमुखी हनुमानजी का चित्र लगा देना चाहिए, नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश नहीं करेगी।-यदि दक्षिणमुखी मकान के सामने मुख्य द्वार से दोगुनी दूरी पर नीम का हराभरा वृक्ष लगा देने से दक्षिण दिशा का नकारात्मक असर काफी हद तक समाप्त हो जाएगा।-यदि दक्षिणमुखी मकान के सामने मकान से दोगुना बड़ा कोई दूसरा मकान है तो दक्षिण दिशा का असर कुछ हद तक समाप्त हो जाएगा।-दक्षिण मुखी प्लाट में मुख्य द्वार आग्नेय कोण में बनाना वास्तु की दृष्टि में उचित माना गया है। उत्तर तथा पूर्व की तरफ ज्यादा व पश्चिम व दक्षिण में कम से कम खुला स्थान छोड़ा गया है तो भी दक्षिण का दोष कम हो जाता है। ऐसे प्लाट में छोटे पौधे पूर्व-ईशान में लगाने से भी दोष कम होता है।-आग्नेय कोण का मुख्य द्वार पर पेंट लाल या मरून रंग का हो, तो श्रेष्ठ फल देता है। इसके अलावा हल्का नारंगी या भूरा रंग भी चुना जा सकता है। परन्तु किसी भी परिस्थिति में मुख्य द्वार पर नीला या काले रंग नहीं करवाना चाहिए,अन्यथा घर में वाद-विवाद की समस्या रहेगी।-यदि आपका दरवाजा दक्षिण की तरफ है तो द्वार के ठीक सामने एक आदमकद दर्पण इस प्रकार लगाएं जिससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति का पूरा प्रतिबिंब दर्पण में बने। इससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के साथ घर में प्रवेश करने वाली नकारात्मक उर्जा पलटकर वापस चली जाती है।-दक्षिणमुखी मकान में भी रसोई बनाने के लिए घर में आदर्श स्थान दक्षिण-पूर्व दिशा ही है एवं खाना पकाने के दौरान, आपका पूर्व की ओर मुंह होना चाहिए। किचन के लिए दूसरी सबसे अच्छी जगह उत्तर-पश्चिम दिशा है।- ध्यान रखें पानी की निकासी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर होनी चाहिए। भूलकर भी दक्षिण दिशा में पानी से जुड़े कार्य नहीं होने चाहिए।----
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 210
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! महारास और प्रेमानंद एक ही बात है या महारास अलग है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: आनंद में भी अनेक स्तर हैं। जैसे माया के क्षेत्र में अनेक स्तर हैं - तमोगुण, रजोगुण, सत्वगुण। ऐसे ही आनंद के क्षेत्र में भी अनेक स्तर हैं; जैसे ज्ञानियों का ब्रह्मानंद। यह आनंद अनंत मात्रा का होता है, दिव्य होता है, सदा के लिए होता है। किन्तु ये सबसे निम्न कक्षा का आनंद है। आनंद और निम्न कक्षा, दो विरोधी बातें हैं। यद्यपि आनंद अनंत मात्रा का होता है, अनिर्वचनीय होता है, शब्दों में उसका निरूपण नहीं हो सकता, ईश्वरीय आनंद का। न कोई कल्पना कर सकता है मनबुद्धि से। इन्द्रिय, मन, बुद्धि की वहाँ गति नहीं है। वो भूमा है।
फिर भी, आनंद के जितने स्तर हैं उन में सबसे निम्न स्तर हैज्ञानियों का ब्रह्मानंद। निर्गुण, निर्विशेष, निराकार ब्रह्मानंद। इसके बाद फिर सगुण साकार का आनंद प्रारम्भ होता है। उसमें भी अनेक स्तर है। शांत भाव का प्रेमानंद, उससे ऊँचा दास्य भाव का प्रेमानंद, उससे ऊँचा सख्य भाव का प्रेमानंद, उससे अधिक सरस वात्सल्य भाव का प्रेमानंद, उससे अधिक सरस माधुर्य भाव का प्रेमानंद।
माधुर्य भाव में भी तीन स्तर हैं। सकाम माधुर्य भाव के प्रेमानंद का स्तर उन तीनों में निम्न कक्षा का है। उसे साधारणी रति का प्रेमानंद कहते हैं और समञ्जसा रति का प्रेमानंद उससे उच्च कक्षा का है और समर्था रति का आनंद सर्वोच्च कक्षा का है। तो समर्था रति का प्रेमानंद जिनको मिलता है, सिद्ध महापुरुषों में भी अरबों-खरबों में किसी एक को मिलता है वो। उस रस को महारास कहते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।