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- शनि की दृष्टि से हर कोई बचना चाहता है। कहते हैं जिस पर शनि की दृष्टि डाल देते हैं उसके कष्टों में वृद्धि कर देते हैं, लेकिन ऐसा नहीं शनिदेव शुभ फल भी प्रदान करते हैं। शनि ग्रह को ज्योतिष में एक न्याय प्रिय ग्रह माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शानि व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर अच्छे और बुरे फल प्रदान करते हैं। कहने का अर्थ है कि जब व्यक्ति अच्छे कर्म करता है तो शनि देव उसे शुभ फल प्रदान करते हैं और जब व्यक्ति गलत कार्यों में लिप्त हो जाता है तो शनि उसे नकारात्मक फल प्रदान करते हैं। इसलिए ऐसा कहना कि शनिदेव हमेशा गलत ही फल देते हैं, उचित नहीं है।शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैयाज्योतिषाचार्यों के अनुसार शनिदेव की जब भी बात आती है तो शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैया का वर्णन अवश्य आता है। शनि की इन स्थितियों में व्यक्ति को कष्ट भोगने पड़ते हैं, जिस पर भी साढ़ेसाती और ढैय्या होती है उसे विभिन्न प्रकार की समस्याओं और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। शनिदेव जब अशुभ फल प्रदान करते हैं तो व्यक्ति को हर कार्य में बाधाओं को सामना करना पड़ता है. आसान कार्य भी बड़ी मुश्किल से पूर्ण होता है. इसके साथ ही रोग आदि में भी वृद्धि होती है. दुर्घटना और ऑपरेशन का भी योग बना देते हैं. पाप ग्रहों के साथ यदि कोई संबंध बना लें तो व्यक्ति को गंभीर रोग भी प्रदान करते हैं. दांपत्य जीवन में भी परेशानी महसूस होने लगती है।इन 5 राशियों को विशेष ध्यान देना चाहिएज्योतिष गणना के अनुसार मिथुन, तुला और धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की विशेष दृष्टि है। मिथुन और तुला पर शनि की ढैया और धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है।शनि किस राशि में गोचर कर रहे हैंशनिदेव इस समय मकर राशि में गोचर कर रहे हैं. शनि इस वर्ष कोई राशि परिवर्तन नहीं कर रहे हैं. मकर राशि वालों को इस समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।शनि का उपायशनि को शुभ बनाने के लिए शनि मंदिर में जाकर शनिदेव पर सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए। मंगलवार को हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही शनिवार के दिन शनि से जुड़ी चीजों का दान करने से भी शनिदेव प्रसन्न होते
- विवाह के मुहूर्त इस वर्ष अप्रैल माह से आरंभ हो रहे हैं. पंचांग के अनुसार इस समय शुक्र तारा अस्त है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब शुक्र तारा अस्त होता है तो विवाह संबंधी कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाते हैं।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस समय शुक्र अस्त चल रहे हैं। शुक्र बीते 16 फरवरी को अस्त हुए थे। विवाह संबंधी मामलों में गुरू और शुक्र ग्रह की भूमिका अहम मानी गई है। गुरु तो उदित हो चुके हैं लेकिन इस समय शुक्र ग्रह अस्त है, इसलिए जब तक शुक्र उदित नहीं होंगे तब तक विवाह कार्य संभव नहीं होंगे।पंचांग के अनुसार इस वर्ष वैवाहिक कार्य 22 अप्रैल से आरंभ होंगे। वहीं 14 मार्च से लेकर 13 अप्रैल तक खरमास का संयोग रहेगा. शुभ विवाह के लिए ग्रहों की स्थिति का विशेष ध्यान रखा जाता है। विवाह संबंधी कार्यों में किसी प्रकार का विघ्न न पड़े इसके लिए ग्रहों के गोचर और स्थिति का भी आंकलन किया जाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार खरमास में शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. पंचांग के अनुसार इस वर्ष विवाह के सबसे अधिक शुभ मुहूर्त मई माह में निकल रहे हैं। पंचांग के मुताबिक फरवरी और मार्च में शादी के लिए एक शुभ मुहूर्त नहीं बन रहे हैैं. अप्रैल के महीने में विवाह के लिए सबसे कम शुभ मुहूर्त निकल रहे हैं।अप्रैल और मई माह में विवाह के शुभ मुहूर्तअप्रैल के महीने में विवाह के मुहूर्त--24, 25, 26, 27 और 30.मई माह के विवाह मुहूर्त-- 2, 4, 7, 8, 21, 22, 23, 24, 26, 29 और 31 मई
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शास्त्रों में ब्रह्म मुहूर्त के समय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। प्राचीन काल में लोग और ऋषि मुनि सदैव ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ईश्वर का वंदन किया करते थे। घरों में भी बड़े बुजुर्ग लोग सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर ईश्वर का नाम जपने बैठने जाते हैं और ब्रह्म मुहूर्त में उठने को कहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त न केवल शास्त्रों की दृष्टि से बल्कि आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा पद्धति में भी इस समय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। हिंदू धर्म में ब्रह्म का अर्थ ह ज्ञान और मुहूर्त का अर्थ है समय या अवधि । ग्रंथों में ब्रहम मुहूर्त को विशिष्ट कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ करार दिया गया है।
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में जागने से व्यक्ति रोग मुक्त रहता है और आयु में वृद्धि होती है। ब्रह्म मुहूर्त में उठना और शुभ कार्य करना आपको लाभान्वित कर सकता है लेकिन इस समय कुछ कार्य हैं जिन्हें वर्जित माना गया है। इन कार्यों को करने से आपके शरीर को रोग घेर लेते हैं और आपकी आयु में कमी आती है। तो चलिए जानते हैं कि कौन से कार्य ब्रह्म मुहूर्त में बिल्कुल नहीं करने चाहिए।मन में न लाएं नकारात्मक भावब्रह्म मुहूर्त में व्यक्ति का मस्तिष्क जाग्रत रहता है। यह समय जीवन के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लेने, अहम योजनाएं बनाने एक लिए बहुत उचित रहता है। इस समय मन में नकारात्मक भाव नहीं लाने चाहिए, अन्यथा आपको पूरे दिन तनाव रहता है। जिससे आपको मानसिक रूप से परेशानी हो सकती है।प्रणय संबंधब्रह्म मुहूर्त ईश्वर के पूजन वंदन का समय माना गया है, यह समय बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस समय भूलकर भी प्रणय संबंध नहीं बनाने चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार भी ऐसा करना वर्जित माना गया है। इससे आपके शरीर को रोग घेरने लगते हैं और आपकी आयु का नाश होता है।न करें भोजनकुछ लोग सुबह को उठते ही पलंग पर ही चाय नाश्ता करने लगते हैं, ये आदत सेहत के लिहाज से बहुत खराब होती है। सुबह को उठते ही या फिर ब्रह्म मुहूर्त में भूलकर भी भोजन नहीं करना चाहिए। इससे बीमारियां घेरने लगती हैं। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 206
साधक का प्रश्न ::: अगर साधक को इस जीवन में लक्ष्य प्राप्ति नहीं हो पाती तो क्या अगले जीवन में वो अपने गुरु से मिलेगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: हाँ मिलेगा। वो तो लिंक बन जायेगी भगवत्प्राप्ति तक। लेकिन उधार नहीं करना चाहिए। उसको लक्ष्य ये बनाना चाहिए, इसी जन्म में करना है क्योंकि उधार करने में फिर वो लापरवाही हो जाती है, अगले जन्म में। अरे! अगर अगले जन्म में ही करना है, तो ठीक है, जो है इतना ही काफी है।
ये उधार की प्रवृत्ति जो है बहुत ही डेंजरस है। एक बीमारी है लोगों की कि भजन-वजन तो बुढ़ापे की चीज है। बुढ़ापे की क्या परिभाषा है तुम्हारी? साठ वर्ष, सत्तर वर्ष, अस्सी वर्ष कितने साल तुम रहोगे ये गारण्टी है कुछ?
युवैव धर्मशीलस्यात् अनित्यं खलु जीवितम्।को हि जानात् कस्याद्य मृत्युकालोभविष्यति।।(महाभारत)
कौन जानता है कल का दिन मिले न मिले?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 205
साधक का प्रश्न ::: हमारा अंतःकरण कितना शुद्ध है, ये हम कैसे जानें ? कोई पहचान है क्या इसकी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: इसकी एक पहचान है। जिसका हृदय जितना अधिक शुद्ध होगा, उसका हृदय, उसका मन उतनी ही जल्दी भगवान और महापुरुष की ओर खिंच जायेगा।
भगवान और महापुरुष चुम्बक के समान हैं। चुम्बक पत्थर होता है, लोहे को खींच लेता है। तो एक चुम्बक पत्थर बीच में रख दो और चारों ओर सुइयाँ खड़ी कर दो लोहे की। तो जिस सुई में जितना अधिक शुद्धत्व होगा, वो उतनी जल्दी खिंचेगी और जिसमें जितनी गन्दगी होगी, मिलावट होगी, उतनी देर में खिंचेगी।
जितना अधिक पाप का हृदय होगा उतनी देर में वो खिंचेगा भगवान और महापुरुष के सामने। तो अंतःकरण की शुद्धि का यही प्रमाण है कि शुद्ध वस्तु को पाकर खिंच जाय। जितनी जल्दी खिंच जाय, जितने परसेंट सरेंडर हो जाय, वो ही उसका प्रमाण है कि हमारा हृदय कितना शुद्ध है, कितना पापात्मा है, गन्दा है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
भारत में ऐसा ही एक शिव मंदिर है जहा लोग फूल और दूध के साथ-साथ, झाड़ू भी भगवान शिव को समर्पित करते हैं।
पातालेश्वर मंदिर, एक छोटे से गांव सदत्बदी जो मुरादाबाद और आगरा राजमार्ग पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है यहां के लोगों का मानना है कि अगर भगवान शिव को झाड़ू चढ़ाई जाये तो व्यक्ति के सभी प्रकार के त्वचा के रोग ठीक हो जाते है। सदियों पुराने इस मंदिर में वह लोग अधिक आते है जो त्वचा के रोगों से ग्रस्त है। सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ दिन माना जाता है इस लिए सोमवार को यहां भारी भीड़ दर्शन करने आती है।मंदिर की क्या है मान्यताइस प्राचीन शिव पातालेश्वर मंदिर में श्रद्धालु अपने त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने और मनोकामना पूर्ण करने के लिए झाड़ू चढ़ाते हैं। आसपास के लोग बताते हैं कि यह मंदिर करीब 150 वर्ष पुराना है। इसमें झाड़ू चढ़ाने की रस्म प्राचीन काल से ही है। इस शिव मंदिर में कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिवलिंग है, जिस पर श्रद्धालु झाड़ू अर्पित करते हैं। सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। धारणा है कि इस मंदिर की चमत्कारी शक्तियों से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है।इस चमत्कार के पीछे एक कहानी बताई जाती है कि गांव में कभी एक भिखारीदास नाम का एक व्यापारी रहता था, जो गांव का सबसे धनी व्यक्ति था और वह त्वचा रोग से ग्रसित था। उसके शरीर पर काले धब्बे पड़ गये थे, जिनसे उसे पीड़ा होती थी। एक दिन वह निकट के गांव के एक वैद्य से उपचार कराने जा रहा था कि रास्ते में उसे जोर की प्यास लगी। तभी उसे एक आश्रम दिखाई पड़ा। जैसे ही भिखारीदास पानी पीने के लिए आश्रम के अंदर गया वैसे ही आश्रम की सफाई कर रहे महंत के झाड़ू से उसके शरीर का स्पर्श हो गया। झाड़ू के स्पर्श होने के क्षण भर के अंदर ही भिखारीदास का दर्द ठीक हो गया। जब भिखारीदास ने महंत से चमत्कार के बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह भगवान शिव का प्रबल भक्त है। यह चमत्कार उन्हीं की वजह से हुआ है। भिखारीदास ने महंत से कहा कि उसे ठीक करने के बदले में सोने की अशर्फियों से भरी थैली स्वीकार करे। किन्तु महंत ने अशर्फी लेने से इंकार करते हुए कहा कि वास्तव में अगर वह कुछ लौटाना चाहते हैं तो आश्रम के स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दें। कुछ समय बाद भिखारीदास ने वहां पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दिया। धीरे-धीरे मान्यता हो गई कि इस मंदिर में दर्शन कर झाड़ू चढ़ाने से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 204
साधक का प्रश्न ::: हम श्री राम की उपासना करते हैं। श्री कृष्ण की उपासना से इष्ट तो नहीं बदल जाएंगे?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: कुछ लोग कहते हैं कि हम राम के उपासक हैं। श्रीकृष्ण की उपासना तो करना चाहते हैं, इष्ट बदल जाने का भय है। बड़े ही खेद की बात है कि वे लोग इतना भी नहीं समझते कि एक ही पति को कई पोशाक में देखना, स्त्री के लिये पाप या व्यभिचार तो नहीं सिद्ध होता।
देखो, भगवान शंकर से बड़ा कौन राम-भक्त होगा, जो कृष्णावतार में अवतार होते ही नन्द जी के द्वार पर श्रीकृष्ण के दर्शनार्थ आ धमके, तथा महारास में भी पहुँच गये। इतना ही नहीं, रामावतार के समस्त परिकर कृष्णावतार में आये थे। उदाहरणार्थ; लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, क्रमशः बलराम, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध बनकर तथा सीताजी राधा बन कर, हनुमान जी युद्ध के समय पताका में ही रहकर, जाम्बवंत ने श्रीकृष्ण से घोर युद्ध कर, जनकपुर की स्त्रियाँ गोपी बनकर एवं शूर्पणखा कुब्जा बन कर, रावण भी शिशुपाल बनकर, इत्यादि समस्त रामावतार के परिकर कृष्णावतार में अवतरित हुये थे।
किन्तु यह बात अवश्य है कि कृष्णावतार की प्रेम-लीलायें विशेष मधुर हैं, जिसे रामावतार में राम से ही लोगों ने मांगी थी, अतएव, वह कृष्ण प्रेम-लीला सिद्धांततः राम-लीला ही है।
फिर भी साधक की स्वेच्छा पर निर्भर है। राम की त्रेतावतार की, अथवा राम की ही द्वापरावतार की, जिस अवतार की भी लीला, साधक को प्रिय हो, उसी का अवलंबन कर ले। उसके मस्तिष्क का कीड़ा (इष्ट बदलने वाल कीड़ा) आगे चल कर अपने आप झड़ जायगा। जिसको गहरी प्रेम-मदिरा छाननी हो, उसे कृष्णावतार की ही रामलीला का अवलंबन ग्रहण करना होगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - सोते वक्त सपने तो हम सभी देखते हैं लेकिन कई बार हमें सुबह उठने के बाद भी अपने सपने याद रहते हैं तो कई बार हम उन्हें भूल चुके होते हैं. कुछ सपने बेहद अजीब होते हैं जिनका हमें लगता है कि हमारे जीवन से कोई लेना देना नहीं है. कुछ सपने अच्छे होते हैं तो वहीं कुछ सपने बुरे जो हमें नींद में भी डरा देते हैं. स्वप्न शास्त्र की मानें तो हर सपने का एक मतलब होता है और वे आने वाले समय में शुभ और अशुभ घटनाओं का संकेत भी देते हैं. आज हम आपको ऐसे सपनों के बारे में बता रहे हैं जिनसे आपको धन लाभ हो सकता है. जी हां, सपने में कुछ विशेष चीजों के दिखने का मतलब है कि माता लक्ष्मी आप पर मेहरबान होने वाली हैं और आपका भाग्य खुलने वाला है.सपने में पैसा दिखनास्वप्न शास्त्र के साथ ही ज्योतिष शास्त्र में भी सपने में पैसा दिखना बेहद शुभ माना जाता है. अगर कोई व्यक्ति सपने में पैसा देखता है, दूसरों से पैसा लेते हुए दिखता है, सपने में कागज के नोट देखता है या फिर सिक्के देखता है तो इसका मतलब है कि आने वाले समय में उसे निश्चित तौर पर धन लाभ होने वाला है और बिना ज्यादा मेहनत किए ही उसे बहुत सारा पैसा मिलने वाला है.सपने में फूल का दिखनास्वप्न शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र की मानें तो अगर किसी व्यक्ति को सपने में सफेद या लाल रंग के कमल का फूल दिखता है तो इसका मतलब है कि उसे आने वाले दिनों में धन लाभ होने वाला है. इसके अलावा चमेली, गुलमोहर, केतकी या केसर का फूल भी अगर सपने में दिखाई तो यह इस बात का संकेत है कि भविष्य में व्यक्ति को धन-संपत्ति की प्राप्ति होने वाली है.सपने में पशुओं का दिखनाअगर किसी व्यक्ति को सपने में सफेद गाय, सफेद सांप, सफेद घोड़ा, हाथी, कस्तूरी मृग, बैल या बिच्छू आदि दिखे तो इसे भी धन आगमन का संकेत माना जाता है. सपने में इन पशुओं के दिखने का मतलब है कि भाग्य आपका पूरा साथ देने वाला है और आपको अचानक से किसी माध्यम से खूब सारा पैसा मिलने वाला है.सपने में मिट्टी के बर्तन दिखनासपनों का अर्थ समझाने वाले स्वप्न शास्त्रियों की मानें तो अगर किसी व्यक्ति को मिट्टी का बर्तन, कलश, पानी से भरा घड़ा या कोई और खाली बर्तन नजर आए तो इसे बेहद शुभ और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. ऐसा सपना ये संकेत देता है कि उस व्यक्ति को शीघ्र ही अपार धन संपत्ति मिलने वाली है और भूमि का लाभ होने वाला है.सपने में फलों को दिखनाअगर किसी व्यक्ति को सपने में फलों से लदा हुआ कोई पेड़ दिखे, आम का बगीचा दिखे, आंवला, अनार, सेब, नारियल आदि फल दिखें या फिर हाथों से फल टपकता हुआ दिखे तो यह भी धन प्राप्ति का संकेत हो सकता है. सपने में फलों को देखने का मतलब है कि आप जल्द ही अमीर बनने वाले हैं और अचानक कहीं से धन लाभ हो सकता है.
- आपने इस बात पर जरूर गौर किया होगा कि जब भी हम मंदिर जाते हैं तो ईश्वर का दर्शन करने के बाद मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं. प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा करना. सिर्फ मंदिर के ही नहीं बल्कि कई लोग पवित्र वृक्ष के चारों ओर भी परिक्रमा करते हैं, कई लोग यज्ञशाला की परिक्रमा करते हैं और मंदिरों के साथ ही गुरुद्वारे में भी कई लोग पवित्र ग्रंथ के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और परिक्रमा करते हैं. इसके अलावा सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भी कई लोग परिक्रमा करते हैं. आपने भी मंदिर में कभी न कभी ऐसा जरूर किया होगा लेकिन शायद ऐसा करने के पीछे वजह क्या है, इस पर गौर नहीं किया होगा.परिक्रमा से प्राप्त होती है सकारात्मक ऊर्जा-------धर्म शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी मंदिर, भगवान की मूर्ति या शक्ति स्थान के चारों ओर चक्कर लगाकर परिक्रमा करता है तो इससे सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती है. इससे न सिर्फ उस व्यक्ति के जीवन में शुभता आती है बल्कि वह सकारात्मक ऊर्जा उसके साथ ही उस व्यक्ति के घर में भी प्रवेश करती है जिससे घर में सुख-शांति आती है. इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब गणेश जी और कार्तिकेय के बीच संसार का चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा हुई तब गणेश जी ने शिवजी और माता पार्वती की 3 बार परिक्रमा की थी. इसी वजह से आम श्रद्धालु भी मंदिर में पूजा के बाद सृष्टि के निर्माता की परिक्रमा करते हैं. साथ ही मंदिर या किसी शक्ति स्थान की परिक्रमा करने से मन शांत होता है और जीवन में खुशियां आती हैं.इस दिशा में परिक्रमा लगानी चाहिए------अगर आप मंदिर या किसी शक्ति स्थान की सकारात्मक ऊर्जा को बेहतर तरीके से ग्रहण करना चाहते हैं तो आपको घड़ी की सुई की दिशा में (Clockwise) नंगे पांव परिक्रमा लगानी चाहिए. अगर परिक्रमा करते वक्त आपके कपड़े गीले हों तो इससे आपको और अधिक लाभ हो सकता है. कई मंदिरों में आपने लोगों को जलकुंड में स्नान करने के बाद गीले कपड़ों में ही मंदिर की परिक्रमा करते देखा होगा. इसका कारण ये है कि ऐसा करने से उस पवित्र स्थान की ऊर्जा को अच्छे तरीके से ग्रहण किया जा सकता है.कितनी बार करनी चाहिए परिक्रमा------ देवी मां के मंदिर की 1 परिक्रमा करनी चाहिए- भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की 4 परिक्रमा करनी चाहिए- गणेश जी और हनुमान जी की 3 परिक्रमा करनी चाहिए- शिवजी की आधी परिक्रमा करनी चाहिए क्योंकि शिवजी पर किए गए अभिषेक की धारा को लाघंना शुभ नहीं होता- पीपल के पेड़ की 11 या 21 परिक्रमा करनी चाहिए
- वास्तु शास्त्र में बहुत सारी ऐसी चीजों के बारें में बताया गया है जिनका अगर सही प्रकार से प्रयोग किया जाए तो आप कई समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। दर्पण और घंटी ये तीन ऐसी चीजें हैं जिनका प्रयोग वास्तु के अनुसार करके आप न केवल वास्तु दोष बल्कि कई समस्याओं से छुटकारा पाकर अपने जीवन को खुशहाल और संपन्न बना सकते हैं। तो चलिए जानते हैं दर्पण और घंटी के अनोखे प्रयोग जो बदल सकते हैं आपकी किस्मत...वास्तु दोष दूर करने के लिए दर्पण का प्रयोगदर्पण केवल चेहरा देखने के काम ही नहीं आता है, वास्तु के हिसाब से इसका प्रयोग करके आप सुख-समृद्धि पा सकते हैं। यदि आपके घर का उत्तर-पूर्व कोना कटा हुआ है जिसके कारण वास्तु दोष उत्पन्न हो रहा है तो उस दिशा में दर्पण को इस प्रकार से लगाएं कि उसमें उस कोने का प्रतिबिंब इस तरह से बने की दिशा बढ़ती हुई नजर आए। इससे उस दिशा का वास्तु दोष दूर हो जाता है।वहीं मुख्य द्वार के सामने यदि कोई खंभा, पेड़, किसी मकान का कोना, कूड़, खंडहर हो तो आपको धन संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा होने से घर में तरक्की और धन के आगमन में बाधा आती हैं इस समस्या को दूर करने के लिए मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर एक गोल दर्पण लगा दें। इससे घर के अंदर प्रवेश करने वाली नकारात्मक ऊर्जा दर्पण से टकराकर वापस चली जाती है। ऐसा करने से घर में धन की समस्याएं दूर होती हैं।घंटी का ऐसे करें प्रयोगघर में पूजा करते समय और मंदिर में घंटी अवश्य बजाई जाती है। जिससे वातावरण में चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है। प्रतिदिन प्रात:काल उठकर स्नान करने के पश्चात पूजा स्थान के साथ पूरे घर और मुख्य द्वार पर घंटी बजानी चाहिए। इससे आपके घर से सभी नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं।यदि आपके घर में तीन दरवाजे एक ही सीध में बने हो तो वास्तु दोष उत्पन्न होता है। इसे दूर करने के लिए दरवाजे में एक छोटी सी घंटी लटका दें। इसी तरह से यदि आपका बच्चा पढ़ाई में कमजोर है तो जब भी आपका बच्चा पढ़ाई करने के लिए बैठे तो उसकी टेबल के पास कुछ देर तक घंटी से ध्वनि करें। इससे उस स्थान की नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी और आपके बच्चे का मन पढ़ाई के प्रति एकाग्र होगा।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 203
साधक का प्रश्न ::: क्या अजामिल को अपने बेटे का नाम नारायण कहकर मरने से भगवत्प्राप्ति हुई ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: कोई जीव भगवान का ध्यान करते हुये या नाम लेते हुये मरता है तो उसे भगवत्प्राप्ति होती है। उसमें ध्यान मुख्य है।
(1) उपरोक्त सिद्धान्त के अनुसार अजामिल को भगवत्प्राप्तिनहीं हो सकती क्योंकि उसने अपने बेटे का नाम लिया व बेटे का ही स्मरण किया।
(2) कोई भी जीव जिसने भगवत्प्राप्ति नहीं की है वो मरने के अंतिम समय में भगवान का नाम नहीं ले सकता है क्योंकि मरने में इतना अधिक कष्ट होता है कि वह नाम आदि ले ही नहीं सकता है। उदाहरणार्थ जब एक व्यक्ति को लाठी मारी जाती है, तब वह पहली लाठी बर्दाश्त कर लेता है। दूसरी लाठी लगने पर उसे चक्कर आने लगता है तथा तीसरी लाठी लगने पर वह बेहोश हो जाता है। मतलब जैसे-जैसे उसका कष्ट बढ़ता जाता है वह कष्ट सहने की सीमा समाप्त होकर बेहोश हो जाता है, यानी बेहोश होने से पूर्व तक जीव कष्ट सहन करने की शक्ति रखता है। अब जब कष्ट नहीं सह सका तब वह बेहोश हो जाता है, मरता नहीं। लेकिन जब पाँच-छः लाठी पड़ी तब वह सातवीं लाठी में मर गया। अर्थात यह सिद्ध हुआ कि मृत्यु के समय बेहोशी में ही नहीं बोल सकता तो मृत्यु समय किस प्रकार से भगवान या संसार का नाम उच्चारण कर सकता है। इसलिए गोस्वामी तुलसीदास ने बालि के प्रकरण में बालि के मुख से कहलाया है;
कोटि कोटि मुनि जतन कराहीं।अंत राम कहि आवत नाहीं॥यहाँ तुलसीदास जी ने मुनि के लिए लिखा है जो अपनी मन-बुद्धि पर पूर्ण कंट्रोल कर चुके होते हैं। सभी प्रकार की सिद्धियों का अधिकार होता है और माया उन पर हावी नहीं हो पाती, परन्तु भगवत्प्राप्ति नहीं हुई होती है। ऐसे लोग भी करोड़ों प्रयत्न करके भी अंत समय में भगवान का नाम नहीं ले पाते, तब कोई साधारण जीव किस प्रकार से अंत समय में भगवन का नाम ले सकता है?
हाँ केवल मृत्यु से पहले जिसको भगवत्प्राप्ति हो जाती है, वह जीव कष्ट का अनुभव नहीं करता एवं वह अपने शरीर को इच्छानुसार छोड़ता है। इसलिए वह भगवान का नाम अंत समय में ले सकता है। अजामिल को पूर्व में भगवत्प्राप्ति नहीं हुई थी। अतः वह अंत समय में भगवान का नाम तो क्या अपने बेटे का नाम भी नहीं ले सका होगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
वास्तु शास्त्र के अनुसार हर चीज का एक निर्धारित स्थान तय है। यदि इस बात का ध्यान न रखा जाए तो घर का वातावरण प्रभावित होता है. जानकारी के अभाव में हम समझ ही नहीं पाते हैं कि आखिर समस्या कहां से आ रही है. इसलिए इन बातों को ध्यान में रखना बहुत ही जरूरी है.
घर में शू रैक कभी भी मुख्य दरवाजे के पास नहीं होनी चाहिए. इससे नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है. इतना ही नहीं इससे धन की हानि भी होती है. धन संबंधी परेशनी घर में बनी ही रहती है. धन का व्यय होता है. यानि चाहकर भी धन की बचत नहीं होती है. वास्तु शास्त्र के अनुसार शू रैक घर में ऐसे स्थान पर होनी चाहिए जहां पर आने जाने वालों की नजर न पड़े.
शू रैक की दिशा के बारे में वास्तुशास्त्र में बताया गया है. इसके अनुसार आप भी घर में शू रैक का उचित स्थान निर्धारित कर सकते हैं. वास्तु शास्त्र के मुताबिक दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, उत्तर-पश्चिम या फिर पश्चिम दिशा जूता-चप्पलों के लिए अच्छी मानी गई है. शू रैक को हमेशा कवर से ढक कर रखें. शू रैक खुली होने से भी गलत परिणाम सामने आते हैं. इसलिए इसे ढक कर रखने की सलाह दी जाती है.
जॉब या इंटरव्यू के लिए बाहर जा रहे हैं तो कोशिश करें कि जूता नया हो. फटा जूता पहन कर जाने से गलत प्रभाव पड़ता है. इसके साथ ही ऑफिस में काले रंग के जूते पहने की भी जानकार सलाह देते हैं. ऐसा माना जाता है कि भूरे रंग के जूते पहनने से कार्यों को पूर्ण करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही स्वयं के जूतों और चप्पलों को इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए, ऐसा करने छिपे हुए शत्रु हावी होने की कोशिश करते हैं। - श्वेत हाथियों के द्वारा स्वर्ण कलश से स्नान करती हूई कमलासन पर विराजमान देवी महालक्ष्मी के पूजन से वैभव और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यदि घर में हमेशा दरिद्रता बनी रहती है और किस्मत साथ नहीं दे रही है तो अपने घर या ऑफिस में श्री महालक्ष्मी यंत्र की स्थापना करनी चाहिए। इस यंत्र को सर्व सिद्धिदाता, धनदाता या श्रीदाता कहा जाता है। मान्यता है कि इस यंत्र को स्थापित करने से देवी कमला की प्राप्ति होती है और जीवनभर के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती हैं।वहीं इस यंत्र से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है, जिसके अनुसार एक बार लक्ष्मी जी पृथ्वी से बैकुंठ धाम चली गईं, इससे पृथ्वी पर संकट आ गया। तब महर्षि वशिष्ठ ने महालक्ष्मी को धरती पर वापस लाने के लिए और प्राणियों के कल्याण के लिए श्री महालक्ष्मी यंत्र को स्थापित किया और उसकी साधना की। इस यंत्र की साधना से लक्ष्मी जी पृथ्वी पर प्रकट हो गईं।महालक्ष्मी यंत्र के लाभ-धन संबंधी सारी समस्याओं से निजात पाने के लिए आपको श्री महालक्ष्मी यंत्र को स्थापित करना चाहिए।-यदि आप पर कर्ज है और आप उसे चुका नहीं पा रहे हैं तो आपको अपने कार्यस्थल पर इस यंत्र को प्रतिष्ठित करना चाहिए।-धन के साथ -साथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निजात पाने के लिए भी आप इस यंत्र को रोगी के कमरे में स्थापित कर सकते है। इससे मरीज के स्वास्थ्य में जल्द ही सुधार होने लगता हैं।-इस यंत्र को स्थापित करने से यदि आपके व्यापार में घाटा हो रहा है तो खत्म होने के आसार हैं।-श्री महालक्ष्मी यंत्र को प्रतिष्ठित करने से लक्ष्मी मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वह स्थाईरूप से निवास करने लगती हैं।ध्यान रखने योग्य बातेंश्री महालक्ष्मी यंत्र को दीपावली, धनतेरस, रविपुष्य, अभिजीत मुहूर्त या किसी शुभ मुहूर्त में स्थापित करना चाहिए। इस यंत्र की आकृति विचित्र होती हैं और इस यंत्र में जो भी अंक या आकृतियां बनी होती हैं उनका संबंध किसी न किसी देवी-देवता से जरूर होता है। इस यंत्र को श्रीयंत्र के पास रखने से सभी कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाते हैं। इस यंत्र को खरीदते वक्त ध्यान रखना चाहिए कि यह विधिवत बनाया गया हो और प्राण प्रतिष्ठित हो। प्राण प्रतिष्ठा करवाए बिना इस यंत्र का विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता है। श्री महालक्ष्मी यंत्र को खरीदने के पश्चात किसी अनुभवी ज्योतिषी द्वारा अभिमंत्रित करके उसे घर की सही दिशा में स्थापित करना चाहिए। अभ्यस्त और सक्रिय महालक्ष्मी यंत्र को शुक्रवार के दिन स्थापित करना चाहिए।स्थापना विधिश्री महालक्ष्मी यंत्र को स्थापित करने के लिए कार्तिक अमावस्य़ा का दिन शुभ माना जाता है। यंत्र स्थापना से पूर्व सबसे पहले प्रातकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर इस यंत्र को पूजन स्थल पर रखकर इस यंत्र के आगे दीपक जलाएं और इस पर फूल अर्पित करें। तत्पश्चात इस यंत्र को गौमूत्र, गंगाजल और कच्चे दूध से शुद्ध करें और 11 या 21 बार "ऊं ह्रीं ह्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीं फट्।।" बीज मंत्र का जाप करें। उसके बाद इस यंत्र को स्थापित करने के बाद इसे नियमित रूप से धोकर दीप-धूप जलाकर ऊं महालक्ष्मयै नम: मंत्र का 11 बार जाप करें और लक्ष्मी माता से प्रार्थना करे वह आप पर कृपा बरसाती रहें। इस यंत्र को स्थापित करने के पश्चात इसे नियमित रूप से धोकर इसकी पूजा करें ताकि इसका प्रभाव कम ना हो। यदि आप इस यंत्र को बटुए या गले में धारण करते हैं तो स्नानादि के बाद अपने हाथ में यंत्र को लेकर उपरोक्त विधिपूर्वक इसका पूजन करें। यदि आप इस यंत्र से अत्यधिक फल प्राप्त करना चाहते हैं तो महालक्ष्मी यंत्र की रचना चांदी, सोने और तांबे के पत्र पर करवा सकते हैं।श्री महालत्र्मी यंत्र का बीज मंत्र - ओम श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ओम श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 202
साधक का प्रश्न ::: आप कहते हैं, भगवद्चिंतन करो। जब तक आपकी कृपा न हो तो चिंतन कैसे हो ? हम तो बड़ी कोशिश करते हैं लेकिन होता नहीं।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: अगर भगवान या महापुरुष कृपा कर दें कि सबका भगवद्चिंतन होने लगे, तो ये संसार ही क्यों रहता!! किसी को कुछ करने के लिए वेद-पुराण आदेश क्यों देते कि तुम ऐसा करो, ऐसा करो, ऐसा न करो। भगवान ही सोच लेते, कृपा कर देते तो सब जीवों का कल्याणा हो जाता। और संत भी अनंत हुये हैं - तुलसी, सूर, मीरा, कबीर, नानक, तुकाराम; ये लोग कृपा क्यों नहीं कर दिये कि हम सब लोगों का कल्याण हो जाता!!
उनकी कृपा यही है कि हमको सही मार्ग बता दें। उसके बाद उस पर चलना, ये कृपा हम लोगों को करनी पड़ेगी। ये कृपा भगवान और महापुरुष नहीं करेंगे। उनके पास और है क्या, कृपा के सिवा। वो तो कृपा ही करते है, उनकी कृपा को रियलाइज़ करना ये हमारा काम है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
वास्तु के अनुसार घर में चीजों का सही प्रकार से व्यवस्थित रूप से रखा होना बहुत आवश्यक माना जाता है। घर को व्यवस्थित रखने से देखने में तो अच्छा लगता ही है, इसके अलावा घर में सकारात्मकता भी बनी रहती है। वास्तु के अनुसार आवश्यकता से अधिक फालतू और खराब सामान घर में नकारात्मकता को बढ़ाता है। वास्तु में ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में बताया गया है, जिन्हें घर में रखना बहुत ही अशुभ माना जाता है। इन चीजों के आपके घर में होने से परिवार के सदस्यों की तरक्की और समृद्धि में बाधा आती है। तो चलिए जानते हैं कि वास्तु के अनुसार किन चीजों को घर में नहीं रखना चाहिए।
बंद पड़ी हुई घडिय़ां-
घड़ी हमें समय बताती है और निरंतर चलती रहती है। चूंकि घड़ी समय की सूचक है इसलिए वास्तु में घड़ी को तरक्की और उन्नति का सूचक माना गया है। जहां सही घड़ी आपको जीवन में आगे ले जाती हैं। तो वहीं घर में बंद घडिय़ां आपकी तरक्की में बाधा बनती हैं। यही कारण है कि वास्तु में बंद पड़ी घडिय़ों को घर में रखने को मना किया जाता है। माना जाता है कि घर में बंद पड़ी हुई घडिय़ों के कारण आपका भाग्य भी खराब होने लगता है।बंद पड़े ताले-ज्यादातर लोग घर में ताले को बंद करके लटका देते हैं या फिर खराब हो जाने के बाद भी घर में ही रखे रहने देते हैं, लेकिन यह सही नहीं होता है। घर में बदं, खराब या जंग लगे हुआ ताले कभी नहीं रखने चाहिए। ये आपकी तरक्की में तो रूकावट लाते ही हैं साथ ही विवाह होने में भी दिक्कते आती हैं।आवश्यकता से अधिक जूते-चप्पल-जूते-चप्पल केवल आपके पैरों को धूप गर्मी और सर्दी से सुरक्षा नहीं करते हैं ये आपके जीवन में संघर्ष में भी साथ होते हैं। वास्तु के अनुसार घर में आवश्यकता से अधिक जूते-चप्पल या खराब पड़े हुए जूते-चप्पल आपके घर में नकारात्मकता को बढ़ाते हैं। खराब या फटे हुए जूते-चप्पलों के कारण आपके जीवन में संघर्ष बढ़ता है। यदि आपके घर में आवश्यकता से अधिक जूते हैं तो खराब जूतों को फेंक दें और उपयोग लायक जूतों को जरूरतमंदों को बांट दें। इस कार्य को करने के लिए शनिवार का दिन उत्तम रहता है।फटे-पुराने कपड़ेकपड़े किसी भी व्यक्ति की तरक्की में अहम भूमिका रखते हैं। कपड़ों का संबंध भाग्य से माना जाता है। घर में खराब फटे-पुराने कपड़े रखना सही नहीं रहता है। ये आपके दुर्भाग्य को बढ़ाते हैं। यदि घर में पुराने कपड़े हैं तो उन्हें बांट दें और खराब कपड़ों को किसी कार्य में उपयोग में ले लें तो ही बेहतर रहता है।देवी-देवताओं की पुरानी खंडित तस्वीरें और प्रतिमाएंघर या घर के मंदिर में ज्यादा पुरानी खंडित या कटी-फटी तस्वीरें नहीं रखनी चाहिए। इससे पूजा करते समय आपका ध्यान भटकता है, जिससे आप एकाग्र होकर भगवान की पूजा नहीं कर पाते हैं। खंडित मूर्तियां भी आपके घर में नकारात्मकता को बढ़ाती हैं। इससे आपकी समृद्धि में रूकावट आती है। समय-समय पर घर में रखी प्रतिमाओं को बदलते रहना चाहिए। पुरानी प्रतिमाओं को मिट्टी में दबा देनी चाहिए या फिर बहते जल में प्रवाहित कर देना चाहिए। यदि मूर्ति या तस्वीरों को बनाने में किसी प्रकार के रसायन का प्रयोग किया गया हो तो उसे नदी में न बहाएं। - हरिद्वार (उत्तराखंड) । हरिद्वार में कुंभ मेला अब 28 दिन का होगा। साधु संतों से बातचीत के बाद प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है। जल्द ही कुंभ मेले की अधिसूचना जारी हो जाएगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह जानकारी मीडिया को दी है।गुरुवार को मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कुंभ मेले के संबंध में स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) यानी मानक प्रचालन प्रक्रिया जारी की थी। उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार को कोविड-19 महामारी के संबंध में आदेश दिए थे। राज्य सरकार को कुंभ की अवधि सीमित करने के लिए कहा गया था। इस संबंध में साधु संतों से बातचीत करने के बाद यह निर्णय लिया गया है कि कुंभ एक अप्रैल से 28 अप्रैल तक होगा। इसकी अधिसूचना जारी हो जाएगी।इस साल 12 नहीं 11 साल में ही मनाया जा रहा कुंभहरिद्वार में इस बार कुंभ वैसे भी 11 साल के बाद हो रहा है। वैसे कुंभ 12 साल बाद होता है। अब से पहले हरिद्वार में आयोजित कुंभ चार माह से अधिक समय का होता रहा है।कुंभ 2021 के मुख्य स्नान11 मार्च पहला शाही स्नान12 अप्रैल सोमवती अमावस्या14 अप्रैल मेष संक्रांति27 अप्रैल वैशाख पूर्णिमा- तीनों बैरागी अणियों दिगंबर, निर्मोही और निर्वाणी के हजारों बाबाओं, खालसों का आगमन 25 मार्च से शुरू हो जाएगा।बच्चों और महिलाओं के लिए खुलेगा सहायता केंद्रहरिद्वार में महाकुंभ के दौरान बच्चों और महिलाओं की सहायता के लिए सहायता केंद्र बनाए जाएंगे। महिला कल्याण विभाग के जिला प्रोबेशन अधिकारी ने बृहस्पतिवार को सीसीआर भवन में मेलाधिकारी दीपक रावत से मुलाकात की। सहायता केंद्र के लिए स्थान उपलब्ध कराने की मांग की।अधिकारियों ने बताया कि सहायता केंद्र की प्रमुख अवधारणा चाइल्ड फ्रेंडली, जीरो चाइल्ड मिसिंग, जीरो चाइल्ड लेबर, महिला फ्रेंडली है। केंद्र में छह वर्ष तक के बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था रहेगी। यदि कोई महिला गंगा में स्नान करना चाहती है तो अपने छह साल तक के बच्चे को केंद्र में रख सकती है। उसके बच्चे की पूरी देखरेख एवं पौष्टिक भोजन की व्यवस्था केंद्र की होगी। केंद्र में कन्नड़, मलयालम, गुजराती समेत कई भाषाओं को जानने वाले स्वयंसेवक होंगे।यह लोग बच्चों और महिलाओं से उनकी ही भाषा में बातचीत कर उनकी समस्याओं का समाधान भी करेंगे। मेलाधिकारी ने केंद्र स्थापित करने के लिए स्थान और फर्नीचर समेत अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। इस दौरान अपर मेलाधिकारी रामजी शरण शर्मा, महिला कल्याण विभाग के जिला प्रोबेशन अधिकारी अविनाश सिंह भदौरिया, महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की जिला कार्यक्रम समन्वयक दुर्गा चमोली आदि मौजूद रहे।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 201
(साधक अपनी साधना की उन्नति के लिये जो प्रयत्न करता है, उसे कुसंग की अग्नि भस्म कर देती है. समस्त कुसंगों में परदोष-दर्शन भयानक है, क्यों और साधक क्या करे, जानिये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीवचनों से...)
परदोष-दर्शन भी घोर कुसंग है, क्योंकि परदोष-दर्शन से दो हानि है। एक तो यह कि परदोष-दर्शनकाल ही में स्वाभाविक-रूप से स्वाभिमान-वृद्धि होती है, जो कि साधक के लिये तत्क्षण ही पतन का कारण बन जाती है। दूसरे यह कि परदोष-चिन्तन करते हुये शनैःशनैः बुद्धि भी दोषमय हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हीं सदोष विषयों में ही प्रवृत्ति होने लगती है, अतएव सदोष कार्य होने लगता है।
फिर जब संसारमात्र ही सदोष है, तो हम कहाँ तक दोषचिन्तन करेंगे? आश्चर्य तो यह है कि मूर्ख, मूर्ख को, मूर्ख क्यों कहता है? वह भी तो स्वयं मूर्ख है। यदि यह कहो कि क्या करें, दोष-दर्शन का स्वभाव सा बन गया है, तो हमें कोई आपत्ति नहीं, तुम दोष देख सकते हो, किन्तु दूसरों के नहीं, अपने ही दोष क्या कम हैं? अपने दोषों को देखने में तुम्हारा स्वभाव भी न नष्ट होगा, तथा साथ लाभ भी होगा, वह महान् लाभ तुलसी के शब्दों में;
जाने ते छीजहिं कछु पापी..
अर्थात् अपने दोष जान लेने पर कुछ न कुछ बचाव हो जाता है, क्योंकि फिर वह जीव उससे बचने का कुछ न कुछ अवश्य प्रयत्न करता है। मेरी राय में तो परदोष-चिन्तन करना ही स्वयं के सदोष होने का पक्का प्रमाण है, अन्यथा भला उसको इन बातों से क्या अभिप्राय है?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - गुप्त नवरात्रि हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होता है। गुप्त नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की सात्विक और तांत्रिक विधि से पूजा-अर्चना की जाती है। माघ गुप्त नवरात्रि 12 फरवरी (शुक्रवार) से शुरू हो चुके हैं जो 21 फरवरी समाप्त होगी। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, गुप्त नवरात्र साल में दो बार आते हैं। पहले गुप्त नवरात्र अषाढ़ के महीने में और दूसरे माघ के महीने में। गुप्त नवरात्रि के दौरान गुप्त रूप से मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। गुप्त नवरात्रि के पीछे यह विचार प्रचलित है कि इस दौरान मां दुर्गा की गुप्त रूप से पूजा की जाती है। ऐसा करने से पूजा का फल कई गुना ज्यादा मिलता है।गुप्त नवरात्रि के दौरान करें ये उपाय-1. गुप्त नवरात्रि में मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा के दौरान कमल का फूल चढ़ाएं। अगर आपके पास कमल का फूल नहीं है तो गुप्त नवरात्रि में अपने घर कमल के फूल वाली कोई तस्वीर भी लगा सकते हैं। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।2. गुप्त नवरात्रि में धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए चांदी या सोने का सिक्का घर पर लाने से बरकत आती है। मान्यता है कि मां लक्ष्मी प्रसन्?न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।3. अगर आपके घर में कोई व्यक्ति काफी समय से बीमार है तो गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को लाल रंग के पुष्प अर्पित करें। इसके साथ ही ऊं क्रीं कालिकायै नम:, मंत्र का जप करें। कहते हैं कि ऐसा करने मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।4. गुप्त नवरात्रि के दौरान कर्ज से भी मुक्ति पा सकते हैं। गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के समक्ष गुग्गल की सुगंध वाली धूप जलाएं। कहते हैं कि ऐसा करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है।5. नवरात्र में मोरपंख को घर में लाना भी बहुत शुभ माना जाता है। मां लक्ष्मी की सवारी में से एक मोर भी होता है। मोर पंख को घर पर लाने से आपके घर में मां लक्ष्मी की कृपा भी आती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 200
(प्रेम के अर्थ और स्वरूप की व्याख्या आचार्य श्री की वाणी में यहाँ से पढ़ें....)
प्रेम... प्रेम शब्द का अर्थ होता है;
सर्वथा ध्वंसरहितम् सत्यपि ध्वंस कारणे।यद्भवावबन्धनं यूनोः सः प्रेमा परिकीर्तितः॥(भक्तिरसामृतसिन्धु)
ये परिभाषा भक्तिरसामृतसिन्धु में महारासिकों ने की है कि प्रेम के नष्ट होने का कारण हो फिर भी प्रेम नष्ट न हो, उसको प्रेम कहते हैं। हमारे संसार में जितना प्रेम है ये स्वार्थ पर डिपेंड करता है। हमारे स्वार्थ की सिद्धि जितनी लिमिट में, जहाँ होने की आशा होती है उतनी लिमिट में वहाँ मन का प्यार हो जाता है। नैचुरल।
अगर हमें आशा है सेंट परसेंट स्वार्थ सिद्ध होगा तो सेंट परसेंट प्रेम ले लो और अगर दूसरे दिन फिफ्टी परसेंट आशा रह गई, तो प्रेम घट के फिफ्टी परसेंट हो गया। तीसरे दिन अगर ऐसा आभास हुआ कि यहाँ कुछ स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा तो प्रेम जीरो पर आ गया। ये माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति सबका प्यार इसी प्रकार अप-डाउन, अप-डाउन दिन भर होता रहता है।
तो संसार में प्रेम नहीं हो सकता। क्योंकि वो स्वार्थ पर आधारित है और स्वार्थ तो परिवर्तनशील होता है। तो प्रेम की परिभाषा है कि प्रेम नष्ट होने का कारण हो और फिर भी प्रेम नष्ट न हो।
गौरांग महाप्रभु ने प्रेम की परिभाषा बताई, प्रैक्टिकल। उन्होंने कहा, हे श्रीकृष्ण!
आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टु मामदर्शनान्मर्महतां करोतु वा।यथा तथा व विदधातु लम्पटो मत्प्राणनाथस्तु स एव नापरः॥
हे श्रीकृष्ण! तुम तीन काम कर सकते हो; या तो मेरा आलिंगन कर के प्यार कर लो, या तो चक्र चला के मार दो और या न्यूट्रल हो जाओ, उदासीन हो जाओ। तुम कौन हो, हम पहचानते नहीं - ऐसे बन जाओ। हम तीनों में चैलेंज कर रहे हैं तुमको। इन तीनों में जिस अवस्था में सुख मिले वो करो। हमारे प्रेम में इन तीनों अवस्थाओं में कोई परिवर्तन नहीं होगा। वो बढ़ता जाएगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 199
(भाग्य सम्बन्धी शंकाओं पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा तत्वचर्चा..)
भगवान हमारे अनंत पुण्य व अनंत पापों में से थोड़ा-थोड़ा लेकर हमारे किसी एक जन्म का प्रारब्ध तैयार करते हैं और मानव जीवन के रूप में हमें एक अवसर देते हैं ताकि हम अपने आनंद प्राप्ति के परम चरम लक्ष्य को पा लें।
प्रारब्ध सबको भोगना पड़ता है। भगवद् प्राप्ति के बाद जब कोई जीव महापुरुष बन जाता है, तब भगवान उसके तमाम पिछले जन्मों के एवं उस जन्म के भी समस्त पाप-पुण्यों को तो भस्म कर देते हैं, लेकिन वे उसके उस जीवन के शेष बचे हुए प्रारब्ध में कोई छेड़छाड़ नहीं करते।
इसका अभिप्राय यह है कि भगवान को पा चुके मुक्त आत्मा संतों/भक्तों को भी अपना उस जन्म का पूरा प्रारब्ध भोगना ही पड़ता है।उसमें इतना अंतर अवश्य आ जाता है कि अब वह नित्य आनंद में लीन रहने से किसी सुख-दुःख की फ़ीलिंग नहीं करता। लेकिन फिर भी एक्टिंग में उसे सब भोगना पड़ता है। किसी के प्रारब्ध को मिटाना भगवान के कानून में नहीं है।
वे लोग बहुत भोले हैं, जो यह समझते हैं कि अमुक देवी जी, अमुक बाबा जी अपनी कृपा से मेरे कष्ट को दूर कर देंगे। या मुझे धन, वैभव, पुत्र आदि दे देंगे। जो प्रारब्ध में लिखा होगा, वह नित्य भगवान को गालियाँ देने से भी अवश्य मिलेगा। जो प्रारब्ध में नहीं लिखा होगा, वह दिन-रात पूजा पाठ करने से भी न मिलेगा।
भगवान की भक्ति करने से संसारी सामान नहीं मिला करता, जीव के प्रारब्धजन्य दुःख दूर नहीं होते, बल्कि भक्ति से तो स्वयं भगवान की ही प्राप्ति हुआ करती है। यह बात अलग है कि कोई मूर्ख अपनी भक्ति से भगवान को पा लेने पर भी वरदान के रूप में उनसे उन्हीं को न माँगकर संसार ही माँग बैठे। यहाँ यह बात भी विचारणीय है कि जिसको भगवान की प्राप्ति हो चुकी, उसके लिए प्रारब्ध के सुख-दुःख खिलवाड़ मात्र रह जाते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - सिर्फ खुशगवार मौसम, खेतों में लहराती फसलें व पेड़-पौधों में फूटती नई कोपलें ही वसंत या बसंत ऋतु की विशेषता नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति के उल्लास का, प्रेम के चरमोत्कर्ष का, ज्ञान के पदार्पण का, विद्या व संगीत की देवी के प्रति समर्पण का त्यौहार भी वसंत ऋतु में मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन जगत की नीरसता को खत्म करने व समस्त प्राणियों में विद्या व संगीत का संचार करने के लिए देवी सरस्वती पैदा हुई। इसलिए इस दिन शैक्षणिक व सांस्कृतिक संस्थानों में मां सरस्वती की विशेष रुप से पूजा की जाती है।हिंदू पंचांग में माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी कहा जाता है। माना जाता है कि विद्या, बुद्धि व ज्ञान की देवी सरस्वती का आविर्भाव इसी दिन हुआ था। इसलिए यह तिथि वागीश्वरी जयंती व श्री पंचमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। ऋग्वेद के 10/125 सूक्त में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन किया गया है। हिंदूओं के पौराणिक ग्रंथों में भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना गया है व हर नए काम की शुरुआत के लिए यह बहुत ही मंगलकारी माना जाता है।बसंत पंचमी पौराणिक कथामाना जाता है कि ब्रह्मा जी ने श्रृष्टि की रचना तो कर दी, लेकिन वे इसकी नीरसता को देखकर असंतुष्ट थे फिर उन्होंने अपने कमंडल से जल छिटका जिससे धरा हरी-भरी हो गई व साथ ही विद्या, बुद्धि, ज्ञान व संगीत की देवी प्रकट हुई। ब्रह्मा जी ने आदेश दिया कि इस श्रृष्टि में ज्ञान व संगीत का संचार कर जगत का उद्धार करो। तभी देवी ने वीणा के तार झंकृत किए जिससे सभी प्राणी बोलने लगे, नदियां कलकल कर बहने लगी हवा ने भी सन्नाटे को चीरता हुआ संगीत पैदा किया। तभी से बुद्धि व संगीत की देवी के रुप में सरस्वती पूजी जाने लगी।मान्यता है कि जब मां सरस्वती प्रकट हुई तो भगवान श्री कृष्ण को देखकर उन पर मोहित हो गई व भगवान श्री कृष्ण से पत्नी रुप में स्वीकारने का अनुरोध किया, लेकिन श्री कृष्ण ने राधा के प्रति समर्पण जताते हुए मां सरस्वती को वरदान दिया कि आज से माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी को समस्त विश्व तुम्हारी विद्या व ज्ञान की देवी के रुप में पूजा करेगा। उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले देवी सरस्वती की पूजा की तब से लेकर निरंतर बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा लोग करते आ रहे हैं।बसंत पंचमी के दिन को माता पिता अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा की शुरुआत के लिए शुभ मानते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार तो इस दिन बच्चे की जिह्वा पर शहद से ए बनाना चाहिए इससे बच्चा ज्ञानवान होता है व शिक्षा जल्दी ग्रहण करने लगता है। बच्चों को उच्चारण सिखाने के लिहाज से भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। 6 माह पूरे कर चुके बच्चों को अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है।चूंकि बसंत ऋतु प्रेम की रुत मानी जाती है और कामदेव अपने बाण इस ऋतु में चलाते हैं इस लिहाज से अपने परिवार के विस्तार के लिए भी यह ऋतु बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसलिए बसंत पंचमी को परिणय सूत्र में बंधने के लिए भी बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है व बहुत से युगल इस दिन अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत करते हैं।गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है।इस दिन कई लोग पीले वस्त्र धारण कर पतंगबाजी भी करते हैं।
- आज वसंत पंचमी बनाई जा रही है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इस दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, वसंत पंचमी के दिन कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए...-धार्मिक दृष्टि से वसंत पंचमी का पर्व बेहद ही महत्व है। यह पर्व ज्ञान और सुरों की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। इसलिए वसंत पंचमी के दिन बिना स्नान किए भोजन नहीं करना चाहिए, संभव हो तो इस दिन मां सरस्वती के लिए व्रत रखें।-वसंत पंचमी के दिन पीले रंग का विशेष महत्व है। यह रंग मां सरस्वती को प्रिय है। इसलिए इस दिन विद्या की देवी को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। वसंत पंचमी के दिन रंग-बिरंगे कपड़े नहीं पहनने चाहिए, बल्कि पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।-शास्त्रों के अनुसार, वसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। इस पावन दिन के अवसर पर प्रकृति में बसंत ऋतु का सुंदर और नवीन वातावरण छा जाता है। इसलिए आज के दिन पेड़ पौधों को भूलकर भी नहीं काटना चाहिए।-मां सरस्वती ज्ञान और विद्या की देवी हैं। इस कारण शास्त्रों में वसंत पंचमी को विद्यारंभ एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन किसी को अपशब्द नहीं बोलना चाहिए।-वसंत पंचमी के पावन दिन अपने मन में किसी व्यक्ति के लिए बुरे विचार न लाएं। बल्कि अपने मन में मां सरस्वती का ध्यान लगाएं। मां सरस्वती के ध्यान से आपको वीणा वादिनी का आशीर्वाद प्राप्त होगा।-ज्ञान के बिना व्यक्ति का जीवन अंधकारमय होता है और मां सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। इस दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा होती है। इसलिए इस दिन जातकों को सात्विक जीवन व्यतीत करना चाहिए और मांस-मदिरा के सेवन से दूर रहना चाहिए।-वसंत पंचमी के पावन दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 198
(जैसे प्राण के बिना शरीर का महत्व नहीं, साधना में रूपध्यान की ऐसी ही महत्त्वता पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा संक्षिप्त प्रकाश...)
अन्तरंग नियमों में सबसे प्रमुख है 'रूपध्यान'। ये तो आप लोगों को पता ही है कि साधना, 'ईश्वरीय साधना' केवल मन को करनी है। केवल मन को। इन्द्रियाँ इसलिये साथ लगा दी जाती हैं, वेद कहता है, इन्द्रियाँ बाहर की ओर ले जाने वाली है। ये स्वयं भू ब्रह्मा ने, इन्द्रियों को ऐसा बनाया है, जो बाहर की ओर जाती हैं, भागती हैं, नेचुरल। तमाम जन्मों का अभ्यास भी है। और फिर इन्द्रियाँ भी प्राकृत हैं, संसार भी प्राकृत है; इसलिये सजातीय होने के कारण स्वाभाविक आकर्षण संसार की ओर होता है। हम संसार देखते हैं, सुनते है, सूँघते है, रस लेते हैं, स्पर्श करते हैं, तो हमारा मन संसार की ओर तत्काल आकृष्ट हो जाता है। इसलिये हमको सबसे पहले ये सोचना है कि हम उपासक हैं, साधक हैं, श्रीकृष्ण के दास हैं। इसके बाद फिर सोचना है श्रीकृष्ण हमारे स्वामी हैं। राधाकृष्ण को हम पहले अपने सामने खड़ा करें। चाहे अपने अन्तःकरण में खड़ा करें। चाहे अपने सामने खड़ा करें, चाहे स्वयं को भाव देह बना करके, अपना सूक्ष्म शरीर बना करके, इस शरीर से निकल करके, और भगवान के लोक में चले जायें। जिसको जिस प्रकार की रुचि हो, अच्छा लगे, जैसा आपका हिसाब बैठ जाय, इस प्रकार से रूपध्यान करें; किन्तु बिना रूपध्यान के कोई भी साधना न करें।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधना नियम पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - आजकल लोग वास्तु शास्त्र को बहुत महत्व देने लगे हैं। घर बनवाते समय या ऑफिस बनवाते समय लोग वास्तु पर ध्यान जरूर है। इसके लिए कई बार लोग विशेषज्ञों की सलाह भी ले लेते हैं। यदि भवन का निर्माण वास्तु नियमों के अनुसार किसी कारण वश नहीं हो पाता या किसी तरह की कोई कमी रह जाती है तो यह मकान में रहने वालों गंभीर प्रभाव डालता है। इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए कुछ उपाय सुझाएं गए हैं। इन उपायों को करने से वास्तु दोष से बचा जा सकता है।हम आज कुछ ऐसे उपाय बता रहे हैं, जिसे अपनाकर आप अपने घर का वास्तु दोष दूर कर सकते हैं।1. चाहें आपके घर में कैसा भी दोष क्यों न हो उससे मुक्ति पाने के लिए आपको घर के मुख्य द्वार पर रोली से स्वास्तिक बना देना चाहिए। यह चिन्ह सौभाग्य लाता है। वहीं, शाम के समय घर की दहलीज पर नियम से दीपक जलाना चाहिए।2. घर के मुख्य द्वार पर सूरजमुखी के फूलों की फोटो लगानी चाहिए। इससे व्यक्ति के जीवन में मौजूद नेगिटिविटी खत्म हो जाती है। साथ ही सुख-समृद्धि का वास भी होता है। घर का जो कोण नैऋत्य हो उसे कभी भी अंधकार में नहीं रखना चाहिए।3. शाम के समय घर के वायव्य दिशा में रोशनी कर देनी चाहिए। यह उत्तर और पश्चिम के बीच की दिशा होती है। इस दिशा का तत्व वायु होता है। यहां पर शाम के समय रोशनी रखनी चाहिए। इससे घर का नकारात्मकता दूर होती है।4. अगर घर के किसी कोने में वास्तु दोष है जहां बिना तोड़-फोड़ किए ही दोष दूर किया जा सकता है तो घर की दक्षिण-पूर्व दिशा में जलभरा कोई भी मिट्टी का पात्र रख दें। इससे घर के सभी दोष खत्म हो जाते हैं। घर का सभी फालतू सामान भी बाहर कर दें।5. उत्तर दिशा में हो वास्तु दोष हो तो भवन के उत्तर दिशा की दीवारों पर सदैव हल्के हरे रंग का पैंट करवाएं। इससे आपके घर में धन एवं अवसर प्रचुर मात्र में उपलब्ध होंगे। भवन का उत्तरी भाग वास्तु दोष से पीडि़त है लक्ष्मी यंत्र व कुबेर यंत्र की स्थापना करवाना शुभफलदायी है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 197
साधक का प्रश्न ::: सर्वान्तर्यामी और अन्तर्यामी दोनों के बीच में क्या अंतर होता है ?
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: अन्तर्यामी जो होता है वो हर एक महापुरुष होता है। जिसने भगवत्प्राप्ति की हो वो सब अन्तर्यामी हो जाते हैं और सर्वान्तर्यामी केवल भगवान हैं। वो इसलिये कि सभी जीवों के अंतःकरण में वह एक-एक रूप से रहता है। ऐसा नहीं कि अलग गोलोक में बैठकर सर्वान्तर्यामी है, ऐसा नहीं। हर एक जीव के अंतः करण में एक भगवान का रूप सदा रहता है। स्वर्ग जाय, नरक जाय, मृत्यु लोक में जाय चाहे जहाँ रहे वो साथ रहता है हमेशा और वो सबके आइडियाज, पुराने जन्मों के कार्य का हिसाब सब करता है। धन्धा उसका यही है। वो सर्वान्तर्यामी है और सर्वव्यापक है और महापुरुष अन्तर्यामी है जिसके मन की बात जब जानना चाहे जान सकता है। लेकिन सदा नहीं जानता रहता। यह काम भगवान का है क्योंकि वो कर्मफल देना है उनको, तो उनको हमेशा जानना पड़ेगा । भगवान सर्वव्यापक हैं और आत्मा शरीर व्यापक। ये जीवात्मा खाली एक शरीर में है और भगवान जड़ चेतन सर्वत्र व्यापक है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी पुस्तक, भाग - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।