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दिवाली से पहले लोग घरों की सफाई करते हैं। लेकिन धनतेरस के दिन घर के कुछ खास जगहों की सफाई का विशेष महत्व है। मान्यता है कि धनतेरस पर मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की कृपा पाने के लिए घर के कुछ खास कोनों की सफाई जरूरी करनी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से धन-धान्य में बरकत के साथ मां लक्ष्मी का हमेशा साथ बना रहता है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 12 नवंबर रात से लग रही है, ऐसे में धनतेरस की खरीदारी 12 नवंबर की रात से लेकर 13 नवंबर की शाम 5:59 तक की जा सकेगी।
धनतेरस पर क्या करें?
1. वास्तु के अनुसार, घर के ईशान कोण का खास महत्व होता है। वास्तु शास्त्र में इसे देवताओं का स्थान माना गया है। कहते हैं कि आमतौर पर घरों में मंदिर इसी कोण में होता है। घर के ईशान कोण को उत्तर-पूर्व कोण भी कहते हैं। मान्यता है कि धनतेरस के दिन इस कोण की सफाई जरूर करनी चाहिए। कहते हैं कि अगर आप इस घर का कोना कभी इस्तेमाल नहीं करते या गंदा रहता है तो मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है।
2.धनतेरस के दिन सवेरे घर के पूर्व के स्थानों की सफाई करना शुभ होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से घर में पॉजिटिव ऊर्जा आती है और साथ ही मां लक्ष्मी का स्थायी वास घर में होता है और तरक्की मिलने का योग बनता है।
3. धनतेरस के दिन उत्तर दिशा का साफ भी होना जरूरी होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी का साथ हमेशा बना रहता है।
4. घर के बीचो-बीच की जगह यानी ब्रह्म स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। मान्यता है कि इस जगह पर बिना जरूरत वाला सामान नहीं रखना चाहिए। साथ ही इस जगह को हर दिन साफ करना चाहिए। धनतेरस के दिन इस जगह की सफाई का विशेष महत्व है। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
नोट--आलेख में दी गई जानकारियों को अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। - हिंदू धर्म में दिवाली के त्योहार का विशेष महत्व है। दिवाली का पर्व धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज को समाप्त होता है। इस साल दिवाली 14 नवंबर (शनिवार) को पड़ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ही भगवान श्रीराम लंकापति रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। भगवान राम की वापसी पर अयोध्या में घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया गया था। कहते हैं कि तभी से इस खुशी में दिवाली मनाई जाती है। हालांकि इस साल धनतेरस, नरक चतुर्दशी और दिवाली की तिथियों को लेकर लोगों के बीच असमंजस की स्थिति है।इस बारे में ज्योतिषाचार्य डॉ. दत्तात्रेय होस्करे ने धनतेरस, छोटी दिवाली (नरक चतुर्दशी) और दिवाली की सही तिथि और शुभ मुहूर्त की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि धनतेरस 13 और दिवाली 14 नवंबर को मनाई जाएगी।धनतेरसकार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस साल धनतेरस 13 नवंबर को मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्य डॉ. दत्तात्रेय होस्करे के अनुसार गुरुवार 12 नवंबर की रात्रि 9.31 मिनट से त्रयोदशी प्रारंभ हो रही है, जो 13 नवंबर को शाम 5.59 मिनट तक रहेगी। इसलिए धनतेरह 13 नवंबर शुक्रवार को ही मनाया जाएगा क्योंकि उदया तिथि में ही त्योहार मनाया जाता है।छोटी दिवाली (नरक चतुर्दशी)चतुर्दशी की तिथि 13 नवंबर की शाम 6.00 बजे से प्रारंभ हो रही है, जो 14 नवंबर को दोपहर 2.17 मिनट तक रहेगी। चूंकि चतुर्दशी चंद्रोदय व्यापनी होती है और चंद्रोदय 14 तारीख शनिवार को प्रात:काल 4.58 मिनट का है इसलिए 14 नवंबर को प्रात:काल ही नरक चतुर्दशी या रूप चौदस मनाएं। नरक चतुर्दशी पर स्नान का शुभ मुहूर्त सुबह 5:23 से सुबह 6:43 बजे तक रहेगा। इसके बाद अमावस्या लगने से दिवाली भी इसी दिन मनाई जाएगी।दिवाली14 नवंबर को दोपहर 2. 18 मिनट से अमावस्या तिथि प्रारंभ होगी, जो 15 नवंबर रविवार को प्रात: 10.36 मिनट तक रहेगी। चंूकि अमावस्या को लक्ष्मी पूजन किया जाता है, जो रात्रिव्यापनी होती है, जो 14 नवंबर को है। इसलिए इसी दिन दिवाली मनाई जाएगी। 14 तारीख को रात्रि को ही लक्ष्मी, गणेश पूजन, कुबेर पूजन और बही खाते का पूजन करें।भाईदूज 202015 नवंबर 2020 को गोवर्धन पूजा होगी और अंतिम दिन 16 नवंबर को भाई दूज या चित्रगुप्त जयंती मनाई जाएगी। दरअसल इस बार हिंदी पंचांग के अनुसार द्वितीय तिथि नहीं है जिसके कारण तिथि घट रही हैं।जानिए शुभ मुहूर्त.....
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 112
जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु प्रदत्त दिव्य विश्व-प्रेमोपहार(श्री भक्ति-मन्दिर, भक्तिधाम मनगढ़, उत्तर-प्रदेश)
सनातन वैदिक धर्म के अनुसार, यद्यपि भगवान् सर्वव्यापक है तथापि हम साधारण मायिक मनुष्यों को उनका प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता किन्तु मंदिरों एवं विग्रहों में श्री सच्चिदानंदघन प्रभु की उपस्थिति में हमारा विश्वास हो ही जाता है। इसी कारण जीवों के आध्यात्मिक कल्याणार्थ और वास्तविक सिद्धांत के प्रचार हेतु रसिकाचार्यों ने ऐसे भव्य मंदिरों की स्थापना की है। बस इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर सम्पूर्ण जगत में भक्ति तत्व को प्रकाशित करने के लिए जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने कुछ दिव्योपहार विश्व को समर्पित किये हैं। इनमें से एक है, उनकी जन्मभूमि पर स्थापित श्री भक्ति मंदिर एवं भक्ति भवन !! इनमें से 'भक्ति-मन्दिर' का उद्घाटन आज ही के दिन, अर्थात धनतेरस को वर्ष 2005 में हुआ था। आज इसकी 15 वीं वर्षगाँठ है। प्रस्तुत है इस दिव्योपहार के संबंध में कुछ विशेष बातें :::::::
-- भक्ति मंदिर, श्री भक्तिधाम मनगढ़
- शिलान्यास समारोह : 26 अक्टूबर 1996- कलश स्थापना : 14 अगस्त 2005-उद्घाटन समारोह : 16-17 नवम्बर 2005- प्रमुख आकर्षण : भूतल पर श्री राधाकृष्ण एवं आठ दिशाओं में अष्ट महासखियों के विग्रह, जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज एवं उनके पूज्यनीय माता-पिता जी के विग्रह। प्रथम तल में श्री सीताराम तथा श्री हनुमान जी के विग्रह, साथ ही श्री राधा रानी एवं श्री कृष्ण-बलराम जी के विग्रह। मंदिर के दोनों ओर बने स्मारकों में एक ओर श्रीकृष्ण की प्रमुख लीलाओं की झाँकी है तो दूसरी ओर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के जीवन की प्रमुख घटनाओं की झाँकी है।
-- भक्ति-भवन एवं 'कृपालुं वंदे जगद्गुरुम' स्मारक
भक्ति-भवन के बाईं ओर एक विशाल साधना-हॉल, जिसे 'भक्ति-भवन' के नाम से जानते हैं, स्थित है। इसकी विशेषता यह है कि यह बिना पिल्लरों पर खड़ा है और 15000 साधक-साधिकाएँ एक साथ बैठकर यहाँ साधना कर सकते हैं। इसकी स्थापना वर्ष 2012 में हुई थी। भक्ति-मंदिर के ठीक सामने ही 'जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी' का 'स्मारक-मंदिर' बन रहा है, जिसे विश्व 'कृपालुं वंदे जगद्गुरुम' स्मारक मंदिर के नाम से जानेगा। इसका उद्घाटन अगले वर्ष 2021 में मार्च महीने में होने की संभावना है।
धन्यातिधन्य है मनगढ़ भूमि ! जिसे गुरुदेव ने अपनी लीलास्थली बनाया। केवल 9 वर्षों में यहाँ इस प्रकार के भव्य मंदिर के निर्माण का कार्य पूरा हो गया। मंदिर की भव्यता, शिल्पकला तथा पच्चीकारी के काम को देखकर दर्शनार्थी आश्चर्य चकित हो जाते हैं। नि:संदेह यह किसी अलौकिक शक्ति का ही कार्य है। अन्यथा इस प्रकार के भव्य मंदिर का निर्माण छोटे से ग्राम में इतने कम समय में असंभव ही है।
इस भक्तिधाम में भक्ति की अजस्र धारा प्रवाहित होती रहती है। एक ओर तीर्थराज प्रयाग परम पावनी गंगा के जल से तो दूसरी ओर श्रीराम जी की लीलास्थली अयोध्या नगरी सरयू के पवित्र जल से प्रक्षालित करके इस मनगढ़ धाम की महिमा व पवित्रता को द्विगुणित करती रहती है। यहाँ का यह भक्ति मन्दिर कलियुग में दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से संतप्त जीवों के लिए एक अनुपम आध्यात्मिक केंद्र है। गुलाबी सफ़ेद पत्थर से निर्मित भक्ति मंदिर में काले ग्रेनाइट के खम्भे बनाये गए हैं। मंदिर की दीवारों पर बहुमूल्यवान पत्थर से श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'भक्ति-शतक' के सौ दोहे लिखे गए हैं, इस ग्रन्थ का एक एक दोहा इतना मार्मिक है कि इस ग्रन्थ रूपी मानसरोवर में अवगाहन करने वाला बरबस प्रेमरस में सराबोर हो जाता है। इसके अलावा 'प्रेम रस मदिरा' के कुछ पद भी अंकित किये गए हैं। यह भक्ति मंदिर श्रीराधाकृष्ण एवं श्री कृपालु जी महाराज का साक्षात् स्वरुप है।
आप सभी 'भक्ति-मन्दिर' की 15 वीं वर्षगाँठ तथा धनतेरस पर्व की अनंत अनंत शुभकामनायें..
00 सन्दर्भ ::: जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - आंवला एक अमृत फल माना गया है। इसके अद्भुत गुणों के कारण ही इसे पूजा जाता है। औषधीय गुणों के भरपूर आंवला का पेड़ घर में लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है, वास्तुशास्त्र के अनुसार पेड़ लगाते समय दिशा का ध्यान रखना भी जरूरी है।घर में आंवले का पेड़ लगायें और वह भी उत्तर दिशा और पूरब दिशा में हो तो यह अत्यंत लाभदायक है। माना जाता है कि आंवले के पौधे की पूजा करने से सभी मनौतियां पूरी होती हैं। इसकी नित्य पूजा-अर्चना करने से भी समस्त पापों का शमन हो जाता है। वास्तु की मानें तो आंवले का पेड़ घर में उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। वैसे पूर्व की दिशा में बड़े वृक्षों को नहीं लगाना चाहिए परन्तु आंवले को इस दिशा में लगाने से सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता है। इस वृक्ष को घर की उत्तर दिशा में भी लगाया जा सकता है।प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि मुनियों ने आंवला को औषधीय रूप में प्रयोग किया परन्तु आंवले का धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। जो निम्न प्रकार से है--मान्यता है कि यदि कोई आंवले का एक वृक्ष लगाता है तो उस व्यक्ति को एक राजसूय यज्ञ के बराबर फल मिलता है।- यदि कोई महिला शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन करती है तो वह जीवन पर्यन्त सौभाग्यशाली बनी रहती है।- अक्षय नवमी के दिन जो भी व्यक्ति आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करता है, उसकी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है एंव दीर्घायु लाभ मिलता है।- आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को मीठा भोजन कराकर दान दिया जाय तो उस जातक की अनेक समस्याएं दूर होती हैं तथा कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।-आंवले का ग्रहों से सम्बन्ध आंवले का ज्योतिष में बुध ग्रह की पीड़ा शान्ति कराने के लिये एक स्नान कराया जाता है। जिस व्यक्ति का बुध ग्रह पीडि़त हो उसे शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को स्नान जल में- आंवला, शहद, गोरोचन, स्वर्ण, हरड़, बहेड़ा, गोमय एंव अक्षत डालकर निरन्तर 15 बुधवार तक स्नान करना चाहिए जिससे उस जातक का बुध ग्रह शुभ फल देने लगता है। इन सभी चीजों को एक कपड़े में बांधकर पोटली बना लें। उपरोक्त सामग्री की मात्रा दो-दो चम्मच पर्याप्त है। पोटली को स्नान करने वाले जल में 10 मिनट के लिये रखें। एक पोटली 7 दिनों तक प्रयोग कर सकते है।- जिन जातकों का शुक्र ग्रह पीडि़त होकर उन्हे अशुभ फल दे रहा है। वे लोग शुक्र के अशुभ फल से बचाव हेतु शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को हरड़, इलायची, बहेड़ा, आंवला, केसर, मेनसिल और एक सफेद फूल युक्त जल से स्नान करें तो लाभ मिलेगा। इन सभी पदार्थों को एक कपड़े में बांधकर पोटली बना लें। उपरोक्त सामग्री की मात्रा दो-दो चम्मच पर्याप्त रहेगी। पोटली को स्नान के जल में 10 मिनट के लिये रखें। एक पोटली को एक सप्ताह तक प्रयोग में ला सकते है।- जिन बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है या फिर स्मरण शक्ति कमजोर है, उनकी पढऩे वाली पुस्तकों में आंवले व इमली की हरी पत्तियों को पीले कपड़े में बांधकर रख दें। आंवला और रोग पीलिया रोग में एक चम्मच आंवले के पाउडर में दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सेंवन करने से लाभ मिलता है। जिन लागों की नेत्र ज्योति कम है वे लोग एक चम्मच आंवले के चूर्ण में दो चम्मच शहद अथवा शुद्ध देशी घी मिलाकर दिन में दो बार सेंवन करने से नेत्र ज्योति में बढ़ती है एंव इन्द्रियों को शक्ति प्रदान होती है।-गठिया रोग वाले जातक 20 ग्राम आंवले का चूर्ण तथा 25 ग्राम गुड़ लेकर 500 मिलीलीटर जल में डालकर पकायें। जब जल आधा रह जाये तब इसे छानकर ठण्डा कर लें। इस काढ़े को दिन में दो बार सेंवन करें। जबतक सेंवन करें तबतक नमक का सेंवन बन्द कर दें अथवा बहुत कम कर दें।
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जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 111
00 जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचनों से छोटा सा अंश, आचार्य श्री की वाणी नीचे से है ::::::
एक बार संसार में कोई नौकर चोरी में पकड़ा जाये रंगे हाथों तो फिर वो नौकर चाहे कितनी ही ईमानदारी करे, घर में कोई चोरी होगी, ऐ! वो कहाँ है? बुलाओ उसको, वही चोर है। अरे चोर तो सब नौकर हैं जी! नहीं-नहीं और किसी नौकर ने हमारा कुछ नहीं चुराया। तुम्हारा नहीं चुराया और जगह चोरी किया है। या आज तक चोरी की मंशा और नौकरों की नहीं हुई, आज हो गई हो। अरे भई! कोई गलत काम करने की मंशा हमेशा थोड़े ही रहती है किसी की। कब हो जाय क्या ठिकाना, लेकिन साहब उसी को सदा आँख में रखेगा जिसको चोरी में पकड़ा गया।
लेकिन अनन्त बार चोरी पकड़ता हुआ भी भगवान और महापुरुष, जीव जब सच्चे हृदय से फिर क्षमा माँग करके शरणागत होना चाहता है तो वो कहते हैं ठीक है, ठीक है हो गया, हटाओ, बच्चे हैं होता रहता है। छोटे बच्चों की बातें माँ-बाप क्यों फील नहीं करते? लात भी मार दे रहे हैं माँ के मुँह में बाप के मुँह में। हाँ हाँ चूम लेती है माँ। बच्चा है। बड़ा होकर अगर वो लात मारने की बात भी कर दे, मम्मी! मैं वो मारूँगा। ये लो मम्मी का मूड ऑफ इतना हो गया कि निकल जा मेरे घर से। क्यों मम्मी! पहले तो मैं लात प्रैक्टीकल मारता था तो तू मेरी लात को चूम लेती थी और आज तो हमने खाली मुँह से कहा है एक लात मारूँगा और तू मुझे घर से निकाले दे रही है।
अरे बेटा! वो बात और थी, अब बात और है। अब तू पच्चीस साल का जवान धींगड़ा हो गया है और तेरी दुर्भावना नहीं थी, तू जानता ही नहीं था मुँह क्या है, मम्मी क्या है? बेटा क्या होता है? लात मारना क्या पाप होता है? इसलिये वो सब प्रिय था, हर व्यवहार प्रिय था। तो महापुरुष की कृपा को न तो भगवान बता सकता है पूरा पूरा, न महापुरुष बता सकता है। और जीव तो बेचारा क्या समझेगा उसकी तो हैसियत ही नहीं है। हाँ, स्पेशल केस जो है उनमें महापुरुष प्रारब्ध में भी कुछ हेल्प करता है, पूरा प्रारब्ध नहीं काटता, कुछ हेल्प कर देता है। लेकिन वह हेल्प बताता नहीं। वो सब चोरी चोरी करता है। जो कुछ अपने प्रिय के प्रति करता है महापुरुष। कभी भी स्वप्न में भी, किसी भी प्रकार से वो आउट नहीं कर सकता। वो कानून है उसके यहाँ, वो कॉन्फिडेंशियल फाइल है वो आउट नहीं हो सकती। लेकिन उसकी कृपा के विषय में कुछ भी कहना समुद्र की एक बूँद है।
(प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
00 सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - परिजात यानी हरसिंगार का पेड़ अति शुभ माना जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इस पेड़ को स्वर्ग का पेड़ कहा गया है। औषधीय गुणों से भरपूर परिजात के पेड़ को घर में रखना काफी शुभ माना जाता है।वास्तुशास्त्र के अनुसार इस पौधे को हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा में लगाएं। इस पौधे को घर में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसके अलावा इससे घर के किसी भी सदस्य को धन की कमी नहीं होता। इसके साथ ही इस पौधे को लगाने से घर में सुख-शांति भी बनी रहती है।पौराणिक महत्वमाना जाता है कि समुद्र मंथन में 11वें नंबर पर जो रत्न प्राप्त हुआ था, वो पारिजात वृक्ष ही है। उसका शरीर पुन: स्फूर्ति प्राप्त कर लेता है। हरिवंशपुराण के अनुसार स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी परिजात के वृक्ष को छूकर ही अपनी थकान मिटाती थी। इसके होने मात्र से घर में ऊर्जा का संचार होता है व देव दोष शांत होकर घर के सदस्यों का कल्याण होता है।पौराणिक मान्यता अनुसार पारिजात के वृक्ष को स्वर्ग से लाकर धरती पर लगाया गया था। नरकासुर के वध के पश्चात एक बार श्रीकृष्ण स्वर्ग गए और वहां इन्द्र ने उन्हें पारिजात का पुष्प भेंट किया। वह पुष्प श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी को दे दिया। देवी सत्यभामा को देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया था। तभी नारदजी आए और सत्यभामा को पारिजात पुष्प के बारे में बताया कि उस पुष्प के प्रभाव से देवी रुक्मिणी भी चिरयौवन हो गई हैं। यह जान सत्यभामा क्रोधित हो गईं और श्रीकृष्ण से पारिजात वृक्ष लेने की जिद्द करने लगी। परिजात का वृक्ष देवलोक में था, इसलिए कृष्ण ने उनसे कहा कि वे इन्द्र से आग्रह कर वृक्ष उन्हें ला देंगे। इतने में ही कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ इन्द्रलोक आए। पहले तो इन्द्र ने यह वृक्ष सौंपने से मना कर दिया लेकिन अंतत: उन्हें यह वृक्ष देना ही पड़ा। जब कृष्ण परिजात का वृक्ष ले जा रहे थे तब देवराज इन्द्र ने वृक्ष को यह श्राप दे दिया कि इस पेड़ के फूल दिन में नहीं खिलेंगे।पति-पत्नी में झगड़ा लगाकर नारद, देवराज इन्द्र के पास गए और उनसे कहा कि मृत्युलोक से इस वृक्ष को ले जाने का षडयंत्र रचा जा रहा है लेकिन यह वृक्ष स्वर्ग की संपत्ति है, इसलिए यहीं रहना चाहिए। सत्यभामा की जिद की वजह से कृष्ण परिजात के पेड़ को धरती पर ले आए और सत्यभामा की वाटिका में लगा दिया। लेकिन सत्यभामा को सबक सिखाने के लिए उन्होंने कुछ ऐसा किया कि वृक्ष लगा तो सत्यभामा की वाटिका में था लेकिन इसके फूल रुक्मिणी की वाटिका में गिरते थे। इस तरह सत्यभामा को वृक्ष तो मिला लेकिन फूल रुक्मिणी को ही प्राप्त होते थे। यही वजह है कि परिजात के फूल, अपने वृक्ष से बहुत दूर जाकर गिरते हैं।देवी लक्ष्मी को प्रियपारिजात के फूलों को खासतौर पर लक्ष्मी पूजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन केवल उन्हीं फूलों को इस्तेमाल किया जाता है, जो अपने आप पेड़ से टूटकर नीचे गिर जाते हैं। पारिजात के फूलों की सुगंध आपके जीवन से तनाव हटाकर खुशियां ही खुशियां भर सकने की ताकत रखते हैं। इसकी सुगंध आपके मस्तिष्क को शांत कर देती है। पारिजात के ये अद्भुत फूल सिर्फ रात में ही खिलते हैं और सुबह होते-होते वे सब मुरझा जाते हैं। यह फूल जिसके भी घर-आंगन में खिलते हैं, वहां हमेशा शांति और समृद्धि का निवास होता है। माना जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है।इसके औषधीय गुणों की बात करें तो हृदय रोगों के लिए हरसिंगार का प्रयोग बेहद लाभकारी है। इस के 15 से 20 फूलों या इसके रस का सेवन करना हृदय रोग से बचाने का असरकारक उपाय है, लेकिन यह उपाय किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह पर ही किया जा सकता है। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।अगर इस वृक्ष की उम्र की बात की जाए तो वैज्ञानिकों के अनुसार यह वृक्ष 1 हजार से 5 हजार साल तक जीवित रह सकता है। इस प्रकार की दुनिया में सिर्फ पांच प्रजातियां हैं, जिन्हें एडोसोनिया वर्ग में रखा जाता है। परिजात का पेड़ भी इन्हीं पांच प्रजातियों में से डिजाहट प्रजाति का सदस्य है।
- रमा एकादशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन पड़ती हैं। दीपावली के चार दिन पूर्व पडऩे वाली इस एकादशी को लक्ष्मी जी के नाम पर 'रमा एकादशी' कहा जाता है। माना जाता है कि इस एकादशी के प्रभाव से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी दूर हो जाते हैं और ईश्वर के चरणों में जगह मिलती है।कार्तिक का महीना भगवान विष्णु को समर्पित होता है। हालांकि भगवान विष्णु इस समय शयन कर रहे होते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को ही वे चार मास बाद जागते हैं। लेकिन कृष्ण पक्ष में जितने भी त्यौहार आते हैं उनका संबंध किसी न किसी तरीके से माता लक्ष्मी से भी होता है। दिवाली पर तो विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन तक किया जाता है। इसलिये माता लक्ष्मी की आराधना कार्तिक कृष्ण एकादशी से ही उनके उपवास से आरंभ हो जाती है। माता लक्ष्मी का एक अन्य नाम रमा भी होता है इसलिये इस एकादशी को रमा एकादशी भी कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जब युद्धिष्ठर ने भगवान श्री कृष्ण से कार्तिक मास की कृष्ण एकादशी के बारे में पूछा तो भगवन ने उन्हें बताया कि इस एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। इसका व्रत करने से जीवन में सुख समृद्धि और अंत में बैकुंठ की प्राप्ति होती है।एकादशी पर क्या करें क्या न करें?ज्योतिषाचार्यों के अनुसार रमा एकादशी का व्रत बहुत ही फलदायी है। जो भी इस व्रत को विधिपूर्वक करते हैं वे ब्रह्महत्या जैसे पाप से भी मुक्त हो जाते हैं। इस दिन भगवान केशव का संपूर्ण वस्तुओं से पूजन, नैवेद्य तथा आरती कर प्रसाद वितरण करें व ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। इस एकादशी का व्रत करने से जीवन में वैभव और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।- कांसे के बर्तन में भोजन न करें।- नॉन वेज, मसूर की दाल, चने व कोदों की सब्जी और शहद का सेवन न करें।- कामवासना का त्याग करें।- व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए।- पान खाने और दातुन करने की मनाही है।- जो लोग एकादशी का व्रत नहीं कर रहे हैं उन्हें भी इस दिन चावल और उससे बने पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।-इस दिन केशव भगवान का संपूर्ण विधि विधान से पूजा कर के नैवेद्य और आरती कर के प्रसाद बांटना चाहिए। अपनी सामथ्र्यानुसार ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए।पूजन विधिरमा एकादशी का व्रत दशमी की संध्या से ही आरंभ हो जाता है। दशमी के दिन सूर्यास्त से पहले ही भोजन ग्रहण कर लेना चाहिये। इसके बाद एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर स्नानादि कर स्वच्छ होना चाहिये। इस दिन भगवान विष्णु के पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण की विधिवत धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प एवं फलों से पूजा की जाती है। इस दिन तुलसी पूजन करना भी शुभ माना जाता है। इस दिन पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किये उपवास पुण्य चिरस्थायी होता है और भगवान भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।रमा एकादशी व्रत तिथि व शुभ मुहूर्तरमा एकादशी तिथि - 11 नवंबर 2020पारण का समय - प्रात: 06:42 बजे से 08:51 बजे तक (12 नवंबर 2020)एकादशी तिथि आरंभ - प्रात: 03 बजकर 32 मिनट (11 अक्टूबर 2020) सेएकादशी तिथि समाप्त - रात 12 बजकर 40 मिनट (12 नवंबर 2020) तकव्रत की कथाएक समय मुचकुन्द नाम का एक राजा रहता था। वह बड़ा दानी और धर्मात्मा था। उसे एकादशी व्रत का पूरा विश्वास था। वह प्रत्येक एकादशी व्रत को करता था तथा उसके राज्य की प्रजा पर यह व्रत करने का नियम लागू था। उसके एक कन्या थी जिसका नाम था- चंद्रभागा। वह भी पिता से ज़्यादा इस व्रत पर विश्वास करती थी। उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ। वह राजा मुचकुन्द के साथ ही रहता था। एकादशी आने पर सभी ने व्रत किए, शोभन ने भी एकादशी का व्रत किया। परन्तु दुर्बल और क्षीणकाय होने से भूख से व्याकुल हो मृत्यु को प्राप्त हो गया। इससे राजा-रानी और चन्द्रभागा अत्यंत दुखी हुए। इधर शोभन को व्रत के प्रभाव से मंदराचल पर्वत पर स्थित देवनगरी में आवास मिला। वहाँ उसकी सेवा में रमादि अप्सराएं थीं। एक दिन राजा मुचकुन्द टहलते हुए मंदरांचल पर्वत पर पहुंच गए तो अपने दामाद को सुखी देखा। घर आकर सारा वृतांत अपनी पत्नी व पुत्री को बताया। पुत्री यह सब समाचार सुन अपने पति के पास चली गई। फिर दोनों सुखपूर्वक रम्भादि अप्सराओं की सेवा लेते हुए सुखपूर्वक रहने लगे।
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जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 110
आज पढिय़े, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित दोहा तथा उसकी व्याख्या
मन ते स्मरण करु गोविन्द राधे।ये ही भक्ति मन बुद्धि शुद्ध करा दे।।(स्वरचित दोहा)
...ये क्रम है। सब वेदों, शास्त्रों, पुराणों का सारांश है। नम्बर एक, मन से हरि गुरु का स्मरण, ये साधना भक्ति कहलाती है। यही आप लोग कर रहे हैं। मन से, केवल वाणी से नहीं। वाणी भी साथ में रहे तो ठीक, न रहे तो भी ठीक, किन्तु मन से स्मरण हो, उसका नाम साधना भक्ति। इससे क्या होगा? मन-बुद्धि शुद्ध होंगे। अनादिकाल से मन-बुद्धि में माया का काम, क्रोध, लोभ, मोह ये संसारी मल भरा हुआ है। ये गोबर, कचरा, कूड़ा, मल, पाप-पुण्य, ये गड़बड़ हरि गुरु स्मरण से निकल जायेगी। धीरे धीरे निकलेगी क्योंकि अनन्त जन्मों का मैल है।
अगर आप कपड़े को रोज धोते हैं तो हलका सा साबुन लगा दें बस, और अगर एक हफ्ते में धोते हैं तो ज्यादा साबुन लगाना पड़ेगा, और अगर महीने भर में धोते हैं तो पहले गरम पानी में साबुन डालकर उसको भिगो दें फिर धुलाई करें। जितना मैल होगा, उतना परिश्रम होगा धोने में।
तो अनन्त जन्मों के हमारे पाप-पुण्य हैं, संसारी अटैचमेन्ट है, इसलिये उसके निकालने में भी अभ्यास करना होगा, स्मरण का। जगत का विस्मरण, हरि गुरु का स्मरण मन से। स्मरण मन करता है, इन्द्रियाँ (हाथ-पैर आदि) नहीं करतीं। तो इससे मन-बुद्धि शुद्ध होगी। इसी को अंत:करण शुद्धि कहते हैं। जब ये शुद्ध हो जायेगा तो भगवान की एक पॉवर है, उसका नाम है स्वरुप शक्ति वो आपके अंत:करण में अपने आप भगवान दे देंगे तो वो अंत:करण को दिव्य बना देगी। दिव्य माने भगवान संबंधी। ये स्वर्ग वाला दिव्य नहीं, स्वर्ग की वस्तु को भी दिव्य शब्द से बोला जाता है। वो देवता हैं, दिव्य हैं, दिव् धातु से देवता शब्द बनता है लेकिन ये मैटिरियल (मायिक) दिव्य हैं। ये नहीं, भगवान संबंधी दिव्यता, अलौकिकता, चित् स्वरूप वाली, वैसा हो जायेगा आपका अंत:करण, इन्द्रियाँ।
अब बर्तन तैयार हो गया। बर्तन, पात्र। बस इतना काम हम लोगों का है, बर्तन तैयार करवा देना। यानी मन से स्मरण कर मन को शुद्ध किया फिर भगवान ने उसको दिव्य बनाया अब उस बर्तन में दिव्य वस्तु रखी जा सकती है। वो दिव्य वस्तु क्या है? सबसे बड़ी दिव्य वस्तु है, भगवान का दिव्य प्रेम। भगवान की जो अंतरंग स्वरूप शक्ति है उसका सत् चित् आनंद, उसमें सत् से भी इम्पोर्टेन्ट चित्, चित् से महत्वपूर्ण आनंद ब्रम्ह। उस आनंद ब्रम्ह की एक सारभूत स्वरुपा शक्ति होती है ह्लादिनी। उस ह्लादिनी के भी सारभूत तत्व का नाम प्रेम है, जिसके अण्डर में भगवान हो जाते हैं। वो प्रेम है। हम अभी जो प्रेम कर रहे हैं भगवान से, गुरु से, ये तो हमारे मन का अटैचमेन्ट है। इससे मन शुद्ध होगा, ये प्रेम नहीं है। प्रेम तो मिलेगा कृपा से। वो कमाई से नहीं मिलता। कोई भी साधना ऐसी नहीं है करोड़ों कल्प कोई तप करे, अँगूठे के बल पर खड़े होकर तो भी प्रेम उसका मूल्य नहीं बन सकता। उससे प्रेम नहीं मिल सकता।
साधनौघेरनासंगैरलभ्या सुचिरादपि।(भक्तिरसामृतसिन्धु)
करोड़ों साधनाओं से भी, अनासंग साधनाओं से भी, निष्काम साधनाओं से भी ये प्रेम अलभ्य है, उससे नहीं मिला करता। और,
हरिणा चाश्वदेयेति द्विधा सा स्यात् सुदुर्लभा।(भक्तिरसामृतसिन्धु)
भगवान भी जल्दी में नहीं देते, उसको छुपा के रखते हैं क्योंकि उनको अण्डर में रहना पड़ेगा। तो यदि वो मुक्ति भुक्ति ले के छुट्टी दे दे तो भगवान कहते हैं, अच्छा हुआ बेवकूफ बन गया। लेकिन जो परम सयाने होते हैं, जिनका गुरु दिव्य प्रेम, निष्काम प्रेम प्राप्त कर चुका होता है, उसका पढ़ाया हुआ जो शिष्य होता है वो भगवान की वाक-चातुरी में नहीं आता। वो कहता है हमें कुछ नहीं चाहिये। निष्काम प्रेम, तुम्हारे लिये प्रेम माँग रहे हैं, अपने लिये नहीं, तुमको सुख देने के लिये।
तो वो दिव्य मन बुद्धि में दिव्य प्रेम स्वयं नहीं देते भगवान, वो गुरु ही दिव्य प्रेम देगा। यानी साधना का ज्ञान कराना नम्बर एक, साधना कराना नम्बर दो, अंत:करण शुद्ध कराना, फिर अन्त:करण दिव्य कराना - ये सब काम गुरु करता है और दिव्य प्रेम देना अन्तिम काम। बस यही प्रयोजन है, यही लक्ष्य है, अन्तिम। तो इस क्रम के द्वारा ये लक्ष्य प्राप्त होता है। ये थियरी मस्तिष्क में सदा रखे रहो, भूले न।
(प्रवचन एवं व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
00 सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2016 अंक00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - भगवान शिव को समर्पित देश में अनेक मंदिरों का निर्माण किया गया है, जो लोगों की आस्था का केंद्र है। ऐसा ही एक रहस्यमयी मंदिर है जहां शिवलिंग का जलाभिषेक कोई और नहीं बल्कि स्वयं मां गंगा करती हैं। झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित टूटी झरना नामक इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का जलाभिषेक साल के बारह महीने और चौबीसों घंटे स्वयं मां गंगा द्वारा किया जाता है। मां गंगा द्वारा शिवलिंग की यह पूजा सदियों से निरंतर चलती आ रही है। शिव भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में आकर अगर कोई व्यक्ति सच्चे दिल से कुछ मांगता है उसकी वह इच्छा जरूर पूरी होती है।स्थानीय लोगों के अनुसार वर्ष 1925 में अंग्रेजी सरकार ने इस स्थान पर रेलवे लाइन बिछाने के लिए खुदाई का कार्य आरंभ किया, तब उन्हें जमीन के अंदर कोई गुंबद के आकार की चीज नजर आई। गहराई पर पहुंचने के बाद उन्हें पूरा शिवलिंग मिला और शिवलिंग के ठीक ऊपर गंगा की प्रतिमा मिली जिसकी हथेली पर से गुजरते हुए आज भी जल शिवलिंग पर गिरता है। यह पानी कहां से आता है, किसी को पता नहीं। यहां पर दो रहस्यमयी हैंडपंप भी हैं। इनमें पानी लेने के लिए किसी को इन्हें चलाने की जरूर नहीं होती है, बल्कि चौबीसों घंटे यहां से पानी निकलता रहता है। जबकि मंदिर के पास की नदी सूखी पड़ी हुई है। अत्यधिक गर्मी में भी इन हैंडपंपों से पानी इसी तरह निकलता रहता है। यही वजह है कि यह रहस्यमय मंदिर आज भी आस्था का केन्द्र बना हुआ है।माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में पांडवों ने कौरवों को मारकर जीत तो हासिल कर ली थी, लेकिन जीत मिलने के बाद वह प्रसन्न नहीं बेहद दुखी रहने लगे क्योंकि उन्हें प्रतिदिन अपने संबंधियों की हत्या का गम सताता रहता था और वह कुछ भी कर इस पाप से मुक्ति पाना चाहते थे।पश्चाताप की आग में जलते हुए पांचों भाई श्रीकृष्ण की शरण में गए। कृष्ण ने उन्हें एक काली गाय और काला ध्वज दिया, साथ ही उनसे कहा कि जिस स्थान पर गाय और ध्वज का रंग सफेद हो जाए उस स्थान पर शिव की अराधना करना, ऐसा करने से तुम्हें पाप से मुक्ति मिलेगी। पांडवों ने ऐसा ही किया और वे स्थान-स्थान भ्रमण करते रहे। अचानक एक स्थान पर जाकर गाय और ध्वज, दोनों का रंग सफेद हो गया। इसके बाद कृष्ण के कहे अनुसार उन्होंने वहां शिव की आराधना शुरू की। पांडवों की आराधना से भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने पांचों भाइयों को अलग-अलग अपने लिंग रूप में दर्शन दिए। गुजरात की भूमि पर अरब सागर में इसी स्थान पर निष्कलंक महादेव का मंदिर स्थापित है।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 109
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा आध्यात्मिक प्रश्नों एवं जिज्ञासाओं का समाधान
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी ! आपने बताया है कि सच्ची श्रद्धा हो, सच्चा संत हो और सच्चा सँग हो तो लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है। लेकिन अगर किसी की श्रद्धा न हो तो वह बेचारा क्या करेगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदान किया गया उत्तर :::
उसके लिये भी मार्ग है, सच्चे संत का लगातार सँग करे। वह जब सुनेगा मानव देह क्यों मिला है? भगवान क्या है? उसकी प्राप्ति कैसे हो जाती है? कितनी सरल है? संसार क्या है? संसार का सुख क्या है? यह तमाम बातें तत्वज्ञान की जब सुनेगा तो सोचेगा अरे मैं बाद लापरवाही में पड़ा हूँ, केवल संसारी वैभव में सुख ढूँढ रहा हूँ। बहुत बड़ी गलती है। अब मुझे भी कुछ करना चाहिये परमार्थ के लिये। यानी वह भूख पैदा हो जायेगी, तत्वज्ञान से।
तो लगातार वास्तविक संत का सँग करे यह शर्त है। झूठ-मूठ को बैठे सुने तो भी सुनते-सुनते, फिर गहराई से समझेगा, फिर श्रद्धा अपने आप उत्पन्न हो जायेगी।
सतां प्रसंगान्मम वीर्यसंविदो भवन्ति हृत्कर्णरसायना: कथा:।तज्जोषणादाश्वपवर्गवत्र्मनी श्रद्धा रतिर्भक्ति रनुक्रमिष्यति।।(भागवत 3-25-25)
भागवत में वेदव्यास ने यह आशा दिलाई है। बिना श्रद्धा वालों का भी काम बन जायेगा। बशर्ते वास्तविक संत का सँग लगातार करे, जबरदस्ती करे, करे। हमारे सत्संग में मुझे सैकड़ों सत्संगियों ने बताया है कि महाराज जी आपकी स्पीच हो रही थी अमुक जगह, मैं सड़क से जा रहा था, दो चार वाक्य कान में पड़े तो मैंने गाड़ी रोक दी और मैंने पूरा सुन लिया। बस आग लग गई। फिर दूसरे दिन से डेली सुनने लगा। और फिर इतनी प्यास लगी भगवान की। पहले मैं प्रकाण्ड नास्तिक था.....(आदि आदि) तो थोड़ी देर सुनने का प्रभाव सैकड़ों व्यक्तियों ने बताया है। और लगातार सुने, समझे। अरे सुनेगा तो समझेगा भी बुद्धि तो है ही है सबके। तो फिर उसकी इम्पोर्टेंस रियलाइज करेगा। तो श्रद्धा अपने आप पैदा होगी, बस बात बन गई।
00 सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2013 अंक00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 108
साधक का प्रश्न ::: भगवान राम और कृष्ण के अवतारकाल में हम जो उनकी लीलायें देखते हैं, क्या उनसे हमें लाभ होता है ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::::::
अनुकूल विचार करने में जो बाधा है वह यह है कि उनका व्यवहार प्रतिकूल दिखाई देता है। बाद में जो अनुकूल विचार बन जाता है उसका कारण यह है कि उसके दिमाग में पुरखे दर पुरखे से यह भर जाता है कि वे भगवान् थे। महापुरुष-काल में जो उनके संपर्क में रहे, वे गुरु-शिष्य के सम्बन्ध को लेकर रहे अत: उनको लाभ मिल गया। भगवान के आविर्भाव काल में यह सवाल आया ही नहीं अत: उनको कौन प्यार करता क्योंकि भगवान् ने मारकाट ही की, गुरु शिष्य का कोई कार्य किया ही नहीं।
जिन लोगों ने बेटा, माँ, बाप मानकर प्यार किया, भगवान् मान कर नहीं, केवल उनका ही लाभ हो पाया। प्यार करने वाले तो उनके परिवार के ही थे। वे तो पहले से ही सिद्ध लोग थे, अत: उनके प्यार का प्रश्न ही नहीं है। राम-कृष्ण काल में लोगों का नुकसान ही अधिक हुआ क्योंकि दुर्वासा आदि के कहने से यदि किसी ने मान भी लिया कि ये भगवान हैं। किन्तु जब उसी व्यक्ति ने उनके कार्यों को देखा तो फिर वह अपना दिमाग खराब कर बैठा। अवतार काल में उनके कार्य ही ऐसे होते हैं। अवतार काल में अनुकूल भाव से उपासना करने वाले को भगवान का प्रेम मिलता है। जबकि प्रतिकूल भाव से उपासना करने वाले को मुक्ति मिलती है।
00 सन्दर्भ ::: जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 107
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वर्णित अहंकार और प्रेम में अंतर के कुछ बिन्दु ::::::
(1) जगत की ओर देखने वाला अहंकार से भरता है, प्रभु की ओर देखने वाला प्रेम से पूर्ण होता है।
(2) अहंकार सदा लेकर प्रसन्न होता है, प्रेम सदा देकर संतुष्ट होता है।
(3) अहंकार को अकड़ने का अभ्यास है, प्रेम सदा झुक कर रहता है।
(4) अहंकार जिस पर बरसता है उसे तोड़ देता है, प्रेम जिस पर बरसता है उसे जोड़ देता है।
(5) अहंकार दूसरों को ताप (दुःख) देता है, प्रेम मीठे जल सा तृप्ति देता है।
(6) अहंकार संग्रह में लगा रहता है, प्रेम बाँट बाँटकर बढ़ता है।
(7) अहंकार सबसे आगे रहना चाहता है, प्रेम सबके पीछे रहने में प्रसन्न है।
(8) अहंकार बहुत कुछ पाकर भी भिखारी है, प्रेम अकिंचन रहकर भी पूर्ण धनी है।
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश, जुलाई 1997 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 106
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा साधकों एवं जिज्ञासुओं के प्रश्न एवं शंकाओं का समाधान
साधक का प्रश्न ::: महारास से पहले श्रीकृष्ण ने मुरली बजायी, क्या उसका कुछ विशेष प्रयोजन था ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: अधिकारी जीवों को महारास का रस प्रदान करने के लिए, उनको कैसे बुलाया जाय, अत: श्रीकृष्ण ने मुरली बजायी। रास का पहला अध्याय शुरू हुआ, उपक्रम;
निशम्यगीतं तदनंगवर्धनं व्रजस्त्रिय: कृष्णगृहीतमानसा:।आजग्मुरन्योन्यमलक्षितोद्यमा: स यत्र कान्तो जवलोलकुण्डला:॥(भागवत 10-21-4)
मुरली बजी और जितने अधिकारी थे रास के, उनके कान में गई। फिर जिस-जिस के कान में मुरली गई उस मुरली ने उसके हृदय को चुरा लिया क्योंकि वो अधिकारी था। श्रीकृष्ण ने अपनी मुरली की ध्वनि से उसके हृदय को चुरा लिया। अब जब हृदय ही नहीं है तो वो जीव भागा। ये कौन ले जा रहा है मेरा हृदय, मेरा अंत:करण। तो जहाँ से मुरली की आवाज़ आ रही थी, उसी तरफ भागा। हृदय के बिना, अंत:करण के बिना, शरीर का जीवन नहीं रह सकता। इस प्रकार मुरली ध्वनि में जादू भरकर श्रीकृष्ण ने सब गोपियों को एकत्र कर लिया। इस मुरली में इस प्रकार जादू भर दिया कि केवल अधिकारी जीवों को ही सुनाई दी।
00 सन्दर्भ ::: जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - आजकल छोटे- छोटे मकान बनने लगे हैं जिसमें शौचालय और स्नानघर एक साथ रखे जाते हैं। कमरे के साथ अटैच्ड लेटबॉथ की विदेशी स्टाइल भी अब भारतीय जीवन पद्धति का हिस्सा बन गई है। वास्तु शास्त्र की बात करें तो भवन में या भवन के अंागन में स्नानागार और शौचालय बनाते समय वास्तु का सबसे ज्यादा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि इसके बुरे प्रभाव के कारण भवन का वातावरण बिगड़ सकता है।वास्तु के अनुसार स्नानागार में चंद्रमा का वास होता है और शौचालय में राहू का। इसलिए शौचालय और स्नानगृह एक साथ नहीं होना चाहिए। चंद्रमा और राहू का एक साथ होना चंद्रग्रहण है, जो गृह कलह का कारण बनता है।वास्तु के अनुसार स्नानागार भवन की पूर्व दिशा में होना चाहिए। नहाते समय हमारा मुंह अगर पूर्व या उत्त्तर में हो तो लाभदायक माना जाता है। शौचालय भवन के नैऋत्य (पश्चिम-दक्षिण)कोण में अथवा नैऋत्य कोण और पश्चिम दिशा के मध्य में होना उत्तम माना जाता है। इसके अलावा शौचालय के लिए वायव्य कोण और दक्षिण दिशा के मध्य का स्थान भी उपयुक्त बताया गया है। पूर्व में उजालदान होने चाहिए। स्नानागार में वॉश बेसिन को उत्तर या पूर्वी दीवार में लगाना चाहिए। दर्पण को उत्तर या पूर्वी दीवार में लगाना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि दर्पण दरवाजे के ठीक सामने न हो। शौचालय की सीट इस प्रकार की हो कि उस पर बैठते समय आपका मुख दक्षिण या उत्तर की ओर हो। शौचालय की नकारात्मक ऊर्जा को घर में प्रवेश करने से रोकने के लिए हमेशा शौचालय और स्नानघर का दरवाजा बंद रखें और उपयोग करते समय ही खोलें। शौचालय का जब भी उपयोग करें , एक्जॉस्ट फेन अवश्य चला लें ताकि नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाए। सबसे बड़ी बात शौचालय और स्नानगृह को हमेशा साफ-सुधरा रखें । स्नानगृह को सूखा रखने का प्रयास करें इसलिए स्नान के बाद फर्श के पानी को निकाल दें।
- हम जब भी मंदिर जाते हैं तो मंदिर में प्रवेश करने से पहले घंटी या घंटा जरूर बजाते हैं। घर के मंदिर में भी भगवान की पूजा के दौरान घंटी बताने की परंपरा बरसों से चली आ रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है? इसके अपने धार्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं।हमारे देश में प्राचीनकाल से मंदिर के द्वार पर घंटी या घंटा लगाने का प्रचलन चलता चला आ रहा है। धार्मिक मान्यता है कि पूजा के दौरान घंटी बजाने से भगवान जागृत अवस्था में आ जाते हैं और प्रसन्न भी होते हैं। इसके अलावा जिन स्थानों पर घंटी बजती रहती हैं वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है और नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं। आमतौर पर घंटियों के 4 प्रकार होते हैं- गुरूड़ घंटी, द्वार घंटी, हाथ घंटी और घंटा। सभी घंटियों का अपना महत्व होता है।गरूड़ घंटी - गरूड़ घंटी छोटी सी होती है, जिसे एक हाथ से बजाया जाता है।द्वार घंटी - यह घंटी द्वार पर लगी होती है और यह बड़ी व छोटी हो सकती है।हाथ घंटी - यह पीतल की ठोस गोल प्लेट की तरह होती है और इसे लड़की के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।घंटा - यह बहुत बड़ा होता है। आमतौर पर मंदिरों में कम से कम 5 फीट लंबा और चौड़ा घंटा लगाया जाता है।धार्मिक महत्वधार्मिक मान्यता के अनुसार, घंटी बजाने से देवी-देवता के समक्ष हमारी हाजिरी लग जाती है। जब भी हम मंदिर जाते हैं तो सबसे पहले द्वार पर घंटी बजाते हैं और फिर प्रवेश करते हैं ताकि भगवान जागृत अवस्था में आ जाएं और हमारी पूजा और आराधना सफल हो जाएं। वहीं दूसरा कारण है कि घंटी की ध्वनि से हमारा मन-मस्तिष्क जागृत अवस्था में आ जाता है और आपके अंदर अध्यात्म भाव पैदा हो जाता है। जब हम घंटी की ध्वनि के साथ अपने मन को जोड़ लेते हैं तो शांति का अनुभव होता है। माना जाता है कि मंदिर में घंटी बजाने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।घंटी की ध्वनिमाना जाता है कि जब सृष्टि की शुरूआत हुई थी तब जो नाद यानि आवाज गूंजी थी, वहीं आवाज घंटी बजाने से पैदा होती हैं और उसी नाद का प्रतीक घंटी को माना जाता है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जागृत होता है। कहा जाता है कि जब धरती पर प्रलय आएगा तब भी यही नाद गूंजेगा।वैज्ञानिक महत्वमंदिर में या घर में घंटी लगाने का वैज्ञानिक महत्व कुछ और ही है। इस महत्व को घंटी की ध्वनि के आधार पर बताया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, जब घंटी बजाई जाती हैं तो वातावरण में कंपन पैदा होता है और ये कंपनी वायुमंडल में काफी दूर तक जाता है, जिससे आसपास के वातावरण में मौजूद जीवाणु, सूक्ष्म जीव और विषाणु नष्ट हो जाते हैं और वातावरण शुद्ध हो जाता है। यही वजह है कि लोग अपने घरों में विंड चाइम्स लगाते हैं ताकि उसकी ध्वनि से नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाएं और घर में सुख-समृद्धि बरसे। इसलिए अपने द्वार पर एक विंड चाइम्स इसतरह लगाएं, जहां हवा आसानी से आती हो । इस तरह हवा से विंड चाइम्स की घंटियों की आवाज पूरे वातावरण में सुनाई देगी और नकारात्मक ऊर्जा का घर में प्रवेश नहीं होगा।
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जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 105
'करवाचौथ' पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया प्रवचन, आप सभी को 'करवाचौथ' पर्व की हार्दिक शुभकामनायें...
(आचार्य श्री की वाणी यहाँ से है...)
करवा चौथ आज गोविन्द राधे,पतिव्रता पति हित व्रत करवा दे..- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
यह पर्व पति के हित के लिये होता है। जो संसारी पति के हित के लिये लोग करते हैं। किन्तु आप लोग तो माधुर्य भाव के उपासक हैं। श्यामसुंदर के सुख के लिये, उनके हित के लिये, ये व्रत कर सकते हैं।
ये पतिव्रता स्त्रियाँ करती हैं। अनन्य भक्त जो केवल हरि और गुरु दो ही से मन का सम्बन्ध रखते हैं और किसी में मन का अटैचमेंट (attachment) नहीं होने देते, ऐसे अनन्य भक्तों का ये करवा चौथ व्रत होना चाहिये। यद्यपि होता है संसारी पति के लिये, वो तो एक्टिंग है। दिन भर स्त्री पति से लड़ती रहती है और करवा चौथ का व्रत करती है। वो तो अनन्य है भी नहीं। क्यूंकि मन का निरंतर अनुकूल होना पतिव्रत धर्म है। यानि एक सेकंड (second) को भी पति के विपरीत न सोचे, न सोचे - बोले वोले की बात छोड़ो। हमारा पति, क्या हमारा भी भाग्य है ऐसा पति मिला ! दिन भर आप लोग अपने पति के प्रति ऐसी बातें पचास बार सोचते हैं। वो पतिव्रता नहीं।
एक पतिव्रता स्त्री धान कूट रही थी। पति बाहर से आया उसने कहा पानी पिला दे। तो उसने मूसल को ऊपर ही छोड़ दिया हाथ से ये वाक्य सुनते ही। तो वो मूसल ऊपर ही टंगा रहा। वो गई, पानी दिया, पानी पी के पति चला गया. उसकी पड़ोसन भी वहीं बैठी हुई थी, उसने देखा कि ये अजीब जादू है। ये मूसल ऊपर ऐसे रुका रहा आकाश में, तो उसने पूछा तूने कोई मंत्र सिद्ध किया है? कैसे ये ऐसा हो गया? उसने कहा नहीं ये तो पतिव्रत धर्म में ये कमाल होता है। ऐसी बातें कर सकती है वो स्त्री। तो वो पतिव्रता का अर्थ समझती थी कि शरीर का सम्बन्ध खाली पति में हो और कहीं न हो वो पतिव्रता है। ऐसा समझती थी वो पतिव्रता का अर्थ और लड़ती रहती थी दिन भर।
वो अपने घर गई और पति से कहती है देखो जी मैं ऐसे मूसल करुँगी तो तुम कहना पानी लाओ, तो ये मूसल ऊपर टंगा रहेगा ऐसे। पति ने कहा क्यों? पतिव्रत धर्म में ये कमाल होता है। पति को बड़ा कौतुहल हुआ उन्होंने कहा ठीक है मैं ऐसे बोलूँगा। तो उसने ऐसे मूसल को जो ऊपर किया, पति ने कहा पानी लाओ, तो मूसल छोड़ दिया वो नाक के ऊपर होता हुआ नीचे गिर गया ,पति हँसने लगा। अब स्त्री को बड़ी शर्म आई कि अब तो इसको हमारे कैरेक्टर (character) ) पर भी डाऊट (doubt) हो जाएगा कि मैं पतिव्रता नहीं हूँ। वो गई पड़ोसन के यहाँ लडऩे कि क्यों रे! तूने तो मेरी नाक कटा दी।
तो उसने समझाया देख सखी ! पतिव्रता का अर्थ होता है जो पति के खिलाफ कभी कुछ मन से भी न सोचे। मन से भी। तो तूने तो पति के खिलाफ हज़ार बार सोचा है। क्या हमारी भी तकदीर है ऐसा पति मिला और ज़बान से भी लड़ती रहती है। उसको पतिव्रता नहीं कहते।
तो ऐसे ही जो भक्त भगवान् की हर क्रिया में विभोर हों। गौरांग महाप्रभु ने कहा था.. 'हे श्यामसुंदर ! तुम चाहे मेरा आलिंगन करके प्यार कर लो और चाहे चक्र चला करके गर्दन काट दो और चाहे उदासीन हो जाओ, हम तो उसी प्रकार प्यार करेंगे तुम्हारे हर क्रिया में, विभोर होंगे।' ये व्रत है, भगवत्व्रत कहो, पतिव्रत कहो।
तो कोई भी व्रत मन से होता है। अगर मन गड़बड़ हो गया तो वो व्रत नहीं है। वो मातृव्रत, पितृव्रत हो, गुरुव्रत हो, भगवत्व्रत हो, कोई व्रत हो। तो ये करवा चौथ पतिव्रता स्त्रियों के लिये होता है, जो पति की भक्त होती हैं और असली पति आत्मा का भगवान् है। इसलिए श्री कृष्ण के प्रति आप लोगों को यदि इच्छा हो तो व्रत करो। व्रत का मतलब ये नहीं है कि खाना न खाना। ये तो ढोंग है, दंभ है, पाखण्ड है, दिखावा है। खाना न खाना एक दिन अच्छा है पेट अच्छा हो जाएगा। एक टाइम (time) न खाओ, दोनों टाइम न खाओ, खाली फल खाओ, फल भी न खाओ - ये सब तो बाहरी क्रियाएं हैं। असली व्रत है मन का चिंतन, मन का अनुकूल होना, मन से उनकी उपासना करना, सेवा करना - ये असली चीज़ है। तो करवा चौथ का ये अभिप्राय असली है, स्पिरिचुअल। उसी को मान कर आप लोग श्री कृष्ण भक्ति करें. ये संसारी पति-वति का मामला आपके व्रत करने से सब निरर्थक है। न पति की उमर बढ़ेगी, न कल्याण होगा। आप चाहे दस बीस दिन भूखे रहें उससे कुछ नहीं होना जाना है।
(प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् स्वामी श्री कृपालु जी महाराज)
00 सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, अक्टूबर 2008 अंक00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हमारे जीवन में पेड़े-पौधे अहम हिस्सा निभाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें या फिर धार्मिक या फिर वास्तु शास्त्र की नजर से, ये पेड़ पौधे हमारे लिए लाभकारी ही साबित होते हैं। यूं तो पैसे कमाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, मगर कई बार ऐसा होता है कि ऐसा करने के बावजूद घर में तंगहाली ही बनी रहती है। इसके लिए कई वास्तु उपाय हैं। आज हम जानते हैं, ऐसे पांच पौधों के बारे में, जिनके बारे में कहा जाता है कि यह जातक की आर्थिक स्थिति को संबल प्रदान करते हैं।दरअसल वास्तु में कुछ ऐसे पेड़-पौधों के बारे में बताया गया है , जिन्हें घर में लगाना पेड़ों में पैसा उगाने जैसा माना जाता है। जी हां वास्तु में इन पेड़-पौधों को धन और समृद्धि से जोड़कर देखा जाता है। आइए आज हम आपको बता रहे हैं ऐसे 5 पेड़-पौधे जो आपके घर में कभी भी आर्थिक तंगी नहीं लाने देंगे।मनीप्लांटमनी प्लांट को काफी समय से लोगों के पसंदीदा पौधे के रूप में देखा जाता है। इसकी बेल देखने में भी बेहद खूबसूरत लगती है और साथ ही यह वातावरण को भी शुद्ध करने का काम करता है। मनीप्लांट को आग्नेय कोण में लगाना उचित माना गया है और इस दिशा में यह खूब फलता और फूलता भी है। माना जाता है कि मनी प्लांट को घर में लगाने से घर में कभी पैसों की कमी नहीं होती और पैसों की वजह से आपका कोई काम नहीं रुकता।शमी का पेड़शमी के पेड़ को वास्तु के लिहाज से बेहद खास माना जाता है। शमी का पेड़ शंकरजी को सबसे प्रिय माना जाता है। मान्यता है कि शमी के पेड़ को घर में लगाने से सारी दरिद्रता दूर होती है। कहा जाता है कि सोमवार को शमी के पुष्प और पत्ते शिवजी को चढ़ाने से घर में सुख समृद्धि आती है। इसे भी पैसों का पेड़ कहा जाता है कि क्योंकि यह घर की गरीबी को दूर कर देता है।मनी ट्रीवास्तु में मनी ट्री नाम से एक पौधा आजकल काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसकी उत्पत्ति अमेरिका की है और इसे मनी ट्री के नाम से जाना जाता है। चाइनीज फेंगशुई और वास्तु में इस पौधे को बेहद ही खास माना जाता है। आजकल यह कुछ चुनिंदा नर्सरी में या फिर ऑनलाइन यह आपको आसानी से उपलब्ध हो सकता है। इस पौधे को ही क्रासुला कहते हैं और यह एक फैलावदार पौधा है, जिसकी पत्तियां चौड़ी होती हैं, मगर हाथ लगाने से मखमली अहसास होता है। इस पौधे की पत्तियों का रंग ना तो पूरी तरह से हरा होता है और न ही पूरी तरह से पीला। यह दोनों रंगों से मिश्रित होती हैं। मगर अन्य पौधों की पत्तियों की तरह कमजोर नहीं होतीं जो हाथ लगाते ही मुड़ या टूट जाएं। मनी प्लांट की तरह इस पौधे के लिए ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। अगर आप दो-तीन दिन बाद भी पानी देंगे तो यह सूखेगा नहीं। क्रासुला घर के भीतर छांव में भी पनप सकता है। यह पौधा अधिक जगह भी नहीं लेता। आप इसे छोटे से गमले में भी लगा सकते हैं। अब अगर धन प्राप्ति की बात करें तो फेंग शुई के अनुसार क्रासुला अच्छी-ऊर्जा की तरह धन को भी घर की ओर खींचता है। इस पौधे को घर के प्रवेश द्वार के पास ही लगाएं। जहां से प्रवेश द्वार खुलता है, उसके दाहिनी ओर इसे रखें। कुछ ही दिनों में यह पौधा अपना असर दिखाना शुरू कर देगा। घर में हर तरह की सुख-शांति भी बरकरार रहेगी।अश्वगंधावास्तु में अश्वगंधा के पौधे को बेहद समृद्धशाली माना जाता है। घर में अश्वगंधा का पेड़ लगाने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह एक औषधि के भी काम आता है और इसके कई प्रकार के लाभ हैं। अश्वगंधा के पुष्प भगवान की पूजा में भी काम आते हैं।श्वेतार्कयह एक दूध वाला पौधा होता है और इसे भी सौभाग्य का सूचक माना जाता है। श्वेतार्क नामक इस पौधे को गणेशजी का प्रतीक माना जाता है। भगवान शंकर को भी इसके फूल अति प्रिय हैं। वास्तु के अनुसार कोई भी सफेद पदार्थ निकलने वाले पौधे को घर में नहीं लगाना चाहिए। बेहतर होगा कि आप इसे घर के अंदर के बजाए बालकनी या फिर बरामदे में लगा सकते हैं। इससे घर में सुख शांति और सदैव बरकत बनी रहती है।
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जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 104
श्रीराधाकृष्ण प्रेम संबंधी साधन सामग्रियों से अलंकृत अपनी 'प्रेम-रस-मदिरा' ग्रन्थ में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने निम्नांकित पद में मन को संबोधित करते हुये कहा है कि इस मन ने अनादिकाल से आनंदप्राप्ति के अपने लक्ष्य के लिये उन द्वारों को खटखटाया जहाँ आनंद था ही नही। कभी उस दरबार में नहीं गया जहाँ नित्य-निरंतर कृपा की वृष्टि होती रहती है। आइये हम इस पद का आधार लेकर उस कृपामय दरबार का पता जानें तथा उसी के द्वार पर जाकर बिगड़ी बनाने की याचना करें :::::::
'प्रेम-रस-मदिरा' ग्रन्थसिद्धान्त माधुरी, पद - 16
अरे मन ! मू रख निपट गँवार।बिगरत आपु बिगारत मो कहँ, नेकु न करत विचार।कोटि-कल्प भटक्यो ज्यो शूकर, विष्ठा-विषय मझार।बिनु सेवा जहँ पाइय मेवा, गयो न तेहि दरबार।दोउ कर-कमल नर देह सुदुर्लभ, मिलत न बारम्बार।साधन बिनुहि 'कृपालु' द्रवत जो, को अस सरल उदार।।
भावार्थ - अरे मन! तू वास्तव में अत्यन्त ही मूर्ख एवं नासमझ है। तू आप अपना भी नाश कर रहा है, साथ ही मेरा भी नाश कर रहा है। तू इस विषय में थोड़ा सा भी विचार नहीं करता। तुझे सांसारिक विषय-वासना रूपी विष्ठा में शूकर की तरह भटकते हुए करोड़ों कल्प बीत गये, फिर भी कुछ भी न पा सका। जिन किशोरी जी के दरबार में बिना साधन के ही तू सब कुछ पा जाता, उस दरबार में तू हठवश कभी न गया। तुझे वृषभानुनंदिनी अपनी दोनों कोमल भुजाओं को पसारे परख रही हैं। ऐसा अवसर एवं देवदुर्लभ मानव-देह तुझे बार-बार न मिल सकेगा। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि सबसे बड़ी बात तो यह है कि वृषभानुनंदिनी के सिवा ऐसा सरल एवं उदार हृदय वाला और तुझे कौन मिलेगा जो बिना साधन के ही शरणागत को सदा के लिए अपना बना ले।
०० रचयिता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 103
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से नि:सृत 'शरणागति' तत्व पर 2 महत्वपूर्ण प्रवचन अंश ::::::::
(1) संत और भगवान दया के सिवाय और कुछ कर ही नहीं सकते। अपनी बुद्धि को संत की बुद्धि में जोड़ दो। बस पूर्ण शरणागति यही है। प्रत्येक अवस्था में दया कौन सी है, यह समझ में नहीं आता। कृपालु संत की कृपा का लाभ वही उठा सकता है जो उनकी कृपा के तत्व को समझता है। संत भी ऐसे मनुष्य को पाप से नहीं बचा सकते जो उनके कथनानुसार नहीं चलता।
(2) भटकना भगवद-शरणागति की आवश्यकता जानने तक ही है। पश्चात शरणागत जीव को अपने गुरु द्वारा बताये गये साधन और सिद्धान्त के सिवा अन्य कुछ भी पढऩा, सुनना एक विघ्न ही है और अनन्यता का विरोधी है क्योंकि शरणागति ही साधना और सिद्धि है। इसलिए शरणागति (समर्पण) मार्ग अन्य मार्गों से विलक्षण और विचित्र सा प्रतीत होता है। यहाँ बुद्धि का उपयोग सिर्फ शरणागति के द्वार तक पहुँचाने तक ही सीमित है। बाद में शरण्य की सत्ता मात्र रहती है।
0 सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, मार्च 1998 अंक0 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों से उद्धृत आत्मिक कल्याण के लिये 5 सार बातें :::::::
(1) जीव अगर भगवान की चर्चा तथा उनकी लीला का चिन्तन कर ले तो उसका उद्धार हो जायेगा।
(2) साधनाकाल में, भगवान की इच्छा में इच्छा रखकर जो जीव चलेंगे, वे ही शीघ्रता से आगे बढ़ सकेंगे।
(3) बिना भक्ति के कितना ही बड़ा ज्ञान हो, कैसा ही निष्काम कर्म हो, तो भी अंत:करण शुद्ध नहीं होगा।
(4) जहाँ तक उपासना की बात है, या तो गुरु की भक्ति करो अथवा गुरु और भगवान दोनों को बराबर मानों। केवल भगवान की भक्ति नहीं हो सकती।
(5) जो शरीर को 'मैं' मानते हैं वे शारीरिक सुखों का लक्ष्य बनाते हैं और जो आत्मा को 'मैं' मानते हैं वे आत्मा सम्बन्धी लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों से उद्धृत)
0 सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2001 अंक0 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।--- -
00 जगदगुरुत्तम अवतरण विशेष - माँ भगवती महोत्सव
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी का अवतरण 1922 में शरद-पूर्णिमा की महारात्रि में इलाहाबाद के निकट मनगढ़ नामक छोटे से ग्राम में उच्च ब्राम्हण कुल में हुआ। वे इस युग के परमाचार्य हैं, भक्तियोगरसावतार हैं, निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य हैं। एक अलौकिक व्यक्तित्व हैं, अपने शरणागतों के लिये उनका स्थान ऐसा है जैसे श्रीराधाकृष्ण तथा गुरु में कुछ भेद रह ही नहीं गया हो। ऐसी विभूति की जननी होने का सौभाग्य जिन्हें प्राप्त हो, उनके सौभाग्य की क्या तुलना हो सकती है। अखंड सौभाग्यवती माँ भगवती! जिनकी गोद में यह विभूति अवतरित हुई, आइये मन के भावराज्य में जाकर उनके श्रीचरणों में वन्दना के कुछ पुष्प अर्पित करें ::::::
हे भगवती मैया!!जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी की जननी होनेका परमातिपरम सौभाग्य प्राप्त करने वाली हे माता!
आपके चरणारविन्दों की बारम्बार वंदना..
आपकी गोद में शरद-पूर्णिमा की रात्रि में 'कृपा-शक्ति' का अवतरण हुआ है, इस युग के पंचम मूल जगदगुरुत्तम और भक्तियोग रस के अवतार श्री कृपालु महाप्रभु जी की जननी होने का परमातिपरम सौभाग्य आपको प्राप्त हुआ है। आपके ये लाड़ले सुत (पुत्र) उनके हम शरणागतों के लिये 'शरद-चंद्र' हैं। समस्त जगत आज उनके ज्ञान से आलोकित तथा प्रेम से सराबोर है। आज आपके द्वार पर उनके 'जन्म' का अनोखा महोत्सव दर्शनीय है!!
जैसा आनन्द ब्रम्ह श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में 'नन्द-महामहोत्सव' में बरसा था, वैसा ही आनंदोल्लास आज आपके आँगन में बरस रहा है। इस 'भगवती-महामहोत्सव' के हम भी साक्षी बनने की याचना करते हैं।
वेद और शास्त्रों ने न जाने कहाँ उन पुण्यों का वर्णन किया है, जिसका सुफल यह होता है कि ऐसा सौभाग्य प्राप्त हो। लगता तो ऐसा है कि वेदादि श्रुतियाँ भी स्वयं आपके सौभाग्य की स्तुति करती होंगी!! आपने तथा पूजनीय पिता (श्री लालता प्रसाद त्रिपाठी जी) ने अपने 'कृपालु' सुपुत्र का आनंद और मस्ती से भरा बालपन देखा और जीया है।
संस्मरण :::::: एक दिन गाँव के ही एक प्रसिद्ध पंडित श्री नागेश्वर जी आपके (भगवती मैया) पास आये थे। आपने 'कृपालु' की जन्मपत्री उनके सामने रखी और अपने सुपुत्र का भविष्य पूछा। वे बड़ी देर तक गणना करते रहे फिर बोले :
'माँ जी! इसके नक्षत्र तो कहते हैं, यह कोई देव-पुरुष है. संसार का उद्धार करने आया है...'
आज विश्वविदित है कि आपका वह 'लाड़ला' सारे जगत का पूज्यनीय बना और सारे जगत पर अपनी दया, कृपा और प्रेम की वृष्टि की. वह 'जगदगुरुत्तम' कहलाया!!
आपके सुपुत्र सदैव आपके आज्ञाकारी रहे। आपने अपने लाड़-दुलार से सदैव उनका पालन किया है। हे भगवती मैया! हम भी आपके पुत्र-पुत्रियाँ ही तो हैं, हम भी आपका दुलार पाने और आपके 'लाड़ले' की सेवा करने को व्याकुल हैं। हे माँ! हम पर कृपा करो, हमें अपनी चेरी (दासी) बना लो और अपने 'कृपालु' की सेवा करने का सौभाग्य दे दो, हम सदा-सदा आपके ऋणी बने रहेंगे!!
आज आपके द्वार पर हर्षोल्लास है!! बधाईयाँ गाई जा रही हैं। सब एक-दूसरे को 'बधाई हो, बधाई हो' कह-कहकर प्रसन्नता बाँट रहे हैं। क्या स्त्री, क्या पुरुष? आपके दुआर पर तो देवी-देवता भी वंदन कर रहे हैं। ऐसे दुआर पर हम विश्व के प्रेम-पिपासु व्याकुल जीव याचना करते हुये आपको बधाई देने आये हैं। टूटे-फूटे शब्दों में आपकी तथा आपके सुपुत्र की स्तुति गाने का प्रयास करते हुये हे माँ! आपके चरणों पर हम सभी बारम्बार बलिहारी जाते हैं। आपको बहुत सारी बधाई, हमारा हृदय आपके 'कृपालु' की कृपाओं का चिरयुगी ऋणी है, आभारी है, कृतज्ञ है।
उनके द्वारा प्रदत्त, प्रगटित प्रवचन-साहित्यों, स्मृतियों तथा प्रेम, भक्ति तथा कीर्ति मन्दिर जैसे दिव्योपहारों के दर्शन, सँग करते-करते निश्चय ही हम सभी अपने कल्याण के पथ पर अग्रसर करेंगे और उनकी दिव्य सन्निधि का अनुभव कर-करके श्यामा-श्याम की सेवा प्राप्त कर लेंगे।
समस्त विश्व-परिवार को 'माँ भगवती-महोत्सव' की अनंत शुभकामनायें!! - तुलसी के पौधे को हिंदू धर्म में पूजा के लिए बहुत ही ज्यादा पवित्र माना गया है, जो अपने औषधीय गुणों के लिए भी जानी जाती है। । हिंदू पुराणों के अनुसार तुलसी को देवी के रूप में पूजा जाता है साथ ही पूजा-पाठ , अनुष्ठान, व्रत-त्योहार में तुलसी का इस्तेमाल करना बहुत ही ज्यादा शुभ माना जाता है। वैसे तो प्रकृति ने हमें अलग-अलग प्रकार के पौधे और उनकी सुंदरता दी है लेकिन इन सभी के बीच तुलसी के पौधे को सबसे ज्यादा महत्ता दी जाती है। तुलसी का पौधा केवल धार्मिक महत्व नहीं रखता बल्कि यह एक चमत्कारी औषधि भी है। यदि आपके घर में तुलसी का पौधा लगा हुआ है और उसके पास से या उससे होकर आपको जो हवा मिल रही है तो वह आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा लाभकारी है। तुलसी के पौधे की हवा बहुत ही ज्यादा फायदेमंद होती है।घर में तुलसी का पौधा घर के आंगन में या फिर छत पर लगाकर उस में प्रतिदिन जल चढ़ाना चाहिए। साथ ही शाम के समय तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाना मंगलकारी माना जाता है। माना जाता है कि जिस घर में इस तरह से तुलसी की पूजा होती है, वहां सुख समृद्धि का आगमन होना निश्चित है। साथ ही सभी देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत ही ज्यादा प्रिय है। तुलसी को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है, इसी वजह से भगवान विष्णु को तुलसी से अधिक प्रेम है। जब भी आप भगवान विष्णु की पूजा करें तो उनकी पूजा की सामग्री में तुलसी को अवश्य शामिल करें। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा तुलसी से करने से व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन और सुख की कमी नहीं रहती। साथ ही दांपत्य जीवन भी बहुत ही ज्यादा खुशहाल रहता है।वास्तु शास्त्र के अनुसार तुलसी के पत्ते को एकादशी , रविवार और मंगलवार के दिन बिल्कुल भी नहीं तोडऩा चाहिए यह काफी अशुभ होता है। वास्तु शास्त्र शास्त्र के अनुसार घर में तुलसी का पौधा लगाने से वास्तु संबंधित सभी तरह के दोष दूर हो जाते हैं। उत्तर- पूर्व दिशा को धन के देवता यानी कुबेर की दिशा मानी जाती है। इसीलिए घर की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए या वृद्धि लाने के लिए वास्तु शास्त्र के अनुसार तुलसी के पौधे को उत्तर पूर्व दिशा में लगाना चाहिए या फिर ईशान कोण में । यानी तुलसी के पौधे के लिए उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा का चुनाव करना चाहिए. इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है और नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। बहुत से लोग तुलसी के पौधे को घर के आंगन के सेंटर में रख देते हैं, लेकिन वास्तु के अनुसार तुलसी के पौधे को हमेशा घर के किसी कोने में रखना चाहिए।किस दिन जल न चढ़ाएं?लोग वैसे तो हर दिन तुलसी जी को चल चढ़ाते हैं लेकिन शास्त्रों में माना गया है की रविवार, एकादशी और सूर्य व चंद्र ग्रहण के समय तुलसी को जल नहीं चढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही इस दिन तुलसी के पत्तों को भी नहीं तोडऩा चाहिए। रविवार के दिन आप जल की बजाय दूध चढ़ा सकते हैं और साथ ही घी का दीपक जलाएं, ऐसा करने से हमेशा लक्ष्मी जी का वास रहेगा। ध्यान रहे घर पर कभी भी सूखा हुआ तुलसी का पौधा ना लगाएं।वास्तु दोष से छुटकारातुलसी को रसोई के पास लगाने से कई सारे फायदे होते हैं। ऐसा कहते हैं कि इससे पारिवारिक कलह कम होती है। इसके साथ ही घर में वास्तु दोष को दूर करने के लिए तुलसी के पौधे को अग्नि कोण यानि की दक्षिण-पूर्व से लेकर उत्तर पश्चिम तक के किसी भी खाली जगह पर लगाएं।इन चीजों के लिए लें तुलसी का सहाराअगर आपकी लड़की की शादी में देरी हो रही है तो ऐसे में तुलसी को अग्नि कोण में रखकर अपने बेटी से रोज उसमें जल अर्पण करवाएं, फल जल्द मिलेगी। इसके अलावा अगर बिजनेस सही नहीं चल रहा है तो ऐसे में तुलसी जी को दक्षिण-पश्चिम में रखें और हर शुक्रवार को सुबह कच्चा दूध चढ़ाएं साथ ही मिठाई का भोग लगाएं।तुलसी देती है मुसीबत का संकेततुलसी का पौधा आपको बुरी चीजों से पहले ही सतर्क कर देता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब भी कोई मुसीबत आने वाली होती है तो तुलसी चली जाती है, क्योंकि दरिद्रता, अशांति या क्लेश के बीच में उनका निवास नहीं होता है। इसलिए तुलसी का पौधा सूखने लगा है, तो उसे विसर्जित कर उसके स्थान पर हराभरा पौधा लगाकर उसकी पूजा करें।----
- -जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज का अवतरण-दिवस
समस्त पाठक-समुदाय सहित समस्त विश्व को परमाचार्य भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के अवतरण-दिवस की अनंत-अनंत शुभकामनायें, आइये आज उनके माहात्म्य के विषय में कुछ स्मरण करते हुये अपने मन की पावन भावनाओं को उनके श्रीचरणों में अर्पित करते हुये उनसे कृपा की याचना करें कि वे अपने ज्ञान, अपनेपन, प्रेम की छाया हम पर रखें, जिससे अज्ञान के अंधकार से निकलकर हम भगवत्प्रेम तथा रस के समुद्र में अवगाहन के अधिकारी बन सकें। आप सभी पाठकों के साथ उनके दिव्य सिद्धान्तों को साझा करते हुये आज यह श्री कृपालु महाप्रभु जी सम्बन्धी 100-वाँ शीर्षक भी है। हरि-गुरु इच्छा-पर्यन्त आप सबकी इसी तरह सेवा करने के संकल्प सहित आप सबके प्रति शुभेच्छा.......
...शरद-पूर्णिमा की मध्यरात्रि..जिनका पावन अवतरण-दिवस है!!
'शरद पूर्णिमा 7 7 जगदगुरुत्तम जयंती'
अलौकिक विभूति :::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज!!!
...1922 की शरद-पूर्णिमा की मध्यरात्रि में उत्तर-प्रदेश में इलाहाबाद के निकट 'मनगढ़' नामक छोटे से ग्राम में माँ भगवती की गोद में प्राकट्य, वही रात्रि, जब श्रीराधारानी की अनुकंपा से श्रीकृष्ण ने अनंतानंत गोपियों को महारास का रस प्रदान किया था। यही 'मनगढ़' आज 'भक्तिधाम' के नाम से सुविख्यात है!
...बाल्यावस्था से अलौकिक गुणों से सम्पन्न, चित्रकूट के सती अनुसुइया आश्रम तथा शरभंग आश्रमों के बीहड़ जंगलों में परमहंस अवस्था में वास। निरंतर 'हा राधे!' 'हा कृष्ण' का क्रंदन एवं प्रेमोन्मत्त विचित्र अवस्था। चित्रकूट; जो आपके विद्यार्थी, साधक, सिद्ध अवस्था तीनों की साक्षी और 'जगदगुरुत्तम' बनने की भी आधार बनी।
...परमहंस अवस्था से सामान्यावस्था में आकर जीव-कल्याण के लिये 'श्रीराधाकृष्ण भक्ति' का प्रचार प्रारंभ किया और अपने भीतर छिपे ज्ञान के अगाध भंडार को प्रगट किया।
...1957 में 34 वर्ष की आयु में भारतवर्ष की 500 मूर्धन्य विद्वानों की सर्वमान्य सभा 'काशी विद्वत परिषत' द्वारा 'पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम' की उपाधि से विभूषित हुये। आदि जगद्गुरु श्री शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य एवं माध्वाचार्य जी के बाद पंचम मौलिक जगद्गुरु हुये।
...श्रीराधाकृष्ण प्रेम के जो स्वयं ही मूर्तिमान स्वरुप हैं, दिव्य महाभावधारी; आपके विलक्षण प्रेमोन्मत्त स्वरुप जिन्हें स्वयं ही 'भक्तियोगरसावतार' सिद्ध करता है। श्री गौरांग महाप्रभु द्वारा प्रचारित संकीर्तन पद्धति का अपूर्व विस्तार करते हुये जिन्होंने समस्त प्रेमपिपासुओं को 'राधाकृष्ण' के मधुर नाम, धाम, गुण एवं लीला के संकीर्तनों एवं पदों के रस में सराबोर कर दिया।
...ज्ञान का ऐसा अगाध समुद्र जिसमें कोई जितना अवगाहन करे, पर थाह नहीं पा सकता। बिना खंडन के जिन्होंने समस्त शास्त्रों एवं अन्यान्य धर्मग्रंथों के सिद्धांतों का समन्वय कर दिया और अंधविश्वासों एवं कुरुतियों का उन्मूलन/सुधार किया। आप समस्त विद्वानों द्वारा 'निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य' के रुप में सुशोभित हुये। और आपके लिये संत-समाज ने कहा है 'न भूतो न भविष्यति!!'
...समस्त विश्व को जिसने श्रीराधाकृष्ण की सर्वोच्च माधुर्यमयी ब्रजरस अर्थात गोपीप्रेम का रस प्रदान किया, जिन्होंने उस रस की प्राप्ति का सरल, सुगम एवं अत्यंत व्यवहारिक सिद्धान्त दिया। समस्त साधनाओं के प्राण 'ध्यान' को जिन्होंने 'रुपध्यान' नाम देकर अधिक सुस्पष्ट किया। और अपने आचरणों से स्वयं भक्ति साधना का मार्गदर्शन किया। इस महादान में क्या जाति-पाति, क्या देश-धर्म, क्या छोटे-बड़े - सब ही भागी बने हैं।
...जिनके कोई गुरु नहीं, फिर भी स्वयं जगदगुरुत्तम हैं। जिन्होंने कभी कोई शिष्य नहीं बनाया परन्तु जिनके लाखों करोड़ों अनुयायी हैं। सुमधुर 'राधा' नाम को विश्वव्यापी बनाया और पहले ऐसे जगद्गुरु जो विदेशों में भक्ति के प्रचारार्थ गये।
...अपने शरणागत जीवों के सँग जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से सदैव सँग हैं और अबोध जानकर जो हमेशा सुधार की 'महान आशा' लिये अपराधों पर निरंतर क्षमादान देते रहे हैं। पल भर को जिनका विछोह कभी अनुभूत नहीं हुआ। आज भी उनकी शरण आने वालों को उनके नित्य सँग की अनुभूति सहज है।
...समस्त विश्व पर जिनका अनंत उपकार है। वृन्दावन का 'प्रेम मंदिर', बरसाना का 'कीर्ति मैया मंदिर' और भक्तिधाम मनगढ़ का 'भक्ति मंदिर'; इसके अलावा इन्हीं तीनों धामों में 'प्रेम भवन', 'भक्ति भवन' एवं 'रँगीली महल' के साधना हॉल जिनकी कीर्ति और उपकार का चिरयुगीन यशोगान करेंगे और अनंतानंत प्रेमपिपासु जीवों को भक्तिरस का पान कराते रहेंगे। उनके द्वारा रचित एवं प्रगटित ब्रजरस साहित्य एवं प्रवचन हृदयों में भगवत्प्रेम की सृष्टि करते रहेंगे।
........और अधिक क्या कहें? संत के उपकार कहने का सामथ्र्य किस वाणी में है? स्वयं भगवान तक तो असमर्थ हैं, फिर कोई जीव क्या गिनावे? सत्य तो यही है कि 'जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु' न केवल नाम से अपितु अपने रोम-रोम से 'कृपालु' रहे, हैं और रहेंगे!
वही श्री गौरांग महाप्रभु, वही श्री कृपालु महाप्रभु!! यह भी कहना अतिश्योक्ति न होगी। कह सकते हैं;
...अद्यापिह सेइ लीला करे गौर राय,.....कोन कोन भाग्यवान देखिवारे पाय..
'शरद-पूर्णिमा' (30 अक्टूबर) उनका अवतरण दिवस है। जिन्होंने भी उनकी शरण ग्रहण की है, वे अपने ऊपर उड़ेले गये उनके प्रेम, कृपा, अपनेपन, सान्निध्य और मार्गदर्शन के साक्षी हैं। फिर वे तो समस्त विश्व के गुरु हैं। समस्त विश्व इतना ही तो कर सकता है कि 'उनके द्वारा दिये गये सिद्धान्त को आत्मसात कर ले और उनकी बताई साधना द्वारा भगवत्प्रेम बढ़ाते हुये अंत:करण शुद्ध करके अपने प्राणाराध्य राधाकृष्ण के प्रेम और सेवा को पाकर धन्य हो जाय'....
....यही देने और दिलाने तो वे आये, हम वह प्राप्त कर लें, अथवा प्राप्त करने के लिये तैयार हो जायँ, व्याकुल हो जायँ तो उनको कितनी ही प्रसन्नता होगी!! आओ, शरद-पूर्णिमा पर क्रंदन करें, उनकी कृपाओं के लिये, उनके परिश्रम के लिये, उनके क्षमादान के लिये.. उनकी सेवा, सँग और मार्गदर्शन पाने के लिये।
हे जगदगुरुत्तम!! अनंतानंत हृदयों में आप सदैव विराजमान हो। आपकी सन्निधि प्राप्त कर यह धरा अत्यन्त पावनी बन गई है. आपको कोटिश: प्रणाम!!!
000 शुभकामनाएं :::: जगद्गुरु कृपालु परिषत, छत्तीसगढ़ राज्य। - 30 अक्तूबर शुक्रवार को शरद पूर्णिमा है। हिंदू धर्म में हर महीने आने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। इन सभी में शरद पूर्णिमा का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है और अपनी किरणों से अमृत की बूंदे पृथ्वी पर गिराते हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को खुले आसमान के नीचे चावल की खीर रखे जाने की परंपरा है, ताकि आसमान से बरसता अमृत उस पर गिरे और इसका लाभ आम इंसान भी उठा सकें। शरद पूर्णिमा को आश्विन पूर्णिमा भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की तिथि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक रहता है और रात को चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण की मात्रा सबसे ज्यादा होती है जो मनुष्य को तरह बीमारियों से छुटकारा पाने में मदद होती है।भगवान श्रीकृष्ण ने रचाया था महारासऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण शरद पूर्णिमा की तिथि पर ही वृंदावन में सभी गोपियों संग महारास रचाया था। इस वजह भी शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। शरद पूर्णिमा के दिन मथुरा और वृंदावन सहित देश के कई कृष्ण मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं। रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है, क्योंकि कहा जाता है इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा झरती है। इस दिन श्रीकृष्ण को 'कार्तिक स्नान' करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को चीर हरण के अवसर पर दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरली वादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है।देवी लक्ष्मी की भी होती है आराधनावहीं ये भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और घर-घर जाकर यह देखती हैं कि कौन रात को जग रहा है। इस कारण इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। कोजागरी का अर्थ होता है कि कौन-कौन जाग रहा है। मान्यता है कि इसी दिन देवी लक्ष्मी घर-घर जाकर भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। शरद पूर्णिमा पर रात भर जागकर माता लक्ष्मी की स्तुति की जाती है। शरद पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं। भक्त देवी लक्ष्मी का प्रिय भोग और वस्तुएं अर्पित करते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शरद पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कमल गट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र- ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नम:। शास्त्रों में शरद पूर्णिमा को कोजागर व्रत यानी कौन जाग रहा है व्रत भी कहते हैं। कहा जाता है कि इस दिन की लक्ष्मी पूजा सभी कर्जों से मुक्ति दिलाती हैं इसीलिए इसे कर्जमुक्ति पूर्णिमा भी इसी लिए कहते हैं। इस रात्रि को श्रीसूक्त का पाठ,कनकधारा स्तोत्र ,विष्णु सहस्त्र नाम का जाप करना चाहिए। ज्योतिषियों के मुताबिक इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने और पूर्णिमा का व्रत रखने से योग्य वर-वधु के अलावा संतान प्राप्ति की कामना भी पूरी होती है।पवित्र कार्तिक स्नान का होगा प्रारंभकार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारम्भ होता है। विवाह होने के बाद पूर्णिमा (पूर्णमासी) के व्रत का नियम शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए।शरद पूर्णिमा पर क्या करेंइस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए। रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर अद्र्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना) करना चाहिए। पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें तथा खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें तथा सबको उसका प्रसाद दें। पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुननी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाएँ। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अध्र्य दें।शरद पूर्णिमा की कथाएक साहूकार की दो पुत्रियां थीं। वे दोनों पूर्णमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थी पर छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन के जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परन्तु बड़ी बहन की सारी संतानें जीवित रहतीं। एक दिन छोटी बहन ने बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाकर अपना दु:ख बताया तथा उनसे कारण पूछा। पण्डितों ने बताया- 'तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इसीलिए तुम्हारी संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिमा का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहेंगी।' तब उसने पण्डितों की आज्ञा मानकर विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया। कुछ समय बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसने लड़के को पीढ़े पर लेटाकर उसके ऊपर कपड़ा ढंक दिया। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे वही पीढ़ा बैठने को दे दिया। जब बड़ी बहन बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे से छूते ही लड़का जीवित होकर रोने लगा। तब क्रोधित होकर बड़ी बहन बोली- 'तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। यदि मैं बैठ जाती तो लड़का मर जाता।' तब छोटी बहन बोली- 'यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं तू पूरा करती है और मैं अधूरा, जिसके दोष से मेरी संतानें मर जाती हैं, लेकिन तेरे पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है।' इसके बाद उसने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज से सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत करें, यह संतान सुख देने वाला है।
- धन और अवसर के दिशा क्षेत्र उत्तर में जब कूड़ेदान को रखा जाता है तो यह कॅरिअर में नए विकल्पों की प्राप्ति में रोड़े अटकता है। नौकरी ढूंढऩे वाले नए लोगों के रास्ते में भी यह बाधा उत्पन्न करता है।वास्तु शास्त्र में दिशाएं वैसे ही महत्वपूर्ण होती है जैसे योग और ध्यान में श्वास के प्रति जागृति। 'क्या मैं सही दिशा में हूं?' दिन में कितनी बार यह प्रश्न आप अपने आप से पूछते हैं- शायद कई बार। किस दिशा में क्या रखना चाहिए? उदाहरण के लिए एक अच्छी और चैन की नींद प्राप्त करने के लिए सोने की आदर्श दिशा कौन-सी है? बच्चों को किस दिशा में बैठकर पढ़ाई करनी चाहिए? किस दिशा में धन रखने से अधिक धन को आकर्षित किया जा सकता है।उदाहरण- दक्षिण दिशा मंगल ग्रह की है। मंगल ग्रह अग्नि, जोश, लाल रंग, सुरक्षा, पुलिस कस्टम एवं कर वसूली विभाग को दर्शाता है। यदि नीले कलर का पानी का टैंक आपके घर या ऑफिस में दक्षिण दिशा में है तो दुर्घटनाओं (वाहन या अग्नि के द्वारा), पुलिस या अन्य विभागों द्वारा उत्पीडऩ के रूप में संकटों को झेलना पड़ सकता है।वास्तु शास्त्र में दिशाओं के अनुसार सफलता और उन्नति सुनिश्चित की जा सकती है। इसी आधार पर वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए भवनों को डिजाइन किया जाता है। एक बार जब आपके लिए ऐसा कर दिया जाता है तब आप कभी भी अपने जीवन में दिशाहीन या भटका हुआ महसूस नहीं करते। अन्यथा आप दुविधाओं और भ्रम में रहते हैं। कर्मों के इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए अपने समय, पैसे और मानसिक ऊर्जाओं की बर्बादी करते हैं।आज से कई हजार वर्ष पहले एक आदमी का जीवन जिस प्रकार संचालित होता था उसके आधार पर इन दिशा क्षेत्रों की गतिविधियां वास्तु शास्त्र में लिखी गई हैं। जो कुछ भी आपके जीवन में घटित हो रहा है उसका संबंध किसी न किसी दिशा से है। और उसका प्रत्यक्ष प्रमाण तब दिखता है जब आपको समस्या होती है और समस्या से संबंधित दिशा में आप ठीक वही कारण पाते हैं। जैसे ही आप इन कारणों को वहां से हटा देते हैं तो आपके जीवन में भी यह समस्या दूर हो जाती है।उदाहरण के लिए- धन और अवसर के दिशा क्षेत्र उत्तर में जब कूड़ेदान को रखा जाता है तो यह कॅरियर में नए विकल्पों की प्राप्ति में रोड़े अटकता है। नौकरी ढूंढऩे वाले नए लोगों के रास्ते में भी यह बाधा उत्पन्न करता है। व्यापारियों के लिए इस दिशा में रखा कूड़ादान पुराने ग्राहकों के साथ रिश्ते को बाधित करता है, नए ऑर्डर को रोकता है और पेमेंट रिकवरी में भी कांटे उगाता है। यनी घर में रखे जाने वाले कूड़ेदान को कभी भी उत्तर दिशा में नहीं रखना चाहिए। ऐसा करने पर घर के लोगों को शरीर से जुड़ी कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही उत्तर दिशा को लक्ष्मी की दिशा भी कहते हैं। ऐसी जगह पर कूड़ा रखने से परेशानी आती है और धन की हानि भी होती है। वास्तु कहता है कि अगर आप नौकरी की तलाश कर रहे हैं और बार-बार निराशा हाथ लग रही है, दतो घर में रखे कूड़ेदान की दिशा जरूर देख लें। उत्तर दिशा में रखा कूड़ेदान से पेमेंट रिकवरी में बाधा आती है।घर के पूर्वी भाग में रखे गए कूड़ेदान से हम घर में सफाई करने के लिए प्रेरित रहते हैं व घर से कूड़े की निकासी भी जल्द हो जाती है।घर के दक्षिण दिशा में रखा हुआ कूड़ेदान नियंत्रण से बाहर रहेंगे। जिसके कारण घर बिखरा रह सकता है, वहां सफाई में विघ्न आता है। जिससे घर में गंदगी को बढ़ावा मिलता है।