उन्नत पशुपालन से बदली तिलेश्वर पाण्डे की तकदीर
दंतेवाड़ा। गीदम निवासी पशुपालक श्री तिलेश्वर पाण्डे पिछले पाँच वर्षों से पशुपालन के क्षेत्र से जुड़े हुये है। प्रारंभ में उनके पास केवल देशी नस्ल की कुछ ही गायें थीं, जिनसे सीमित मात्रा में दुग्ध उत्पादन हो पाता था। पशुपालन व्यवसाय को आधुनिक रूप देने तथा आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने की प्रबल इच्छा के चलते उन्होंने पशुधन विकास विभाग से संपर्क किया जहाँ से उन्हें कृत्रिम गर्भाधान एवं नस्ल सुधार की वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त हुई। इस प्रकार विभागीय मार्गदर्शन में श्री पाण्डे ने अपनी देशी गायों में कृत्रिम गर्भाधान करवाया। जिसके परिणामस्वरूप देषी नस्ल के गायों से उच्च नस्ल की बछियाओं का जन्म हुआ। कुल मिलाकर इन संकर नस्ल की बछियाओं के वयस्क होने पर उनका दुग्ध व्यवसाय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। धीरे-धीरे उनका डेयरी व्यवसाय एक संगठित और लाभकारी स्वरूप लेने लगा।
वे मानते है कि पषु नस्ल सुधार से बढ़े दुग्ध उत्पादन ने उनकी आमदनी के नए रास्ते खोले। इस प्रकार उन्होंने विभाग के सहयोग और प्राप्त आर्थिक लाभ से उन्होंने नई नस्ल की गायें भी खरीदीं। वर्तमान में उनके पास बछिया सहित लगभग 12 गायें हैं। आज उनकी डेयरी में प्रतिदिन लगभग 40 से 50 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है, जिससे उन्हें प्रतिमाह करीब 30,000 से 40,000 रुपये की आय प्राप्त हो रही है। आज श्री तिलेश्वर पाण्डे की आर्थिक स्थिति में स्पष्ट सुधार हुआ है और वे आत्मनिर्भर बन चुके हैं। वे अपनी डेयरी की सभी गायों में नियमित रूप से कृत्रिम गर्भाधान करवा रहे हैं। अपनी सफलता से प्रेरित होकर वे अन्य पशुपालकों से भी अपील करते हैं कि पशुधन विकास विभाग के संपर्क में रहकर कृत्रिम गर्भाधान जैसी वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाएं और पशुपालन को लाभ का व्यवसाय बनाएं। श्री पाण्डे की यह यात्रा साबित करती है कि सही मार्गदर्शन, वैज्ञानिक सोच और निरंतर प्रयास से ग्रामीण क्षेत्र में भी समृद्धि की नई कहानी लिखी जा सकती है।











.jpeg)

Leave A Comment