सजल
- गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
ज्वाला में तपकर साँचे में ढाले होंगे ।
कुंदन आसानी से नहीं निकाले होंगे ।।
खत्म नहीं यूँ ही हुआ होगा यह अँधेरा ।
राहों में किसी ने तो दिए बाले होंगे ।।
मंजिल कब मिलती है यूँ बैठे-ठाले ।
चलने वाले के पैरों में छाले होंगे ।।
ईमान की रोटी श्रम स्वेद माँगती है ।
लगती भूख के स्वाद बड़े निराले होंगे ।।
इतनी आसानी से बुझते नहीं हैं दिए ।
जरूर आँधियों ने ही इन्हें पाले होंगे ।।
अनमोल बहुत मोती जो अबकी पाए हैं ।
बरसों वे जाल समंदर में डाले होंगे ।।
बहुत मुश्किल है घर को घर बनाना दीक्षा ।
बंद मकानों में सिर्फ लगे जाले होंगे ।।
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