ब्रह्म पुराण' में मिलता है उड़ीसा के कोणार्क मंदिर का जिक्र
ब्रह्म पुराण' गणना की दृष्टि से सर्वप्रथम गिना जाता है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि यह प्राचीनतम है। काल की दृष्टि से इसकी रचना बहुत बाद में हुई है। इस पुराण में साकार ब्रह्म की उपासना का विधान है। इसमें 'ब्रह्म' को सर्वोपरि माना गया है। इसीलिए इस पुराण को प्रथम स्थान दिया गया है। कर्मकाण्ड के बढ़ जाने से जो विकृतियां तत्कालीन समाज में फैल गई थीं, उनका विस्तृत वर्णन भी इस पुराण में मिलता है। यह समस्त विश्व ब्रह्म की इच्छा का ही परिणाम है। इसीलिए उसकी पूजा सर्वप्रथम की जाती है।
ब्रह्म पुराण सब पुराणों में प्रथम और धर्म अर्थ काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला है,इसके अन्दर नाना प्रकार के आख्यान है।
देवता दानव और प्रजापतियों की उत्पत्ति इसी पुराण में बताई गई है। लोकेश्वर भगवान सूर्य के पुण्यमय वंश का वर्णन किया गया है,जो महापातकों के नाश को करने वाला है। इसमें ही भगवान रामचन्द्र के अवतार की कथा है। सूर्य वंश के साथ चन्द्रवंश का वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण भगवान की कथा का विस्तार इसी में है। पाताल और स्वर्ग लोक का वर्णन नरकों का विवरण सूर्यदेव की स्तुति कथा और पार्वती जी के जन्म की कथा का उल्लेख लिखा गया है। दक्ष प्रजापति की कथा और एकाम्रक क्षेत्र का वर्णन है। पुरुषोत्तम क्षेत्र का विस्तार के साथ किया गया है,इसी में श्रीकृष्ण चरित्र का विस्तारपूर्वक लिखा गया है। यमलोक का विवरण पितरों का श्राद्ध और उसका विवरण भी इसी पुराण में बताया गया है। वर्णों और आश्रमों का विवेचन भी इसमें मिलता है। इसके अलावा इसमें योगों का निरूपण, सांख्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन, ब्रह्मवाद का दिग्दर्शन और पुराण की प्रशंसा की गई है। इस पुराण के दो भाग हैं।
इस जगत् का प्रत्यक्ष जीवनदाता और कर्त्ता-धर्त्ता 'सूर्य' को माना गया है। इसलिए सर्वप्रथम सूर्य नारायण की उपासना इस पुराण में की गई है। सूर्य वंश का वर्णन भी इस पुराण में विस्तार से है। सूर्य भगवान की उपसना-महिमा इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है।
सम्पूर्ण 'ब्रह्म पुराण' में दो सौ छियालीस अध्याय हैं। इसकी श्लोक संख्या लगभग चौदह हज़ार है। इस पुराण की कथा लोमहर्षण सूत जी एवं शौनक ऋषियों के संवाद के माध्यम से वर्णित है। 'सूर्य वंश' के वर्णन के उपरान्त 'चन्द्र वंश' का विस्तार से वर्णन है। इसमें श्रीकृष्ण के अलौकिक चरित्र का विशेष महत्त्व दर्शाया गया है। यहीं पर जम्बू द्वीप तथा अन्य द्वीपों के वर्णन के साथ-साथ भारतवर्ष की महिमा का विवरण भी प्राप्त होता है। भारतवर्ष के वर्णन में भारत के महत्त्वपूर्ण तीर्थों का उल्लेख भी इस पुराण में किया गया है। इसमें 'शिव-पार्वती' आख्यान और 'श्री कृष्ण चरित्र' का वर्णन भी विस्तारपूर्वक है। 'वराह अवतार ','नृसिंह अवतार' एवं 'वामन अवतार' आदि अवतारों का वर्णन स्थान-स्थान पर किया गया है।
सूर्यदेव का प्रमुख मन्दिर उड़ीसा के कोणार्क स्थान पर है। उसका परिचय भी इस पुराण में दिया गया है। उस मन्दिर के बारे में लिखा है-"भारतवर्ष में दक्षिण सागर के निकट 'औड्र देश' (उड़ीसा) है, जो स्वर्ग और मोक्ष- दोनों को प्रदान करने वाला है। वह समस्त गुणों से युक्त पवित्र देश है। उस देश में उत्पन्न होने वाले ब्राह्मण सदैव वन्दनीय हैं। उसी प्रदेश में 'कोणादित्य' नामक भगवान सूर्य का एक भव्य मन्दिर स्थित है। इसमें सूर्य भगवान के दर्शन करके मनुष्य सभी पापों से छुटकारा पा जाता है। यह भोग और मोक्ष- दोनों को देने वाला है। माघ शुक्ल सप्तमी के दिन सूर्य भगवान की उपासना का विशेष पर्व यहाँ होता है। रात्रि बीत जाने पर प्रात:काल सागर में स्नान करके देव, ऋषि तथा मनुष्यों को भली-भांति तर्पण करना चाहिए। नवीन शुद्ध वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके, ताम्रपात्र अथवा अर्क पत्रों से बने दोने में तिल, अक्षत, जलीय रक्त चन्दन, लाल पुष्प और दर्पण रखकर सूर्य भगवान की पूजा करें।"
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