सत्य, अहिंसा आदि सदाचार के गुण भी बिना भगवान की भक्ति के नहीं आ सकते; जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी के वचनामृत!
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 276
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत यह प्रवचन न केवल आध्यात्म पथ के पथिकों के लिये महत्वपूर्ण है, बल्कि यह तो समस्त विश्व के प्रत्येक देश के प्रत्येक नागरिक के लिये महत्व रखती है। सीधे शब्दों में मनुष्य जाति के लिये यह लाभप्रद है। इसका संबंध भगवत्प्राप्ति जैसे सर्वोच्च लक्ष्य के साथ ही जीवन के विविध पक्षों, नैतिक सदाचारों, देश, राज्य तथा घर-गृहस्थी में शान्ति तथा सुख से भी है। अतः इन लाभों को दृष्टिगत रखते हुये आइये इस अंश से हम कुछ समझने की चेष्टा करें...)
(आचार्य श्री की वाणी यहाँ से है...)
...भगवान को मानने से अथवा यूँ कहो, भक्ति करने से अंतःकरण शुद्ध होगा। वास्तविकता तो यह है कि श्रीकृष्ण भक्ति के बिना अंतःकरण शुद्धि होना असम्भव है और सत्य, अहिंसा आदि सदाचार का आचरण अंतःकरण की शुद्धि के बिना असम्भव है। ये सब दैवी गुण तभी आयेंगे जब हमारे अंतःकरण की शुद्धि होगी।
हमारे अंतःकरण की शुद्धि जितनी मात्रा में होगी उतना ही हमारा संसार से वैराग्य होगा। अंतःकरण शुद्ध केवल ईश्वरीय भक्ति से ही होगा। जब तक यह निश्चय न हो जाय कि संसार में सुख नहीं है भगवान में ही सुख है, संसार की संपत्ति बटोरने की कामना रहेगी। जब यह निश्चय हो जायेगा शान्ति भौतिक पदार्थों से नहीं, भगवान से ही मिलेगी, जितनी मात्रा में यह निश्चय होगा उतनी मात्रा में संसार का सामान संग्रह करने की कामना कम होगी, तो उतनी मात्रा की चार सौ बीसी कम हो जायेगी। संसार से संपत्ति बटोरने की कामना खतम होगी। आज एक आदमी अरबपति है, खरबपति बनना चाहता है।
तो अगर ईश्वरीय भावना होगी, अंतःकरण शुद्ध होगा तो समझेगा कि संसार में सुख नहीं है। आवश्यकता की पूर्ति के अलावा जो हमारे पास है वो गरीबों को दान दे दो, तब ये भावना पैदा होगी। अतः भक्ति के द्वारा ही वास्तविक परोपकार की भावना जाग्रत की जा सकती है।
अगर कोई, कोई भी भक्ति करेगा तो अंतःकरण शुद्धि होगी, अंतःकरण शुद्ध होगा तो स्वाभाविक रुप से दैवी गुण (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, गरीबों की सहायता आदि) आयेंगे। यही दैवी गुण आधार हैं विश्व-शान्ति के। हमारी अंतःकरण की शुद्धि पर ही हमारा हिन्दू धर्म जोर देता है ताकि हमारे विचार शुद्ध हों, जब विचार शुद्ध होंगे तो ये राग-द्वेष अशान्ति जो संसार में फैल रही है, अपने आप समाप्त हो जायेंगे। जातिवाद आदि की बीमारी ये सब बीमारियाँ समाप्त हो जायें अगर कोई सही-सही हिन्दू धर्म को मान ले।
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ पुस्तक : विश्व-शांति; पृष्ठ 9 एवं 10
०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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