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- --युग-चेतना-1डॉ. कमलेश गोगियाएक कहावत है ’साँच को आँच नहीं’, ऊपर शीर्षक में ’साँच’ की बजाए ’पाँच’ लिखा गया है, असल में बात नंबर-’5’ की है। बड़ी भूमिका है इसकी हमारे जीवन में, लेकिन तेज भागती ज़िन्दगी की रफ़्तार में कोई खयाल ही नहीं आता इन नंबरों के रोल को समझने का।’’लगी पाँच-पाँच पैसे की....’’’’चल लगी यार...’’खूब शर्तें लगाई जाती रहीं थीं बचपन के दिनों में। शर्तें भी छोटी-छोटी बातों पर ही लगाई जाती थीं। तब छोटी सी बातें भी अहम होती थीं। आज कोई पाँच-पाँच पैसे की शर्त लगाए...हारे-जीते कोई भी...भुगतान करना आसान नहीं होगा। पाँच पैसे का सिक्का संग्रह के शौकीन बिरलों के पास ही मिलेगा। जिनके पास मिलेगा उन्हें भी याद होगा, कभी पाँच पैसे में ढेर सारी पीपरमेंट मिल जाया करती थी। इसे ’पंजी’ भी कहते थे। स्कूल जाने के लिए माँ अक्सर पाँच पैसे ही देती थी। तब पाँचवी बोर्ड हुआ करता था। बोर्ड परीक्षा का खतरनाक असर माँ पर ज्यादा देखने को मिलता था। पाँचवी में पास मतलब माध्यमिक में जाने का पहला पड़ाव पूरा। हाफ पेंट से छुटकारा और फुल पैंट पहनने की स्वतंत्रता।खैर...पाँच पैसे के सिक्के 1957 से 1994 के बीच ढाले जाते रहे और 2011 में इसे बंद कर दिया गया।बहुत से लोगों को याद होगा पाँच पैसे के सिक्कों पर सिल्वर पॉलिश कर जहाज बनाने का भी प्रचलन रहा है। कभी यह बेहतरीन शो पीस हुआ करता था।1938 में पाँच रुपए का नोट जारी हुआ। अब पाँच रुपए का नोट मुश्किल से मिलता है। 1992 में आए स्टील के पांच के सिक्के जो अलग-अलग रूप-रंग के साथ चल रहे हैं। पाँच रुपए का नोट हो या पांच का सिक्का, इससे खेल-खेल में गणित सीख जाया करते थे। यह नंबर है ही निराला। पूरे वैदिक गणित में यही नंबर ऐसा है जिसे भाग देने की सबसे तेज विधि माना जाता है। यदि कोई आपसे पूछे कि 18 गुणित पाँच कितना होता है, एकदम सरलता से 18 का आधा कर पीछे शून्य लगा दीजिए। उत्तर 90 बन जाएगा। केवल दो चरण का पालन करना सिखाया जाता था। पाँच गुणित 9 को ही देख लें, 9 का आधा 4.5 होता है, दशमलव हटा दीजिए, उत्तर होगा-45। पांच का गुणा बड़ी से बड़ी संख्या के साथ करके देख लीजिए, उस संख्या का आधा ही उत्तर होगा। यह तो सिर्फ एक पाँच नंबर की बात है, वैसे वैदिक गणित के 16 सूत्रों का जिन्हें भी अभ्यास हो गया, उनके लिए बिना केल्कुलेटर के बड़ी से बड़ी संख्या का गुणा करना पल भर का काम होगा। भारतीय वैदिक गणित का लोहा पूरा विश्व मानता है।हम पाँच के पथ पर आगे बढ़ते हैं। बात करते हैं ’पंचामृत’ की जिसका भोग देवी-देवताओं, विशेषकर श्री हरि भगवान श्री कृष्ण को समर्पित किया जाता है। पंचामृत पाँच पदार्थों दूध, दही, शक्कर, घी और शहद का मिश्रण है जिसके स्वास्थ्य लाभ को विज्ञान प्रमाणित कर चुका है।पाँच की अनेक खूबियाँ हैं। प्राचीन भारतीय हिन्दू कैलेंडर को पंचांग कहा जाता है। इसके पांच अंग होते हैं- तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण। इसलिए इसे पंचांग कहा जाता है। इसके भीतर प्रवेश करें तो पंचांग में भी पंचक पर प्रायः लोगों की नजर रहती है। किसी के अवसान पर अक्सर पूछा ही जाता है,’’ अरे भाई देख लो आज पंचक तो नहीं।’’’’महाराज जी ने देख लिया है, निश्चिंत रहो।’’इसका विशेष ज्ञान तो मुझे नहीं, डॉ. उमेशपुरी ’ज्ञानेश्वर’ की पुस्तक ’पंचक विचार कितना जरूरी’ में लिखा मिला, ’’पंचक के पांच नक्षत्र हैं-घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती।’’कोरोना महामारी काल में लॉकडाउन के दौरान एक बार फिर से महाभारत देखने अवसर मिला था। महाभारत शब्द के भी पाँच अक्षर होते हैं और इसके नायक पाँच पांडव थे। पांडवों की पत्नी द्रौपदी को पांचाल की राजकुमारी होने की वजह से पांचाली कहा गया। पांचाल पांच प्राचीन कुलों के पांच सामूहिक कुलों का नाम भी माना जाता है।समाचार पत्रों में प्रेरक प्रसंग पढ़ने का भी अपना आनंद है। एक प्रेरक प्रसंग में जिक्र आया कि जीवन में पाँच दान महत्वपूर्ण माने गये हैं-अन्न दान, औषध दान, ज्ञान दान, अभयदान और अब अंगदान। हमारा शरीर पंच तत्वों से निर्मित है-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। पाँच ज्ञानेंद्रियाँ होती हैं-आँख, नाक, कान, जीभ और त्वचा। फिर ध्यान आया, हाथ में भी पाँच उंगलियाँ होती हैं-तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा और अँगूठा। कुछ लोगों की एक हाथ में छह उंगलियाँ भी होती हैं। इनमें सुपर स्टार ऋतिक रोशन भी हैं जिनके दाएं हाथ में अंगूठे के पास एक अतिरिक्त उंगली है, हालाँकि यहां ’छह’ की चर्चा नहीं की जानी चाहिए, प्रसंगवश बात निकालनी पड़ी, आलेख को थोड़ा रोमांचक बनाने की चाह में। यह मेरा थोड़ा सा स्वार्थ है, चलिए पंच-पथ की अगली दिशा में। पौराणिक कथाओं में पाँच स्त्रियों को पंचकन्या का दर्जा दिए जाने का उल्लेख भी मिलता है। ये पाँच कन्याएँ हैं- अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती और द्रौपदी। भारतीय शास्त्रों में पाँच प्रकार के ऋण का उल्लेख माना जाता है- देव ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण, लोक ऋण और भूत ऋण।सिक्ख धर्म में पाँच प्रतीक चिन्हों का विशेष महत्व है- केश, कंघा, कच्छा, कड़ा और कृपाण। जैन धर्म में पाँच महाव्रतों का उल्लेख मिलता है। पाँच पापों-हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह का त्याग करना पाँच महाव्रत है। पाँच महाव्रत हैं-अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत और अपरिग्रह महाव्रत। नवरात्रि में भी पंचमी का विशेष महत्व रहता है।हिंदू धर्म में पंचदेव पूजा का विधान है जिनमें सूर्य, श्रीगणेश, माँ दुर्गा, शिव और भगवान विष्णु आते हैं। मान्यता है कि इन पंचदेवों की पूजा के बाद ही कोई कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। पंचोपचार पूजा पद्धति में पाँच तरह के पदार्थों को समर्पित करने का उल्लेख है। इनमें गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य शामिल है। पंचगव्य का भी विशेष महत्व हैं। इसमें पाँच प्रकार की गाय से जुड़ी पांच प्रकार की चीजें शामिल होती हैं-सफेद गाय का दूध, काली गाय के दूध से बनी दही, लाल गाय का गोबर, भूरी गाय का गोमूत्र और दो रंग की गाय का घी। पंच पल्लव का महत्व है जिसका आशय है पांच पवित्र व धार्मिक वृक्षों के पत्ते-पीपल, आम, अशोक, गूलर और वट वृक्ष।यदि राजनीतिक दृष्टिकोण से पाँच के बारे में सोचें तो भारत ने एक नवंबर 2021 को ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में पूरी दुनिया के सामने ’पंचामृत रणनीति’ का प्रस्ताव रखा। पाँच रणनीति में पहली-वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 मेगावाट तक करना, दूसरी-अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा ज़रूरतें, रीन्यूएबल एनर्जी से पूरी करना, तीसरी-2030 तक ही कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना, चौथी-कार्बन तीव्रता में 30 प्रतिशत तक की कमी करना और पांचवी-2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करना शामिल है। नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने की यह रणनीति असल में ’क्लाइमेट चेंज’ की जंग है जिसमें शामिल होने की जरूरत आज पूरे विश्व को है। इसके लिए पहला कदम होगा हम सभी को अपनी जीवन शैली में बदलाव करना। इस ’पंचामृत’ को हासिल करना चुनौती जरूर है; लेकिन इससे पूरी दुनिया को पाँच बड़े लाभ भी होंगे- पूरे विश्व का बढ़ता तापमान थमने लगेगा, पृथ्वी की जीवसृष्टि का तनाव कम होगा, ध्रुवों और हिमालय पर्वत के तेजी से पिघल रहे हिम की समस्या के समाधान के रास्ते निकलेंगे, प्रकृति के साथ खिलवाड़ में कमी आएगी और मनुष्य में श्वसन और हृदय सहित अन्य रोगों की हो रही बढ़ोत्तरी में कमी आएगी। 2070 तक हम रहें या न रहें, लेकिन पंचामृत रणनीति की सफलता पृथ्वी, जल, अग्नी, आकाश और वायु अर्थात ’पाँच को समय से पहले कोई आँच’ नहीं आने देगी। परिणाम भावी पीढ़ी के सुखी और स्वस्थ रहने के रूप में मिलेगा। यकीन नहीं तो लगी, ’पाँच-पाँच की....!’
- - मंदिर और पहाड़ी के साथ जुड़ी हैं कई कथाएं और किंवदंतियां-महाभारत काल से भी है जुड़ाव-आलेख -वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुरोहितछत्तीसगढ़ के प्राय: सभी क्षेत्र ऐतिहासिक और पौराणिक संपदा की दृष्टि से अत्यंत संपन्न हैं और श्रद्धा, भक्ति व समर्पण की पावन त्रिवेणी के अजस्र प्रवाह में समूचा लोकमानस अवगाहन करता है। राज्य के महासमुंद जिले के ही बागबाहरा तहसील मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर दूर स्थित भीमखोज से लगे खल्लारी ग्राम की पहाड़ी पर मां खल्लारी का मंदिर ऐसा ही एक महत्वपूर्ण केंद्र है। दर्शनार्थी भक्तों की सुविधा की दृष्टि से पहाड़ी के नीचे भी एक मंदिर में मां खल्लारी की प्राण-प्रतिष्ठा की गई है। यहां आसपास का स्थान प्राकृतिक रूप से जंगल व पहाडिय़ों से घिरा हुआ है। यहां के प्राकृतिक वातावरण और पौराणिक महत्व ने इसे पर्यटन की दृष्टि से भी उभारा है। इस मंदिर और पहाड़ी के साथ कई कथाएं, किंवदंतियां और घटनाएं जुड़ी हैं जिनके बारे में लोग कम ही जानते हैं।खल्लारी दो शब्दों से मिलकर बना नाम है- खल और अरि; जिसका तात्पर्य है : दुष्टों का नाश करने वाली! जानकार लोगों और उपलब्ध शिलालेखों से ज्ञात होता है कि यह मंदिर सन 1415-16 का है। यह भी कहा जाता है कि यह स्थान तत्कालीन हैहयवंशी राजा हरि ब्रह्मदेव की राजधानी था। इससे पहले यहां आदिवासियों का प्रभुत्व होने की बात जानकार लोग बताते हैं। जब राजा हरि ब्रह्मदेव ने खल्लारी को अपनी राजधानी बनाया तो उन्होंने इसकी रक्षा के लिए यहां मां खल्लारी की मूर्ति की स्थापना की। यहां मिले एक शिलालेख के नौवें श्लोक में मोची देवमाल की वंशावलि और 10वें श्लोक में उसके द्वारा मंदिर बनवाए जाने का उल्लेख भी मिलता है। यहां चैत्र मास की पूर्णिमा पर पांच दिनों का मेला भरता है जिसमें इस क्षेत्र के अलावा विदर्भ और प. ओडि़शा तक से लोग शिरकत करने पहुंचते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद और पर्यटन व संस्कृति मंत्रालय द्वारा इस स्थान को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के बाद इस मेले का स्वरूप काफी व्यापक हुआ है। यहां के जानकार लोगों का दावा है कि दूर-दूर से मां खल्लारी के दर्शन के लिए यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु भक्तों में से किसी को भी माता के पाषाण रूप में परिवर्तित होने के बाद उनके शृंगारिक रूप में दर्शन नहीं हुए! अलबत्ते, माता के दर्शन अन्य रूपों, यथा वृद्धा अथवा श्वेतवस्त्रधारिणी, में यहां के भक्तों को होते रहने की बात कही जाती है।बेमचा से आईं हैं माताकिंवदंती के अनुसार, महासमुंद के पास के ग्राम बेमचा से माता का आगमन होना माना जाता है। उस समय खल्लारी ग्राम का बाजार पूरे अंचल में काफी प्रसिद्ध था। जनश्रुति यह है कि उन दिनों मां खल्लारी एक नवयुवती का रूप धारण कर यहां बाजार आया करती थीं। एक समय एक बंजारा गोंड़ युवक देवी के रूप-रंग को देखकर मुग्ध हो उनका पीछा करने लगा। देवी की चेतावनी के बाद भी उसने उनका पीछा करना नहीं छोड़ा। अंतत: पर्वत (पहाड़) तक पीछे-पीछे आने पर देवी ने उस युवक को श्राप दे दिया। वह युवक वहीं से कुछ नीचे गिरकर पत्थर के रूप में बदल गया। इस पत्थर को गोंड़ नायक पत्थर के नाम से जाना जाता है। इधर, मानव की बढ़ती पाशविक प्रवृत्ति से क्षुब्ध देवी ने इसी पहाड़ी के ऊपर पाषाण रूप धारण कर यहीं निवास करना शुरू कर दिया। कहा-सुना तो यह भी जाता है कि पहले देवी का रूप पहाड़ी पर स्थित मंदिर के पास के शिलाखंडों से साफ नजर आता था जो बाद में धीरे-धीरे दिखना बंद हो गया। देवी खल्लारी और आसपास के गांवों में आने वाली विपत्ति से आगाह करने पुजारी को आवाज देकर संदेश देती थीं। यहां भी श्रद्धालु यह मानते हैं कि तब एक प्रकाश-पुंज मंदिर से निकलता था! भक्तजन यहां पहाड़ी पर जाकर माता के दर्शन करते हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए तब 481 सीढिय़ांं चढऩी होती थीं जिसे 13 खंडों में विभक्त कर भक्तों को सुविधा उपलब्ध कराई गई थी। अब नागरिकों को सहयोग से यहां 710 नई सीढिय़ां बनाकर दोनों तरफ रेलिंग बना दी गईं हैं। पहाड़ी के नीचे स्थित मंदिर को नीचे वाली माता या राउर माता का मंदिर कहते हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां के पूर्व मालगुजार को देवी ने स्वप्न में आदेश दिया था कि उनकी (देवी की) फेंकी गई कटार नीचे जहां गिरी है, वहीं पर मूर्ति स्थापित कर पूजा शुरू की जाए। चूंकि वृद्ध और शारीरिक रूप से कमजोर भक्त पहाड़ी पर चढ़ नहीं पाएंगे, अत: उन्हें इस मंदिर का दर्शन करने पर भी उतना ही पुण्य मिलेगा जितना पहाड़ी पर दर्शन करने पर। कहते हैं, माता की फेंकी कटार आज भी इस मंदिर में है।पूजा पद्धतिमाता पूजा के ठीक पहले पहाड़ी पर स्थित सिद्धबाबा (भगवान शंकर) की पूजा क्षेत्र के आदिवासी बैगा करते हैं। आदिवासी शासकों के प्रभुत्व के कारण यहां शुरू से ही सिदार जाति के पुजारी मुख्य तौर पर पूजा आदि कराते आ रहे हैं। यहां पर कुछ समय पूर्व तक जारी बलि-प्रथा अब नागरिकों और समाजसेवी संस्थाओं के साथ ही शासन-प्रशासन की पहल पर बंद हो गई है।महाभारत काल से जुड़ावऊपर पहाड़ी पर प्रकृति से जुड़ाव का आनंद तो मिलता ही है, साथ ही यहां अनेक ऐसे स्थल भी हैं जिन्हें महाभारत काल से जोड़कर देखा, कहा-सुना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने वनवास की कुछ अवधि यहां बिताई थी। मां के दर्शन के बाद परिक्रमा करते समय पहले भीम चौरा नाम का विशाल पत्थर दिखता है। यहीं विशालकाय पत्थरों के बीच एक कंदरा है जहां झुकी दशा में मुश्किल से अंदर जाने के बाद दो पत्थरों के बीच लगभग आठ-नौ इंच के अंतर को पार करने वाला व्यक्ति खुद को सौभाग्यशाली मानता है। परिक्रमा के दौरान ही पैरों की आकृति के बड़े निशान दिखते हैं जिन्हें भीम पांव कहा जाता है। इसमें बारहों महीने पानी भरा रहता है। इसी पहाड़ी पर चूल्हे की एक आकृति है। यह है तो गड्ढानुमा, पर हर समय यह सूखा रहता है। कहते हैं, भीम इस चूल्हे पर भोजन पकाया करते थे।लाक्षागृहइधर, उत्तर दिशा की तरफ एक मूर्तिविहीन मंदिर दिखाई पड़ता है। इसे लखेश्वरी गुड़ी या लाखा महल कहा जाता है। किंवदंती है कि महाभारत काल में दुर्योधन ने पांडवों को षड्यंत्रपूर्वक समाप्त करने के लिए जो लाक्षागृह बनवाया था, वह यही लखेश्वरी गुड़ी या लाखा महल है। ऐसा मानने की एक वजह यह भी है कि इस लखेश्वरी गुड़ी के अंदर से लगभग दो किलोमीटर लंबी एक सुरंग है जो गांव के बाहर जाकर खुलती है। इस इमारत के पास से गुजरने पर लाख की गंध महसूस की जाती थी, ऐसा लोग कहते हैं।कुछ और भी है खास...0 भीम पांव से दक्षिण-पश्चिम में कुछ दूर पहाड़ी से उतरने पर गज-आकृति की दो विशालकाय शिलाएं नजर आती हैं। इन्हें नायक राजा का हाथी बताया जाता है। खल्लारी में प्रवेश करते समय विद्युत मंडल कार्यालय और स्कूल के पास से देखने पर यह हाथी-हथिनी का जोड़ा नजर आता है।0 भीम चूल्हा के पास कुछ ऊपर की ओर सिद्धबाबा की गुफा है जहां उनकी मूर्ति स्थापित है। देवी के पूजा-विधान की शुरुआत यहां की पूजा के बाद ही होती है।0 भीम चूल्हा के पास ही जल की एक धारा सतत प्रवाहित होती है जो पहाड़ी के अंदर-ही-अंदर से बहकर पहाड़ी की पूर्व दिशा के मध्यभाग में नजर आती है।0 पश्चिम दिशा में नाव की आकृति का एक विशालकाय पत्थर है जिसका एक हिस्सा मैदान की तरफ तो दूसरा हिस्सा सैकड़ों फीट गहरी खाई की तरफ झुका हुआ है। एक छोटे-से पत्थर पर टिका नाव आकृति का यह पत्थर अपने संतुलन के कारण दृष्टव्य है। इसे भीम नाव भी कहते हैं।0 यहीं गस्ति वृक्ष के पास पत्थर मारने से पहाड़ी के आधा फुट व्यास क्षेत्र में अलग-अलग आवाज निकलती है जो दर्शनार्थियों के मनोरंजन का विषय होती है।विकास के काम चल रहेअपने गर्भ में समृद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक महत्ता को समेटे इस मंदिर परिसर में भी विकास के कई काम आकार ले चुके हैं वहीं और भी काम अभी कराए जाने प्रस्तावित हैं। नीचे और ऊपर के मंदिर के साथ ही सीढिय़ों तथा मेलास्थल पर 1986-87 में विद्युतीकरण का काम कराया गया था जिससे अब रात्रि में भी भक्तों को पहाड़ी पर चढऩे में असुविधा नहीं होती। पहाड़ी पर नल-जल योजना के तहत पेयजल आपूर्ति की सुविधा मुहैया कराई गई है। अभी राज्य शासन और नागरिकों के सहयोग से इस परिसर को और सुविधा-संपन्न बनाने की कवायद चल रही है। भक्तों के विश्राम के लिए भी भवन आदि अभी तो हैं, पर इनकी संख्या बढ़ाने की दिशा में भी पहल जारी है। आसपास के ग्रामवासियों द्वारा पिछले कुछ वर्षों से यहां भंडारा का आयोजन किया जा रहा है। इसके अलावा आदर्श विवाह और तीज-त्योहारों का भी धूमधाम से यहां आयोजन किया जाता है। मां खल्लारी मंदिर विकास समिति इस मंदिर परिसर के सर्वांगीण विकास की दिशा में सतत प्रयत्नशील है।
- लेख : सुनील त्रिपाठी, सहायक संचालकरायपुर। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा 06 मार्च को अपने कार्यकाल का पांचवा बजट प्रस्तुत किया गया। बजट में विद्यार्थियों से लेकर खिलाड़ियों तक सभी का विशेष ध्यान रखा गया है, जिसमें मिनी स्टेडियम का निर्माण, महिला खेलकूद को प्रोत्साहन एवं विभिन्न खेल अकादमी की स्थापना का प्रावधान किया गया है। राज्य में पारंपरिक खेलों के बढ़ावा दिया जा रहा है। खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए ग्राम स्तरीय खेल प्रतियोगिता से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खेल स्पर्धाओं के आयोजन के साथ-साथ खिलाड़ियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था के लिए 5 करोड़ रूपए की घोषणा की गई है।इस बजट में राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय खेल यथा एडवेंचर स्पोर्ट्स, हॉकी, फुटबॉल, बैडमिंटन, टेनिस, एथलेटिक्स जैसे खेल अकादमी की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इसी तरह शहीद गुंडाधुर तीरंदाजी एवं कायाकिंग व केनोइंग खेल अकादमी की भी स्थापना की जाएगी।तीरंदाजी को राजकीय खेल के तौर पर प्रोत्साहित करने के लिए बस्तर और रायपुर में तीरंदाजी खेल अकादमी की स्थापना की जाएगी। नारायणपुर में मलखम्ब अकादमी और रायपुर में अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन खेल अकादमी की स्थापना का प्रावधान किया गया है।बस्तर जिले में एडवेंचर स्पोर्ट्स अकादमी की स्थापना और कुनकुरी के ग्राम सलियाटोली विकासखण्ड में एडवेंचर स्पोर्ट्स सुविधाओं के विकास के लिए नवीन मद में 3 करोड़ 70 लाख की घोषणा की गई है।प्रदेश के परंपरागत खेलों को बढ़ावा देने के लिए इस वर्ष से छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के आयोजन की शुरूआत की गई है, जिसमें बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी वर्ग के महिला एवं पुरूषों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के सफल आयोजन से इन खेलों के प्रति स्थानीय लोगों के रूझान और उत्साह को देखते हुए आगामी वर्ष में छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के भव्य आयोजन के लिए इस बजट में 25 करोड़ रूपए का प्रावधान रखा गया है।मुख्यमंत्री द्वारा बजट में राजीव युवा मितान क्लब के लिए 100 करोड़ रूपए तथा राजीव युवा महोत्सव के आयोजन हेतु 08 करोड़ रूपए का प्रावधान रखा गया है।
- -इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ में अध्ययनरत देश-विदेश के विद्यार्थियों के लिए ऑफ कैम्पस सेंटर की होगी स्थापना-स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के छात्रों को प्रोत्साहित करने वाला बजटलेख : सुनील त्रिपाठी, सहायक संचालकरायपुर। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने अपने कार्यकाल का पांचवां बजट पेश किया है। प्रदेश के सभी वर्गाें के लोगों को ध्यान में रखकर इस बजट को तैयार किया गया है। बजट में युवाओं से लेकर बुजुर्गाें और महिलाओं तक सभी के लिए विशेष प्रावधान किया है। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के छात्रों के लिए भी मुख्यमंत्री ने महत्वपूर्ण घोषणाएं की है।स्वामी आत्मानंद स्कूलों की संख्या को बढ़ाने के साथ कुछ चयनित महाविद्यालयों में भी आगामी सत्र से अंग्रेजी माध्यम में शिक्षण शुरू करने का निर्णय लिया गया है। साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को शोध कार्य में सहयोग प्रदान करने के लिए राज्य रिसर्च फेलोशिप योजना प्रारंभ की गई है।बजट के माध्यम से स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों से कक्षा 12वीं उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थियों को अंग्रेजी माध्यम से ही उच्च शिक्षा निरंतर रखने की सुविधा प्रदान करने की दृष्टि से शिक्षा सत्र 2023-24 से प्रदेश के चयनित महाविद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षण प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया है। प्रदेश में 101 नए आत्मानंद अंग्रेजी विद्यालय खोलने की भी घोषणा की गई है।स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय के तर्ज पर महासमुंद, कोरबा, बिलासपुर और रायगढ़ जिले में अंग्रेजी माध्यम महाविद्यालय के लिए नए सेटअप और प्रति भवन 12 करोड़ की लागत से 4 महाविद्यालय भवन निर्माण किया जाएगा। रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, कांकेर, बस्तर और अंबिकापुर में पूर्व से स्वीकृत महाविद्यालयों को अंग्रेजी माध्यम में परिवर्तित करते हुए कुल 10 जिलों में अंग्रेजी माध्यम आदर्श महाविद्यालयों का संचालन प्रारंभ किया जाएगा।इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ में देश-विदेश से अध्ययन के लिए आने वाले विद्यार्थियों की सुविधा के लिए नवा रायपुर, अटल नगर में ऑफ कैम्पस सेंटर की स्थापना की जाएगी। साथ ही 4 संभागीय मुख्यालयों पर संगीत महाविद्यालय और 6 कन्या महाविद्यालय सहित इस वर्ष कुल 23 नवीन महाविद्यालयों की स्थापना की जाएगी। राज्य के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मेधावी विद्यार्थियों को शोध कार्य में सहयोग प्रदान करने के लिए राज्य रिसर्च फेलोशिप योजना प्रारंभ की गई।:
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विशेष लेख
सुश्री रीनू ठाकुर, सहायक जनसंपर्क अधिकारीरायपुर, / मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा प्रस्तुत वर्ष 2023-24 के बजट में महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों के कल्याण के लिए संवेदनशील पहल की गई है। इसके साथ ही उन्होंने निराश्रितों, दिव्यांगों एवं विधवा तथा परित्यक्ता महिलाओं के साथ उभयलिंगी समुदाय का भी विशेष ध्यान रखा है।आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का बढ़ाया मानदेयआंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मांगों को पूरा करते हुए मुख्यमंत्री श्री बघेल ने महिलाओं तथा बच्चों के पोषण एवं टीकाकरण हेतु प्रदेश भर में संचालित 46 हजार 660 आंगनबाड़ी केन्द्रों में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दी जाने वाली मासिक मानदेय की राशि 6 हजार 500 रूपए प्रति माह से बढ़ाकर 10 हजार रूपए की है। इसी तरह आंगनबाड़ी सहायिकाओं का मानदेय 3 हजार 250 रूपए से बढ़ाकर 5 हजार और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 4 हजार 500 रूपए से बढ़ाकर 7 हजार 500 रूपए प्रति माह करने का प्रावधान बजट में किया है। बजट के इस प्रावधान से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं तथा मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का होली का उल्लास दोगुना हो गया है। प्रदेश भर की आंगनबाड़ी से जुड़ी महिलाओं में हर्ष की लहर है।मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना की राशि बढ़ाकर 50 हजार की गईमुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने संवेदनशील पहल करते हुए आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की बेटियों के विवाह के लिए संचालित मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना अंतर्गत दी जाने वाली सहायता राशि को 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार करने की घोषणा बजट में की है। इसके लिए बजट में 38 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। महिलाओं के रोजगार उपलब्ध कराने शुरू होगी कौशल्या समृद्धि योजनाबजट में महिलाओं के आर्थिक समृद्धि और स्व-रोजगार के लिए नई योजनाओं का प्रावधान भी किया है। महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कौशल्या समृद्धि योजना प्रारंभ करने की घोषणा की है। इसके लिए नवीन मद में 25 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।बाल संप्रेक्षण गृह से बाहर जाने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए शुरू होगी मुख्यमंत्री बाल उदय योजनाबजट में बाल संप्रेक्षण गृह से बाहर जाने की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की घोषणा करने के साथ ही वहां से बाहर जाने वाले युवक-युवतियों के पुनर्वास के लिए मुख्यमंत्री बाल उदय योजना शुरू करने का प्रावधान किया है। इसके लिए बजट में एक करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा यूनिफाईड डिजिटल एप्लीकेशन योजना शुरू करने के लिए 5 करोड़ का प्रावधान किया गया है।पोषण, बाल विकास के साथ अधोसंरचना विकास के लिए प्रावधानबजट में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने पुनर्वास और रोजगार के साथ पोषण, बाल विकास और अधोसंरचना विकास के लिए प्रावधान किया गया है। नगरीय क्षेत्रों में 100 आंगनबाड़ियों के लिए 12 करोड़ रूपए, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना के लिए 160 करोड़ रूपए, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के लिए 8 करोड़ रूपए, एकीकृत बाल विकास सेवा योजना के लिए 844 करोड़ रूपए, एकीकृत बाल संरक्षण योजना के लिए 124 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।सामाजिक सुरक्षा पेंशन राशि बढ़ाकर 500 रूपए प्रति माह की गईमुख्यमंत्री श्री बघेल ने निराश्रितों, बुजुर्गाे, दिव्यांगों एवं विधवा तथा परित्यक्ता महिलाओं के लिए बड़ी घोषणा करते हुए उनको सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के अंतर्गत दी जाने वाली मासिक पेंशन की राशि 350 रूपए से बढ़ाकर 500 रूपए प्रति माह की है। इससे इन वर्गों को जीवन-यापन के लिए सहारा मिल सकेगा।उभयलिंगी व्यक्तियों के लिए नवा पिल्हर योजना होगी शुरूमुख्यमंत्री ने बजट में उभयलिंगी व्यक्तियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए नई पहल करते हुए नवा पिल्हर योजना शुरू करने की घोषणा की है। इसके अंतर्गत उभयलिंगी व्यक्तियों के शिक्षण-प्रशिक्षण तथा रोजगार हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में सहायता की जायेगी। इसके लिए बजट में 25 लाख रूपए का प्रावधान किया गया है।सियान हेल्पलाईन सेंटर की स्थापना की जाएगीवरिष्ठ नागरिकों, उभयलिंगी व्यक्तियों, विधवा परित्यक्ता महिलाओं एवं दिव्यांगजनों की समस्याओं के ऑनलाईन समाधान हेतु सियान हेल्पलाईन सेंटर एवं टोल फ्री नंबर की स्थापना के लिए एक करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। छत्तीसगढ़ राज्य केश शिल्पी कल्याण बोर्ड के संचालन हेतु नवीन सेटअप का प्रावधान भी बजट में किया गया है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इस ऐतिहासिक बजट में महिला एवं बाल विकास विभाग हेतु 2 हजार 675 करोड़ रूपए और समाज कल्याण विभाग हेतु 1 हजार 125 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। इसमें बच्चों से लेकर बुजुर्गों, महिलाओं सहित जरूरतमंद, कमजोर वर्गों के लिए भी मुख्यमंत्री श्री बघेल ने व्यापक प्रावधान किया है। मुख्यमंत्री ने इसके माध्यम से ’गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ की परिकल्पना को साकार रूप देने की ओर एक और बड़ा कदम बढ़ाया है और लोक आकांक्षाओं पर खरा उतरते हुए भरोसे का बजट प्रस्तुत किया है। - पुरानी फिल्मों में पुलिस इंसपेक्टर या फिर कमिश्नर का रोल हो, दो कलाकार सबसे ज्यादा फिट बैठे, एक तो अभिनेता जगदीश राज थे और दूसरे थे इफ्तेखार खान। आज हम बात कर रहे हैं अभिनेता इफ्तेखार खान की, जिनकी आज पुण्यतिथि है। आज ही के दिन वर्ष 1995 में इस अभिनेता ने इस संसार को हमेशा के लिए अलविदा कहा।इफ्तेखार खान ने 40 से 90 के दशक तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में खूब सारी फिल्मों में काम किया। वो राजेश खन्ना से लेकर अमिताभ बच्चन तक संग स्क्रीन शेयर करते नजर आए, लेकिन उन्हें 'द रियल पुलिस ऑफ बॉलीवुड' कहा गया। क्योंकि उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में पुलिस ऑफिसर का दमदार किरदार निभाया और उनमें जान फूंक दी। एक्टर होने के साथ पेंटर और सिंगर भी थे।इफ्तेखार का जन्म 22 फरवरी 1924 को जालंधर में हुआ था। वो चार भाई और एक बहन में सबसे बड़े थे। मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने लखनऊ कॉलेज ऑफ आट्र्स से पेंटिंग में डिप्लोमा कोर्स किया। यानी इफ्तेखार एक्टर होने के साथ-साथ पेटिंग की कला में भी माहिर थे। उन्हें गाने का शौक था और वो फेमस सिंगर कुंदनलाल सहगल से प्रभावित थे! यही वजह थी कि वो 20 साल की उम्र में संगीतकार कमल दासगुप्ता के ऑडिशन के लिए वो कोलकाता चले गए। कमल दासगुप्ता उस समय एचएमवी के लिए काम कर रहे थे। वो इफ्तेखार की पर्सनैलिटी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एमपी प्रोडक्शंस को एक्टर के लिए उनके नाम की सिफारिश की।इफ्तेखार ने साल 1944 में फिल्म 'तकरार' से करियर की शुरुआत की। ये मूवी आर्ट फिल्म्स-कोलकाता के बैनर तले बनी थी। दूसरी तरफ उनकी पर्सनल जिंदगी में उथल-पुथल मची थी। देश के विभाजन के दौरान उनके माता-पिता, भाई-बहन और कई करीबी रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए। इफ्तेखार को भारत में रहना पसंद था, लेकिन दंगों ने उन्हें कोलकाता छोडऩे के लिए मजबूर कर दिया। वो बीवी और बेटियों संग बंबई (अब मुंबई) चले गए। इस दौरान आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी थी, लेकिन मुंबई में किस्मत उनका इंतजार कर रही थी।इफ्तेखार को कोलकाता में उनके समय के दौरान एक्टर अशोक कुमार से मिलवाया गया था। यही वजह रही कि मुंबई में बॉम्बे टॉकीज फिल्म मुकद्दर (1950) में एक किरदार के लिए उनसे संपर्क किया गया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें ज्यादातर पुलिस के किरदार में देखा गया और पसंद किया गया। उन्होंने 1940 से 1990 के दशक की शुरुआत तक अपने करियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में एक्टिंग की।इफ्तेखार ने बतौर लीड एक्टर भी काम किया, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में पिता, अंकल, ग्रेट-अंकल, दादाजी और पुलिस ऑफिसर, कमिश्नर, न्यायाधीश और डॉक्टर के किरदार निभाए और उन्हें काफी पसंद भी किया गया। उन्होंने 'बंदिनी', 'सावन भादो', 'खेल खेल में' और 'एजेंट विनोद' में निगेटिव रोल भी किया।इफ्तेखार खान फिल्मकार यश चोपड़ा की क्लासिक मूवी दीवार (1975) में अमिताभ बच्चन के करप्ट बिजनेस मेंटर का किरदार निभाया। उन्होंने 'जंजीर' में पुलिस इंस्पेक्टर का दमदार किरदार निभाया। भले ही उनका सीन ज्यादा नहीं था, लेकिन जिस तरह से उन्होंने एक्टिंग की, वो बहुत प्रभावशाली थी। 1978 की हिट फिल्म 'डॉन' के लिए भी उन्हें याद किया जाता है। उन्होंने राजेश खन्ना संग भी भी खूब काम किया। वो 'जोरू का गुलाम', 'द ट्रेन', 'खामोशी', 'महबूब की मेहंदी', 'राजपूत' और 'आवाम' जैसी फिल्मों में नजर आए।इफ्तेखार ने कोलकाता की एक यहूदी महिला हन्ना जोसेफ से शादी की थी। हन्ना ने अपना धर्म और नाम बदलकर रेहाना अहमद रख लिया था। उनकी दो बेटियां थीं, सलमा और सईदा। सईदा की 7 फरवरी 1995 को कैंसर से मौत हो गई। बेटी की मौत ने इफ्तेखार को झकझोर दिया था। बेटी के गुजरने के बाद वो बुरी तरह बीमार पड़ गए। बेटी की मौत के एक महीने के अंदर ही 4 मार्च को इफ्तेखार ने भी 71 साल की उम्र में दम तोड़ दिया ।
- विश्व श्रवण दिवस 3 मार्च पर विशेष आलेखरायपुर । श्रवण हानि और बहरेपन की रोकथाम के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल 3 मार्च को विश्व श्रवण दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों में कान और सुनने की देखभाल को बढ़ावा देना है। हर साल विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व श्रवण दिवस की थीम तय करता है। 2023 में विश्व श्रवण दिवस की थीम है - कान और सुनने की देखभाल सभी के लिए! आइए इसे वास्तविकता बनायें ( Ear and hearing care for all! Let’s make it a reality )। बच्चों का समय पर टीकाकरण, पालन-पोषण की बेहतर तकनीक, सामान्य कान विकारों का समय पर निदान और उपचार के जरिये बहरेपन को रोका जा सकता है। बच्चों में जन्मजात बहरेपन की रोकथाम के लिए सुनाई की जांच (Neonatal Screening) जैसे - ओ. ए. ई. और बैरा इत्यादि जन्म के तुरंत बाद आवश्यक रूप से कराने चाहिए।पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय एवं संबद्ध डाॅ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय रायपुर में ई. एन. टी. (कान-नाक-गला) की एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. मान्या ठाकुर के अनुसार इस विश्व श्रवण दिवस पर स्वस्थ श्रवण के लिए कुछ टिप्स हैं जिन्हें अपनाकर हम अपने सुनने की क्षमता को ताउम्र बरकरार रख सकते हैं:-1. नियमित रूप से अपनी सुनने की क्षमता की जांच करवाएं।2. हियरिंग एड नियमित रूप से और सलाह के अनुसार पहनें।3. शोर वाले वातावरण में ईयर प्लग का उपयोग करें।4. यदि आवश्यक हो तो उचित आकार और अच्छी क़्वालिटी वाले ईयरबड्स अथवा ईयरफोन का उपयोग करें और लंबी अवधि के लिए उपयोग करने से बचें, यदि आवश्यक हो तो 1ः20 के नियम का पालन करें अर्थात 1 घंटे के बाद 20 मिनट का ब्रेक लें।5. ऑटो टॉक्सिक दवाओं से बचें और किसी भी ऑटो टॉक्सिक दवा को लेने से पहले अपने चिकित्सक को सूचित करें।6. ईयरफोन की जगह अच्छी क्वालिटी के हेडफोन को प्राथमिकता दें और संक्रमण से बचने के लिए नियमित रूप से साफ करें।7. कान में दर्द, डिस्चार्ज, वर्टिगो रिंगिंग सेंसेशन होने पर ईएनटी विशेषज्ञ से संपर्क करें।8. छोटी-मोटी ईएनटी बीमारियों के लिए काउंटर पर मिलने वाली दवाओं के सेवन से बचें।9. कान साफ़ करने वाले ईयर बड, पिन, की-रिंग आदि द्वारा खुजली या स्वयं सफाई कान से बचें।10. हवाई यात्रा के दौरान बैरोट्रॉमा से बचने के लिए च्युइंग गम का उपयोग करें, लोजेंज चूसें या नाक के अंदर डीकन्जेस्टेंट ड्राप डालें।
- गुजरे जमाने की अदाकारा नवाब बानो यानी निम्मी का जन्म आज ही के दिन 18 फरवरी 1933 में हुआ। अपने जमाने के नामी हीरो के साथ उन्होंने काम किया। उन्हें अपनी पहली ही फिल्म बरसात राजकपूर के साथ मिली जिसमें उन्होंने प्रेमनाथ की नायिका का किरदार निभाया था। पहली ही फिल्म में एक पहाड़ी लड़की के रोल में उन्हें लोगों ने बहुत पसंद किया और वे रातो रात स्टार बन गईं। उन्हें राजकपूर की खोज कहा जाता है।निम्मी का एक वाकया दुनिया भर में मशहूर है। निम्मी बड़ी खूबसूरत थी और उनकी बोलती आंखें लोगों पर जादू कर देती थीं। उन्होंने अपनी लोकप्रियता के दौर में कभी हड़बड़ी में फिल्में साइन नहीं की, बल्कि काफी सोच समझकर ही वे फिल्मों का चयन किया करती थीं। एक प्रकार से उन्होंने अपनी शर्तों में फिल्मों में काम किया।50-60 के दशक में निम्मी फिल्मों की सफलता की गारंटी बन चुकी थीं। राज कपूर, दिलीप कुमार, सुनील दत्त जैसे दिग्गज एक्टर्स उनकी एक्टिंग के कायल थे। निम्मी ने एक बार कुछ ऐसा किया कि उनकी तस्वीर सुर्खियों में छा गई और हेडलाइन बनी 'द अनकिस्सड गर्ल ऑफ इंडियाÓ ।दरअसल, हिंदुस्तान की पहली रंगीन फिल्म आन में निम्मी और दिलीप कुमार की जोड़ी थी । आन फिल्म का भारत के अलावा लंदन के रिआल्टो थिएटर में भी प्रीमियर हुआ था । लंदन में प्रीमियर के मौके पर महबूब खान उनकी वाइफ और निम्मी मौजूद थीं । वहां कई विदेशी स्टार्स भी पहुंचे थे । इस मौके पर हॉलीवुड एक्टर एरल लेजली थॉमसन फ्लिन भी मौजूद थे। एरल ने बधाई देते हुए अपने रिवाज के मुताबिक निम्मी का हाथ चूमने की कोशिश की, लेकिन निम्मी पीछे हट गई और कहा कि-मैं एक हिंदुस्तानी लड़की हूं आप मेरे साथ ये सब नहीं कर सकते । अगले दिन न्यूजपेपर में निम्मी की तस्वीर के साथ हेडलाइन बनी -द अनकिस्ड गर्ल ऑफ इंडिया। निम्मी ने साल 2013 में एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें हॉलीवुड फिल्मों के ऑफर भी मिले ,लेकिन उन्होंने मना कर दिया।उन्होंने राज कपूर के साथ फिल्म बरसात के अलावा बावरा, और देव आनंद के साथ फिल्म सजा, आंधियां जैसी फिल्मों की थीं। इसके अलावा अभिनेत्री ने बॉलीवुड के बेहतरीन एक्टर रहे दिलीप कुमार के साथ दीदार, अमर, शमा, चार दिल चार रहन जैसी फिल्मों में काम किया था।निम्मी ने प्रसिद्ध लेखक सैयद अली रजा से शादी की थी। सैयद अली रजा ने ही मदर इंडिया फिल्म लिखी थी। निम्मी की शादीशुदा जिंदगी बहुत खुशहाल थी। इनकी कोई औलाद नहीं हुई तो निम्मी ने अपनी बहन के बेटे को गोद लिया था। 50-60 दशक की मशहूर एक्ट्रेस एक लंबा समय फिल्मी दुनिया में बिताया। 25 मार्च 2020 को निम्मी ने अंतिम सांस ली थी। हिंदी सिनेमा की दिग्गज एक्ट्रेस को दर्शक आज भी याद करते हैं। अपने अंतिम समय तक वे अपने दौर की अभिनेत्रियों के साथ जुड़ी रहीं।
- रीनू ठाकुर, सहा.जनसंपर्क अधिकारीकई पीढ़ियों से भारतीय खान-पान का अहम हिस्सा रहे मिलेट्स कब थाली से गायब हो गए पता ही नहीं चला। मिलेट्स की पौष्टिकता और उसके फायदों को देखते हुए फिर से उसका महत्व लोगों तक पहुंचाने की कोशिश सरकारों द्वारा की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट ईयर के रूप में मनाया जा रहा है। सामान्यतः मोटे अनाज वाली फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मिलेट क्रॉप कहा जाता है। मिलेट्स को सुपर फूड भी माना जाता है, क्योंकि इनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं।छत्तीसगढ़ की बात करें तो मिलेट्स यहां के आदिवासी समुदाय के दैनिक आहार का पारंपरिक रूप से अहम हिस्सा रहे हैं। आज भी बस्तर में रागी का माड़िया पेज बचे चाव से पिया जाता है। छत्तीसगढ़ के वनांचलों में मिलेट्स की खेती भी भरपूर होती है। इसे देखते हुए मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर मिलेट मिशन चलाया जा रहा है।छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जहां मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में मिलेट्स को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में कोदो, कुटकी और रागी का ना सिर्फ समर्थन मूल्य घोषित किया गया, अपितु समर्थन मूल्य पर खरीदी भी की जा रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से प्रदेश में कोदो, कुटकी एंव रागी का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित कर उपार्जन किया जा रहा है। इस पहल से छत्तीसगढ़ में मिलेट्स का रकबा डेढ़ गुना बढ़ा है और उत्पादन भी बढ़ा है।छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के नथिया-नवागांव में मिलेट्स का सबसे बड़ा प्रोसेसिंग प्लांट भी स्थापित किया जा चुका है, जो कि एशिया की सबसे बड़ी मिलेट्स प्रसंस्करण इकाई है। अब तक राज्य के 10 जिलों में 12 लघु मिलेट प्रसंस्करण केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैंै। गौठानों में विकसित किए जा रहे रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में मिलेट्स प्रोसेसिंग प्लांट लगाए जा रहे हैं।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में मिलेट्स से बने व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए दोपहर भोज का भी आयोजन किया जा चुका है। रायगढ़ जिले के खरसिया में बीते दिनों प्रदेश के पहले मोबाईल मिलेट कैफे ’मिलेट ऑन व्हील्स का शुभारंभ भी किया है। मोबाइल कैफे का संचालन करने वाली महिला समूह ने महज 8 महीनों में कैफे की मासिक आमदनी 3 लाख रूपये को पार कर गयी है। इस चलते फिरते मिलेट कैफे में रागी का चीला, डोसा, मिलेट्स पराठा, इडली, मिलेट्स मंचूरियन, पिज्जा, कोदो की बिरयानी और कुकीज जैसे लजीज व्यंजन परोसे जा रहे हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों, फूड ब्लॉगर्स और युवाओं की यह पहली पसंद बन गए हैं।छत्तीसगढ़ में शुरू हुए मिलेट मिशन का मुख्य उद्देश्य जिसका प्रमुख उद्देश्य प्रदेश में मिलेट (कोदो, कुटकी, रागी, ज्वार इत्यादि) की खेती के साथ-साथ मिलेट के प्रसंस्करण को बढ़ावा देना है। इसके अतिरिक्त दैनिक आहार में मिलेट्स के उपयोग को प्रोत्साहित कर कुपोषण दूर करना है। प्रदेश में आंगनबाड़ी और मिड-डे मील में भी मिलेट्स को शामिल किया गया है। स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील में मिलेट्स से बनने वाले व्यंजन परोसे जा रहे है। इनमें मिलेट्स से बनी कुकीज, लड्डू और सोया चिक्की जैसे व्यंजनों को शामिल किया गया है।छत्तीसगढ़ में मिलेट्स की खेती के लिए राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में अच्छे दामों में बिकने लगा है। बीते एक सालों में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग 5 गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है।प्रदेश में कोदो, कुटकी और रागी की खेती का रकबा 69 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख 88 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। मिलेट उत्पादक किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ भी दिया जा रहा है। इस किसानों को भी 9000 रूपए प्रति एकड़ की मान से आदान सहायता दी जा रही है।आईआईएमआर हैदराबाद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट की उत्पादकता को दोगुना किए जाने का भी लक्ष्य रखा गया है। सीएसआईडीसी ने मिलेट आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ चुंनिदा ब्लाॅक में भूमि, संयंत्र एवं उपकरण पर 50 प्रतिशत सब्सिडी की योजना पेश की है। उम्मीद है कि पीढ़ियों से हमारे स्वाद और सेहत का खजाना रहे मिलेट्स का स्वस्थ जीवन शैली के लिए महत्व को लोग समझेंगे और एक बार फिर यह हमारी दैनिक जीवन का हिस्सा होगा।
- हिंदी फिल्मों के सबसे खतरनाक खलनायकों में प्राण का नाम पहले लिया जाता है। हीरो से खलनायक और फिर चरित्र भूमिकाओं में प्राण ने खूब वाहवाही बटोरी। प्राण का जन्म 12 फरवरी साल 1920 में लाहौर में हुआ था।प्राण को अभिनय नहीं बल्कि फोटोग्राफी का शौक था। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दिल्ली की एक कंपनी 'ए दास एन्ड कंपनी' में प्रेक्टिस भी की थी। बॉलीवुड में कदम रखने से पहले प्राण ने आठ महीने तक मरीन ड्राइव के पास स्थित एक होटल में काम किया था। इन पैसों से वह अपना घर चलाते थे। साल 1940 में लेखक मोहम्मद वली ने जब पान की दुकान पर प्राण को खड़े देखा तो पहली नजर में ही उन्होंने अपनी पंजाबी फिल्म 'यमला जट' के लिए उन्हें बतौर हीरो साइन कर लिया। इसके बाद प्राण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।प्राण ने लाहौर में 1942 से 1946 तक काम किया। चार साल में 22 फिल्मों में काम किया। प्राण को हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक 1942 में आई फिल्म 'खानदान' में मिला। दलसुख पंचोली की इस फिल्म में उनकी अभिनेत्री नूरजहां थीं। इसके बाद विभाजन हुआ और वह भारत आ गए। विभाजन से फिल्म इंडस्ट्री काफी प्रभावित हुई थी। ऐसे में प्राण ने दोबारा अपना फिल्मी सफर शुरू करने की ठानी और साल 1948 में देवानंद की फिल्म 'जिद्दी' में काम किया। हिंदी फिल्मों में उन्हें बतौर विलेन पहचान मिली।फिल्म इंडस्ट्री में प्राण का लगभग छह दशक लंबा करियर रहा है और इस दौरान उन्होंने 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। 'मधुमति', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'उपकार', 'शहीद', 'पूरब और पश्चिम', 'राम और श्याम', 'जंजीर', 'डॉन', 'अमर अकबर एंथनी' जैसी सुपरहिट फिल्मों में प्राण ने शानदार काम किया। अपने समय के वह एक चर्चित विलेन थे। फिल्मों में वह अपने किरदारों को एक अलग रूप दे देते थे। प्राण अपने अभिनय के साथ-साथ डायलॉगबाजी के लिए भी बहुत मशहूर हुए।प्राण साहब ने साल 1972 में फ़िल्म 'बेइमान' के लिए बेस्ट सपोर्टिग का फ़िल्मफेयर अवॉर्ड लौटा दिया था, क्योंकि उस साल आई कमाल अमरोही की फ़िल्म 'पाकीजा' को एक भी पुरस्कार नहीं मिले थे। पुरस्कार लौटा कर प्राण ने अपना विरोध जताया कि 'पाकीजा' को अवॉर्ड न देकर फ़िल्मफेयर ने अवार्ड देने में चूक की है! ऐसे अभिनेता आज के समय में दुर्लभ हैं!अभिनेता और डायरेक्टर मनोज कुमार ने प्राण के अभिनय के कुछ और रंगों से हमें परिचित कराया! उन्होंने ही प्राण को विलेन के रोल से निकालकर पहली बार 'उपकार' में अलग तरह के किरदार निभाने का मौका दिया। उसके बाद प्राण कई फ़िल्मों में ज़बर्दस्त चरित्र या सहायक अभिनेता के रूप में उभर कर सामने आये!प्राण साहब यारों के यार कहे जाते थे! अभिनेता और निर्देशक राज कपूर की फ़िल्म 'बॉबी' में काम करने के लिए प्राण ने महज एक रुपये की फीस ही ली थी, क्योंकि उस दौरान राज कपूर आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। दरअसल 'बॉबी' से पहले अपनी फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' बनाने के लिए राजकपूर अपना सारा पैसा लगा चुके थे। यह फ़िल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह असफल रही जिसके बाद राजकपूर भयंकर आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। फिर 'बॉबी' से वो अपने नुकसान की भरपाई की उम्मीद कर रहे थे,जिसके लिए प्राण ने राजकपूर के लिए इस फ़िल्म में महज एक रूपये में काम करना स्वीकार किया!प्राण को हिंदी सिनेमा में उनके सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए साल 2001 में तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण और साल 2013 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और से नवाजा गया था। इसके अलावा फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों ने दिवंगत अभिनेता प्राण को 'विलेन ऑफ द मिलेनियम' के नाम से नवाजा। 12 जुलाई 2013 में 93 साल की उम्र में प्राण ने इस दुनिया को अलविदा कहा ।
- आलेख- डॉ.दिनेश मिश्रपिछले अनेक वर्षों से अयोध्या के सम्बंध में ढेर सारे,लेख,रिपोर्ट, डॉक्युमेंट्री, आंदोलनों की खबरें देखते पढ़ते, जब इस बार के उत्तर प्रदेश प्रवास में मुझे अयोध्या प्रवास का अवसर मिला तो मैं क्षण भर में तैयार हो गया. क्योंकि मेरे मन में अनेक जिज्ञासाएँ थीं एक प्राचीन नगर,प्राचीन कोशल राज्य की राजधानी,उससे जुड़े अनेक किस्से कहानियाँ ,हिन्दू धर्मावलंबियों के आराध्य श्री राम की जन्मभूमि,पहले कैसी रही होगी और वर्तमान में कैसे बदलाव आ रहे होंगे आदि आदि.मेरे एक मित्र जो अयोध्या में ही शासकीय सेवा में है उनसे भी चर्चा हुई तो उन्होंने कहा आप अयोध्या जी बिलकुल आइये.मैं आपके साथ वहाँ हर जगह चलूँगा और साथ ही चर्चा भी करते रहेंगे.अयोध्या उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण धार्मिक शहर है जो सरयू नदी के किनारे बसा है .यह साकेत, अवधपुरी, कोशल जनपद के नाम से भी वर्णित है .यहाँ सूर्यवंशी/रघुवंशी राजाओं का राज्य था जिनके कुल में श्रीराम हुए थे.लखनऊ से अयोध्या करीब 140 किलोमीटर है, 28 जनवरी को सबेरे सबेरे हम सपरिवार कार से निकले , लखनऊ से बाराबंकी होते हुए अयोध्या जनपद में प्रवेश करने पर अयोध्या विकास प्राधिकरण का स्वागतम का बोर्ड नजर आने लगता है, सड़क अच्छी है,और अयोध्या जनपद में थोड़ा अंदर जाते ही सड़क के बीच डिवाइडरों में श्री राम,के बाल रूप की प्रतिमा,हनुमान,सहित एक के बाद एक प्रतिमाएं नजर आने लगती हैं .कुछ समय के बाद हम अयोध्या स्थित नयाघाट पहुंच गए.वहाँ से हम एक स्थानीय मित्र के साथ आगे निकले जिसने हमें वहाँ के दर्शनीय स्थानों के सम्बंध में बताना आरम्भ किया .अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर कहा जा सकता है .अयोध्या में सरयू नदी के तट पर एक बड़ा घाट नयाघाट है ,जिसका सौंदर्यीकरण किया गया है, जिसमें स्नान,नौका विहार की सुविधा है.यहीं शाम को सरयू नदी की आरती होती है जिसमे काफी जनसमूह उपस्थित रहता है.नयाघाट से राम की पैड़ी शुरू होती है राम की पैड़ी सरयू नदी पर बने घाटों की श्रृंखला है, जिसमे एक के बाद एक घाट बने हैं. वहीं पर श्री राम के पुत्र कुश द्वारा बनवाया नागेश्वर नाथ मंदिर, तथा पास ही त्रेता के ठाकुरका मंदिर ,जो कि बताया जाता है , श्री राम के अश्वमेध यज्ञ से सम्बंधित है , खूबसूरत रीवर फ्रंट तथा दूसरी तरफ़ उद्यान बना है . नया घाट पर ही लता मंगेशकर चौक है, जिसका लोकार्पण कुछ दिनों पूर्व हुआ है,विश्व विख्यात गायिका लता मंगेशकर की स्मृति में बने इस चौक में 40 फ़ीट ऊंची वीणा की खूबसूरत प्रतिमा है चौक के बीच में चारों ओर 92 कमल के आकार के पत्थर के फूल लगाए गए हैं जो दिवंगत लता मंगेशकर की उम्र को दर्शाते हैं.राम की पैड़ी से यहीं से अयोध्या के मंदिरों की श्रृंखला शुरू हो जाती है,श्री राम की पैड़ी से होते हुए मुख्य सड़क पर आप चलते जाइये उसी मार्ग पर अनेक दर्शनीय स्थल हैं जिनमें पुराने महल,भवन और अनेक मंदिरों की श्रृंखला है.अयोध्या में अभी राम पथ के लिए यहाँ सड़क चौड़ीकरण का काम भी जोरों से चल रहा है .कुछ दूर जाने पर गोस्वामी तुलसीदास की स्मृति में बना तुलसी उद्यान नजर आता है जहाँ तुलसीदास की विशाल प्रतिमा लगी है.कुछ दूर पर अलग अलग दर्शनीय स्थल दिखते जाएंगे यही रास्ता पथ राम जन्मभूमि स्थल तक जाता है, जहाँ राम मंदिर निर्माण कार्य चल रहा है.राम की पैड़ी से कुछ दूरी पर एक टीले पर पर हनुमान गढ़ी है जो काफी ऊंचाई पर बनी है .वहॉ भी दर्शनार्थियों की भीड़ लगी थीसड़क के दोनों ओर मिठाई, पुष्प, माला,फ़ोटो, सिंदूर की दुकानें लगी हुई थीं. हनुमान गढ़ी से कुछकरीब सौ कदम की दूरी पर राजा दशरथ का विशाल महल बना हुआ है. जो दर्शनार्थियों के आकर्षण का एक केंद्र है,आगे चलते जाने पर पुरातन राजगद्दी भवन ,राम कचहरी भवन,भरत, लक्ष्मण ,के नाम पर प्राचीन भवन है .इसके पहले दाहिनी ओर कनक भवन नामक ऐतिहासिक महल है जो अपनी वास्तुकला के कारण दर्शनार्थियों के आकर्षण का एक और केंद्र है.इस भवन के पास हीनजदीक में सीता की रसोई भवन हैं.जहां रसोई बनाने के समान भी प्रतीकात्मक रूप से रखे हैंराम पथ पर ही कुछ दूर और आगे चलने पर सड़कों के किनारे लॉकर रखे हुए दिखाई देते है, जहाँ आगंतुकों से मोबाइल, पर्स, आदि समान रखवाया जाता है क्योंकि मंदिर निर्माण स्थल में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं ले जाई जा सकती.,सुरक्षा के लिए अनेक स्थानों पर चेकिंग होती है,सुरक्षा कर्मी मुस्तैदी से अपना काम करते दिखे, जो लाइन बना कर आगे भेज रहे थे जिनमें हिन्दू ,मुस्लिम दोनों ही थे.कुछ दूर आगे चलने पर एक स्थान पर श्री राम की प्रतिमा दर्शनार्थ रखी हुई है, अभी उन्ही का दर्शन कराया जाता है कुछ दूर आगे चलने पर एक स्थान पर खुदाई में निकले पुराने अवशेष दर्शनार्थ रखे हुए हैं, दर्शनार्थियों को लाइन से जाने दिया जा रहा था.हमने देखा अयोध्या में अनेक नेत्र चिकित्सालय है, जो चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित हैं जो निशुल्क शिविरों का संचालन करते हैं, अयोध्या पारम्परिक रूप से परस्पर सौहार्द की नगरी रही है .जब देश में छोटे छोटे मामलों को लेकर आपसी तनाव हो जाता है तब भी वहाँ आम तौर पर शांति रहती है . हमें अयोध्या के इतिहास वर्तमान के बारे में जानकारी देने वाला व्यक्ति संतोष कुमार थे,वहीं तो दर्शनार्थियों को राम जन्मभूमि में भेजने के लिए व्यवस्था बनाने वालों में पुलिस कर्मियों में जावेद खान भी ड्यूटी पर थे,जो तन्मयता से कार्यरत थे.मेरे साथ रहे मित्र ने बताया किसी अन्य धर्म के दर्जी का भगवान राम की मूर्तियों के लिए वस्त्र सिलना आभूषण बनाना वहीं दूसरी ओर किसी हिन्दू का दूसरे धर्म के कार्यक्रम में मदद करना आम बात है. आपसी सहयोग और सद्भाव यहाँ की विरासत है.जो सदैव कायम रहती है.इसके अतिरिक्त अमावा राममंदिर,अनेक छोटे बड़े मंदिर, मणि पर्वत, बड़ी देवकाली ,जैन श्वेतांबर मंदिर,गुलाब बाड़ी ,गुप्तार घाट नन्दी ग्राम भरतकुंड आदि दर्शनीय स्थल हैं.लगभग सभी जगह बंदरों की टोलियां उछल कूद करती नजर आयी.कुछ आगंतुक उन्हें खाद्य सामग्री भी देते दिखाई पड़े.धार्मिक नगरी होने के साथ ही अयोध्या में अनेक अस्पताल, होटल,स्कूल सहित आधुनिक आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध होने लगी है.मेरा बाद में वहाँ नेत्र चिकित्सालयों में भी जाना हुआ ,चिकित्सको ,शिक्षकों से भी मुलाकात ,चर्चा हुई,उन्हें वैज्ञानिक जागरूकता,अंधविश्वास निर्मूलन सम्बंधित किताबें भेंट,व चर्चा की.और वापस लौट आए.डॉ.दिनेश मिश्रनेत्र विशेषज्ञअध्यक्ष, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति छत्तीसगढ़
- -ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान-उत्खनन में यहाँ पर पाए गए हैं प्राचीन बौद्ध मठ-सिरपुर महोत्सव में दिखती है कला व संस्कृति की अनोखी झलकमनोज सिंह, सहायक संचालकरायपुर । सिरपुर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में महानदी के तट स्थित एक पुरातात्विक स्थल है। इस स्थान का प्राचीन नाम श्रीपुर है यह एक विशाल नगर हुआ करता था तथा यह दक्षिण कोशल की राजधानी थी। सोमवंशी नरेशों ने यहाँ पर राम मंदिर और लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था। ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान है। उत्खनन में यहाँ पर प्राचीन बौद्ध मठ भी पाये गये हैं।अंतराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर सिरपुर अपनी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता के कारण आकर्षण का केंद्र हैं। यह पांचवी से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी थी। सिरपुर में सांस्कृतिक एंव वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह हैं। भारतीय इतिहास में सिरपुर अपने धार्मिक मान्यताओ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण आकर्षण का केन्द्र था और वर्तमान में भी ये देश विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।सिरपुर महोत्सव का आयोजनसिरपुर के एतिहासिक महत्व को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से प्रत्येक वर्ष यहां पर सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जाता है। छत्तीसगढ़ के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल सिरपुर में माघ पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव का हर किसी को इंतजार रहता है। रविवार को खाद्य एवं संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत ने तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव का शुभारंभ करते हुए सभी प्रदेश वासियों को माघी पूर्णिमा सिरपुर महोत्सव की शुभकामनाएं दी हैं।गंधेश्वर महादेव का मंदिरसिरपुर का एक अन्य मंदिर गंधेश्वर महादेव का है। यह महानदी के तट पर स्थित है। इसके दो स्तम्भों पर अभिलेख उत्कीर्ण हैं। कहा जाता है कि चिमणाजी भौंसले ने इस मन्दिर का जीर्णोद्वार करवाया था। सिरपुर से बौद्धकालीन अनेक मूर्तियाँ भी मिली हैं। जिनमें तारा की मूर्ति सर्वाधिक सुन्दर है। सिरपुर का तीवरदेव के राजिम-ताम्रपट्ट लेख में उल्लेख है। 14वीं शती के प्रारम्भ में, यह नगर वारंगल के ककातीय नरेशों के राज्य की सीमा पर स्थित था। 310 ई. में अलाउद्दीन ख़िलजी के सेनापति मलिक काफूर ने वारंगल की ओर कूच करते समय सिरपुर पर भी धावा किया था, जिसका वृत्तान्त अमीर खुसरो ने लिखा है।आधुनिकता के दौर में बौद्ध विरासत, लोककला एवं संस्कृति का केंद्रसिरपुर महोत्सव आधुनिकता के दौर में भी अपनी प्राचीन संस्कृति और भव्यता को बनाये हुए है। युवा पीढ़ी को यहाँ की बौद्ध विरासत तथा लोककला एवं संस्कृति को जानने का अवसर मिलता है। सिरपुर लोगों की आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है जिसे देखने और महसूस करने के लिए देश विदेश से लोग यहां पहुंचते हैं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य में हर तरफ विकास के काम हो रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने राज्य के लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए योजना बनायी है जिससे स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहन मिल रहा है।
- -हाफ बिजली बिल योजना : 42 लाख उपभोक्ता हो रहे लाभान्वित-कृषक जीवन ज्योति योजना : 6 लाख से ज्यादा किसानों को मिला 10,400 करोड़ रूपए का अनुदान-बीपीएल के 16.82 लाख बिजली उपभोक्ताओं को हर महीने 30 यूनिट बिजली निःशुल्करायपुर /बिजली उत्पादन में अग्रणी छत्तीसगढ़ राज्य में 65 लाख से ज्यादा परिवारों को रियायती बिजली का लाभ मिल रहा है। इन परिवारों में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर लागू की गई हॉफ बिजली बिल योजना से लाभान्वित 41.94 घरेलू बिजली उपभोक्ता, 16.82 लाख बी.पी.एल बिजली उपभोक्ता, 6.26 लाख से ज्यादा किसान शामिल हैं। हाफ बिजली बिल योजना के अंतर्गत घरेलू उपभोक्ताओं को प्रति माह की गई 400 यूनिट तक की बिजली की खपत पर प्रभावशील विद्युत की दर के आधार पर आधे बिल की राशि की छूट दी जा रही है। हाफ बिजली बिल योजना में चार वर्षां में घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को 3236.59 करोड़ रूपए की छूट दी जा चुकी है। इसी तरह कृषक जीवन ज्योति योजना के तहत किसानों को तीन अश्वशक्ति तक के कृषि पंप के बिजली बिल में 6000 यूनिट प्रतिवर्ष तथा 3 से 5 अश्वशक्ति के कृषि पंपों के बिजली बिल में 7500 यूनिट प्रतिवर्ष की छूट दी जा रही है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के किसानों द्वारा खेती में उपयोग की जा रही बिजली को निःशुल्क रखा गया है। बी.पी.एल. बिजली उपभोक्ताओं को प्रति माह 30 यूनिट बिजली निःशुल्क दी जा रही है।पिछले चार सालों में घरेलू बिजली उपभोक्ताओं और बी.पी.एल.बिजली कनेक्शनधारी हितग्राहियों को 1973 करोड़ रूपए से ज्यादा की छूट मिल चुकी है। साथ ही कृषक जीवन ज्योति योजना के अंतर्गत पिछले चार सालों में 6.26 लाख से ज्यादा किसानों को बिजली पर 10,400 करोड़ रूपए का अनुदान दिया जा चुका है।हाफ बिजली बिल योजना से लगभग 42 लाख परिवार लाभान्वितप्रदेश में संचालित हाफ बिजली बिल योजना के अंतर्गत घरेलू उपभोक्ताओं को प्रति माह की गई 400 यूनिट तक की बिजली की खपत पर प्रभावशील विद्युत की दर के आधार पर आधे बिल की राशि की छूट दी जा रही है। हाफ बिजली बिल योजना में अब तक घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को 3236.59 करोड़ रूपए की छूट दी जा चुकी है। पिछले चार सालों में हाफ बिजली बिल योजना के उपभोक्ताओं की संख्या 25.23 लाख से बढ़कर अब 41.94 लाख हो गई है। योजना का लाभ लेने की शर्त यह है कि हाफ बिजली बिल सुविधा का लाभ लेने के लिए उपभोक्ता के बिजली बिल की बकाया राशि शेष नहीं होनी चाहिए। लेकिन यदि ऐसे उपभोक्ता पूर्व की बिल की बकाया राशि का संपूर्ण भुगतान करते हैं, तो भुगतान की तारीख से वे योजना का लाभ लेने के लिए पात्र हो जायेंगे।बीपीएल परिवारों को निशुल्क विद्युत कनेक्शनगरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को दिए गए विद्युत कनेक्शनों में 30 यूनिट प्रति कनेक्शन प्रतिमाह की दर से निशुल्क विद्युत प्रदाय किया जा रहा है। योजना के तहत 4 वर्षां में बीपीएल विद्युत कनेक्शन धारकों को 1973 करोड़ रूपए की छूट दी गई है। राज्य में 16.82 लाख बीपीएल परिवार को एकलबत्ती योजना का लाभ मिल रहा है।किसानों को 10,400 करोड़ रुपए की छूटकृषक जीवन ज्योति योजना के अंतर्गत स्थायी एवं अस्थायी बिजली कनेक्शन वाले किसानों को तीन अश्वशक्ति तक के कृषि पंप के बिजली बिल में 6000 यूनिट प्रतिवर्ष तथा 3 से 5 अश्वशक्ति के कृषि पंपों के बिजली बिल में 7500 यूनिट प्रतिवर्ष की छूट दी जा रही है। योजना में फ्लैट रेट का विकल्प चुनने वाले किसानों को उनके द्वारा की गई विद्युत खपत की कोई सीमा न रखते हुए मात्र 100 रूपए प्रति अश्वशक्ति की दर से बिजली बिल का भुगतान करना होगा। योजना में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए विद्युत खपत की कोई सीमा नहीं रखी गई है। योजना में कृषकों को 5 अश्वशक्ति द्वितीय पंप के लिए 200 रूपए प्रति अश्वशक्ति प्रतिमाह, 5 अश्वशक्ति से अधिक प्रथम एवं द्वितीय पंप के लिए 200 रूपए प्रति अश्वशक्ति प्रतिमाह, 5 अश्वशक्ति एवं 5 अश्वशक्ति से अधिक तृतीय एवं अन्य पंप के लिए 300 रूपए प्रति अश्वशक्ति प्रतिमाह की दर से बिल भुगतान के लिए सुविधा प्रदान की गई है। योजना में शासन की ओर से पिछले चार वर्षां में किसानों को 10,400 करोड़ रूपए का अनुदान दिया गया है। वर्तमान में 6.26 लाख पंप उपभोक्ताओं को छूट दी जा रही है।
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विशेष लेख : राजिम माघी पुन्नी मेला
रायपुर। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित पवित्र धार्मिक नगरी राजिम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। राजिम में तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यहाँ मुख्य रूप से तीन नदियां बहती हैं, जिनके नाम क्रमशः महानदी, पैरी नदी तथा सोंढूर है। संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव जी विराजमान है। राज्य शासन द्वारा वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, वर्ष 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था, और अब 2019 से राजिम माघी पुन्नी मेला के रूप में मनाया जा रहा है। यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन धर्मस्व एवं पर्यटन विभाग एवं स्थानीय आयोजन समिति के तत्वाधान में होता है। मेला की शुरुआत कल्पवास से होती है। पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते हैं पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते हैं तथा धुनी रमाते हैं। 101 कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से मेला का आगाज होता है। इस वर्ष 5 फरवरी माद्य पूर्णिमा से 18 फरवरी 2023 महाशिवरात्रि तक राजिम माद्यी पुन्नी मेला आयोजित किया गया है। राजिम माघी पुन्नी मेला में विभिन्न जगहों से हजारांे साधू संतों का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो की संख्या में नागा साधू, संत आदि आते हैं, तथा विशेष पर्व स्नान तथा संत समागम में भाग लेते हैं, प्रतिवर्ष होने वाले इस माघी पुन्नी मेला में विभिन्न राज्यों से लाखों की संख्या में लोग आते हैं और भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते हैं और अपना जीवन धन्य मानते हैं। लोगो में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती, जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम माघी पुन्नी मेला का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है। राजिम अपने आप में एक विशेष महत्व रखने वाला एक छोटा सा शहर है। राजिम गरियाबंद जिले का एक तहसील है। प्राचीन समय से राजिम अपने पुरातत्वों और प्राचीन सभ्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। राजिम मुख्य रूप से भगवान श्री राजीव लोचन जी के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। राजिम का यह मंदिर आठवीं शताब्दी का है। यहाँ कुलेश्वर महादेव जी का भी मंदिर है। जो संगम स्थल पर विराजमान है। राजिम माघी पुन्नी मेला प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलता है। इस दौरान प्रशासन द्वारा विविध सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजन होते हैं।
- 31 जनवरी: पुण्यतिथि पर विशेषआलेख- मंजूषा शर्माजब भी भारतीय सिने जगत में खूबसूरत और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों की बात होगी, तो इसमें एक नाम अभिनेत्री और गायिका सुरैया का भी टॉप पर रेहाग। उन्हें मल्लिका - ए- हुश्न कहा जाता था। उनको इस संसार से विदा हुए आज 19 साल हो गए हैं। 31 जनवरी 2004 को उन्होंने मुंबई में अंतिम सांस ली।सुरैया का जब भी जिक्र होता है, तो सदाबहार अभिनेता देवआनंद के साथ उनकी प्रेम कहानी की भी याद ताजा हो जाता है। अपने जमाने की यह बड़ी खूबसूरत जोड़ी थी। उन्होंने साथ में फिल्में की और उनके बीच प्यार भी हुआ। दोनों ने जीवन भर साथ रहने का सपना देखा पर सुरैया के परिवार वालों ने मजहब का वास्ता देकर सुरैया के कदम रोक लिए। सुरैया परिवार वालों के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी इसलिए उन्होंने भी अपने प्रेम को अपने दिल में सदा के लिए दफ्न कर दिया और देवसाहब से किनारा कर लिया। नाराज देवआनंद ने बेरुखी अपना ली और कल्पना कार्तिक से शादी कर जिंदगी में आगे बढ़ गए, लेकिन सुरैया वहीं खड़ी रह गईं। अपने प्रेम की याद में उन्होंने ताउम्र शादी नहीं की। सुरैया की जिंदगी जैसे उसी रिश्ते पर ठहर गई थी। जीवन के अंतिम दिनों में परिवार के नाम पर एक खालीपन उनकी जिंदगी का हिस्सा था। उन्होंने अपने अंतिम करीब छह महीने अपने वकील धीमंत ठक्कर के परिवार वालों के साथ गुजारे।ब्रेकअप के बाद देवआनंद ने फिर कभी सुरैया की खैरखबर नहीं ली। यहां तक कि सुरैया की अंतिम यात्रा में भी वे शामिल नहीं हुए। लोगों ने इसे एक बार फिर मोहब्बत की हार कहा।खूबसूरत एक्ट्रेस सुरैया उस दौर की सबसे महंगी हीरोइन भी थीं। वे काफी सुरीली थी और अपने गाने भी खुद गा रही थी, जो लोकप्रिय भी हो रहे थे। दिलीप कुमार जैसे एक्टर की भी ख्वाहिश थी कि वो सुरैया के साथ काम करें। दोनों को लेकर फिल्म शुरू भी हुई, लेकिन कहा जाता है कि पहले ही सीन की शूटिंग से सुरैया इतना नाराज हुईं कि फिर उन्होंने कभी दिलीप कुमार के साथ काम नहीं किया।सुरैया अपनी सुरीली आवाज के लिए जानी गईं। कई दिग्गज हस्तियां भी उनके प्रशंसकों की सूची में शुमार रहीं। इनमें एक नाम देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का भी था। पंडित नेहरू एक्ट्रेस-सिंगर सुरैया के बहुत बड़े प्रशंसक थे। रिपोट्र्स के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू ने खुद सुरैया के सामने इस बात का जिक्र किया था। कई रिपोट्र्स में यह दावा किया गया कि इसका खुलासा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक कार्यक्रम के दौरान खुद सुरैया के सामने किया था।सुरैया ने कई हिट फिल्में दी, लेकिन वर्ष 1954 में रिलीज हुई उनकी फिल्म 'मिर्जा गालिब' लोगों को बहुत पसंद आई। इस फिल्म में उन्होंने अपने सारे गाने खुद गाए। फिल्म में उनके हीरो भारत भूषण थे। यह फिल्म मशहूर शायर मिर्जा गालिब की जिंदगी पर आधारित थी, जिसे सोहराब मोदी ने निर्देशित किया था। इस फिल्म में सुरैया ने तवायफ मोती बेगम का किरदार निभाया और दिग्गज अभिनेता भारत भूषण मिर्जा गालिब की भूमिका में थे। कहा जाता है कि इस फिल्म में पंडित जवाहरलाल नेहरू को सुरैया की एक्टिंग खूब पसंद आई। उस समय वह देश के प्रधानमंत्री थे। सुरैया ने फिल्म 'मिर्जा गालिब' में करीब पांच गजलों को अपनी आवाज दी थी। इसमें सबसे ज्यादा पसंद की गई गजल - ये ना थी हमारी किस्मत ....।सुरैया ने अपनी गायकी की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो से की थी और वे बच्चों के लिए गाती थी। एक बार ऑल इंडिया रेडियो पर सुरैया को गाते संगीतकार नौशाद ने सुना। सुरैया के गाने का अंदाज नौशाद साहब को बहुत पसंद आया। इसके बाद उन्होंने फिल्मकार कारदार साहब की फिल्म शारदा में सबसे पहले सुरैया को गाने का मौका दिया। 1936 से 1963 तक सुरैया ने फिल्मों में काम किया था। खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से दूरी बना ली थी।
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-मेजर जनरल (रि.) अशीम कोहली
हमारी पृथ्वी अब8अरब लोगों का घर है। दिलचस्प बात यह है कि इसमें सबसे बड़ा योगदान भारत का है जो इस साल चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। इस बीच विश्व आर्थिक मंच से एक बुरी खबर आई है कि इसी साल पूरी दुनिया में मंदी अपना पांव पसार लेगी। प्राइसवाटर कूपरमैन की रिपोर्ट के अनुसार अगला एक साल बेहद कठिन रहेगा। इसके मुख्य कारणों में चीन समेत अनेक देशों में कोविड-19 महामारी नियंत्रित न हो पाना और रूस-यूक्रेन युद्ध है। इस मंदी का असर भारत पर भी पड़ेगा। लगभग 140 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी बचाने और विकास दर आगे बढ़ाने की चुनौती रहेगी तो देशवासियों की एकजुटता ही समाधान देगी, जो राष्ट्र के प्रति समर्पण एवं आपसी प्रेम और विश्वास से संभव है। हमने देखा है कि पाकिस्तान के खिलाफ 1965, 1971 और करगिल युद्ध हो या संसद और मुंबई में आतंकवादी हमला, पूरा देश एकजुट हो गया। देशवासियों ने तब तिरंगा अपने हाथ में लेकर राष्ट्र की एकता और अखंडता अक्षुण्ण रखने की शपथ ली थी।
मैंने किताबों में पढ़ा है कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का 18 महीने का कार्यकाल चुनौतियों से भरा था। उस समय भोजन का भारी संकट था, चीन से शिकस्त के बाद भारत का मनोबल उठाने की चुनौती थी लेकिन अमेरिका के समर्थन से पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर हमला बोल दिया। गरीबी के कारण भारत एक और युद्ध का सामना करने की स्थिति में नहीं था लेकिन शास्त्री जी के“जय जवान – जय किसान”नारे को देशवासियों ने पूर्ण समर्थन दिया, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान बुरी तरह हार गया। यहां तक कि भारतीय सेना लाहौर में प्रवेश कर गई। शास्त्री जी ने कब्जा किये हुए क्षेत्र को लौटाने से मना कर दिया तब विश्व की दोनों महाशक्तियां अमेरिका और रूस ने मिलकर ताशकंद समझौते का फॉर्मूला निकाला।
शास्त्री जी के समय ही आर्थिक मोर्चे पर भी भारत को अलग ताकत मिली। हरित क्रांति के जनक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन ने गेहूं उत्पादन और डॉ. वर्गीज कुरियन ने श्वेत क्रांति के बीज बोए। उनसे पहले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने बांध, भवन और मूलभूत ढांचा निर्माण उद्योग को बढ़ावा देकर देश के विकास को स्थायी आधार दिया।
90 के दशक के बाद दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी का आगमन हुआ, आवासीय भवन निर्माण में तेजी आई, ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर देश बढ़ा और आज डिजिटल करेंसी के दौर में हम पहुंच गए हैं। भारत अब अक्षय ऊर्जा एवं बैटरी से चलने वाली गाड़ियों को मुख्यधारा में लाने के लिए गंभीर पहल कर रहा है। समय, काल और परिस्थितियां किसी भी राष्ट्र के विकास के महत्वपूर्ण कारक हैं। कोविड-19 आने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की तेजी पर भी ब्रेक लगा लेकिन महामारी पर नियंत्रण के बाद भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में शामिल हो गया। आज देश को एकजुट समर्थन की जरूरत है ताकि हमारे विकास की रफ्तार पर कोई ग्रहण न लगे। इसलिए अब हाथों में हाथ डालकर तिरंगे की प्रेरणा से राष्ट्रीय एकता को अपनी ढाल बनाने की आवश्यकता है। तिरंगा ही एकमात्र माध्यम है जो जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, बोली और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर एक-एक देशवासी को आपस में जोड़ता है। यही वजह है कि फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने देशवासियों को जोड़ने के लिए अपनी वेबसाइट के माध्यम से राष्ट्र के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करने के लिए शपथ अभियान चला रखा है। हमारा प्रयास है कि प्रत्येक देशवासी यह समझें कि भारत सबसे पहले है और हमें इसे मजबूत बनाना है। हम चाहे जिस भी जगह पर हों और जो भी काम कर रहे हों, हमें अपने व्यक्तिगत दायित्व को राष्ट्र के प्रति दायित्वों से जोड़कर अपने सपनों के भारत का निर्माण करना है।
पिछले वर्ष देश के प्रति प्रेम का भाव जगाने के लिए आजादी का अमृत महोत्सव मनाया गया और अगले 25 साल अमृत काल के रूप में परिभाषित किये गए, जिसमें हमें भारत को अग्रणी राष्ट्र बनाना है। 23 जनवरी 2004 को सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद देशवासियों को साल के 365 दिन पूरे सम्मान के साथ तिरंगा फहराने की जो आजादी मिली, वो राष्ट्र को मजबूत करने के एक दायित्व के रूप में मिली। मैं इसे शुभ संकेत मानता हूं कि हमारा तिरंगा आज सार्वजनिक अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम बन गया है।
हमारा देश विविधताओं में एकता का देश है तो इस एकता के पीछे हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है। देशवासियों से मेरी अपील है कि तिरंगे में निहित देशभक्ति की भावना को घर-घर पहुंचाने के लिए फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने राष्ट्र के प्रति समर्पण की शपथ का जो अभियान चलाया है, वे उसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। देश को आजादी दिलाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति यह एक सच्ची श्रद्धांजलि और देश को विकास पथ पर अग्रसर करने वाले महान वैज्ञानिकों, समाज सेवियों, नीति निर्माताओं के योगदान के प्रति आभार होगा। हम 74वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं तो आइये हम शपथ लें देश के लिए, अपने राष्ट्रीय ध्वज के लिए। जय हिन्द
(लेखक फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी हैं) - मेरा नाम जोकर, आवारा, श्री 420 जैसी फिल्मों से दर्शकों का मनोरंजन करने वाले राज कपूर साहब ने हिन्दी सिनेमा में एक नया अध्याय लिखा है। राज कपूर ने अभिनय के साथ-साथ डायरेक्शन, प्रोडक्शन और राइटिंग में हाथ आजमाया और वो इसमें कामयाब भी रहे। तीन राष्ट्रीय पुरस्कार...11 फिल्मफेयर पुरस्कार.. पद्मभूषण...दादा साहब फाल्के सम्मान..ऐसे ही राज कपूर को हिंदी सिनेमा का शोमैन नहीं कहा जाता है। हिंदी सिनेमा के लिए राज कपूर क्या थे, क्या हैं और क्या रहेंगे...इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। राज कपूर ऐसे शख्स थे जिनकी शोहरत के चर्चे सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी थे। दिलचस्प बात यह रही कि इतनी बड़ी शख्सियत होने के बावजूद वह ताउम्र सिर्फ जमीन पर सोए। तो चलिए जानते हैं कि आखिर इसके पीछे की क्या वजह रही।कभी पिता के स्टूडियो में झाड़ू लगाने वाले राज कपूर की सादगी के किस्से इंडस्ट्री में बहुत लोकप्रिया हैं। उनके बारे में कहा जाता था कि वह चाहे घर में हों या बाहर, कभी बेड पर नहीं सोते थे। उनका गद्दा हमेशा जमीन पर बिछता था। उन्हें वहीं नींद आती थी। इस बारे में राज कपूर की बेटी ऋतु नंदा ने भी एक इंटरव्यू के दौरान बताया था। उन्होंने कहा था कि राज कपूर साहब जिस भी होटल में ठहरते थे। अपने कमरे में पलंग का गद्दा खींचकर जमीन पर बिछा लेते थे। इस कारण कई बार उन्हें मुसीबत भी उठानी पड़ी थी। दरअसल एक बार राज कपूर लंदन के एक होटल के कमरे में रुके थे। उन्होंने वहां जमीन में अपना बिस्तर लगा लिया, जिसके बाद होटल वालों ने उनको चेतावनी दी। अगले दिन फिर राज कपूर ने यही किया। उन्होंने दोबारा उसी तरह गद्दा नीचे उतराकर बिछा दिया, तो होटल मैनेजमेंट ने उन पर जुर्माना लगा दिया, जिसके बाद राज कपूर ने खुशी-खुशी जुर्माना भरा था।राज कपूर की गिनती उन महान कलाकारों में होती है, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को विदेशों तक पहुंचाया। राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर भले ही फिल्मों के सबसे बड़े हीरो थे, लेकिन राज कपूर को अपनी अलग पहचान बनाने में काफी मेहनत करनी पड़ी थी। राज कपूर ने पहली नौकरी अपने पिता के स्टूडियो में की। राज कपूर को 1 रुपए महीने सैलेरी मिला करती थी, तब वह अपने पिता के कपूर स्टूडियो में झाड़ू लगाने का काम करते थे।
- मंजूषा शर्मागुजरे जमाने के संगीतकारों में ओंकार प्रसाद नैय्यर यानी ओ. पी. नैय्यर ने अपने अलहदा संगीत की वजह से फिल्म संगीत की दुनिया में एक अलग ही पहचान बनाई थी। 'इशारों इशारों में दिल लेने वाले...', 'जाने कहां मेरा जिगर गया जी...', 'लेके पहला पहला प्यार...' इन गानों की पंक्तियां पढऩे के बाद पूरा गाना सुनने का मन कर रहा है न? हो भी क्यों न? ये गाने दशकों से हमारे दिल और दिमाग पर छाए हुए हैं। इन्हें हम कहीं भी सुन लें तो बिना गुनगुनाए नहीं रह सकते। आज उनकी बर्थ एनिवसिरी पर हम उनके बारे में कुछ रोचक जानकारी लेकर आए हैं।ओपी नैय्यर का जन्म पाकिस्तान के लाहौर में 16 जनवरी साल 1926 को हुआ था। वे अपने जमाने के सबसे महंगे संगीतकार थे। उन्होंने सबसे ज्यादा मौका आशा भोंसले को दिया। उस वक्त लता मंगेशकर सबसे सफल गायिका मानी जाती थी, लेकिन ओ. पी. नैय्यर ने उनके साथ कभी काम नहीं किया। कहा जाता है कि ओ. पी. नैयर ने कसम खाई थी कि वे कभी भी लता मंगेशकर से अपने गाने नहीं गवाएंगे।दरअसल, ओपी नैय्यर 50 और 70 के दशक में अपनी ही शर्तों पर काम करने के लिए मशहूर थे। उन्हें जिद्दी किस्म का इंसान भी कहा जाता था। अपने काम को लेकर वह बहुत अडिग रहते थे और बहुत जल्दी ही गुस्सा हो जाते थे। बस यही वजह बन गई लता मंगेशकर से उनकी लड़ाई की। दरअसल, यह मामला है फिल्म 'आसमान' के समय का। 'आसमान' में सहनायिका के किरदार के लिए ओपी नैय्यर ने एक गाना लिखा और चाहते थे कि लता मंगेशकर इस गाने को अपनी आवाज दें। जब यह बात लता मंगेशकर के कानों तक पहुंची तो उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। उन्हें यह प्रस्ताव पसंद नहीं आया, क्योंकि उस समय कि वह एक बड़ी गायिका थीं और यह नहीं चाहती थीं कि वह मुख्य नायिका की जगह किसी सहनायिका के लिए गाना गाए।कहा जाता है कि लता मंगेशकर ने वह गाना गाने से इनकार कर दिया। बस यही बात ओपी नैय्यर को चुभ गई। उन्होंने उसी वक्त एलान कर दिया कि वह लता मंगेशकर के साथ कोई गाना नहीं बनाएंगे और इस तरह एक महान गायक और संगीतकार की जोड़ी बनते बनते रह गई। हालांकि, मीडिया के सामने कभी उन दोनों ने अपने लड़ाई की बात को नहीं माना, लेकिन उनके बीच के मतभेद के किस्से बहुत मशहूर हुए। 1990 में जब ओपी नैय्यर को 'लता मंगेशकर अवॉर्ड' के लिए चुना गया तो उन्होंने इस अवॉर्ड को भी लेने से मना कर दिया था। खैर ओ. पी. नैयर ने आशा भोंसले को खूब मौका दिया और एक से बढ़कर एक हिट गाने दिए।आर-पार, सी. आई. डी., तुमसा नहीं देखा आदि एक के बाद एक लगातार हिट फि़ल्में देते हुए ये सिने जगत् में सबसे महंगे संगीतकार बने। 1950 में एक फि़ल्म में संगीत देने के 1 लाख रुपये लेने वाले पहले संगीतकार थे। "नया दौर" इनकी सबसे लोकप्रिय फि़ल्म रही। इस फि़ल्म के लिए उन्हें 1957 में फि़ल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला। सिर्फ़ कुछ ही फि़ल्मों में अपनी कला का लोहा मनवा देने वाले ये संगीतकार एकांतप्रिय स्वभाव के कारण भी चर्चा में रहे। कुछ लोग इन्हें घमंडी, दबंग और निरंकुश स्वभाव के भी कहते थे, हालाँकि नये एवं जूझते हुए गायकों के साथ ये बहुत उदार रहे। पत्रकार हमेशा से ही इनके खिलाफ रहे और इनको हमेशा ही बागी संगीतकार के रूप में पेश किया गया। पचास के दशक के दौरान आल इंडिया रेडियो ने इनके संगीत को आधुनिक कहते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया और इनके गाने रेडियो पर काफ़ी लंबे समय तक नहीं बजाए गये। इस बात से उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ बल्कि वे अपनी धुन बनाते रहे और वे सभी देश में बड़ी हिट रही। उस समय सिर्फ़ श्रीलंका के रेडियो पर ही इनके नये गाने सुने जा सकते थे। बहुत जल्दी ही अंग्रेज़ी अख़बारों में इनकी तारीफ के चर्चे शुरू हो गये और इन्हें हिन्दी संगीत में उस्ताद कहा जाने लगा, तब ये बहुत जवान थे।गीता दत्त, आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी के साथ इन्होंने सबसे ज़्यादा काम किया। मोहम्मद रफ़ी से अलग होने के बाद ओपी महेंद्र कपूर के साथ काम करने लगे। महेंद्र कपूर जी ओपी के लिए दिल से गाते थे। उनकी आवाज़ और एहसास की गहराई ने ओपी के गानों में भावनाओं को उभारा और लोगों के दिलों तक ओपी के विचारों की गहराई पहुँचाई। आशा भोंसले के साथ ओपी ने लगभग सत्तर फि़ल्मों में काम किया। सिने जगत् के लोगों ने आशा भोंसले को उनकी ही खोज बताया। ऐसा लगता था कि नैय्यर साहब आशा जी के लिए विशेष धुन बनाते हों, जिन्हें आशा बिना किसी मेहनत के गा लेती। वे ज़्यादातर पंजाबी धुन के साथ मस्ती भरे गाने बनाते थे। लेकिन मुकेश के द्वारा गाया हुआ बहुत गंभीर गाना 'चल अकेला, चल अकेला, चल अकेलाÓ ओ. पी नैय्यर की चहुँमुखी प्रतिभा को दर्शाता है।
- रायपुर । छतीसगढ़ में विशेष पिछड़ी जनजातियाँ दूरस्थ वनांचलों में रहती है। इन जनजातियों के लोग वनोपज इकट्ठा कर, खेती किसानी कर अपना जीवनयापन करती है।राज्य के ही आदिवासी अंचल सरगुज़ा और बस्तर संभाग में सरकारी नौकरियों में तीसरे वर्ग के पदों पर भर्ती में स्थानीय जनजातीय युवाओं को नियुक्त करने का नियम था। परंतु कोरबा ज़िले के जनजातीय बाहुल्य और विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरबा, बिरहोर का निवास स्थल होने के बाद भी यह नियम कोरबा ज़िले में लागू नहीं था।इस नियम के लागू नहीं होने से यहाँ के जनजातीय युवाओं को शिक्षित और योग्य होने के बाद भी सरकारी नौकरियों में आने का मौक़ा नहीं मिल पा रहा था।राज्य में श्री भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री का पद सम्भालते ही इस विसंगति को दूर कर स्थानीय युवाओं को सरकारी नौकरियों में भर्ती का रास्ता साफ़ कर दिया। मुख्यमंत्री ने ज़िला स्तर पर तृतीय श्रेणी के पदों पर भर्ती के लिए स्थानीय जनजातीय युवाओं को लेने के नियम को कोरबा ज़िले में लागू किया।इसका फ़ायदा लेकर अब तक क़रीब 29 पहाड़ी कोरबा और बिरहोर विशेष पिछड़ी जनजाति के युवक-युवतियों को सरकारी नौकरी मिल गई है।पाँचवी और आठवीं कक्षा पास यह युवा आदिवासी विकास विभाग और स्कूल शिक्षा विभाग में भृत्य के पदों पर काम कर रहे है।
- - डॉ. दानेश्वरी संभाकर, सहायक संचालकरायपुर । छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं। इसे दान लेने-देने पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं। युवा डंडा नृत्य करते हैं।छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते चार वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें छेरछेरा (मां शाकंभरी जयंती) तिहार भी शामिल है। जिन अन्य लोक पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं वे हैं हरेली, तीजा, मां कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी दिवस और छठ। अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है। इन पर्वों के दौरान महत्वपूर्ण शासकीय आयोजन होते है तथा महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती है। छेरछेरा पुन्नी के दिन स्वयं मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल भी परम्परा का निर्वाह करते हुए छेरछेरा मांगते हैं।छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परम्परा का पोषक रहा है। कृषि यहाँ का जीवनाधार है और धान मुख्य फसल। किसान धान की बोनी से लेकर कटाई और मिंजाई के बाद कोठी में रखते तक दान परम्परा का निर्वाह करता है। छेर छेरा के दिन शाकंभरी देवी की जयंती मनाई जाती है। ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में सर्वत्र घोर अकाल पड़ने के कारण हाकाकार मच गया। लोग भूख और प्यास से अकाल मौत के मुँह में समाने लगे। काले बादल भी निष्ठुर हो गए। नभ मंडल में छाते जरूर पर बरसते नहीं। तब दुखीजनों की पूजा-प्रार्थना से प्रसन्न होकर अन्न, फूल-फल व औषधि की देवी शाकम्भरी प्रकट हुई और अकाल को सुकाल में बदल दिया। सर्वत्र खुशी का माहौल निर्मित हो गया। छेरछेरा पुन्नी के दिन इन्हीं शाकंभरी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इसी दिन नट का रूप धारण कर पार्वती (अन्नपूर्णा) से अन्नदान प्राप्त किया था। छेरछेरा पर्व इतिहास की ओर भी इंगित करता है।छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे।छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है। इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है। सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में लोग उत्साह से मनाते हैं।
- कोई नारी डायन/टोनही नहींडायन या टोनही की धारणा हमारे देश में प्रमुख अंधविश्वासों में से एक है जिसमें किसी महिला को डायन (टोनही) घोषित कर दिया जाता है तथा उस पर जादू-टोना कर बीमारी फैलाने, गाँव में विपत्तियाँ लाने का आरोप लगाकर उसे लांछित किया जाता है। डायन (टोनही) के रूप में आरोपित इन महिलाओं को न केवल सार्वजनिक रूप से बेइज्जत किया जाता है, बल्कि उन्हें शारीरिक प्रताडऩा दी जाती है तथा समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में शारीरिक प्रताडऩा इतनी अधिक होती है कि वे महिनों शारीरिक जख्मों का दर्द लिये कराहती रहती है तथा गाँव में उन्हें उपचार मिलना भी संभव नहीं होता। सार्वजनिक रूप से बेइज्जती व अपमान के जख्म तो आजीवन दुख देते हैं। इन स्थानों पर प्रभावशाली समूह का दबाव इतना अधिक रहता है कि प्रताडऩा की घटनाओं की जानकारी गाँव के बाहर नहीं जा पाती तथा प्रताडि़त महिला व उसका परिवार नारकीय जीवन जीता रहता है, ऐसे मामलों में कई बार महिलाएँ आत्महत्या तक कर लेती है।डायन (टोनही) के संदेह में प्रताडऩा के मामले में गाँवों के जनप्रतिनिधि व शासकीय कर्मचारी भी सामने आने का साहस नहीं कर पाते, ऐसे अधिकांश मामलों में जो जानकारी ही गाँवों से बाहर नहीं आ पाती, जिससे कथित बैगाओं का राज कायम हो जाता है। जो गाँव में सभी विपदाओं का कारण जादू-टोना व डायन (टोनही) बताकर, टोनही पकड़वाने, चिन्हित करने, गाँव बाँधने के नाम पर न केवल मनमानी राशि वसूलते हैं बल्कि किसी भी गरीब बेकसूर महिला को डायन (टोनही) घोषित कर हमेशा अभिशप्त जीवन जीने व प्रताडऩा सहने के लिये छोड़ देते हैं, इन बैगाओं द्वारा महिला को डायन (टोनही) न होने का प्रमाण देने के लिये ऐसी परीक्षाएँ ली जाती है जो किसी भी महिलाओं के लिये संभव नहीं है। ऐसे मामलों में खुद को निर्दोष साबित करना बहुत मुश्किल हो जाता है वह भी जब पूरा गाँव ही अंधविश्वास के कारण विरोध में खड़ा हो, जबकि वास्तविकता यह है कि डायन (टोनही) के रूप में घोषित की जाने वाली महिला में इतनी ताकत नहीं होती है कि आत्मरक्षा ही कर सके, दूसरों के नुकसान करना तो संभव ही नहीं है।हम पिछले 27 वर्षों से समाज में फैले अंधविश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों के निर्मूलन के लिए अभियान चला रहे हैं जिसका एक प्रमुख हिस्सा डायन (टोनही) की धारणा का निर्मूलन भी है, इसलिये व्याख्यान, चमत्कारिक घटनाओं की वैज्ञानिक धारणा, विभिन्न ग्रामों में दौरा कर समझाना, अंधविश्वास का पर्याय बनने वाले मामलों की जाँच व सत्य की जानकारी, गोष्ठियाँ, बैठकें की जाती है। वहीं सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के भी अनेक मामले लगातार सामने आते रहते हैं,जिससे हजारों परिवार परेशान है उन्हें समाज में वापस लौटाने के लिए भी निरंतर प्रयास किया जाता है.हमें कई बार विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न स्थानों के बुद्धिजीवी साथियों, छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, समाज-सुधार के संबंध में विचार पढऩे को मिलते हैं, मेरा यह मानना है कि अंधविश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों का समूल निर्मूलन किसी एक व्यक्ति, एक संगठन या प्रशासन के लिये संभव नहीं है। अलग-अलग स्थानों पर निवास व कार्य कर रहे सभी व्यक्ति यदि इस कार्य के लिये अपना थोड़ा समय व बहुमूल्य विचार हमें प्रदान करें, व सहयोग से कार्य करें तो ऐसा कोई भी कारण नहीं है कि इन कुरीतियों व अंधविश्वासों का निर्मूलन न किया जा सके, नये वर्ष में सर्व सहयोग से यह काम बेहतर ढंग से किया जा सकता है। इच्छुक स्वयंसेवी व्यक्ति व उत्साही कार्यकर्ता मुझसे इस पते पर सम्पर्क कर सकते हैं।डॉ. दिनेश मिश्रवरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञअध्यक्षअंधश्रद्धा निर्मूलन समिति
मोबाईल नं. 98274-00859 -
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
सुहानी रात ढल चुकी, न जाने तुम कब आओगे, यह गाना मोहम्मद रफी साहब ने गाया है और आज उनकी जयंती के मौके पर इसी गाने और इस फिल्म तथा इसके कलाकारों की चर्चा हम यहां कर रहे हंै।
फिल्म थी दुलारी और इसका निर्माण 1949 में हुआ था। फि़ल्म के मुख्य कलाकार थे सुरेश, मधुबाला और गीता बाली। फि़ल्म का निर्देशन अब्दुल रशीद कारदार साहब ने किया था। 1949 का साल गीतकार शक़ील बदायूनी और संगीतकार नौशाद के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आया। 1949 में महबूब ख़ान की फि़ल्म अंदाज़ , ताजमहल पिक्चर्स की फि़ल्म चांदनी रात , तथा ए. आर. कारदार साहब की दो फि़ल्में दिल्लगी और दुलारी प्रदर्शित हुई थीं और ये सभी फि़ल्मों का गीत संगीत बेहद लोकप्रिय सिद्ध हुआ था। फिल्म दुलारी 1 जनवरी 1949 को प्रदर्शित हुई थी। पूरी फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट है।
आज जब दुलारी के इस गाने की चर्चा हो रही है, तो हम बता दें कि इसी फिल्म में लता मंगेशकर और रफ़ी साहब ने अपना पहला डुएट गीत गाया था और यह गीत था-मिल मिल के गाएंगे दो दिल यहां, एक तेरा एक मेरा । फिल्म में दोनों का गाया एक और युगल गीत था -रात रंगीली मस्त नज़ारे, गीत सुनाए चांद सितारे । लता और रफी की यह जोड़ी काफी पसंद की गई और उसके बाद तो उन्होंने ऐसे- ऐसे यादगार गाने दिए हैं कि यदि उनका जिक्र करते जाएं तो न जाने कितने ही दिन गुजर जाएंगे, लेकिन बातें खत्म नहीं होंगी।
फिल्म में मोहम्मद रफ़ी की एकल आवाज़ में नौशाद साहब ने सुहानी रात ढल चुकी गीत.. -राग पहाड़ी पर बनाया । इसी फि़ल्म का गीत तोड़ दिया दिल मेरा.. भी इसी राग पर आधारित है। राग पहाड़ी नौशाद साहब का काफी लोकप्रिय शास्त्रीय राग रहा है और उन्होंने इस पर आधारित कई गाने तैयार किए हैं। इसमें से जो गाने रफी साहब की आवाज में हैं, वे हैं-
1.. आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले (फिल्म-राम और श्याम)
2. दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढ़ूंढ रहा है (सन ऑफ़ इंडिया)
3. दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात (कोहिनूर)
4. कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर)
5. ओ दूर के मुसाफिऱ हम को भी साथ ले ले (उडऩ खटोला)
फिल्म दुलारी में कुल 12 गाने थे। 14 रील की इस फिल्म में ये गाने कहानी की तरह ही चलते हैं । नायिका मधुबाला के लिए लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी। वहीं गीता बाली के लिए शमशाद बेगम ने दो गाने गाए थे। जिसमें से शमशाद बेगम का गाया एक गाना - न बोल पी पी मोरे अंगना , पक्षी जा रे जा...काफी लोकप्रिय हुआ था। नायक सुरेश के लिए रफी साहब ने आवाज दी थी। इसमें से 9 गाने लता मंगेशकर ने गाए जिसमें रफी साहब के साथ उनका दो डुएट भी शामिल है। रफी साहब ने केवल एक गाना एकल गाया और वह है -सुहानी रात ढल चुकी जिसे आज भी रफी साहब के सबसे हिट गानों में शामिल किया जाता है।पूरा गाना इस प्रकार है-
सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
जहां की रुत बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
अंतरा-1. नज़ारे अपनी मस्तियां, दिखा-दिखा के सो गये
सितारे अपनी रोशनी, लुटा-लुटा के सो गये
हर एक शम्मा जल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
सुहानी रात ढल...
अंतरा- 2- तड़प रहे हैं हम यहां, तुम्हारे इंतज़ार में
खिजां का रंग, आ-चला है, मौसम-ए-बहार में
हवा भी रुख बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
सुहानी रात ढल......
गाने में नायक की नायिका से मिलने की बैचेनी और इंतजार का दर्द शकील साहब ने अपनी कलम से बखूबी उतारा है, तो रफी साहब ने अपनी आवाज से इस गाने को जीवंत बना दिया है। गाने में शब्दों का भारी भरकम जाल नहीं है बल्कि बोल काफी सिंपल हैं, जो बड़ी सहजता से लोगों की जुबां पर चढ़ जाते हैं। गाने की यही खासियत इसे आज तक जिंदा रखे हुए है। गाने के शौकीन आज भी किसी कार्यक्रम में इसे गाना नहीं भूलते हैं। राग पहाड़ी के अनुरूप इसका फिल्मांकन भी हुआ है और दृश्य में नायक चांदनी रात में सुनसान जंगल में नायिका का इंतजार करते हुए यह गाना गाता है। दृश्य में एक टूटा फूटा खंडहर भी नजर आता है, तो नायक की विरान जिंदगी को दर्शाता है, जिसे बहार आने का इंतजार है।
दुलारी फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी-प्रेम शंकर एक धनी व्यावसायिक का बेटा होता है जिसकी शादी उसके माता-पिता रईस खानदान में करना चाहते हंै। प्रेम शंकर को एक बंजारन लड़की दुलारी से प्यार हो जाता है। यह लड़की बंजारन नहीं बल्कि एक रईस खानदान की बेटी शोभा रहती है, जिसे बंजारे लुटेरे बचपन में उठा लाए थे। यह रोल मधुबाला ने निभाया है। प्रेमशंकर इस लड़की को इस नरक से निकालने के लिए उससे शादी करने का फैसला लेता है। बंजारन की टोली में एक और लड़की रहती है कस्तूरी जिसका रोल गीता बाली ने निभाया है। वह इसी टोली के एक बंजारे लड़के से प्यार करती है, लेकिन उसकी नजर दुलारी पर होती है। प्रेमशंकर के पिता इस शादी के खिलाफ हैं। काफी जद्दोजहद के बाद प्रेमशंकर , दुलारी को इस नरक से निकालने में कामयाब हो जाता है और उनके पिता को भी इस बात का पता चल जाता है कि दुलारी और कोई नहीं उनके ही मित्र की खोई हुई बेटी है जिसे वे बचपन से ही अपनी बहू बनाने का फैसला कर चुके थे। फिल्म के अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है और नायक को अपना सच्चा प्यार मिल जाता है। फिल्म में मधुबाला से ज्यादा खूबसूरत गीता बाली नजर आई हैं, लेकिन उनके हिस्से में सह नायिका की भूमिका ही थी। लेकिन फिल्म के प्रदर्शन के एक साल बाद ही उन्हें फिल्म बावरे नैन में राजकपूर की नायिका बनने का मौका मिला और इसके कुछ 5 साल बाद उन्होंने शम्मी कपूर के साथ शादी कर ली। दुलारी फिल्म मधुबाला की प्रारंभिक फिल्मों में से है। मधुबाला ने जब यह फिल्म की उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 साल की थी।
फिल्म की पूरी कहानी चंद पात्रों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। सुरेश के पिता के रोल में अभिनेता जयंत थे जिनका असली नाम जकारिया खान था, लेकिन उन्हें जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक विजय भट्ट ने जयंत नाम दिया था। विजय भट्ट आज की फिल्मों के निर्माता-निर्देशक विक्रम भट्ट के दादा थे। जयंत के बेटे अमजद खान हैं जिन्हें आज भी गब्बर सिंह के रूप में पहचाना जाता है। फिल्म दुलारी में नायक सुरेश की मां का रोल प्रतिमा देवी ने निभाया था, जो ज्यादातर फिल्मों में मां का रोल में ही नजर आईं। उनकी फिल्मों में अमर अकबर एंथोनी, पुकार प्रमुख हैं। आखिरी बार वे वर्ष 2000 में बनी फिल्म पलकों की छांव में दिखाई दी थीं। मधुबाला के पिता के रोल में अभिनेता अमर थे। अभिनेता श्याम कुमार ने खलनायक का रोल निभाया था, जो बाद में रोटी, जख्मी जैसी कई फिल्मों में खलनायक के रूप में नजर आए।
कभी फुरसत मिले तो इस फिल्म को जरूर देखिएगा, अपने दिलकश गानों की वजह से यह फिल्म दिल तो सुकून देती है। हालांकि अब इसके प्रिंट काफी धुंधले पड़ गए हैं। फिल्म की तकनीक और कहानी आज की पीढ़ी को भले ही पुरानी लगे, लेकिन अपने दौर की यह हिट और क्लासी फिल्म है। -
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
महान गायक मोहम्मद रफी साहब की पुण्यतिथि के मौके पर हम आज उनके गाए एक गाने की चर्चा कर रहे हैं। गाने का मुखड़ा है- ओ दूर के मुसाफिर, हम को भी साथ ले ले रे, हम को भी साथ ले ले, हम रह गए अकेले। यह गाना फिल्म उडऩ खटोला में शामिल किया गया था। इसे सुरों से संवारा था नौशाद साहब ने और लिखा शकील बदायूनीं साहब ने ।
मोहम्मद रफी शुरुआत से ही नौशाद साहब के फेवरेट गायक थे। एक प्रकार से मोहम्मद रफी का फिल्मी दुनिया में प्रवेश नौशाद साहब की सिफारिशी चिट्ठी के बदौलत ही हुआ था। 1955 में जब फिल्म उडऩ खटोला के संगीत संयोजन की जिम्मेदारी नौशाद साहब को सौंपी गई, तो उन्होंने रफी और लता मंगेशकर की जोड़ी को लिया। फिल्म में उन्होंने शास्त्रीय रागों पर आधारित कई गाने तैयार किए जिसमें से एक गीत ओ दूर के मुसाफिर भी था, जो राग पहाड़ी पर आधारित है। इस फिल्म का निर्माण सनी आर्ट प्रोडक्शन ने किया था। शास्त्रीय संगीत के सरस रुपांतरण में बढ़ते रिद्म का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से नौशाद की इस फिल्म में नजर आता है। इस फिल्म में लता के गाए गीत मोरे सैंया जी उतरेंगे पार हो ,.. में राग पीलू के साथ लोकरंग की ताल सुनने को मिलती है। उडऩ खटोले वाले राही (लता और साथी) , हमारे दिल से न जाना धोखा न खाना ...गीतों में लता की मीठी लोच भरी आवाज सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है। दर्द के लिए भैरव राग के सुर लेकर नौशाद साहब ने इस फिल्म में -सितारों की महफिल सजी..., गीत तैयार किया और उदासी की गहराई लेकर -न रो ए दिल, राग भैरवी के साथ -न तूफां से खेलो , न साहिल से खेलो जैसे सहाबहार गीत पेश किए। नौशाद जी अपनी कम्पोजिशन हमेशा फिल्म की कहानी और सिचुएशन को ध्यान में रखकर बनाते थे। उडऩ खटोला फिल्म के साथ भी उन्होंने ऐसा ही किया।
पूरे गाने के बोल इस प्रकार हैं....
चले आज तुम जहां से, हुई जिंदगी परायी
तुम्हें मिल गया ठिकाना, हमें मौत भी ना आई।
ओ दूर के मुसाफिर, हम को भी साथ ले ले रे
हम को भी साथ ले ले, हम रह गये अकेले।
तू ने वो दे दिया गम, बेमौत मर गये हम
दिल उठ गया जहां से, ले चल हमें यहां से
किस काम की ये दुनियां, जो जिंदगी से खेले।
सूनी हैं दिल की राहें, खामोश हैं निगाहें
नाकाम हसरतों का, उठने को हैं जनाज़ा
चारों तरफ लगे हैं, बरबादियों के मेले रे..
हम रह गए अकेले.....।
इस गाने के अंत में रफी साहब के स्वर काफी ऊंचे हो जाते हैं। गाने में साजों का शोर नहीं है बल्कि कोरस की आवाज ही काफी अच्छी लगती है। गाने में दिखाया गया है कि प्रेमी अपनी प्रेमिका को मौत के मुंह में जाता देखकर दुखी है और अपने अकेले होने के अहसास को वह शब्दों में बयां कर रहा है साथ ही उसकी दुनिया से शिकायत भी है कि- किस काम की ये दुनियां, जो जिंदगी से खेले। इस गाने में दिलीप कुमार और निम्मी दोनों नजर आते हैं। गाने के अंत में निम्मी को पहाड़ी नदी में कूदते दिखाया गया है।
इस फिल्म के पूरे गाने शकील साहब ने ही लिखे थे। उस जमाने में ज्यादातर पूरी फिल्म के गाने लिखने का जिम्मा किसी एक गीतकार को ही दिया जाता था। उसे फिल्म की कहानी बता दी जाती थी और कई बार तो शूटिंग के दौरान सेट पर ही गीतकार को बुलाकर गाने तैयार करवा लिए जाते थे। स्टुडियो में एक तरफ गीतकार गाने लिखते थे और वहीं पर संगीतकार उनकी धुन तैयार कर गायकों से गाने भी गवा लिया करते थे। एक गाने के लिए गायक कलाकार कई बार पूरे दिन स्टुडियो पर रियाज कर किया करते थे। आज के जैसे नहीं कि एक गायक आया और अपना वर्जन गा कर चला गया। बाद में दूसरा आया और अपने हिस्से के बोल गाकर चला गया। बाकी काम कम्प्यूटर पर हो रहा है। उडऩ खटोला फिल्म में 9 गाने थे और सभी एक से बढ़कर एक। इस फिल्म के गानों में नौशाद ने राग जयजयवंती, पहाड़ी, भैरवी, राग पीलू जैसे शास्त्रीय रागों का बखूबी इस्तेमाल किया।
नौशाद साहब को राग पहाड़ी काफी पसंद था। उन्होंने मोहम्मद रफ़ी से इस राग पर आधारित कई गीत गवाए। रफी की एकल आवाज़ में गाया फिल्म दुलारी का गीत - सुहानी रात ढल चुकी न जाने तुम कब आओगे ......इसी राग पर आधारित है। इसी फि़ल्म के एक और गीत -तोड़ दिया दिल मेरा.. के लिए भी नौशाद साहब ने इसी राग पर आधारित बंदिशें तैयार कीं। यह राग जितना शास्त्रीय है, उससे भी ज़्यादा यह जुड़ा हुआ है पहाड़ों के लोक संगीत से। इसलिए इसमें लोक संगीत की झलक मिलती है। यह पहाड़ों का संगीत है, जिसमें प्रेम, शांति और वेदना के सुर सुनाई देते हैं। राग पहाड़ी पर असंख्य फि़ल्मी गानें बने हैं। जिनमें से नौशाद के स्वरबद्ध किए कुछ गीत हैं-
1. आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले (राम और श्याम)
2. दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढ़ूंढ रहा है (सन ऑफ़ इंडिया)
3. दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात (कोहिनूर)
4. जवां है मोहब्बत हसीं है ज़माना (अनमोल घड़ी)
5. कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर)
6. तोरा मन बड़ा पापी सांवरिया रे (गंगा जमुना)
अब फिल्म उडऩखटोला की कहानी के बारे में । इस फिल्म में दिलीप कुमार के अपोजिट निम्मी थीं। फिल्म को निर्देशित किया था एस. यू. सनी ने । फिल्म में जीवन और टुनटुन भी प्रमुख भूमिकाओं में थे। फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी- फिल्म का हीरो काशी यानी दिलीप कुमार एक अभिशप्त विमान से यात्रा कर रहा होता कि वह विमान क्रेश हो जाता है और एक नगर के बाहर जा गिरता है । इस नगर में एक रानी का शासन है। जिसकी देवी का नाम संगा है। काशी को सोनी नाम की एक लड़की बचाती है और उसे अपने घर ले आती है। जहां वह अपने पिता और भाई हीरा के साथ रहती है। सड़कें ब्लॉक होने की वजह से काशी अपने घर वापस लौटने में असमर्थ है। वहां पर रहने के लिए उसे रानी की अनुमति लेना अनिवार्य है। ऐसे में वह राजरानी से मिलता है, तो देखता है कि वह काफी खूबसूरत है। रानी भी काशी से प्रभावित होती है और उसे अपने महल में रहने और उसके लिए गाने के लिए कहती है। इस बीच काशी और सोनी एक दूसरे को अपना दिल दे बैठते हैं और वे छिपकर एक दूसरे से मिलते हैं। सोनी एक लड़के शिबु का भेष धरकर काशी से मिलती है। इधर राजरानी के प्यार को काशी ठुकरा देता है। फिल्म में राजरानी का रोल अभिनेत्री सूर्या कुमारी ने निभाया था। इस फिल्म का तमिल वर्जन भी बना जिसका नाम था वानारथम।
यह फिल्म चली तो एक प्रकार से नौशाद के गानों की वजह से । उस समय दिलीप कुमार और निम्मी की जोड़ी भी हिट हुई थी। इस जोड़ी ने आन (1952), दीदार, दाग और अमर (1954) फिल्म में भी काम किया। इनमें से उडऩखटोला इस जोड़ी की आखिरी फिल्म थी। -
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
मोहम्मद रफी, संगीत की दुनिया का वो नाम है, जिनके गाए गाने आज भी हर पीढ़ी की पसंद बने हुए हैं। वे न केवल एक अच्छे गायक बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। दरअसल वे महज़ एक आवाज़ नहीं; गायकी की पूरी रिवायत थे। पिछले करीब साठ दशक से लोग उनकी आवाज सुन रहे हैं।
पंजाब के एक छोटे से क़स्बे से निकल कर मोहम्मद रफ़ी नाम का एक किशोर बरसो पहले मुंबई आता है। साथ में न कोई जमींदारी जैसी रईसी या पैसों की बरसात, न कोई गॉड फ़ादर सिर्फ एक प्यारी सी आवाज, जो हर तरह के गीत गाने की हिम्मत रखता था। फिर वह चाहे किसी भी स्केल का हो। सा से लेकर सा तक यानी सात स्वरों के हर स्वर में । कोई ख़ास पहचान नहीं ,सिफऱ् संगीतकार नौशाद साहब के नाम का एक सिफ़ारिशी पत्र। किस्मत ने पलटा खाया और अपनी आवाज, इंसानी संजीदगी के बूते पर यह सीधा सादा युवक मोहम्मद रफ़ी पूरी दुनिया में छा गया। संघर्ष का दौर काफी लंबा था और मुफलिसी भी साथ चल रही थी। संगीत का यह साधक किसी भी परिस्थिति में रुकना नहीं चाहता था। उस दौर का एक वाकया सुनने में आया जिसका जिक्र आज यहां कर रहे हैं।
मोहम्मद रफी साहब संघर्ष के दिनो में मायूस भी हो गए थे, लेकिन दिल में कुछ कर दिखाने का जज्बा उन्हें पंजाब लौटने नहीं दे रहा था। नौशाद साहब ने उन्हें गाने का मौका दिया। मुंबई में रिकॉर्डिंग हुई और रफी साहब ने सबको प्रभावित किया। काम खत्म हो चुका था, तो सभी लोग स्टुडियो से बाहर निकल गए। लेकिन रफ़ी साहब स्टुडियो के बाहर देर तक खड़े रहे। तकऱीबन दो घंटे बाद तमाम साजि़ंदों का हिसाब-किताब करने के बाद नौशाद साहब स्टुडियो के बाहर आकर रफ़ी साहब को देख कर चौंक गए । पूछा तो बताते हैं कि घर जाने के लिये लोकल ट्रेन के किराये के पैसे नहीं है। नौशाद साहब अवाक रह गए और बोले- अरे भाई भीतर आकर मांग लेते ...रफ़ी साहब का जवाब -अभी काम पूरा हुआ नहीं और अंदर आकर पैसे मांगूं ? हिम्मत नहीं हुई नौशाद साहब। सीधा- सरल जवाब सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला आईं हैं। न कोई छलावा न कोई दिखाया और न ही ज्यादा पाने की चाहत। बस जो मिल गया उसे को मुकद्दर समझ लिया।
सही मायने में सहगल साहब के बाद मोहम्मद रफ़ी एकमात्र नैसर्गिक गायक थे। उन्होंने अच्छे ख़ासे रियाज़ के बाद अपनी आवाज़ को मांजा था। उन्हें देखकर लोग सहसा विश्वास ही नहीं कर पाते थे कि शम्मी कुमार साहब के लिए याहू ,.... जैसे हुडदंगी गाने वे ही गाया करते हैं।
उनके बारे में संगीतकार वसंत देसाई कहते थे -रफ़ी साहब कोई सामान्य इंसान नहीं थे...वह तो एक शापित गंधर्व थे जो किसी मामूली सी ग़लती का पश्चाताप करने इस मृत्युलोक में आ गया। एक तरफ किशोर कुमार अपने पारिश्रमिक को लेकर एकदम परफेक्ट थे। दूसरी तरफ रफी साहब संकोची इंसान। कई बार उनके पैसे इसी वजह से डूब गए, क्योंकि उन्होंने संकोच की वजह से पैसे मांगे नहीं। रफी साहब कभी काम मांगने भी नहीं गए। जो मिल गया, गा लिया।
अपने कॅरिअर में रफ़ी साहब को श्यामसुंदर, नौशाद, ग़ुलाम मोहम्मद, मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम जैसे गुणी मौसीकारों का सान्निध्य मिला जो उनके लिए फायदेमंद भी रहा। रफ़ी साहब ने क्लासिकल म्युजि़क का दामन कभी न छोड़ा। बैजूबावरा में उन्होंने राग मालकौंस (मन तरपत)और दरबारी (ओ दुनिया के रखवाले) को जिस अधिकार और ताक़त के साथ गाया , उसे गाने की हिम्मत आज भी बहुत कम लोग कर पाते हैं। उस दौर की फिल्मों में जब भी क्लासिकल म्यूजिक की बात चलती थी, तो संगीतकार रफी साहब और मन्ना डे के पास ही जाते थे। रफी साहब की आवाज नायकों के लिए ज्यादा सूट करती थी, इसीलिए उन्हें मन्ना दा की तुलना में लीड गाने ज्यादा मिले। -
और मो. रफी की बात सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला उठीं
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
मोहम्मद रफी, संगीत की दुनिया का वो नाम है, जिनके गाए गाने आज भी हर पीढ़ी की पसंद बने हुए हैं। वे न केवल एक अच्छे गायक बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। दरअसल वे महज़ एक आवाज़ नहीं;गायकी की पूरी रिवायत थे। पिछले करीब कई दशक से लोग उनकी आवाज सुन रहे हैं। आज उनकी जयंती पर कुछ उनकी बातें.....
पंजाब के एक छोटे से क़स्बे से निकल कर मोहम्मद रफ़ी नाम का एक किशोर बरसो पहले मुंबई आता है। साथ में न कोई जमींदारी जैसी रईसी या पैसों की बरसात, न कोई गॉड फ़ादर सिर्फ एक प्यारी सी आवाज, जो हर तरह के गीत गाने की हिम्मत रखता था। फिर वह चाहे किसी भी स्केल का हो। सा से लेकर सा तक यानी सात स्वरों के हर स्वर में । कोई ख़ास पहचान नहीं ,सिफऱ् संगीतकार नौशाद साहब के नाम का एक सिफ़ारिशी पत्र और । किस्मत ने पलटा खाया और अपनी आवाज, इंसानी संजीदगी के बूते पर यह सीधा सादा युवक मोहम्मद रफ़ी पूरी दुनिया में छा गया। संघर्ष का दौर काफी लंबा था और मुफलिसी भी साथ चल रही थी। संगीत का यह साधक किसी भी परिस्थिति में रुकना नहीं चाहता था। उस दौर का एक वाकया सुनने में आया जिसका जिक्र आज यहां कर रहे हैं।
मोहम्मद रफी साहब मुंबई में संघर्ष के दिनों में मायूस भी हो गए थे, लेकिन दिल में कुछ कर दिखाने का जज्बा उन्हें पंजाब लौटने नहीं दे रहा था। संगीतकार नौशाद साहब ने उन्हें कोरस में गाने का मौका दिया। मुंबई में रिकॉर्डिंग हुई और रफी साहब ने सबको प्रभावित किया। काम खत्म हो चुका था, तो सभी लोग स्टुडियो से बाहर निकल गए। लेकिन रफ़ी साहब स्टुडियो के बाहर देर तक खड़े रहे। तकऱीबन दो घंटे बाद तमाम साजि़ंदों का हिसाब-किताब करने के बाद नौशाद साहब स्टुडियो के बाहर आकर रफ़ी साहब को देख कर चौंक गए । पूछा तो बताते हैं कि घर जाने के लिये लोकल ट्रेन के किराये के पैसे नहीं है। नौशाद साहब अवाक रह गए और बोले- अरे भाई भीतर आकर मांग लेते ...रफ़ी साहब का जवाब -अभी काम पूरा हुआ नहीं और अंदर आकर पैसे मांगूं ? हिम्मत नहीं हुई नौशाद साहब। सीधा- सरल जवाब सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला उठीं। रफी साहब ने कहा- उन्हें लगा था रिकॉर्डिंग हो जाएगी तो उसके मेहताने से वो घर पहुंच जाएंगे। नौशाद ने तब रफी को 1 रुपये का सिक्का दिया था ताकि वो घर पहुंच जाएं। रफी ने नौशाद से वो सिक्का लिया और पैदल ही चल पड़े। इसके कई सालों बाद रफी शहंशाह-ए-तरन्नुम बन गए। उनके पास खूब दौलत और शोहरत हो गई। तब एक दिन नौशाद साहब मोहम्मद रफी के घर आए। उन्होंने देखा कि मोहम्मद रफी ने 1 रुपये का सिक्का फ्रेम कराकर दीवार पर टांग रखा है। नौशाद ने इसका कारण जानना चाहा। तब रफी साहब ने बताया कि सालों पहले नौशाद ने जिस लड़के को घर जाने के लिए 1 रुपये का सिक्का दिया था वो और कोई नहीं, बल्कि खुद रफी ही थे। रफी ने कहा, 'मैं उस दिन पैदल ही गया था। ये सिक्का मुझे मेरी सच्चाई याद दिलाता है और ये कि उन दिनों किस नेक इंसान ने मेरी मदद की थी।' मो. रफी साहब की बातें सुनकर एक बार फिर नौशाद की आंखें नम हो गई थीं।
न कोई छलावा न कोई दिखाया और न ही ज्यादा पाने की चाहत। बस जो मिल गया उसे को मुकद्दर समझ लिया, ऐसे थे रफी साहब।
सही मायने में सहगल साहब के बाद मोहम्मद रफ़ी एकमात्र नैसर्गिक गायक थे। उन्होंने अच्छे ख़ासे रियाज़ के बाद अपनी आवाज़ को मांजा था। उन्हें देखकर लोग सहसा विश्वास ही नहीं कर पाते थे कि शम्मी कुमार साहब के लिए याहू ,.... जैसे हुडदंगी गाने वे ही गाया करते हैं।
उनके बारे में संगीतकार वसंत देसाई कहते थे -रफ़ी साहब कोई सामान्य इंसान नहीं थे...वह तो एक शापित गंधर्व थे जो किसी मामूली सी ग़लती का पश्चाताप करने इस मृत्युलोक में आ गया। कई बार उनके पैसे इसी वजह से डूब गए, क्योंकि उन्होंने संकोच की वजह से पैसे मांगे नहीं। रफी साहब कभी काम मांगने भी नहीं गए। जो मिल गया, गा लिया। मोहम्मद रफी फिल्म इंडस्ट्री में मृदु स्वभाव के कारण जाने जाते थे। मोहम्मद रफी ने लता मंगेशकर के साथ सैकड़ों गीत गाये थे, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब रफी ने लता से बातचीत तक करनी बंद कर दी थी। लता मंगेशकर गानों पर रायल्टी की पक्षधर थीं जबकि रफी ने कभी भी रॉयल्टी की मांग नहीं की।
रफी साहब मानते थे कि एक बार जब निर्माताओं ने गाने के पैसे दे दिए तो फिर रायल्टी किस बात की मांगी जाए। दोनों के बीच विवाद इतना बढा कि मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनों ने एक साथ गीत गाने से इंकार कर दिया हालांकि चार वर्ष के बाद अभिनेत्री नरगिस के प्रयास से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में ज्वैलथीफ का गीत...दिल पुकारे गीत गाया।
अपने कॅरिअर में रफ़ी साहब को श्यामसुंदर, नौशाद, ग़ुलाम मोहम्मद, मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम जैसे गुणी मौसीकारों का सान्निध्य मिला जो उनके लिए फायदेमंद भी रहा। रफ़ी साहब ने क्लासिकल म्युजि़क का दामन कभी न छोड़ा। बैजूबावरा में उन्होंने राग मालकौंस (मन तरपत)और दरबारी (ओ दुनिया के रखवाले) को जिस अधिकार और ताक़त के साथ गाया , उसे गाने की हिम्मत आज भी बहुत कम लोग कर पाते हैं। उस दौर की फिल्मों में जब भी क्लासिकल म्यूजिक की बात चलती थी, तो संगीतकार रफी साहब और मन्ना डे के पास ही जाते थे। रफी साहब की आवाज नायकों के लिए ज्यादा सूट करती थी, इसीलिए उन्हें मन्ना दा की तुलना में लीड गाने ज्यादा मिले।
मो. रफी साहब के गाए 10 लोकप्रिय गाने, जो आज भी पसंद किए जाते हैं....
1. तुम मुझे यूं भुला न पाओगे - फिल्म पगला कहीं का
2. मैंने पूछा चांद से - फिल्म अब्दुल्लाह
3. चौदहवीं का चांद हो.... फिल्म चौदहवीं का चांद
4. बहारों फूल बरसाओ.... फिल्म सूरज
5. बदन पे सितारे लपेटे हुए- फिल्म प्रिंस
6. गुलाबी आंखें... फिल्म द ट्रेन
7. ये चांद सा रोशन चेहरा... फिल्म कश्मीर की कली
8. सुहानी रात ढल चुकी....फिल्म - दुलारी
9. बाबुल की दुआएं लेती जा... फिल्म नीलकमल
10. आज कल तेरे मेर प्यार के चर्चे- फिल्म ब्रह्मचारी