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- छत्तीसगढ़ में महतारियों के सशक्तिकरण की कहानी-डॉ. दानेश्वरी संभाकरउप संचालक, जनसंपर्क विभागरायपुर। छत्तीसगढ़ अपने विकास-यात्रा के स्वर्णिम पड़ाव पर है। इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण आधार बनी हैं - राज्य की महिलाएँ, जिन्हें स्नेह व सम्मान से “महतारी” कहा जाता है।बीते वर्षों में छत्तीसगढ़ सरकार ने महिला सशक्तिकरण को केवल नीतिगत प्राथमिकता नहीं बनाया, बल्कि सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की धुरी के रूप में स्थापित किया है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में आज महिलाएँ योजनाओं की लाभार्थी मात्र नहीं, परिवर्तन की वाहक बनकर उभरी हैं। राज्य में महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए सरकार ने विविध योजनाएँ शुरू की हैं।सबसे उल्लेखनीय महतारी वंदन योजना है, जिसके तहत लगभग 70 लाख महिलाओं को अब तक 12,983 करोड़ रुपए की राशि वितरित की गई है। यह सहायता महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा ही नहीं, बल्कि परिवार व समाज में निर्णायक भूमिका निभाने की क्षमता भी प्रदान करती है।दीदी ई-रिक्शा योजना ने 12,000 महिलाओं को रोजगार के नए अवसर दिए। सक्षम योजना के तहत 32,000 महिलाओं को 3 प्रतिशत ब्याज पर 2 लाख रुपए तक व्यवसायिक ऋण दिया गया, जबकि महतारी शक्ति ऋण ने 50,000 महिलाओं को बिना जमानत ऋण प्रदान कर आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त किया। मुख्यमंत्री सिलाई मशीन सहायता योजना से 1.15 लाख महिलाएँ घर-परिवार के साथ उत्पादन कार्य से जुड़कर सम्मानजनक आय अर्जित कर रही हैं।कोंडागांव की रतो बाई का जीवन कभी नक्सली भय से घिरा था। प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) से उन्हें 1.20 रुपए लाख और मनरेगा से 90 दिन का रोजगार मिला। आज वे पक्के घर में सुरक्षित जीवन जीती हैं और सब्ज़ी विक्रय के माध्यम से जीवन यापन करती हैं। उज्ज्वला, नल-जल जैसी सुविधाएँ उनके जीवन में प्रकाश भर रही हैं। दंतेवाड़ा जिले की गंगादेवी SHG की महिलाएँ आज टाटा मैजिक वाहन का संचालन कर 26,000 रुपए मासिक आय अर्जित कर रही हैं। यह उदाहरण बताता है कि ग्रामीण महिलाएँ अवसर मिलने पर कैसे नए व्यवसायों का संचालन कर सकती हैं।सरगुजा की श्रीमती श्यामा सिंह ने बिहान योजना के तहत 95,000 रुपए की सहायता से 30 सेंट्रिंग प्लेट से काम शुरू किया। आज उनके पास 152 प्लेट हैं तथा वे 50,000 रुपए प्रतिमाह कमाती हैं। कोरबा की श्रीमती मंझनीन बाई को DMF फंड से स्वास्थ्य केंद्र में नियुक्त होकर उन्हें 9,000 रुपए मासिक मानदेय मिलता है। यह न सिर्फ आर्थिक स्थिरता, बल्कि सामाजिक सम्मान भी देता है।कभी नक्सली हिंसा से भयभीत बस्तर आज नए परिदृश्य के साथ उभर रहा है। यह इलाका आत्मनिर्भरता, सम्मान और अवसरों की नई पहचान बन गया है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय कहते हैं कि “बस्तर का पुनर्निर्माण केवल सड़क या पुल बनाना नहीं, यह वहाँ के हर घर में विश्वास का दीप जलाने का संकल्प है।”केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 15,000 विशेष आवास स्वीकृत किए, जिनमें से 3,000 बस्तर, सुकमा, कांकेर, बीजापुर और दंतेवाड़ा में बन रहे हैं। अब तक 12,000 से अधिक लोग सुरक्षित आवास पा चुके हैं। छत्तीसगढ़ में महिला SHG की संख्या 2,80,362 है, जिनमें से लगभग 60,000 समूह बस्तर में सक्रिय हैं। वनोपज और हस्तशिल्प आधारित उद्यमों से करोड़ों का कारोबार हो रहा है। “लखपति महिला मिशन” के अंतर्गत 2,000 महिलाएँ सालाना 1 लाख रुपए से अधिक कमाती हैं। ‘जशप्योर’ और बस्तर बेंत उत्पाद राष्ट्रीय पहचान पा चुके हैं। महिलाएँ अब रोजगार पाने तक सीमित नहीं, बल्कि रोजगार-दाता भी बन रही हैं।स्वास्थ्य और सुविधा को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार की उज्ज्वला योजना के अंतर्गत स्वीकृत 25 लाख नए LPG कनेक्शन में से 1.59 लाख कनेक्शन छत्तीसगढ़ को मिले, जिससे नियद नेल्लानार ग्रामों की महिलाएं भी लाभान्वित हो रही है। मुख्यमंत्री श्री साय कहते हैं -“स्वच्छ रसोई, स्वस्थ परिवार और सशक्त महिला - यही उज्ज्वला का सार है।छत्तीसगढ़ के 27 जिलों में सखी वन-स्टॉप सेंटर स्थापित हैं, महिला हेल्पलाइन - 181, डायल - 112, 24’7 कार्यरत हैं। नवाबिहान योजना से कानूनी व परामर्श सहायता दी जा रही है। शुचिता योजना से 3 लाख किशोरियाँ लाभान्वित हो रही हैं। 2,000 स्कूलों में नैपकिन वेंडिंग मशीन लगाई गई है। इन पहलों ने महिलाओं के मन में सुरक्षा और आत्मविश्वास की नई ऊर्जा भरी है।योजनाएँ महिलाओं को तकनीक-आधारित सशक्तिकरण की ओर ले जा रही हैं। ड्रोन दीदी योजना से महिलाओं का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जशप्योर ब्रांड से लगभग 500 महिलाएँ, 10,000 रुपए प्रति माह कमा रही हैं। नवा रायपुर के यूनिटी मॉल में SHG उत्पादों को प्राथमिकता दी जा रही है। ये नारी शक्ति को स्थानीय से राष्ट्रीय बाज़ार तक पहुँचाने का मार्ग तैयार कर रही हैं।महिला एवं बाल विकास मंत्रीश्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े कहती हैं कि “नया छत्तीसगढ़ वह होगा जहाँ भय नहीं, विश्वास होगा, जहाँ महिलाएँ आश्रित नहीं, सशक्त होंगी। ”आज छत्तीसगढ़ का हर गाँव, हर घर, हर परिवार में बदलाव की अग्नि प्रज्वलित है। जहाँ पहले भय था - वहाँ आज आत्मनिर्भरता है। जहाँ मजबूरी थी- वहाँ आज सम्मान है। छत्तीसगढ़ की महतारियाँ अब परिवर्तन की राह नहीं देख रहीं- वे स्वयं परिवर्तन की दिशा रच रही हैं।
- लेखक - श्री विजय कुमार ,सचिव (पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय)भविष्य के एक ऐसे भारत की कल्पना करें जहां मालढुलाई ट्रकों के बजाय नावों से हो, लॉजिस्टिक्स गलियारे राजमार्गों की जगह नदियों के किनारे बने हों और व्यापार बढ़ने के बाद भी कार्बन उत्सर्जन कम हो। ऐसा भविष्य कोरी कल्पना नहीं है बल्कि हमारी पहुंच के दायरे में है। देश को विकसित भारत और सही मायने में आत्मनिर्भर बनने के लिए अंतर्देशीय जल परिवहन (आईडब्ल्यूटी) को टिकाऊ लॉजिस्टिक्स क्रांति की रीढ़ बनना होगा।भारत 4,000 वर्षों से नदियों के माध्यम से व्यापार करता आ रहा है। नदियों ने लोथल को रोम से, बंगाल को बर्मा से और असम को शेष दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ा है। हालांकि समय के साथ सड़कों और रेलवे ने अपनी रफ्तार और स्टील की चमक से नदियों को पीछे धकेल दिया। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के चलते आर्थिक दबाव के इस दौर में हालात बदल रहे हैं। ऐसा नदियों के प्रति प्रेम की वजह से नहीं, बल्कि जरूरत के कारण हो रहा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंतर्देशीय जलमार्ग पर अभूतपूर्व नीतिगत ध्यान दिया जा रहा है। राष्ट्रीय जलमार्गों पर 2013-14 में कार्गो की आवाजाही 18.1 मिलियन मेट्रिक टन थी जो 2024-25 में बढ़कर 145.84 मिलियन मेट्रिक टन हो गई है। जलमार्गों से माल-ढुलाई का खर्च भी कम आता है। जलमार्ग से माल-ढुलाई का खर्च 1.20 रुपये प्रति टन-किलोमीटर है जबकि रेल से 1.40 रुपये और सड़क से 2.28 रुपये प्रति टन-किलोमीटर का खर्च आता है। जलमार्ग किफायती और ईंधन-कुशल होते हैं। जलमार्ग से परिवहन पर प्रति टन-किलोमीटर केवल 0.0048 लीटर ईंधन की खपत होती है जबकि सड़क से 0.0313 लीटर और रेल मार्ग से 0.0089 लीटर खर्च होता है। यह किसी भी सप्लाई चेन मैनेजमेंट के लिए आंखें खोलने वाली बात है।सबसे महत्वपूर्ण यह है कि नदी परिवहन से प्रति टन-किलोमीटर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन सड़क परिवहन की तुलना में महज 20 प्रतिशत होता है। गंगा या ब्रह्मपुत्र में चलने वाला हर जहाज न केवल सामान ढो रहे हैं, बल्कि भारत के कार्बन उत्सर्जन को कम करने की सजगता को भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित कर रहा है।भारत सरकार ने 2016 में राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर जलमार्ग विकास परियोजना को मंजूरी दी थी, जिससे गंगा-भागीरथी-हुगली नदी प्रणाली में कार्गो की आवाजाही बढ़ रही है। वाराणसी और साहिबगंज जैसे मल्टीमोडल लॉजिस्टिक्स हब राष्ट्रीय राजमार्ग लॉजिस्टिक्स प्रबंधन लिमिटेड (एनएचएलएमएल) के साथ साझेदारी में विकसित किए जा रहे हैं तथा इंडियन पोर्ट रेल एंड रोपवे कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईपीआरसीएल) और डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (डीएफसीसीआईएल) के जरिये रेल लिंक बनाए जा रहे हैं ताकि नदी, रेल और सड़क को सुगमता से जोड़ा जा सके। राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (ब्रह्मपुत्र नदी) पर जोगीघोपा आईडब्ल्यूटी टर्मिनल को मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स पार्क (एमएमएलपी) से जोड़ा जा रहा है, जो भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल मार्ग के जरिये कोलकाता और हल्दिया बंदरगाह को जोड़ता है।अंतर्देशीय जल परिवहन की क्षमता अब साफ़ दिखने लगी है। असम में नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड (एनआरएल) की विस्तार परियोजना का हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया था। रिफाइनरी के लिए ओवर डाइमेंशनल कार्गो (ओडीसी) और ओवर वेट कार्गो (ओडब्ल्यूसी) जैसे भारी उपकरण आईडब्ल्यूएआई की देखरेख में भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल मार्ग और ब्रह्मपुत्र नदी के जरिये ट्रांसपोर्ट किए गए थे। इसमें 24 कंसाइनमेंट शामिल थे जो एनआरएल जेट्टी तक आसानी से और सुरक्षित रूप से पहुंचाए गए। इससे भीड़भाड़ वाले राजमार्गों और बड़े कार्गो के लिए सड़क परिवहन की मुश्किलों से भी बचा गया। इस ऑपरेशन से पता चला कि नदी लॉजिस्टिक्स न केवल पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि यह भारत के सबसे मुश्किल औद्योगिक शिपमेंट को संभालने में भी पूरी तरह से सक्षम है। सही मायने में यह लागत-प्रभावी, सुरक्षा और सतत परिवहन का बेजोड़ मेल है।उद्योग के लिए यह अतीत की यादों में खोने या राष्ट्रीय गर्व की ही बात नहीं है बल्कि यह मार्जिन और मार्केट के बारे में है। जलमार्ग से सामान भेजना सस्ता, ज्यादा स्वच्छ और तेज होता जा रहा है क्योंकि मल्टीमोडल हब ऑनलाइन आ रहे हैं। आज की दुनिया में वैश्विक निवेशक सप्लाई चेन को केवल दक्षता के लिहाज से ही नहीं बल्कि उनके पर्यावरणीय प्रभाव को भी देखते हैं, ऐसे में नदी परिवहन को अपनाना रणनीतिक रूप से फायदेमंद है। कार्बन उत्सर्जन घटाने पर भी जोर है, जिससे अंतर्देशीय जलमार्ग आधुनिक लॉजिस्टिक्स के लिए बेहतर और ज्यादा टिकाऊ विकल्प बन गए हैं। जलमार्गों के जरिये माल भेजने से कम लागत, बेहतर पर्यावरण, सामाजिक और गवर्नेंस (ईएसजी) क्रेडेंशियल्स का दोहरा फायदा मिलता है।सामाजिक लाभ असली है। कम ट्रक मतलब कम दुर्घटनाएं, सड़कों के रखरखाव पर कम दबाव, स्वच्छ हवा और मजबूत ग्रामीण अर्थव्यवस्था। नदी किनारे रहने वाले कई समुदाय जो कभी फेरी ट्रांसपोर्ट या छोटे पैमाने के व्यापार पर निर्भर थे, वे अब लॉजिस्टिक्स सपोर्ट, हैंडलिंग, वेयरहाउसिंग और अंतर्देशीय पोत्तन सेवाओं में नया रोजगार पा सकते हैं। यह व्यापार और रोजगार को बढ़ाने का एक सुदृढ़ साधन है।ऐसा नहीं है कि इसमें कोई चुनौती नहीं है। मौसम का असर नेविगेशन पर पड़ता है। कुछ हिस्सों में लगातार ड्रेजिंग की दरकार होती है। मालवाहन बेड़े भी सीमित हैं। राज्यों, बंदरगाहों और मंत्रालयों के बीच संस्थागत समन्यवय भी बड़ी चुनौती है। लेकिन सरकार एंड-टू-एंड ड्रेजिंग, मल्टी-मोडल हब का विस्तार, अंतर्देशीय पोत कानून जैसी नीतियों को लागू करके इन चुनौतियों से निपट रही है। इसके साथ ही सरकार राष्ट्रीय जलमार्ग पर निजी जेट्टी बनाकार और ‘हरित नौका’ के तहत पर्यावरण मानदंडों का पालन करके इस क्षेत्र को स्वच्छ और हरित तरीकों की ओर ले जा रही है। कार-डी (कार्गो डेटा पोर्टल), जलयान और नाविक, जल-समृद्धि, पानी और नौदर्शिका (नेशनल रिवर ट्रैफिक और नेविगेशन सिस्टम) पोर्टल जैसे डिजिटल टूल परिवहन को आसान बनाते हैं और रुकावटों को कम करते हैं।पूरी दुनिया में नदी परिवहन का विस्तार हो रहा है। डेन्यूब और राइन नदियां यूरोप का माल ढोती हैं। भारत मालवहन योग्य नदियों के समृद्ध नेटवर्क के साथ मजबूत स्थिति में है। भारत ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है, ऐसे में जलमार्ग उसके लिए विकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता है। जल परिवहन दक्षता, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी सभी के लिहाज से उयुक्त है।मुंबई में चल रहे इंडिया मैरीटाइम वीक 2025 में वैश्विक और स्थानीय नीति निर्माता, लॉजिस्टिक्स की दिग्गज कंपनियों से लेकर नए लोगों तक, सरकारें, निवेशक, मैरीटाइम विशेष, पर्यावरणविद और उत्साही लोग इस दिशा में अगला कदम उठाने के लिए अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। यह आयोजन कार्गो-केंद्रित नदी परिवहन के भविष्य की झलक दिखाएगा कि कैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र और दूसरे जलमार्ग हरे-भरे और ज्यादा कुशल भारत की रीढ़ बन सकते हैं। नदियों ने हमारी सभ्यता बनाई है। अपनी समृद्ध विरासत को अपनाकर और दुनिया की श्रेष्ठ कार्यप्रणाली के साथ भारत एक नए और आधुनिक अंतर्देशीय जल परिवहन प्रणाली के जरिये टिकाऊ अर्थव्यवस्था बनाने के लिए तैयार है। नदी की धारा आखिरकार हमारे पक्ष में बह रही है, जो हरित लॉजिस्टिक्स के भविष्य को ताकत दे रही है।
- -लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)सुघरा सुघरा कतका राखे, मानुष तन बड़बोला ला ।बखत आय त्यागे ला परही, ए माटी के चोला ला।।परब तिहार बिहाव मड़ाए, ढम गँड़वा बाजा बाजे।चिकमिक नवा ओनहा पहिरे,तन गहना गुंठा साजे।अहंकार मा डोलत मनखे, बड़े काज कर डारे तैं।लालच मा होगे हस अंधा, नाता मया ल मारे तैं।कोठी भरे हवय तब्भो ले, फैलाए हस झोला ला ।।बखत आय त्यागे ला परही, ए माटी के चोला ला ।।फूल सेमरा झरथे जइसे, झरही डारा ले पाना।साँस चलत ले मजा उड़ा ले, मया प्रीत के गा गाना।सुरुज उगे ले जइसे भागे, पल्ला मारत मुँधियारी।जोत बरे ले धरम करम के, कलुष ह भागय सँगवारी।लेजे बर जमदूत आय हे, कोन छेंकही डोला ला ।।बखत आय त्यागे ला परही, ए माटी के चोला ला।।आठों पीढ़ी बर जोरत हे, धन दौलत के ढेरी ला।करत हवय निशदिन पइसा बर, कलह कपट के फेरी ला।संग जाय नइ महल अटारी, तभो बने हे ब्यापारी।दया मया कल्यान भुला के, लूट करत अत्याचारी।जान बूझ के गलती करथे, कोन सिखोवय भोला ला।।बखत आय त्यागे ला परही, ए माटी के चोला ला।।
- आलेख- माया चंद्राकर,प्रकाशन अधिकारी, (दुर्ग रीजन) छत्तीसगढ़ स्टेट डिस्ट्रीब्यूशन कंपनीदुर्ग जिला जो अविभाजित मध्यप्रदेश में सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाला जिला था, अपनी पहचान मुख्य रुप से भिलाई इस्पात संयंत्र के कारण बना चुका था। यह संयंत्र न केवल भारत के औद्योगिक मानचित्र पर एक चमकता सितारा था, बल्कि इसने दुर्ग-भिलाई के शहरी और अर्धशहरी क्षेत्रों को शुरुआती दौर में ही भरपूर बिजली और आधुनिकता दी। हालाकि इस औद्योगिक चमक के नीचे एक विरोधाभास छिपा था कि शहरों में जहॉं बिजली की बहुतायत थी, वहीं अविभाजित दुर्ग जिले जिसमें बालोद एवं बेमेतरा जिला भी शामिल था, के कई दूर-दराज गॉंव अभी भी बिजली की पहुंच से दूर थे और जिन क्षेत्रों में बिजली थी जैसे कि पाटन, बालोद, बेमेतरा, साजा एवं बेरला और आसपास के गांव भी लो-वोल्टेज, ओवरलोडिंग एवं विद्युत कटौती की अत्याधिक गंभीर समस्याओं से त्रस्त थे। इस बिजली संकट का सबसे गहरा असर कृषक वर्ग पर पड़ा। दुर्ग क्षेत्र जो कृशि प्रधान है, के किसानों को कृशि पंप चलाने में भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था।वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से 2025 तक का सफर दुर्ग रीजन (दुर्ग, बालोद, बेमेतरा जिले) के लिए बिजली के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन का काल रहा। इन 25 वर्षों में छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (CSPDCL) के तहत वितरण नेटवर्क के विस्तार, आधुनिकीकरण और उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा देने की दिशा में तेजी से प्रगति हुई है।केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं, जैसे कि राजीव गांधी ग्रामीण राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (RGGVY) और दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY) ने दुर्ग रीजन के विद्युतीकरण को गति प्रदान की। राज्य गठन के बाद सिर्फ गांव तक बिजली पहुंचाना ही नहीं, बल्कि सौभाग्य योजना के अंतर्गत हर घर को कनेक्शन मिलना भी सुनिश्चित किया गया, जिसके परिणामस्वरुप वर्तमान स्थिति में दुर्ग रीजन(दुर्ग, बालोद, बेमेतरा जिला) में घरेलू बिजली कनेक्शन की दर लगभग 100 प्रतिशत है।वर्श 2000 से सितंबर 2025 तक बिजली वितरण में हुई उल्लेखनीय वृद्धि - वर्ष 2000 से सितंबर 2025 तक के बिजली वितरण नेटवर्क के विस्तार और क्षमता में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। निम्न आंकड़ा इस अवधि में हुए तीव्र बुनियादी ढांचे के विकास और विद्युतीकरण के सफल प्रयासों को उजागर करता है।विवरण वर्ष 2000 वर्ष 2025 सितंबर वृद्धिवितरण ट्रांसफार्मरों की संख्या 4787 34367 7 गुणा से अधिक33 केवी लाईनों की लंबाई 885.32 किमी 3311.50 किमी लगभग 4 गुणा11 केवी लाईनों की लंबाई 4758.22 किमी 15842.45 किमी 03 गुणा से अधिक33/11 केवी उपकेन्द्रों की संख्या 39 195 5 गुणाअति उच्चदाब कंेद्रों की संख्या 03 19 06 गुणा से अधिककृशि पंपों की संख्या 19615 121355 06 गुणा से अधिकएलटी लाईनों की लंबाई 9460 किमी 36715.25 किमी लगभग 4 गुणाकुल विद्युतीकृत गांव - 1760 (सभी ग्राम) शत-प्रतिशतसंभाग 05 09 लगभग दोेगुनीउपसंभाग 12 19 वृद्धिवितरण केंद्र 43 62 वृद्धिकुल उच्चदाब कनेक्शन 83 660 लगभग 08 गुणाकुल निम्नदाब कनेक्शन 355312 987708 लगभग ढाई गुणानेटवर्क विस्तार से न केवल घरेलू उपभोक्ताओं को लाभ मिला बल्कि कृषि और औद्योगिक क्षेत्र भी मजबूत हुए। कृषि पंपों की संख्या 06 गुणा से अधिक (19615 से 1,21,355) बढ़ी है, जो कृषि क्षेत्र के विद्युतीकरण पर विशेष ध्यान केंद्रित किए जाने का प्रमाण है। रीजन मंे उच्च दाब (एचटी) उपभोक्ताओं की संख्या इन 25 वर्षों में 83 से बढ़कर 656 हो गई। औद्योगिक विकास और शहरीकरण की बढ़ती गति को बनाए रखने के लिए सीएसपीडीसीएल ने लाइनों के रखरखाव और निर्माण पर जोर दिया, जिससे उद्योगों को लगभग चौबीस घंटे सातों दिन बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। एलटी उपभोक्ताओं की संख्या 355312 से लगभग ढाई गुणा बढ़कर 981735 हो गई। आज की तारीख में एलटी उपभोक्ताओं को वार्षिक 2010.23 करोड़ एवं एचटी उपभोक्ताओं को 1539.12 करोड़ की बिजली बेची जा रही है। वितरण ट्रांसफार्मरों और 33/11 केवी उपकेन्द्रों की संख्या में क्रमशः 07 गुणा से अधिक और 05 गुणा की वृद्धि हुई है, जो नेटवर्क की क्षमता और विश्वसनीयता में बड़े सुधार को दर्शाती है। 33 केवी और एलटी लाईनों की लंबाई में लगभग 04 गुणा की वृद्धि हुई है, जिससे दूर-दराज के क्षेत्रों तक बिजली पहुंचना संभव हुआ है। दुर्ग, बालोद एवं बेमेतरा जिले के सभी 1760 ग्रामों का विद्युतीकरण हो चुका है, जो इस अवधि की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। संभाग, उपसंभाग और वितरण केंद्रों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, जो बढ़े हुए नेटवर्क के कुशल प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक ढांचे के विस्तार को दर्शाता है। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से बिजली वितरण के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग को दर्शाता है, जिससे अधिक उपभोक्ताओं तक गुणवत्तापूर्ण बिजली की पहुंच संभव हुई है।पिछले एक दशक में, रीजन में बिजली के क्षेत्र में सबसे बड़ा बदलाव तकनीकी आधुनिकीकरण और उपभोक्ता-केंद्रित सेवाओं के रूप में आया है। हाल के वर्षों में स्मार्ट मीटर लगाने की परियोजना एक बड़ा कदम है। भारत सरकार की आरडीएसएस योजना के तहत, ये स्मार्ट मीटर उपभोक्ताओं को बिजली की खपत की सटीक जानकारी ‘‘मोर बिजली’’ ऐप के माध्यम से हर आधे घंटे में उपलब्ध करा रहे हैं। इससे बिलिंग में पारदर्शिता आई है और मानवीय त्रुटियां कम हुई हैं। यह उपभोक्ताओं को अपनी बिजली खपत को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में भी मदद करता है।डिजीटल सेवाएं प्रदान करने मंे भी विद्युत कंपनी ने तरक्की की है। बिजली बिल का भुगतान, नए कनेक्शन के लिए आवेदन और शिकायत निवारण जैसी सेवाएं पूरी तरह से डिजिटल हो गई हैं, जिससे उपभोक्ताओं को बिजली विभाग के कार्यालयों में जाने की आवश्यकता कम हो गई है।वर्ष 2025 तक, दुर्ग की बिजली व्यवस्था अब केवल पारंपरिक स्रोतों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा की ओर भी बढ़ रही है। सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के कारण घरों और व्यवसायों में ‘‘प्रधानमंत्री सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना’’ के तहत सोलर रूफटॉप सिस्टम लगाने का चलन बढ़ रहा है।दुर्ग जिले का यह सफर, भिलाई की औद्योगिक रोशनी से शुरु होकर हर गांव के घर को रोशन करने तक, भारत की विकास यात्रा का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह सफर स्पष्ट रुप से दर्शाता है कि राज्य निर्माण के शुरुआती वर्षों में जहाँ बिजली को हर घर तक पहुँचाने पर जोर था, वहीं बाद के वर्षों में आपूर्ति की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और उपभोक्ता सेवाओं को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। स्मार्ट मीटर, ऑनलाइन सेवाएं और सौर ऊर्जा की ओर रुझान, यह दर्शाता है कि दुर्ग की बिजली व्यवस्था एक आधुनिक, कुशल और भविष्य के लिए तैयार ग्रिड की दिशा में अग्रसर है।
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विशेष लेख : छगन लोन्हारे, उप संचालक (जनसंपर्क)
रायपुर। छत्तीसगढ राज्य स्थापना के समय 16 जिलों में से 09 जिलों में श्रम कार्यालय तथा 04 जिलों में औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा कार्यालय संचालित है। वर्तमान में राज्य के समस्त 33 जिलों में श्रम कार्यालय तथा 10 जिलों में औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा तथा वर्ष 2008 से रायपुर में इंडस्ट्रीयल हाईजिन लैब का राज्य स्तरीय कार्यालय प्रारंभ किया गया है। राज्य स्थापना के बाद से वर्ष 2008 में छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल तथा वर्ष 2011 में छत्तीसगढ़ असंगठित कर्मकार राज्य सामाजिक सुरक्षा मंडल का गठन किया गया है। उक्त मण्डलों में श्रमिकों के पंजीयन, नवीनीकरण तथा विभिन्न योजनाओं में आवेदन विभागीय पोर्टल/श्रमेव जयते मोबाईल ऐप के माध्यम से ऑनलाईन करने की सुविधा दी गयी है तथा विभिन्न योजनाओं में डी०बी०टी के माध्यम से श्रमिकों को लाभान्वित किया जा रहा है।श्रम विभाग अंतर्गत 25 वर्षों की विभागीय उपलब्धियां52 लाख 75 हजार 618 संगठित/निर्माण/असंगठित श्रमिक पंजीकृत31 जुलाई, 2025 तक छ0ग0 श्रम कल्याण मंडल अंतर्गत 5लाख 41 हजार 920 संगठित श्रमिक, छ0ग0 भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल अंतर्गत 30 लाख 21 हजार 624 निर्माण श्रमिक तथा छ०ग० असंगठित कर्मकार राज्य सामाजिक सुरक्षा मंडल अंतर्गत 17 लाख 12 हजार 074 असंगठित श्रमिक पंजीकृत हैं। इस प्रकार विभाग अंतर्गत संचालित मंडलों में कुल 52 लाख 75 हजार 618 संगठित, निर्माण, असंगठित श्रमिक पंजीकृत हैं। राज्य स्थापना के बाद से 57 लाख 24 हजार 745 श्रमिकों को 23 अरब 70 करेाड 24 लाख 56 हजार 757 रूपये से लाभांवित किया गया।छ0ग0 श्रम कल्याण मंडल में 80 लाख 713 संगठित श्रमिक को 31 जुलाई, 2025 तक राशि रूपये 26 करोड 56 लाख 2 हजार 131 से, छ०ग० भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल में 51 लाख 72, हजार 579 निर्माण श्रमिकों को राशि रूपये 19 करोड 82 लाख 69 लाख 48 हजार 448 तथा छ०ग० असंगठित कर्मकार राज्य सामाजिक सुरक्षा मंडल में 4 लाख 71 हजार 453 अंगठित कर्मकारों को राशि रूपये 3अरब 60 करोड 99 लाख 06 हजार 178 से इस प्रकार राज्य स्थापना के बाद से कुल 57 लाख 24 हजार 745 श्रमिकों को राशि रूपये 23 अरब 70 करोड़ 24 लाख 56 हजार 757 (तेईस अरब सत्तर करोड़ चौबीस लाख छप्पन हजार सात सौ सात रूपये) से लाभांवित किया गया है।श्रमिक सहायता केन्द्र 24x7 संचालितश्रमिकों के हितलाभ संरक्षण, सहायता एवं उनके शिकायतों के निराकरण करने के लिए राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री श्रमिक सहायता केन्द्र (Helpline Center) रायपुर में 24x7 संचालित है। प्रत्येक जिले में जिला स्तरीय तथा समस्त विकासखंडों में मुख्यमंत्री श्रम संसाधन केन्द्र संचालित किया जा रहा है, जिसके माध्यम से 31 जुलाई 2025 तक 84 हजार 810 निर्माण श्रमिकों को पंजीयन एवं योजनाओं के आवेदन में सहयोग प्रदान किया गया है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के अंतर्गत विभिन्न श्रम कानूनों के अंतर्गत कारखानों, दुकान व स्थापनाओं, ठेकेदारों आदि का पंजीयन, नवीनीकरण, संशोधन तथा विभाग अंतर्गत गठित मंडलों में श्रमिकों के पंजीयन, नवीनीकरण, संशोधन तथा योजनाओं हेतु आवेदन/स्वीकृति विभागीय वेब पोर्टल एवं श्रमेव जयते मोबाईल एप के माध्यम से ऑनलाईन की जा रही है। साथ ही विभिन्न श्रम अधिनियमों के अंतर्गत पंजियों/अभिलेखों को ऑनलाईन डिजिटल रूप में संधारित करने तथा एकीकृत वार्षिक विवरणी ऑनलाईन प्रस्तुत करने की सुविधा नियोजकों को प्रदान की गई है।ई-गवर्नेस के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारभारत सरकार कार्मिक, लोक शिकायत मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा छ०ग० शासन श्रम विभाग को 2020-21 हेतु ‘ई-श्रमिक सेवा‘ सहित सार्वभौमिक पहुंच हेतु ‘ई-गवर्नेस के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार‘ रूपये 02 लाख पुरस्कार राशि के साथ गोल्ड पुरस्कार प्रदान किया गया। प्रवासी श्रमिकों के हित संरक्षण, कल्याण एवं सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विभिन्न विभागों के समन्वय से दिनांक 19 जुलाई 2021 से छ०ग० राज्य प्रवासी श्रमिक नीति, 2020 लागू किया गया है, जिसमें पलायन पंजी के ऑनलाईन संधारण की व्यवस्था की गई है।श्रमिक परिवारों के बच्चों के लिये अटल उत्कृष्ट शिक्षा योजनामुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणा एवं श्रम मंत्री के निर्देशानुसार पंजीकृत निर्माण श्रमिक परिवारों के बच्चों को उत्कृष्ट निजी शालाओं में निःशुल्क अध्ययन कराये जाने हेतु छ०ग० भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल द्वारा ‘अटल उत्कृष्ट शिक्षा योजना‘ 08.जनवरी 2025 से प्रारंभ की गई है। योजना के तहत मंडल में 01 वर्ष पूर्व पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के प्रथम 02 बच्चों को कक्षा 6 वीं में प्रवेश दिया जाकर कक्षा 12 वीं तक आवासीय विद्यालयों में वर्तमान में 100 श्रमिकों के बच्चों को विभिन्न विद्यालयों में प्रवेश दिया जाकर गुणवत्तायुक्त निःशुल्क शिक्षा प्रदान किया जा रहा है। निर्माण श्रमिकों के स्वयं के आवास क्रय एवं आवास निर्माण हेतु एक लाख रूपये एकमुश्त अनुदान सहायता राशि प्रदाय किया जा रहा है। 31 जुलाई 2025 तक 2 हजार 278 निर्माण श्रमिकों को नवीन आवास क्रय/आवास निर्माण हेतु अनुदान सहायता राशि प्रदाय किया जा चुका है।निर्माण श्रमिकों के लिये पेंशन योजना60 वर्ष आयु पूर्ण कर चुके पंजीकृत निर्माण श्रमिक, जिनका मंडल में 10 वर्ष पूर्व का पंजीयन हो, ऐसे 37 निर्माण श्रमिकों को प्रतिमाह रूपये 1500/- पेंशन योजना से लाभांवित किया जा रहा है। शहीद वीर नारायण सिंह श्रम अन्न योजना इस योजना अंतर्गत पंजीकृत निर्माण, असंगठित एवं संगठित श्रमिकों को रूपये 05 में गरम एवं पौष्टिक भोजन प्रदाय किया जा रहा है। प्रदेश के 17 जिलों में 37 श्रम अन्न योजना केन्द्र संचालित है, जिसमें प्रतिदिन लगभग 8 हजार श्रमिक गरम भोजन प्राप्त करे रहें है।संचालनालय, कर्मचारी राज्य बीमा सेवायेंकर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के अंतर्गत कर्मचारी राज्य बीमा योजना, राज्य निर्माण के समय श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदाय करने वाली यह योजना केवल कारखानों, सिनेमाघरों, ट्रांसपोर्ट, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर लागू थी। राज्य निर्माण के पश्चात इस योजना में निजी सहायता प्राप्त शैक्षणिक एवं निजि चिकित्सा संस्थाओं तथा राज्य सरकार द्वारा संचालित नगर निगमों, नगर पालिकाएं, नगर परिषद् एवं अन्य स्थानीय निकाय पर भी लागू की गई है।निःशुल्क चिकित्सा हित लाभछ.ग. राज्य गठन के उपरांत कर्मचारी राज्य बीमा योजना का विस्तार छ.ग. राज्य के 15 जिलों के सम्पूर्ण क्षेत्र तथा 17 जिलों के नगरीय निकाय क्षेत्रों में किया गया है। कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948 के अंतर्गत छ.ग. राज्य निर्माण के पूर्व लगभग 30 हजार कामगार बीमित होकर राज्य के संचालनालय, कर्मचारी राज्य बीमा सेवायें के अंतर्गत संचालित औषधालयों के माध्यम से निःशुल्क चिकित्सा हितलाभ प्राप्त कर रहे थे, जो कि अब बढ़कर लगभग 6 लाख 25 हजार हो गये हैं।राज्य निर्माण के पूर्व छ.ग. राज्य में केवल 6 औषधालय संचालित थी जो अब बढ़कर 42 हो गई है। बीमित हितग्राहियों को बेहतर चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध कराने के लिये राज्य के रायपुर, कोरबा, भिलाई तथा रायगढ़ में एक-एक 100 बिस्तरयुक्त चिकित्सालय का निर्माण कर्मचारी राज्य बीमा निगम के द्वारा किया गया है।बीमित हितग्राहियों को कैशलेस चिकित्सा सुविधायेंराज्य निर्माण के पूर्व बीमित हितग्राहियों को अंतःरोगी उपचार पर होने वाले व्यय का वहन पहले स्वयं करना पड़ता था फिर वे चिकित्सा पुर्नभुगतान हेतु अपना देयक प्रस्तुत करते थे। राज्य निर्माण के पश्चात् वर्ष 2014 में बीमित हितग्राहियों को कैशलेस आधार पर सेकेण्डरी केयर चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध कराने के लिये निजी चिकित्सालयों को अधिकृत किया गया है। अधिकृत किये गये चिकित्सालयों में बीमित हितग्राहियों को कैशलेस अधार पर सेकेण्डरी केयर चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध कराई जा रही है।बीमित हितग्राहियों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने तथा उनके प्रकरणों का शीघ्र निराकरण करने के उदद्देश्य से छत्तीसगढ़ कर्मचारी राज्य बीमा सोसायटी का गठन वर्ष 2018 में किया गया है, जिसका लाभ पंजीकृत श्रमिक उठा रहे हैं। -
गीत
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
अंतर्मन में झाँकें खुद ही, देख नहीं कोई पाएगा ।
तुम्हें अकेले जाना जग से , साथ नहीं कोई जाएगा ।।
कमियों का सागर मानव तन ,
कंटक मार्ग के छाँटता जा ।
दुःख को अपने साथ रखना ,
मन की खुशी को बाँटता जा ।
काम किसी के आ जाओ तो ,वह आजीवन गुण गाएगा ।।
तुम्हें अकेले जाना जग से , साथ नहीं कोई जाएगा ।।
छल दंभ मद-मोह में पड़कर ,
जीवन भर तू सबको छलता ।
सुविधा-स्वार्थ के आस्तीन में ,
छल का दंभी अजगर पलता ।
दुर्गुण का घुन पनप न पाए, यह सत्कर्मों को खाएगा ।।
तुम्हें अकेले जाना जग से, साथ नहीं कोई जाएगा ।।
आत्म-नियंत्रण की छेनी से ,
मन के पाहन को तराश ले।
भटक नहीं जीवन के पथ में ,
मानव ईश्वर को तलाश ले ।
मदद करे जो लाचारों की , उसके पीछे सुख आएगा ।।
तुम्हें अकेले जाना जग से , साथ नहीं कोई जाएगा ।। -
छत्तीसगढ़ रजत जयंती पर विशेष लेख : डॉ. ओम प्रकाश डहरिया, सहा. जनसम्पर्क अधिकारी
रायपुर। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की विशेष पहल पर राज्य के शैक्षणिक संस्थानों, आश्रम-छात्रावासों और तकनीकी एवं प्रोफेशनल पाठ्यक्रम में पढ़ाई करने वाले अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के विद्यार्थियों को शिष्यवृत्ति एवं छात्रवृत्ति का भुगतान निर्धारित समय-सीमा में उनके बैंक खाते में ऑनलाईन होने से अब उक्त वर्ग के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा की राह आसान हो गई है। मुख्यमंत्री श्री साय ने हाल ही में मंत्रालय, महानदी भवन से इन वर्गों के लगभग 2 लाख विद्यार्थियों के बैंक खातों में 84.66 करोड़ रूपए की शिष्यवृत्ति एवं छात्रवृत्ति ऑनलाईन अंतरित की है।उल्लेखनीय है कि विद्यार्थियों को शिष्यवृत्ति और छात्रवृत्ति ऑनलाईन भुगतान की शुरूआत मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के हाथों पहली बार 10 जून 2025 को हुई। राज्य में संचालित सभी प्री. मैट्रिक छात्रावासों एवं आश्रमों में प्रवेशित बच्चों को शैक्षणिक सत्र प्रारंभ होने के पूर्व ही शिष्यवृति की प्रथम किश्त राशि 77 करोड़ रूपए एवं पोस्ट मैट्रिक छात्रावासों में अध्ययनरत छात्रों हेतु भोजन सहाय की प्रथम किश्त के रूप में राशि 8.93 करोड़ रूपए, इस प्रकार कुल 85 करोड़ रूपए की राशि जारी कर एक अभिनव पहल की गई थी। इसके ठीक बाद दूसरे चरण में 17 जून 2025 को 8370 विद्यार्थियों को छात्रवृति की राशि 6.2 करोड़ रूपए का ऑनलाइन अंतरण किया गया था।मुख्यमंत्री श्री साय के हाथों आश्रम-छात्रावासों के 1 लाख 86 हजार 50 विद्यार्थियों को शिष्यवृति की द्वितीय किश्त की राशि 79 करोड़ 27 लाख रूपए एवं पो. मैट्रिक छात्रवृत्ति के 12 हजार 142 विद्यार्थियों को 5 करोड़ 38 लाख 81 हजार रूपए उनके बैंक खातों में राशि अंतरित की गई है।गौरतलब है कि मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने शिक्षा को सबके लिए आसान बनाने के उद्देश्य से अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ा वर्ग तथा कमजोर वर्गों के छात्र-छात्राओं की शिक्षा चिंता की और उन्होंने आदिमजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग एवं अल्प संख्यक कल्याण विभाग द्वारा संचालित आश्रम -छात्रावास में रहकर शिक्षा अध्ययन कर रहे के बच्चों के शिक्षा को आसान बनाने के लिए यह नयी पहल की है। आदिम जाति विकास मंत्री श्री रामविचार नेताम के नेतृत्व और विभाग के प्रमुख सचिव श्री सोनमणी बोरा के गहन प्रयासों से कमजोर वर्गाें के विकास एवं उन्हें विकास की मुख्यधारा में लाने बिना रूकावट के शिक्षा ग्रहण हेतु सुविधा प्रदान करने का यह प्रयास सार्थक हो रहा है।आदिम जाति कल्याण विकास विभाग के प्रमुख सचिव श्री सोनमणि बोरा के प्रयासों से प्री. मैट्रिक, पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति तथा शिष्यवृत्ति भुगतान के लिए नयी व्यवस्था में माह जून, सितंबर, अक्टूबर एवं दिसंबर में विद्यार्थियों को अब ऑनलाईन भुगतान किया जा रहा है। इस पहल से विद्यार्थियों को शैक्षणिक अध्ययन के दौरान होने वाली आर्थिक समस्या से निजात मिली है। यहां यह उल्लेखनीय है कि इस नयी व्यवस्था से पूर्व विद्यार्थियों को दिसंबर एवं फरवरी-मार्च में वर्ष में एक बार छात्रवृति एवं शिष्यवृति की राशि प्रदान की जाती थी।दरअसल आश्रम छात्रावास में रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थी हो या यहां रहकर अध्ययन कर चुके विद्यार्थी हो अथवा आश्रम छात्रावासों में रहकर उच्च पदों में कार्य कर रहे विद्यार्थी क्यों न हो। वे समय पर स्कॉलरशिप नहीं मिलने के कारण की परेशानियों से भलीभांति वाकिफ हैं। वास्तव में एक विद्यार्थी को अध्ययन सामग्री क्रय करने के लिए जब पैसे की जरूरत हो उस वक्त छात्रवृत्ति और शिष्यवृत्ति की राशि उनके बैंक खातों में पहुंचना बेहद महत्वपूर्ण होता है। छात्रावासी विद्यार्थियों की इस परेशानी को दूर करने के लिए प्रमुख सचिव श्री सोनमणि बोरा सहित विभागीय अमलों ने संवेदनशीलता के साथ कितनी मशक्कत की होगी यह किसी से छिपा नहीं है। इसी का परिणाम है कि विभाग आश्रम छात्रावास के बच्चों के छात्रवृत्ति के लिए की गई तय सीमा से लाखों विद्यार्थियों को लाभ मिलना लाजिमी है।छात्रावास में रहने वाले बच्चों की अधिकतर आवश्यकताएँ सरकार द्वारा पूरी की जाती हैं, लेकिन छात्रवृत्ति उन्हें व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने की स्वतंत्रता देती है। इससे वे किताबें, स्टेशनरी व अन्य जरूरी सामान स्वयं खरीद सकते हैं। जब यह सहायता समय पर मिलती है, तो विद्यार्थी बिना किसी चिंता के अपनी पढ़ाई जारी रख पाते हैं और उनका ध्यान पढ़ाई से भटकता नहीं है। समय पर छात्रवृत्ति मिलने से बच्चों का आत्मविश्वास भी बढ़ता है।समय पर छात्रवृत्ति मिलने से न केवल बच्चों की शैक्षिक यात्रा आसान होती है, बल्कि उन्हें उच्च शिक्षा की ओर बढ़ने का प्रोत्साहन भी मिलता है। वे यह सोचने लगते हैं कि यदि अभी उन्हें सहायता मिल रही है तो आगे भी मिलेगी, जिससे वे कॉलेज या व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की ओर अग्रसर होते हैं। इससे राज्य में एक शिक्षित, आत्मनिर्भर और जागरूक युवा पीढ़ी का निर्माण होता है।अंत में, यह कहा जा सकता है कि विद्यार्थियों को निर्धारित समय पर स्कॉलरशिप देने की प्रक्रिया से छत्तीसगढ़ में समावेशी शिक्षा को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने में आसान होगी। -
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
दीपक सम जलते रहें , जग में भरें उजास ।
कलुष हृदय के दें मिटा , दुःख न फटके पास ।।
दुःख न फटके पास , मिले खुशियाँ जीवन में ।
सत्कर्मों का बाग , पुण्य ही खिलें चमन में ।।
‘दीक्षा’का संदेश , कमल खिलते ज्यों कीचक ।
आभा भर सर्वत्र , बनें शुभतायुत दीपक ।।
जीवन होता है वही, जैसी रखते सोच।
खुश रहना यदि चाहते, हो चिंतन में लोच।।
हो चिंतन में लोच, समन्वय बहुत जरूरी।
दृढ़ता हो संकल्प, रखें पर जिद से दूरी।।
ढलें वक्त के साथ, स्वस्थ रहता है तन-मन।
मृदुल मधुर व्यवहार, हर्षमय सार्थक जीवन।।
कैसे-कैसे लोग हैं, समझें नहीं जुड़ाव।
कमियाँ सबमें देखते, देते रहें सुझाव।।
देते रहें सुझाव, तुष्ट वे कभी न होते।
कुढ़ते रहते आप, आस जीवन की खोते।।
रोते हैं दिन-रात, बरसते बादल जैसे।
घूमें लिए तनाव, खुशी मिल पाए कैसे।।
जानें संस्कृति देश की, यह अपनी पहचान।
रंग विविध इसमें मिलें, जगत करे सम्मान।।
जगत करे सम्मान, पर्व त्यौहार अनूठे ।
भ्रमित करे बाजार, मूल्य अपने हैं रूठे।।
परंपरा संस्कार, धरोहर इनको मानें।
संरक्षण दें रीति, महत्ता जन-जन जानें।। -
विशेष लेख : शशिरत्न पाराशर
धमतरी ।प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण एवं रत्नागर्भा कहलाने वाला जिला धमतरी वनों से आच्छादित है तथा इसे नैसर्गिक संपदा का वरदान प्राप्त है। महानदी के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह जिला सुनिश्चित सिंचाई क्षेत्र के विस्तृत रकबे के लिए भी जाना जाता है। मेहनतकश किसानों द्वारा खरीफ एवं रबी दोनों मौसम में बड़े पैमाने पर धान की खेती की जाती है। धान फसल के लिए उपयुक्त जलवायु एवं उपजाऊ भूमि के कारण इस जिले को ‘धनहा धमतरी’ के नाम से भी जाना जाता है।कृषि के क्षेत्र में निरंतर प्रगति के साथ-साथ भूमिगत जल स्रोतों के संरक्षण की आवश्यकता भी बढ़ी है। चूंकि जिले में बड़े पैमाने पर धान की पैदावारी की जाती है, जिससे जल की अधिक खपत होती है। इसी को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने कम जल खपत वाली नई धान की किस्में विकसित की हैं।जिला धमतरी में एमटीयू श्रृंखला की दो नई किस्में – एमटीयू 1153 (चन्द्रा) एवं एमटीयू 1156 (तरंगिनी) – किसानों को प्रदर्शन फसल के रूप में उपलब्ध कराई गई हैं।एमटीयू 1153 (चन्द्रा)एमटीयू 1153 किस्म को वर्ष 2015 में विकसित किया गया। यह मध्यम अवधि की किस्म है, जो लगभग 115 से 120 दिनों में पककर तैयार होती है। इसकी पौध की ऊँचाई कम तथा तना मजबूत होने के कारण फसल गिरने (लॉगिंग) की संभावना नगण्य होती है। यदि फसल गिर भी जाए तो जल अंकुरण की समस्या नहीं होती। इसमें दो सप्ताह की सुसुप्ता अवस्था का गुण पाया जाता है। यह ब्लास्ट एवं भूरा माहू जैसी प्रमुख बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है। अनुकूल परिस्थितियों में इसकी औसत उपज 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है*एमटीयू 1156 (तरंगिनी)एमटीयू 1156, जिसे वर्ष 2015 में राइस रिसर्च स्टेशन मरूतेरू द्वारा विकसित किया गया, मध्यम अवधि की उच्च उपज देने वाली किस्म है। इसके दाने लंबे, पतले तथा उच्च प्रसंस्करण गुणवत्ता वाले होते हैं, जिससे टूटने की संभावना कम रहती है। यह किस्म 115 से 120 दिनों में पक जाती है तथा तना मजबूत होने से फसल गिरने की संभावना कम रहती है। यह भी ब्लास्ट एवं भूरा माहू रोगों के प्रति प्रतिरोधी है। इसकी औसत उपज 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पाई जाती है।विक्रम टीसीआरविक्रम टीसीआर किस्म उच्च पैदावारी के लिए विकसित की गई है, जिसकी उत्पादन क्षमता 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म 125 से 130 दिनों में पकती है, कम पानी की आवश्यकता होती है तथा कीट-व्याधियों के प्रति प्रतिरोधी है।कृषक अनुभवविकासखण्ड धमतरी के ग्राम झिरिया में कृषक श्री धमेन्द्र कुमार चन्द्राकर के खेत में नई किस्म एमटीयू 1156 का प्रदर्शन प्लॉट तैयार किया गया। उप संचालक कृषि द्वारा निरीक्षण कर कृषकों को आवश्यक समसामयिक सलाह प्रदान की गई।कृषक श्री चन्द्राकर ने बताया कि इस किस्म की खेती आसान है तथा कीट-व्याधि का प्रकोप कम होने से कृषि लागत में कमी आती है। यह उच्च उपज देने वाली फसल है तथा प्रति एकड़ 28 से 30 क्विंटल तक उपज मिलने की संभावना है। -
लघुकथा
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
नेपानगर कागज का कारखाना बंद होने के कारण कई लोग बेरोजगार हो गए थे । लगभग चालीस की उम्र वालों के लिए नया काम ढूँढना अत्यंत दुष्कर हो गया था । दीपा अपने परिवार के साथ मायके लौट आई थी । एक उम्मीद थी कि बड़े शहर में कुछ न कुछ काम मिल ही जायेगा। वे दिन बहुत मुश्किलों भरे और निराशाजनक थे । तब दीपा को शौक के लिए सीखा गया ब्यूटी पार्लर का कोर्स याद आया और उसने घर के एक कमरे में अपना काम शुरू किया। उसकी व्यवहार कुशलता और लगन के कारण काम बढ़ता गया। उसने किराए पर दुकान ले लिया और अपने साथ कई सहायक भी रख लिए। वह लोगों को प्रशिक्षण भी देने लगी, इस प्रकार उसने अपने घर की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को संभाल लिया। उसकी मदद से उसके पति ने भी एक दुकान खोल ली और वे विषम परिस्थितियों से लड़कर बाहर निकलने में सफल हुए। अपने जीवन संघर्ष से उसने यह सिद्ध कर दिया कि जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपना विश्वास बनाये रखे और उनसे जूझकर बाहर निकलने में सफल हो जाए, वही सच्चा इंसान है । -
लघुकथा
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
नीरजा के पड़ोस में एक नया परिवार कुछ माह पहले ही शिफ्ट हुआ था । सामान्य शिष्टाचार ही हुआ था , उनसे अधिक बातें करने का अवसर नहीं मिला था । आज आते दिखीं तो सोचा थोड़ा बातें कर ले लेकिन वह नीरजा को देखे बिना ही शीघ्रतापूर्वक निकल गई । नीरजा को बहुत बुरा लगा, उसने जान बूझकर मेरी उपेक्षा की यह विचार उसे व्यथित कर गया । ऐसे घमंडी लोगों से दूरी रहे वही बेहतर है , उसने सोचा । कुछ दिनों के बाद उसके घर की घंटी बजी , उसकी
नई पड़ोसन आई थी । नीरजा ने बेमन से दरवाजा खोला -
अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए उसने कहा - "उस दिन आपसे बात नहीं कर पाई माफ कीजिएगा , उसी समय मेरे भाई के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर आई थी तो मैं दौड़ते-भागते अस्पताल जा रही थी । अच्छा हुआ तुरंत चली गई , उसको खून की जरूरत थी तो मैंने उसे अपना खून दिया । अभी वह खतरे से बाहर है । नीरजा ने बहुत अपनेपन के साथ उनके हाथ थाम लिए । उसकी आँखों में आँसू थे शायद गलत समझने के अपराधबोध के । - आलेख - प्रशांत शर्मापंख होते तो उड़ आती रे....गाने को फिल्मी परदे पर जीवंत करने वाली संध्या शांताराम उर्फ विजया देशमुख 4 अक्टूबर को सचमुच हम सबको छोडक़र उड़ चलीं... अभी पिछले ही महीने 27 सितंबर को उन्होंने अपना 87 वां जन्मदिन मनाया था। हिंदी फिल्म जगत की बेहतरीन नृत्यांगनाओं का जब भी जिक्र होगा अभिनेत्री संध्या का नाम उनमें हमेशा शामिल रहेगा। गाने के बोल और संगीत के साथ उनके अंग-अंग की थिरकन अजब सा आर्कषण पैदा करती थी, जो उनकी पहचान बन चुका था। सही मायनों में संध्या ने अपने अभिनय की बजाय नृत्यों के कारण अपने दौर में एक अलग पहचान बनाई।अभिनेत्री विजया देशमुख के रूप में जन्मीं संध्या को वी. शांताराम ने मराठी फिल्म अमर भूपाली (1951) के लिए कलाकारों की कास्टिंग के दौरान देखा था। उनकी गायन आवाज से प्रभावित होकर वी. शांताराम ने उन्हें एक गायिका की भूमिका में लिया, जो उनके फि़ल्मी करियर की शुरुआत थी। बाद में, वी. शांताराम ने अपनी पत्नी और अभिनेत्री जयश्री से अलग होने के बाद संध्या से शादी कर ली। संध्या फिल्मकार वी शांताराम की तीसरी पत्नी थीं और वे उनसे उम्र में 37 साल बड़े थे। दोनों के कोई बच्चे नहीं थे।कई प्रशंसित फिल्मेंसंध्या को 1955 की संगीतमय ड्रामा फिल्म झनक झनक पायल बाजे से लोकप्रियता मिली, जिसमें उन्होंने एक कथक नर्तकी की भूमिका निभाई थी। चूंकि उनके पास कोई औपचारिक नृत्य प्रशिक्षण नहीं था, इसलिए उन्होंने फिल्म झनक झनक पायल बाजे के लिए सह-कलाकार गोपी कृष्ण से शास्त्रीय नृत्य की गहन शिक्षा ली । फिल्म में दोनों कथक नर्तकियों की भूमिका निभाते हैं जो एक महत्वपूर्ण प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन जब वे प्यार में पड़ जाते हैं तो उन्हें अपने नृत्य गुरु के विरोध का सामना करना पड़ा हैं। फिल्म बहुत सफल रही और चार फिल्मफेयर पुरस्कारों के साथ-साथ हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीता ।अभिनेत्री संध्या वी. शांताराम की कई प्रशंसित फि़ल्मों में दिखाई दीं, जिनमें दो आंखें बारह हाथ (1957) शामिल हैं, जहाँ उन्होंने चंपा नामक एक खिलौना विक्रेता की भूमिका निभाई, जो जेल वार्डन और कैदियों को मोहित कर लेती है। एक और फिल्म थीं नवरंग (1959) जिसमें उन्होंने एक कवि की साधारण पत्नी का किरदार निभाया, जिसकी काल्पनिक छवि उसकी प्रेरणा बन जाती है। नवरंग फिल्म का होली गीत -अरे जा रे हट नटखट में संध्या के डांस और अभिनय ने सबका मन जीत लिया। आज भी यह गीत लोगों की जुबां पर है।उनका निडर अंदाजउन्होंने स्त्री (1961) में अभिनय किया, जो महाभारत से शकुंतला की कहानी का एक फिल्मी संस्करण था । जैसा कि महाकाव्य में उल्लेख है कि शकुंतला और उनके पुत्र भरत जंगल में शेरों के बीच रहते थे, शांताराम ने कुछ दृश्यों में असली शेरों को शामिल करने का फैसला किया। संध्या के पास इन दृश्यों के लिए कोई डबल नहीं था; इसलिए उन्होंने एक शेर को काबू करने वाले के पीछे रहकर और शेरों के साथ पिंजरे में अभ्यास करके अपने किरदार की तैयारी की। संध्या की आखिरी प्रमुख भूमिका पिंजरा के मराठी संस्करण में थी जिसमें उनका किरदार एक तमाशा कलाकार का था, जिसे एक स्कूल शिक्षक से प्यार हो जाता है जो उसे सुधारना चाहता है। शिक्षक की भूमिका में श्रीराम लागू थे , जो उनकी पहली फिल्म थी।फिल्मफेयर अवॉर्डअभिनेत्री संध्या शांताराम ने फिल्म पिंजरा के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फि़ल्मफ़ेयर मराठी पुरस्कार और चंदनाची चोली अंग अंग जाली के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार हासिल किया।
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-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
नवराते आये हे मइया, सज गे हे अँगना द्वारी।
लुगरा चूरी लाली पहिरे, बइठे दुर्गा महतारी ।।
चक्र पद्म धारे हे मइया, महिषासुर ला संहारे।
रक्तबीज बर काली बनगे, मधु कैटभ भाई मारे।
दुर्मुख शुंभ निशुंभ ल तारे, जनम धरे कष्ट मिटाए।
दया क्षमा धन विद्या देवी, तोर कृपा ले सुख आए।
कंठ मुंड के माला पहिरे, तैं चामर खप्परधारी ।।
नवराते आये हे मइया, सज गे हे अँगना द्वारी।।
लाल फूल दशमत के चढ़थे, लाल चुनरिया हा सोहे ।
धूप दीप नैवेद्य आरती, फल नरियर दूबी मोहे ।
फलाहार नौ दिन उपास रहि, भक्तन के सुन ले माता।
दूरिहा कलह कलेष ला कर, ओ सुख संपति के दाता ।।
करबे माँ कल्यान सबो के, सबके हस पालनहारी ।। -
लघुकथा
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
“ शांति ! कल जल्दी आकर घर की सफाई कर लेना , हम लोग सुबह छः बजे प्रयाग के लिए निकल जायेंगे। देख तू देर मत करना “-- मालकिन मधु ने कहा ।
“ दीदी ! बच्चे की तबियत ठीक नहीं है, आप ने एडवांस देने को कहा था ना।”
“ हां बोली तो थी पर तब कुंभ स्नान के लिए जाने का प्लान नहीं था। अब अचानक बन गया तो खर्चा भी बढ़ गया इस महीने । वहां से वापस आके देखती हूँ। “
शांति उदास मन से काम करके बाहर निकली । देखा घर के मालिक सुधाकर गाड़ी में कुछ सामान रख रहे थे। उन्होंने शांति को आवाज लगाई - “शांति जरा यह सामान गाड़ी में रख देना “ और उसके हाथों में चुपचाप 2000 रुपए रख दिए । बेटे को किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाना ,चिंता मत करना वह ठीक हो जाएगा।”
शांति की आँखों में खुशी और आभार के बूँद झिलमिला उठे थे , जिन्हें देख सुधाकर को बिना कुंभ गए ही अत्यंत सुखद अनुभूति हो रही थी। -
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
"पुनीत! ऋषभ की माँ का निधन कुछ दिनों पहले हुआ है , चल उससे मिल आते हैं "- रवि ने कहा।
"क्या होगा जाकर ? जाने वाला वापस तो नहीं आयेगा। अरे यार व्हाट्सएप्प पर श्रद्धांजलि दे देंगे। आने-जाने में टाइम वेस्ट कौन करे?" पुनीत ने प्रत्युत्तर में कहा।
दो वर्ष बाद पुनीत के पिता का निधन होने पर उसने महसूस किया कि उसकी सोच गलत थी। श्रद्धांजलि देने मिलने वाले हर व्यक्ति से बात कर जो सुकून मिला वह अविस्मरणीय था। शोक कार्यक्रम के बहाने रिश्तेदारों का आना शोक संतप्त परिवार को संबल प्रदान करता है और विभिन्न रस्म जो पहले फालतू लगते थे इसी बहाने परिजन अपनों से बिछड़ने की पीड़ा भूल जाते हैं, पुनीत अब आभासी दुनिया से बाहर आ चुका था। -
विश्वकर्मा जयंती पर विशेष लेख : छगन लोन्हारे, अशोक कुमार चन्द्रवंशी
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा श्रमिकों एवं उनके परिजनों की बेहतरी के लिए कई योजनाएं संचालित की जा रही है। इन योजनाओं के माध्यम से श्रमिकों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के उत्थान के लिए लगातार उन्हें आर्थिक मदद दी जा रही है। इसी सिलसिले में छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल अंतर्गत पंजीयन एवं लाभांवित श्रम विभाग द्वारा 01 जनवरी, 2024 से 15 सितम्बर, 2025 तक लगभग 7.3 लाख निर्माण श्रमिकों का पंजीयन किया गया है तथा वर्ष 2024 से 15 सितम्बर 2025 तक संचालित योजनाओं के माध्यम से लगभग 8.39 लाख श्रमिकों को लाभांवित हुए हैं, जिस पर लगभग 535.62 करोड़ रूपए व्यय किया गया है।उल्लेखनीय है कि असंगठित श्रमिकों के लिए मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व और श्रम मंत्री श्री लखनलाल देवांगन के मार्गदर्शन में एक नई पहल शुरू की गई है। असंगठित श्रमिकों एवं उनके परिवारों के समग्र विकास के लिए अम्ब्रेला योजना ‘अटल श्रम सशक्तिकरण योजना‘ प्रारंभ की गई है। प्रवासी श्रमिक साथियों को सहयोग एवं मार्गदर्शन प्रदाय करने हेतु प्रथम चरण में 5 राज्य क्रमशः उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, उड़ीसा, गुजरात एवं महाराष्ट्र में जहां अधिक संख्या में श्रमिक प्रवास करते हैं, वहां ‘मोर चिन्हारी भवन’ बनाया जाएगा। इसके अलावा श्रमिकों को कैशलेस इलाज की सुविधा उपलब्ध कराने 106 निजी चिकित्सालयों से अनुबंध किया गया है। इससे उन्हें हृदय रोग, किडनी रोग, मस्तिष्क रोग, जटिल सर्जरी आदि के लिए सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल में उपचार सुविधा मिलेगी।इसी तरह राज्य शासन द्वारा श्रम विभाग की ‘अम्ब्रेला योजना अटल श्रम सशक्तिकरण योजना‘ के नाम से शुरू की गई है। इससे श्रमिकों तथा उनके परिवारों को एक ही स्थान पर सरकार के सभी योजनाओं का लाभ मिलेगा, इसके लिए ‘श्रमेव जयते‘ पोर्टल बनाया गया है। पंजीकृत श्रमिकों के द्वारा आर्थिक गतिविधि के लिए बैंक से लिए जाने वाले ऋण पर लगने वाले ब्याज में अनुदान देने के लिए जल्द ही नई योजना शुरू की जा रही है ताकि आत्म निर्भर बनते हुए स्वयं मालिक बनने की दिशा में बढ़ सकें। इसके अलावा असंगठित श्रमिकों के कल्याण हेतु संचालित योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन एवं सतत् निगरानी हेतु राज्य के प्रत्येक संभाग में संभाग स्तरीय श्रम कल्याण कार्यालय के स्थापना की जा रही है।श्रम विभाग द्वारा मुख्यमंत्री श्रम संसाधन केन्द्र श्रमिकों की समस्याओं का शीघ्र निराकरण एवं सहायता हेतु राज्य के प्रत्येक जिले में जिला स्तरीय तथा समस्त विकासखंडों में मुख्यमंत्री श्रम संसाधन केन्द्र संचालित किया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्रम संसाधन केन्द्र योजना अंतर्गत 01 जनवरी, 2024 से 15 सितम्बर, 2025 तक 94,300 निर्माण श्रमिकों को पंजीयन/नवीनीकरण/योजनाओं के आवेदन में सहयोग प्रदान किया गया है।छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल अंतर्गत निर्माण श्रमिकों के पंजीयन हेतु स्व-घोषणा प्रमाण पत्र छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल अंतर्गत निर्माण श्रमिकों के पंजीयन की प्रक्रिया सरल करते हुये, ठेकेदार अथवा नियोजक के अधीन कार्य करने संबंधी नियोजक से नियोजन प्रमाण पत्र के स्थान पर श्रमिकों से ही निर्माण कार्य में नियोजित होने संबंधी स्वघोषणा पत्र का प्रावधान किया गया है। उक्त सरलीकरण करने से श्रमिकों को पंजीयन कराने में सुविधा हुई है।मुख्यमंत्री निर्माण श्रमिक आवास सहायता योजना छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल अंतर्गत निर्माण श्रमिकों के स्वयं के आवास क्रय एवं आवास निर्माण हेतु 01 लाख रूपये एकमुश्त अनुदान सहायता राशि प्रदाय किया जा रहा है। 01 जनवरी, 2024 से 15 सितम्बर, 2025 तक 1042 निर्माण श्रमिकों को नवीन आवास क्रय/आवास निर्माण हेतु अनुदान सहायता राशि प्रदाय किया जा चुका है।मुख्यमंत्री नोनी बाबू मेधावी शिक्षा सहायता योजना छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल द्वारा संचालित उक्त योजनांतर्गत कक्षा 10वीं एवं कक्षा 12वीं में 75 प्रतिशत या उससे अधिक प्रतिशत प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों एवं छत्तीसगढ़ बोर्ड के मेरिट के प्रथम 10 में स्थान प्राप्त करने पर प्रत्येक श्रमिक बच्चों को राशि रूपये 01 लाख प्रोत्साहन राशि तथा रूपये 01 लाख दोपहिया वाहन क्रय करने हेतु प्रदाय किया गया है। 01 जनवरी, 2024 से 15 सितम्बर, 2025 तक निर्माण श्रमिक के 7478 पुत्र/पुत्रियों को 10 करोड़ 14 लाख 49 हजार 614 रूपए प्रदान किया गया है।प्रसूति सहायता योजना 01 जनवरी, 2024 से 15 सितम्बर, 2025 तक छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल द्वारा संचालित ‘मिनीमाता महतारी जतन योजना’ अंतर्गत 65 हजार 010 महिला निर्माण श्रमिकों को लाभांवित किया गया है।शहीद वीरनारायण सिंह श्रम अन्न योजना उक्त योजना अंतर्गत पंजीकृत निर्माण, असंगठित एवं संगठित श्रमिकों को 05 रूपए में गरम एवं पौष्टिक भोजन प्रदाय किया जा रहा है। 31 दिसम्बर 2023 की स्थिति में 29 भोजन केन्द्र संचालित थे, जो कि वर्तमान में बढ़कर 17 जिलों में 37 भोजन केन्द्र हो गये हैं। 01 जनवरी, 2024 से 15 सितम्बर, 2025 विभाग द्वारा 11,35,362 यूनिट भोजन (मिल) पंजीकृत संगठित एवं असंगठित श्रमिकों को प्रदाय किया जा चुका है, जिसमें छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल द्वारा राशि रूपये रूपये 52,865,395 व्यय हुआ है।मुख्यमंत्री निर्माण श्रमिक मृत्यु एवं दिव्यांग सहायता योजना सामान्य मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी को एक लाख रूपए की राशि, कार्य स्थल पर दुर्घटना से मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी को 5 लाख रूपए की राशि तथा कार्य स्थल पर दुर्घटना से स्थायी दिव्यांगता होने पर श्रमिक को ढ़ाई लाख रूपए की राशि दिए जाने का प्रावधान है। जिसके तहत् 01 जनवरी, 2024 से 15 सितम्बर, 2025 तक कुल 3658 निर्माण श्रमिकों के आश्रितों को लाभांवित किया गया है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने 17 सितंबर 2024 को डी०बी०टी० के माध्यम से राशि का हस्तांतरण किया था। श्रम विभाग द्वारा प्रदेश स्तरीय श्रमिक सम्मेलन आयोजित कर छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल अंतर्गत संचालित विभिन्न योजनाओं के तहत् पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को केन्द्रीकृत डी.बी.टी. के माध्यम से लाभांवित करना प्रारंभ कर दिया गया है।छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल द्वारा पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को 17 सितम्बर, 2024 से अब तक 16 योजनाओं में 6 लाख 48 हजार 633 पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को 327 करोड़ 13 लाख 53 हजार 108 रूपए से लाभांवित किया गया। - -लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)पितर देव घर में हैं आए ।साथ स्नेह की खुशबू लाए ।रंगोली से द्वार सजाएँ ।घर-आँगन में दीप जलाएँ ।। 1।।तिल जौं का पितु अर्ध्य चढ़ाया ।खीर पुड़ी नैवेद्य लगाया ।श्राद्ध पक्ष यह पावन आया ।कर्तव्यों का बोध कराया ।2।।परंपरा यह खूब मनाते ।श्रद्धा से दायित्व निभाते ।पितृदेव सदा रक्षा करना ।खुशियों से मेरा घर भरना ।। 3।।प्रतिवर्ष हमें उपकृत करना ।धर्म कर्म को प्रवृत्त करना ।नव पीढ़ी को जागृत करना ।सीखें सब का आदर करना ।।4।।जिस घर पूजा पितृ की होती।बीज भलाई शुचिता बोती।।खुश होकर पितृ यदि मुस्काते।सुख से जीवन को भर जाते ।।5।।सदा खुशी पालक को देना।छाँव सुखद अनुभव की लेना।।मिली हमें है स्नेहिल छाया ।जीवन सुखकर हमने पाया ।।6।।उऋण नहीं हों उपकारों से।मात-पिता के संस्कारों से।।काज किए सुत के हितकारी।रहें सदा उनके आभारी ।।7।।
- डॉ. दानेश्वरी संभाकरसहायक संचालकरायपुर। स्त्री पुरुष समानता के मामले में छत्तीसगढ़ की मिसाल पूरे देश में रही है लेकिन आर्थिक समानता में फिर भी पुरुषों का पलड़ा अब तक भारी होता था। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय जी की सरकार आने के बाद इस आर्थिक विषमता को दूर करने का रास्ता भी खुल गया है। अब छत्तीसगढ़ की हर माँ और बहन आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है। अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए वे स्वयं निर्णय ले सकती हैं। महतारी वंदन योजना जैसी योजनाएं महिलाओं को उनके श्रम और भागीदारी के लिए सम्मानित करती हैं वहीं साय सरकार की आजीविकामूलक योजनाओं से महिलाओं को उद्यमिता की दिशा में आगे बढ़ने की राह मिली है। आधी आबादी को सशक्त कर मुख्यमंत्री ने विकसित छत्तीसगढ़ की आधारशिला रख दी है।छत्तीसगढ़ ने पिछले 19 महीनों में महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में नई पहचान बनाई है। राज्य सरकार ने महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य के हर मोर्चे पर मजबूत बनाने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और त्वरित लाभ पहुंचाने की व्यवस्था स्थापित की गई है, जिससे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिला है।आर्थिक स्वावलंबन – महतारी वंदन योजना आत्मनिर्भर महिला की ओर कदम1 मार्च 2024 से लागू इस महत्वाकांक्षी योजना ने राज्य की महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में क्रांति ला दी है। विवाहित महिलाओं को प्रतिमाह 1,000 रुपए सीधे बैंक खाते में हस्तांतरित किए जा रहे हैं।मार्च 2024 से सितम्बर 2025 तक 69.15 लाख से अधिक महिलाओं को 12,376.19 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा चुका है।यह राशि महिलाओं की आत्मनिर्भरता, पोषण और मूलभूत जरूरतों की पूर्ति में सहायक है।चालू वित्तीय वर्ष में इस योजना के लिए 5, 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। 179 महतारी सदन के निर्माण के लिए 52.20 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी गई है। प्रत्येक सदन 2,500 वर्गफुट में 29.20 लाख रुपए की लागत से बनेगा, जो महिलाओं के लिए प्रशिक्षण, बैठक और सामुदायिक गतिविधियों का केंद्र होगा।स्वरोजगार और उद्यमिता का विस्तारसाय सरकार ने महिला श्रमिकों और स्व-सहायता समूहों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं:जिसमें मुख्यमंत्री सिलाई मशीन सहायता योजना के तहत 18 से 50 वर्ष की पंजीकृत महिला निर्माण श्रमिकों को 7,900 रुपए की सहायता एक सिलाई मशीन के लिए दी जा रही है।दीदी ई-रिक्शा सहायता योजना से 3 वर्ष से पंजीकृत महिला श्रमिकों को 1 लाख रुपए की अनुदान राशि प्रदान की जा रही है।मिनीमाता महतारी जतन योजना के तहत गर्भवती महिला श्रमिकों को 20,000 की आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है, ताकि उन्हें पौष्टिक आहार मिल सके।मुख्यमंत्री नोनी सशक्तिकरण योजना ने पंजीकृत श्रमिकों को अपनी 18-21 वर्ष की अविवाहित पुत्रियों के पढ़ाई लिखाई तथा अन्य आवश्यक खर्चों के लिए 20,000 रुपए की सहायता राशि प्रदान की जा रही है।महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी साय सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिसमें महतारी शक्ति ऋण योजना के माध्यम से उन्हें बिना जमानत के 25,000 रुपए का ऋण देकर स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा रहा है।सक्षम योजना – 2 लाख से कम वार्षिक आय वाली महिलाओं को 3% ब्याज पर 2 लाख रुपए तक ऋण भी दिया जा रहा है।राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) – 800 करोड़ रुपए का प्रावधान, “लखपति महिला” और “ड्रोन दीदी” जैसी नवाचारी पहलें भी योजनाओं में शामिल है।इन योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ, उन्हें रोजगार के स्थायी अवसर भी प्रदान किए जा रहे हैं।साय सरकार ने महिला सुरक्षा को नीति के केंद्र में रखा है।नवाबिहान योजना से घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को कानूनी, चिकित्सा, परामर्श और आश्रय सुविधा प्रदान की जाती है।इसके लिए 20 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।छत्तीसगढ़ सखी वन-स्टॉप सेंटर में SOP लागू करने वाला देश में पहला राज्य बन गया है। 27 जिलों में सेंटर संचालित, 24x7 सेवा उपलब्ध है।महिला हेल्पलाइन 181 और डायल 112 द्वारा संकट में फंसी महिलाओं को त्वरित सहायता और पुलिस समन्वय की सुविधा प्रदान की जाती है।शुचिता योजना के तहत 2,000 स्कूलों में नैपकिन वेंडिंग मशीनें, 3 लाख से अधिक किशोरियों को स्वच्छता सामग्री प्रदान की जा रही है जिसके लिए 13 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान है।हाई स्कूल छात्राओं के लिए साइकिल वितरण योजना के लिए 50 करोड़ रुपए का प्रावधान है।गर्भवती और धात्री महिलाओं को पौष्टिक आहार, स्वास्थ्य पूरक और पोषण पुनर्वास केंद्रों के माध्यम से सहायता दी जा रही है।नवा रायपुर में 200 करोड़ रुपए की लागत से यूनिटी मॉल का निर्माण किया जा रहा है,जहाँ महिला समूहों के उत्पादों की बिक्री होगी।जशप्योर ब्रांड जशपुर जिला में निवासरत आदिवासी महिलाओं द्वारा संचालित वन-आधारित उत्पाद है,जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पहचान बना रहा है, साथ ही“वोकल फॉर लोकल” का सफल उदाहरण भी है।वित्तीय वर्ष 2025-26 में महिला एवं बाल विकास विभाग को 8,245 करोड़ रुपए का बजट आबंटित किया गया है। इसमें महतारी वंदन, पोषण, स्वास्थ्य, ऋण और सुरक्षा योजनाओं का विस्तार शामिल है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय का मानना है कि महिला सशक्तिकरण केवल घोषणाओं से नहीं, बल्कि धरातल पर वास्तविक बदलाव लाने से संभव है। वहीं, महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े का कहना है कि सरकार की प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि हर योजना का लाभ पात्र महिलाओं तक समय पर और पारदर्शी ढंग से पहुँचे।
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-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
हम हैं हरिश्चंद्र के वंशज, पर इसका अभिमान न था।
शक्ति बहुत है हममें लेकिन, इसका किंचित भान न था।।
वीर शिवा का साहस हममें, पाँव उखाड़ें दुश्मन के।
बुद्धि धैर्य सामर्थ्य बहुत है, दुश्मन भी अनजान न था।।
राम सरिस मर्यादित हैं पर, वार न पहले हम करते।
रावण ने सीता हरण किया, शील हरे शैतान न था।।
माँस काट कर प्राण बचाए, जन्मे राजा शिवि जैसे।
दिया कर्ण दधीचि बलि ने, ऐसा कोई दान न था ।।
विश्व विजय कर के आया था, शीश झुकाया भारत ने।
पोरस के साहस के आगे, सिकंदर महान न था।। -
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
पाँच सितंबर है जन्मदिवस, पंडित राधाकृष्णन का।
भारत के उपराष्ट्रपति प्रथम, सुमन महकता आँगन का।।
काज किया शिक्षक का पहले, सम्मान करें वे गुरु का।
जन्मदिवस निज किया समर्पित, श्रद्धा आदर हो गुरु का।
अच्छाई गुरु फैलाते ज्यों, वृक्ष महकता चंदन का ।।
पाँच सितंबर है जन्मदिवस, पंडित राधाकृष्णन का।।
आधारशिला होते जग के, राह सही गुरु दिखलाते।
कच्ची मिट्टी बालक का मन, मूरत अच्छी गढ़ जाते।
दिवस आज का है मनभावन, गुरु वंदन अभिनंदन का।।
पाँच सितंबर है जन्मदिवस, पंडित राधाकृष्णन का ।।
दीपक जैसे जलकर शिक्षक, जग को रोशन हैं करते।
विद्या के उज्ज्वल प्रकाश से, अज्ञानता तमस हरते।
पारस पत्थर बन लोहे को, रूप दिलाते कुंदन का ।।
पाँच सितंबर है जन्मदिवस, पंडित राधाकृष्णन का।। - - डॉ. ओम डहरिया , सहा. जनसंपर्क अधिकारीरायपुर। देश की आजादी के बाद यह पहला अवसर है जब किसी सरकार ने जनजातीय समाज के जीवन स्तर को उपर उठाने के लिए देशव्यापी अभियान छेड़ा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय समाज के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार जैसे मूलभुत सुविधाओं से जोड़ने और इनका लाभ दिलाने के लिए आदि कर्मयोगी अभियान की शुरूआत की है। यह अभियान देशभर के 30 राज्यों में संचालित किया जा रहा है। यह अभियान देश भर के 550 से ज्यादा जिलों और 1 लाख से अधिक आदिवासी बहुल गांवों में बदलाव के लिए काम करेगी।बता दें कि जब भारत 2047 में अपनी आज़ादी के 100 वर्ष पूरा करेगा। उस समय तक विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए यह जरूरी है कि समाज का कोई भी वर्ग पीछे न छूटे। आदिवासी समाज को आगे बढ़ाए बिना यह सपना अधूरा रहेगा। आदि कर्मयोगी अभियान इस अंतर को भरने के लिए एक ठोस कदम है। यह अभियान शासन और समाज के बीच की दूरी को कम करेगा, पारदर्शिता लाएगा और योजनाओं को ज़मीनी स्तर तक पहुँचाएगा।मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने इस अभियान को सेवा पर्व का रूप दिया है। उनका कहना है कि यह केवल योजनाओं की जानकारी देने का प्रयास नहीं, बल्कि समाज और शासन को जोड़ने वाला पुल है। छत्तीसगढ़ में इस अभियान के लिए वृहद स्तर पर आदिकर्म योगियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ये कर्मयोगी जनजातीय परिवारों से घर-घर संपर्क कर उनकी आवश्यकताओं और जरूरतों को समझेंगे तथा केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करेंगे, राज्य और जिला स्तर पर इसकी मॉनिटरिंग की जाएगी। राज्य सरकार के सभी विभागों के अधिकारी इस कार्य में संवेदनशीलता के साथ सीधे जुड़ेंगे।आदिकर्मयोगी अभियान का महत्व राष्ट्रीय स्तर पर इसलिए भी है क्योंकि भारत की जनजातीय आबादी लगभग 10 करोड़ से अधिक है। इतने बड़े समुदाय को मुख्यधारा में लाए बिना 2047 तक विकसित भारत का सपना अधूरा रहेगा। यह अभियान प्रधानमंत्री की उस सोच से जुड़ा है, जिसमें हर क्षेत्र, हर समाज और हर नागरिक को विकसित भारत” की यात्रा में समान अवसर देना है। भारत का विकास केवल शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों तक सीमित नहीं रह सकता। एक सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र वही कहलाएगा, जहाँ समाज के हर तबके को समान अवसर मिले और उसकी संस्कृति को उचित सम्मान दिया जाए। इसी सोच को मूर्त रूप ‘आदि कर्मयोगी अभियान’ के जरिए दिया जा रहा है। यह वस्तुतः जनजातीय समाज को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल है।छत्तीसगढ़ देश का वह राज्य है जहाँ सर्वाधिक जनजातीय जनसंख्या निवास करती है। इसीलिए इस अभियान का यहां विशेष महत्व है। आदिवासी समाज की असली चुनौती यही रही है कि अनेक योजनाएँ होते हुए भी उनकी जानकारी और लाभ ज़रूरतमंदों तक समय पर नहीं पहुँच पाते। ऐसे में लाखों कर्मयोगी स्वयंसेवक योजना और समाज के बीच सेतु बन सकेंगे। यह अभियान राज्य के 28 जिलों और 138 विकासखंडों के 6 हजार 650 गांवों में 1 लाख 33 हजार से अधिक वालंटियर्स तैयार करने का लक्ष्य रखा है। छत्तीसगढ़ में यह अभियान 17 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक पूरे राज्य में ग्राम पंचायत स्तर पर सेवा पखवाड़ा के रूप में मनाया जाएगा।आदिम जाति कल्याण मंत्री श्री राम विचार नेताम में अधिकारियों को पंचायतों में आदि सेवा केंद्र स्थापित करने और जनजातीय परिवारों को पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, छात्रवृत्ति, रोजगार, कौशल विकास जैसी सुविधाओं के लिए मार्गदर्शन और योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा है कि इस अभियान को सेवा पर्व के रूप में मनाया जाए और जनजातीय योजनाओं को घर-घर तक पहुँचाने का ठोस प्रयास किया जाए।आदि कर्मयोगी अभियान के पीछे एक गहरी सामाजिक सोच है। जब कोई स्थानीय युवा, महिला या स्वयंसेवक अपने ही गाँव में जाकर योजनाओं की जानकारी देता है, तो लोग उस पर भरोसा करते हैं और यह विश्वास ही बदलाव की असली ताकत है। अभियान का असर शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर आजीविका तक हर क्षेत्र में दिखेगा। जब एक वालंटियर किसी परिवार को यह बताता है कि उनकी बेटी को छात्रवृत्ति मिल सकती है, या बुजुर्ग को पेंशन का हक़ है, तो यह केवल सूचना नहीं होती, बल्कि उस परिवार की ज़िंदगी बदलने वाला अवसर होता है।
- आलेख- हरदीप एस. पुरी, केन्द्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रीभारतीय सभ्यता में अरसे से यह मान्यता रही है कि कामयाबीसे पहले परीक्षा होती है। समुद्र मंथन, जहां मथने की प्रकिया से अमृत निकला था,इसी तरह हमारे आर्थिक मंथन ने भी हमेशा ही नवीनता का मार्ग प्रशस्त किया है। वर्ष1991के संकट से जहां उदारीकरण का जन्म हुआ; वहीं महामारी से डिजिटल उपयोग तेज हुआ।और आज, भारत को एक “मृत अर्थव्यवस्था” कहने वाले संशयवादियों के शोर-शराबे के बीच-तीव्र विकास, मजबूत बफर, और व्यापक अवसर - की एक तथ्यपरक कहानी उभर कर सामने आई है।जीडीपी के ताजा आंकड़ों पर जरागौर करें। वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी 7.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी। यह वृद्धि दरपिछली पांच तिमाहियों में सबसे अधिक है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वृद्धि व्यापक है: सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) 7.6 प्रतिशत बढ़ा है, जिसमें मैन्यूफैक्चरिंग 7.7 प्रतिशत, निर्माण 7.6 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र लगभग 9.3 प्रतिशतबढ़ा है। नॉमिनल जीडीपी में 8.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह कोईमनमाने तरीके से बताई गई तेजी नहीं है।यह बढ़ते उपभोग, मजबूत निवेश और निरंतरसार्वजनिक पूंजीगत व्यय वपूरी अर्थव्यवस्था में लागत कम करने वाले लॉजिस्टिक्स संबंधी सुधारों से हासिल नतीजोंका सबूत है।भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी और सबसे तेज गति से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है। यह तेजी के मामले में दुनिया की पहली और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं क्रमशःअमेरिका और चीनसे भी आगे निकल गई है। वर्तमान गति से, हम इस दशक के अंत तक जर्मनी को पीछे छोड़कर बाजार-विनिमय के संदर्भ में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर हैं। हमारी गति वैश्विक स्तर पर मायने रखती है।स्वतंत्र अनुमान बताते हैं कि भारत पहले से ही वैश्विक वृद्धि में 15 प्रतिशत से अधिक का योगदान दे रहा है। प्रधानमंत्री ने एक स्पष्ट लक्ष्यरखा है —सुधारों के मजबूत होने और नई क्षमताओं के सामने आने के साथ-साथ वैश्विक वृद्धि में हमारी हिस्सेदारी बढ़कर 20 प्रतिशत तक पहुंचे।विभिन्न बाजारों और रेटिंग एजेंसियों ने हमारे इस अनुशासन को मान्यता दी है। एसएंडपी ग्लोबल ने मजबूत विकास, मौद्रिक विश्वसनीयता और राजकोषीय सुदृढ़ीकरण का हवाला देते हुए, 18 वर्षों में पहली बार भारत की ‘सॉवरेन रेटिंग’ को उन्नत किया है। इस अपग्रेड से उधार लेने की लागत कम होती है और निवेशक आधार का विस्तार होता है। यह “मृत अर्थव्यवस्था” की धारणा को भी झुठलाता है। जोखिम के स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ताओं ने अपनी रेटिंग के साथ अपना मत दिया है।उतना ही महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि आखिर इस सबका लाभ किसे मिला है। वर्ष 2013-14 और 2022-23 के बीच, 24.82 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबीसे बाहर निकल आए हैं। यह बदलाव उन बुनियादी सेवाओं - बैंक खाते, रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन, स्वास्थ्य बीमा, नल का जलऔर प्रत्यक्ष हस्तांतरण - की बड़े पैमाने पर आपूर्ति पर निर्भर है जो गरीबों को विकल्प चुनने का अधिकार देता है। दुनिया के सबसे जीवंत लोकतंत्र और उल्लेखनीय जनसांख्यिकीय चुनौतियों के बीच विकास का यह पैमाना बेहद खास है। विकास का भारत का यह मॉडल आम सहमति के निर्माण, प्रतिस्पर्धी संघवाद और डिजिटल माध्यमों के उपयोग से अंतिम छोर तक सेवा प्रदान करने को महत्व देता है। यह घोषणा के मामले में धीमा,क्रियान्वयन के मामले में तेज और निर्माण की दृष्टि से टिकाऊ है। जब आलोचक हमारी तुलना तेज भागने वाले सत्तावादियों से करते हैं, तो वे इस तथ्य को नजरअंदाज कर देते हैं किहम मैराथन धावक की तर्ज पर लंबी दूरी तय करने वाली एक अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहे हैं।भारत के पेट्रोलियम मंत्री के रूप में, मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि हमारी ऊर्जा सुरक्षा इस तीव्र विकास में किस प्रकार सहायक की भूमिका निभा रहीहै। आज, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता, चौथा सबसे बड़ा तेलशोधक (रिफाइनर) और एलएनजी का चौथा सबसे बड़ा आयातक है। हमारी तेलशोधन (रिफाइनिंग) क्षमता 5.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन से अधिक हैऔर इस दशक के अंत तक इसे 400 मिलियनटन प्रति वर्ष (एमटीपीए) से आगे बढ़ाने का एक स्पष्ट रोडमैप हमारे पास उपलब्ध है।भारत की ऊर्जा संबंधी मांग - जो 2047 तक दोगुनी होने का अनुमान है - बढ़ती वैश्विक मांग का लगभग एक-चौथाई हिस्सा होगी, जिससे हमारी सफलता वैश्विक ऊर्जा स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण बन जाएगी। सरकार का दृष्टिकोण सुरक्षा को सुधार के साथ जोड़ने का रहा है। तेल की खोज का क्षेत्र 2021 में तलछटी घाटियों के 8 प्रतिशत से बढ़कर 2025 में 16 प्रतिशत से अधिक हो गया है। हमारालक्ष्य2030 तक इसे बढ़ाकर 10 लाख वर्ग किलोमीटर करना है। तथाकथित ‘निषिद्ध’ (नो-गो)क्षेत्रों में 99 प्रतिशत की भारी कमी ने अपार संभावनाओं को जन्म दिया है, जबकि ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (ओएएलपी)पारदर्शी वप्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया सुनिश्चित करती है। गैस मूल्य निर्धारण से संबंधी नए सुधारों - जिनमें कीमतों को भारतीय कच्चे तेल की टोकरी से जोड़ा गया है और गहरे पानी एवं नए कुओं के लिए 20 प्रतिशत प्रीमियम की पेशकश की गई है - ने निवेश को बढ़ावा दिया है।हमारी ऊर्जा की कहानी सिर्फ हाइड्रोकार्बन की ही नहीं,बल्कि बदलाव की भी कहानी है। वर्ष 2014 में इथेनॉल मिश्रण 1.5 प्रतिशत से बढ़कर आज 1.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा की बचत के बराबर हो गईहै और किसानों को सीधे एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान हुआ है। सतत के तहत 300 से ज़्यादा संपीड़ित बायोगैस संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं, जिनका लक्ष्य 2028 तक 5 प्रतिशत मिश्रण का है और तेल से जुड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद को लेकर कुछ जगहों में काफी शोरगुलहुआ है। आइए तथ्यों को इस शोरशराबे से अलग करके देखें। रूस की तेल पर ईरान या वेनेज़ुएला के कच्चे तेल की तरह कभी प्रतिबंध नहीं लगाया गया।यह जी7/ईयूमूल्य-सीमा प्रणाली के अंतर्गत है जिसे जानबूझकर राजस्व को सीमित रखते हुए तेल प्रवाह को बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है। ऐसे पैकेजों के 18 दौर हो चुके हैंऔर भारत ने हरेक दौर का पालन किया है। प्रत्येक लेनदेन में कानूनी लदान(शिपिंग)एवं बीमा, अनुपालन करने वाले व्यापारियों और लेखा-परीक्षण (ऑडिट) किए गए चैनलों का उपयोग किया गया है। हमने कोई नियम नहीं तोड़े हैं।हमने बाजारों को स्थिर किया है और वैश्विक कीमतों को बढ़ने से रोका है।कुछ आलोचकों का आरोप है कि भारत रूस के तेल के लिए एक “लौंड्रोमैट” बन गया है। इससे अधिक निराधार बात और कुछ नहीं हो सकती। भारत इस संघर्ष से काफी पहले दशकों से पेट्रोलियम उत्पादों का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक रहा है और हमारे रिफाइनर विश्व भर से इस प्रकार के क्रूड का एक समूह बनाते हैं।निर्यात आपूर्ति श्रृंखलाओं को सक्रिय रखता है। वास्तव में, रूस के कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगाने के बाद यूरोप ने भी भारतीय ईंधनों की ओर रुख किया। निर्यात की मात्रा और रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) मोटे तौर पर समान ही हैं।मुनाफे लेने का इसमें का कोई सवाल ही नहीं है।यह तथ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि भारत ने यूक्रेन संघर्ष के बाद वैश्विक कीमतों में उछाल आने पर अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए निर्णायक रूप से कदम उठाए। तेल से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) ने डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर तक के नुकसान को सहन किया।सरकार ने केन्द्रीय और राज्य के करों में कटौती कीऔर निर्यात से जुड़े नियमों ने यह अनिवार्य किया कि विदेशों में पेट्रोल और डीजल बेचने वाले रिफाइनर को घरेलू बाजार में कम से कम 50 प्रतिशत पेट्रोल और 30 प्रतिशतडीजल बेचना होगा।इन उपायों ने, काफी राजकोषीय लागत पर, यह सुनिश्चित किया कि एक भी खुदरा दुकान खाली न रहे और परिणामस्वरूप भारतीय घरों के लिए कीमतेंस्थिररहीं। बड़ा सच यह है किवैश्विक तेल का लगभग 10 प्रातशत आपूर्ति करने वाले दुनिया के इस दूसरे सबसे बड़े उत्पादक का कोई विकल्प ही नहीं है। जो लोग उंगली उठा रहे हैं, वे इस तथ्य की अनदेखी करते हैं।वसुधैव कुटुम्बकम के अपने सभ्यतागत मूल्यों के अनुरूपभारत द्वारा सभी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करने से 200 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के विनाशकारी झटके को रोका गया।यह वही 'मेड इन इंडिया' है जो विश्व दृष्टिकोण के लिए भारत में आकार ले रही नई औद्योगिक क्रांति को आकार देता है। इस औद्योगिक क्रांति में सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा और विशेष रसायन शामिल हैं - जो उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों (पीएलआई)और पीएम गतिशक्ति लॉजिस्टिक्स के सहारे संचालित हैं। सेमीकंडक्टर के उत्पादन में तेजी अब एक नए स्तर पर पहुंच रही है - जो नीतिगत गंभीरता और क्रियान्वयन का प्रमाण है। मंत्रिमंडल ने हाल ही में भारत सेमीकंडक्टर मिशन के तहत चार अतिरिक्त सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग परियोजनाओं को मंजूरी दी हैऔर प्रधानमंत्री का जापान में एक सेमीकंडक्टर उत्पादन केन्द्र का हालिया दौराऔर जापान की निवेश संबंधी नवीनीकृत प्रतिबद्धताएं एक सुदृढ़ एवं विश्वसनीय तकनीकी आपूर्ति श्रृंखलाओं से संबंधित एक साझा रोडमैप को रेखांकित करती हैं।डिजिटल अर्थव्यवस्था इन लाभों को कई गुना बढ़ा देती है। भारत वास्तविक समय में भुगतान के मामले में दुनिया भर में अग्रणी है। यूपीआई की सर्वव्यापकता छोटे व्यवसायों की उत्पादकता बढ़ाती हैऔर हमारा स्टार्टअप इकोसिस्टम नवाचार को सेवाओं एवं समाधानों के निर्यात में बदल रहा है। जब डिजिटल तेजीवास्तविक बुनियादी ढांचे के साथ मिलती है, तो प्रभाव बढ़ता है और परिणाम स्वरूप कम टकराव, सुव्यवस्थितऔर निवेश एवं उपभोग का एक बेहतर चक्र सुनिश्चित होता है।आगे का रास्ता आशाजनक है। स्वतंत्र अनुमानों (ईवाई) के अनुसार, 2038 तक भारत पीपीपी के आधार पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद 34 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होगा। यह प्रगति सतत सुधारों, मानव पूंजी और प्रत्येक उद्यम व परिवार के लिए प्रचुर, स्वच्छ एवं विश्वसनीय ऊर्जा पर निर्भर है।एक महान सभ्यता की परीक्षा उसके कठिन क्षणों में होती है। अतीत में जब भी भारत की क्षमता पर संदेह किया गया, इस देश ने हरित क्रांतियों, आईटी क्रांतियों और शिक्षा व उद्यम के जरिए लाखों लोगों के गौरवपूर्ण उत्थान के साथ उसका जवाब दिया। आज का समय भी इससे कुछ अलग नहीं है। हम अपने दृष्टिकोण पर टिके रहेंगे, अपने सुधारों को निरंतर जारी रखेंगेऔर अपने विकास को तीव्र, लोकतांत्रिक एवं समावेशी बनाए रखेंगेताकि लाभ सबसे वंचित लोगों तक पहुंच सके। आलोचकों के लिए, हमारी उपलब्धियां ही हमाराजवाबहोंगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, विकसित भारत महज एक आकांक्षा ही नहीं, बल्कि उपलब्धि का एक सार हैऔर विकास के ये आंकड़े उस व्यापक कहानी का ताजा अध्याय मात्र हैं।
- छत्तीसगढ़ी कहानी-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)सावित्री हर होत बिहनिया उठ के अंगना कुरिया मनला बहार डारिस अउ नहा धो के ओनहा मन ला तको फटकार के छत मा सुखो के आगे । कंघी करत करत कुरिया डाहर झाँकिस ,अभी दुनो लइका निंदिया रानी के कोरा मा मस्त माते रिहिन। नोनी रानी हर बारह बछर के रहिस अउ नानचुन बाबू ल ए साल नौ बछर हो जाही। ओखर गोंसइया सरवन हर घलो खटिया म करवट बदलत सुते रिहिस । आज ऊंखर छुट्टी ए त जम्मो झन अराम ले उठहीं, फेर महतारी मन के का छुट्टी अउ का डिप्टी। सबो दिन एक बरोबर लागथे, स्कूल,आफिस के छुट्टी रहिथे पेट ल तो सबो दिन भोजन चाही । हाँ फेर टाइम म करे के ओतेक हड़बड़ी नइ राहय, सावित्री ल ओखर गोंसइया हर देरी ले उठे बर कहिथे फेर सालों के आदत परे कइसे छूटही । नींद ह अपन टाइम म खुलेच जाथे।सावित्री हर सोझे नामे के सावित्री नोहय। अपन सत ले सत्यवान के परान यमराज ले मांग के लवइया सावित्री ले ओखर पत हर कोनो जिनिस म कमती नोहय । ओहर अपन गोसइया ले अबड़ मया करय, हारी बीमारी म बिकट सेवा करय । सास ससुर, घर परिवार के बड़ तोरा जतन करय तेखर पाय के जम्मो नता रिश्तेदार ओला बड़ मया करयँ । फेर कोनो के जिनगी हर पूरा नइ राहय , कोनो ल तन के दुख त कोनो ल मन के । सबके जिनगी म एकाध ठन कमी रहि जाथे। ज इसे गोड़ के पनही ल मुड़ म नइ पहिर सकयँ वइसनहेसरवन हर कतनो मया दय मइके के पूर्ति नइ कर सकय। छत्तीसगढ़ के बहिनी महतारी मन बर भादो के महीना हर खुशहाली लेके आथे काबर कि भादो के तृतीया म हरितालिका तीजा के तिहार आथे। एमा मइके ले बाप भाई मन ब्याहता बहिनी, फूफू ल लेहे बर जाथें । उमन मइके म निराहार बिना अन्न जल के उपास रहिथें अउ शंकर पार्वती के पूजा कर के अपन सुहाग ल अमर बनाय बर प्रार्थना करथें। दूसर दिन चौथ के भिनसरहे नहा धो पूजा पाठ करके मइके के नवा लुगरा पहिर के फरहार करथें। कका,बड़ा नाते रिश्तेदार घर तको फरहार करे के नेवता आथे। सबो बहिनी , फूफू संगे संग खाये पिये जाथें, बचपन के गोठ करथें, संगी जहुँरिया के सुरता करथें। अपन अतीत ल फेर जीथें। आजकल के भाई भौजी मन ए मरम ल नइ जानै , नेंग जोग ल फोकट के खर्चा कहिके बोझा मानथें। हजारों रूपिया गहना कपड़ा बर फूँक दिहीं फेर बहिनी ल देत खानी ऊँखर हाथ नइ खुलय । फेर ए घर बर तीजा हर त बिक्कट दुख के कारन बन जाथे।सावित्री अउ सरवन नानपन के संगी एके पारा म रहँय। एके स्कूल म संगे संग पढ़ें जाँय । दुनो परिवार म आना जाना घलो रिहिस। नान्हे पन के दोस्ती हर कब मया के रूप धर लीसा कोनो गम ना पाइन । ऊंखर संगी जहुंरिया मन तको नइ जानिंन दुनों झन के अंतस म का चुरत हे। सरवन के नौकरी लगे के बाद जब दुनों झन के घर मा बिहाव के गोठ बात होय लागिस तब ऊमन अपन घर म मया अउ बिहाव के गोठ ल गोठियाइन। आगबबूला होगे सावित्री के बाबूजी –” अइसनहा गोठियाय के तैं हिम्मत कइसे करे ? हमन मालगुजार अउ ओ बिसउहा हमर नौकर । ओहर मोर समधी बनही, मर जहूँ फेर ए गजब तमाशा नइ होन दंव “। बाबूजी हर अपन जिद म अड़े रिहिस , जात-पात के सुरसा हर सरवन-सावित्री के मया ल खाय बर मुँह फार दे रिहिस । सरवन अउ सावित्री बालिग होगे रिहिन भाग के बिहाव कर लिन। बाबूजी हर त भरे समाज म कहि दिस “आज ले मर गे सावित्री मोर बर “। बाप बर बहुतसरल रहिथे ए कहना , काबर के ओहर नौ महीना ओला अपन कोख म नइ धरे रहय । माँ हर बपरी अब्बड़ कलप-कलप रोइस –” मोर एक ठिन मयारू बेटी , चार भाई के बाद आय रिहिस । सबके जोरा करइया, एक ठिन गलती करिस तो ओखर सब गुण ल भुला देव । कतेक सउँख रिहिस बेटी के सुग्घर बिहाव करतेंव , बपरी ल अकेल्ला छोड़ दिस । सगा समाज बेटी के खुशी ले बड़े होगे । कोन आही सेवा करे,अपनेच खून काम आही । हाय रे ,मोर दुलउरीन बेटी ।”गौंटिया बाड़ा ले कपड़ा लत्ता अउ दिगर जरुरत के समान लेहे बर नौकर-चाकर रायपुर आत-जात रहँय। महतारी के मन नइ मानय, बेटी बर घर के दूध-दही ,साग भाजी , कपड़ा लत्ता कुछु कांही एक झन विश्वास पात्र जून्ना नौकर तिर भेजत राहय। ए गोठ ल सावित्री के बाबू ल कोनो दुश्मन बता दिस तो ओहर बिक्कट चिल्लाईस– “ तोला बड़ मया हे बेटी के त जा घर छोड़ के , उहें रहिबे “।अतेक बछर होगे बिहा के आये ए घर मा । सास-ससुर, ननद,देवर , लइका बाला सबके तोरा ल करेंव। फेर मोर कोनो मान नइहे। सब निर्णय खुदेच लेथें ,कभू मोर अंतस के पीरा ल नि समझिन। बेटी हर बनेच करिस,अइसन जीवन साथी खोजिस जउन ओखर मन ल समझिस, जउन जिंदगी भर ओखर कदर करही , मया करही । सावित्री के माँ हर बड़बड़ा के रहिगे।रिश्ता के मरजाद रखे बर कतनो महतारी अपन मन ल मार के रहि जाथें। सावित्री के माँ हर कइसनहो करके तीजा आय त बेटी बर लुगरा खच्चित भेजवातिस। साल भर मन ल मार के रहि जाय फेर तीजा म मन नइ मानय। दू बछर होगे बाप के कलेजा न इ पिघलिस। माँ हर जब ले सुने रिहिस सावित्री सरवन के घर बेटी आय हे , ओखर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस । नतनीन ल देखे के सउँख हर ओला अतेक हिम्मत दिस के ए तीजा म ओहर बेटी के घर जाय के मन बना लिस। घर म गोठियाय ले कोनो चिटपोट नइ करिन। भाई मन तको लुका-लुका बहिनी ल भेंटें जांय फेर बाप के आघू म बोले के कोनो हिम्मत ना करँय। मां हर सावित्री तिर अपन जाय के गोठ कहिस त सावित्री के बाबू जी हर धमकाइस -” तैं उहाँ जाबे त मोर मरे मुख देखबे। “ कोन जानी गौंटनिन के मन म का रिहिस। तीजा के लुगरा लेहे बर जाथंव कहिके रायपुर जाय बर निकलिस । सोलह श्रृंगार करके मन भर के समान बेटी दमाद, नतनिन बर बिसाइस अउ बेटी के घर गिस। कतेक बछर के बाँधे मया आँसू के धार बन के बोहाय लागिस। मन भर दुनो झन दुख सुख गोठियाइन। बेटी ल खुश देख के दाई के जी जुड़ा गे । लहुटती खानी रद्दा के बड़े तरिया तिर गाड़ी ल रुकवाइस । नौकर मन ल थिराय बर कहिके एती ओती पठो दिस। फेर चुप्पे तरिया म उतर के जल समाधि ले लिस । गाँव भर गोहार परगे। सावित्री के बाबू हर ओखर लहाश ल देख के मूर्छा खाके गिर गे। होश आवय तो छाती पीट-पीट रोवय पछतावय । “ काबर अतेक बड़ कदम उठाए ,मैं मूरख अपन रुतबा, रुपिया पइसा अउ उच्च जात के घमंड म अपन घर के सत्यानाश कर डारेंव। तैं ए उमर ममोला अकेल्ला छोड़ के कइसे चल दे । तैं कहिते त अपन अहंकार ल छोड़ के महूं तोर संग सावित्री घर चल देतेंव..।” जम्मो झन इही गोठियात रिहिन अब का फायदा पछताय के ओखर प्रान के चिरैया हर त उड़ागे।सावित्री के तो जइसे जान निकलगे,बड़ मुश्किल से सरवन हर ओला सँभालिस , लइका के मुँह ल देख के सँभलगे नइते उहू पगला जाय रहितिस । सावित्री के माँ के जाय ले कई बेर ओखर बाबूजी हर ओला देवाय भेजिस फेर सावित्री नइ गिस । ओखर नाती नतनिन ले ओला दूरिहा नइ करिस । उमन ममाघर आथे जाथें, ममा मामी घलो आथें। हर बछर तीजा म लुगरा आथे फेर सावित्री ओला छुवय नहीं। एकेच ठन लुगरा ल पहिर के तीजा के दिन फरहार करथे जेला देहे बर ओखर माँ हर अपन जान दे दिस । तीजा के ओ लुगरा म सावित्री हर अपन माँ ले भेंट करथे साल म एक घं । महतारी के ममता भरे छुअन, मया अउ दुलार भरगे हे ओ लुगरा मा, ओखर प्रान समा गये हे ओ तीजा के लुगरा मा ।
- -लेखक- हरदीप एस पुरी, केन्द्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रीमुझे अपने स्कूल के दिनों से ही 15 अगस्त के भाषणों में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त होता रहा है, लेकिन शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी का 12वें स्वतंत्रता दिवस का भाषण अभूतपूर्व और असाधारण था। इसमें विकसित भारत के पथ पर भारत की गति बढ़ाने के दिशा में सीधे तौर पर लक्षित–ब्रह्मास्त्र- अर्जुन का अकाट्य पौराणिक अस्त्रे - छोड़ा गया।वैश्विक अर्थव्यवस्था में व्या्प्त असामान्यअ उथल-पुथल के दौर के बीच, विकसित भारत का सपना संजोए भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में निरंतर आगे बढ़ना जारी रखे हुए है। यह भाषण केवल अपनी व्यापकता के लिए ही नहीं, बल्कि अपने दायरे— साहसिक, भविष्योन्मुखी और 1.4 बिलियन लोगों के भाग्य को नया आकार देने में सक्षम अगली पीढ़ी के सुधारों —और उस विजन के प्रति स्पष्टता के लिए भी उल्लेखनीय है, जिसका यह राष्ट्र इससे पहले कभी साक्षी नहीं रहा।उदाहरण के लिए, डिजिटल इंडिया स्टैक को ही लें, यूपीआई दुनिया के आधे रीयल-टाइम लेनदेन के लिए उत्तिरदायी है और साल के अंत तक होने वाला, पहली मेड-इन-इंडिया चिप का लॉन्च , वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारत की अग्रणी स्थिति को दर्शाता है। ऐसे समय में जब राष्ट्रों की नियति सेमीकंडक्टर निर्धारित करते हैं, महत्वपूर्ण तकनीकों पर संप्रभुता का भारत का यह दावा किसी डिजिटल स्वराज से कम नहीं है।ऊर्जा सुरक्षा लंबे समय से भारत के विकास की राह की सबसे बड़ी कमज़ोरी रही है। दशकों तक, झिझक और “नो गो” क्षेत्रों ने अन्वेषण को बाधित किया और आयात पर निर्भरता बढ़ा दी। वह दौर अब बीत चुका है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, भारत ने ईईजेड में “नो गो” क्षेत्रों को लगभग 99% तक कम कर दिया है, जिससे 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ईएंडपी के लिए मुक्त हो गया है। ओएएलपी के साथ, इसने भारतीय और वैश्विक दिग्गजों, दोनों के लिए समान रूप से एक विशाल क्षेत्र खोल दिया है—हमारे हाइड्रोकार्बन बेसिन अब निष्क्रिय नहीं रहेंगे, बल्कि राष्ट्रीय प्रगति के लिए उपयोग में लाए जाएँगे।लाल किले की प्राचीर से घोषित ऐतिहासिक राष्ट्रीय गहरे जल अन्वेषण मिशन, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में एक महत्वाकांक्षी दूरदर्शी एजेंडा निर्धारित करता है। इस मिशन का लक्ष्य लगभग 40 वाइल्डकैट कुओं की ड्रिलिंग के माध्यम से 600-1200 मिलियन मीट्रिक टन तेल और गैस भंडारों का पता लगाना है। पहली बार, बंगाल की खाड़ी से लेकर अरब सागर तक भारत अपनी जटिल अपतटीय सीमाओं को व्यवस्थित रूप से खोलेगा, एक ऐसे ढाँचे के साथ जो सूखे कुओं की स्थिति में 80 प्रतिशत तक और व्यावसायिक खोज पर 40 प्रतिशत तक लागत की वसूली की अनुमति देकर निवेश के जोखिम को कम करता है।यह पहल एक व्यापक योजना का हिस्सा है, जिसके तहत 2032 तक घरेलू तेल और गैस उत्पादन को तिगुना बढ़ाकर 85 मिलियन टन और राष्ट्रीय भंडार को दोगुना करके एक से दो बिलियन टन के बीच किया जा सकता है। लगभग 8 मिलियन टन उत्पादन के बराबर, अतिरिक्त 100-250 बिलियन क्यूिबिक मीटर गैस उपलब्ध कराने के लिए प्लग-एंड-प्ले आधार पर अपतटीय साझा बुनियादी ढाँचा बनाया जाएगा। ये सभी उपाय न केवल पहले से अटकी हुई खोजों का मुद्रीकरण करेंगे, बल्कि एक आत्मनिर्भर ईएंडपी इकोसिस्टटम का निर्माण भी करेंगे, जहाँ स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं की हिस्सेदारी आज के 25-30 प्रतिशत से बढ़कर 70 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी। यह आज़ादी के बाद से भारत का सबसे व्यापक अपस्ट्रीम सुधार है।साथ ही, ऊर्जा परिवर्तन के क्षेत्र में भारत वैश्विक स्तमर पर अग्रणी बनकर उभरा है। भारत 2030 के लक्ष्य से पाँच साल पहले ही 2025 तक 50% स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य तक पहुँच गया है। जैव ईंधन और हरित हाइड्रोजन प्रायोगिक स्तर से उत्पादन की ओर बढ़ रहे हैं; इथेनॉल मिश्रण और सीबीजी स्केल-अप एक नए ग्रामीण-औद्योगिक आधार का निर्माण कर रहे हैं; एलएनजी के बुनियादी ढाँचे का विस्तार जारी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि असैन्य परमाणु ऊर्जा को निजी भागीदारी के लिए खोल दिया गया है। वर्तमान में, 10 नए परमाणु रिएक्टर चालू हैं, और भारत का लक्ष्य अपनी स्वतंत्रता के 100वें वर्ष तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को दस गुना बढ़ाना है। यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य 2047 तक ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने की भव्य योजना का हिस्सा है।प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन की घोषणा हमारी औद्योगिक रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। ऐसे समय में जब दुनिया लिथियम, दुर्लभ मृदा तत्व , निकल और कोबाल्ट के सामरिक महत्व को पहचान रही है, भारत ने 1,200 से अधिक स्थलों पर अन्वेषण शुरू किया है और साझेदारी, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण का ढाँचा तैयार कर रहा है ताकि नवीकरणीय ऊर्जा, सेमीकंडक्टर, ईवी और उन्नत रक्षा क्षेत्र कभी भी बाहरी अवरोधों के अधीन न रहें।राष्ट्रीय सुरक्षा लाल किला चार्टर का एक अन्य, स्तंभ था। ऑपरेशन सिंदूर ने परमाणु ब्लैकमेल के युग का अंत करते हुए वास्तविक समय में भारत की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया और यह संदेश दिया कि आक्रमण का जवाब तेज़ी और कुशलता से दिया जाएगा। सिंधु जल संधि को स्थेगित करना संप्रभुता का साहसिक दावा है। सबसे बढ़कर, मिशन सुदर्शन चक्र का अनावरण, युद्धभूमि में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन की रक्षा से प्रेरित है, जो मोदी की शैली— सभ्यतागत प्रतीकवाद के अत्याधुनिक तकनीक से मेल का प्रतीक है।एक बहुस्तरीय स्वदेशी सुरक्षा कवच भारत के महत्वपूर्ण संस्थानों की साइबर, भौतिक और हाइब्रिड खतरों से रक्षा करेगा। प्रधानमंत्री ने हमारे लड़ाकू विमानों को शक्ति प्रदान करने वाले इंजनों के डिज़ाइन और निर्माण के लिए एक राष्ट्रीय चुनौती जारी की है, और वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और संस्थानों से संयोजन या असेंबली से ऑथरशिप तक की छलांग लगाने का आह्वान किया है।प्रधानमंत्री ने कठोर सत्यों से भी परहेज नहीं किया। उन्होंने उद्योग जगत और किसानों से आत्मनिर्भरता अपनाने और उर्वरकों का संतुलित उपयोग करने का आग्रह किया। हालाँकि भारत दुनिया की फार्मेसी है, जो वैश्विक टीकों का 60% का उत्पादन करता है, अब इसे नई दवाओं, टीकों और उपकरणों के क्षेत्र में भी अग्रणी बनने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। यह बायोई3 नीति के तहत बायोफार्मा को निर्णायक बल देने के साथ-साथ है, जहाँ हमारी महत्वाकांक्षा ऐसी दवाओं का पेटेंट और उत्पादन करना है जो किफायती और विश्वस्तरीय दोनों हों।घोषित किए गए कर और कानूनी सुधार भी उतने ही साहसिक हैं। महत्वसपूर्ण बात यह है कि 1961 का आयकर अधिनियम, जो स्वयं उस युग का अवशेष है, अब बदला जा रहा है। नया आयकर विधेयक जटिलता को कम कर रहा है, 280 अनावश्यक धाराओं को समाप्त कर रहा है और 12 लाख रुपये तक की राहत प्रदान कर रहा है। फेसलेस मूल्यांकन की शुरुआत ने प्रणाली को पारदर्शी, कुशल और भ्रष्टाचार-मुक्त बना दिया है।दिवाली तक लॉन्चल किया जाने वाला अगली पीढ़ी का जीएसटी 2.0, दरों को और अधिक तर्कसंगत बनाएगा और अनुपालन को बढ़ावा देगा। 40,000 से ज़्यादा अनावश्यक अनुपालनों को समाप्त करने, 1,500 से ज़्यादा पुराने कानूनों को निरस्त करने और दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के साथ, यह नेहरू के आर्थिक पिंजरे को तोड़ने जैसा है। ये सुधार केवल बैलेंस शीट में ही नहीं, बल्कि जीवन में भी सुधार लाते हैं। 25 करोड़ से ज़्यादा लाभार्थियों तक पहुँचकर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण - ने कल्याण में जवाबदेही को अंतर्निहित किया है और 25 करोड़ से ज़्यादा भारतीयों को गरीबी से बाहर निकाला है।रोज़गार पर फोकस को भी केंद्र में लाया गया है। पीएम विकसित भारत रोज़गार योजना 1 लाख करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ लॉन्चक की गई है; नए रोज़गार पाने वाले युवाओं को 15,000 रुपये प्रति माह मिलेंगे, नए रोज़गार के अवसरों का सृजन करने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन दिया जाएगा, और इस कार्यक्रम का लक्ष्य लगभग 3.5 करोड़ युवा भारतीयों तक पहुँचना है।महत्वाकांक्षा को वास्तपविकता में बदलने के लिए प्रधानमंत्री ने अगली पीढ़ी के सुधारों के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है—इस निकाय को आर्थिक गतिविधियों के पूरे इकोसिस्टसम को नया रूप देने के लिए बनाया गया है। इसका अधिदेश जितना साहसिक है, उतना ही लंबे अर्से से अपेक्षित भी है: हमारे स्टार्टअप्स और एमएसएमई पर बोझ डालने वाली अनुपालन लागत में कटौती करना, उद्यमों को निरंतर मनमानी कार्रवाई की छाया में रहने से छुटकारा दिलाना, तथा जटिल कानूनों को सरल, पूर्वानुमानित और व्यवस्थित ढांचे में ढालना।15 अगस्त को घोषित सुधार, केवल अगले दिन की सुर्खियों के लिए नहीं, बल्कि 2047 के भारत से संबंधित हैं। जैसा कि प्रधानमंत्री ने हमें याद दिलाया, दुनिया एक प्राचीन सभ्यता को - अपनी जड़ों को त्यागकर नहीं, बल्कि उनसे शक्ति प्राप्त करके आधुनिक शक्ति में तब्दी्ल होते हुए देख रही है।
- -लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)पार्थ लक्ष्य-दिग्भ्रमित खड़ा है , सही राह दिखलाओ ।चक्र सुदर्शन आज उठा फिर , नटवर नागर आओ ।।शीश उठाए भ्रष्ट आचरण , मर्यादा को तोड़े ।झूठ अहं छल के पाहन से, सच की गगरी फोड़े ।कंस दमित करता अपनों को , सत्ता-सुख को पाने ।दैत्य कुचलते हैं सपनों को , निज वर्चस्व बचाने ।जीवन-मूल्य ध्वस्त होते हैं , ज्ञान-मार्ग बतलाओ ।।रास रचाकर वृंदावन में , सबको नाच नचाया ।इंद्र- दर्प का मर्दन करने , पूजन बंद कराया ।गोपी मीरा राधा ने भी , कुछ खोया कुछ पाया ।केवल पाना प्रेम नहीं है , तुमने यह समझाया ।जटिल प्रेम की परिभाषा है , सरल इसे कर जाओ ।।मोह गिराता है महलों को ,खोकर सब कुछ रोते ।स्वार्थी चक्रव्यूह में फँसकर ,अपनों को हैं खोते ।लोभ-लालसा दुर्योधन की ,अब भी जग में पलती ।जरासंध-सी काम-पिपासा , ललनाओं को छलती।शील-हरण करता दुःशासन ,आकर चीर बढ़ाओ ।।राह गलत भी अपनाते हैं , लोग सफलता पाने ।तार-तार रिश्तों के रेशे , कर जाते अनजाने ।क्षणभंगुर है जीवन फिर भी , जाल स्वार्थ का बुनते ।कर्ण , भीष्म , शिशुपाल कई हैं , गलत पक्ष को चुनते ।कर्मफलों में सबका हिस्सा ,बात पुनः समझाओ ।।








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