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- आलेख- अतुल कुमार 'श्रीधर'संसार में बहुत से व्यक्ति ऐसे हैं जिनमें अगाध आत्मविश्वास है। यह आत्मविश्वास उनका स्वयं का बल नहीं होता, अपितु वे किसी शक्ति से जोड़कर अपने विश्वास को बड़े ऊंचे स्तर तक ले जाते हैं। यह भी देखने में आता है कि एक बड़ा वर्ग अपने मन में, कर्म में, जीवन में निरन्तर किसी पीड़ा, किसी अभाव और किसी निराशा को महसूस करता रहता है। इन दोनों प्रकार के जो व्यक्ति हैं, उनकी मानसिकताओं और स्थितियों में एक शक्ति के योग और अयोग की ही बात है।यह शक्ति है आस्था की शक्ति! आस्था जिसे श्रद्धा भी कह सकते हैं। और यह आस्था किस पर हो, यह भी एक आवश्यक और विचारणीय बात है। व्यक्ति की स्वयं की क्षमता कितनी है? यदि आंका जाय तो यकीनन कुछ भी नहीं। व्यक्ति तो इतना असहाय है कि यदि बचपन में माता दूध न पिलावे तो उसका पोषण ही न हो। बचपन से आगे जीवन के हर पड़ाव में बारम्बार व्यक्ति दूसरों पर ही निर्भर रहकर क्रमश: आगे बढ़ता है और अपनी सफलतायें अर्जित करता है। तो यह तो निश्चित बात है कि किसी में स्वयं का अहं भाव तो होना ही नहीं चाहिये, उसे विनीत होना चाहिये क्योंकि वह समस्त जगत का उपकार ग्रहण कर रहा है, चाहे वह इसे जाने अथवा ना जाने। मनुष्य स्वभाव से कृतज्ञ बनकर रहे।इसके आगे एक बात और विचारणीय है कि दूसरे भी किसी सीमा तक ही किसी की मदद कर सकते हैं। संसार में जब तक स्वार्थ सधता है, बस स्वार्थ की इसी सीमा के अनुसार ही व्यवहार होता है। जिसका स्वार्थ न हो, अथवा उससे बिगाड़ की आशंका हो, तो कितने ही करीबी संबंधों में भी हाथ खींच लिये जाते हैं। तो सबकी अपनी-अपनी सीमायें हैं। यह निश्चित है कि मनुष्य यदि यह सोचे कि उसका निर्वाह स्वयं पर अथवा संसार पर ही विश्वास करके हो सकता है, निराशाजनक ही होगा। संसार के साजो-सामान, पद-प्रतिष्ठा, शोहरत भी किसी को आत्मसुख प्रदान नहीं कर सकते हैं। इसलिये मनुष्य को अपने विश्वास को इससे आगे और कहीं ऊँचे स्तर तक ले जाना होगा।यह ऊँचे स्तर का विश्वास एकमात्र भगवान पर ही स्थाई रह सकता है। क्यों? क्योंकि उसे किसी से कोई स्वार्थ नहीं है और सबसे बड़ी बात यह कि वह सबका परमपिता और माता है। वह समस्त आस्थाओं का, विश्वास का आधार है। वह सबकी आत्मा में नित्य विराजमान, चराचर जीव का जीवनदाता, प्रेरक और नित्य संगी है। मुसीबत की बात बस यही है कि हम उसकी मौजूदगी को अपने जीवन में महसूस नहीं कर पाते। जबकि वह हमारे चारों ओर है, अस्तित्व ही उन्हीं से है। वह प्रेम का, करुणा का, कृपा का, दयालुता का और अनंतानंत गुणों की खान हैं, बल्कि वह तो स्वयं ही प्रेम हैं, कृपा हैं, करुणा हैं, दया हैं। उसकी जो भी परिस्थितियां दी हमें दी हुई हैं, वह वस्तुत: हमारे ही कर्मों का परिणाम है। उस पर विश्वास करने से विकट परिस्थितियाँ भी बिना कष्ट के स्वीकार्य हो जाती हैं और नवीन उत्साह के साथ उसके सुधार की ओर गति होती है। ऐसा न हो तो विकट परिस्थितियां घातक भी हो जाती हैं। ईश्वर पर विश्वास करने का यह अर्थ भी है हम उसके विधान पर विश्वास करते हैं।मनुष्य को उन्हीं का आश्रय ग्रहण करना चाहिये। उन्हीं की प्रेरणा का अनुभव करते रहना चाहिये। उनकी प्रेरणा निरन्तर हमारी आत्मा में गूँजती रहती है, बस संसार और हमारी अस्थिरता का शोर इतना अधिक हो जाता है कि वह आवाज सुनाई ही नहीं पड़ती और अगर सुनाई पड़े भी तो दूसरी ओर का विश्वास इतना प्रबल बन पड़ा है हमारा कि हम उस आवाज की ओर से कान बन्द कर लेते हैं। फलत: जीवन का उत्थान हो ही नहीं पाता, और किसी भंवर में गोते खाने के समान ही ऊंच-नीच के हिचकोले खाता रहता है। क्या मनुष्य इसी तरह दया का पात्र बनने को आया है? नहीं, वह तो परमपिता भगवान का सनातन पुत्र है और जीवन की सर्वोच्चता को पाना उसका अधिकार है।तो इस अधिकार के लिये उसे विश्वास को ऊंचा उठाना होगा। जब यह विश्वास, जिसे आस्था, श्रद्धा, अनुराग आदि नामों से पुकार सकते हैं; आ जाय तो जीवन में निराशा की काली छाया भला टिक सकती है? अरे, ईश्वरीय आस्था तो वह सूर्य है, कि जिसकी रोशनी में किसी अंधकार का टिक पाना तो असम्भव है। यह अंधकार है निराशा, दु:ख, अभाव, अज्ञान, अशान्ति आदि। श्री रवींद्रनाथ टैगोर जी ने कहा है,
'..आस्था वो पक्षी है जो भोर के अँधेरे में भी उजाले को महसूस करती है।'जीवन को ईश्वर में आस्था से जोड़कर जगत में व्यवहार करें, जो कुछ हमारे पास है, जगत को उसी का स्वरुप मानकर उससे जगत-देवता की सेवा हो, सबके भले की कामना हो। अपना और दूसरों का जीवन इस प्रकार से आशा और सम्पन्नता से भर जायेगा।अरे मनुज! दृष्टि उठा,जरा दूर देख, जरा दूर देखवह जो कोई बड़ी दूर खड़ा है,उसे पास ला, उसे पास ला।नाहक ही वह दूर हटा,जब जीवन अगनित से सटा।अगनित से अब एक चुन,उस एक बिना तो सब है शून।वस्तुत: जीवन में ईश्वरीय आस्था को लाना ही आशा और सुख को लाना है। क्योंकि आशा और सुख, ये दोनों उसी ईश्वर के ही नाम हैं। ईश्वर केवल ईश्वर नहीं है, वह अनन्त गुण भी है। - - जगतजननी मां शक्ति की स्तुति-अनिल पुरोहित'माँ'! अनादि काल से सृष्टि का प्रत्येक घटक 'माँ' शब्द का उच्चारण कर अपनी सुरक्षा की याचना करता आ रहा है! समस्त कष्टों-आपदाओं से हमारी सुरक्षा करती आई है माँ! और इसीलिए इस सनातन सत्य का उद् घोष हमारी मातृ-पद वंदना में पूर्ण श्रद्धा के साथ व्यक्त होता है-हे! परम मंगल रूपिणीहे! सौम्य शांत स्वरूपिणीहे! धम्म शक्तिदायिनी!मन जब अशांत-अस्थिर-विचलित हो उठता है, धवल आशाओं के टिमटिमाते दीये जब निराशा की कालिमा से संघर्ष करते हैं, तब अंतरात्मा याचक बन आर्त-पुकार करती है-माँ! ले चलो, मुझे ले चलोउस शांत धरणी पर मुझेमाँ ले चलो!माँ से कुछ छिपा नहीं रहता! वह तो मुख पर तैरती भाव-भंगिमाओं को ताड़ जाती है। वह याचक का निवेदन भला कैसे ठुकरा दे, आर्तमन पुकारता है-शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥माँ देवी है! मातृ देवो भव:! हम अनादि काल से यही अर्चना करते आ रहे हैं-या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमो नम:!और वही माँ हमें अपनी कृपा-सरिता के पुण्य-प्रवाह का स्पर्श कराती हुई ले चलती है! कहां...? वहीं- उस शांत धरणी पर...जहां पूर्ण परमानंद है,जहां मधुर शिव आनंद हैजहां दीखता नहीं द्वंद्व है!यही पूर्ण परमानंद-मधुर आनंद है, सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा! 'माँ' आसुरी वृत्तियों का दमन करने वाली शक्ति-पुंज है। सृष्टि में पुत्र और माँ का संबंध सूत्र इस्पात की तरह मजबूत और कुसुम की भांति कोमल होता है! माँ कभी गलत नहीं हो सकती। आसुरी वृत्तियों का शिकार सृष्टि में हम पुत्र होते हैं, पर माँ तब भी हमें सम्हालती है! इसीलिए तो हम आराधना की बेला में कहते हैं-
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति।भारतीय संस्कृति में ही माँ को जगज्जननी का परम पद दिया गया है- वही सत्-चित् सुखमय शुद्ध ब्रह्म रूपा है- रमा, उमा, महामाया, राम-कृष्ण-सीता-राधा, पराधामनिवासिनी, श्मशानविहारिणी, तांडवलासिनी, सुर-मुनिमोहिनी सौम्या, कमला, विमले, वेदत्रयी- सर्वस्व वही है! ज्ञान प्रदायिनी, वैराग्यदायिनी, भक्ति और विवेक की दात्री 'माँ' की अभ्यर्थना का महापर्व 'शारदीय नवरात्रि' का मंगलगान गूंज उठे...
माँ! उतेरो शक्ति रूप मेंमाँ! उतेरो भक्ति रूप मेंमाँ! उतेरो ज्ञान रूप मेंअब लो शरण ज्ञानेश्वरी!हम क्या हैं? कहां से आए हैं? कहां जाना है? क्या लक्ष्य है हमारा? सारे विवादों से परे हटकर, आसुरी वृत्तियों का दमन कर हम अर्चना के पद गुनगुनाएं...हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरेहैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरेऔर प्रार्थना करें-
निज स्वभाववश जननि दयादृष्टि कीजैकरुणा कर करुणामयि! चरण-शरण दीजै!करुणेश्वरी की आराधना के महापर्व 'शारदीय-नवरात्रि' की पावन बेला पर जगज्जननी के पावन पाद-पद्मों में कोटिश: नमन, इस विनम्र प्रार्थना के साथ- आसुरी वृत्तियों का दमन करो मां! इस राष्ट्र को परम-वैभव के शिखर तक पहुंचा सकें, ऐसी शक्ति दो मां! सर्वत्र सुख-शांति-वैभव का साम्राज्य फैला दो माँ!सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खमाप्नुयात्! -
- ललित चतुर्वेदी
रायपुर। हमारे जीवन को संवारने में शिक्षक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। शिक्षक दिवस, जो हर साल 5 सितंबर को मनाया जाता है, हम सभी के लिये उन्हें धन्यवाद देने का महत्वपूर्ण अवसर है।देश के प्रथम उपराष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब वे भारत के राष्ट्रपति थे तब कुछ पूर्व छात्रों और मित्रों ने उनसे अपना जन्मदिन मनाने का आग्रह किया। उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा कि यह बेहतर होगा कि आप इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाए। इसके बाद 5 सितम्बर को हमारे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। शिक्षक शिक्षा और ज्ञान के जरिये बेहतर इंसान तैयार करते है, जो राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देते है। हमारे देश की संस्कृति और संस्कार शिक्षकों को विशेष सम्मान और स्थान देती है। गुरू शिष्य के जीवन को बदलकर सार्थक बना देता है।बच्चों की शिक्षा के लिए समर्पित सभी गुरूजनों को सलाम है। गुरूजनों का सम्मान हम सबकी सामाजिक जिम्मेदारी है, जो बच्चों को अपने ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करने के साथ ही समाज को नई दिशा देते हैं।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की स्थिति में सुधार के लिए शिक्षकों और छात्र-छात्राओं से किए गए वादे को न केवल निभाया है, बल्कि अमलीजामा पहनाना भी शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ राज्य में नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत पहली बार बारहवीं कक्षा तक के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार प्रदान किया है। राज्य निर्माण के बाद पहली बार लगभग 15 हजार शिक्षकों की नियमित नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की गई। व्यापम ने शिक्षकों की भर्ती के लिए परीक्षाएं आयोजित की और इसके परिणाम भी जारी कर दिए। कोरोना संक्रमण को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने शिक्षकों के परीक्षा परिणाम की वैधता को एक वर्ष तक बढ़ाए जाने की सहमति दी है। स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षाकर्मियों का पंचायत शिक्षक और शिक्षिका के रूप में संविलियन किया गया। राज्य में पहली बार कक्षा बारहवीं तक के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार मिला है।राज्य शासन ने 2 साल या उससे अधिक की सेवावधि पूरी करने वाले शेष बचे पंचायत नगरीय निकाय संवर्ग के 16 हजार 278 शिक्षकों का संविलियन शिक्षा विभाग में करने का निर्णय लिया है। एक नवम्बर 2020 तक इस प्रक्रिया को पूरा किया जाना है। पंचायतों एवं नगरीय निकायों के ऐसे शिक्षकों जिन्होंने एक जुलाई 2020 को अपना 8 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया है, उनका भी संविलियन स्कूल शिक्षा विभाग में किया जाएगा। प्रदेश सरकार के इस ऐतिहासिक निर्णय से अब शिक्षक जैसे गरिमामय पदनाम से इन्हें जाना जाएगा।प्रदेश में शिक्षा को वर्तमान परिवेश की जरूरत को ध्यान में रखते हुए बेहतर बनाने का प्रयास प्रदेश सरकार द्वारा किया जा रहा है। सरकारी स्कूलों में भी अब अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को निजी स्कूलों की तरह शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्य में 41 उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम के मॉडल स्कूल शुरू किए गए है। आगामी वर्ष में सौ और उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल शुरू किए जाएंगे। यह राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के गुरूजनों के प्रति विश्वास का प्रतीक है कि हमारे गुरूजन अंग्रेजी माध्यम के जरिए ग्रामीण अंचल के बच्चों को भी बड़े-बड़े शहरों में स्थित प्रायवेट स्कूलों से बेहतर शिक्षा-दीक्षा दें सकेंगे।आज शिक्षण के क्षेत्र में नई चुनौतियों के सामने आने पर शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ी है। वर्तमान में पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। इसको देखते हुए शिक्षा व्यवस्था में बदलाव भी करना पडा है।विश्वव्यापी कोरोना संकट के चलते बीते मार्च महीने से अब तक स्कूल बंद होने की स्थिति में छत्तीसगढ़ राज्य ने बच्चों को घर पहुंच शिक्षा उपलब्ध कराने की अनुकरणीय पहल की है। इस पहल को देशभर में सराहा गया है।कोरोना संक्रमण के चलते स्कूली बच्चों को शैक्षणिक गतिविधियां से जोड़े रखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने वेब पोर्टल पढ़ई तुंहर दुवार शुरू किया। यह पोर्टल आज बच्चों को घर पहुंच शिक्षा उपलब्ध कराने का सबसे सशक्त माध्यम बन चुका है। इस वेब पोर्टल का शुभारंभ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 7 अप्रैल को किया था। इस पोर्टल के माध्यम से राज्य के लगभग 2 लाख शिक्षक जुड़े हैं, जो इसके माध्यम से 22 लाख बच्चों को ज्ञान का प्रकाश पहुंचाने में मदद कर रहे हैं।बच्चों को पढ़ाई से निरंतर जोड़े रखने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने आनलाईन पोर्टल पढ़ई तुंहर दुवार के साथ ही मोबाइल इंटरनेट विहीन क्षेत्रों में बच्चों की शिक्षा की ऑफलाइन व्यवस्था के तहत लाउडस्पीकर, पढ़ई तुंहर पारा और बुलटू के बोल के जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सुनिश्चित की है। इससे सुदूर वनांचल के बच्चों को भी पढ़ाई कराई जा रही है। कई शिक्षक स्वेच्छा से अपने आसपास के परिस्थितियों के आधार पर बच्चों की शिक्षा के लिए नवाचारी उपाय कर रहे हैं।नीति आयोग ने छत्तीसगढ़ के आकांक्षी जि़ला नारायणपुर में सामुदायिक सहायता से संचालित पढ़ई तुंहर दुआर योजना को सराहा है। यहां जि़ला प्रशासन एवं गांव के युवाओ के मदद से जहां नेटवर्क नही है,वहां सामुदायिक भवन , घर के बरामदे में कोविड-19 के निर्देशों का पालन करते हुए , बच्चों को शिक्षा प्रदान की जा रही है और अब मिस कॉल गुरुजी के साथ प्रदेश के 7 जिलो बलौदाबाजार, जांजगीर- चांपा, सूरजपुर, सरगुजा, दुर्ग ,कोंडागांव ,बस्तर में शुरू हुए खास अभियान को शिक्षकों ने अपना लिया है । इसके अंतर्गत कक्षा पहली और दूसरी के बच्चों को अगस्त माह से नवंबर माह तक प्रारंभिक भाषा शिक्षण में दक्ष बनाया जाएगा। जिन बच्चों के पास स्मार्टफोन नही था और पढ़ई तुंहर दुआर से वंचित थे, मिस कॉल गुरुजी छात्रों के लिए काफी उपयोगी सिद्ध हो रहा है। दुर्ग जिले के 200 स्कूलों में हर घर स्कूल नामक अभियान संचालित है, जिसमें दुर्ग ब्लॉक 112 तथा पाटन ब्लाक के 88 प्राथमिक स्कूल शामिल है । जिला परियोजना कार्यालय समग्र शिक्षा एवं लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन के माध्यम से संचालित अभियान के तहत बच्चों की भाषाई दक्षता को बेहतर बनाने का कार्य किया जा रहा है।--- -
ललित चतुर्वेदी, सहायक संचालक
छत्तीसगढ़ में स्कूल शिक्षा में लगातार नवाचार और गुणवत्ता शिक्षा को निरंतर बल प्रदान किया जा रहा है। कक्षा पहली से आठवीं तक के स्कूली बच्चों का राज्य स्तरीय आकलन में 43 हजार 824 स्कूलों के 28 लाख 93 हजार 738 बच्चों का गुणवत्ता सुधार हेतु आकलन किया गया। विगत एक वर्ष में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा किया गया। राज्य स्तरीय आकलन राष्ट्रीय स्तर पर विद्यार्थियों के आकलन के लिए रोल मॉडल बन गया है। सरकार का प्रयास है कि प्रत्येक विद्यार्थी अपनी निहित क्षमताओं का सर्वश्रेष्ठ परिवर्तन कर सके। इसमें शिक्षक अपनी सभी विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को पहचानकर विद्यार्थियों की दक्षता बढ़ाने के लिए कार्य कर सकेंगे। राज्य स्तर पर आकलन की रिपोर्ट अत्यंत उपयोगी है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप स्कूल शिक्षा विभाग शिक्षा व्यवस्था अंतर्गत प्रत्येक बच्चे को उनकी पहुंच सीमा के अंतर्गत विद्यालय उपलब्ध कराने कटिबद्ध है। साथ ही शाला में दर्ज प्रत्येक विद्यार्थी को गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करने प्रयासरत है। शासन के प्रयास से राज्य के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और दुर्बल वर्ग के विद्यार्थियों को शालाओं में उनकी जनसंख्या प्रतिशतता के क्रम में शासन द्वारा सफलता प्राप्त की गई है।
आईसीटी और स्मार्ट क्लास
प्रदेश के चार हजार 330 शासकीय हाई स्कूल और हायर सेकेण्डरी स्कूलों में आई.सी.टी. योजना प्रारंभ की गई है। इसके अंतर्गत लैब साइट डिजिटल क्लास रूम प्रारंभ किया गया है। विद्यालयों में स्क्रीन और प्रोजेक्टर के माध्यम से मल्टीमीडिया विषय वस्तु सहायता से शिक्षण कार्य किया जा रहा है। इससे शासकीय हाई स्कूल एवं हायर सेकेण्डरी स्कूल के बच्चे लाभान्वित होंगे। समस्त पाठ्य सामग्री छत्तीसगढ़ बोर्ड एवं लर्निंग आउटकम से मैप की गई है।
दीक्षा
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ मिलकर एक अभिनव पहल की गई है। राष्ट्रीय स्तर पर पांच राज्यों आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को चैम्पियन राज्य का दर्जा देकर कार्य प्रारंभ हुआ है। राज्य में हिन्दी माध्यम की कक्षा पहली से दसवीं तक की समस्त पाठ्य पुस्तकों में 3040 क्यू.आर.कोड अंकित कर एनजाईस्ड टेक्स्ट बुक में परिवर्तित कर लिया गया है। जिसमें आडियो-वीडियो, पीपीटी एवं पी.डी.एफ. दस्तावेज के माध्यम से अतिरिक्त रूचिकर सामग्री शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के लिए तैयार की गई हैं। जीतने के लिए जीत जरूरी है की तर्ज पर कार्य कर हिन्दी माध्यम एवं बहूभाषा, छत्तीसगढ़ी, हल्बी, गोढ़ी, कुडूख, सरगुजिया पर ई कन्टेंट तैयार किया गया है। इसे विद्यार्थियों तक पहुंचाकर देश में अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित हो गया है।
मल्टी मीडिया टेक्स्ट बुक
कक्षा नवमीं और दसवीं की विज्ञान, गणित और अंग्रेजी की पाठ्यपुस्तकों को मल्टी मीडिया पाठ्यपुस्तक में तैयार किया गया है। जिसमें विभिन्न गतिविधियों को करके दिखाया गया है। मल्टी मीडिया एप को गूगल प्ले में जाकर डाउनलोड कर पाठ्यपुस्तकों का उपयोग किया जा सकेगा।
शिक्षा का अधिकार की निरंतरता अब बारहवीं कक्षा तक
नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम अंतर्गत कक्षा आठवीं उत्तीर्ण बच्चों की पढ़ाई में निरंतरता के लिए राज्य शासन द्वारा निर्णय लिया गया है। इसमें प्रदेश के निजी विद्यालयों में अध्ययनरत चार हजार 899 बच्चों को कक्षा नवमीं में अध्यापन के लिए व्यवस्था की गई है। शासन द्वारा इस संबंध में निर्देश भी जारी किए हैं।
अतिथि शिक्षक
बस्तर एवं सरगुजा संभाग में एक हजार 885 और मॉडा पाकेट क्षेत्र में 631, गणित, विज्ञान एवं वाणिज्य आदि विषयों में शिक्षकों की कमी को देखते हुए नवीन भर्ती और शालाअें में पदस्थापना होने तक विद्यार्थियों के शिक्षण कार्य में बाधा न हो इसके लिए अतिथि शिक्षक रखे जाने का निर्णय लिया गया है। इसका दायित्व जिला शिक्षा अधिकारी और शाला प्रबंध समिति को सौपा गया है।
शिक्षकों की नियमित सीधी भर्ती
राज्य शासन द्वारा प्रदेश में 14 हजार 560 सीधी भर्ती के रिक्त पदों पर शिक्षकों की भर्ती के लिए कार्यवाही प्रक्रियाधीन है।
टीम एप
राज्य में स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत सम्पूर्ण शिक्षा आकलन एवं प्रबंधन प्रणाली लागू की जा रही है। एन.आई.सी. के सहयोग से 51 मॉड्यूल तैयार किए जाएंगे। इसके अंतर्गत विद्यालय, शिक्षक और विद्यार्थियों की जानकारी का संकलन किया जा रहा है। विद्यार्थियों की जानकारी एक बार दर्ज की जाएगी एवं उनकी इस पूरी शिक्षा पूर्ण होने तक उनके अधिगम स्तर की जानकारी का संधारण किया जाएगा। इससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की निरंतरता सुनिश्चित की जा सकेगी। इसके अंतर्गत समस्त योजनाओं की ट्रैकिंग की जाएगी। साथ ही शिक्षकों की स्थापना संबंधी कार्य में भी इससे सहायता मिलेगी।
शालाओं में किचन गार्डन
नरवा, गरवा, घुरूवा और बाड़ी अभियान अंतर्गत ऐसी शालाओं में जिनमें अहाता तथा पानी की व्यवस्था है, वहां नरेगा एवं कृषि विज्ञान केन्द्र के सहयोग से प्रत्येक गांव के लिए एक आदर्श बारी (किचन गार्डन या पौष्टिक वाटिका) विकसित की जा रही है। प्रदेश में अब तक लगभग 10 हजार शालाओं किचन गार्डन तैयार किए गए हैं।
मध्यान्ह भोजन योजना में बच्चों को दूध
राज्य की 10 आकांक्षी जिलों में दूध बच्चों को खीर के रूप में सप्ताह के एक दिन प्रदान किया जा रहा है। राज्य की चार जिलों दुर्ग, गरियाबंद, कांकेर और सूरजपुर में सप्ताह में दो दिन फ्लेवर्ड मीठा सोया दूध प्रदान किया जाना है। पेण्ड्रा और खडग़वां विकासखण्ड में पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में प्रतिदिन नास्ता दिया जा रहा है।
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आलेख : ललित चतुर्वेदी
संस्कृत दिवस श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् द्वारा राज्य स्तर पर सप्ताह का आयोजन रक्षाबंधन के 3 दिन पूर्व और 3 दिवस बाद तक किया जाता है। विभिन्न जयंतियों वाल्मिकि जयंती, कालीदास जयंती, गीता जयंती, गुरू पूर्णिमा का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के विद्यालयों की सक्रिय सहभागिता रहती है। संस्कृत दिवस के दिन वेद शास्त्रों की पूजा एवं महत्ता पर चर्चा एवं विद्वत्संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है। भारत की प्राचीनतम भाषा संस्कृत में भारत का सर्वस्व संन्निहित है। देश के गौरवमय अतीत को हम संस्कृत के द्वारा ही जान सकते हैं। संस्कृत भाषा का शब्द भण्डार विपुल है। यह भारत ही नहीं अपितु विश्व की समृद्ध एवं सम्पन्न भाषा है। भारत का समूचा इतिहास संस्कृत वाड्मय से भरा पड़ा है। आज प्रत्येक भारतवासी के लिए विशेषकर भावी पीढ़ी के लिए संस्कृत का ज्ञान बहुत ही आवश्यक है।
संस्कृत भाषा ने अपनी विशिष्ट वैज्ञानिकता के कारण भारतीय विरासत को सहेजकर रखने में अपना अप्रतिम योगदान दिया है। संस्कृत ऐसी विलक्षण भाषा है जो श्रुति एवं स्मृति में सदैव अविस्मरणीय है। अतिप्राचीन काल में संरक्षित-संग्रहित भारत की यह विपुल ग्रंथ सम्पदा संस्कृत के कारण ही सुरक्षित रही है। संस्कृत की महत्ता को सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकारा है। संस्कृत को भारतीय शिक्षा में अनिवार्य करना आवश्यक है। शिक्षा में इसकी अनिवार्यता को लेकर केन्द्रीय संस्कृत आयोग ने 1959 में - माध्यमिक स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य शिक्षा करने के साथ मातृभाषा तथा क्षेत्रीय भाषा पढ़ाई जाने की अनुसंशा की। संस्कृत शाला एवं संस्कृत महाविद्यालय प्रारंभ करने के लिए शासन द्वारा 90 प्रतिशत की छूट भी प्रदान की गई है।
संस्कृत परिष्कृत, संस्कारित एवं वैज्ञानिक भाषा है। आदिकाल से वेद, रामायण, महाभारत सहित विशिष्ट विषयों को भारतीय मस्तिष्क में संस्कृत के संबल पर सहेज कर रखा है। वेद, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ श्रुति एवं स्मृति परिचारों में सुरक्षित रखते हुए आज लिपिबद्ध रूप में गोचर हो रहे हैं। इससे बड़ा प्रमाण कोई नहीं हो सकता।
संस्कृत भाषा का अपना एक वैज्ञानिक महत्व है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार संस्कृत एक सम्पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है। प्राचीन भारत में बोल-चाल की भाषा में संस्कृत का ही उपयोग किया जाता था। इससे नागरिक अधिक और मानसिक रूप से अधिक संतुलित रहा करते थे। संस्कृत के मंत्रों का उच्चारण करते समय मानव स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मंत्रोच्चार के समय वाइब्रेशन से शरीर के चक्र जागृत होते हैं और मानव का स्वास्थ्य बेहतर रहता है। बहुत सी विदेशी भाषाएं भी संस्कृत से जन्मी हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी के मूल में संस्कृत निहित है। संस्कृत में सबसे महत्वपूर्ण शब्द ‘ऊँ’ अस्तित्व की आवाज और आंतरिक चेतना एवं ब्रम्हाण्ड का स्वर है। प्राचीन धरोहर की खोज करने का मुख्य मापदण्ड संस्कृत है। संस्कृत की महत्ता को देखते हुए जर्मनी में 14 से अधिक विश्व विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन कराया जाता है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का कहना है कि हमारे वेद पुराण और गीता आदि संस्कृत में लिखे गए हैं। हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए राज्य शासन द्वारा हर संभव सहयोग दिया जा रहा है। श्री बघेल ने मुख्यमंत्री बनने के बाद माघ पूर्णिमा के अवसर पर 19 फरवरी 2019 को संस्कृत विद्वत्सम्मान एवं मेधावी छात्रों का सम्मान किया। छत्तीसगढ़ में श्री बघेल के शासन में संस्कृत शिक्षा की प्रगति हो रही है। संस्कृत अध्ययन प्रोत्साहन राशि संस्कृत शालाओं में पढ़ने वाले उत्तर मध्यमा स्कूल प्रथम वर्ष कक्षा 11वीं के विद्यार्थियों को दी गई। इससे कक्षा पहली, छठवीं और 9वीं को दी गई थी। गैर अनुदान प्राप्त संस्कृत शालाओं को स्तरवार वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस वर्ष से गैर अनुदान प्राप्त विद्यालयों को उनके प्रत्येक स्तर को जोड़ते हुए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। प्रवेशिका प्राथमिक स्तर को 10 हजार रूपए प्रतिवर्ष, प्रथमा मिडिल स्तर को 20 हजार रूपए प्रतिवर्ष, पूर्व मध्यमा प्रथम एवं उत्तर मध्यमा प्रथम (हाई स्कूल और हायर सेकेण्डरी) को 40 हजार रूपए प्रतिवर्ष की दर से राशि प्रदान की जाती है। केन्द्रीय जेल रायपुर में संस्कृत पाठशाला संचालित की जा रही है और इस वर्ष अम्बिकापुर में भी संस्कृत पाठशाला शुरू की गई है। पन्द्रह वर्ष बाद संस्कृत उत्तर मध्यमा कक्षा को छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा कक्षा 12वीं के समकक्ष मान्यता प्रदान की गई। भारतीय विरासत के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के दिग्दर्शन में आयुर्वेद, योग, प्रवचन, वेद, ज्योतिष जैसे संस्कृत के वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन-अध्यापन संस्कृत पाठशालाओं में किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की संस्कृत पाठशालाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को संस्कृत में शास्त्रों के अध्ययन के साथ-साथ आधुनिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, वाणिज्य आदि का समन्वित ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। प्रदेश में संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थी किसी भी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ हैं। प्रदेश में इस वर्ष 10 हजार 427 विद्यार्थी संस्कृत विषयों का अध्ययन कर रहे हैं, इनमें अनुसूचित जाति के एक हजार 906, अनुसूचित जनजाति के दो हजार 917, अन्य पिछड़ा वर्ग के पांच हजार 14, सामान्य वर्ग के 554 और अल्पसंख्यक वर्ग के 36 विद्यार्थी शामिल हैं।
प्रदेश में संस्कृत का अतीत समृद्ध है। यहां बलौदाबाजार में तुरतुरिया महर्षि वाल्मीकि और सरगुजा जिले के उदयपुर में रामगढ़ की पहाडि़यां महाकवि कालीदास का क्षेत्र माना जाता है। प्रदेश रामायणकालीन एवं महाभारतकालीन धरमकर्मों से जुड़ा हुआ है। यहां का बड़ा भू-भाग दण्डकारण्य क्षेत्र में आता है, जो ऋषियों का क्षेत्र कहा गया है। छत्तीसगढ़ वासियों का आचार-विचार, व्यवहार और संस्कार संस्कृत से पुरित हैं। राज्य के पांच जिलों में संचालित आठ शासकीय अनुदान प्राप्त विद्यालयों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इनमें रायपुर के गोलबाजार में संचालित श्रीराम चन्द्र संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बिलासपुर में श्री निवास संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ जिले के लैलुंगा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ के गहिरा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय और गहिरा में ही श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जशपुर जिले दुर्गापारा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सामरबार और श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय सामरबार, बलरामपुर जिले के जवाहर नगर में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय श्रीकोट शामिल हैं।