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शंखपुष्पी फूल जिसे ज्यादा तर लोग अपराजिता के नाम से जानते है ये पौधा न केवल सिर्फ धार्मिक और वास्तु शास्त्रों के लिए शुभ माना जाता है बल्कि इसका महत्व आयुर्वेद में भी बहुत होता है इसलिए अक्सर लोग इसे घर में जरूर लगाना पसंद करते है इसके फूलों से बनी चाय सेहत के लिए बहुत लाभदायक होती है इसके सूखे हुए फूलों को फेंकने की बजाए स्टोर करके चाय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कई बार अपराजिता के पौधे में फूल नहीं आते है और पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैऔर कीटों का भी अटैक होने लगता है ऐसे में पौधे को अच्छे उर्वरक की आवश्यकता होती है।
अगस्त के महीने में अपराजिता के पौधे में डालने के लिए हम आपको ENO, नीम के तेल, चाय पत्ती का वेस्ट मटेरियल और फलों के छिलके का पाउडर के बारे में बता रहे है । ये पौधे के लिए सबसे पौष्टिक उर्वरक के रूप में काम करते है। ENO और नीम का तेल पौधे को फंगस और कीटों से बचाने में सहायक होता है ये एक कीटनाशक और कवकनाशी के रूप में उपयोगी साबित होते है। चाय पत्ती का वेस्ट मटेरियल जिसे अक्सर लोग फेंकने की गलती करते है लेकिन इसे फेंकने की जगह पौधे के लिए कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है जो पौधे को भरपूर नुट्रिशन प्रदान करता है और फूलों की संख्या और गुणवत्ता को बढ़ाता है। फलों के छिलके का पाउडर पौधे में पोषक तत्व की कमी को पूरा करता है जिससे पौधे की ग्रोथ में वृद्धि होती है।ऐसे करें उपयोगअपराजिता के पौधे में ENO, नीम के तेल, चाय पत्ती का वेस्ट मटेरियल और फलों के छिलके का पाउडर का इस्तेमाल एक लाभदायक खाद के रूप में किया जा सकता है। इनका उपयोग करने के लिए सबसे पहले पौधे की मिट्टी की गुड़ाई करना है फिर मिट्टी में 1 से 2 चम्मच फलों के छिलके के पाउडर को डालना है इसके लिए आप केले, पपीते और संतरे जैसे फलों के छिलकों का उपयोग कर सकते है इसके बाद मिट्टी में एक स्पून चाय पत्ती की कम्पोस्ट खाद को डालना है। फिर एक लीटर पानी में एक ENO और 2-3 बूंद नीम के तेल को डालकर एक स्प्रे बोतल में इसे भरकर अपराजिता के पौधे में पत्तियों के आगे पीछे सब जगह स्प्रे करना है। ऐसा करने से पौधे का विकास अच्छा होगा फूल खूब खिलेंगे और कीड़े भी नहीं लगेंगे। अपराजिता के पौधे को घना बनाने के लिए पौधे की ऊपरी नई टहनियों को हल्के से तोड़कर हटा देना चाहिए जिससे पौधा घना होता है। - एक कप चाय से पूरे दिन की थकान मिट जाती है। लोग कई प्रकार से चाय पत्ती का इस्तेमाल करके चाय बनाते हैं। जिसमें दूध वाली चाय और ब्लैक टी, ग्रीन टी ज्यादा फेमस है। तब अगर आप भी चाय के शौकीन है तो बता दे की चाय सेहत के लिए फायदेमंद होती है। इसमें कैफीन, एंटीऑक्सीडेंट जैसे कई पोषक तत्व होते हैं जो की सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं। चाय पत्ती हृदय को स्वस्थ रखती है। कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक है। यह दिमाग को एक्टिव रखने में मदद करती है। इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।जिससे व्यक्ति जल्दी बीमार नहीं पड़ते और पाचन तंत्र भी मजबूत होता है। यानी कि चाय पत्ती के कई फायदे हैं। लेकिन चाय पत्ती का स्वाद और वह कितनी फायदेमंद होगी यह तो तब निर्भर करता है जब उसकी क्वालिटी बढ़िया हो। तब अगर आप चाहते हैं कि आपको बढ़िया क्वालिटी की चाय पत्ती मिले तो घर पर भी ऊगा सकते हैं। जैसे कि आजकल लोग होम गार्डनिंग, किचन गार्डनिंग करते हैं और तरह-तरह की सब्जी, फल, फूल, मसाले इत्यादि उगाते हैं तो चलिए चाय पत्ती उगाने के बारे में जानते हैं।गमले में ऐसे लगाएं चाय पत्ती का पौधाचाय पत्ती का पौधा अगर आप घर पर अपने गमले में लगाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको बढ़िया क्वालिटी के बीच मंगाने होंगे। नर्सरी से आप इसका पौधा भी खरीद सकते हैं और बीज भी वहां पर मिल जाएगा। इसके बाद अगर आप बीज से उगा रहे हैं तो उसे पहले पानी में भिगोना होता है और अंकुरित होने के बाद गमले में लगाना होगा। लेकिन अगर आप पौधे से लगा रहे हैं तो चलिए आपको इसकी मिट्टी के बारे में बताते हैं, साथ ही बता दे की चाय पत्ती आप कटिंग से भी लगा सकते हैं।आपको ऐसी मिट्टी तैयार करनी होगी जिसमें पोषक तत्व भरपूर हो। पोषक तत्वों की कमी पूरा करने के लिए गोबर की सड़ी पुरानी खाद उसमें मिला सकते हैं।चाय पत्ती का पौधा उस जगह पर लगाइए जहां पर पूरे दिन की धूप आती हो। वहीं तापमान की बात करें तो 10-33 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान बेहतर होता है।चाय पत्ती के पौधे को हर दिन पानी की भी आवश्यकता होती है। आप इसमें रोजाना पानी छिड़क सकते हैं।खाद की बात करें तो चाय पत्ती के पौधे को आप 30 दिन के अंतराल में जैविक खाद डाल सकते हैं। क्योंकि इसे तैयार होने में 1 साल का समय लग जाएगा। उसके बाद चाय पत्ती आपको मिलेगी।
- अक्सर कुछ लोगों के गार्डन में लगा नींबू का पौधा 6 से 7 साल का हो जाने के बाद भी फल नहीं देता है या पौधे में फलों का साइज छोटा हो जाता है फूल-फल झड़ने लग जाते है इन सभी समस्याओं से छुटकारा दिलाने के लिए हम आपको घर में बनी एक ऐसी शक्तिशाली खाद के बारे में बता रहे है जो नींबू के पौधे के लिए बहुत ज्यादा लाभदायक साबित होती है ये खाद घर में तैयार करना बहुत आसान होता है ये एकदम ऑर्गेनिक खाद है। इसमें कई पोषक तत्व के गुण होते है जो पौधे में फलों की उपज को बढ़ावा देते है।नींबू के पौधे में डालें ये ऑर्गेनिक खादनींबू के पौधे में डालने के लिए हम आपको गोबर के उपले, चने की दाल के पाउडर यानि बेसन, दही, सरसों की खली, केले के छिलके से बनी पौष्टिक खाद के बारे में बता रहे है ।ये एक उत्कृष्ट ऑर्गेनिक खाद है जो नींबू के पौधे को भरपूर नुट्रिशन देती है जिससे पौधे में अधिक मात्रा में फल लगते है। गोबर के उपले मिट्टी की उर्वकता को बढ़ाते है जिससे पौधे को बेहतर पोषण मिलता है। बेसन मिट्टी को स्वस्थ बनाता है और कीटों से बचाता है। इसमें मौजूद तत्व पौधे के विकास को बढ़ाते है। दही में मौजूद लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ावा देते है जिससे पोषक तत्वों का अवशोषण बेहतर होता है।सरसों की खली नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम का जबरदस्त स्रोत होती है। ये पौधे में फलों की उपज और गुणवत्ता में सुधार करती है। केले के छिलके में बहुत अधिक मात्रा में पोटेशियम होता है जो नींबू के फूल और छोटे फल को गिरने से बचाता है और मजबूत करता है।इस्तेमाल करने का तरीकानींबू के पौधे में गोबर के उपले, चने की दाल के पाउडर यानि बेसन, दही, सरसों की खली, केले के छिलके से बनी पौष्टिक खाद का उपयोग बहुत ज्यादा उपयोगी और लाभकारी साबित होता है इनका उपयोग करने के लिए एक कंटेनर में 2 लीटर पानी, एक गोबर के उपले के टुकड़े, 100 ग्राम बेसन, 3 चम्मच दही, 50 ग्राम सरसों की खली, 2 केले के छिलके को डालना है इन सभी चीजों को अच्छे से किसी लकड़ी से चलाना है और 3 से 5 दिन के लिए छोड़ देना है 5 दिन बाद फिर इस तरह खाद में 4 लीटर पानी मिलकर नींबू के पौधे में महीने में 4 बार देना है ऐसा करने से पौधे को महत्वपूर्ण पोषक तत्व प्राप्त होंगे जिससे पौधे में बड़े साइज के नींबू अनगिनत मात्रा में लगेंगे। इस खाद का उपयोग बगीचे में लगे दूसरे फल सब्जियों के पौधों में भी इस्तेमाल कर सकते है।
- घर पर सब्जियां और फल उगाते हैं, तो चलिए आपको एक फ्री की खाद के बारे में बताते हैं, जो सिर्फ 6 दिन में तैयार हो जाती है।सब्जी और फल के पौधों से ज्यादा उत्पादन लेने के लिए समय पर उन्हें पोषक तत्व देना जरूरी है। यहां हम आपको एक तरल खाद की जानकारी देने जा रहे हैं, जो 6 दिन के भीतर तैयार हो जाती है। इसे बनाना कैसे है और इस्तेमाल कैसे करना है, इसकी पूरी जानकारी देंगे। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि फल और फूलों के पौधों के आसपास फ्रूट फ्लाई का अटैक होता है, जिसके लिए फ्रूट फ्लाई पेपर लगाना चाहिए, ताकि यह कीड़े उसमें चिपक जाएं। तो चलिए अब जानते हैं खाद के बारे में।फ्री में घरेलू खाद कैसे बनाएंनीचे लिखे बिंदुओं के अनुसार जानिए, किन चीजों की जरूरत पड़ेगी, कितनी मात्रा लेनी है और कितने दिन में खाद बनेगी।-सबसे पहले 3 लीटर पानी लें और इसे एक प्लास्टिक की बाल्टी में डाल दें।-इसके बाद 25–30 ग्राम सरसों की खली मिला दें, जो ज्यादा पुरानी न हो।-इसमें लकड़ी की राख डालें। आप गोबर के कंडे की राख भी ले सकते हैं। इसमें पोटैशियम होता है और यह कीट व फंगस से फसल को बचाती है।-5–6 केले के छिलके लें और उनके छोटे-छोटे टुकड़े कर लें। इसमें कई तरह के पोषक तत्व होते हैं, जो उत्पादन बढ़ाने में मदद करते हैं।-एक कप दही डाल दें। आप छाछ का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।इन सभी चीजों को अच्छे से मिलाकर 5–6 दिन के लिए ढककर रख दें। इसके बाद आपकी खाद तैयार हो जाएगी।खाद का इस्तेमाल कैसे करेंकिसी भी खाद को बनाने के बाद उसका इस्तेमाल करने का भी एक सही तरीका होता है, तभी वह अधिक फायदा करती है।खाद को बनाने के बाद छान लें।यदि 1 लीटर खाद का मिश्रण ले रहे हैं, तो उसमें 3 लीटर सादा पानी मिला लें।इसे पौधों की मिट्टी में डालें। ध्यान रखें, मिट्टी सूखी और भुरभुरी होनी चाहिए। इसके लिए हल्की निराई-गुड़ाई कर सकते हैं।यह घरेलू तरल खाद है, जिसे 15 दिन या 1 महीने के अंतराल में इस्तेमाल कर सकते हैं।
- गुलाब का पौधा बगीचे की शान होता है इसे फूलों का राजा कहा जाता है लेकिन कई बार ये पौधा फूल सही से नहीं देता है क्योकि पौधे को पोषक तत्व से भरपूर खाद की जरूरत होती है और खाद देने के अलावा पौधे की देखभाल भी अच्छे से करते रहना चाहिए। गुलाब के पौधे को धूप वाली जगह पर रखना चाहिए और नियमित रूप से पानी देना चाहिए लेकिन पौधे में जल भराव नहीं होने देना है। पौधे में लगे सूखे फूलों और सुखी डालियों को भी काटकर अलग कर देना चाहिए। गुलाब के पौधे में डालने के लिए हम आपको एक पावरफुल खाद के बारे में बता रहे है जो पौधे में फूलों की संख्या को बढ़ाने का काम करती है।गुलाब के पौधे में डालने के लिए हम आपको आलू के छिलके के पाउडर और कॉफी पाउडर के बारे में बता रहे है। ये दोनों चीज पौधे के लिए एक नेचुरल खाद के रूप काम करती है। आलू के छिलकों में मैग्नीशियम, पोटेशियम, फास्फोरस, आयरन और कैल्शियम जैसे कई पोषक तत्व के गुणों का शानदार स्रोत होता है। जो पौधे को नुट्रिशन देने का काम करते है। आलू के छिलकों में मौजूद फाइबर मिट्टी की संरचना को बेहतर बनाता है जिससे जल निकासी और वायु संचार में सुधार होता है। साथ ही पौधे में फूलों और कलियों की उपज को बढ़ावा मिलता है। कॉफी पाउडर पौधे को स्वस्थ और हरा-भरा रखने में प्रभावशाली होता है कॉफी पाउडर में एंटीबैक्टीरियल गुण भी होते है जो गुलाब के पौधे को कीड़ों से दूर रखते है। ये मिट्टी को हवादार बनाता है जिससे जड़ों का विकास बेहतर होता है।आलू के छिलके और कॉफी पाउडर का उपयोगगुलाब के पौधे में आलू के छिलके के पाउडर और कॉफी पाउडर का उपयोग बहुत लाभदायक और असरदार साबित होता है इनका उपयोग करने के लिए आलू के छिलकों को पहले धूप में अच्छे से सुखार और पाउडर बना लेना है फिर गुलाब की मिट्टी में एक चम्मच आलू के छिलके के पाउडर और एक चम्मच कॉफी पाउडर को अच्छे से फैला -फैला कर डालना है । ऐसा करने से पौधे को आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त होंगे जिससे पौधे में फूलों की मात्रा दिन प्रति दिन बढ़ेगी। इनका उपयोग महीने में 2 बार पौधे में कर सकते है।
- अक्सर कुछ लोगों को बगीचे में तरह-तरह के फूलों पत्तियों के पौधे लगाने का बहुत शौक होता है ।आज हम आपको एक ऐसे पौधे के बारे में बता रहे है जिसे घर के बगीचे, बालकनी या छत में जरूर लगाना चाहिए। इस पौधे को कटिंग से बहुत आसानी से ग्रो किया जा सकता है। ये पौधा न केवल अपनी सुगंध से वातावरण को खुशनुमा बनाता है बल्कि वास्तु और धार्मिक महत्व भी रखता है। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग आयुर्वेद में औषधीय रूप में भी किया जाता है। ये पौधा घर में सकारात्मक ऊर्जा लाता है और नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है। हम बात कर रहे है नागचंपा के पौधे की नागचंपा का पौधा घर में जरूर लगाना चाहिए।कटिंग से कैसे लगाएं नागचंपा का पौधानागचंपा का पौधा कटिंग से लगाना बहुत आसान होता है पौधा लगाने के लिए सबसे पहले स्वस्थ पौधे की मोटी 4-6 इंच लंबी कटिंग लेना है। कट वाले हिस्से को अच्छे से साफ कर लेना है। इसके बाद मिट्टी को वर्मी कम्पोस्ट, नीम खली और रेत डालकर अच्छे से तैयार कर लेना है फिर कटिंग के सूखे सिरे को रूटिंग हार्मोन या साफ फंगीसाइड में डूबाकर मिट्टी में आधा इंच गहरा लगाना है और ऊपर से पानी की हलकी सिंचाई कर देना है। ऐसा करने से कुछ ही दिनों में कलम में पत्तियां आने लगेगी।नागचंपा का पौधा लगाने के फायदेवास्तु शास्त्र के अनुसार नागचंपा का पौधा घर में लगाना अच्छा माना जाता है इस पौधे के फूल पूजा में उपयोग किए जाते है। नाग चंपा के फूलों की खुशबू मन को शांत करती है और तनाव कम करने में मददगार होती है। ये पौधा वातावरण को शुद्ध और सकारात्मक बनाने में भी बहुत सहायक होता है। नागचंपा के पौधे को धूप वाली जगह पर रखना चाहिए।
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- खीरे की खेती से लगभग 2 लाख 50 हजार रूपए का हुआ फायदा
- यहां का खीरा उत्तरप्रदेश, ओडि़शा एवं कोलकाता तक जा रहा
- धान के बदले सब्जी की खेती करने से हो रहा अधिक लाभ
- शासन द्वारा पॉली हाऊस के लिए 17 लाख रूपए एवं पैक हाऊस के लिए 2 लाख रूपए का मिला अनुदान
राजनांदगांव । धान के बदले उद्यानिकी फसल लेने तथा खीरे की बम्पर पैदावार होने से किसान श्री सुरेश सिन्हा की तकदीर बदल गई है। शासन की किसानहितैषी योजनाओं का भरपूर लाभ लेते हुए राजनांदगांव विकासखंड के ग्राम गातापार खुर्द के किसान श्री सुरेश सिन्हा ने 5.5 एकड़ में उद्यानिकी फसल खीरा लगाई है। किसान श्री सुरेश सिन्हा ने बताया कि 15 से 20 रूपए प्रति किलो में बिक्री हो रही है और उनको खीरे की खेती से लगभग 2 लाख 50 हजार रूपए का फायदा हुआ है। खीरे की फसल की तोड़ाई का कार्य अभी भी जारी है। उन्होंने बताया कि यहां का खीरा उत्तरप्रदेश में प्रयागराज तथा ओडि़शा एवं कोलकाता तक जा रहा है। उन्होंने बताया कि धान के बदले सब्जी की खेती करने से अधिक लाभ हो रहा है। धान की फसल की तुलना में सब्जी की फसल में कम पानी की आवश्यकता होती है। किसान श्री सुरेश सिन्हा ने कहा कि सब्जी की खेती करने तथा शासन की योजनाओं से लाभ मिलने पर वे आर्थिक दृष्टिकोण से मजबूत बने हैं। सरकार द्वारा किसानों को सब्जी एवं अन्य फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहन एवं सहायता राशि दी जा रही है।
किसाना श्री सुरेश सिन्हा ने बताया कि विगत वर्ष उन्होंने 7 एकड़ में जुलाई से मार्च में टमाटर की बम्पर पैदावार होने पर उन्हें 3 लाख रूपए का फायदा हुआ था। इस वर्ष भी 7 एकड़ में टमाटर की फसल लेंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना अंतर्गत 7 एकड़ का बीमा भी कराया है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय बागवानी मिशन अंतर्गत संरक्षित खेती के तहत पॉली हाऊस में शिमला मिर्च की फसल ली थी। जिससे 3 लाख 50 हजार की आमदनी हुई थी। पॉली हाऊस के लिए उन्हें 17 लाख रूपए शासन की ओर से अनुदान मिला है। पॉली हाऊस की कुल लागत 34 लाख रूपए रही। इस वर्ष सिजेन्टा कम्पल की मायला वैरायटी के टमाटर की फसल लगाएंगे। किसान श्री सुरेश सिन्हा ने बताया कि उनके पास 15 एकड़ भूमि है। जिसमें 8 एकड़ में धान की खेती एवं 7 एकड़ में सब्जी की खेती कर रहे है। उन्होंने बताया कि सब्जी स्टोरेज के पैक हाऊस के लिए शासन द्वारा 2 लाख रूपए का अनुदान प्राप्त हुआ है। दवाई के छिड़काव के लिए स्ट्रिप मशीन के लिए सरकार से 50 प्रतिशत अनुदान प्राप्त हुआ हंै। उन्होंने बताया कि आर्थिक रूप से समृद्ध होने से उनके जीवन स्तर में परिवर्तन आया है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के साथ ही उन्होंने अपनी बेटी की शादी भी कराई है। - शहरों में रहने वाले लोग जिनके पास घर के आस-पास ज्यादा जमीन नहीं होती है तो वह गमले में, पुरानी बाल्टी, या फिर कंटेनर में सब्जियां उगाते हैं। जिनमें कुछ लोगों का सवाल होता है कि कंटेनर्स में कौन सी सब्जी उगा सकते हैं, या उगाया जाता है, तो आप हरे पत्ते का सब्जियां कंटेनर्स में उगा सकते हैं, जैसे कि पालक, धनिया, पाकचोई, मेंथी इत्यादि। चलिए आपको बताते हैं इन सब्जियों को उगाने के लिए किस तरह से मिट्टी का मिश्रण तैयार करें।मिट्टी का मिश्रण ऐसे करें तैयारइन सब्जियों को लगाने के लिए यहां पर आपको जबरदस्त मिट्टी का मिश्रण बताने जा रहे हैं। जिससे 100% सफलता मिलेगी।जिसमें सबसे पहले लगभग तीन पार्ट बगीचे की मिट्टी लेना है, दो पार्ट वर्मी कंपोस्ट खाद लेनी है, तथा दो पार्ट कोकोपीट लेना है। थोड़ा सा एक पार्ट के करीब रेत मिला लीजिए।आप अपने हिसाब से भी मात्रा कम या ज्यादा कर सकते हैं। मिट्टी उपजाऊ है तो ज्यादा खाद की जरूरत नहीं पड़ेगी।अगर आपके पास राख है तो एक मुट्ठी वह भी मिला सकते हैं। तथा गाय के गोबर की पुरानी खाद है तो वह भी मिला सकते हैं। नहीं है तो सिर्फ चार चीजों के द्वारा ही मिट्टी तैयार कर सकते हैं। जिसे शुरआत में बताया गया है।इसके बाद 10 से 20 रुपए का बीज बाजार से ले लीजिए, बढ़िया गुणवत्ता वाला बीज लीजियेगा। ताकि अंकुरण अच्छे से हो।जिसमें सभी बीजों को रात भर पानी में भिगोना है। जिसमें धनिया के बीजों को आप थोड़ा सा हाथों से रगड़कर उसके बाद भिगोए और फिर दूसरे दिन मिट्टी अच्छे से तैयार करके उसमें बीजों को छिड़क दे और हल्का हाथों से मिट्टी में मिला दे।फिर पानी देना है। स्प्रे बोतल हो तो उससे पानी दीजिये।कंटेनर्स को आपको उस जगह पर रखना है जहां पर सुबह की धूप आती हो। ध्यान रखें दोपहर के तेज धूप से उसे बचा कर रखना चाहिये।45 दिन में तैयार होंगी सब्जीयह हरे पत्तेदार सब्जियां 45 से 60 दिन के बीच में तैयार हो जाती है। जिसमें समय पर पानी दें। पानी की निकासी का ध्यान रखे। पानी गमलें में रुकना नहीं चाहिए। इन सब्जियों का इस्तेमाल आप सब्जी सलाद या पराठे में कर सकते हैं यह सब यहां सेहत के लिए फायदेमंद होंगे क्योंकि इसमें किसी तरह की रासायनिक चीज का इस्तेमाल नहीं किया गया है और घर पर मेहनत से होगा आएंगे तो स्वाद भी अलग आएगा।
- गार्डनिंग के शौकीन लोग अपने बगीचे में बेल वर्गीय सब्जियां भी लगाना बहुत पसंद करते है और खासकर के लौकी का पौधा तो जरूर ही लगाते है । कई बार लौकी की बेल में फल तो काफी आते है लेकिन सही से ग्रोथ नहीं कर पाते है जिससे लौकी की पैदावार अच्छी नहीं मिलती है। आज हम आपको लौकी के पौधे में डालने के लिए एक उच्च गुणवत्ता वाली खाद के बारे में बता रहे है ये खाद पौधे को भरपूर पोषण देती है जिससे पौधे में लगे फलों का विकास अच्छा होता है और फलों की गुणवत्ता में भी सुधार होता है।लौकी की बेल में डालें ये खादलौकी की बेल में डालने के लिए हम आपको बोनमील के बारे में बता रहे है । बोनमील एक प्राकृतिक जैविक उर्वरक है जो लौकी के पौधे को बहुत मजबूत बनाने के साथ पौधे के विकास को भी बढ़ाती है। बोनमील में मौजूद फास्फोरस और कैल्शियम लौकी की में लगे फलों की ग्रोथ को बढ़ाते है और फलने-फूलने के लिए महत्वपूर्ण होते है। ये पौधे को लंबे समय तक लाभ पहुंचता रहता है। जिससे लौकी बेल स्वस्थ और हरी भरी रहती है बोनमील को अन्य उर्वरकों जैसे गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट के साथ मिलाकर इस्तेमाल करना बेहतर होता है।ऐसे करें इस्तेमाललौकी की बेल में बोनमील का इस्तेमाल बहुत उपयोगी और गुणकारी माना जाता है लेकिन इसका उचित मात्रा में करना फायदेमंद होता है । इसका उपयोग करने के लिए एक चम्मच बोनमील को लौकी के पौधे की मिट्टी की गुड़ाई करके डालना चाहिए। इसके अलावा आप इसको गोबर की खाद मिलाकर भी डाल सकते है । इसके लिए एक मुट्ठी गोबर की खाद में एक चम्मच बोनमील पाउडर को मिक्स करके पौधे में दें सकते है। ऐसा करने से पौधे को अधिक पोषण मिलता है जिससे पौधे में लौकी की उपज दिन दूनी रात चौगुनी हो जाती है।
- मनी प्लांट में पोषक तत्व की कमी होने से पौधे की पत्तियां पीली होने लगती है । ऐसे में पौधे को पोषक तत्व से भरपूर फर्टिलाइजर की जरूरत होती है। आज हम आपको मनी प्लांट के लिए एक ऐसी चीज के बारे में बता रहे है जो पौधे को हरा भरा चमकदार बनाने के लिए बहुत लाभकारी होती है । ये चीज आपको मार्केट में आसानी से मिल जाएगी ।इसमें बहुत ज्यादा मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते है जो मनी प्लांट की बेल की ग्रोथ बढ़ावा देते है। तो चलिए इसके बारे में विस्तार से जानते है।मनी प्लांट में डालें ये चीजमनी प्लांट में डालने के लिए हम आपको पोटाश के बारे में बता रहे है । ये पौधे में पोटेशियम की कमी को बहुत तेजी से पूरा करता है और जड़ों को मजबूत बनाने, पत्तियों को हरा-भरा रखने और समग्र रूप से पौधे के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है।पोटाश मनी प्लांट की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है जिससे पौधा बीमारियों और कीटों से लड़ने में सक्षम होता है। इसके आवला अगर आपके पास पोटाश नहीं है तो आप केले के छिलके का उपयोग भी पौधे में कर सकते है। केले के छिलके में पोटैशियम बहुत अधिक मात्रा में होता है जो पौधे के लिए उपयोगी साबित होता है।कैसे करें उपयोगमनी प्लांट में पोटाश का उपयोग बहुत ज्यादा उपयोगी और लाभकारी साबित होता है । इसका उपयोग करने के लिए एक लीटर पानी में एक छोटा ढक्क्न पोटाश को घोलना है और मनी प्लांट की मिट्टी में इस फर्टिलाइजर को डालना है । इससे मनी प्लांट को जरुरी पोषक तत्व मिलेंगे जिससे मनी प्लांट की पत्तियां हरी और चमकदार खूबसूरत होंगी। इसका उपयोग आप महीने में एक बार पौधे में कर सकते है।
- 0- कृषि विभाग ने किसानों को समसामयिक सलाह दी0- समय पर बीज भंडारण होने से राजनांदगांव जिले में 1 लाख 54 हजार 494 हेक्टेर में धान की बुवाई संपन्नराजनांदगांव । कृषि विभाग द्वारा किसानों को धान की अधिक पैदावार के लिए उर्वरकों के साथ लिक्विड यूरिया का उपयोग करने की सलाह दी गई है। किसान धान के कंशे बनने की अवस्था में यूरिया की बोरी का उपयोग न करते हुए तरल रूप में उपलब्ध नैनो यूरिया का एक बॉटल का उपयोग प्रभावी रूप से पत्तियों पर कर सकते है, जो बोरी यूरिया वाले यूरिया से ज्यादा कारगर व पौधों की पत्तियों में सीधा चिपकर नत्रजन की पूर्ति करता है। इससे पौधों के 80 प्रतिशत तक उपयोग क्षमता में बढ़ोतरी होती है। नैनो यूरिया के छिड़काव के लिए 1 लीटर पानी में 2-4 मि. लीटर नैनो यूरिया (4 प्रतिशत नत्रजन) मिलाएं और फसल में सक्रिय विकास के चरणों में पत्तियों पर छिड़काव करें। सामान्य तौर पर एक एकड़ क्षेत्र में नेमसेक स्प्रेयर, बूम या पॉवर स्प्रेयर अथवा ड्रोन सहित अन्य माध्यम से छिड़काव करने के लिए 500 एमएल मात्रा पर्याप्त होती है। सर्वोत्तम परिणाम के लिए 2 पत्तेदार छिड़काव करें। पहला छिड़काव सक्रिय टिलरिंग व ब्रांचिंग अवस्था में अंकुरण के 30-35 दिन बाद या रोपाई के 20-25 दिन बाद एवं दूसरा छिड़काव पहले के 20-25 दिन बाद या फसल में फूल पहले।जिले में खरीफ धान की बुवाई मानसून के आगमन के साथ ही शुरू हो गई है। खेत की तैयारी के साथ-साथ समय पर बीज भंडारण होने से किसानों द्वारा इसका उठाव कर जिले में अब तक 1 लाख 54 हजार 494 हेक्टेर में धान की बुवाई का कार्य सम्पन्न हो चुका है। शासन द्वारा लगातार यूरिया, डीएपी एवं पोटाश की मांग अनुसार भंडारण समितियों में किया जा रहा है। जिले में अब तक सहकारी समितियों में 35538 मीट्रिक टन खाद भंडारण कर 32717 मीट्रिक टन खाद का वितरण किसानों को किया जा चुका है। इसके साथ ही जिले में लगातार यूरिया, डीएपी की रेक लग रही है, जिसे तत्काल सभी समितियों में भंडारण कराया जा रहा है। धान की खेती में मुख्यत: तीन प्रकार के पोषक तत्व नाईट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश का उपयोग बीज बुवाई से लेकर कंशे से लेकर गभोट अवस्था तक किया जाता है।प्रथम नत्रजन जिसका कार्य जड़ तना तथा पत्ती की वृद्धि एवं विकास में सहायता करना, बीज और फलों का विकास तथा पुष्पन व जड़ों के विकास में वृद्धि करना है। सामान्य तौर पर शीघ्र पकने वाली धान की किस्मों में 24 किलो ग्राम नत्रजन, 24 किलो ग्राम फास्फोरस तथा 24 किलो ग्राम पोटाश की मात्रा का उपयोग किया जाता है, जिसके लिए एक बोरी यूरिया, एक बोरी डीएपी या तीन बोरी एसएसपी व आधा बोरी पोटाश का उपयोग किया जाना चाहिए। धान के खेत की तैयारी करने के बाद कंशे निकलने तक किसी भी प्रकार के खाद का उपयोग नहीं करना चाहिए, जब फसल 45-50 दिन के बाद धान में कंशे फुटने लगे तक 24 किलोग्राम नत्रजन जिसके लिए एक बोरी यूरिया पुन: पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए। इसी प्रकार मध्यम अवधि में पकने वाले धान किस्मों में तैयारी के समय 30 किलो ग्राम नत्रजन, 24 किलो ग्राम फास्फोरस तथा 24 किलो ग्राम पोटाश का उपयोग करना चाहिए। जिसके लिए 2 बोरी यूरिया, 1 बोरी डीएपी या 2 बोरी एसएसपी या आधा बोरी पोटाश का उपयोग करना चाहिए। जब धान 45-50 दिन हो जाये तभी 30 किलोग्राम नत्रजन का उपयोग किया जाना चाहिए।
- 0- कृषि यांत्रिकीकरण सबमिशन के तहत धान पैडी ट्रान्सप्लांटर के लिए मिला 4 लाख 10 हजार रूपए का अनुदान0- शासन की किसान हितैषी योजनाएं किसानों को नये कृषि यंत्र खरीदने के लिए कर रही प्रोत्साहितराजनांदगांव । कृषि के खेती किसानी की नवीनतम तकनीक एवं आधुनिक यंत्रों ने कृषि कार्यों को आसान बना दिया है। धान पैडी ट्रान्सप्लांटर मशीन से मेहनतकश किसानों के श्रम एवं समय की बचत हो रही है। इस मशीन के माध्यम से निर्धारित दूरी पर रोपा लगाने का कार्य बहुत सरल हो गया है। रोपा लगाने का कार्य श्रममाध्य है और समय भी बहुत लगता है। ऐसे में धान पैडी ट्रान्सप्लांटर मशीन किसानों के लिए वरदान से कम नहीं है। डोंगरगांव विकासखंड के ग्राम केसला के प्रगतिशील किसान श्री चोहलदास साहू के लिए धान पैडी ट्रान्सप्लांटर मशीन बहुत उपयोगी साबित हो रही है। उन्होंने बताया कि शासन की योजना अंतर्गत कृषि विभाग के तहत छत्तीसगढ़ राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम लिमिटेड से धान पैडी ट्रान्सप्लांटर के लिए कृषि यांत्रिकीकरण सबमिशन के तहत 4 लाख 10 हजार रूपए का अनुदान प्राप्त हुआ है। उन्होंने बताया कि मशीन की कुल लागत 9 लाख रूपए है। उन्होंने कहा कि इस मशीन से रोपा लगाने का कार्य आसान हो गया है।प्रगतिशील किसान श्री चोहलदास साहू ने बताया कि उनके पास 10 एकड़ जमीन है। धान पैडी ट्रान्सप्लांटर से रोपा लगाने में मेहनत एवं समय की बचत हुई तथा फसल के उत्पादन में वृद्धि हुई है। रोपा लगाने में कृषि लागत में भी कमी आई है। एक ही दिन में 4 एकड़ तक भूमि में रोपा लग जाता है, जिससे खुशी होती है। थरहा को लाने ले जाने में भी सुविधा मिलती है। उन्होंने बताया कि मशीन से थरहा लगाने पर घना लगता है और पौधों का विकास भी अच्छा होता है। मशीन से निर्धारित दूरी पर रोपा लगने से बीमारी भी कम होती है और पौधों का अच्छा विकास हो जाता है।उन्होंने कहा कि शासन द्वारा कृषक उन्नति योजना के तहत 3100 रूपए प्रति क्विंटल की दर और प्रति एकड़ 21 क्विंटल के मान से धान खरीदी की जा रही है। शासन की किसानहितैषी योजनाओं से किसानों को बहुत फायदा हो रहा है। जिससे वे नये कृषि यंत्रों को खरीदने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि मशीन से रोपा लगाने पर प्रति एकड़ 31 क्विंटल धान का उत्पादन हो रहा है। इसके अलावा वे पैडी ट्रान्सप्लांटर से अन्य किसानों के लिए भी प्रति वर्ष लगभग 40 एकड़ भूमि में किराए से रोपा लगा रहे है। प्रति एकड़ 3 हजार 500 रूपए की दर से किराए पर रोपा लगाने पर लगभग 1 लाख 20 हजार रूपए की अतिरिक्त आय हुई है।जिले के किसान शासन की योजनाओं के तहत कृषि यांत्रिकीकरण सबमिशन अंतर्गत आधुनिक कृषि यंत्र ट्रेक्टर, थ्रेसर, हार्वेस्टर, हैप्पी सीडर, स्प्रेयर, राईस ट्रायर, स्ट्रा बेलर, लेजर लैंड लेवलर, रोटावेटर, मल्चर, स्ट्रॉ रीपर, पैडी मल्टीक्रॉप थ्रेसर, सीड ड्रिल, सीड कम फर्टिलाईजर ड्रिल, कल्टीवेटर, एमबी प्लाऊ, लेवलर, केजव्हील, रीजरे, बंड फारमर, हैरो, चिसल प्लाऊ, जीरो टिल सीड ड्रिल, शक्ति चलित विनोविंग फेन, पॉवर टिलर, कम्बाईन हार्वेस्टर, ड्रोन से कीटनाशक छिड़काव जैसे कृषि यंत्र के माध्यम से किसान लाभान्वित हो रहे हंै और कृषि यंत्र एवं उपकरण खरीद रहे हैं। शासन द्वारा कृषि यंत्रों को खरीदने के लिए सब्सिडी प्रदान की जा रही है। जिससे किसानों को बहुत मदद मिल रही है। शासन द्वारा कृषि यांत्रिकीकरण सबमिशन अंतर्गत वर्ष 2024-25 में किसानों को कृषि उपकरण खरीदने के लिए 3 करोड़ 31 लाख 48 हजार रूपए का अनुदान दिया गया।
- अक्सर पोषक तत्वों के कमी से जेड प्लांट की पत्तियां पीली पड़ने लगती है ऐसे में पौधे की ग्रोथ भी अच्छे से नहीं हो पाती है। आज हम आपको जेड प्लांट की ग्रोथ बढ़ाने के लिए कुछ ऐसी चीजों के बारे में बता रहे है जो जेड प्लांट के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती है । ये चीजें आपको मार्केट में आसानी से मिल जाएगी। ये न केवल पौधे में पोषक तत्व की कमी को पूरा करते है बल्कि पौधे को कीटों और बिमारियों से भी बचाते है। तो चलिए इनके बारे में विस्तार से जानते है।जेड प्लांट में डालें ये चीजजेड प्लांट में डालने के लिए हम आपको फिटकरी और चॉक के बारे में बता रहे है । फिटकरी में कीटाणुनाशक गुण होते है जो बरसात के मौसम में जेड प्लांट को कीड़ों, फंगस और बीमारियों से बचाने में मदद करते है। फिटकरी मिट्टी के पीएच स्तर को संतुलित करती है जिससे पौधे की ग्रोथ अच्छे से होती है । चॉक मुख्य रूप से जेड प्लांट में कैल्शियम की कमी को तेजी से पूरा करता है क्योकि चॉक कैल्शियम कार्बोनेट का एक रूप है जो पौधे के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है। चॉक मिट्टी को भुरभुरा बनाता है जिससे पानी और हवा का संचलन बेहतर होता है। ये जड़ों को स्वस्थ रखने और पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है।कैसे करें उपयोगजेड प्लांट में फिटकरी और चॉक का उपयोग बहुत ज्यादा उपयोगी और लाभकारी साबित होता है इनका उपयोग करने के लिए आधे लीटर पानी में आधा चम्मच फिटकरी के पाउडर को घोलना है फिर जेड प्लांट की मिट्टी में डालना डालना है इसके बाद एक चॉक के टुकड़े को जेड प्लांट की मिट्टी में दबा देना है। ऐसा करने से पौधे को आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त होते है और जिससे जेड प्लांट की पत्तियां हरी और चमकदार होती है।
- कुछ लोगों को गार्डनिंग का बहुत शौक होता है और अपने बगीचे में तरह-तरह के पौधे लगाना बहुत पसंद करते है। कई बार कुछ लोगों के बगीचे में लगा पान का पौधा सही से ग्रोथ नहीं कर पाता है ।आज हम आपको पान के पौधे के लिए एक ऐसी चीज के बारे में बता रहे है जो पौधे के लिए बहुत लाभकारी साबित होती है । ये चीज आपको मार्केट किसी भी किराने की दुकान में आसानी से मिल जाएगी । इसमें मौजूद तत्व पौधे को भरपूर पोषण देते है और पौधे की ग्रोथ बढ़ाते है जिससे पान की बेल अनगिनत पत्तियों से घनी हो जाती है।पान के पौधे में डालें ये चीजपान के पौधे में डालने के लिए हम आपको फिटकरी के बारे में बता रहे है । फिटकरी एक कीटनाशक के रूप में काम करती है । साथ ही फिटकरी मिट्टी की पीएच वैल्यू को संतुलित करती है जिससे पौधे को आवश्यक पोषक तत्व आसानी से मिलते है। ये पौधे को फंगस और कीड़ों से बचाती है और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करती है। फिटकरी में एल्युमिनियम सल्फेट और पोटेशियम सल्फेट जैसे रासायनिक गुण होते है जो पौधे के विकास और स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होते है। पान के पौधे में फिटकरी का उपयोग जरूर करना चाहिए।कैसे करें उपयोगपान के पौधे में फिटकरी का उपयोग बहुत उपयोगी और लाभकारी साबित होता है इसका उपयोग करने के लिए एक लीटर पानी में एक चम्मच फिटकरी के पाउडर को घोलना है फिर पान के पौधे की मिट्टी में इस फ़र्टिलाइज़र को डालना है ऐसा करने से पौधे को आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त होंगे जिससे पान के पौधे में खूब अधिक संख्या में पत्ते लगेंगे। जिससे आपको कभी बाजार से पान के पत्ते खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
- -प्रशांत शर्माआज घर में बैठे- बैठे किताब की आलमारी में एक पुस्तक पर नजर टिक गई। शिवाजी सावंत का लिखा उपन्यास मृत्युंजय था। काफी पहले पढ़ा था, फिर जिज्ञासा हुई और यह किताब खोल ही डाली। कुछ- कुछ याद था और कुछ शब्द और प्रसंग विस्मृत हो चुके थे। पहला पन्ना और फिर दूसरा, सब कुछ नया लग रहा था, यह लेखक शिवाजी सावंत की लेखनी का ही कमाल था कि प्रत्येक पन्ने पर हर शब्द और बातें आगे पढऩे को प्रेरित कर रहे थे। बचपन की वो किताबें पढऩे की जिज्ञासा भी बढ़ती जा रही थी। वो बचपन जब रात- रात भर में एक किताब खत्म कर दिया करते थे। अब सोशल मीडिया ने ऑन स्क्रीन पढऩे की आदत डाल दी थी, तो पन्ने पर कुछ पढऩा भी नया सा लग रहा था। अच्छा लगा कि किताब के शब्दों को बिना चश्मे के पढ़ पा रहा था। यह उपन्यास जब लिखा गया और प्रकाशित हुआ था, तब मेरी उम्र इतनी नहीं थी कि मैं इसे पढ़ पाता।खैर कुछ बातें इस उपन्यास के बारे में ।मृत्युंजय उपन्यास दानवीर कर्ण के विराट् व्यक्तित्व पर केन्द्रित है। महाभारत के कई मुख्य पात्रों में से एक कर्ण के व्यक्त्तिव से खुद श्रीकृष्ण भी प्रभावित थे। शिवाजी सावंत ने बहुत ही सुंदर तरीके से कर्ण की ओजस्वी, उदार, दिव्य और सर्वांगीण छवि को इस किताब में प्रस्तुत किया है। उन्होंने इस किताब में पौराणिक कथ्य और सनातन सांस्कृतिक चेतना के अन्त: सम्बन्धों को पूरी गरिमा के साथ चित्रित किया गया है। एक प्रकार से कह सकते हंै कि यह उपन्यास काफी अनूठा है। मूल रूप से यह मराठी में लिखा गया था, लेकिन हिन्दी अनुवाद में इसकी मूल भावना कायम रखी गई है।जब 1967 में मराठी में इस उपन्यास का 3000 का प्रथम संस्करण छपा तो पाठक पढक़र स्तब्ध रह गये। कर्ण, कुन्ती, दुर्योधन, वृषाली (कर्ण-पत्नी), शोण और कृष्ण के मार्मिक आत्म-कथ्यों की श्रृंखला को रूपायित करने वाला यह उपन्यास पाठकों में इतना लोकप्रिय हुआ कि चार पाँच वर्षों में इसके चार संस्करण प्रकाशित हो गए और प्रतियों की संख्या पचास हजार पहुंच गईं। इसका अनुवाद अंग्रेज़ी एवं हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम, बांग्ला आदि अनेक भाषाओं में भी हो चुका है।सही मायने में यह उपन्यास शिवाजी सावंत की लोकप्रियता का प्रतिमान बना। जब भी फुरसत मिले तो एक बार सोशल मीडिया से नजर चुराकर इस उपन्यास को जरूर पढि़ए.... कुछ पौराणिक चरित्र हमेशा प्रेरणा ही देते हैं। .
- आलेख- अतुल कुमार 'श्रीधर'संसार में बहुत से व्यक्ति ऐसे हैं जिनमें अगाध आत्मविश्वास है। यह आत्मविश्वास उनका स्वयं का बल नहीं होता, अपितु वे किसी शक्ति से जोड़कर अपने विश्वास को बड़े ऊंचे स्तर तक ले जाते हैं। यह भी देखने में आता है कि एक बड़ा वर्ग अपने मन में, कर्म में, जीवन में निरन्तर किसी पीड़ा, किसी अभाव और किसी निराशा को महसूस करता रहता है। इन दोनों प्रकार के जो व्यक्ति हैं, उनकी मानसिकताओं और स्थितियों में एक शक्ति के योग और अयोग की ही बात है।यह शक्ति है आस्था की शक्ति! आस्था जिसे श्रद्धा भी कह सकते हैं। और यह आस्था किस पर हो, यह भी एक आवश्यक और विचारणीय बात है। व्यक्ति की स्वयं की क्षमता कितनी है? यदि आंका जाय तो यकीनन कुछ भी नहीं। व्यक्ति तो इतना असहाय है कि यदि बचपन में माता दूध न पिलावे तो उसका पोषण ही न हो। बचपन से आगे जीवन के हर पड़ाव में बारम्बार व्यक्ति दूसरों पर ही निर्भर रहकर क्रमश: आगे बढ़ता है और अपनी सफलतायें अर्जित करता है। तो यह तो निश्चित बात है कि किसी में स्वयं का अहं भाव तो होना ही नहीं चाहिये, उसे विनीत होना चाहिये क्योंकि वह समस्त जगत का उपकार ग्रहण कर रहा है, चाहे वह इसे जाने अथवा ना जाने। मनुष्य स्वभाव से कृतज्ञ बनकर रहे।इसके आगे एक बात और विचारणीय है कि दूसरे भी किसी सीमा तक ही किसी की मदद कर सकते हैं। संसार में जब तक स्वार्थ सधता है, बस स्वार्थ की इसी सीमा के अनुसार ही व्यवहार होता है। जिसका स्वार्थ न हो, अथवा उससे बिगाड़ की आशंका हो, तो कितने ही करीबी संबंधों में भी हाथ खींच लिये जाते हैं। तो सबकी अपनी-अपनी सीमायें हैं। यह निश्चित है कि मनुष्य यदि यह सोचे कि उसका निर्वाह स्वयं पर अथवा संसार पर ही विश्वास करके हो सकता है, निराशाजनक ही होगा। संसार के साजो-सामान, पद-प्रतिष्ठा, शोहरत भी किसी को आत्मसुख प्रदान नहीं कर सकते हैं। इसलिये मनुष्य को अपने विश्वास को इससे आगे और कहीं ऊँचे स्तर तक ले जाना होगा।यह ऊँचे स्तर का विश्वास एकमात्र भगवान पर ही स्थाई रह सकता है। क्यों? क्योंकि उसे किसी से कोई स्वार्थ नहीं है और सबसे बड़ी बात यह कि वह सबका परमपिता और माता है। वह समस्त आस्थाओं का, विश्वास का आधार है। वह सबकी आत्मा में नित्य विराजमान, चराचर जीव का जीवनदाता, प्रेरक और नित्य संगी है। मुसीबत की बात बस यही है कि हम उसकी मौजूदगी को अपने जीवन में महसूस नहीं कर पाते। जबकि वह हमारे चारों ओर है, अस्तित्व ही उन्हीं से है। वह प्रेम का, करुणा का, कृपा का, दयालुता का और अनंतानंत गुणों की खान हैं, बल्कि वह तो स्वयं ही प्रेम हैं, कृपा हैं, करुणा हैं, दया हैं। उसकी जो भी परिस्थितियां दी हमें दी हुई हैं, वह वस्तुत: हमारे ही कर्मों का परिणाम है। उस पर विश्वास करने से विकट परिस्थितियाँ भी बिना कष्ट के स्वीकार्य हो जाती हैं और नवीन उत्साह के साथ उसके सुधार की ओर गति होती है। ऐसा न हो तो विकट परिस्थितियां घातक भी हो जाती हैं। ईश्वर पर विश्वास करने का यह अर्थ भी है हम उसके विधान पर विश्वास करते हैं।मनुष्य को उन्हीं का आश्रय ग्रहण करना चाहिये। उन्हीं की प्रेरणा का अनुभव करते रहना चाहिये। उनकी प्रेरणा निरन्तर हमारी आत्मा में गूँजती रहती है, बस संसार और हमारी अस्थिरता का शोर इतना अधिक हो जाता है कि वह आवाज सुनाई ही नहीं पड़ती और अगर सुनाई पड़े भी तो दूसरी ओर का विश्वास इतना प्रबल बन पड़ा है हमारा कि हम उस आवाज की ओर से कान बन्द कर लेते हैं। फलत: जीवन का उत्थान हो ही नहीं पाता, और किसी भंवर में गोते खाने के समान ही ऊंच-नीच के हिचकोले खाता रहता है। क्या मनुष्य इसी तरह दया का पात्र बनने को आया है? नहीं, वह तो परमपिता भगवान का सनातन पुत्र है और जीवन की सर्वोच्चता को पाना उसका अधिकार है।तो इस अधिकार के लिये उसे विश्वास को ऊंचा उठाना होगा। जब यह विश्वास, जिसे आस्था, श्रद्धा, अनुराग आदि नामों से पुकार सकते हैं; आ जाय तो जीवन में निराशा की काली छाया भला टिक सकती है? अरे, ईश्वरीय आस्था तो वह सूर्य है, कि जिसकी रोशनी में किसी अंधकार का टिक पाना तो असम्भव है। यह अंधकार है निराशा, दु:ख, अभाव, अज्ञान, अशान्ति आदि। श्री रवींद्रनाथ टैगोर जी ने कहा है,
'..आस्था वो पक्षी है जो भोर के अँधेरे में भी उजाले को महसूस करती है।'जीवन को ईश्वर में आस्था से जोड़कर जगत में व्यवहार करें, जो कुछ हमारे पास है, जगत को उसी का स्वरुप मानकर उससे जगत-देवता की सेवा हो, सबके भले की कामना हो। अपना और दूसरों का जीवन इस प्रकार से आशा और सम्पन्नता से भर जायेगा।अरे मनुज! दृष्टि उठा,जरा दूर देख, जरा दूर देखवह जो कोई बड़ी दूर खड़ा है,उसे पास ला, उसे पास ला।नाहक ही वह दूर हटा,जब जीवन अगनित से सटा।अगनित से अब एक चुन,उस एक बिना तो सब है शून।वस्तुत: जीवन में ईश्वरीय आस्था को लाना ही आशा और सुख को लाना है। क्योंकि आशा और सुख, ये दोनों उसी ईश्वर के ही नाम हैं। ईश्वर केवल ईश्वर नहीं है, वह अनन्त गुण भी है। - - जगतजननी मां शक्ति की स्तुति-अनिल पुरोहित'माँ'! अनादि काल से सृष्टि का प्रत्येक घटक 'माँ' शब्द का उच्चारण कर अपनी सुरक्षा की याचना करता आ रहा है! समस्त कष्टों-आपदाओं से हमारी सुरक्षा करती आई है माँ! और इसीलिए इस सनातन सत्य का उद् घोष हमारी मातृ-पद वंदना में पूर्ण श्रद्धा के साथ व्यक्त होता है-हे! परम मंगल रूपिणीहे! सौम्य शांत स्वरूपिणीहे! धम्म शक्तिदायिनी!मन जब अशांत-अस्थिर-विचलित हो उठता है, धवल आशाओं के टिमटिमाते दीये जब निराशा की कालिमा से संघर्ष करते हैं, तब अंतरात्मा याचक बन आर्त-पुकार करती है-माँ! ले चलो, मुझे ले चलोउस शांत धरणी पर मुझेमाँ ले चलो!माँ से कुछ छिपा नहीं रहता! वह तो मुख पर तैरती भाव-भंगिमाओं को ताड़ जाती है। वह याचक का निवेदन भला कैसे ठुकरा दे, आर्तमन पुकारता है-शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥माँ देवी है! मातृ देवो भव:! हम अनादि काल से यही अर्चना करते आ रहे हैं-या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमो नम:!और वही माँ हमें अपनी कृपा-सरिता के पुण्य-प्रवाह का स्पर्श कराती हुई ले चलती है! कहां...? वहीं- उस शांत धरणी पर...जहां पूर्ण परमानंद है,जहां मधुर शिव आनंद हैजहां दीखता नहीं द्वंद्व है!यही पूर्ण परमानंद-मधुर आनंद है, सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा! 'माँ' आसुरी वृत्तियों का दमन करने वाली शक्ति-पुंज है। सृष्टि में पुत्र और माँ का संबंध सूत्र इस्पात की तरह मजबूत और कुसुम की भांति कोमल होता है! माँ कभी गलत नहीं हो सकती। आसुरी वृत्तियों का शिकार सृष्टि में हम पुत्र होते हैं, पर माँ तब भी हमें सम्हालती है! इसीलिए तो हम आराधना की बेला में कहते हैं-
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति।भारतीय संस्कृति में ही माँ को जगज्जननी का परम पद दिया गया है- वही सत्-चित् सुखमय शुद्ध ब्रह्म रूपा है- रमा, उमा, महामाया, राम-कृष्ण-सीता-राधा, पराधामनिवासिनी, श्मशानविहारिणी, तांडवलासिनी, सुर-मुनिमोहिनी सौम्या, कमला, विमले, वेदत्रयी- सर्वस्व वही है! ज्ञान प्रदायिनी, वैराग्यदायिनी, भक्ति और विवेक की दात्री 'माँ' की अभ्यर्थना का महापर्व 'शारदीय नवरात्रि' का मंगलगान गूंज उठे...
माँ! उतेरो शक्ति रूप मेंमाँ! उतेरो भक्ति रूप मेंमाँ! उतेरो ज्ञान रूप मेंअब लो शरण ज्ञानेश्वरी!हम क्या हैं? कहां से आए हैं? कहां जाना है? क्या लक्ष्य है हमारा? सारे विवादों से परे हटकर, आसुरी वृत्तियों का दमन कर हम अर्चना के पद गुनगुनाएं...हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरेहैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरेऔर प्रार्थना करें-
निज स्वभाववश जननि दयादृष्टि कीजैकरुणा कर करुणामयि! चरण-शरण दीजै!करुणेश्वरी की आराधना के महापर्व 'शारदीय-नवरात्रि' की पावन बेला पर जगज्जननी के पावन पाद-पद्मों में कोटिश: नमन, इस विनम्र प्रार्थना के साथ- आसुरी वृत्तियों का दमन करो मां! इस राष्ट्र को परम-वैभव के शिखर तक पहुंचा सकें, ऐसी शक्ति दो मां! सर्वत्र सुख-शांति-वैभव का साम्राज्य फैला दो माँ!सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खमाप्नुयात्! -
- ललित चतुर्वेदी
रायपुर। हमारे जीवन को संवारने में शिक्षक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। शिक्षक दिवस, जो हर साल 5 सितंबर को मनाया जाता है, हम सभी के लिये उन्हें धन्यवाद देने का महत्वपूर्ण अवसर है।देश के प्रथम उपराष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब वे भारत के राष्ट्रपति थे तब कुछ पूर्व छात्रों और मित्रों ने उनसे अपना जन्मदिन मनाने का आग्रह किया। उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा कि यह बेहतर होगा कि आप इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाए। इसके बाद 5 सितम्बर को हमारे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। शिक्षक शिक्षा और ज्ञान के जरिये बेहतर इंसान तैयार करते है, जो राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देते है। हमारे देश की संस्कृति और संस्कार शिक्षकों को विशेष सम्मान और स्थान देती है। गुरू शिष्य के जीवन को बदलकर सार्थक बना देता है।बच्चों की शिक्षा के लिए समर्पित सभी गुरूजनों को सलाम है। गुरूजनों का सम्मान हम सबकी सामाजिक जिम्मेदारी है, जो बच्चों को अपने ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करने के साथ ही समाज को नई दिशा देते हैं।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की स्थिति में सुधार के लिए शिक्षकों और छात्र-छात्राओं से किए गए वादे को न केवल निभाया है, बल्कि अमलीजामा पहनाना भी शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ राज्य में नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत पहली बार बारहवीं कक्षा तक के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार प्रदान किया है। राज्य निर्माण के बाद पहली बार लगभग 15 हजार शिक्षकों की नियमित नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की गई। व्यापम ने शिक्षकों की भर्ती के लिए परीक्षाएं आयोजित की और इसके परिणाम भी जारी कर दिए। कोरोना संक्रमण को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने शिक्षकों के परीक्षा परिणाम की वैधता को एक वर्ष तक बढ़ाए जाने की सहमति दी है। स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षाकर्मियों का पंचायत शिक्षक और शिक्षिका के रूप में संविलियन किया गया। राज्य में पहली बार कक्षा बारहवीं तक के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार मिला है।राज्य शासन ने 2 साल या उससे अधिक की सेवावधि पूरी करने वाले शेष बचे पंचायत नगरीय निकाय संवर्ग के 16 हजार 278 शिक्षकों का संविलियन शिक्षा विभाग में करने का निर्णय लिया है। एक नवम्बर 2020 तक इस प्रक्रिया को पूरा किया जाना है। पंचायतों एवं नगरीय निकायों के ऐसे शिक्षकों जिन्होंने एक जुलाई 2020 को अपना 8 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया है, उनका भी संविलियन स्कूल शिक्षा विभाग में किया जाएगा। प्रदेश सरकार के इस ऐतिहासिक निर्णय से अब शिक्षक जैसे गरिमामय पदनाम से इन्हें जाना जाएगा।प्रदेश में शिक्षा को वर्तमान परिवेश की जरूरत को ध्यान में रखते हुए बेहतर बनाने का प्रयास प्रदेश सरकार द्वारा किया जा रहा है। सरकारी स्कूलों में भी अब अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को निजी स्कूलों की तरह शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्य में 41 उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम के मॉडल स्कूल शुरू किए गए है। आगामी वर्ष में सौ और उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल शुरू किए जाएंगे। यह राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के गुरूजनों के प्रति विश्वास का प्रतीक है कि हमारे गुरूजन अंग्रेजी माध्यम के जरिए ग्रामीण अंचल के बच्चों को भी बड़े-बड़े शहरों में स्थित प्रायवेट स्कूलों से बेहतर शिक्षा-दीक्षा दें सकेंगे।आज शिक्षण के क्षेत्र में नई चुनौतियों के सामने आने पर शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ी है। वर्तमान में पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। इसको देखते हुए शिक्षा व्यवस्था में बदलाव भी करना पडा है।विश्वव्यापी कोरोना संकट के चलते बीते मार्च महीने से अब तक स्कूल बंद होने की स्थिति में छत्तीसगढ़ राज्य ने बच्चों को घर पहुंच शिक्षा उपलब्ध कराने की अनुकरणीय पहल की है। इस पहल को देशभर में सराहा गया है।कोरोना संक्रमण के चलते स्कूली बच्चों को शैक्षणिक गतिविधियां से जोड़े रखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने वेब पोर्टल पढ़ई तुंहर दुवार शुरू किया। यह पोर्टल आज बच्चों को घर पहुंच शिक्षा उपलब्ध कराने का सबसे सशक्त माध्यम बन चुका है। इस वेब पोर्टल का शुभारंभ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 7 अप्रैल को किया था। इस पोर्टल के माध्यम से राज्य के लगभग 2 लाख शिक्षक जुड़े हैं, जो इसके माध्यम से 22 लाख बच्चों को ज्ञान का प्रकाश पहुंचाने में मदद कर रहे हैं।बच्चों को पढ़ाई से निरंतर जोड़े रखने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने आनलाईन पोर्टल पढ़ई तुंहर दुवार के साथ ही मोबाइल इंटरनेट विहीन क्षेत्रों में बच्चों की शिक्षा की ऑफलाइन व्यवस्था के तहत लाउडस्पीकर, पढ़ई तुंहर पारा और बुलटू के बोल के जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सुनिश्चित की है। इससे सुदूर वनांचल के बच्चों को भी पढ़ाई कराई जा रही है। कई शिक्षक स्वेच्छा से अपने आसपास के परिस्थितियों के आधार पर बच्चों की शिक्षा के लिए नवाचारी उपाय कर रहे हैं।नीति आयोग ने छत्तीसगढ़ के आकांक्षी जि़ला नारायणपुर में सामुदायिक सहायता से संचालित पढ़ई तुंहर दुआर योजना को सराहा है। यहां जि़ला प्रशासन एवं गांव के युवाओ के मदद से जहां नेटवर्क नही है,वहां सामुदायिक भवन , घर के बरामदे में कोविड-19 के निर्देशों का पालन करते हुए , बच्चों को शिक्षा प्रदान की जा रही है और अब मिस कॉल गुरुजी के साथ प्रदेश के 7 जिलो बलौदाबाजार, जांजगीर- चांपा, सूरजपुर, सरगुजा, दुर्ग ,कोंडागांव ,बस्तर में शुरू हुए खास अभियान को शिक्षकों ने अपना लिया है । इसके अंतर्गत कक्षा पहली और दूसरी के बच्चों को अगस्त माह से नवंबर माह तक प्रारंभिक भाषा शिक्षण में दक्ष बनाया जाएगा। जिन बच्चों के पास स्मार्टफोन नही था और पढ़ई तुंहर दुआर से वंचित थे, मिस कॉल गुरुजी छात्रों के लिए काफी उपयोगी सिद्ध हो रहा है। दुर्ग जिले के 200 स्कूलों में हर घर स्कूल नामक अभियान संचालित है, जिसमें दुर्ग ब्लॉक 112 तथा पाटन ब्लाक के 88 प्राथमिक स्कूल शामिल है । जिला परियोजना कार्यालय समग्र शिक्षा एवं लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन के माध्यम से संचालित अभियान के तहत बच्चों की भाषाई दक्षता को बेहतर बनाने का कार्य किया जा रहा है।--- -
ललित चतुर्वेदी, सहायक संचालक
छत्तीसगढ़ में स्कूल शिक्षा में लगातार नवाचार और गुणवत्ता शिक्षा को निरंतर बल प्रदान किया जा रहा है। कक्षा पहली से आठवीं तक के स्कूली बच्चों का राज्य स्तरीय आकलन में 43 हजार 824 स्कूलों के 28 लाख 93 हजार 738 बच्चों का गुणवत्ता सुधार हेतु आकलन किया गया। विगत एक वर्ष में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा किया गया। राज्य स्तरीय आकलन राष्ट्रीय स्तर पर विद्यार्थियों के आकलन के लिए रोल मॉडल बन गया है। सरकार का प्रयास है कि प्रत्येक विद्यार्थी अपनी निहित क्षमताओं का सर्वश्रेष्ठ परिवर्तन कर सके। इसमें शिक्षक अपनी सभी विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को पहचानकर विद्यार्थियों की दक्षता बढ़ाने के लिए कार्य कर सकेंगे। राज्य स्तर पर आकलन की रिपोर्ट अत्यंत उपयोगी है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप स्कूल शिक्षा विभाग शिक्षा व्यवस्था अंतर्गत प्रत्येक बच्चे को उनकी पहुंच सीमा के अंतर्गत विद्यालय उपलब्ध कराने कटिबद्ध है। साथ ही शाला में दर्ज प्रत्येक विद्यार्थी को गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करने प्रयासरत है। शासन के प्रयास से राज्य के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और दुर्बल वर्ग के विद्यार्थियों को शालाओं में उनकी जनसंख्या प्रतिशतता के क्रम में शासन द्वारा सफलता प्राप्त की गई है।
आईसीटी और स्मार्ट क्लास
प्रदेश के चार हजार 330 शासकीय हाई स्कूल और हायर सेकेण्डरी स्कूलों में आई.सी.टी. योजना प्रारंभ की गई है। इसके अंतर्गत लैब साइट डिजिटल क्लास रूम प्रारंभ किया गया है। विद्यालयों में स्क्रीन और प्रोजेक्टर के माध्यम से मल्टीमीडिया विषय वस्तु सहायता से शिक्षण कार्य किया जा रहा है। इससे शासकीय हाई स्कूल एवं हायर सेकेण्डरी स्कूल के बच्चे लाभान्वित होंगे। समस्त पाठ्य सामग्री छत्तीसगढ़ बोर्ड एवं लर्निंग आउटकम से मैप की गई है।
दीक्षा
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ मिलकर एक अभिनव पहल की गई है। राष्ट्रीय स्तर पर पांच राज्यों आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को चैम्पियन राज्य का दर्जा देकर कार्य प्रारंभ हुआ है। राज्य में हिन्दी माध्यम की कक्षा पहली से दसवीं तक की समस्त पाठ्य पुस्तकों में 3040 क्यू.आर.कोड अंकित कर एनजाईस्ड टेक्स्ट बुक में परिवर्तित कर लिया गया है। जिसमें आडियो-वीडियो, पीपीटी एवं पी.डी.एफ. दस्तावेज के माध्यम से अतिरिक्त रूचिकर सामग्री शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के लिए तैयार की गई हैं। जीतने के लिए जीत जरूरी है की तर्ज पर कार्य कर हिन्दी माध्यम एवं बहूभाषा, छत्तीसगढ़ी, हल्बी, गोढ़ी, कुडूख, सरगुजिया पर ई कन्टेंट तैयार किया गया है। इसे विद्यार्थियों तक पहुंचाकर देश में अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित हो गया है।
मल्टी मीडिया टेक्स्ट बुक
कक्षा नवमीं और दसवीं की विज्ञान, गणित और अंग्रेजी की पाठ्यपुस्तकों को मल्टी मीडिया पाठ्यपुस्तक में तैयार किया गया है। जिसमें विभिन्न गतिविधियों को करके दिखाया गया है। मल्टी मीडिया एप को गूगल प्ले में जाकर डाउनलोड कर पाठ्यपुस्तकों का उपयोग किया जा सकेगा।
शिक्षा का अधिकार की निरंतरता अब बारहवीं कक्षा तक
नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम अंतर्गत कक्षा आठवीं उत्तीर्ण बच्चों की पढ़ाई में निरंतरता के लिए राज्य शासन द्वारा निर्णय लिया गया है। इसमें प्रदेश के निजी विद्यालयों में अध्ययनरत चार हजार 899 बच्चों को कक्षा नवमीं में अध्यापन के लिए व्यवस्था की गई है। शासन द्वारा इस संबंध में निर्देश भी जारी किए हैं।
अतिथि शिक्षक
बस्तर एवं सरगुजा संभाग में एक हजार 885 और मॉडा पाकेट क्षेत्र में 631, गणित, विज्ञान एवं वाणिज्य आदि विषयों में शिक्षकों की कमी को देखते हुए नवीन भर्ती और शालाअें में पदस्थापना होने तक विद्यार्थियों के शिक्षण कार्य में बाधा न हो इसके लिए अतिथि शिक्षक रखे जाने का निर्णय लिया गया है। इसका दायित्व जिला शिक्षा अधिकारी और शाला प्रबंध समिति को सौपा गया है।
शिक्षकों की नियमित सीधी भर्ती
राज्य शासन द्वारा प्रदेश में 14 हजार 560 सीधी भर्ती के रिक्त पदों पर शिक्षकों की भर्ती के लिए कार्यवाही प्रक्रियाधीन है।
टीम एप
राज्य में स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत सम्पूर्ण शिक्षा आकलन एवं प्रबंधन प्रणाली लागू की जा रही है। एन.आई.सी. के सहयोग से 51 मॉड्यूल तैयार किए जाएंगे। इसके अंतर्गत विद्यालय, शिक्षक और विद्यार्थियों की जानकारी का संकलन किया जा रहा है। विद्यार्थियों की जानकारी एक बार दर्ज की जाएगी एवं उनकी इस पूरी शिक्षा पूर्ण होने तक उनके अधिगम स्तर की जानकारी का संधारण किया जाएगा। इससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की निरंतरता सुनिश्चित की जा सकेगी। इसके अंतर्गत समस्त योजनाओं की ट्रैकिंग की जाएगी। साथ ही शिक्षकों की स्थापना संबंधी कार्य में भी इससे सहायता मिलेगी।
शालाओं में किचन गार्डन
नरवा, गरवा, घुरूवा और बाड़ी अभियान अंतर्गत ऐसी शालाओं में जिनमें अहाता तथा पानी की व्यवस्था है, वहां नरेगा एवं कृषि विज्ञान केन्द्र के सहयोग से प्रत्येक गांव के लिए एक आदर्श बारी (किचन गार्डन या पौष्टिक वाटिका) विकसित की जा रही है। प्रदेश में अब तक लगभग 10 हजार शालाओं किचन गार्डन तैयार किए गए हैं।
मध्यान्ह भोजन योजना में बच्चों को दूध
राज्य की 10 आकांक्षी जिलों में दूध बच्चों को खीर के रूप में सप्ताह के एक दिन प्रदान किया जा रहा है। राज्य की चार जिलों दुर्ग, गरियाबंद, कांकेर और सूरजपुर में सप्ताह में दो दिन फ्लेवर्ड मीठा सोया दूध प्रदान किया जाना है। पेण्ड्रा और खडग़वां विकासखण्ड में पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में प्रतिदिन नास्ता दिया जा रहा है।
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आलेख : ललित चतुर्वेदी
संस्कृत दिवस श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् द्वारा राज्य स्तर पर सप्ताह का आयोजन रक्षाबंधन के 3 दिन पूर्व और 3 दिवस बाद तक किया जाता है। विभिन्न जयंतियों वाल्मिकि जयंती, कालीदास जयंती, गीता जयंती, गुरू पूर्णिमा का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के विद्यालयों की सक्रिय सहभागिता रहती है। संस्कृत दिवस के दिन वेद शास्त्रों की पूजा एवं महत्ता पर चर्चा एवं विद्वत्संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है। भारत की प्राचीनतम भाषा संस्कृत में भारत का सर्वस्व संन्निहित है। देश के गौरवमय अतीत को हम संस्कृत के द्वारा ही जान सकते हैं। संस्कृत भाषा का शब्द भण्डार विपुल है। यह भारत ही नहीं अपितु विश्व की समृद्ध एवं सम्पन्न भाषा है। भारत का समूचा इतिहास संस्कृत वाड्मय से भरा पड़ा है। आज प्रत्येक भारतवासी के लिए विशेषकर भावी पीढ़ी के लिए संस्कृत का ज्ञान बहुत ही आवश्यक है।
संस्कृत भाषा ने अपनी विशिष्ट वैज्ञानिकता के कारण भारतीय विरासत को सहेजकर रखने में अपना अप्रतिम योगदान दिया है। संस्कृत ऐसी विलक्षण भाषा है जो श्रुति एवं स्मृति में सदैव अविस्मरणीय है। अतिप्राचीन काल में संरक्षित-संग्रहित भारत की यह विपुल ग्रंथ सम्पदा संस्कृत के कारण ही सुरक्षित रही है। संस्कृत की महत्ता को सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकारा है। संस्कृत को भारतीय शिक्षा में अनिवार्य करना आवश्यक है। शिक्षा में इसकी अनिवार्यता को लेकर केन्द्रीय संस्कृत आयोग ने 1959 में - माध्यमिक स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य शिक्षा करने के साथ मातृभाषा तथा क्षेत्रीय भाषा पढ़ाई जाने की अनुसंशा की। संस्कृत शाला एवं संस्कृत महाविद्यालय प्रारंभ करने के लिए शासन द्वारा 90 प्रतिशत की छूट भी प्रदान की गई है।
संस्कृत परिष्कृत, संस्कारित एवं वैज्ञानिक भाषा है। आदिकाल से वेद, रामायण, महाभारत सहित विशिष्ट विषयों को भारतीय मस्तिष्क में संस्कृत के संबल पर सहेज कर रखा है। वेद, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ श्रुति एवं स्मृति परिचारों में सुरक्षित रखते हुए आज लिपिबद्ध रूप में गोचर हो रहे हैं। इससे बड़ा प्रमाण कोई नहीं हो सकता।
संस्कृत भाषा का अपना एक वैज्ञानिक महत्व है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार संस्कृत एक सम्पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है। प्राचीन भारत में बोल-चाल की भाषा में संस्कृत का ही उपयोग किया जाता था। इससे नागरिक अधिक और मानसिक रूप से अधिक संतुलित रहा करते थे। संस्कृत के मंत्रों का उच्चारण करते समय मानव स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मंत्रोच्चार के समय वाइब्रेशन से शरीर के चक्र जागृत होते हैं और मानव का स्वास्थ्य बेहतर रहता है। बहुत सी विदेशी भाषाएं भी संस्कृत से जन्मी हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी के मूल में संस्कृत निहित है। संस्कृत में सबसे महत्वपूर्ण शब्द ‘ऊँ’ अस्तित्व की आवाज और आंतरिक चेतना एवं ब्रम्हाण्ड का स्वर है। प्राचीन धरोहर की खोज करने का मुख्य मापदण्ड संस्कृत है। संस्कृत की महत्ता को देखते हुए जर्मनी में 14 से अधिक विश्व विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन कराया जाता है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का कहना है कि हमारे वेद पुराण और गीता आदि संस्कृत में लिखे गए हैं। हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए राज्य शासन द्वारा हर संभव सहयोग दिया जा रहा है। श्री बघेल ने मुख्यमंत्री बनने के बाद माघ पूर्णिमा के अवसर पर 19 फरवरी 2019 को संस्कृत विद्वत्सम्मान एवं मेधावी छात्रों का सम्मान किया। छत्तीसगढ़ में श्री बघेल के शासन में संस्कृत शिक्षा की प्रगति हो रही है। संस्कृत अध्ययन प्रोत्साहन राशि संस्कृत शालाओं में पढ़ने वाले उत्तर मध्यमा स्कूल प्रथम वर्ष कक्षा 11वीं के विद्यार्थियों को दी गई। इससे कक्षा पहली, छठवीं और 9वीं को दी गई थी। गैर अनुदान प्राप्त संस्कृत शालाओं को स्तरवार वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस वर्ष से गैर अनुदान प्राप्त विद्यालयों को उनके प्रत्येक स्तर को जोड़ते हुए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। प्रवेशिका प्राथमिक स्तर को 10 हजार रूपए प्रतिवर्ष, प्रथमा मिडिल स्तर को 20 हजार रूपए प्रतिवर्ष, पूर्व मध्यमा प्रथम एवं उत्तर मध्यमा प्रथम (हाई स्कूल और हायर सेकेण्डरी) को 40 हजार रूपए प्रतिवर्ष की दर से राशि प्रदान की जाती है। केन्द्रीय जेल रायपुर में संस्कृत पाठशाला संचालित की जा रही है और इस वर्ष अम्बिकापुर में भी संस्कृत पाठशाला शुरू की गई है। पन्द्रह वर्ष बाद संस्कृत उत्तर मध्यमा कक्षा को छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा कक्षा 12वीं के समकक्ष मान्यता प्रदान की गई। भारतीय विरासत के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के दिग्दर्शन में आयुर्वेद, योग, प्रवचन, वेद, ज्योतिष जैसे संस्कृत के वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन-अध्यापन संस्कृत पाठशालाओं में किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की संस्कृत पाठशालाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को संस्कृत में शास्त्रों के अध्ययन के साथ-साथ आधुनिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, वाणिज्य आदि का समन्वित ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। प्रदेश में संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थी किसी भी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ हैं। प्रदेश में इस वर्ष 10 हजार 427 विद्यार्थी संस्कृत विषयों का अध्ययन कर रहे हैं, इनमें अनुसूचित जाति के एक हजार 906, अनुसूचित जनजाति के दो हजार 917, अन्य पिछड़ा वर्ग के पांच हजार 14, सामान्य वर्ग के 554 और अल्पसंख्यक वर्ग के 36 विद्यार्थी शामिल हैं।
प्रदेश में संस्कृत का अतीत समृद्ध है। यहां बलौदाबाजार में तुरतुरिया महर्षि वाल्मीकि और सरगुजा जिले के उदयपुर में रामगढ़ की पहाडि़यां महाकवि कालीदास का क्षेत्र माना जाता है। प्रदेश रामायणकालीन एवं महाभारतकालीन धरमकर्मों से जुड़ा हुआ है। यहां का बड़ा भू-भाग दण्डकारण्य क्षेत्र में आता है, जो ऋषियों का क्षेत्र कहा गया है। छत्तीसगढ़ वासियों का आचार-विचार, व्यवहार और संस्कार संस्कृत से पुरित हैं। राज्य के पांच जिलों में संचालित आठ शासकीय अनुदान प्राप्त विद्यालयों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इनमें रायपुर के गोलबाजार में संचालित श्रीराम चन्द्र संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बिलासपुर में श्री निवास संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ जिले के लैलुंगा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ के गहिरा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय और गहिरा में ही श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जशपुर जिले दुर्गापारा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सामरबार और श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय सामरबार, बलरामपुर जिले के जवाहर नगर में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय श्रीकोट शामिल हैं।