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शुरू हो रहा खरमास, एक महीने तक नहीं हो सकता शुभ कार्य

- बालोद से प्रकाश उपाध्याय
ऐसी मान्यता है कि खरमास के दौरान विवाह आदि सभी तरह के शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं. खरमास में सूर्य देव की विशेष आराधना करनी चाहिए. आइए जानते हैं खरमास का धार्मिक महत्व क्या होता है.
16 दिसंबर 2022 को जैसे ही सूर्य धनु राशि की यात्रा शुरू करेंगे खरमास प्रारंभ हो जाएगा. खरमास के दौरान किसी भी तरह का शुभ और मांगलिक कार्य नहीं नहीं किया जाता है. हिंदू धर्म में इस समय को अशुभ समय माना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर एक माह में सूर्य अपनी राशि परिवर्तन करते हैं. सूर्य देव 16 दिसंबर 2022 से 14 जनवरी 2023 तक धनु राशि में रहेंगे फिर इसके बाद 15 जनवरी 2023 को मकर राशि में आ जाएंगे तब खरमास खत्म हो जाएगा. ऐसी मान्यता है कि खरमास के दौरान विवाह आदि सभी तरह के शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं. खरमास में सूर्य देव की विशेष आराधना करनी चाहिए. आइए जानते हैं खरमास का धार्मिक महत्व क्या होता है.
खरमास का अर्थ
खरमास जैसे कि इसके नाम से स्पष्ट होता है कि अशुभ महीना. खर का मतलब दूषित और मास का मतलब महीने से होता है. वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब- जब सूर्य धनु और मीन राशि में प्रवेश करते हैं तब खरमास शुरू हो जाता है. यह खरमास एक महीने तक चलता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार खरमास में सूर्य की गति और तेज इन दो महीनों में धीमी पड़ जाती है. जिस कारण से बृहस्पति ग्रह निस्तेज हो जाते हैं. हिंदू धर्म में शुभ और मांगलिक कार्य संपन्न करने के लिए देवगुरु बृहस्पति का उच्च प्रभाव में होना बेहद आवश्यक होता है. इस वजह से खरमास के दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है. खरमास में गृह-प्रवेश, मुंडन संस्कार, सगाई समारोह और कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. एक सौर वर्ष में दो बार खरमास लगता है. जब सूर्य धनु और मीन राशि में प्रवेश करते हैं तब खरमास लगता है.
खरमास के दौरान क्या करें
खरमास लगने पर किसी भी तरह का शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है. ऐसे में खरमास के दिनों में भगवान सूर्यदेव की विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए. पूजा के अलावा दान, पुण्य और स्नान का विशेष महत्व होता है. खरमास में भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान होता है. खरमास में सूर्य देव की पूजा और उन्हें सुबह जल अर्पित करने से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. खरमास में मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए.
खरमास की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार की बात है कि सूर्य देव अपने सातों घोड़े के साथ रथ पर सवार होकर पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगा रहे थे. सूर्य जब पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा रहे थे तो उस दौरान उनके कहीं भी रुकना नहीं था. अगर सूर्यदेव रूक जाते तो पूरी सृष्टि में जनजीवन भी रुक जाता. रथ में सातों घोड़े लगातार चल रहे हैं जिस कारण से वे थक और प्यास से व्याकुल हो गए. भगवान सूर्यदेव अपने घोड़ों की ऐसी दशा को देखकर अपने रथ को तालाब के किनारे पहुंचें. जहां पर सूर्य देव दो गधे दिखाई दिए. तब सूर्यदेव ने इन दोनों को अपने रथ में लगा लिया और अपने घोड़ों को आराम करने के लिए वहीं पर छोड़ दिया. जब रथ में दोनों गधों को जोड़कर चलाया गया तब रथ की गति काफी धीमी हो गई . इस दौरान एक महीने का चक्र पूरा हुआ और सूर्यदेव के घोड़ों ने आराम और खाना पानी पी कर फिर से तैयार हो गए. एक महीने के बाद सूर्य देव ने दोबारा से अपने घोड़ों को रथ में लगा दिया. इसी एक माह को खरमास कहा जाता है.
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