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  भगवान राम के पुत्र कुश के वंश में कौन-कौन हुए... आइये देखें एक नजर में....
भगवान श्रीराम के दो पुत्र हुए - लव और कुश। निर्वाण लेते समय श्रीराम ने अपने साम्राज्य को स्वयं और अपने अनुज पुत्रों में समान रूप से बाँट दिया। लव को जो राज्य मिला उसका नाम उन्होंने लव नगर रखा। आज पाकिस्तान का लाहौर ही वो नगर था।  कुश के राज्य का नाम कुश नगर पड़ा जिसे आज पाकिस्तान के कसूर के नाम से जाना जाता है।  लव का वंश अधिक नहीं चला किन्तु कुश के वंशजों से अपने राज्य को बहुत बढ़ाया। आइये इस पर एक दृष्टि डालते हैं:
श्रीराम के दो पुत्र हुए - लव और कुश। 
कुश के पुत्र अतिथि हुए। 
अतिथि के पुत्र का नाम निषध था। 
निषध के पुत्र नल हुए। 
नल के पुत्र नभस हुए। 
नभस के पुत्र का नाम पुण्डरीक था। 
पुण्डरीक के क्षेमधन्वा नामक पुत्र हुए। 
क्षेमधन्वा के देवानीक हुए। 
देवानीक के अहीनगर हुए। 
अहीनर के पुत्र का नाम रूप था।  
रूप के रुरु नामक पुत्र हुए। 
रुरु के पारियात्र नामक पुत्र हुए। 
पारियात्र के पुत्र का नाम दल था। 
दल के पुत्र शल हुए। 
शल के पुत्र का नाम उक्थ था। 
उक्थ के वज्रनाभ नामक पुत्र हुए। 
वज्रनाभ से शंखनाभ हुए। 
शंखनाभ के व्यथिताश्व नामक पुत्र हुए। 
व्यथिताश्व से विश्?वसह हुए। 
विश्वसह के पुत्र का नाम हिरण्यनाभ था। 
हिरण्यनाभ से पुष्य हुए। 
पुष्य से ध्रुवसन्धि का जन्म हुआ। 
ध्रुवसन्धि से सुदर्शन हुए। 
सुदर्शन के पुत्र अग्निवर्णा थे। 
अग्निवर्णा से शीघ्र नामक पुत्र हुए। 
शीघ्र से मुरु हुए। 
मरु से प्रसुश्रुत हुए। 
प्रसुश्रुत के पुत्र का नाम सुगन्धि था।  
सुगवि से अमर्ष नामक पुत्र हुए। 
अमर्ष से महास्वन हुए। 
महास्वन से विश्रुतावन्त हुए।  
विश्रुतावन्त के पुत्र का नाम बृहदबल था। ये कोसल साम्राज्य के अंतिम प्रतापी राजा माने जाते हैं। महाभारत में दिग्विजय के समय भीम ने इन्हें परास्त किया और उसके बाद कर्ण ने अपनी दिग्विजय यात्रा में इनपर विजय प्राप्त की। इन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ दिया और युद्ध के 13वें दिन अभिमन्यु के हाथों इनकी मृत्यु हुई।  
बृहदबल के पुत्र बृहत्क्षण थे। 
वृहत्क्षण से गुरुक्षेप का जन्म हुआ। 
गुरक्षेप से वत्स हुए। 
वत्स से वत्सव्यूह हुए। 
वत्सव्यूह के पुत्र का नाम प्रतिव्योम था। 
प्रतिव्योम से दिवाकर का जन्म हुआ। 
दिवाकर से सहदेव नामक पुत्र जन्मे। 
सहदेव से बृहदश्व हुए। 
वृहदश्व से भानुरथ हुए। 
भानुरथ से सुप्रतीक हुए। 
सुप्रतीक से मरुदेव का जन्म हुआ। 
मरुदेव ने सुनक्षत्र को पुत्र रूप में प्राप्त किया।  
सुनक्षत्र से किन्नर नामक पुत्र हुए। 
किन्नर से अंतरिक्ष हुए। 
अंतरिक्ष से सुवर्ण हुए। 
सुवर्ण से अमित्रजित् हुए। 
अमित्रजित् के पुत्र का नाम वृहद्राज था। 
वृहद्राज से धर्मी का जन्म हुआ। 
धर्मी से कृतन्जय का जन्म हुआ। 
कृतन्जय से जयसेन हुए। 
जयसेन से सिंहहनु हुए। 
सिंहहनु से शुद्धोदन का जन्म हुआ। 
शुद्धोदन ने माया देवी से विवाह किया जिनसे इन्हें सिद्धार्थ नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। सिद्धार्थ ने राज्य त्याग दिया और संन्यास ग्रहण कर लिया। यही आगे चल कर गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए और इन्होंने अपना बौद्ध धर्म चलाया।  सद्धार्थ  ने यशोधरा से विवाह किया जिनसे उन्हें राहुल नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। चूँकि उनके पिता ने संन्यास ग्रहण कर लिया था इसी कारण अपने दादा शुद्धोधन के बाद सीधे उन्हें ही सिंहासन प्राप्त हुआ। यहाँ से आप इक्षवाकु कुल का अंत मान सकते हैं क्यूंकि इनके पिता सिद्धार्थ ने हिन्दू धर्म छोड़ बौद्ध धर्म चलाया और राहुल को भी बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। हालाँकि आगे इनके वंश में भी कई राजाओं ने बौद्ध धर्म को मानने से इंकार कर दिया और हिन्दू धर्म के साथ जुड़े रहे। 
राहुल से प्रसेनजित का जन्म हुआ। 
प्रसेनजित् से क्षुद्रक जन्मे। 
क्षुद्रक से कुंडक का जन्म हुआ। 
कुंडक के पुत्र सुरथ हुए। 
सुरथ के दो पुत्र हुए - सुमित्र और कुरुम। सुमित्र प्रसिद्ध राजा बनें किन्तु वंश कुरुम का ही चला।   
कुरुम से कच्छ हुए। 
कच्छ से बुधसेन हुए। 
बुधसेन के पश्चात जो वंश वर्णन  उपलब्ध हंै किन्तु इसकी प्रमाणिकता के विषय में कोई ठोस प्रमाण नहीं है। बुधसेन का वंश राजस्थान के राज परिवार तक जाता है और उनके आखिरी वंशज सवाई भवानी सिंह माने जाते हैं जिनकी मृत्यु 2011 में हो गयी। उनकी केवल एक पुत्री दीया कुमारी है।   दीया कुमारी जयपुर राजघराने की राजकुमारी व राजसमंद लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद है। 

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