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  ग्रहों की अशुभता के निवारण करने वाला दान किसी सुपात्र को ही दें
 बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
ज्योतिष शास्त्र में उग्र और कुंडली मे नकारात्मक ग्रहों की शांति या ऊर्जा को बैलेंस करने के लिए "दान" उपायों का एक अभिन्न अंग है।
क्या और कब दान करना है इसका निर्धारण व्यक्ति की कुंडली के अनुसार किया जाता है। दान की सामग्री का चयन भी ग्रह के कारक तत्वों और उसके प्रतिनिधित्व करने वाले समान और लोगों को, आवश्यकता  के आधार पर किया जाता है।   
 क्यों कहा जाता है दान ब्राह्मण/पुजारी को दें?
 पहले के समय ब्राह्मण का मुख्यत: कर्म  कर्मकांड व शास्त्र अध्यन का था। ज्योतिष  में दान हमेशा क्रूर ग्रहों की क्रूरता के निवारण के लिए किया जाता है जो कि आपसी संबंधों में तनाव, जॉब आदि में दिक्कत, स्वाथ्य समस्याएं, संतान संबंधी कष्ट आदि दे रहे हैं।
जब इनके कारक तत्वों का दान आप अनिष्ट की शांति के लिए करते हैं तो उस नकारात्मक ऊर्जा का एक हिस्सा आप दान के साथ जाने का निवेदन/संकल्प करते हैं। तो प्रयास करना चाहिए कि दान कर्मकांडी ब्राह्मण, नित्य संध्या पूजा पाठ आदि करने वाले व्यक्ति या ऐसे परिवार को दें ताकि वे उस नकारात्मक ऊर्जा का सामना अपनी सकारात्मक ऊर्जा से कर सकें। इसलिए आपने ये भी देखा होगा कि विद्वान ब्राह्मण आदि दान नही स्वीकार करते हैं। क्योंकि दान के साथ व्यक्ति की समस्याओं का एक अंश वो भी प्राप्त करते हैं (याद रखें ग्रहों से प्राप्त हो रही ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होती बस उसे जप, दान, लोककल्याणार्थ किये गए कार्यों से छोटे छोटे भागों में बांट दिया जाता है)
इसी कारण कहा जाता है कि किसी भी समस्या या कष्ट का पूर्णत: कभी अंत नही होता चाहे आप कितने भी उपाय कर लें बल्कि नकारत्मकता काम करने के प्रयास से बड़ी दुर्घटना /चोट छोटा रूप ले लेगी। अगर मंगल आदि ग्रहों की उग्रता के कारण आपको बढ़ी दुर्घटना का सामना करने की स्थिति बन रही गई तो वो दुर्घटना अवश्य होगी चाहे चोट आप को ठोकर लगने या चाकू से हाथ काट जाने, या रेजर से कट लग जाने जैसी हो जाये।
 इसलिए दान लेने में थोड़ा संकोच करें, कुछ भी यूं ही कभी प्राप्त नही होता और ग्रहों की अशुभता के निवारण करने वाला दान किसी सुपात्र को ही दें।
दान देते समय क्या करें- 
-एक बात ध्यान रखें कि दान देने से पहले भगवान विष्णु जी का ध्यान अवश्य करना चाहिए. ऐसा करने से दान का पूर्ण फल प्राप्त होता है।  
 -यदि कोई व्यक्ति दान कर रहा हो तो उसको कभी भी टोकना नहीं चाहिए, और सदैव ध्यान रखना चाहिए कि दान करने वाले को रोकना बहुत बड़ा पाप होता है। शास्त्रों में तो यहां तक लिखा है कि जो दान न करने की सलाह देते हैं उसको पक्षी योनि प्राप्त होती है। अन्न का दान बहुत बड़ा दान होता है। इस संसार का मूल अन्न है, प्राण का मूल अन्न है। यह अन्न अमृत बनकर मुक्ति देता है। सात धातुएं अन्न से ही पैदा होती हैं।  इन्द्र आदि देवता भी अन्न की उपासना करते हैं। वेद में अन्न को ब्रह्मा कहा गया है। सुख की कामना से ऋषियों ने पहले अन्न का ही दान किया था। इस दान से उन्हें तार्किक और पारलौकिक सुख मिला। अन्न दान करने से यश कीर्ति और सुख की प्राप्ति होती है।
 -दान करने में कोई शर्त नहीं होनी चाहिए, जैसे एक अमीर ने किसीे  गरीब को जीवन चलाने के लिए एक रिक्शा दान किया लेकिन दान करते समय एक शर्त लगा दी कि हमारे बच्चों को स्कूल नि:शुल्क छोडऩा अनिवार्य है तभी हम रिक्शा देंगे। तो  इस दान का कोई मतलब नहीं। एक बात बहुत ध्यान रखने वाली है कि कभी भी दान देकर वह वस्तु वापस नहीं लेनी चाहिए अन्यथा पुण्य के बजाय पाप के भागी हो जाते हैं।  
 ग्रहों के निमित्त दान वस्तुएं-
सूर्य- क्रीम रंग वस्त्र, गुड़, मिठाई, सोना, गेहूं, करना चाहिए. 
चंद्र-   सफेद वस्त्र, दही, मोती, चांदी, दूध पानी 
मंगल -गेहूं, लाल कपड़ा, गुड़, स्वर्ण, तांबा, मीठा
बुध -हरा वस्त्र, मूंग की दाल, वनस्पति. 
गुरु - किताबें, चने की दाल,  पीला कपड़ा, समिधा, गाय का दान,घी
शुक्र- फैशन के हिसाब से नवीन कपड़ा, शक्कर,  हीरा एवं जूस 
शनि- नीला वस्त्र, तिल, लोहे का सामान, रिक्शा, ट्राईसाईकिल
राहु- हवन सामग्री, चंदन, विदेशी भाषा की पुस्तकें, गोमेद
केतु - कंबल, चप्पल, हेयरबैंड, जनेऊ, लहसुनिया का दान करना चाहिए. 
 दान कब किया जाए?  
-सूर्य की 12 संक्रांतियां दान के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है. 
-अमावस्या 
-पूर्णमासी (पूर्णिमा)
-ग्रहण काल 
 

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