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  दो महीने का रहेगा सावन, जानें पुरुषोत्तम मास में क्या करें.....
बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
 हिंदू नवसंवत्सर के हिसाब से साल 2023 का सावन महीना 59 दिनों का होगा। ऐसा अद्भुत संयोग 19 सालों बाद बनने जा रहा है।  इसका मुख्य कारण अधिकमास का होना है।  जिसे हिंदू धर्म ग्रंथों में मलमास कहते हैं।  क्या होता है मलमास ?
 हिंदू कैलेंडर में हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, जब सूर्य राशि बदलते हुए एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे संक्रांति कहते हैं। सौर मास में 12 संक्रांति और 12 राशियां होती है, लेकिन जिस माह में संक्रांति नहीं होती है। तब अधिक मास या मलमास होता है। अधिकमास, पुरुषोत्तम मास या मलमास में शुभ कार्य वर्जित होते हैं क्योंकि यह मास मलिन होता है।  इस लिए इसे मलमास कहते हैं।   
 साल 2023 में मलमास कब से कब तक?  
इस साल 18 जुलाई  से 16 अगस्त 2023 तक मलमास रहेगा।   
पुरुषोत्तम मास में क्या करें.....
 साल में अधिक माह होने के कारण अधिकमास और अधिकमास भगवान विष्णु को समर्पित होता है।  इसलिए इस मास में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है। मलमास में ग्रह शांति, दान-पुण्य, तीर्थ यात्रा, विष्णु मंत्रों का जाप करना चाहिए।  इससे मलमास के अशुभ फल ख़त्म हो जाते हैं और पुण्यफल प्राप्त होते हैं।  कहा जाता है कि मलमास में भगवान विष्णु की पूजा करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। 
बहुत से जातक पुरुषोत्तम महीने में उपवास रखते हैं। मास खत्म करने के बाद वे दान- दक्षिणा करते हैं। 
क्या है अधिकमास का पौराणिक आधार
 अधिक मास से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरता का वरदान मांगा, लेकिन अमरता का वरदान देना निषिद्ध है इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई और वरदान मांगने को कहा। 
 तब हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से कहा कि, आप ऐसा वरदान दे दें, जिससे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर उसे मार ना सके और उसे वर्ष के सभी 12 महीनों में भी मृत्यु प्राप्त ना हो।  उसकी मृत्यु ना दिन का समय हो और ना रात को।  वह ना ही किसी अस्त्र से मरे और ना किसी शस्त्र से।  उसे ना घर में मारा जाए और ना ही घर से बाहर।  ब्रह्मा जी ने उसे ऐसा ही वरदान दे दिया। 
 इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर और भगवान के समान मानने लगा।  तब भगवान विष्णु अधिक मास में नरसिंह अवतार (आधा पुरुष और आधे शेर) के रूप में प्रकट हुए और शाम के समय देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीन कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया।
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