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 रस रूप ब्रह्म के 2 रूप कौन से हैं? डर से भक्ति करें कि प्यार से करें? मनुष्य शरीर और अन्य शरीरों में क्या प्रमुख भेद है?
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 384

जगद्गुरु बनने के उपरान्त श्री कृपालु जी महाराज ने राधाकृष्ण की माधुर्यमयी भक्ति के सिद्धांत का जन-जन में प्रचार किया। कलियुग के इस चरण में जीवों को भक्ति के लिए तत्वज्ञान की परम अनिवार्यता को जानकर आपने वेदों, शास्त्रों, उपनिषदों, पुराणों और अन्यान्य धर्मग्रंथों के वास्तविक रहस्य को संसार के मध्य बारम्बार प्रकट किया। वेदों के 'आवृत्ति रसकृदुपदेशात्' और गौरांग महाप्रभु के 'सिद्धांत बलिया चित्ते न कर आलस' की उक्तियों को लोगों की बुद्धि में भरकर बार बार महापुरुषों के सिद्धांतों को सुनने पर जोर दिया। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित वैदिक रहस्य हमारे भवरोग निवारण हेतु महान औषधि है, जिनका बारम्बार चिन्तन मनन और अधिक अधिक लाभ प्रदान करता जाता है। आइये आज के प्रकाशित अंक से उनके सिद्धान्त का लाभ लें....

★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)

ब्रह्म एक मधु रूप है, एक भ्रमर उनमान।
एक रूप रस देत है, एक आपु कर पान।।52।।

भावार्थ ::: रस रूप ब्रह्म के दो स्वरूप होते हैं। एक रस रूप। दूसरा रसिक रूप। अर्थात् एक मधु के समान। दूसरा भौंरे के समान। एक रूप से स्वयं रस पान करते हैं। दूसरे रूप से जीवों को भी वही रस पान कराते है।

संदर्भ ग्रन्थ ::: भक्ति-शतक, दोहा संख्या 52
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★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)

...डर से भक्ति नहीं, प्यार से भक्ति करनी चाहिये। हम मनुष्य हैं, ये देह हमको इसीलिये मिला है कि हम भगवान् की भक्ति करें। एक उद्देश्य है दूसरा नहीं है। पेट पालने के लिये नहीं, विषय के लिये नहीं कि आँख से संसार देखो, कान से संसार सुनो, नासिका से संसार सूँघो। इन्द्रियों से संसार के विषय का भोग करके और आनन्द लो। ये तो कुत्ते, बिल्ली, गधे भी करते हैं। फिर तुम मनुष्य होकर के क्या विशेषता रही तुम्हारी। तो, हमारी यही विशेषता है कि हमको भगवान् ने ज्ञान दिया है, भगवान् की भक्ति करने के लिये। उसका सदुपयोग न करेंगे तो फिर दुरुपयोग भी नम्बर एक होगा। फिर पाप करेंगे और बड़े-बड़े पाप करेंगे। कुछ चोरी चोरी करते हैं पाप और कुछ डिक्लेयर्ड पाप करते हैं। सब पाप करेंगे, कोई नहीं बच सकता। एक सैकिंड को आपने मन भगवान् से अलग किया, तो पाप ही करेंगे...

• संदर्भ पुस्तक ::: साधना नियम, पृष्ठ संख्या 77

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ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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