श्रीराधारानी 'श्यामा' क्यों कही जाती हैं? भगवान की सब कृपा प्राप्त होने के बाद कौन सी कृपा आवश्यक है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 385
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज शास्त्रज्ञ वेदज्ञ होने के साथ साथ भक्तिरस के महान आचार्य हैं। उनके रोम रोम से भक्तिरस प्रवाहित होता था। उनकी उपस्थिति मात्र शुष्क से शुष्क हृदयों में भी भक्तिरस का संचार करती थी। सदैव प्रेमानंद में निमग्न वे राधाकृष्ण भक्ति के मूर्तिमान स्वरूप ही थे यद्यपि उनका बाहरी रूप देखकर श्रद्धाहीन भ्रमित हो जाते थे। यश-ऐश्वर्य, श्री - सबके स्वामी होते हुये भी विरक्तों के शिरोमणि थे। गृहस्थ धर्म निभाते हुये भी संन्यासियों के सिरमौर थे। विश्व का परम सौभाग्य है कि ऐसी दिव्यतम विभूति धराधाम पर अवतरित हुई। आइये उनके द्वारा प्रदत्त तत्वज्ञान से हम भगवद-स्मरण हेतु सामग्री प्राप्त करें....
★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)
गौरी सों सहस्त्र गुना गोरी मम श्यामा।
फिर भी अचम्भो लखु श्यामा कहे धामा।।
भावार्थ ::: वस्तुतः श्याममयी अर्थात श्याम के प्रेम में तल्लीन होने के कारण ही श्रीराधा 'श्यामा' कही जाती हैं। किन्तु 'श्यामा' का एक अर्थ काले वर्ण वाली भी होता है। यहाँ इसी अर्थ को लेकर रसिक लेखक विनोद में कहते हैं - श्रीराधा अत्यंत गौरवर्णा पार्वती से भी सहस्त्र गुना गोरी हैं किन्तु फिर भी आश्चर्य देखो, संसार उन्हें श्यामा कहकर पुकारता है..
• संदर्भ ग्रन्थ ::: श्यामा श्याम गीत, दोहा संख्या 456
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★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)
...जितने श्वांस बचे हैं मृत्यु के पहले वाले, उनको काम में लेना चाहिये। चाहे हजार लोग बैठे हों हम श्वांस श्वांस से राधे-राधे बोलें। कौन क्या जानेगा क्या कर रहे हैं हम। ये अवसर फिर नहीं मिलेगा। मनुष्य का शरीर, भारतवर्ष में जन्म और तत्वदर्शी का मिलना, तत्वज्ञान प्राप्त कर लेना, सब बनाव तो बन गया और अब कौन सी कृपा बाकी है भगवान की। अब तो तुम्हारी कृपा आवश्यक है। भगवान की तो सब हो गई..
• संदर्भ पुस्तक : प्रश्नोत्तरी भाग 2 , पृष्ठ संख्या 98 एवं 99
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