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 वेदादिक ग्रन्थ कहते हैं कि भगवान से यह संसार निकला है, तो भगवान ने यह संसार दुःखमय क्यों बनाया? (समाधान, भाग - 3)
• जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 404

(भूमिका - किसी साधक/जिज्ञासु ने जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज से यह प्रश्न किया था कि... 'वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में, हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में सभी स्थलों में बताया गया है कि ये संसार भगवान् से निकला है, भगवान् ने बनाया । तो भगवान् ने ये दुःखमय संसार क्यों बनाया?' नीचे जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वेदादिक सम्मत दिया गया समाधान प्रकाशित किया जा रहा है। चूँकि यह उत्तर अधिक विस्तार में है, अतएव इसे 3 या 4 भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। कल 23 सितम्बर को श्रृंखला के 402-रे व 403-रे भाग में इस उत्तर का प्रथम भाग प्रस्तुत किया गया था। कृपया आप सभी पिछले भाग से ही इसे पढ़ें, ताकि सम्पूर्ण समाधान से लाभान्वित हो सकें...)
 
(भाग - 3, पिछले भाग से आगे)
 
........कालात्मा, केवल एक भगवान् निर्भय है। काल के भी काल। बाकी सब काल के अण्डर में हैं। लेकिन वो जरासन्ध के भय से ऐसे भागे, ऐसे भागे कि इण्डिया क्रॉस कर गये। समुद्र में जाकर एक द्वीप में अपना निवास बनाया। द्वारिका बसाया। और भक्तों ने नाम धर दिया रणछोर। हमारे श्यामसुन्दर रणछोर हैं। ये भी कोई तारीफ है! लड़ाई के मैदान को छोड़ कर भागने वाले। अरे! ये तो बुराई है। अरे! ये ही तो लीला है। कालात्मा होकर भागना। आत्माराम होकर के इतनी स्त्रियों से प्यार करना। तो भगवान् के पास अनन्त शक्तियाँ हैं। इसलिये वो 'कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थः' हैं। जो चाहें सो करें, जो चाहें न करें, जो चाहें उल्टा करें।
 
अंगानि यस्य सकलेन्द्रियवृत्तिमन्ति पश्यन्ति पान्ति कलयन्ति चिरं जगन्ति । आनन्दचिन्मय सदुज्वलविग्रहस्य गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।
(ब्रह्म संहिता 5-32)
 
उनके एक अंग से सब इन्द्रियों का वर्क हो जाता है। क्या मतलब? एक नाक है, नाक का काम क्या? सूंघना। नाक सुन सकती है? नहीं। देख सकती है? नहीं। केवल सूंघने का काम करती है। कान केवल सुनने का काम करता है। मन केवल सोचने का काम करता है। लेकिन भगवान् के यहाँ ऐसा नहीं होता। एक नाक से वो देखते भी हैं, सुनते भी हैं, सूंघते भी हैं, रस लेते हैं, स्पर्श करते हैं, सोचते हैं, डिसीजन लेते हैं, भागते हैं, पकड़ते हैं, सब कर लेते हैं। और बिना किसी इन्द्रिय के भी सब कर्म कर लेते हैं।
 
अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षुः स श्रृणोत्यकर्णः।
स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्रयं  पुरुषं महान्तम्।।
(श्वेताश्वतरोपनिषद 3-19)
 
बिनु पग चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु कर्म करइ विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु जिह्वा वक्ता बड़ जोगी।
तन बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्राण बिनु वास असेखा।
असि सब भाँति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाई नहिं बरनी।।
 
अलौकिक माने जो हमारी बुद्धि में न आवे क्योंकि हम ऐसा नहीं कर सकते। बिना नाक के सूंघे, बिना रसना के बोलें और वो ऐसा करता है। तो भगवान् ने, जिसको सर्वकर्मा कहते हैं, सर्वसमर्थ कहते हैं, सर्वशक्तिमान् कहते हैं;
 
मनोमयः प्राणशरीरो भारूपः सत्यसंकल्प आकाशात्मा सर्वकर्मा सर्व कामः सर्व गन्धः सर्वरस सर्वमिदमभ्यातोऽवाक्यनादरः।
(छान्दोग्योपनिषद 3-14-2)
 
वेद कहता है। वो तो सर्वशक्तिमान् और विपरीत विरोधी शक्तियों का अधिष्ठान है भगवान्। यदि ऐसा कार्य करता है यानी उससे जड़ जगत् पैदा हुआ और आनन्दहीन पैदा हुआ तो इसमें आश्चर्य क्या? और कोई कहे फिर ये क्यों कहा गया कि 'जगच्च यः' ये संसार भगवान् ही है।
 
न चान्तर्न बहिर्यस्य न पूर्वं नापि चापरम्।
पूर्वापरं बहिश्चान्तर्जगतो यो जगच्च यः॥
(भागवत 10-9-13)
 
वो जगत् स्वरूप है । विश्वरूप उसका नाम ही है। देखो, भगवान् के कितने विरोधी नाम- विश्वकृत माने संसार बनाने वाला, विश्ववित् इसमें सर्वव्यापक है इसलिये जानने वाला। विश्वकृत, विश्ववित् और विश्वरूप यानी जैसे भगवान् था वैसे ही भगवान् बन गया। कुछ बनाया नहीं । जो कुछ भगवान् था पहले, वही भगवान् प्रकट हो गया;
 
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्।
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्ष मथोस्वः॥
(नारायणोपनिषद् 5-7)
 
ससर्जेदं स पूर्ववत्।
(भागवत 2-9-38)
 
प्रजाः सृज यथापूर्वं याश्च मय्यनुशेरते।
(भागवत 3-9-43)
 
यानी, जैसे संसार था प्रलय के पहले और भगवान् में सब लीन हो गया था; वैसे ही फिर प्रकट हो गया।
(Note - शेष प्रवचन कल चौथे भाग में प्रकाशित किया जायेगा)
 
• सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 4
 
★★★
ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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