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 श्रीकृष्ण के अग्रज बलराम (हलषष्ठी)
आज हलषष्ठी है। हलषष्ठी भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता श्रीबलराम जी का प्राकट्य दिवस है। ब्रजधाम में श्रीकृष्ण-बलराम जी की जोड़ी अनुपम है। भक्तियोग रस के अवतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने पदों एवं संकीर्तनों में श्रीबलराम जी की स्तुति की है तथा दोनों भाईयों के प्रेम तथा माताओं की उनके प्रति वात्सल्य की झाँकी भी प्रस्तुत की है। आइये आज इस अवसर पर उन झाँकियों का हम सब मानसिक दर्शन करें :::
श्री कृपालु महाप्रभु जी गाते हैं..
चलो अलि सब मिलि देयँ बधाई।
ब्रज अज जायो रोहिणी माई ।।
अर्थात चलो चलो सखियों, रोहिणी माता के महल चलो। आज तो माता रोहिणी ने एक अनुपम सुन्दर बालक को जन्म दिया है। चलो, चलो, आज उनके द्वार पर बधाई गाने चलें।
अन्यत्र श्री कृपालु महाप्रभु जी अपने संकीर्तन में गाते हैं :
आज तो प्रकट भयो ब्रज बड़ो ठाकुर।
हलधर बलदाऊ नाम रण बाँकुर।।
आँखि दिखावत जब जब हलधर।
अति डरपत गिरिधर जेहि डर डर।।
दोउ भगवान कह्यौ पाराशर।
आयेउ तदपि प्रथम ब्रज हलधर।।
अर्थात आज तो ब्रजधाम में बड़े ठाकुर का जन्म हुआ है। ये बड़े ठाकुर समस्त ब्रजधाम में हलधर और बलदाऊ अर्थात बलराम के नाम से भी पुकारे जाते हैं। माता रोहिणी के पुत्र तथा छोटे ठाकुर अर्थात श्रीकृष्ण के अग्रज श्री बलराम जी अत्यंत बलशाली हैं, पराक्रम में उनके मुकाबले का कोई भी नहीं है। युद्ध में न उनका कोई सानी ही है। वे अपने हाथों में हल धारण करते हैं, इसी से हलधर भी कहे जाते हैं। कभी-कभी जब क्रोध में वे अपनी आँखें तरेरते हैं तो अन्यों की क्या कहें, स्वयं उनके अनुज श्रीकृष्ण भी भयभीत हो जाते हैं। वे श्रीकृष्ण जिनसे भय भी भयभीत रहता है। महर्षि पाराशर आदि महात्मा जन स्तुति करते हैं कि यद्यपि श्रीकृष्ण तथा बलराम स्वयं भगवान ही हैं, फिर भी ब्रजधाम में लीला दृष्टि से श्रीबलराम जी श्रीकृष्ण से पहले अवतरित हुये। 
श्रीकृष्ण तथा बलराम जी के प्रति माता यशोदा जी के वात्सल्य प्रेम का बड़ा ही सुन्दर चित्रण रसिकवर श्री कृपालु जी ने इन शब्दों के माध्यम से किया है :
दाऊ भैया संग कन्हैया जायँ बलि लखि मैया।
आउ भैया लै कन्हैया दुहुँन लेउँ बलैया।
नाचे बलुआ संग कनुवा तारि दें दोउ मैया।
जय हो मैया जय कन्हैया जय हो दाऊ भैया।
एक हलधर एक गिरिधर सोहें गोदिहिं मैया।
दाऊ भैया संग कन्हैया चलत दै गरबहियाँ।
अर्थात माता रोहिणी तथा माता यशोदा जी बलराम तथा कृष्ण की इस जोड़ी को देख-देखकर बलिहार जा रही हैं। वे अपनी बाँहें फैलाकर दोनों को अपने अंक में भर लेने के लिये पुकार लगा रही हैं। कभी दोनों मातायें हाथों से ताली की थाप देती हैं और छोटे से नन्हे बलराम-श्याम आँगन में ता-ता-थैया कर नाच रहे हैं। मातायें तथा अन्य सखियाँ इन दो सुन्दर बालकों की जय-जयकार कर रही हैं। ब्रजधाम प्रेम का धाम है और मातायें अपने वात्सल्य प्रेम में कृष्ण को 'कनुआ' तथा बलराम को 'बलुआ' कहकर बुलाती हैं। दोनों महान शूरवीर हैं, एक ने अपने हाथों में हल धारण किया और हलधर कहाये और दूसरे ने गिरिराज को धारण कर गिरिधर नाम धारण किया। इन दोनों भाईयों की जोड़ी तब और अनुपम हो जाती है, जब वे आपस में गलबहियाँ देकर अर्थात गले में हाथ डालकर चलते हैं।
श्री बलराम जी के प्राकट्य दिवस हलषष्ठी एवं कमरछठ की आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनायें...
(संकीर्तन स्त्रोत : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित संकीर्तन पुस्तक ब्रज रस माधुरी, भाग - 1)
# सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।

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