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चैतन्य-रामानंद संवाद (भाग - 4)
  •      जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत   प्रवचन 
 जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत यह प्रवचन भक्तिमार्गीय उपासकों के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें उन्होंने साधन और साध्य के संबंध में प्रवचन दिया है। श्री चैतन्य महाप्रभु जी तथा श्री राय रामानंद जी के मध्य हुई आधात्मिक चर्चा का उन्होंने बड़ी गहराई में तथा सारगर्भित विवेचन किया है। श्री कृपालु महाप्रभु जी अपने श्रीमुखारविन्द से कहते हैं.....
 (पिछले भाग से आगे, भाग - 4)
 एक बार ऐसे ही भगवान ने अभिनय किया था द्वारिका में कि हमको बहुत दर्द है, अब हम मर जायेंगे, बचेंगे नहीं।  16108 स्त्रियाँ, सब घबरा गईं कि हम विधवा हो जाएंगी, क्या बोल रहे हैं? उसी समय अचानक नारद जी आ गये।
 उन्होंने देखा, गुरुजी ये क्या कर रहे हैं आज? कुछ मामला गंभीर है। उन्होंने कहा, महाराज! क्या आपको तकलीफ है कुछ, सुना है। अरे! बहुत तकलीफ है नारद जी। तो फिर क्या करें? अरे क्या करें क्या, दवा लाओ और क्या करोगे? महाराज! दवा क्या है? वो भी बता दो। तुमने अपनी बीमारी खुद पैदा की है तो दवा भी तुम ही बताओ। उन्होंने कहा कि कोई वास्तविक संत की चरणधूलि मिल जाय तो मैं ठीक हो सकता हूँ। नारद जी ने कहा, संत? मैं भी तो संत हूँ। अरे भगवान के अवतार भी हैं और वैष्णवों में शीर्ष रहने वाले नारद जी। 
 फिर उन्होंने कहा, पता नहीं कि ये भगवन का क्या नाटक है? मैं झगड़े में नहीं पड़ता। एक बार बंदर बन चुके हैं। लेकिन ये मातायें जो हैं इनकी सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ, ये तो महापुरुषों की दादी हैं। इनकी स्त्री बनने का सौभाग्य किसको मिलेगा? इनसे कहते हैं। रानियों ने कहा, नारद जी! आज क्या बात है, शास्त्र-वेद का ज्ञान समाप्त हो गया तुम्हारा? कोई स्त्री पति को चरण धूलि देकर नरक जायेगी? वेदमंत्र कोट कर दिया। नारद जी चुप हो गये कि बात तो ठीक कहती हैं। फिर अब क्या करें? जहाँ जायेंगे, सब महात्मा यही कह देंगे कि तुम्हारा दिमाग खराब है, तुम ही दे दो न, अपने चरण की धूलि?
 तो भगवान के पास फिर गये और कहा, महाराज! वो वैद्य भी बता दो जिसकी चरण धूलि ले आवें। तो उन्होंने कहा कि चले जाओ ब्रज में, वहाँ तमाम करोड़ों गोपियां हैं, उनसे कहना। उन्होंने सोचा कि ब्रज में ऐसा कौन सा महात्मा है? वहाँ तो सब गृहस्थी हैं स्त्रियाँ। उनके बाल-बच्चे हैं, पति हैं और सब बेपढ़ी-लिखी घूँघट वाली। ये क्या कह रहे हैं  भगवन।।  गये वहाँ पर। तो नाटक किया, बूढ़े बन गये नारद जी, अपने को छिपाकर कि देखें ये पहचानती हैं कि नहीं हमको? दूर से सबने पहचान लिया? नारद जी आश्चर्य चकित रह गये। उन्होंने गोपियों से कहा, तुम्हारे प्राण-वल्लभ को कष्ट है, अपनी चरण धूलि दे दो।
 उन्होंने कहा, अरे लो। सब लोगों ने पैर फैला दिया। जल्दी ले जाओ। सन्न, नारद जी। तुम लोग चरण धूलि दे रही हो, इसका फल समझती हो? नारद जी फल-वल बाद में बताना, पहले ले जाओ जल्दी से, उनको आराम हो। फल-वल नरक की बात, अरे नरक मिलेगा और क्या होगा इससे अधिक? अरे, कोई आदमी जब हत्या करता है तो क्या सोचता है? फाँसी होगी। हो जाय फाँसी लेकिन इनको मारेंगे। अब नारद जी की आँख खुली। अब उन्होंने कहा, पहले मैं पवित्र हो जाऊँ। तो पति-स्त्री में भी बन्धन होता है, नियम होते हैं लेकिन माधुर्य भाव में कोई नियम नहीं। भगवान दास बन जाता है, भक्त स्वामी बन जाता है। तो ये अंतिम भाव है। इसमें निष्काम भाव से, माधुर्य भाव से, अनन्य भाव से निरंतर भक्ति करने से तो सबसे बड़ा साध्य ब्रज रस मिलता है। ये साधन-साध्य का सारांश है।
 (समाप्त)
 (प्रवचनकर्ता -जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
प्रवचन स्त्रोत -साधन-साध्य पत्रिका, मार्च 2010 अंक
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली)

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