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 श्रीकृष्ण का सुख ही लक्ष्य रखो
- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से  श्रीकृष्ण के सर्वोच्च प्रेमरस; परम निष्काम माधुर्य भाव 
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने अवतारकाल में हम कलियुगी जीवों को श्रीकृष्ण-प्रेमप्राप्ति का लक्ष्य बताया तथा उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जो भी आवश्यक कर्तव्य है, साधना है, मार्गदर्शन अथवा सावधानी है, उसका भी बारम्बार दिशानिर्देश दिया और पुन:-पुन: स्मरण भी कराया। वस्तुत: श्रीकृष्ण की सेवा तथा प्रेमप्राप्ति ही हमारा अंतिम लक्ष्य है। श्रीकृष्ण के सर्वोच्च प्रेमरस; परम निष्काम माधुर्य भाव की कक्षा का प्रेम क्या है और उस प्रेमरस के आकांक्षी पिपासु जीव को क्या करना होगा, आइये उन्हीं के श्रीमुखारविन्द से पठन करें -
 
 श्याम सुख लक्ष्य रखि गोविंद राधे,
भाव  निष्काम  रति  मधुर  बना  दे.. 
(स्वरचित इस दोहे की व्याख्या के कुछ अंश)
 
(भक्ति में) लक्ष्य निष्काम भाव का हो, और श्यामसुन्दर के सुख की भावना का हो और मधुर रति युक्त हो। ये तीनों बातों को लक्ष्य में रखकर साधना करें और सदा इन्हीं तीनों को रखें, इससे ये होगा कि श्यामसुन्दर के प्रति हम कभी भी कुछ मांगने की, पाने की कामना न बना सकेंगे तो हमारा प्रेम बढ़ता जायेगा। अन्यथा हम संसार में जैसे मां से, पिता से, भाई से, बीवी से, पति से आशा करते हैं वो ऐसा करें। नहीं किया, मूड ऑफ कहते हैं उसको हम लोग और फिर प्यार में वो घटमान स्थिति हो जाती है स्त्री पति, पिता बेटे में, क्योंकि अपनी एक कामना बना ली हमने और, उसने नहीं पूरी की..
 इसलिए हम कामना बनाएं ही न, उनकी हर हरकत पर, हर एक्शन पर, हर क्रिया पर बलिहार जायें। आज बड़े प्यार से भुजाओं को फैला के प्यार कर रहे हैं - वाह ! वाह ! वाह ! क्या लीलाधारी हैं ! आज कुछ हमारी तरफ देख ही नहीं रहे हैं, प्यार तो करते हैं, लेकिन देख नहीं रहे हैं, हमारी परीक्षा ले रहे हैं, ठीक है, ठीक है, ले लो मैं फेल होने वाला नहीं हूँ. अरे ! आज तो डाँट लगा रहे हैं बड़ा भयंकर रूप है। अरे ! समझ गये समझ गये, आज हमको पूरी कसौटी पर कस रहे हैं, हम भी तैयार हैं। चाहे जो व्यवहार करो तुम्हीं हमारे प्रियतम रहोगे।
 
 यथा तथा वा विदधातु लम्पटो मत्प्राणनाथस्तु स एव नापर: 
(गौरांग महाप्रभु)
 
गौरांग महाप्रभु ने कहा श्यामसुन्दर के लिए तुम चाहे प्यार करो, चाहे न्यूट्रल हो जाओ और चाहे मार दो, यहां कोई असर नहीं होना है, हम तो वैसे ही प्यार करते जायेंगे एक-सा..

(प्रवचनकर्ता- जगद्गुरुत्तम् स्वामी श्री कृपालु जी महाराज)
 स्त्रोत - जगद्गुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित साधन साध्य पत्रिका
सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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