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  न कल का, न काल का भरोसा करो
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी के मुख से काल की भयावहता का वर्णन
 जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज काल यानि मृत्यु की भयावहता अथवा कहें कि खतरे के विषय में आगाह कर रहे हैं कि कभी काल पर भरोसा नहीं करना चाहिये। काल पर भरोसा करना बहुत खतरनाक हो सकता है, न जाने कौन सा लक्ष्य धरा का धरा रह जाय और कितनी बड़ी हानि हो जाय, चाहे वह आध्यात्मिक जगत हो अथवा सांसारिक जगत। आइये उन्हीं के शब्दों में हम इसे समझें और गंभीरतापूर्वक इसकी भयावहता पर विचार करें -
 (यहाँ से पढ़ें...)
 
...अरे मनुष्यों ! कल से भजूँगा, कल से भजूँगा मत कहो, मत सोचो। क्यों...? अरे! वह जो तुम्हारी खोपड़ी पर सवार है काल, यमराज। क्या पता कल के पहले ही टिकट कट जाये रात ही को। ऐसे रोज उदाहरण हमारे विश्व में हो रहे हैं, कि रात को एक आदमी सोया और सदा को सो गया। न दर्द हुआ, न चिल्लाया, न घर वालों को मालूम हुआ। घर वाले समझ रहे हैं सो रहा है, आज बड़ी देर तक सोता रहा, अरे भई जगा दो। जगाने गये तो मालूम हुआ सदा को सो गया, इसका टिकट कट गया। एक माँ के पेट में ही मर गया, एक पैदा होते ही तुरंत मर गया, एक 25 साल का आई. ए. एस. करके फ्लाइट से घर आ रहा था, सब घर वाले खुश और पता चला रास्ते में ही प्लेन क्रैश में मर गया, पिता ले जा रहा है बेटे को जलाने, पर पिता को होश नहीं है कि मुझको भी जाना है। देख तो रहे हैं हम रोज़ आसपास कि क्या हो रहा है? लेकिन भगवान को याद करने का भजन करने का टाइम किसी के पास नहीं है। प्लानिंग बन रही हैं बड़ी-बड़ी, पल का भरोसा नहीं और कोई पंचवर्षीय योजना कोई दस वर्षीय योजना बना रहा है, अरे! बिगड़ी बना लो जिसके लिए ये मानव देह भगवान ने तुमको कृपावश दिया है। ये नाती-पोते, ये बेटा-बेटी कोई तुम्हारे नहीं है जिनमें तुम उलझे हुए हो रात दिन। ये सब तो स्वार्थ आधारित रिश्ते हैं, कोई किसी का नहीं है यहाँ। इसलिये कल से भजूँगा यह मत कहो, मत सोचो, तुरंत करो। उधार मत करो। उधार करने की आदत हमारी तमाम जन्मों से है और इसलिये हम अनादिकाल से अब तक चौरासी लाख में घूम रहें है एक कारण। अनंत संत मिले समझाया हम समझे लेकिन उधार कर दिया। करेंगे... करेंगे। तन,मन, धन ये तीन का उपयोग करना था तीनों के लिये हमने उधार कर दिया। करेंगे, बुढ़ापे में कर लेंगे अभी इतनी जल्दी भी क्या है? मन तो और बिगड़ा हुआ है।
 धन से तो इतना प्यार है कि कोई भी परमार्थ के काम में खर्च करने में भी बुद्धि लगाते हैं - करें, कि न करें? कर दो भगवान के निमित्त। अरे! रहने दो... अरे! नहीं कर दो, अरे! नहीं क्यों निकालो जेब से, अरे! चलो अब कर ही देते हैं। नहीं अब कल करेंगे, ये हम लोगों का हाल है सोचियेगा अकेले में। यही सब होता है। तो उधार करना बन्द करना है। मानव देह क्यों मिला है, इस पर विचार करो, संभलों और अपनी बिगड़ी अभी भी बना लो, नहीं तो करोड़ों वर्षों तक यूँ ही 84 लाख में भटकते रहोगे। ये अवसर भी हाथ से चूक जाएगा। संसार में व्यवहार करो, मन भगवान को दे दो। अभी से भजन करो, भक्ति करो, संसार से मन हटाओ, भगवान में लगाओ। उधार करना बंद करो।
 (जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन से नि:सृत)

स्त्रोत-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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