पाप और पुण्य दोनों पाप ही हैं
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज श्रीमुखारविन्द से श्रीमद्भागवतगीता के श्लोक की व्याख्या
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज श्रीमद्भागवतगीता के उस श्लोक की वास्तविकता या कहें कि गहराई पर प्रकाश डाल रहे हैं जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समस्त पापों से मुक्त करने की बात कही है। यह श्लोक साधारण श्लोक नहीं है, अपितु बड़ा गम्भीर है और किसी श्रोत्रिय-ब्रम्हनिष्ठ महापुरुष ही इसके गूढ़तम रहस्य का बोध करा सकते हैं। आइये इस युग के जगदगुरुत्तम के श्रीमुखारविन्द से इस श्लोक की गम्भीरता को समझने का प्रयास करें -
(पाप और पुण्य दोनों पाप ही हैं.... यहाँ से पढ़ें..)
देखो ! आप लोग पाप से डरते हैं, आप लोगों के मस्तिष्क में एक ये कमजोरी है कि पाप करना बुरी बात है। और पुण्य करना? वो तो अच्छी चीज है, ना ना, पुण्य भी पाप है। पाप तो पाप है ही, पुण्य भी पाप है।
सुकृत दुष्कृते धुनुते
सुकृत भी पाप है, दुष्कृत भी पाप है। पुण्य भी पाप है, क्योंकि उसका बन्धन होता है। स्वर्ग मिलेगा पुण्य से यही तो होगा। हाँ, वो बन्धन है। वो तो चार दिन का है, उसके बाद फिर आओगे मृत्युलोक में कूकर, शूकर, कीट, पतंग बनोगे। तो पुण्य को भी समाप्त करना होगा और पाप को भी, तब काम बनेगा. तो जीव जब शरणागत हो जाता है तो भगवान् दोनों समाप्त कर देते हैं -
तेरे सब पाप पुण्य नासें बनवारी
देखो ! गीता में खाली पाप शब्द लिखा है क्योंकि वो गीता के लैक्चर देने वाले श्रीकृष्ण पुण्य को भी पाप मानते हैं, इसलिए उन्होंने कहा -
अहं त्वाम् सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि
अर्जुन ने प्रश्न नहीं किया कि पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि और पुण्येभ्यो ? पुण्य से आप मुक्त नहीं करेंगे तो, तो बंधन रहेगा ही, क्योंकि पाप भी अनंत हमारे हैं और पुण्य भी अनंत हैं हमारे। हम कभी-कभी पुण्य भी करते हैं ना ! सच बोल रहे हैं यह पुण्य है, झूठ बोल रहे हैं पाप है। हम दोनों का पालन करते हैं। संसार में ऐसा कोई है जो सच न बोले कभी? भूख लगी है, क्या कहोगे? खाना दे दो। ना, झूठ बोलो, लकड़ी दे दो, ऐसा बोलो ना। नहीं, ये तो खाना ही मांगना पड़ेगा, भूख लगेगी तो। पानी ही मांगना पड़ेगा, प्यास लगेगी तो। कोई गला दबायेगा तो, बचाओ, कहना पड़ेगा। हां, कोई आदमी शत- प्रतिशत झूठ नहीं बोल सकता। कभी सच बोलता है, कभी झूठ बोलता है। तो पुण्य भी करता है, पाप भी करता है और अनंत जन्म हुए हैं इसलिए अनंत पाप भी, अनंत पुण्य भी, दोनों हैं, दोनों नाश कर देते हैं। (शरणागत का भगवान)
(प्रवचनकर्ता -जगद्गुरुत्तम् स्वामी श्री कृपालु जी महाराज)
(स्त्रोत -जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।)
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