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  हम सब आनन्द सम्प्रदाय के हैं!!!
- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज  द्वारा नि:सृत प्रवचन 
 जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज समन्वयवादी जगद्गुरु हैं। उन्होंने अनेकानेक विरोधाभासों का समन्वय किया है। वे ऐसे पहले जगद्गुरु हैं, जिन्होंने अपना कोई मत अथवा सम्प्रदाय नहीं चलाया, अपितु समस्त जीवों के लिये समन्वय रुप में केवल एक सम्प्रदाय माना और सुझाया कि उसी एक मान्यता से विश्व में व्याप्त वर्तमान समस्यायें आसानी से हल की जा सकती हैं। यह तर्क वेदादिक सम्मत भी है। आइये उनके द्वारा नि:सृत प्रवचन के एक अंश के द्वारा इसे समझने का प्रयत्न करें :::::
 
(हम सब आनन्द सम्प्रदाय के हैं - यहाँ से पढ़ें...)
 
...हम सुख चाहते हैं अपना। बाहर से मतलब नहीं है, अपना सुख चाहते हैं। सुख!! सुख चाहते हो? हाँ, सुख। सब सुख चाहते हैं। हाँ!! तो फिर सब आस्तिक हैं, सब भगवान के भक्त हैं। क्योंकि भगवान का तो नाम ही है सुख, आनन्द। (रसो वै स: - वेद)
 
इसलिये सब आस्तिक भी हैं, सब वैष्णव भी हैं, सब भगवान के हैं, यानी बस एक सम्प्रदाय है सारी दुनियां में। अगर कोई पूछे कि आप किस सम्प्रदाय के हैं? आनन्द सम्प्रदाय के, भगवत सम्प्रदाय के। क्यों? इसलिये कि हम केवल भगवान को चाहते हैं। केवल आनन्द चाहते हैं, हम दु:ख नहीं चाहते। और अगर और डिटेल में जाओ, तो फिर ये कह सकते हो कि हम आनन्द चाहते हैं, लेकिन मिला नहीं है। तो भगवान में आनन्द मानने लगे। प्रयत्न कर रहे हैं कि हम आस्तिक बन जायें, वैष्णव बन जायें, शैव बन जायें।
 
तो विश्व में वर्तमान काल में जो मायाधीन हैं वो आस्तिक नहीं, वैष्णव नहीं बन सकता। जब माया चली जायेगी और भगवान गवर्न करेंगे हमको, तब हम आस्तिक हुये। हर समय रियलाइज करेंगे तब। अंदर बैठे हैं, अंदर बैठे हैं। अभी तो मुँह से बोलते हैं, सबके अंदर बैठे हैं। घट घट व्यापक राम। अरे घट घट है क्या? तुम्हारे घट (हृदय) में है, ये तुम महसूस करते हो? अगर करो तो न कोई गवर्नमेन्ट की जरुरत है, न कोर्ट की, न पुलिस की। हर समय यह फीलिंग रहे कि वो अंदर बैठे हैं।
 
अगर इसका प्रचार करे, हर दुनियां की, देश की गवर्नमेन्ट , सबके अंदर भगवान बैठे हैं। इसका प्रचार करे, भरे लोगों के, बच्चों के दिमाग में। तो अपराध अपने आप कम हो जायें। सब डरेंगे कि हाँ! वो (भगवान) नोट कर लेंगे, फिर दण्ड देंगे भगवान, इसलिये गलत काम नहीं करना है।
 
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)

स्त्रोत -जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'मैं कौन? मेरा कौन? विषय पर दिये गये ऐतिहासिक 103 प्रवचनों की श्रृंखला के 67 वें प्रवचन का एक अंश।
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
 

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