कौन खतरनाक? भुक्ति अथवा मुक्ति?
- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा किया गया वेदादिक सम्मत समाधान
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज इस युग के वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य हैं। उन्होंने अपने अवतारकाल में अनेकानेक गुढ़ातिगूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों एवं शंकाओं का निराकरण किया है जिससे भगवदीय प्रेम-पथिकों के लिये साधना का मार्ग नित्य निरंतर प्रकाशवान रहा है। अनेक जिज्ञासु जीवों ने उनसे अपनी जिज्ञासाएं व्यक्त की थीं, जिनका उन्होंने बड़ा सरल एवं वेदादिक सम्मत समाधान प्रदान किया है। ऐसा ही एक प्रश्न एक साधक ने उनसे पूछा था। आइये उस प्रश्न तथा श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा दिये गये उत्तर पर हम सभी विचार करें-
(यहां से पढ़ें...)
एक साधक का प्रश्न - महाराज जी! भुक्ति अधिक खतरनाक है या मुक्ति?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर
...कैतव माने ठगने वाला, छलने वाला, चार सौ बीस। भुक्ति माने जानते ही हैं आप ब्रम्हलोक तक के मैटीरियल सुख को भुक्ति कहते हैं और माया से मुक्त हो जाना मुक्ति है। ये दोनों कैतव हैं, ठग हैं।
लेकिन मुक्ति अधिक ठग है, क्योंकि मुक्ति हो जायेगी तो फिर संसार में आना ही नहीं पड़ेगा। तो फिर प्रेमानन्द सदा को गया और भुक्ति में तो संसार में घूमते रहेंगे, घूमते-घूमते कभी कोई रसिक मिल गया और हमारी बुद्धि में वो बैठ गया और हम उसके आदेशानुसार चल पड़े तो एक दिन प्रेमानन्द मिल सकता है। इसलिये भुक्ति से मुक्ति अधिक खतरनाक है।
पाप भी खतरनाक, पुण्य भी खतरनाक - दोनों डेन्जरस है। पाप करने पर नरक मिलेगा, पुण्य करने पर स्वर्ग मिलेगा। दोनों नश्वर। हरि-गुरु भक्ति से ही कल्याण होगा।
(स्त्रोत-प्रश्नोत्तरी पुस्तक (भाग - 1, प्रश्न संख्या 97))
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