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 पितृ पक्ष में तर्पण, पिंड दान व वस्त्र दान  का है बहुत महत्व
 भारतीय संस्कृति में पूर्वजों के लिए निर्धारित विशेष समय पितृपक्ष का प्रारंभ शनिवार से हो गया है। इस अवधि में लोग अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इस अवधि में लोग नदी तट, सरोवर के अलावा घर में अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करते हैं। 
  पंडित विवेक कुमार उपाध्याय के अनुसार इस बार कुल 16 दिनों का पूर्णकालिक श्राद्ध पक्ष की प्राप्ति होना भी शुभकर है। श्राद्ध में चार बातें तर्पण, भोजन व पिण्ड दान, वस्त्रदान व दक्षिणादान प्रमुख हैं। शास्त्रों में श्राद्ध कर्म में कुतप काल को विशेष महत्व दिया गया है। ये समय दिन का आठवां व नवां मुहूर्त होता है। यह 11:36 बजे से 12:24 मिनट व इसके बाद का 48 मिनट प्रमुख होता है। ये समय मनुष्य जीवन के समस्त पापों को सन्तप्त करने में समर्थ होता है। इस वर्ष  25 सितम्बर, रविवार को पितृ विसर्जन होगा।
पंडित विवेक उपाध्याय ने बताया कि शास्त्रों में कहा गया है कि पुत्र वही है जो अपने पितरों की नरक से रक्षा करे। उसकी रक्षा का सबसे सहज उपाय श्राद्ध है। क्योंकि पितृ अगर तृप्त नहीं हंै तो मनुष्य के जीवन में पूर्णता सम्भव नहीं है। श्राद्ध करने में श्रद्धा का होना परम् आवश्यक बताया गया है। इस संसार में श्राद्ध से उत्तम कोई भी कल्याणप्रद उपाय नहीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अंतरिक्ष में सूक्ष्म रूप में अवस्थित पितर श्राद्धकाल की बात सुनकर ही तृप्त हो जाते हैं। हमारे स्मरण मात्र से ही हमारे पितर उस श्राद्ध भूमि पर आ जाते हैं।
 श्राद्ध में निर्धनता कहीं से बाधक नही है
पद्मपुराण के अनुसार निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी पितरों को संतुष्ट करने में सक्षम है। धन के अभाव के विकल्प में शाग (शाक) से भी श्राद्ध करके पितरों को तृप्त कर सकते है। शाग खरीदने में असमर्थ व्यक्ति भी कुतप बेला में गाय को घास खिलाकर भी श्राद्ध कर्म को कर सकता है । भारतीय सनातनी परम्परा में सभी को समान समरूपता प्रदान किया गया है। यह स्वयं में एक समृद्ध परंपरा का प्रतीक है। 

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