जानें कौन सी हैं दस दिशाएं.... कौन हुए उनके जीवनसाथी... क्या है इनका महत्व...
बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
दिशाओं के विषय में सबको पता है। हमें मुख्यत: 4 दिशाओं के बारे में पता होता है जो हैं पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण। वैज्ञानिक और वास्तु की दृष्टि से 4 और दिशाएं है जो इन चारों दिशाओं के मिलान बिंदु पर होती हैं। ये हैं - उत्तरपूर्व (ईशान), दक्षिणपूर्व (आग्नेय), उत्तरपश्चिम (वायव्य) एवं दक्षिणपश्चिम (नैऋत्य)। तो इस प्रकार 8 होती हैं जो सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त उध्र्व (आकाश) एवं अधो (पाताल) को भी दो दिशाएं मानी जाती हैं। तो दिशाओं की संख्या 10 हुए। अंतत: जहां हमारी वर्तमान स्थिति होती है उसे मध्य दिशा कहते हैं। इस प्रकार दिशों की कुल संख्या 11 होती है। किन्तु 11 में से 10, उनमें से 8 एवं उनमें से भी 4 दिशाओं का विशेष महत्व है।
पुराणों के अनुसार सृष्टि के आरम्भ से पहले जब ब्रह्मा तपस्या से उठे और उन्होंने सृष्टि की रचना का विचार किया तब उनके कर्णों से 10 कन्याओं की उत्पत्ति हुई। इनमें से 6 मुख्य एवं 4 गौण कन्याएं थीं। सभी कन्याएंं अलग-अलग स्थानों पर चली गयीं और उससे ही वे स्थान "दिशाएं" कहलाईं।
वे 10 कन्यायें थीं:
पूर्वा: जो पूर्व दिशा कहलाई।
आग्नेयी: जो आग्नेय दिशा कहलाई।
दक्षिणा: जो दक्षिण दिशा कहलाई।
नैऋती: जो नैऋत्य दिशा कहलाई।
पश्चिमा: जो पश्चिम दिशा कहलाई।
वायवी: जो वायव्य दिशा कहलाई।
उत्तरा: जो उत्तर दिशा कहलाई।
ऐशानी: जो ईशान दिशा कहलाई।
ऊध्र्वा: जो उध्र्व दिशा कहलाई।
अधस्: जो अधो दिशा कहलाई।
उसके पश्चात ब्रह्मदेव ने आठ दिशाओं के लिए 8 देवताओं का निर्माण किया और उन कन्याओं को पति के रूप में समर्पित किया। ब्रह्मदेव ने उन सभी को "दिग्पाल" (दिक्पाल) की संज्ञा दी जिसका अर्थ होता है दिशाओं के पालक। ये आठ दिक्पाल हैं:
पूर्व के इंद्र
आग्नेय के अग्नि
दक्षिण के यम
नैऋत्य के सूर्य
पश्चिम के वरुण
वायव्य के वायु
उत्तर के कुबेर
ईशान के सोम
अन्य दो दिशाओं अर्थात उध्र्व (आकाश) में ब्रह्मदेव स्वयं चले गए और अधो (पाताल) में उन्होंने अनंत (शेषनाग) को प्रतिष्ठित किया। इस प्रकार सभी 10 दिशाओं को उनके दिक्पाल मिले।
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