बार-बार न मिलने वाले मानव देह का महत्व विचारो
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की प्रवचन श्रृंखला
समस्त देहों में मनुष्य का देह अत्यन्त दुर्लभ है। यह देवताओं के लिये भी दुर्लभ है। इसका महत्व सभी शास्त्रों ने गाया है क्योंकि यही देह भगवान को पाने का साधन है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने भी अपने प्रवचनों, ग्रन्थों, रचनाओं में मानव-देह की महत्वता, क्षणभंगुरता आदि पर अनगिनत बार प्रकाश डाला है तथा मानव-समुदाय को बार-बार चेताया भी है। आज उन्हीं के द्वारा सुरचित प्रेम-रस-मदिरा नामक विलक्षण पद-ग्रन्थ में वर्णित एक पद के माध्यम से मानव-देह के महत्व पर विचार करने का प्रयास करेंगे -
प्रेम रस मदिरा ग्रन्थ के,
- सिद्धान्त माधुरी खण्ड से
मिलत नहिं नर तनु बारम्बार।
कबहुँक करि करुणा करुणाकर, दे नृदेह संसार।
उलटो टांगी बाँधि मुख गर्भहिं, समुझायेहु जग सार।
दीन ज्ञान जब कीन प्रतिज्ञा, भजिहौं नंदकुमार।
भूलि गयो सो दशा भई पुनि, ज्यों रहि गर्भ मझार।
यह 'कृपालु' नर तनु सुरदुर्लभ, सुमिरु श्याम सरकार।।
भावार्थ - यह मनुष्य का शरीर बार बार नहीं मिलता। दयामय भगवान चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात् दया करके कभी मानव देह प्रदान करते हैं। मानव देह देने के पूर्व ही संसार के वास्तविक स्वरुप का परिचय कराने के लिए गर्भ में उल्टा टांग कर मुख तक बाँध देते हैं। जब गर्भ में बालक के लिए कष्ट असह्य हो जाता है तब उसे ज्ञान देते हैं और वह (जीव) प्रतिज्ञा करता है कि मुझे गर्भ से बाहर निकाल दीजिये, मैं केवल आपका ही भजन करूंगा। जन्म के पश्चात जो श्यामसुंदर को भूल जाता है, उसकी वर्तमान जीवन में भी गर्भस्थ अवस्था के समान ही दयनीय दशा हो जाती है। श्री कृपालु जी कहते हैं कि यह मानव देह देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, इसलिए सावधान हो कर श्यामसुंदर का स्मरण करो।
( प्रेम रस मदिरा, सिद्धांत माधुरी - पद संख्या 77)
(पद एवं ग्रन्थ रचनाकार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन)
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