श्रीराधारानी जी के इन गुणों को विचारकर ही उनका शरणागत सदैव निर्भय रहता है!!!
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज भक्तियोग रस
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज भक्तियोग रस के परमाचार्य हैं जिन्होंने अपने ग्रन्थों तथा प्रवचनों में भक्ति तथा प्रेम तत्व का विशद विवेचन किया है। प्रेम की साकार स्वरुपा महारानी श्री राधारानी तथा उनके नाम, रुप, गुण, धाम, लीला आदि का भी अति मधुर तथा सरस वर्णन उन्होंने अपने ब्रजरसपरक ग्रन्थ-साहित्यों में किया है। निम्नांकित पद उनके द्वारा रचित प्रेम-रस-मदिरा नामक ग्रन्थ से है, जिसमें उन्होंने श्रीराधारानी जी के उन गुणों का वर्णन किया है, जिन पर विचार कर-करके उनका शरणागत जीव सदैव निर्भय रहता है। आइये हम भी उन गुणों पर गम्भीर चिन्तन कर उन्हीं श्रीराधारानी का महाश्रय ग्रहण करें :::::::::
(यह पद नीचे इस प्रकार है..)
श्री राधे हमारी सरकार, फिकिर मोहिं काहे की।
हित अधम उधारन देह धरें,
बिनु कारन दीनन नेह करें,
जब ऐसी दया दरबार, फिकिर मोहिं काहे की।
टुक निज-जन क्रन्दन सुनि पावें,
तजि श्यामहुँ निज जन पहँ धावें,
जब ऐसी सरल सुकुमार, फिकिर मोहिं काहे की।
भृकुटी नित तकत ब्रम्ह जाकी,
ताकी शरणाई डर काकी,
जब ऐसी हमारी रखवार, फिकिर मोहिं काहे की।
जो आरत मम स्वामिनि! भाखै,
तेहि पुतरिन सम आँखिन राखै,
जब ऐसी कृपालु रिझवार, फिकिर मोहिं काहे की।।
उपरोक्त पद का भावार्थ :::: जब किशोरी जी (श्रीराधेरानी) हमारी स्वामिनी हैं तब मुझे किस बात की चिंता है? जो पतितों के उद्धार के लिये ही अवतार लेती हैं एवं अकारण ही दीनों से प्रेम करती हैं। जब हमारी स्वामिनी के दरबार में इतनी अपार दया है, तब मुझे किस बात की चिंता है? हमारी स्वामिनी जी अपने शरणागतों की थोड़ी भी करुण-पुकार सुनते ही अपने प्राणेश्वर श्यामसुन्दर को भी छोड़कर अपने जन के पास तत्क्षण अपनी सुधि बुधि भूलकर दौड़ आती हैं। जब हमारी किशोरी जी इतनी सुकुमार और सरल स्वभाव की हैं, तब मुझे किस बात की चिंता है? ब्रम्ह श्रीकृष्ण भी जिनकी भौहें देखते रहते हैं अर्थात प्यारे श्यामसुन्दर भी जिनके संकेत से चलते हैं, उनकी (श्रीराधेरानी) शरण में जाकर फिर किसका भय है? जब ऐसी स्वामिनी जी हमारी रक्षा करने वाली हैं, तब मुझे किस बात की चिंता है? जो शरणागत आर्त होकर दृढ़ निष्ठापूर्वक मेरी स्वामिनी जी!' ऐसा कह देता है, उसे स्वामिनी जी अपनी आँखों की पुतली के समान रखती हैं। श्री कृपालु जी कहते हैं कि जब हमारी स्वामिनी जी शरणागत से इतना प्यार करती हैं, तब मुझे किस बात की चिंता है?
ग्रन्थ का नाम - प्रेम रस मदिरा, प्रकीर्ण माधुरी, पद संख्या 21
पद एवं ग्रन्थ के रचयिता : भक्तियोगरसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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