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  बिना महापुरुषों की सहायता के अनेकानेक शास्त्रों को स्वयं समझने का प्रयास हानि कर सकता है!!
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की प्रवचन श्रृंखला
  जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने साधक की साधना में बाधा पहुँचाने वाले अनेक बाधक तत्वों के विषय में अनेक बार समझाया है, यथा परदोष दर्शन, लोकरंजन, परनिन्दा आदि। इसी में एक बाधक तत्व है अनेकानेक शास्त्रों को स्वयं की बुद्धि के बल पर पढऩे और समझने का प्रयास करना। यद्यपि यह सुनने-पढऩे में थोड़ा अटपटा मालूम होता है तथापि सिद्धान्त अनुसार समझने पर इसे आसानी से समझा जा सकता है। अत: आइये श्री कृपालु महाप्रभु जी के ही शब्दों में इसे समझने का प्रयास करें :::::::
 
(आचार्य श्री की वाणी यहाँ से है....)
 
...अनेकानेक शास्त्रों, वेदों, पुराणों एवं अन्यान्य धर्मग्रंथों को पढऩा  कुसंग  है। चौंको मत, बात समझो। कारण यह है कि वे महापुरुष के प्रणीत ग्रन्थ हैं, अतएव उन्हें हम भगवत्प्रणीत ग्रन्थ भी कह सकते हैं। उनका वास्तविक तत्त्व अनुभवी महापुरुष ही जानते हैं। तुम उन्हें पढ़कर अनेकानेक प्रश्न पैदा कर बैठोगे, जिनका कि समाधान अनुभव के बिना संभव नहीं।
 
यदि किसी मात्रा में संभव भी है तो वह एकमात्र महापुरुष के द्वारा ही। अतएव हमारे यहाँ के प्रत्येक शास्त्रादि स्वयं प्रमाण देते हैं कि महापुरुष के द्वारा ही शास्त्रों का तत्वज्ञान हो सकता है -
 
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन:।।
(गीता 4-34)
 
यदि तुम शास्त्रों, वेदों को पढ़कर स्वयं ही तत्वनिर्णय करना चाहो तो सर्वप्रथम इस विषय में महापुरुष का निर्णय पढ़ लो। तुलसीदास के शब्दों में -
 
श्रुति पुराण बहु कहेउ उपाई,
छूटै न अधिक अधिक अरुझाई..
 
अर्थात् यदि महापुरुष के बिना ही, अपने आप शास्त्रीय भगवद्विषयों का तत्वनिर्णय करने चलोगे तो सुलझने के बजाय उलझते जाओगे। सारांश यह है कि एक प्रश्न के समाधान के लिए तुम शास्त्रों में अपनी बुद्धि को लेकर उत्तर ढूंढऩे जाओगे तो शास्त्रों के वास्तविक रहस्य न समझकर सैकड़ों प्रश्न उत्पन्न करके लौटोगे, क्योंकि पुन: तुलसीदास ही के शब्दों में -
 
मुनि बहु, मत बहु, पंथ पुराननि, जहां तहां झगरो सो..
(विनय पत्रिका)
 
अर्थात् अनेक ऋषि मुनि हो चुके हैं एवं उनके द्वारा प्रणीत अनेक मत भी बन चुके हैं। पुराणादिक में इस विषय में झगडे ही झगड़े हैं। फिर तुम्हारी बुद्धि भी मायिक है अतएव तुम मायिक अर्थ ही निकालोगे।
 
(प्रवचनकर्ता - जगद्गुरुत्तम् स्वामी श्री कृपालु जी महाराज)

सन्दर्भ - साधन-साध्य पत्रिकायें
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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