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भोलेनाथ के इस मंदिर के गुंबद की जमीन पर नहीं पड़ती परछाई
भारत में प्राचीन मंदिरों का अपना एक अद्भुत इतिहास रहा है। आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जो अपनी एक अनोखी खासियत के कारण प्रसिद्ध है। ये खासियत है- इस मंदिर के गुंबद की कभी परछाई नहीं पड़ती, जी हां... यह सच है। भगवान भोलेनाथ को समर्पित यह मंदिर है-ब्रहदीश्वर मंदिर।
तमिलनाडु राज्य के तंजौर में स्थित ब्रहदीश्वर मंदिर तमिल वास्तुकला में चोलों द्वारा की गई अद्भुत प्रगति का एक प्रमुख नमूना है।  वास्तुकला की द्रविड़ शैली में निर्मित, ब्रहदीश्वर मंदिर हिंदू देवता शिव को समर्पित  भारत का सबसे बड़ा मंदिर होने के साथ-साथ, भारतीय शिल्प कौशल के आधारस्तम्भों में से एक है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। बृहदेश्वर मंदिर अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है। मान्यता है कि इस मंदिर में सबकी मनोकामना होती है।  
 बृहदीस्वरा मंदिर को पेरुवुडइयर कोविल, राजराजेस्वरम भी कहा जाता है जिसे 11वीं सदी में चोल साम्राजय के राजा चोल ने बनवाया था। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है।   इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़े से बने हैं। तमिल भाषा में इसे बृहदीश्वर के नाम से संबोधित किया जाता है। यह मंदिर चोल शासकों की महान कला का केन्द्र रहा है। भगवान शिव को समर्पित बृहदीश्वर मंदिर शैव धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल रहा है। 
 हर महीने जब भी सताभिषम का सितारा बुलंदी पर हो, तो मंदिर में उत्सव मनाया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि राजाराज के जन्म के समय यही सितारा अपनी बुलंदी पर था। एक दूसरा उत्सव कार्तिक के महीने में मनाया जाता है जिसका नाम है कृत्तिका। एक नौ दिवसीय उत्सव वैशाख (मई) महीने में मनाया जाता है और इस दौरान राजा राजेश्वर के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन किया जाता था। 
बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का बेजोड़ नमूना है। इसके शिलालेखों में अंकित संस्कृत व तमिल लेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर की उत्कृष्टता के कारण ही इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का स्थान मिला है।
 मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम यानी द्वार के भीतर एक चौकोर मंडप है तथा चबूतरे पर नंदी जी की विशाल मूर्ति स्थापित है। नंदी की यह प्रतिमा भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नंदी की दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है।  
12 बजे के बाद नहीं नजर आती परछाई 
यह मंदिर ग्रेनाइट की विशाल चट्टानों को काटकर वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाया गया है। इसमें एक खासियत यह है कि दोपहर 12 बजे के बाद इस मंदिर के गुंबद की परछाई जमीन पर नहीं पड़ती। आज तक वैज्ञानिक भी इस मंदिर के रहस्य को सुलझा नहीं सके हैं, कि आखिर क्यों इस मंदिर के गुम्बद की छाया 12 बजे के बाद जमीन पर नहीं पड़ती है । यानी दोपहर के वक्त मंदिर के हर हिस्से की परछाई तो जमीन पर दिखती है , लेकिन हैरानी की बात यह है कि मंदिर के गुंबद की परछाई धरती पर नहीं पड़ती है और यह बिल्कुल ही नहीं दिखती । 
बृहदेश्वर मंदिर पेरूवुदईयार कोविल, तंजई पेरिया कोविल, राजाराजेश्वरम् तथा राजाराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
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