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 वास्तविक आध्यात्मिक लाभ पाने मन को हटाने-लगाने का यह विज्ञान समझना ही होगा
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा नि:सृत प्रवचन
 
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा नि:सृत प्रवचन का यह अंश हमारे लिये इस दिशा में मार्गदर्शन है कि हम अपना मन किधर से हटावें और किसमें लगावें? यह समझना और अच्छे से समझना बहुत आवश्यक है क्योंकि मन का ही सारा खेल है, बंधन और मोक्ष दोनों का कारण मन है। निम्नांकित प्रवचन अंश श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित पद - सुनो मन, एक काम की बात; की व्याख्या से ली गई है, जो उनके द्वारा भक्तिधाम मनगढ़ में सन 1984 में की गई थी। यह बाद में "कामना और उपासना" नाम से पुस्तक रुप में प्रकाशित हुई। आइये इस अंश से आध्यात्मिक लाभ हेतु मार्गदर्शन प्राप्त करें ::::::::
 
(आचार्य श्री की वाणी यहां से है....)
 
...हमारे मन का, मायिक जगत में जितने भी चर अचर जीव हैं, चेतन अचेतन जीव हैं वहां मन का अटैचमेन्ट न हो। मायाबद्ध, ये शब्द न भूलना। नहीं तो कहीं आपके मायिक जगत में तुलसीदास, सूरदास भी हों और आप कहें ये मायिक जगत में हैं इसलिये इनसे भी अटैचमेन्ट न किया जाय। मायिक जगत में जो जड़ चेतन माया के अण्डर में हैं। 
 
इस जगत में तो सन्त लोग, मायातीत भी आते हैं और भगवान मायाधीश भी आता है, उनको छोड़कर जो माया के अण्डर में है वो तीन कैटेगरी में आते हैं, उनका तीन क्लास है - सात्त्विक, राजस, तामस। ये तीन प्रकार की जेल है - ए क्लास, बी क्लास, सी क्लास। हमारे देश में भी तीन क्लास की जेल होती है। तो महापुरुष और भगवान को छोड़कर के मायिक जगत के समस्त जड़ चेतन मनुष्य यानी जीव अथवा जड़ पदार्थ जिनमें जीव नहीं है, निर्जीव, इनमें कहीं भी मन का अटैचमेन्ट न हो। न अनुकूल भाव से न प्रतिकूल भाव से, उसका नाम वैराग्य।
 
अब ठीक इसके विपरीत परिभाषा बन गई भगवान की। भगवान, उनका नाम, उनका रुप, उनकी लीला, उनके गुण, उनके धाम, उनके सन्त, इनमें कहीं भी मन का अटैचमेन्ट हो, अनुकूल भाव से, वहां प्रतिकूल (विपरीत या उल्टा) भाव न लगाना। यद्यपि प्रतिकूल भाव से उपासना करके बड़े बड़े राक्षसों ने भगवान का धाम प्राप्त किया है, लेकिन आपको नहीं करना है वह। अनुकूल भाव से आपके मन का अटैचमेन्ट हो जाय। जड़ वस्तु में हो जाय, तो भी काम बन जायेगा। संसार में जैसे रसगुल्ला जड़ वस्तु है न, ऐसे ही आपका ब्रजरेणु (ब्रजधाम की धूल) में हो जाय अटैचमेन्ट, गोलोक के किसी कण में हो जाय आपके मन का अटैचमेन्ट तो भी आप भगवान का लोक प्राप्त करेंगे।
 
लेकिन मन बहुत चंचल है। इसलिये सबमें लगाये रहना चाहिये, भगवान, उनका नाम, उनका रुप, उनका गुण, उनकी लीला, उनके धाम, उनके सन्त। सबमें मन को घुमाते रहो ताकि थके न मन।
 
(प्रवचनकर्ता -जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)

संदर्भ -कामना और उपासना पुस्तक, भाग - 1, प्रवचन - 1
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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