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 संसार में छह प्रकार के लोग और महापुरुषों का परोपकार का सहज स्वभाव!!
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की प्रवचन श्रृंखला
 
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज का निम्नांकित प्रवचन अंश उनके नारद-भक्ति-दर्शन पर दी गई प्रवचन श्रृंखला से है। यह प्रवचन श्रृंखला उन्होंने वर्ष 1990 में भक्तिधाम मनगढ़ (उ.प्र.) में दिया था। इस अंश में श्री कृपालु महाप्रभु जी संसार में छह प्रकार के लोगों के विषय में संक्षिप्त में बता रहे हैं। छठे प्रकार में महापुरुष, संत-महात्माओं के स्वभाव का निरुपण किया गया है। आइये इस संक्षिप्त अंश से हम अपने आत्मिक-लाभ का कुछ आधार प्राप्त करें ::::::::
 
(आचार्य श्री की वाणी यहां से है....)
 
...महापुरुष लोग अपना अनिष्ट करके हम लोगों का इष्ट करते हैं -

भुर्ज तरु सम सन्त कृपाला।
 
भोजपत्र का पेड़ होता है, उस पेड़ की छाल होती है तो एक के ऊपर एक, एक के ऊपर एक। सब निकाल लो तो पेड़ जीरो बटा सौ, वो छालों का लिपटा हुआ एक पुंज ही पेड़ होता है। देखिये! छ: प्रकार के लोग होते हैं। हाँ, जल्दी समझियेगा ध्यान देकर, अपना अनिष्ट करके दूसरे का अनिष्ट करना। आप लोग सोचते तो हैं और बोलते भी हैं, अपने छोटों के आगे - हैं, हैं, हैं, मैं भी कुछ अकल रखता हूँ और छोटी सी बात जल्दी नहीं समझते, हमको डिटेल करना पड़ता है। अपना अनिष्ट करके भी दूसरे का अनिष्ट करना, ये सबसे निम्न क्लास के लोग होते हैं। हमारा नुकसान हो जाय तो हो जाय लेकिन उसका नुकसान जरुर करना है।
 
अरे! ये कौन सी समझदारी की बात है कि अपना नुकसान कर रहे हो, उसके नुकसान करने के चक्कर मे। लेकिन होते हैं ऐसे -
 
जे बिनु काज दाहिने बाएँ।
 
तो अपना अनिष्ट करके दूसरे का अनिष्ट करना, सबसे खराब, नम्बर एक। इससे अच्छा, अपने इष्ट के लिये दूसरे का अनिष्ट करना यानी अपने फायदे के लिये दूसरे का नुकसान कर देना। ये पहले वाले से कुछ अच्छे हैं, नम्बर दो और तीसरा अपने इष्ट के लिये दूसरे का इष्ट करना यानी अपना भी लाभ हो इसका भी हो, फिफ्टी-फिफ्टी, ये उससे भी अच्छा है, नम्बर तीन और नम्बर चार अपने इष्ट के लिये दूसरे का अनिष्ट न करना। नम्बर पाँच, दूसरे का ही इष्ट करना और नम्बर छ:, अपना अनिष्ट करके दूसरे का इष्ट करना। अपना नुकसान भले ही हो जाय लेकिन इसका लाभ हो जाय। महाराज! हमको नरक में वास दे दो लेकिन इन जीवों का कल्याण करो, ये महापुरुषों का सिद्धान्त है। आप लोग इसको सोच नहीं सकते, समझ भी नहीं सकते। 
 
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)

सन्दर्भ : जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा नारद-भक्ति-दर्शन की 11-दिवसीय व्याख्या के 9 वें दिन के प्रवचन से (1990)
सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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