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 श्रीकृष्णचन्द्र के गोलोक धाम की प्राप्ति किस प्रकार होगी?
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन
 
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के आज के प्रकाशित प्रवचन अंश में हम जानेंगे कि किन-किन पड़ावों को पार करने के बाद जीव को भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के गोलोक धाम की प्राप्ति होगी? इस प्रवचन में विशेष रुप से तत्वज्ञान, साधना एवं कृपा तत्व के विषय में बतलाया गया है। श्रीकृष्णचन्द्र के प्रेम, सेवा, धाम प्राप्ति के इच्छुक पिपासु जीव को इसे समझकर तदनुकूल प्रयत्न करने पर निश्चय ही लाभ प्राप्त होगा ::::::
 
(आचार्य श्री की वाणी यहाँ से है....)
 
जीव के तीन शत्रु है। एक शत्रु को जीतना तो आसान है, दूसरे शत्रु को जीतना थोड़ा कठिन है लेकिन उसको जीता जा सकता है और तीसरा शत्रु जो है वो इतना बलवान है कि उसको कोई नहीं जीत सकता।
 
उनका नाम है मल, विक्षेप और आवरण।
 
पहला मल तो तत्व ज्ञान होने से चला जाता है, शास्त्र वेद का ज्ञान, माया क्या है, जीव क्या है, ब्रह्म क्या है, जीव को भगवत प्राप्ति कैसे होगी - ये थिअरी की नॉलेज से चला जाता है या शब्दज्ञान कह दो, ये तो कोई भी कर सकता है बार बार सुनने से। ये मल आवरण है। ये पहला है।
 
दूसरा है विक्षेप। ये भी हमने पैदा किया है। मल के गड़बड़ होने से विक्षेप हो गया। विक्षेप का रीजन मल यानी तत्त्वज्ञान का अभाव। हमने सबसे पहले थिअरी की नॉलेज नहीं प्राप्त की तो अपने आप को देह मान लिया और फिर देह के सुख के पीछे भाग पड़े, भागते रहे, भागते रहे, अनंत जन्म बीत गए, लेकिन अगर कोई बहादुर मल के हट जाने के बाद साधना कर ले, हरि गुरु का रुपध्यान करते हुए रोते हुए उनके नाम, गुण, लीला आदि का गान; तो अन्त:करण शुद्ध हो जाएगा। यानी वो जो भीतर वाला अन्त:करण गंदा है वो धुल जाएगा, शुद्ध हो जाएगा। तो विक्षेप समाप्त होने का मतलब अन्त:करण की शुद्धि। तो अन्त:करण कैसे शुद्ध होगा इसका ज्ञान मल के हटने से हो गया और साधना करने से, भक्ति करने से विक्षेप भी चला गया।
 
लेकिन वो कोई कोई बहादुर है जो साधना करके अन्त:करण शुद्ध कर ले। ये आम बात नहीं है, लेकिन वो कर सकता है।
 
तीसरा है आवरण; ये माया की शक्ति है और दैवी शक्ति है। अन्त:करण की शुद्धि के बाद जब गुरु कृपा से स्वरूप शक्ति मिलती है, वो कृपा से मिलती है, साधना से नहीं मिलती। साधना से तो केवल अन्त:करण शुद्ध होता है। उसको दिव्य भी बनाना होगा तभी उसमें दिव्य प्रेम ठहर सकेगा। वो दिव्य बनाने के लिए गुरु, भगवान की कृपा चाहिए। वो हो गई जब तब तीसरा शत्रु भी ख़तम हो जाएगा। तब जीव सदा के लिए आनंदमय ज्ञानमय होकर गोलोक में रहेगा।
 
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)

सन्दर्भ : जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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