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 हम बड़ी निश्चिंतता से सो रहे हैं, पर कोई है जो हम पर घात लगाये बैठा है, आखिर कौन है वह?
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के 'प्रेम-रस-मदिरा' ग्रन्थ के सिद्धांत

सत्य ही है कि मृत्यु से बड़ा छलावा और कोई नहीं करता। मनुष्य सारे जीवन बड़ा निश्चिंत बना हुआ जीता रहता है, और मृत्यु की ओर से आँख दुराये रहता है। परन्तु वह तो आती ही है, कौन ऐसा मायाधीन हुआ है जो यह जानता हो कि कब उसकी देह छूट जायेगी। यह मानव-जीवन तो चार दिन का है पर बड़ा महत्व है इसका और एक बड़े महत्वपूर्ण उद्देश्य के लिये मिला है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज अपनी 'प्रेम-रस-मदिरा' ग्रन्थ के सिद्धांत-माधुरी खण्ड के 12 वें पद में इस ओर ध्यानाकृष्ट करते हुये चेतावनी और इसकी साफल्यता के संबंध में निर्देश दे रहे हैं ::::::

प्रेम-रस-मदिरा ग्रन्थ से,
सिध्दान्त माधुरी, पद - 12

अरे मन! चार दिना की बात।
नर-तनु शरद चाँदनी बीते, पुनि अँधियारी रात।
तू सोवत कछु जानत नाहीं, काल लगायो घात।
तजत न नींद यदपि विषयन के, छिन छिन जूते खात।
अवसर चूकि फिरिय चौरासी, कर मींजत पछितात।
रसिकनि कही 'कृपालु' मानु गहु, युगल चरण जलजात।।

भावार्थ ::: अरे मन! चार दिन की बात है, क्योंकि मनुष्य शरीर रूपी शरदकाल की चाँदनी बीत जाने पर फिर चौरासी लाख योनियों की अँधेरी रात आ जायेगी। तू अज्ञान की नींद में सो रहा है। काल अवसर देख रहा है, तुझे यह पता नहीं। यद्यपि सांसारिक विषय वासनाओं के क्षण-क्षण में जूते खा रहा है फिर भी निद्रा का परित्याग नहीं करता। याद रख! इस अवसर को खो देने पर फिर हाथ मींजता हुआ और पछताता हुआ चौरासी लाख योनियों में भटकेगा। अतएव 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि महापुरुषों के आदेशों को मान ले अर्थात राधाकृष्ण के युगल चरण-कमलों की शरण चला जा।

0 रचयिता ::: जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज
0 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

नोट ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अवतारगाथा संबंधी श्रृंखला में श्री कृपालु जी महाराज के संबंध में लेख प्रति सोमवार और मंगलवार को प्रकाशित होते थे, वह किसी कारणवश आज प्रकाशित न हो सका। बुधवार को इस श्रृंखला का अगला लेख प्रकाशित होगा।वहाँ श्रीराधाकृष्ण भक्ति तथा प्रेम का दिव्य सन्देश दिया।

 

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