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 एक-एक पैसों के जोड़ से लखपति बना जाता है, ऐसे ही क्षण-क्षण के सदुपयोग से आध्यात्मिक प्रगति होती है!!
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की प्रवचन श्रृंखला

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की प्रवचन शैली की यह विशेषता है कि उनके प्रवचनों में समस्त शास्त्र-वेदों तथा अन्यान्य धर्मग्रंथों के उद्धरण तो होते ही हैं, साथ ही विषय को और अधिक सरलतम रुप में समझाने के लिये वे हमारे ही संसार के अनेक उदाहरणों के द्वारा आध्यात्मिक विषय को समझाने का प्रयास करते हैं। नीचे के उद्धरण में श्री कृपालु जी महाराज ऐसे ही एक उदाहरण से हमें अपने जीवन की वास्तविक कमाई की रीति के संबंध में समझाने का प्रयास कर रहे हैं। आइये इसे समझकर अपने कल्याण के लिये उपयोग में लावें ::::::

(आचार्य श्री की वाणी यहाँ से है...)

...कथावाचक लोग कहते हैं, एक सेठ जी रात को हिसाब कर रहे थे दिन भर की कमाई का तो वो हिसाब बैठ नहीं रहा था, उसमें देर हो गई। तो बार-बार खाना खाने के लिये नौकरानी जाये, कि सेठानी जी बैठीं हैं खाने के लिये, चलो, सेठ जी खाना खा लो।

अरे चलते हैं भई! हिसाब नहीं बैठ रहा है। फिर हिसाब करें, फिर हिसाब करें, बस बारह बज गये। तो सेठानी ने कहा ऐसा करो कि थोड़ी सी खीर ले आओ, मुँह में लगा दो उनके। फिर जब मीठा लगेगा तब याद आयेगी खाना खाना चाहिये। तो नौकर गया उसने सेठ के मुँह में थोड़ी सी खीर लगा दिया, उन्होंने चाटा खीर को और जाकर हाथ धो लिया, मतलब खा चुके। जाओ जाओ, तुम लोग जाओ हमारा हिसाब ठीक नहीं हो रहा है। 

ऐसे वो लोभी व्यक्ति लखपति, करोड़पति बनता है। ऐसे ही क्षण-क्षण हरि गुरु का चिन्तन करना है। उनके लिये तन, मन, धन से सेवा करने की प्लानिंग प्रैक्टिस, ये असली कमाई है।

प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज

0 सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, अक्टूबर 2009 अंक
0 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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