संत-मिलन से भगवान का मिलन होता है, किंतु हमें संत-मिलन के बाद भी भगवान के न मिलने का क्या कारण है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 263
(भूमिका - संत के सान्निध्य में आने और उनका बार-बार सत्संग करते रहने पर भी हमको ईश्वरीय लाभ क्यों प्राप्त होता प्रतीत नहीं होता, इसी संबंध में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा समाधान यहाँ प्रस्तुत है...)
साधक का प्रश्न ::: संत भी मिले, फिर भगवान से मिलने का लाभ हमें क्यों नहीं हुआ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: मिलना माने - ये दो अंगुली है, दूर-दूर हैं। ये जब तक दूर-दूर हैं, तभी तक गड़बड़ी है। अब देखो मिल गयी। अब मिलकर एक हो गईं। लेकिन अगर पूरी तरह मिली नहीं है या मिलकर अलग हो गई है तो यह मिलना नहीं कहा जायेगा। मिलना होता है जैसे पानी में नमक डाल दो। कण-कण, रोम-रोम मिल जाये। इसी प्रकार भगवान और उसके नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, जन से मिलना होता है। अन्तःकरण को मिलाना होगा, केवल फिजिकल (शारीरिक) मिलने से काम नहीं चलेगा। केवल संत के शरीर से मिलना, केवल जबान से नाम को लेना, उनसे मिलना नहीं है। उसमें मन का प्लस होना जरूरी है, कम्पलसरी है। जब तक मन उनके अन्दर निहित नहीं है तब तक लाभ होने वाला नहीं है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2016 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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