क्या कारण है कि कुछ व्यक्ति तो हरि-गुरु की ओर तेजी से चलते हैं और कुछ बहुत धीमे या रुक-रुककर चलते हैं?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 266
(भूमिका - प्रत्येक व्यक्ति भगवान के मार्ग पर, जिसे आध्यात्मिक मार्ग कहा जाता है; उस पर अलग-अलग गति से चलता है। गति की इस भिन्नता के पीछे कुछ कारण हैं, उन्हीं पर जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा सरल-शब्दों में प्रकाश डाला गया है...)
साधक का प्रश्न ::: कुछ लोग हरि गुरु की ओर तेजी से दौड़ते हैं कुछ लोग मेरी तरह ब्रेक लगाते रहते हैं ऐसा क्यों?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: इसके दो कारण हैं। एक तो जिनके प्रारब्ध में, भाग्य में, यानी पूर्वजन्म में जिन लोगों ने विशेष साधना की है वो तेजी से बढ़ते हैं और दूसरा रीजन ये है कि इस जन्म में जिन लोगों ने सोचा है बार-बार हमें करना है, जल्दी करना है, अभी करना है, ये मनुष्य शरीर बरबाद न जाय, इन सब बातों को जो बार-बार सोचता है और संसार से वैराग्य होता है मन में, वो तेज चलता है। और जिसके पास दोनों हो गया; इस जन्म में भी सोचा और प्रारब्ध भी उसका मुआफिक था, अच्छा था, वो और तेज चलता है। कुछ तो ऐसे होते हैं, मीरा वगैरह हुई हैं जो कि बस थोड़ी सी कमी थी प्रारब्ध के बाद तो वो पूरी हो गई तुरन्त। और जिसने पहले नहीं कमाया है उसको अब कमाना है, मेहनत करे। असम्भव तो है ही नहीं। सवाल ही नहीं है। अगर पहले कमाया है तो जल्दी स्पीड में बढ़ेंगे हम, नहीं कमाया पहले तो धीरे-धीरे चलकर पहुंचेंगे। पहुँचना तो है ही है वहाँ।
लेकिन हर एक साधक को यही सोचना चाहिये कि प्रारब्ध खराब तब होता है नम्बर एक, मानवदेह न मिले; 'बड़े भाग्य मानुष तनु पावा।' सबसे बड़े भाग्य की बात तो ये ही है कि मनुष्य शरीर मिला। नम्बर दो, 'धन्यास्तु ये भारत भूमि भागे।' इण्डिया में जन्म हुआ। जहाँ मरने पर भी राम नाम सत्य बोलते हैं लोग। अँगड़ाई लेते हैं, तब भी राम-राम बोलते हैं। ऐसे देश में जन्म हुआ। और फिर अगर किसी को महापुरुष मिल गया असली तो बस कृपा की पराकाष्ठा हो गई। इससे आगे भगवान की और कोई कृपा नहीं है। अब इसके आगे लापरवाही है हमारी। जो हम तेज स्पीड में नहीं बढ़ते। सोचते नहीं। बार-बार सोचने से ही परवाह होती है। गति मिलती है।
आवृत्तिरसकृदुपदेशात्।
(ब्रम्हसूत्र 4-1-1)
वैराग्य संसार में सबको होता है। बीबी ने अपमान किया, बाप ने अपमान किया, बेटे ने अपमान किया तो वैराग्य सबको होता है। लेकिन उस पर ज्यादा देर विचार नहीं करता। भूल जाता है। इसलिये भगवान की ओर ज्यादा तेज चल नहीं पाता। तो विचार मेन चीज है, बार-बार। भगवान ने दो वाक्य कहा है कि;
ध्यायतो विषयान् पुंसः संगस्तेषूपजायते।
(गीता 2-62)
विषयान् ध्यायतश्चित्तं विषयेषु विषजते।
मामनुस्मरतश्चित्तं मय्येव प्रविलीयते॥
(भागवत 11-14-27)
मनुष्यों! दो बात याद रखो सब भूल जाओ तो भी कि संसार का बार-बार स्मरण करोगे तो संसार में अटैचमेन्ट हो जायेगा और मेरा स्मरण बार-बार करोगे तो मुझमें अटैचमेन्ट हो जायेगा। सब कुछ चिन्तन पर डिपैण्ड करता है।
होना न सोचे, कि हमसे नहीं होता, भगवान का चिन्तन नहीं होता। होना-वोना तो सिद्धि की बात है, हमको करना है। होना बाद में होता है। संसार में भी पहले शौक से सिगरेट पीता है आदमी। शौक से शराब पीता है बेमनी से फिर बाद में इन्ट्रैस्ट हो जाता है। ऐसे ही भगवान का विषय भी है। पहले मन लगाना होगा, प्रैक्टिस करना होगा, बार-बार, फिर लगने लगेगा। तो फिर चल पड़ेगी गाड़ी। लेकिन शुरू-शुरू में मुश्किल है थोड़ी-सी।
अब और कोई गति ही नहीं। आदमी अगर सोचे - देखो भई ! संसार में एक डॉक्टर से झगड़ा हो गया, तो दूसरा है, तीसरा है। संसार में तो बहुत से लोग हैं, हम जिनसे अपना काम बना लेते हैं, एक ने नहीं किया दूसरे ने किया लेकिन भगवान को छोड़कर कहाँ जायेंगे?
एक माया का एरिया है, एक भगवान का। और फिर जाकर देख लिया। हमारे संसार में कहते हैं कि गरम दूध पीकर के जब बिल्ली का मुँह जल जाता है तो वो छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीती है। और हमारा तो रोज जल रहा है, संसार में। और फिर भी होश नहीं आता। वो कुत्ता होता है न, उसको डण्डा मारो तो रोता हुआ भागता है। कुछ दूर जाकर फिर गुस्से में देखता है मारने वाले को, दुश्मनी की भावना से और जहाँ उसने रोटी दिखाया तो पूँछ हिलाकर फिर आ जाता है। फिर डण्डा मार देता है वो। यही हाल हम लोगों का है। संसार से प्यार करते हैं, संसार वाले अपमान करते हैं, वैराग्य होता है, फिर वहीं जाकर सिर नाक रगड़ते हैं। वो श्मशान वैराग्य कहलाता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग 3, प्रश्न संख्या 27
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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