भगवान का नाम भगवान से बड़ा है, नाम के प्रेमी अंत में भगवान को ही प्राप्त कर लेते हैं
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 307
('नाम-महिमा' के सम्बन्ध में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन का एक अंश...)
...कुछ काम ऐसे हैं जो श्यामसुन्दर नहीं कर सकते और नाम (भगवन्नाम) कर देगा, इसलिये कई स्थानों पर नाम का अधिक महत्व है। यानी नाम को भगवान से बड़ा बताया गया है;
ब्रह्म राम ते नाम बड़ वरदायक वरदानि।
ब्रह्म राम से नाम बड़ा है।
राम भालु कपि कटक बटोरा।
सेतु हेतु श्रम कीन्ह न थोरा।।
नाम लेत भव सिन्धु सुखाहीं।
करहु विचार सुजन मन माहीं।।
अर्थात एक छोटे से पुल के बनाने में कितना बड़ा परिश्रम किया राम ने और कितनी बड़ी गुलामी की वानरी सेना की, खुशामद की। खुशामद से काम नहीं चला तो डराया लक्ष्मण जी से जाकर सुग्रीव को - ऐ! कहाँ है? अपने राज्य में हूँ और कहाँ हूँ? अरे, कुछ होश है, ये राज्य किसने दिलाया है? उठाऊँ बाण? लगाऊँ धनुष में? होश में ला दूँ? उसने कहा - हाँ महाराज! वो ठीक है, ठीक है, याद आ गया। वो आप भगवान राम की बात कर रहे हैं, मैं तो भूल ही गया था।
संसार के वैभव में बड़े बड़े भूल जाते हैं, सुग्रीव सरीखे एकमात्र सखा;
न सर्वे भ्रातरस्तात भवन्ति भरतोपमा:।
मद्विधा वा पितुः पुत्रा: सुहृदो वा भवद्विधा:।।
भगवान राम जिन सुग्रीव के लिये कहते हैं, सुग्रीव! तुम्हारे समान विश्व में न कोई मित्र हुआ, न होगा, चैलेन्ज है। वो सुग्रीव भूल गया जो एक्जाम्पिल माना गया। राम ने अपने श्रीमुख से कहा है, किसी और की बात नहीं है कि भई, जरा बढ़ा के बोल दिया ह्यो, अपने दोस्त के लिये। मेरे समान कोई बेटा नहीं हो सकता, राम ने कहा, और भरत के समान कोई भाई नहीं हो सकता, सुग्रीव के समान कोई मित्र नहीं हो सकता। ये सब एक्जाम्पिल हैं, उदाहरण हैं अद्वितीय। इसका कोई दूसरा ऐसा उदाहरण नहीं हो सकता कि हाँ साहब, सुग्रीव के समान एक दोस्त और हुआ है। श्रीकृष्ण का अर्जुन सखा हुआ है। अरे, क्या अर्जुन होगा? वो सुग्रीव, इतने बड़े मित्र को भूल गया।
नहिं कोउ अस जनमा जग माँहिं।
प्रभुता पाहि जाहि मद नाँहिं।।
श्री मद वक्र न कीन्ह केहि, प्रभुता बधिर न काहि।।
तो देखो! राम ने एक छोटे से पुल बनाने में सुग्रीव की खुशामद की, तमाम वानरी सेना लिया। अगर नल-नील को ये वरदान न होता कि पत्थर तैरने लगें पानी में तो एक और प्रॉब्लम खड़ी होती कि सारी फौज खड़ी है, राम भी खड़े हैं, पुल कैसे बने? समुद्र में पुल बाँधना कोई खिलवाड़ थोड़े ही है। कोई नदी थोड़े ही है कि पुल बाँध दो। आज के वैज्ञानिक युग में भी समुद्र में पुल नहीं बन पाया तो त्रेतायुग में समुद्र में पुल कैसे बनता? इतनी सारी सहायता ले करके छोटा-सा एक पुल बनाया और देखो भगवन्नाम का कमाल;
जासु नाम सुमिरत इक बारा।
उतरहिं नर भव सिन्धु अपारा।।
नाम लेत भव सिन्धु सुखाहीं।
करहु विचार सुजन मन माहीं।।
नाम भवसागर से पार करा देता है। विचार करो! राम और उनके नाम में क्या अन्तर है?
तो भगवन्नाम भगवान से बड़ा है, ये बात सभी एक स्वर से बोलते हैं। चाहे भागवत पढ़ लो, चाहे जो ग्रन्थ पढ़ लो, सबमें एक-सी बात है। नाम बड़ा है, श्यामसुन्दर छोटे हैं। लेकिन सभी नाम के प्रेमी अंत में श्यामसुन्दर को प्राप्त करते हैं, श्यामसुन्दर से उनका पहले कोई मतलब नहीं है, जो भी मतलब है उनके नाम से है, सीधी-सी बात।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'नाम-महिमा' प्रवचन पुस्तक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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