विभिन्न धर्मों में वर्णित ईश्वर के अलग-अलग नाम-रूपों में एकता कैसे है और भगवान को सबसे प्रिय 'प्रेम' तत्व क्या है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 308
(भूमिका - अलग-अलग धर्मों में ईश्वर के अलग-अलग नाम तथा रूपों का वर्णन हुआ है तथापि उन सबमें किस प्रकार से एकता है और कैसे वे एक के ही अनेक नाम-रूप हैं, इसकी झलक हम इस प्रवचन में देखेंगे। साथ ही ईश्वर; चाहे वह ख़ुदा, गॉड आदि जो भी पुकारें, उन्हें जीव/मनुष्य के हृदय के 'प्रेम' और 'अपनत्व' का भाव ही प्रिय है, यह रहस्य निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज हमारे समक्ष प्रगट कर रहे हैं। आइये इस प्रवचन में छिपे इस भाव को हृदयंगम करें...)
★ 'Love is God (लव इज़ गॉड)'
सभी धर्मों का एक ही लक्ष्य है आनन्द प्राप्ति और उस आनन्द प्राप्ति के लिये भी एक ही उपाय है भगवान् को जानो और भगवान् को जानने का, प्राप्त करने का एक ही मार्ग है प्रेम मार्ग।
आलोड्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुनः पुनः।
इदमेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणो हरिः।।
(गरुड पुराण 230-1, लिंग पु., स्कन्द पु., नरसिंह पु., महाभारत)
वेदव्यास जिन्होंने वेदों का व्यास किया, वेदान्त बनाया, 18 पुराण बनाये, भगवान् के अवतार भी हैं ने कहा सारे शास्त्र वेदों का ज्ञान प्राप्त करना तुम्हारी बुद्धि से अगम्य है। सभी शास्त्रों वेदों का सार यही है भगवान् से प्रेम करो। एक सूफी फकीर कहता है:
वेद अवस्ता अल कुरान इंजील नीज़
काब ओ वुतख़ान वो आतशक़दा
मैंने वेद, कुरान, इंजील सब पढ़ लिया, सबको स्वीकार कर लिया। मन्दिर को भी अपना लिया, मस्जिद को भी और गिरिजाघर को भी अपना लिया क्योंकि मैंने खुदा से मोहब्बत कर ली। सभी ग्रन्थों में यही तो लिखा है। भगवान् से प्रेम करो। शास्त्र वेद जितने भी बने हैं सबका एक ही कहना है भक्ति करो, भगवान् से प्रेम करो।
एक बार हज़रत मूसा यह भी पैगम्बर हैं । हज़रत मूसा कहीं जा रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक गड़रिया भेड़ चरा रहा है और सिर नीचे करके आँसू बहा रहा है और कह रहा है - हे ख़ुदा तू जल्दी आजा, मैं तुझे बकरी का दूध पिलाऊँगा। तू चलते चलते थक गया होगा। तमाम दुनियाँ को देखता रहता है। तेरे पैर दबा दूंगा। तेरे कम्बल में चीलर पड़ गई होंगी, तू इतना व्यस्त रहता है दुनियाँ के देखने में, दुनियाँ के शासन में, मैं चीलर निकाल दूँ। तेरी चप्पलें फट गई होंगी चलते चलते। ला मैं सी दूं। इस प्रकार वो गड़रिया कह रहा था। हज़रत मूसा वहीं खड़े हो गये। उन्होंने कहा, क्यों रे तू कौन है? उसने आँख खोली, उसने कहा मैं गड़रिया हूँ। तो तू खुदा से यह सब बातें कर रहा है। हाँ। तू अपराधी है, गुनहगार है, अरे भला खुदा की चप्पल फटेगी। भला खुदा के कम्बल में चीलर पड़ेगा। भला ख़ुदा थक जायगा? ऐसी गन्दी बातें तू खुदा के लिए करता है? तूने खुदा का अपमान किया है। वो बिचारा डर गया, काँप गया और उसने कहा कि मौलवी साहब इसका प्रायश्चित बताइये। उन्होंने कहा कोई प्रायश्चित नहीं है, तुमने इतना बड़ा अपराध किया है।
जैसे हमारे (हिन्दू फिलॉसफी) यहाँ नामापराध होता है। वो बिचारा वहाँ से उठा और दूर जाकर के बेहोश हो गया, कि क्षमा ही नहीं होगी ऐसा अपराध हो गया हमसे। इतने में आकाशवाणी हुई खुदा की, हज़रत मूसा के लिये कि तुम गुनहगार हो। तुमको हमने दुनियाँ में भेजा पैगम्बर बनाकर के इसलिये कि तुम इंसानों को मेरे पास लाओ किन्तु तुमने तो उल्टा काम कर दिया। उसने जो कुछ अपनी भावना से सोचा, सब ठीक है मैं सुन रहा हूँ उसकी सारी बात और इतना प्यार उमड़ रहा है मेरा उसके प्रति और तुमने उसको ऐसा कहा कि ऐसा अपराध किया है जिसका प्रायश्चित न होगा? जाओ गड़रिये से माफी माँगो। हज़रत मूसा आश्चर्य चकित। जाना पड़ा गड़रिये के चरणों में पड़े और कहा, हमसे गलती हुई।
गड़रिये ने कहा भई वो जो कह रहा था खुदा से न, वो मैं अब नहीं हूँ । मेरी खुदी मिट गई अब मुझे ख़ुदा के सिवा कुछ दीखता ही नहीं है आप कौन हैं, ये मैं कैसे जानूँ पहचानूँ? और उनसे प्रश्नोत्तर करूँ? यह उपासना है जहाँ एकत्व हो जाय, वह किसी भाव से हो जाय।
एक कैथोलिक कथा है। एक नट मरियम के मन्दिर में गया तो वहाँ सब लोग कुछ न कुछ माँग रहे थे मरियम मैया से। जरूर ये देती होगी तो उसने कहा ऐसे तो देंगी नहीं क्योंकि दुनियाँ वाले भी ऐसे नहीं देते पैसा, बिना तमाशा दिखाये। नट तमाशा दिखाता है तब लोग दस पैसा, बीस पैसा फेंक देते हैं उसके लिये तो उसने बन्द किया गेट सबके जाने के बाद और नट का पूरा तमाशा दिखाने लगा। और दिखाते-दिखाते पसीना-पसीना हो गया और इधर बाहर पादरी लोग बड़े क्रोध में गेट तोड़ने पर तुल गये। कौन है अन्दर? क्यों रह गया अन्दर? आखिर गेट तोड़ा गया और लोगों ने पिटाई शुरू कर दी उस नट की। इतने में मरियम की आकाशवाणी हुई। तुम सब पाखण्डी हो, यही तो मेरा भक्त है। किसी प्रकार भगवान् को प्राप्त करे कोई ।
सिक्ख धर्म में गुरु ग्रन्थ साहब में भरा पड़ा है प्रेम या भक्ति से ही भगवान् मिलेंगे;
साँच कहुँ सुनु लेहु सबै,
जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो
भई प्राप्त मानुख देहरिया, गोविन्द मिलन की ऐह तेरी बरिया।
धन्ना जाट इत्यादि का कथानक सभी जानते हैं प्रेम के वशीभूत होकर भगवान् को पत्थर से प्रगट होकर मोटी रोटी खानी पड़ी। अतः नाम कुछ भी लो, राम, कृष्ण कहो, खुदा कहो, गॉड कहो। वो सब एक हैं। जैसे चीनी की अनेक प्रकार की शक्लें बना देते हैं लोग दीवाली पर हाथी, घोड़ा, ऊँट, साहब, मेम आप किसी को भी खाइए सबमें वही चीनी है, वही रस है, उसमें कोई अन्तर नहीं है। ये जो शब्दों का अन्तर है यह हाथी है, हम तो घोड़ा लेंगे, हम तो मेम लेंगे। यह जो बच्चे कहते हैं यह ऐसे ही कहने की बातें हैं क्योंकि जब हम खायेंगे तो मिठास एक ही है। चीनी के अनेक सामान है। एक ही भगवान् के अनन्त रूप हैं। अनन्त नाम हैं। इसलिये कोई प्रतिबन्ध नहीं है किसी के लिये कि आपको यही नाम लेना है, यही रूप बनाना है। जैसी आपकी इच्छा हो, साकार मानिये, निराकार मानिये, साकार में अनन्त आकार मानिये, जैसी आपकी इच्छा हो। मुख्य बात है प्रेम।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, मार्च 2018 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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