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  ईश्वरीय राज्य में 'निष्कामता' का सबसे ऊँचा स्थान है, जानिये 'कामना' किस प्रकार 'प्रेम' का विरोधी है?
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 325

(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित विलक्षण प्रवचन श्रृंखला 'मैं कौन? मेरा कौन?' से लिया गया है। आचार्यश्री ने इस प्रवचन श्रृंखला में कुल 103-प्रवचन दिये थे। इस विकराल कलिकाल में सर्वथा भ्रान्त जीवों के कल्याणार्थ वैदिक सिद्धान्तों पर पूर्ण दृष्टिकोण रखते हुये भगवान राम-कृष्ण प्रापत्यर्थ भक्तियोग की उपादेयता एवं उसका षड्दर्शनों से सम्बन्ध बतलाते हुये विशद व्याख्या की है। निम्न उद्धरण में भक्तिपथ में निष्कामता की सर्वोच्चता के विषय में प्रकाश डाला गया है, जो कि उनके द्वारा 27 मार्च 2011 में भक्तिधाम मनगढ़ में दिये गये इस श्रृंखला के 93-वें प्रवचन का एक अंशमात्र है...)

...भक्त कुछ नहीं चाहता, भुक्ति मुक्ति कुछ नहीं, ये संक्षेप में और संक्षेप में अपना सुख नहीं चाहता। महाप्रभु जी ने बड़ा सुन्दर उपदेश दिया था;

निजेन्द्रिय सुख हेतु कामेर तात्पर्य,
कृष्ण सुख तात्पर्य प्रेम तो प्रबल।

दो विरोधी चीज है - एक कामना एक प्रेम। जो अपने सुख के लिये करे वो 'काम' है और जो श्यामसुन्दर के सुख के लिये करे, वो 'प्रेम' है

निजेन्द्रिय-सुख-वांछा नहे गोपिकार।
कृष्ण-सुख हेतु करे संगम विहार।।
(चैतन्य चरितामृत)

अतएव कामे प्रेमे बहुत अन्तर।
काम अन्धतम प्रेम निर्मल भास्कर।।
(चैतन्य चरितामृत)

अन्धकार और सूर्य के समान अन्तर है। जब अपने सुख की कामना छोड़ देता है भक्त, तो फिर भगवान का आसन डोल जाता है। अरे ये तो बड़ा खतरनाक आदमी है। इसी बात को मैंने पहले बहुत दिन पहले बताया था कि सूत जी ने शौनकादिक परमहंसों के प्रश्न के उत्तर में कहा था;

अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सम्प्रसीदति।
(भागवत 1-2-6)

भक्ति वो जिसमें कोई कामना न हो। मैंने कपिल भगवान का भी उपदेश आप लोगों को बताया था;

अहैतुक्यव्यवहिता या भक्तिः पुरुषोत्तमे।।
(भागवत 3-29-12)

अर्थात भक्त का मतलब ही यही है कि जिसमें भुक्ति मुक्ति न हो, अपने सुख की कामना न हो।

अन्याभिलाषिताशून्यं ज्ञानकर्माद्यनावृतं।
आनुकूल्येन कृष्णानुशीलनं भक्तिरुत्तमा।।
(भक्तिरसामृतसिन्धु 1-11)

तो मोक्षपर्यन्त की कामना नहीं करना है। हमारे देश में तमाम भोलेभाले लोग भजन बनाते हैं। सबमें एक ही चीज माँगते हैं, 'तार दो', तार दो माने मोक्ष दो। और सुनो हमारे देश में एक आरती है, वो सारे मन्दिरों में गाई जाती है;

सुख संपत्ति घर आवे और कष्ट मिटै तन का।
ॐ जय जगदीश हरे।

बड़े प्यार से गाते हैं लोग। ये संसार की संपत्ति घर में आवे और शरीर का भी कष्ट जाय, ऐसी कृपा करो। अरे देखो पंडितों से पूछो कि तुम पूजा कराते हो, शादी वगैरह में, तो अंत में क्या बोलते हैं - 'यांतुः देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्।' सब देवता अपने अपने लोक को जाओ। 'लक्ष्मीं कुबेरं च बिहाय'। लक्ष्मी और कुबेर तुम मत जाना। तुम हमारे घर में रहकर खूब दौलत, खूब संपत्ति लाओ, ताकि मैं जो कभी मंदिर जाता हूँ वो भी जीरो हो जाय। छुट्टी नहीं मिलती, कैसे भगवान की ओर जायें? ये भी भगवान की सेवा है। बच्चों में बड़ी आसक्ति है? अरे ये सब गोपाल जी तो हैं। ये वेदान्त झाड़ते हैं वे लोग।

तो मोक्षपर्यन्त की कामना सबसे बड़ी बाधा या कोई भी कामना हो, भगवान के सुख की कामना से भगवान का प्रेम माँगना है। तदर्थ भगवान का दर्शन माँगना है। दर्शन नंबर एक, पहले आओ, उसके बाद वो बोलेंगे ही कि वर माँगो, आदत है उनकी। तो हम बोलेंगे, निष्काम प्रेम। क्या करोगे? आपकी सेवा। चुप, बोलती बंद हो जायेगी, ठाकुर जी की। ये बड़ा पक्का है, ये तो भई, देना ही पड़ेगा इसको।

तो भगवद-भक्ति की कामना और वो निष्काम कामना अनन्यता से युक्त और निरंतर - यही एक पाठ ऐसा है, जिससे हम 'मैं' और 'मेरे' का ज्ञान प्राप्त करने के अधिकारी बनेंगे। 

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'मैं कौन? मेरा कौन?' प्रवचन श्रृंखला (93-वें प्रवचन का अंश)
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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