जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' के इस पद में श्री यशोदा जी के भाग्य की कैसी सराहना है; अवश्य अवलोकन करें!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 335
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का यह पद है, जिसमें माता यशोदा जी के भाग्य की वन्दना की गई है कि उनकी गोद में सकल जगत के पिता स्वयं ब्रह्म श्रीकृष्ण पुत्र बनकर प्रगट हुये हैं ::::
धन्य सो मातु यशोमति भाम।
श्री कृष्णहिं ‘कनुवा’, कहि टेरत ‘बलुवा’ कहि बलराम।
‘पूर्व जनम रह शूकर’ कह लखि, धूरि धूसरित श्याम।
‘पूर्व जनम रह मच्छ’ कहत लखि, जल विहार अभिराम।
मुख माटी लखि लै कर साँटी, बाँधति ऊखल दाम।
बन्यो ‘कृपालु’ पूत यशुमति को, जगत पिता नँदगाम।।
भावार्थ - उन यशोदा मैया के धन्य भाग्य हैं जो पूर्णब्रह्म श्रीकृष्ण को ‘कनुवाँ’ एवं बलराम को ‘बलुआ’ कहकर बुलाती हैं। श्यामसुन्दर को धूल में सने हुए देखकर कहती हैं कि तुम पिछले जन्म के सूअर हो। (बात भी सत्य है)। पुन: श्यामसुन्दर को पानी में अधिक देर तक खेलते हुए देखकर कहती हैं कि तुम पिछले जन्म के मछली हो। (बात भी सत्य है वे शूकर एवं मत्स्य बन चुके हैं)। श्यामसुन्दर के मुख में मिट्टी देखकर हाथ में डण्डा लेकर डराती हुई रस्सी से ऊखल में बाँध देती हैं। ‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में सम्पूर्ण जगत् के पिता नन्दग्राम में एक अहीरनी यशोदा के पुत्र बने हैं।
०० रचनाकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा', खंड - श्रीकृष्ण बाल लीला माधुरी
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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