हरियाली तीज दोहे (भाग - 1)
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा हरियाली-तीज पर प्रगट किये गये दोहे एवं भाव
आली हरियाली तीज गोविन्द राधे।
चलो लाली लाल को झूला झुला दें।।
आली हरियाली तीज गोविन्द राधे।
चलो लाली लाल हाथ मेहंदी रचा दें।।
आली हरियाली तीज गोविन्द राधे।
चलो लाली लाल को मल्हार सुना दें।।
हरियाली तीज पर गोविन्द राधे।
उर बिच झूला डार झुला दे।।
सब पर्व लक्ष्य एक गोविन्द राधे।
जग से हटा के मन हरि में लगा दे।।
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा विरचित दोहे)
सरल अर्थ - ब्रजधाम में एक सखी (गोपी) अपने अन्य सखियों से कह रही है कि सखी! देखो हरियाली तीज आ गई है। सब ओर हरियाली ही हरियाली छाई है। आओ हम सब कुंज लताओं में, कदम्ब पर झूला डालें। झूला डालकर हम सभी प्रिया-प्रियतम (राधाकृष्ण) को मिलकर झूला झुलायें। कोई-कोई सखी उनके हाथों पर सुन्दर सी मेहंदी रचेंगी और कोई-कोई सखियां उन्हें मल्हार आदि रागों में सुन्दर गीत सुनायेंगी और उन्हें सुख पहुंचायेंगी।
सभी पर्वों का एकमात्र लक्ष्य यही होता है कि हम अपने मन को, जो कि संसार में लगा हुआ है, आसक्त है, उसे वहां से हटाकर बार-बार भगवान में लगाने का अभ्यास करें। पर्व एवं त्यौहारों का यही उद्देश्य है। इस हरियाली तीज पर हम अपने आराध्य भगवान श्रीराधा-कृष्ण को अपने हृदय-कुंज में पधारकर, भाव हृदय में ही झूला डालकर उन्हें झूला झुलाएं एवं उनको सुख प्रदान करें।
(सभी दोहे जगद्गुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित किये गये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के ग्रंथ साहित्यों से हैं। सभी साहित्य राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के सर्वाधिकार में हैं।)
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