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 गुरु की भक्ति क्यों आवश्यक है? 'गुरु-पूर्णिमा' से पहले जानें भगवान और गुरु में गुरुभक्ति पर विशेष जोर क्यों दिया गया है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 349

(भूमिका - 24 जुलाई को 'गुरु-पूर्णिमा' का महान पर्व है। गुरु और उनके शरणागत के अटूट, अनन्य और प्रगाढ़तम संबंध का यह अत्यंत विशेष पर्व है। गुरुमहिमा सबसे ऊँची कही गई है, अतः 'गुरु-पूर्णिमा' का पर्व भी सभी पर्वों में सर्वोत्कृष्ट स्थान रखता है। भगवत्प्राप्ति के लिये पहली कड़ी 'गुरुतत्त्व' को समझना है। इसी कड़ी में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत 'गुरु-भक्ति की अनिवार्यता' पर प्रकाश डालता हुआ यह महत्वपूर्ण प्रवचन प्रकाशित किया जा रहा है। इस आशा के साथ कि आप सभी अपने आध्यात्मिक पथ के लिये एक रौशनी प्राप्त कर सकेंगे...)
 
.....विश्व का प्रत्येक जीव एकमात्र नित्यानंद ही चाहता है और उसी नित्यानंद के हेतु अनादिकाल से प्रतिक्षण प्रयत्नशील भी है। किन्तु, अनंतानंत जन्मों के प्रयत्नों के पश्चात भी अद्यावधि आनंद का लवलेश भी नहीं प्राप्त हो सका, ऐसा क्यों? इसका सीधा सा उत्तर यह है कि हम लोगों ने अनधिकार चेष्टा की। अनधिकार चेष्टा यह, कि हमने डायरेक्ट भगवान की उपासना की। अहंकार के कारण हमने किसी महापुरुष की शरणागति स्वीकार नहीं की। देहाभिमान के कारण हमने कभी भी किसी महापुरुष को गुरु मानकर शरणागति स्वीकार नहीं की। और सिद्धान्त यह है कि;
 
आचार्यवान् पुरुषो हि वेद।
(छान्दोग्योपनिषद 6-14-2)

तदविज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्।
(मुण्डकोपनिषद 1-2-12)
 
अर्थात उस परात्पर ब्रह्म श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिये आपको किसी वास्तविक महापुरुष की शरणागति स्वीकार करनी होगी, ये प्रथम सोपान है, पहली सीढ़ी है।
 
वेदव्यास ने सैकड़ों स्थानों पर, अपितु सैकड़ों नहीं हजारों मन्त्रों में, श्लोकों में इस बात को कोट किया है कि देखो, भगवान को पाने के लिये कुछ भी करो, योग करो, यज्ञ करो, दान करो, व्रत करो, तपश्चर्या करो, अनुष्ठान करो, कीर्तन करो, भजन करो, कुछ भी करो। लेकिन;

महत्पाद रजोभिषेकम्।
(भागवत 5-12-12)
 
बिना महापुरुष की शरणागति के और बिना महापुरुष की कृपा के भगवत्प्राप्ति असंभव है।
 
भयं द्वितीयाभिनिवेशितः स्यादीशादपेतस्य विपर्ययोस्मृतिः।
तन्माययातो  बुध  आभजेत्तं,  भक्तयैकयेशं  गुरुदेवतात्मा।।
(भागवत 11-2-37)
 
गुरु को अपना इष्टदेव, अपनी आत्मा, जैसे शरीर की आत्मा 'मैं', ऐसे 'मैं' की आत्मा गुरु अर्थात आत्मा से भी आराध्य ऐसा मानकर जो उपासना करेगा, उसी को भगवत्प्राप्ति हो सकती है। अन्यथा;
 
बहु जन्म करे यदि श्रवण कीर्तन,
तभू न पाये कृष्ण पदे प्रेम धन।
(गौरांग महाप्रभु)
 
अनंत जन्म भी कोई नवधा-भक्ति करे अथवा सहस्त्रधा भक्ति करे, भगवत्प्राप्ति नहीं हो सकती।
 
सो बिनु संत ना काहूहिं पायी।

किसी को नहीं मिली,

मिलई जो संत होई अनुकूला।
 
यह भगवान का एक अकाट्य लॉ है, कानून है, कि मैं डायरेक्ट संबंध नहीं रख सकता। गुरु को ही मैनें सब पॉवर दी है। वही आपको साधना करायेगा, वही योगक्षेम वहन करेगा, वही अन्तःकरण शुध्दि होने पर दिव्य प्रेमदान देगा। सब कुछ वही करेगा। वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में भगवान और महापुरुष को समान माना गया है;
 
यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ।
तस्यैते कथिता ह्यर्था: प्रकाशन्ते महात्मनः।।
(श्वेताश्वतरोपनिषद 6-23)
 
वेद कहता है, जैसी भक्ति आपकी श्रीकृष्ण के प्रति हो, वैसी ही भक्ति सेंट परसेन्ट गुरु के प्रति हो, तब भगवत्प्राप्ति होगी। भक्ति के सबसे बड़े आचार्य हैं भगवान के अवतार नारद जी, इन्होंने कहा कि 'तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्', भगवान और गुरु में कुछ भी भेद नहीं है। दोनों एक हैं। यहाँ तक कि भागवत में तो श्रीकृष्ण ने यहाँ तक कहा है कि;
 
आचार्यं मां विजानीयान्नावमन्येत कर्हीचित।
न   मर्त्यबुद्ध्यासूयेत   सर्वदेवमयो   गुरुः।।
(भागवत 11-17-27)
 
तुम आचार्य को, गुरु को, गुरु ही मत मानो, उसको मुझे मानो अर्थात मैं ही हूँ तुम्हारे गुरु के रूप में। कोई अंतर नहीं। अर्थात समस्त शास्त्रों वेदों ने भगवान और महापुरुष को समान माना है। किन्तु हमारे स्वार्थ की दृष्टि से गुरु का स्थान ऊँचा है।
 
आराधनानां सर्वेषां विष्णोराराधनं परम।
तस्मातपरतरं देवि! तदीयानां समर्चनम्।।
(पद्म पुराण)
 
वेदव्यास कहते हैं कि जितनी आराधनाएँ हैं, उपासनाएँ हैं, तामसी, उससे ऊँची राजसी, उससे ऊँची सात्विकी देवताओं की भक्ति, उससे ऊँची ब्रह्म की भक्ति, उससे ऊँची परमात्मा की भक्ति, परमात्मा की भक्ति से ऊँची भगवान की और उनके अवतारों की भक्ति और सबसे ऊँची भक्ति श्रीराधाकृष्ण की, लेकिन श्रीराधाकृष्ण की भक्ति से भी ऊँची है - उनके भक्तों की भक्ति।
 
त्वद् भृत्य भृत्य परिचारक भृत्य भृत्य,
भृत्यस्य भृत्य इतिमांस्मर लोकनाथ।
(पद्म पुराण)
 
भगवान के भक्तों की भक्ति से भगवान जितनी शीघ्रता से संतुष्ट होते हैं, अपनी भक्ति से नहीं।
 
मद्भक्तस्य ये भक्तास्ते मे भक्ततमा मताः।
(वेदव्यास)
 
हजारों स्थान पर वेदव्यास ने दुंदुभि घोष से कहा है, कि मेरे भक्त की उपासना से ही मैं शीघ्र प्रसन्न होता हूँ। तो या तो श्रीकृष्ण प्लस गुरु दोनों की साथ साथ एक समान भक्ति की जाय, या केवल गुरु की ही भक्ति कर ली जाय तो भी वही फल मिलेगा। लेकिन डायरेक्ट केवल भगवान की भक्ति से कुछ नहीं मिलेगा। और वह भक्ति कर भी नहीं सकता कोई। भक्ति की परिभाषा भी नहीं जान सकता अपनी बुद्धि से, भक्ति क्या करेगा? तो हमारे स्वार्थ के दृष्टिकोण से गुरु का स्थान ऊँचा है क्योंकि गुरु ने ही हमको तत्वज्ञान भी कराया, साधना भी कराई, और जो बाधाएँ बीच बीच में आईं उनका समाधान भी किया, हमारे संस्कारों से भी लड़ा, और फिर अन्तःकरण की शुद्धि होने पर वह दिव्य प्रेमदान भी गुरु ने ही किया। तो सारा परिश्रम तो गुरु ने ही किया, फिर हम भगवान का एहसान क्यों मानें। भगवान तो बने बने के साथी हैं।
 
तेषां नित्यभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहं।
(गीता 9-22)
 
भगवान कहते हैं जब तुम ठीक ठीक बन जाओगे, ठीक ठीक सैंट परसैन्ट, नित्य अभियुक्त, कम्प्लीट सरेंडर। तो फिर मैं तुम्हारा बन जाऊँगा। यह कौन सा कमाल है?
 
निर्मल मन जन सो मोहिं पावा।
 
अब निर्मल कैसे बने जी? अनंत कोटि जन्मों का मल हमारे अन्तःकरण में प्लस है और आप कहते हैं कि मुझे निर्मल चाहिये। ये निर्मल बनाने का काम आपका गुरु करेगा। यानी छोटे बच्चे का पाखाना, पेशाब माँ साफ करे। गंदगी सब साफ करे महापुरुष और जब बिल्कुल ठीक ठाक हो जाय, तो भगवान कहते हैं, मैं आ रहा हूँ। जैसे संसार में कोई बाप अपनी लड़की को पालता है, पोसता है, बड़ा करता है, पढ़ाता है, लिखाता है, गुणवती कलावती बनाता है। तो जब अठारह साल, बीस साल की हो गई तो एक लड़का आया, उसने इंटरव्यू लिया और पास कर दिया, ब्याह किया और ले भागा। ऐसे ही भगवान हैं। इसलिये भक्त लोग कहते हैं, हमारा सारा काम तो गुरु ने किया, इसलिए गुरु भक्ति से ही हमारा काम बनेगा।
 
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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