संत का पृथ्वी पर अवतरण कृपा के लिये ही होता है, पर क्या उनके पास केवल चले जाने, दर्शन कर लेने से ही कृपा मिल जायेगी?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 351
साधक की जिज्ञासा ::: संत जब पृथ्वी और आते हैं तब तो कृपा करते हैं? उनके पास जाने से उनके दर्शन से तो कृपा प्राप्त होगी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: नहीं-नहीं, आने से क्या होता है? आने से कृपा नहीं होती। संत के पास लाखों आते हैं। कृपा तो होगी बर्तन बन जाने पर, अन्तःकरण शुद्धि पर। आने से कृपा नहीं हुआ करती। एक आता है वो जाकर गाली देता है संत को। दूसरा आता है वो बुराई करके चला जाता है। तीसरा आता है वो कहता है हाँ समझदार है। संत मानने वाला कौन है? संत!! जिसके पीछे पीछे भगवान घूमते हैं उनका नाम संत। इतनी बड़ी भावना है किसकी?
इतनी बड़ी भावना हो जाय तो बात नहीं बन जाय! एक संत, बाहर से आये हुये थे, एक वाक्य बोल दे, कोई गन्दा वाक्य, डाँट का वाक्य, फीलिंग। संत के वाक्य को फील कर रहे हो। तुम अपने को क्या समझते हो? जिनकी डाँट को भगवान सहर्ष सुनते हैं, उनकी डाँट को तुम फील करते हो नारकीय जीव? अजी क्या करें व अहंकार है। तो फिर तुम कृपा पात्र कहाँ हुये?
जाने से, सेवा करने से, दिन रात पैर दबाने से - इससे कुछ नहीं मिलेगा। अन्तःकरण को समर्पित करना होगा, बुद्धि को समर्पित करना होगा, मन बुद्धि दोनों को शरणागत करना होगा। अर्जुन से भगवान ने कहा;
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिम् निवेशय।
(गीता 12-8)
मन बुद्धि हमको दो, हमारे हाथ में लाओ। तुम्हारे काम बन्द। सारी गीता क्या है? पहले अध्याय में अर्जुन ने बुद्धि लगाया। इनको मारेंगे तो पाप होगा, ये होगा, वो होगा। इसलिये हम युद्ध नहीं करेंगे। बुद्धि लगाया। अठारह अध्याय का लेक्चर दिया भगवान ने। और आखिर में कहा;
मय्यर्पित मनोबुद्धि:।
(गीता 12-14)
तू बुद्धि को मेरे शरणागत कर दे। मुझको दे दे। जब दे दिया तो उसने कहा कि महाराज बस हो गया, हो गया। काम बन गया हमारा। पहले ही अर्जुन ने कहा कि हम आपके शिष्य हैं लेकिन बुद्धि लगा रहा है। शिष्य कहाँ? शिष्य का मतलब गुरु की बुद्धि में बुद्धि जोड़ दे। डॉक्टर ने जितना कहा है उतनी दवा खाओ। जो परहेज कहा है वो परहेज करो। शरणागत रहो। अगर तुमने कहा कि डॉक्टर ने तो कहा है तीन बूँद दवा छोड़ देना एक चम्मच पानी में। इतने बड़े शरीर में तीन बूँद का क्या असर होगा अपन तो पूरी शीशी पी लेते हैं। मर गये।
सद्गुरु वैद्य वचन विश्वासा।
संजम यह न विषय कै आसा।।
रघुपति भगति सजीवनी मूरी।
अनुपान श्रद्धा मति पूरी।।
एहि विधि भलेहि सो रोग नसाहीं।
नाहीं त कोटि जतन नहिं जाहीं।।
सारे महापुरुषों का चैलेन्ज है। जब योगी वैरागी ज्ञानी भी नहीं पा सकते तो फिर महापुरुष के पास चले गये हम, बड़ी कृपा किया चले आये हम। आपके ऊपर कृपा हो जाय। अरे हम आये हैं आपके पास, हमने अपनी खोपड़ी आपके पैर पर रखा है तो कृपा करना पड़ेगा आपको? सुना! खोपड़ी रखा है! तो खोपड़ी पर लाओ कृपा कर दें हम। तुम्हारे ऊपर कृपा क्यों?
कृपा करने वाला तो व्याकुल है। देने वाला तो व्याकुल है क्योंकि उसको तो पुरस्कार मिलेगा भगवान के यहाँ। तुमने कितने जीवों को हमारी ओर लगाया? कितने जीवों को आगे बढ़ाया? कितने जीवों को हमसे मिलाया? ये महापुरुष से रिकॉर्ड माँगा जायेगा। जब महापुरुष अधिक प्रसन्न होगा तो वो विशेष कृपापात्र हो जायेगा, भगवान की सेवा का अधिकारी हो जायेगा। तो देने वाले को क्या, उसका कुछ घटना थोड़े ही है। अरे संसारी संपत्ति रुपया हो, वो हमारे पास एक लाख है तो दे देंगे फिर हम क्या करेंगे भई! वो तो घट गया, खतम हो गया। ये भगवत् विषय तो ऐसा है नहीं कि हमने दे दिया तो हमारा चला गया। जैसे ज्ञान दे रहे हैं तो उससे तो हमारा ज्ञान और नया हो रहा है। हमारा भी तो चिन्तन हो रहा है देने से। घट कहाँ रहा है? तो देने वाला क्यों कंजूसी करेगा? कहाँ दे? बर्तन के बिना कहाँ दे?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2017 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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